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Monday, December 13, 2010

Fwd: Hastakshep.com | News Letter



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From: Hastakshep.com | News Letter <noreply@hastakshep.in>
Date: 2010/12/13
Subject: Hastakshep.com | News Letter
To: palashbiswaskl@gmail.com


Monday, December 13 ,2010
नवीनतम प्रकाशित लेख
नीतीश और शिवराज की पहल की इज्ज़त की जानी चाहिए
भ्रष्टाचार अपने देश के सामाजिक ताने बाने में बुरी तरह से घुस चुका है . घूस में की गयी चोरी को बाकायदा कमाई कहा जाता है . अंग्रेजों के दौर में संस्था का रूप हासिल करने वाली संस्कृति को आज़ादी के बाद नौकरशाही ने घूस की संस्कृति में बदल दिया . आज़ादी के संघर्ष में शामिल नेताओं के जाने के बाद जो नेता राजनीति में आय  Read...
वाराणसी में यज़ीदियत ने फिर किया इंसानियत का खून
विश्व प्रसिद्ध शहनाई वादक भारत रत्न बिसमिल्लाह खां का शहर वाराणसी गत् 7 दिसंबर की सायंकाल एक बार फिर दहल उठा। वाराणसी के प्राचीन एवं ऐतिहासिक शीतलाघाट पर की जा रही गंगा जी की आरती जैसे अति पावन अवसर पर आतंकियों ने शीतलाघाट की सीढिय़ों पर तीव्र शाक्ति वाला बम विस्फोट कर जहां एक मासूम बच्ची की जान ले ली वहीं द  Read...
खेती और किसानों को बचाने के लिए
खेती और किसानों को बचाने के लिए '' अखिल भारतीय किसान स्वराज यात्रा'' का जयपुर में आगमनजयपुर, 09.12.2010''किसान स्वराज यात्रा का मुख्य उद्देश्य कृषि व खाद्य में 'स्वराज  है व तीन मांगे है - (1) किसान को सरकार द्वारा आय में सहयोग, (2) खेती इस रूप की à  Read...
अफसरशाही और प्रोफेसरशाही को समर्पित
पूरे देश में मौसमी दहलीज पर जब सर्दी दस्तक देती है तो जिंदगी को जल्दी समेटने की तैयारियां तेज हो जाती हैं। एक तरफ सूरज देवता अपनी किरणों को समेटते हैं और दूसरी तरफ देश गुदड़ी से लेकर अलाव तक के सहारे रात का अंधेरा काटने की दिशा में आगे बढ़ जाता है। ऐसा नहीं कि गुलाबी सर्दियां सिर्फ शहरों को ही भली लगती हैं, ग�¤  Read...
कुछ बातें बेमतलब / यह भी साड़ी , वह भी साड़ी
आज कल देश में अमेरिका विरोध कम हो गया है । वरना जिस बात पर वामपंथी दल बंद करा देते थे , उस पर भारत सरकार औपचारिकता निभा देती है । संघ परिवार के लोग तो इसे देश की प्रतिष्ठा और महान भारतीय संस्कृति से जोड़ कर न सही दिल्ली बंगलुरु – भोपाल तो बंद करा ही सकते थे कि भारत की प्रतिष्ठा की नाक कट गई ।यहां हमेशा इस बात प  Read...
6 दिसंबर : न्यायिक विस्मरण के विरुद्ध
एक बार फिर 6 दिसम्बर आ कर गुजर गया. लेकिन क्या ज़रूरी था कि हम इसे याद करें ही? क्या अठारह साल  पहले हुई एक 'भूल' की बार- बार याद दिला कर हम अपने  समाज को मानसिक रूप से आगे बढ़ने से  रोक तो नहीं रहे? याद करना और याद रखना  हमेशा स्वास्थ्यकर हो, आवश्यक नहीं. कई बार तो ज़िन्दगी में इत्मीनान के लिए भूलना बेहतर है. बल्�¤  Read...
राडिया गैंग की ताक़त के सामने घिघियाते पत्रकार और वेब मीडिया
नीरा राडिया के टेलीफोन के शिकार हुए लोगों की नयी किश्त बाज़ार में आ गयी है .पहली किश्त में तो अंग्रेज़ी वाले पत्रकार और दिल्ली के काकटेल सर्किट वालों की इज्ज़त की धज्जियां उडी थीं . उनमें से दो को तो उनके संगठनों ने निपटा दिया . वीर संघवी और प्रभु चावला को निकाल दिया गया है लेकिन बरखा दत्त वाले लोग अभी डटे हुए   Read...
साहित्य में नव्य उदारतावादी ग्लोबल दबाव
हमारे साहित्यकार यह मानकर चल रहे हैं अमरीकी नव्य उदार आर्थिक नीतियां बाजार,अर्थव्यवस्था,राजनीति आदि को प्रभावित कर रही हैं लेकिन हिन्दीसाहित्य और साहित्यकार उनसे अछूता है। असल में यह उनका भ्रम है। इन दिनों हिन्दीसाहित्य और साहित्यकार पूरी तरह नव्य उदार नीतियों की चपेट में आ गया है।इन दिनों विभिनà  Read...
बदलते दौर में कांग्रेस की मुश्किल
 कांग्रेस की सबसे बड़ी मुसीबत क्‍या है। स्पेक्ट्रम घोटाला। कारपोरेट घरानों का फंसना। सीवीसी की नियुक्ति पर अंगुली उठना। कॉमनवेल्थ से लेकर आदर्श सोसायटी का घपला, कांग्रेसी नेताओं की अगुवाई में होना। आंध्र प्रदेश में जगन रेड्डी का बगावत करना। करुणानिधि का चेताना कि गठबंधन का टूटना दोनों के लिये घातक हà  Read...
हेमंत करकरे की ह्त्या से राजनीतिक लाभ लेने की दिग्विजय सिंह की कोशिश
अगर यह सच है तो बहुत बुरा है . मुंबई पुलिस के आतंकवाद विरोधी दस्ते के मुखिया ,बहादुर , जांबाज़ और वतनपरस्त अफसर हेमंत करकरे की शहादत के दो साल से भी ज्यादा वक़्त के बाद कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह ने जो बात दिल्ली की एक सभा में कही ,वह किसी के भी होश उड़ा सकती है . आपने फरमाया कि अपनी हत्या के करीब दो घंट  Read...
छात्र राजनीति-लोक तंत्र की गर्भनाल
 छात्र राजनीति जिसने आजादी के महासमर में अपना अस्मरणीय योगदान दिया। देश के प्रत्येक भाग से बड़ी संख्या में युवा छात्र क्रान्तिकारियों ने उक्त स्वतंत्रता संग्राम की गतिविधियों में अपनी प्रबल भागीदारी से फिरंगियों के दॉत खट्टे कर दिये। देश आजाद हो गया। आजादी से पहले छात्र राजनीति जिस लक्ष्य से प्रेरित à  Read...
. . . .बदनाम हुई किसके लिए?
कौन हुआ बदनाम किसके लिए...डेमोक्रेसी बदनाम हुई ,भृष्टाचार तेरे लिए .रादिया बदनाम हुई ,कार्पोरेट तेरे लिए ..द्रुमुक बदनाम हुई , ए. राजा तेरे लिए .बरखा बदनाम हुई , लोबिंग तेरे लिए ..नेनो बदनाम हुई ,सिंगूर तेरे लिए .ममता बदनाम हुई ,माओवाद तेरे लिए ..अरुंधती बदनाम हुई ,अभिव्यक्ति तेरे लिए .  Read...
जो हमने दास्तान अपनी सुनाई ... तो आप क्यों रोए ?
जो हमने दास्तान अपनी सुनाई ... तो आप क्यों रोए ? द्वतीय महायुध्य  के बाद दुनिया दो खेमों में बट गई थी .एक का नेत्रत्व अमेरिका के पास था .दूसरे का सोविएत संघ पैरोकार था .दोनों का अपना विशिष्ठ दर्शन था .अमेरिका को उसके पूंजीवादी अर्थतंत्र में विकाश कि सफलताएं मिलती जा रहीं थीं .उधर सोवियत रूस ,चीन , क्यूबा ,वियेतन�¤  Read...
विपक्ष की भूमिका में मीडिया से उम्मीदें ?
बिहार में विकास की तीव्र आकांक्षा ने नीतीश कुमार को सरकार चलाने का एक मौका और दिया है। उनकी जीत को विकास के लिए जनादेश बताया जा रहा है। हालांकि यह बहस का मुद्दा हो सकता है कि पिछले कार्यकाल में नीतीश कुमार ने किसका 'विकास' किया। बावजूद इसके आम जनता ने सही मायने में विकास के लिए उन्हें एक तरफा वोट दिया है। विà  Read...
श्रम की गांठ से उपजी कविताएं
अपनी पीढ़ी के एक कवि की चर्चा धूमिल की पंक्ति से शुरू करने के लिए विज्ञजन से क्षमा की आशा रखता हूं। 'कविता भाषा में आदमी होने की तमीज है।' मैं इसे थोड़ा सुधारकर कहना चाहता हूं कि 'आदमी' होना कविता लिखे जाने की पहली और अनिवार्य शर्त है। व्यक्तित्व के फ्रॉड से 'बड़ी' कविता नहीं लिखी जा सकती। बड़ी कविता से मे  Read...
कैसे सधे सुर
जिंदगी में लगातार बढ़ती टेलीविजन की दखल से सामाजिक और पारिवारिक मूल्यों में आ रहे नकारात्मक बदलावों को लेकर आवाजें उठनी अब नई बात नहीं रही। इस सिलसिले में अगर कुछ नया है तो वह है क्लासिकल संगीत की दुनिया से उठती मुखर आवाज। प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह से ऑल इंडिया म्यूजिशिन ग्रुप की मुलाकात की अहमियत  Read...
जल है तो कल है
रोज अखबारों में कहीं न कहीं खबर छपती है कि आज फलां जगह पर पानी के लिए लड़ाई हुई। पिछले 17 अप्रैल को मुंबई के कुलावा में पानी को लेकर हुई मार पीट में एक व्यक्ति की जान चली गई। राजस्थान में तो औरतें पानी के लिए तीन से चार किलोमीटर तक पैदल चलकर गड्ढों, तालाबों, बावड़ियों तक पहुंचती हैं। इसके बावजूद भी उन्हें गंदा पा�¤  Read...
खोखली बुनियादें
संस्कृति, परंपरा, आदर्श, तहजीब, रीति रिवाज़ और शरियत जैसे बड़े वज़नदार शब्द सुनने में बड़े अच्छे लगते हैं। और ये भी कि इनको शिद्दत से मानना चाहिए और इनका पालन करना चाहिए जिससे समाज में कोई बुराई जड़ न कर जाए। मगर यही शब्द कभी कभार जड़ता का रूप लेेकर इंसानी ज़िंदगी में सड़ांध पैदा करने लगते हैं और इन शब्दों की आवाज़ तब इ  Read...
सेना का प्रयोग या मानवाधिकारों की हत्या
पिछले दिनों भारत में कनाडा के उच्चायोग्य ने कई सैन्य व खुफिया सेवा के अधिकारियों को अपने देश का वीजा देने से मना कर दिया। उच्चायोग्य का कहना था कि कुछ भारतीय सैन्य, अर्द्धसैन्य व खुफिया एजेंसियां मानवाधिकारों के हनन व चुनी सरकारों के खिलाफ काम कर रही हैं। उच्चायोग्य की इस टिप्पणी पर विदेश मंत्रालय ने कड़ी   Read...
विकीलिक्स से शुरू हो रही है असली वैश्विक पत्रकारिता
विकीलिक्स ने मुख्यधारा की पत्रकारिता को निर्णायक रूप से बदलने की जमीन तैयार कर दी है. हम-आप आज तक पत्रकारिता को जिस रूप में जानते-समझते रहे हैं, विकीलिक्स के बाद यह तय है कि वह उसी रूप में नहीं रह जायेगी. अभी तक हमारा परिचय और साबका मुख्यधारा की जिस कारपोरेट पत्रकारिता से रहा है, वह अपने मूल चरित्र में राष्ट्�¤  Read...
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Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited-banga.blogspot.com/

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