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Friday, June 24, 2016

ब्रिटेन आउट, कैमरुन आउट! संप्रभू ब्रिटिश नागरिकों ने यूरोपीय समुदाय के धुर्रे बिखेर दिये और कबंध अंध देश के हमारे हुक्मरान नरमेधी सुधार तेज कर रहे हैं। सत्ता निरंकुश नहीं होती अगर देश के नागरिक मुर्दा न हो और लोकतंत्र जिंदा हो। सत्ता के झंडे लहराते हुए भारत माता की जय बोल देने से कोई देशभक्त नहीं हो जाता बल्कि राष्ट्रहित में सत्ता से टकराकर सरफरोशी की तमन्ना ही असल देशभक्ति है और

ब्रिटेन आउट, कैमरुन आउट!

संप्रभू ब्रिटिश नागरिकों ने यूरोपीय समुदाय के धुर्रे बिखेर दिये और कबंध अंध  देश के हमारे हुक्मरान नरमेधी सुधार तेज कर रहे हैं।

सत्ता निरंकुश नहीं होती अगर देश के नागरिक मुर्दा न हो और लोकतंत्र जिंदा हो।

सत्ता के झंडे लहराते हुए भारत माता की जय बोल देने से कोई देशभक्त नहीं हो जाता बल्कि राष्ट्रहित में सत्ता से टकराकर सरफरोशी की तमन्ना ही असल देशभक्ति है और इसके लिए निरंकुश सत्ता से टकराने का जिगर चाहिए जो हमारे पास फिलहाल हैं ही नहीं।पुरखों के जरुर रहे होगे वरना वे हजारों साल से गुलामी के बदले शहादतों का सिलसिला नहीं बनाते।

ब्रेक्सिट के बाद ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने इस्तीफे का एलान किया है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन अक्टूबर में अपने पद से इस्तीफा देंगे। अक्टूबर में ब्रिटेन के नए पीएम का फैसला होगा।

मुक्तबाजार को यूरोप में शरणार्थी सैलाब ने तहस नहस कर दिया है और हमारे हुक्मरान रोज रोज शरणार्थी सेैलाब पैदा कर रहे हैं।

ब्रेक्सिट का सबसे बड़ा कारण यह शरणार्थी समस्या है जिससे भारत विभाजन के बाद हम लगातार जूझने के बादले भुनाते रहे हैं और विकास के नाम विस्थापन का जश्न मनाते हुए बाहर से आने वाले शरणार्थियों के मुकाबले देश के भीतर कहीं ज्यादा शरणार्थी बना चुके हैं।ब्रिटेन में अल्पसंख्यक होते जा रहे ब्रिटिश मूलनिवासियों की यह प्रतिक्रिया है तो समझ लीजिये,भारत के मूलनिवासी जागे तो भारत में क्याहोने वाला है।

सत्ता के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले अपने ही बच्चों को राष्ट्रविरोधी बताकर उनपर हमला करने वाले हम,जात पांत मजहब के बहाने असमता और अन्याय के झंडेवरदार और मनुस्मृति राज की पैदलसेनाएं हम क्या सपने में भी अपने इस कबंध अंध देश में ऐसा लोकतंत्र बहाल कर सकते हैं?


क्या हम कभी अनंत बेदखली और अनंत विस्थापन के खिलाफ मोर्चाबंद हो सकते हैं?



पलाश विश्वास

ब्रेक्सिट हो गया आखिरकार।दुनियाभर में रंग बिरंगी अर्थव्यवस्थाओं में सुनामी है आज।ब्रिटेन आउट।कैमरुन आउट।ब्रिटिश जनता ने यूरोपीय समुदाय के धुरेरे बिखेरने के साथ सात कैमरुन का तख्ता पलट दिया।


सेबों की गाड़ी उलट गयीं।सेबों की लूट मची है।किसके हिस्से कितने सेब आये,हिसाब होता रहेगा।


बहरहाल शरणार्थी समस्या और विकास के नाम विस्थापन और आव्रजन का चक्र महामारी की तरह दुनिया के नक्शे में जहां तहां जैसे संक्रमित हो रही है,उसे समझे बिना ब्रेक्सिट को समझना असंभव है क्योंकि ब्रेक्सिट का सबसे बड़ा कारण यह शरणार्थी समस्या है जिससे भारत विभाजन के बाद हम लगातार जूझने के बादले भुनाते रहे हैं और विकास के नाम विस्थापन का जश्न मनाते हुए बाहर से आने वाले शरणार्थियों के मुकाबले देश के भीतर कहीं ज्यादा शरणार्थी बना चुके हैं।ब्रिटेन में अल्पसंख्यक होते जा रहे ब्रिटिश मूलनिवासियों की यह प्रतिक्रिया है तो समझ लीजिये,भारत के मूलनिवासी जागे तो भारत में क्या होने वाला है।


जिन्हें दसों दिशाओं में समुदरों और पानियों में,फिजाओं में लाखोलाख आईलान की लाशें नजर नहीं आती,जिन्हें खून का रंग नजर नहीं आता,वे समझ नहीं आखिर क्यों यूरोप में मुक्तबाजार से इतना भयानक मोहभंग हो रहा है,क्यों फ्रांस में भयंकर जनविद्रोह है और क्यों ब्रिटेन यूरोपीयसमुदायसे अमेरिका का सबसे बड़ा पिछलग्गू होने के कारण अलग हो रहा है।


हम फेंकू पुराण के श्रद्धालु  पाठक हैं और सारी दुनिया से अलगाव की तेजी से बन रही परिस्थितियों पर हमारी नजर नहीं है वरना एलएसजी के लिए हम पगलाये न रहते।


आसमानी फरिशतों के दम पर राष्ट्र का भविष्य बनता नहीं है, बल्कि उसका भूत वर्तमान भी तहस नहस हो जाता है।ऐसा बहुत तेजी से घटित हो रहा है और हम देख नहीं पा  रहे हैं।


मुक्तबाजार को यूरोप में शरणार्थी सैलाब ने तहस नहस कर दिया है और हमारे हुक्मरान रोज रोज शरणार्थी सेैलाब पैदा कर रहे हैं।


लोकतंत्र का ढांचा वही है लेकिन संसद में अध्यक्ष की कुर्सी के नीचे वह ऊन नहीं है जो ब्रिटेन की विरासत के साथ संसद को जोड़ती है और हमारी संसदीय प्रणाली हवा हवाई है।जबकि यह संसदीय प्रणाली भी उन्हींकी है।जिसे हम अक्सर अपनी दुर्गति की खास वजह मानते हैं।हमारे ज्यादातर कानून उन्हींके बनाये हुए हैं।हमारे संविधान में उनके अलिखित संविधान की परंपराओं की विरासत है।फर्क सिर्फ इतना है कि वे स्वतंत्र संप्रभू नागरिक हैं और हम आज भी ब्रिटिश राज के जरखरीद गुलाम राजा रजवाड़ों जमींदारों के उत्तर आधुनिक वंशजों के कबंध अंध प्रजाजन हैं।


ब्रिटिश नागरिकों ने आधार योजना लागू करने के खिलफ पहले ही सरकार गिरा दी और नाटो की यह योजना नाटो के किसी सदस्य देश में लागू नहीं हुई।एकमात्र मनुस्मृति राजकाज के फासीवाद तंत्र मंत्र तिलिस्म में नागरिकों की निगरानी और उनके अबाध नियंत्र के लिए नरसंहारी मुक्तबाजार का यह सबसे उपयोगी ऐप लगा ली है।


अपनी आंखों की पुतलियां और उंगलियों की चाप कारपोरेट हवाले कर देने वालों को मुक्तबाजार के नरसंहारी सलाव जुड़ुम परिदृश्य में सब मजा सब मस्ती न घर न परिवार न समाज न देश मनोदशा के कार्निवाल बाजार में क्रयशक्ति की अंधि मारकाट और सत्तावर्ग की फेकी हड्डियां बटोरने से कभी फुरसत हो तो मनुष्यता,सभ्यता,प्रकृति और पर्यावरण के बारे में सीमेंट के इस घुप्प अंधियारा जंगल में सोचें और विवेक काम करें,अब यह निहायत असंभव है।इसीलिए कही जनता की कोई आवाज नहीं है।हम न सिर्फ अंध हैं,हम मूक वधिर मामूली कल पुर्जे हैं,जिनमें कोई संवेदना बची नही है तो चेतना बचेगी कैसे।


हम सार्वजनिक सेवाओं और संस्थानों का जैसे निजीकरण के पक्ष में हो गये हैं तो हमें लोकतंत्र और राजकाजा,राजकरण के कारपोरेट बन जाने से कोई तकलीफ उसी तरह नहीं होगी जैसे हमें भाषाओं,माध्यमों,विधायों,सौंदर्यबोध,संस्कृति और लोकसंस्कृति, जाति और धर्म,मीडिया और मनोरंजन,शिक्षा दीक्षा चिकित्सा और परिवहन के कारपोरेट हो जाने से चारों तरफ हरियाली नजर आती है और खेतों,खलिहानों,समूचे देहात,कल कारखानों,लघु उद्योगों ,खुदरा बाजार के कब्रिस्थान में बदलने से हमारी शापिंग पर असर कोई होना नही है बशर्ते कि क्रयशक्ति सही सलामत रहे।यह इस देश के पढ़े लिखे तबकों का खुदगर्ज बनने की सबसे बड़ी वजह है।उनके हिसाब से पैसा ही सबकुछ है और बाकी कुछ भी नहीं है।अपढ़ लोगों में भी यह ब्याधि अब लाइलाज है।भाड़ में जाये देश।


अब फिर संप्रभू स्वतंत्र ब्रिटिश नागरिकों ने सत्ता का तख्ता पलट दिया है क्योंकि उन्हें यूरोपीय समुदाय में बने रहना राष्ट्रहित के खिलाफ लगता है।


ब्रेक्सिट के बाद ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने इस्तीफे का एलान किया है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन अक्टूबर में अपने पद से इस्तीफा देंगे। अक्टूबर में ब्रिटेन के नए पीएम का फैसला होगा।


ब्रिटेन यूरोपियन यूनियन का हिस्सा नहीं रहेगा, इस बात की पुष्टि हो गई है। ब्रिटेन की जनता ने ब्रेक्सिट के पक्ष में मतदान किया है। वहीं ब्रेक्सिट इफेक्ट से भारतीय शेयर बाजार डगमगा गया है। भारतीय सेंसेक्स सुबह 940 अंकों की गिरावट के साथ खुला। बाद में यह आंकड़ा 1000 तक पहुंच गया। ब्रिटेन की करंसी पाउंड 31 साल के अपने न्यूनमत स्तर पर है। यूरोप समेत पूरी दुनिया के बाजार में आपाधापी का माहौल है।


ब्रेक्सिट की मार से करेंसी भी नहीं बची। पाउंड 31 साल के निचले स्तर पर जा गिरा और रुपया भी 1 फीसदी कमजोर हुआ। कच्चा तेल भी 6 फीसदी लुढ़क गया। लेकिन ब्रेक्सिट का फायदा उठाया सोने ने और ये 6 फीसदी से ज्यादा चढ़ा। इस भारी उथल पुथल के बीच सरकार का कहना है कि भारत पर ब्रेक्सिट का ज्यादा असर नहीं पड़ेगा।


घरेलू वायदा बाजार में सोना करीब 5.5 फीसदी यानि 1600 रुपये की मजबूती के साथ 31500 रुपये के पार पहुंच गया है। चांदी में भी तेजी देखने को मिली है। एमसीएक्स पर चांदी करीब 4 फीसदी उछलकर 42800 रुपये के करीब पहुंच गई है। चांदी में भी 1600 रुपये की मजबूती देखने को मिली है।


हालांकि क्रूड में भारी गिरावट देखने को मिली है। ब्रेंट क्रूड का भाव 5 फीसदी से ज्यादा फिसलकर 48.3 डॉलर पर आ गया है, जबकि नायमैक्स पर डब्ल्यूटीआई क्रूड 5 फीसदी गिरकर 47.6 डॉलर पर आ गया है। फिलहाल एमसीएक्स पर कच्चा तेल 3 फीसदी फिसलकर 3250 रुपये पर आ गया है। नैचुरल गैस 0.5 फीसदी की कमजोरी के साथ 181.2 रुपये पर नजर आ रहा है।



दूसरी ओर,ब्रिटेन द्वारा ऐतिहासिक जनमत संग्रह में यूरोपीय संघ (ईयू) से बाहर निकलने के पक्ष में मतदान करने के बाद भारत ने आज कहा कि उसके लिए ब्रिटेन और यूरोपीय संघ दोनों से संबंध महत्त्‍वपूर्ण हैं और वह आने वाले वर्षों में दोनों से रिश्तों को और मजबूत करने का प्रयास करेगा। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा, 'ईयू सदस्यता पर हमने ब्रिटेन का जनमत संग्रह देखा है। ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के दोनों के साथ हमारे रिश्ते काफी अहम हैं। हम इन रिश्तों को और मजबूत करने का प्रयास करेंगे। स्वरूप शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) में भाग लेने आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रतिनिधिमंडल में शामिल हैं।


ब्रिटिश जनता ने 28 देशों वाले यूरोपियन यूनियन से ब्रिटेन के बाहर होने के पक्ष में वोट डाला है। 43 साल बाद हुए इस ऐतिहासिक जनमत संग्रह में ब्रिटेन की जनता ने मामूली अंतर से ब्रिटेन को यूरोपियन यूनियन से अलग करने के पक्ष में वोट किया। 3 करोड़ लोगों की इस वोटिंग में ईयू छोड़ने के पक्ष में 52 फीसदी लोग थे जबकी इसके खिलाफ 48 फीसदी  लोग।


सत्ता के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले अपने ही बच्चों को राष्ट्रविरोधी बताकर उनपर हमला करने वाले हम,जात पांत मजहब के बहाने असमता और अन्याय के झंडेवरदार और मनुस्मृति राज की पैदलसेनाएं हम क्या सपने में भी अपने इस कबंध अंध देश में ऐसा लोकतंत्र बहाल कर सकते हैं?


क्या हम कभी अनंत बेदखली और अनंत विस्थापन के खिलाफ मोर्चाबंद हो सकते हैं?



विश्व इतिहास में बर्लिन की दीवार गिरने के बाद इस घटना को सबसे अहम माना जा रहा है। वो ब्रिटेन जिसने दूसरे विश्व युद्ध के बाद यूरोपीय देशों को करीब लाने के लिए यूरोपियन यूनियन के आइडिया को जन्म दिया, कई सालों तक उसका पैरोकार रहा और आज उसी देश ने खुद ईयू से अलग होने का फैसला किया।



अमेरिकी नागरिक रंगभेद के खिलाफ अश्वेत रष्ट्रपति चुन सकते हैं लेकिन हम सभी समुदायों को समान अवसर और समान प्रतिनिधित्व देने के लिए किसी भी स्तर पर तैयार नहीं हैं।


न संविधान कहीं लागू है और न कही कानून का राज है।संसद में क्या बनता बिगड़ता है,किसी को मालूम नहीं है क्योंकि कोई भी ऐरा गैरा मंत्री संत्री प्रवक्ता इत्यादी संवैधानिक असंवैधानिक नीति निर्माण संसदीय अनुमति के बिना ,संसद की जानकारी के बिना कर देता है और मुनाफावसूली के कालेधन के मनुस्मृति शासन में वह आन आनन लागू भी हो जाता है।कहीं कोई प्रतिरोध असंभव।


अब बताइये,1991 से लेकर अब तक जितने सुधार लागू हुए हैं कायदे कानून ताक पर रखकर और संविधान के दायरे से बाहर उनके बारे में हमारे अति आदरणीय जनप्रतिनिधियों की क्या राय है और उन जनप्रतिनिधियों ने अपने मतदाताओं से कब इन सुधारों के बारे में चर्चा की है या उनका ब्यौरा सार्वजनिक किया है।


अब बताइये,ब्रेक्सिट के बहाने जिन अत्यावश्यक सुधारों को लागू करके अर्थव्यवस्था को पटरी पर रखने की उदात्त घोषणाएं की जा रही हैं,उनके लिए क्या संसदीय अनुमति ली गयी है और जनता के मतामत के लिए कोई सर्वे किसी भी स्तर पर किया गया है या नीतिगत फैसलों के लिए किसी भी स्तर पर कोई जनसुनवाई हुई है।जनमत संग्रह की बात रहने दें।हमारे यहा एफआईआर तक दर्ज कराने में पीड़ितो को लेने के देने पड़ जाते हैं।हत्या बलात्कार संस्कृति है इनदिनों।बाहुबलि तो जनप्रतिनिधि हैं।


संप्रभू ब्रिटिश नागरिकों ने यूरोपीय समुदाय के धुर्रे बिखेर दिये और कबंध अंध  देश के हमारे हुक्मरान नरमेधी सुधार तेज कर रहे हैं।


सत्ता निरंकुश नहीं होती अगर देश के नागरिक मुर्दा न हो और लोकतंत्र जिंदा हो।


ब्रिटेन के नागरिकों ने संवैधानिक राजतंत्र के बावजूद बायोमैट्रिक नागरिकता की योजना पूरी होने से पहले सरकार बदल दी और अहब मुक्तबाजार के सबसे शक्तिशाली तंत्र यूरोपीय यूनियन के धुर्रे बिखेर दिये।गौर करें कि ब्रिटेन में हुए जनमतसंग्रह के नतीजतन सिर्फ ब्रिटेन यूरोपीयसमुदाय से बाहर नहीं निकल रहा है,प्रबल आर्थिक संकट में फंसे जनांदोलनों की सुनामी में यूरो कप फुटबाल के जश्न में बंद आइफल टावर और रोमांस,कविता और नवजागरण व क्रांति का देश फ्रांस भी अमेरिकी मुक्तबाजार के चंगुल से निकलने के लिए छटफटा रहा है।


फ्रांस के अलावा स्वीडन, डेनमार्क, यूनान,हालैंड और हंगरी के साथ तमाम यूरोपीय देश इस मुक्त बाजार की गुलामी से रिहा होने की तैयारी में हैं।


हमारे हुक्मरान ने इसके बदले ब्रिटेन से उठने वाली इस सुनामी में अपने अमेरिका आकाओं के हितों को मजबूत करने के लिए शत प्रतिशत निजीकरण और शत प्रतिशत विनिवेश का विकल्प चुना है और सीना ठोकर दावा भी कर रहे हैं कि ब्रेक्सिट से भारतीय अर्थव्यवस्था पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है।


उत्पादन प्रणाली ध्वस्त है।रोजगार आजीविका खत्म है।बुनियादी सेवाएं और बुनियादी जरुरतें बेलगाम बाजार के हवाले हैं तो ये रथी महारथी न जाने किस अर्थव्यवस्था की बात कर रहे हैं जिनका वित्तीय प्रबंधन शेयर बाजार में सांढ़ों और भालुओं के खेल का नियंत्र करके बाजार को लूटतंत्र में तब्दील करने और कर्ज और करों का सारा बोझ आम जनता पर डालने के अलावा कुछ नहीं है।


हम अमेरिका की तरह सीधे राष्ट्रपति का चुनाव नहीं करते और न हमारे यहां राष्ट्रपति सरकार के प्रधान है और न राजकाज से उनका कोई मतलब है।बकिंघम राजमहल की तर रायसीना हिल्स के प्रासाद में वे संवैधानिक राष्ट्राध्यक्ष मात्र हैं और अपने तमाम विशेषाधिकारों के बावजूद भरत की सरकार या राज्य सरकारों पर उनका कोई नियंत्र नहीं है।वे सिर्फ अभिभाषण के अधिकारी हैं।या अध्यादेशों और विधेयकों पर अपना टीप सही दाग देते हैं।


न ही हम राष्ट्र के समक्ष चुनौतियों के तौर तरीके या नीतिगत फैसलों के लिए जनमत संग्रह करा सकते हैं।


सरकार संसद के प्रति जिम्मेदार है,राजनीति शास्त्र में यही पढ़ाया जाता है और संविधान भी यही बताता है और संसद में अपने प्रतिनिधि जनता चुनकर भेजती है।लेकिन भारतीय जनता के लिए उनका ही तैयार जनादेश मृत्युवाण रामवाण है क्योंकि इस जनादेश के बाद सरकारें न संसद की परवाह करती हैं और न विधानमंडलों की।घोषणाओं पर टैक्स लगता नही है।सुर्खियां अलग मिलती हैं।


सबकुछ खुल्ला खेल फर्रूखाबादी मुक्तबाजार है,जिसके पास घोड़ों को खरीदने लायक अकूत संसाधन हैं वे गिनती के लिए चाहे जैसे भी हों,कैसे भी हों रंगबिरंगे घोड़े खरीद लें और उन घोड़ों के खुरों से आवाम को रौदता रहे।यही राजकाज है और राजधर्म भी यही ता राजकरण भी यही है।


फिरभी सच यह भी है कि सत्ता निरंकुश नहीं होती अगर देश के नागरिक मुर्दा न हो और लोकतंत्र जिंदा हो।


सत्ता के झंडे लहराते हुए भारतमाता की जय बोल देने से कोई देशभक्त नहीं हो जाता बल्कि राष्ट्रहित में सत्ता से टकराकर सरफरोशी की तमन्ना ही असल देशभक्ति है और इसके लिए निरंकुश सत्ता से टकराने का जिगर चाहिए जो हमारे पास फिलहाल हैं ही नहीं।पुरखे जरुर रहे होंगे वरना वे हजारों साल से गुलामी के बदले शहादतों का सिलसिला नहीं बनाते।पुरखौती की भी ऐसी की तैसी।दर्जनों गांव जलाने वाले फिर पुरखौती की नौटंकी करते हैं।


मजबूत अर्थव्यवस्था का नजारा यह है कि ब्रिटेन के यूरोपीय यूनियन से बाहर होने के जनमतसंग्रह के नतीजे के कारण भारतीय शेयर बाजार में कुछ ही मिनटों के अंदर निवेशकों के करीब 4 लाख करोड़ रुपए डूब गए। ब्रिटेन में जनमत संग्रह के नतीजे आते ही टोटल इन्वेस्टर वेल्थ 98 लाख करोड़ के नीचे पहुंच गई। यह गुरुवार को 101.04 लाख करोड़ पर बंद हुए मार्केट से करीब 4 लाख करोड़ रुपए कम था। भारी गिरावट के साथ खुला सेंसेक्स दोपहर तक मामूली रिकवरी ही कर सका। आरबीआई और सरकार के आश्वासन के बावजूद मार्केट ज्यादा तेजी से नहीं बढ़ पाया।


गौरतलब है कि जनमत संग्रह के नतीजे के साथ साथ ब्रिटेन में सत्ता का तख्ता पलट हो गया है और नई सरकार अक्तूबर से पहले नहीं बनेगी।नई सरकार ही अलगाव की प्रक्रिया पूरी करेगी।लेकिन संकटउससे कही बड़ा है।सोवियत संघ के पतन के बाद यूरोपीय संघ उसके मुकाबले उसीकी तर्ज पर संगठित करके मुक्तबाजार का साम्राज्य विस्तार और समूचे यूरोप को उपनिवेश में तब्दील करने का जो खेल चल रहा था,उसका दरअसल पटाक्षेप होना है क्योंकि यूरोप में सबसे बड़े अमेरिकी उपनिवेश ब्रिटेन ने आजादी का बाबुलंद ऐलान किया है और बाकी देश वही देर सवेर करने वाले हैं।


राजन के जाने के बाद भारत का वित्तीय प्रबंधन नागपुर के संघ मुख्यालय में स्थानांतरित होना है और धर्म कर्म के मनुस्मृति राजधर्म का फर्जीवाड़ा जिन्हें समझ में नहीं आ रहा वे मुक्तबाजार के साथ फासीवादी अंध राष्ट्रवादा का,या जल जंगल जमीन से बेदखली के सलवा जुड़ुम का अर्थशास्त्र नहीं समझ सकते।


समझ लें कि ब्रेक्सिट से पहले अगर शत प्रतिशत अबाध पूंजी है तो नागपुर से संचालित वित्तीय प्रबंधन का जलवा कितना नरसंहारी होगा।शेयर बाजार में जिनके पैसे लगे होगें वे शेयर बाजार के अपने दांव पर सोचें,लेकिन संघी राजकाज अब जब पेंशन बीमा वेतन जमा पूंजी सबकुछ वित्तीय सुधारों के बहाने शेयर बाजार से नत्थी करने जा रहा है तो समझ लीजिये आगे सिर्फ अमावस्या का अंधकार है।भोर के मोहताज होंगे हम और वह खरीद भी नहीं सकते।


क्योंकि बाकी जनता कमायेगी जरुर लेकिन जेबें किन्हीं खास तबके की मोटी होती रहेगी और कर्ज,ब्याज और टैक्स का बोझ इतना प्रबल होने वाला है कि नौकरी और आजीविका,खेत खलिहान ,कल कारखानों की छोड़िये,जो अभूतपूर्व हिंसा और घृणा का सर्वव्यापी माहौल बनने वाला है,उसमें हर वैश्विक इशारे के साथ डांवाडोल होने वाली अर्थव्यवस्था में किसी की जान माल की कोई गारंटी अब होगी नहीं।


गौरतलब है कि ब्रेक्सिट के झटकों से भारत पर पडऩे वाले प्रभाव की चिंता को खारिज करते हुए सरकार ने आज कहा कि अर्थव्यवस्था के पास स्थिति से निपटने के लिए 'काफी तरीके'  हैं। हालांकि, इस घटनाक्रम के बीच शेयर बाजारों तथा रुपये में भारी गिरावट आई है। आर्थिक मामलों के सचिव शक्तिकांत दास ने भारत की घरेलू बुनियाद का हवाला देते हुए कहा कि यही वजह है कि हमारे ऊपर ब्रेक्सिट का दीर्घावधि का असर नहीं होगा। उन्होंने कहा कि सरकार और रिजर्व बैंक पिछले कई सप्ताह से संभावित प्रभावों को लेकर काम कर रहे हैं।


उन्होंने कहा कि विदेशी मुद्रा भंडार की संतोषजनक स्थिति, मुद्रास्फीति के नीचे आने तथा बुनियादी सुधारों पर आगे बढऩे की वजह से भारत इन सब झटकों को झेल जाएगा। दास ने कहा कि सरकार सभी झटकों के लिए तैयार है। एक ऐतिहासिक घटनाक्रम में ब्रिटेन ने आज 43 साल बाद यूरोपीय संघ से बाहर निकलने के पक्ष में मत दिया। इस घटनाक्रम के बीच बंबई शेयर बाजार का 30 शेयरों वाला सेंसेक्स 1,050 से अधिक अंक नीचे आ गया। वहीं सभी सूचीबद्ध कंपनियों के बाजार पूंजीकरण में करीब 4,00,000 करोड़ रुपये की गिरावट आई। रुपया भी 96 पैसे टूटकर 68 प्रति डॉलर से नीचे चला गया।


दास ने कहा कि जहां तक शेयर बाजारों का सवाल है, तो यह किसी ऐसे घटनाक्रम जो उनकी उम्मीद के अनुरूप नहीं है, की वजह पर तात्कालिक प्रतिक्रिया है। यह प्रतिक्रिया अगले कुछ दिन में समाप्त हो जाएगी और मुझे उम्मीद है कि बाजार की स्थिति सुधरेगी। ब्रेक्सिट जनमत संग्रह की वजह से ही दास बीजिंग नहीं जा पाए हैं जिसके चलते भारत-चीन वित्तीय वार्ता को जुलाई तक स्थगित कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि रुपये में आई गिरावट अन्य एशियाई मुद्राओं की तर्ज पर है। उन्होंने कहा, 'आप जानते हैं कि पौंड स्टर्लिंग में गिरावट आ रही है इसलिए सभी मुद्राओं में गिरावट आ रही है।


इसके विपरीत तथ्य और आंकड़े ये हैं कि रुपये पर भी जबरदस्त असर पड़ा है। डॉलर के मुकाबले भारतीय रूपये की कीमत में 89 पैसे की जोरदार गिरावट देखने को मिल रही है। फिलहाल एक डॉलर के बदले रूपये की कीमत 68.08 पैसे तक पहुंच गई है। वहीं जापान का स्टॉक एक्सचेंज भी 8 फीसदी लुढ़क गया।


माना जा रहा है कि ब्रेक्सिट हुआ तो ब्रिटिश पाउंड करीब 10 फीसदी तक टूटेगा जिससे भारतीय शेयर बाजार सीधे तौर पर प्रभावित होगा क्योंकि भारत की करीब 800 ब्लूचिप कंपनियां ब्रिटेन में कारोबार कर रही हैं।


पाउंड भी लड़खड़ाया

पाउंड 1.50 डॉलर पर चल रहा पाउंड शुरुआती नतीजों के बाद 1.41 डॉलर पर आ गया। जैसे-जैसे ब्रिजेक्ट के पक्ष में फैसला आता रहा। पाउंड भी गोता लगाता रहा और पाउंड 31 साल के सबसे निचले स्तर पर आ गया। डॉलर के मुकाबले शुक्रवार को पाउंड 1.3466 पर रहा।


दुनियाभर के बाजारों में ब्रेक्सिट का असर

दुनियाभर के बाजारों में ब्रेक्सिट को लेकर हलचल मची हुई है। अमेरिकी बाजारों में ब्रेक्सिट को लेकर मिला जुला असर देखने को मिला है। यूएस फ्यूचर्स में 2 फीसदी की गिरावट देखने को मिली है। हालांकि कल के कारोबार में अमेरिकी बाजार चढ़कर बंद होने में सफल रहे हैं। लेकिन यूरोपीय अमेरिकी बाजार के फ्यूचर्स में तेज गिरावट देखने को मिली है।


गुरुवार के कारोबारी सत्र में डाओ जोंस 230.24 अंक यानी 1.29 फीसदी बढ़कर 18011.07 पर, एसएंडपी-500 इंडेक्स 27.87 अंक यानी 1.34 फीसदी मजबूती के साथ 2113.32 पर और नैस्डेक 76.72 अंक यानी 1.59 फीसदी की बढ़त के साथ 4910.04 पर बंद हुआ।


दूसरी ओर,ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से बाहर निकलने से देश के 108 अरब डॉलर के सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) उद्योग को कुछ समय के लिए अनिश्चितता की स्थिति से जूझना पड़ सकता है। आईटी उद्योगों के संगठन नास्कॉम ने आज यह बात कही। नास्कॉम ने कहा कि दीर्घावधि में यह कुल मिलाकर चुनौतियों तथा अवसर दोनों की स्थिति होगी, क्योंकि ब्रिटेन उसके जरिये यूरोपीय संघ के बाजारों तक पहुंच के नुकसान की भरपाई करने का प्रयास करेगा। यूरोप भारतीय आईटी-बीपीएम उद्योग के लिए दूसरा सबसे बड़ा बाजार है। आईटी उद्योग की करीब 100 अरब डॉलर की निर्यात आय में यूरोप की हिस्सेदारी 30 प्रतिशत है। इस बाजार में ब्रिटेन महत्त्‍वपूर्ण भूमिका निभाता है। ब्रिटेन नास्कॉम सदस्यों की यूरोप में गतिविधियों के एक बड़े हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है। कई सदस्य यूरोपीय संघ में आगे और निवेश के लिए ब्रिटेन को गेटवे के रूप में इस्तेमाल करते हैं।


नास्कॉम ने कहा कि ब्रिटिश पौंड में गिरावट से कई मौजूदा अनुबंध घाटे वाले हो जाएंगे और उन पर नए सिरे से बातचीत करने की जरूरत होगी। नास्कॉम ने कहा कि अनुबंध से बाहर निकलने या भविष्य में उसमें बने रहने के लिए होने वाली बातचीत को लेकर अनिश्चितता से बड़ी परियोजनाओं के लिए निर्णय लेने की प्रक्रिया प्रभावित होगी। टीसीएस ने इस मुद्दे पर टिप्पणी नहीं की जबकि इन्फोसिस ने कहा कि यह शांति का समय है। भारतीय आईटी कंपनियों को यूरोपीय संघ में परिचालन के लिए अलग मुख्यालय स्थापित करने की भी जरूरत होगी। इससे ब्रिटेन से कुछ निवेश बाहर निकलेगा। साथ ही इससे यूरोपीय संघ और ब्रिटेन में कुशल श्रम की आवाजाही प्रभावित हो सकती है।


इन दावों के विपरीत,बहरहाल ब्रिटेन की जनता ने अपना ऐतिहासिक फरमान दे दिया है। ईयू बनने के बाद से ब्रिटेन पहला ऐसा देश है जो एग्जिट कर रहा है। ब्रेक्जिट की वजह से ब्रिटेन की करेंसी पाउंड करीब 31 साल के निचले स्तर पर पहुंच गई है। इसका असर दुनियाभर के शेयर मार्केट और करेंसी मार्केट पर भी दिख रहा है। भारतीय बाजार और रुपया दोनों में गिरावट है। हालांकि सोने की चमक बढ़ गई है।



करीब 52 फीसदी लोगों ने ब्रिटेन के यूरोपियन यूनियन से बाहर निकलने के पक्ष में वोट दिया है। ब्रेक्सिट के फैसले से भारतीय बाजारों में कोहराम मचा और सेंसेक्स 1000 अंकों से ज्यादा लुढ़का, तो निफ्टी 7927 तक फिसल गया था।


ब्रेक्सिट के हक में रेफरेंडम आने के बाद ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने कहा कि फौरी तौर पर किसी भी नियम में कोई बदलाव नहीं होगा। ईयू से बातचीत की तैयारी करेंगे जिसके लिए स्कॉटिश, आइरिश सरकार से सहयोग की उम्मीद है। उन्होंने आगे कहा कि ब्रिटिश इकोनॉमी अभी मजबूत है, अभी ट्रैवल, गुड्स और सर्विसेज पर कोई असर नहीं पड़ेगा।


प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने ब्रिटेन की जनता को भरोसा दिलाया है कि उनकी जिन्दगी में कोई बदलाव नहीं आएगा। न उनके आवागमन में, न सप्लाई पर और न किसी सेवा पर। वहीं ब्रिटेन, यूरोपीय यूनियन से अलग हो इस बात का पुरजोर समर्थन करने वाले यूके इंडिपेंडेंस पार्टी के नेता नाइजल फेराज का कहना है कि इस जीत से एक नाकाम प्रोजेक्ट (यूरोपियन यूनियन) का अंत होगा, यूरोपियन यूनियन के झंडे और ब्रसेल्स से छुटकारा मिलेगा।


उधर वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि ब्रेक्सिट के होने वाले असर से निपटने के लिए सरकार तैयार है। सरकार का रिफॉर्म का एजेंडा जारी रहेगा, ब्रेक्सिट के पूरे असर का अभी आकलन करना जल्दबाजी होगी।



हालांकि, दिन के निचले स्तरों से घरेलू बाजारों में अच्छी रिकवरी देखने को मिली है। सेंसेक्स में नीचे से करीब 500 अंकों की रिकवरी आई है, तो निफ्टी में 160 अंकों की रिकवरी दिखी है। बैंक निफ्टी नीचे से 480 अंकों तक रिकवर हुआ है। अंत में सेंसेक्स 26400 के आसपास, तो निफ्टी 8100 के करीब बंद हुए हैं। दरअसल यूरोप के बाजारों में शुरुआती कारोबार में 10 फीसदी तक गिरावट आई थी थे लेकिन बाद में सभी बाजारों में रिकवरी देखने को मिली। यूरोपीय बाजारों में रिकवरी के चलते ही घरेलू बाजारों में भी सुधार देखने को मिला है।


ब्रेक्सिट के जनमत संग्रह में सबसे दिलचस्प बात ये रही है कि बुजुर्ग लोगों ने इसका समर्थन किया है, वहीं युवाओं ने इसका विरोध किया है। ब्रिटेन के अखबार द टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक जिन क्षेत्रों में जनसंख्या का बड़ा हिस्सा 65 वर्ष की आयु के ऊपर है उन क्षेत्रों में ब्रेक्सिट के समर्थन में जबरदस्त वोटिंग हुई है। जबकि युवा जनसंख्या की बहुलता वाले क्षेत्रों में यूरोपीय यूनियन से जुड़े रहने के लिए ज्यादा वोट डाले हैं।


ये बंटवारा क्षेत्रों और उम्र तक ही सीमित नहीं है, शिक्षा भी इस वोटिंग पैटर्न में एक बड़ा घटक है। ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट वोटरों ने जहां ईयू में बने रहने के लिए वोट दिया तो वहीं कम शिक्षित वर्गों में ब्रेक्सिट का समर्थन ज्यादा देखने को मिला है।



ब्रेक्सिट के बवंडर का असर आने वाले वक्त में ब्रिटेन पर ही नहीं पूरी दुनिया पर दिखेगा। अब कयास लग रहे हैं कि ब्रेक्सिट के बाद दुनिया के दूसरे देशों में भी कहीं इस तरह की मांग ना उठने लगे। डर है कि कहीं दुनिया में सरहदों की नई दीवारें न बनने लगें। दुनियाभर के बाजारों में ब्रेक्सिट का असर देखने को मिला। भारतीय बाजारों में भी कोहराम मचा है।



वाणिज्य राज्यमंत्री निर्मला सीतारामन ने कहा कि ब्रेक्सिट का भारत पर असर पड़ेगा, मगर सरकार ने इससे निपटने की तैयारी कर रखी है। निर्मला सीतारामन के मुताबिक करेंसी बाजार का सीधा असर एक्सपोर्ट पर पड़ेगा, लेकिन भारतीय इकोनॉमी की स्थिति मजबूत है। आगे करेंसी के उतार-चढ़ाव पर नजर बनाए रखना जरूरी है।


ब्रेक्सिट पर आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि ब्रिटेन की जनता का यूरोपियन यूनियन से बाहर करने का फैसला चौंका देना वाला है। ब्रेक्सिट के फैसले के बाद इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि लोग अब ग्लोबलाइजेशन से थक चुके हैं। आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन का मानना है कि ब्रेक्सिट से सिस्टम में नकदी की तुरंत कोई दिक्कत नहीं होगी। आगे जाकर हालात धीरे-धीरे स्थिर हो जाएंगे। साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि आरबीआई ब्रेक्सिट के फैसले से निपटने के लिए तैयार है।


आइकैन के चेयरमैन अनिल सिंघवी का कहना है की ब्रेक्सिट का असर लम्बे समय तक दिखेगा। हालांकि यूरोप की ग्रोथ कमज़ोर होने का फायदा भारतीय और चीनी बाज़ार को मिलेगा। वहीं मार्केट एक्सपर्ट अजय बग्गा का मानना है कि ब्रेक्सिट से दुनिया भर के एक्सपोर्ट्स पर असर पड़ेगा। ट्रेड कम होगा, कमोडिटी की कीमतें गिरेंगी। आगे करेंसी वॉर होने की आशंका भी है। चीन की करेंसी युआन और कमजोर हो सकती है। अजय बग्गा की राय है कि निवेशक इस समय यूरोपीय इकोनॉमी में निर्भर करने वाले शेयरों पर नजर बनाए रखें।


वहीं मार्केट एक्सपर्ट उदयन मुखर्जी का मानना है कि ब्रेक्सिट का बाजार पर बड़ा असर देखने को मिलेगा और इससे उभरने में बाजार को काफी वक्त लग सकता है। साथ ही यूके और यूरोपीय यूनियन में भी मंदी देखने को मिलेगी। अगले 1 साल तक ग्लोबल बाजारों में ग्रोथ धीमी रहेगी।


जानकारों का का कहना है कि ब्रेक्सिट के पक्ष में ज्यादा वोट का मतलब ये नहीं कि ब्रिटेन तुरंत ईयू से बाहर होगा। फिलहाल के लिए ब्रिटेन यूरोपीय यूनियन का सदस्य बना रहेगा। यूरोपीय यूनियन से बाहर निकलने पर सरकार फैसला लेगी।


कानूनी भाषा में जनमत संग्रह जनता की राय जानने के लिए कराए जाते हैं। सरकार या संसद वोटिंग के नतीजे को मानने के लिए बाध्य नहीं होती। हालांकि सरकार जनता की राय नहीं मानने का जोखिम नहीं लेगी।


ईयू से निकलने की प्रक्रिया लिस्बन संधि के आर्टिकल 50 के तहत दी गई है। आर्टिकल 50 के तहत ईयू से निकलने के लिए 2 साल का वक्त चाहिए होता है। ब्रिटिश संसद में पीएम डेविड कैमरन सोमवार को इस मुद्दे पर बयान दे सकते हैं। फिर ब्रिटिश संसद के दोनों सदनों में आगे की रणनीति पर चर्चा होगी। बता दें कि डेविड कैमरन यूरोपीय यूनियन में बने रहने के पक्ष में हैं। जिससे उन पर इस्तीफा देने का दबाव रहेगा।



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Thursday, June 23, 2016

जगत मिथ्या,अहम् ब्रह्मास्मि! मिथ्या हिंदुत्व के फर्जी एजंडे से राजा दुर्योधन की तरह विश्वविजेता बनने के फिराक में कल्कि महाराज ने भारत को फिर यूनान बनाने की ठान ली है।ब्रेक्सिट संकट निमित्तमात्र है। आत्मध्वंस से पहले,इतिहास बदलनेसे पहले इतिहास के सबक दोबारा देख लें अब ब्रिटिश नागरिकों को अपनी स्वतंत्रता और संप्रभुता बनाये रखने और यूरोप व अमेरिकी अर्थव्यवस्थाओं से नाभि नाल स

जगत मिथ्या,अहम् ब्रह्मास्मि!

मिथ्या हिंदुत्व के फर्जी एजंडे से राजा दुर्योधन की तरह विश्वविजेता बनने के फिराक में कल्कि महाराज ने भारत को फिर यूनान बनाने की ठान ली है।ब्रेक्सिट संकट निमित्तमात्र है।

आत्मध्वंस से पहले,इतिहास बदलनेसे पहले इतिहास के सबक दोबारा देख लें

अब ब्रिटिश नागरिकों को अपनी स्वतंत्रता और संप्रभुता बनाये रखने और यूरोप व अमेरिकी अर्थव्यवस्थाओं से नाभि नाल संबंध तोड़ने का फैसला करना है तो नई दिल्ली में पसीने छूट रहे हैं और भारत के तमाम अर्थशास्त्री और मीडिया दिग्गज सर खपा रहे हैं कि पौंड का अवमूल्यन हुआ तो भारत को पूंजी घरानों का होना है,शेयर बाजार का क्या बनना है और आयात निर्यात के खेल फर्रूखाबादी क्या रंग बदलता है।यह है भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती।


इस जनमत संग्रह का मुद्रा एवं शेयर बाजार पर तो असर होगा ही, उन देसी कंपनियों पर भी फर्क पड़ सकता है, जिनका यूरोप में भारी निवेश है। इनमें टाटा स्टील और टाटा मोटर्स और सूचना-प्रौद्योगिकी क्षेत्र की कंपनियां शामिल हैं। ये कंपनियां अपने राजस्व का बड़ा हिस्सा यूरोप से हासिल करती हैं।


भारतीय सत्ता वर्ग की नींद हराम हो गयी है।आम जनता के रोजमर्रे की जिंदगी की तकलीफों,समस्याओं की वजह से नहीं,बल्कि भारतीय पूंजी के विश्वबाजार में मुनाफावसूली पर अंकुश लगने के खौफ की वजह से क्योंकि ब्रिटेन के यूरोपीय संघ में  बने रहने पर जनमत संग्रह शुरु हो चुका है।

यह सीधे तौर पर अमेरिकी हितों की चिंता है क्योंकि ब्रिटेन के यूरोपीय संग से अलग होने पर सबसे ज्यादा नुकसान अमेरिका को है और भारतीय सत्ता वर्ग हाय तौबा इसलिए मचाये हुए हैं कि अमेरिकी और इजरायली हितों से उनके नाभि नाल  के संबंध बन गये हैं और भारत माता की जय जयकार करते हुए हिंदुत्व की दुहाई देकर यह राष्ट्रद्रोही सत्तावर्ग भारत,भारत के प्राकृतिक संसाधन,भारतीय  उत्पादन प्रणाली,भारतीय श्रम,भारतीय बाजार,तमाम सेवाएं और बुनियादी जरुरतें,शिक्षा,चकित्सा.ऊर्जा परमाणु ऊर्जा,बैंकिंग से लेकर रेलवे और उड़ान,बीमा से लेकर हवा पानी,नागरिकता,नागरिक अधिकार,मानव अधिकार सबकुछ अबाध विदेशी पूंजी के हवाले करता जा रहा है और उसी अबाध पूंजी पर मंडराते संकट के गहराते बादल से इन सबकी नींद हराम है।

चूंकि संसाधनों और सेवाओं की नालामी है राजकाज है,वही राजधर्म है तो मुनाफावसूली के भविष्य को लेकर सत्तावर्ग की नींद हराम है।   

पलाश विश्वास



ब्रिटेन यूरोपियन यूनियन का हिस्सा बना रहेगा या नहीं, इस सवाल पर आज ब्रिटेन में जनमत संग्रह होने जा रहा है। चूंकि

संसाधनों और सेवाओं की नालामी है राजकाज है,वही राजधर्म है तो मुनाफावसूली के भविष्य को लेकर सत्तावर्ग की नींद हराम है।


दरअसल इस जनमत संग्रह का मुद्रा एवं शेयर बाजार पर तो असर होगा ही, उन देसी कंपनियों पर भी फर्क पड़ सकता है, जिनका यूरोप में भारी निवेश है। इनमें टाटा स्टील और टाटा मोटर्स और सूचना-प्रौद्योगिकी क्षेत्र की कंपनियां शामिल हैं। ये कंपनियां अपने राजस्व का बड़ा हिस्सा यूरोप से हासिल करती हैं।



कहा जा रहा है कि आज का दिन पूरी दुनिया के लिए एतिहासिक है क्योंकि आज होने वाली वोटिंग से ये फैसला हो जाएगा कि क्या यूरोपीयन यूनियन में ब्रिटेन बना रहेगा या फिर अलविदा कह देगा। ब्रेक्सिट पर घमासान मचा हुआ है। जो लोग यूरोपियन यूनियन से ब्रिटेन के निकलने यानी ब्रेक्सिट की वकालत कर रहे हैं वो इसे अपने ही देश पर फिर से हक जमाने की लड़ाई मान रहे हैं।


खबरों के मुताबिक बिग बुल के नाम से मशहूर रेयर एंटरप्राइजेज के राकेश झुनझुनवाला का मानना है कि अगर ब्रिटेन यूरोपियन यूनियन से बाहर जाता है तो यूरोपियन यूनियन बिखर जाएगा। वहीं डब्ल्यू एल रॉस एंड कंपनी के विल्बर रॉस का कहना है कि यूरोपियन यूनियन से अगर ब्रिटेन बाहर होगा तो ये यूके और यूरोपियन इकोनॉमी के लिए बेहद खराब होगा।


ब्रेक्सिट पर रिजर्व बैंक की भी नजर बनी हुई है। आरबीई गवर्नर रघुराम राजन के मुताबिक अगर ब्रेक्सिट  के चलते बाजार में लिक्विडिटी की दिक्कत आती है तो उसे दूर किया जाएगा।


वर्जिन ग्रुप के फाउंडर रिचर्ड ब्रैनसन के मुताबिक ब्रेक्सिट के चलते ग्लोबल इकोनॉमी की ग्रोथ पर असर पड़ेगा। ब्रिटेन के यूरोपियन यूनियन से अलग होने का साइड इफेक्ट दिखेगा।



इतिहास में कोई ऐसा शासक हुआ नहीं है जिसने इतिहास से सबक सीखा है।सारे के सारे शासकों ने हमेशा अपना इतिहास बनाने के लिए सारी ताकत झोंक दी।इसी में उनका उत्थान और इसीमें फिर उनका अनिवार्य पतन।आखिर इतिहास उन्हींका होता है।रोजमर्रे की जिंदगी में मरती खपती जनता को कोई इतिहास कहीं दर्ज नहीं होता जैसे आम जनता के रोजनामचे का कोई अखबार नहीं होता।यह काम साहित्य और संस्कृति का कार्यभार है और आज तमाम माध्यम और विधायें कारपोरेट महोत्सव है औरबाजार भी कारपोरेट शिकंजे में हैं।इस महातिलिस्म में इकलौता विक्लप आत्म ध्वंस का है जिसे हम तेजी से अपनाते जा रहे हैं।


हमारे लिए रामायण और महाभारत कोई पवित्र धर्म ग्रंथ नहीं हैं बल्कि कालजयी महाकाव्य हैं जैसे यूनान के इलियड और ओडेशी।


इन चारों विश्वप्रसिद्ध महाकाव्यों में मिथकों की घनघटा है तो ल पल दैवी चमत्कार और अलंघ्य नियति के चमत्कार हैं।चारों महाकाव्यों में दैवी शक्तियों के मुकाबले मनुष्यता की अतुलनीय जीजिविषा है जहां ट्राय,सोने की लंका और कुरुक्षेत्र के दृश्य एकाकार हैं।सत्ता संघर्ष की अंतिम परिणति इन चारों महाकाव्यों में आत्मध्वंस की चकाचौंध है,जो आज मुकम्मल मुक्ता बाजार है।


भारतीय सत्ता वर्ग की नींद हराम हो गयी है।आम जनता के रोजमर्रे की जिंदगी की तकलीफों,समस्याओं की वजह से नहीं,बल्कि भारतीय पूंजी के विश्वबाजार में मुनाफावसूली पर अंकुश लगने के खौफ की वजह से क्योंकि ब्रिटेन के यूरोपीय संघ में  बने रहने पर जनमत संग्रह शुरु हो चुका है।


इस जनमत संग्रह के नतीजे शुक्रवार तक आ जायेंगे।उसे हम किसी भी स्तर पर प्रभावित नहीं कर सकते लेकिन अब तय है कि इससे हम प्रभावित जरुर होगें क्योंकि इसके नतीजे के मुताबिक मुनाफावसूली का सिलसिला बनाये रखने के लिए नरसंहारी अश्वमेध अभियान और भयानक ,और निर्मम होना तय है और हम गुलाम प्रजाजन अपनी नियति से लड़ने का दुस्साहस नहीं कर सकते।


जिन्होंने यूरोपीय यूनियन में ब्रिटेन के बने रहने का परचम थाम रखा है वो मानते हैं कि ये ब्रिटेन को बचाने का सबसे बड़ा मौका है। ब्रेक्सिट पर आज यानी 23 जून को भारतीय समय के अनुसार 11:30 बजे सुबह से रात 2:30 बजे के बीच वोटिंग होगी। जिसके नतीजे शुक्रवार (24 जून) को भारतीय समयानुसार 11:30 बजे सुबह आएंगे।


लंदन से लेकर दिल्ली तक की नजर इस अहम दिन पर बनी हुई है। फैसला चाहे जो भी हो इससे निपटने के लिए मोदी सरकार ने पहले से ही कमर कस ली है। ब्रेक्सिट पर वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कल अहम बैठक ली है। इस बैठक में ब्रेक्सिट से होने वाले असर पर चर्चा की गई। इस बैठक में वित्त राज्य मंत्री जयंत सिन्हा, पीएम के मुख्य सचिव नृपेंद्र मिश्रा, अरविंद सुब्रमणियन, शक्तिकांता दास भी शामिल थे।



ज्यादा दिन नहीं हुए महान यूनानी सभ्यता के उत्तराधिकारियों ने यूनान के इतिहास को जमींदोज करते हुए आत्मध्वंस की परिक्रमा अबाध पूंजी और मुक्तबाजार के तिलिस्म में संपूर्ण निजीकरण और संपूर्ण विनिवेश के रास्ते पूरी कर ली.फिर उनने अपने महाकाव्यों के किस देवता या किस देवी के नाम भव्यमंदिर कहां बनाया,एथेंसे से ऐसी कोई खबर नहीं है लेकिन महान यूनानियों की फटेहाल जिंदगी और उनकी दिलवालिया अर्थव्यवस्था जगजाहिर है।


मिथ्या हिंदुत्व के फर्जी एजंडे से राजा दुर्योधन की तरह विश्वविजेता बनने के फिराक में कल्कि महाराज ने भारत को फिर यूनान बनाने की ठान ली है।ब्रेक्सिट संकट निमित्तमात्र है।


बेहतर होता कि वे और भव्य राम मंदिर के उनके तमाम पुरोहित मर्यादा पुरुषोत्तम राम के पुष्पक विमान से रेशम पत खी भी परिक्रमा करे लेते तो उन्हें शायद उस इतिहास के सबक से परहेज नहीं होता कि जिस सनातन भारतीय सभ्यता की बात वे करते अघाते नहीं हैं,वहां को कोई सिंधु घाटी की विश्वविजेता वाणिज्यिक नगर सभ्यता भी थी और यूरोप में सभ्यता की रोशनी पहुंचने से पहले, अमेरिका का आविस्कार होने से पहले माया और इंंका सभ्यताओं के जमाने में जब मिस्र,मेसोपोटामिया,यूनान,रोम और चीन की सभ्यताओं के मुकाबले हमारे पूर्वजों ने विश्व बंधुत्व के विविध बहुल तौर तरीके अपनाते हुए व्यापार और कारोबार, उद्यम में अपनी स्वतंत्रता और संप्रभुता,अपनी सभ्यता और संस्कृति के मूल्य पर कोई समझौता किये बिना रेशम पथ के जरिये पूरी दुनिया जीत ली थी और किसी पर हमला भी नही किया था यूरोप और अमेरिका की तरह।न प्रकृति से कोई छेड़छा़ड़ की थी उनने।

गौरतलब है कि इस ब्रिटेन ने बायोमैट्रिक पहचान पत्र के सवाल पर सरकार गिरा दी थी और भारतीय आधार कार्ड परियोजना लागू होने से पहले नाटो की नागरिकों की निगरानी की इस आत्मध्वंसी प्रणाली को खारिज कर दी थी।


अब ब्रिटिश नागरिकों को अपनी स्वतंत्रता और संप्रभुता बनाये रखने और यूरोप व अमेरिकी अर्थव्यवस्थाओं से नाभि नाल संबंध तोड़ने का फैसला करना है तो नई दिल्ली में पसीने छूट रहे हैं और भारत के तमाम अर्थशास्त्री और मीडिया दिग्गज सर खपा रहे हैं कि पौंड का अवमूल्यन हुआ तो भारत को पूंजी घरानों का होना है,शेयर बाजार का क्या बनना है और आयात निर्यात के खेल फर्रूखाबादी क्या रंग बदलता है।यह है भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती।



बहरहाल यूरोपीय संघ में बने रहने या निकलने के मसले पर ब्रिटेन में मतदान तो गुरुवार को होगा, लेकिन भारत में मुद्रा और शेयर बाजार के साथ-साथ कंपनियों की सांसें अभी से अटकी हैं।


हालांकि  मतदान पूर्व अनुमानों में यही बताया जा रहा है कि ब्रिटेन के यूरोपीय संघ में बने रहने के समर्थकों तथा उसके विरोधियों के बीच टक्कर कांटे की है। मतदान इसलिए हो रहा है क्योंकि ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने पिछले साल अपने चुनावी घोषणापत्र में जनमत संग्रह का वायदा किया था। डीबीएस बैंंक, इंडिया में कार्यकारी निदेशक और ट्रेजरी प्रमुख अरविंद नारायण कहते हैं, 'यह अभूतपूर्व घटना होगी, जिसका असर लागत, श्रम और पूंजी पर होगा। अगर ब्रिटेन यूरोपीय संघ से बाहर जाने का फैसला करता है तो निवेशक भारत जैसे तेजी से उभर रहे बाजारों से अपनी रकम निकालकर अमेरिका और जापान जैसे सुरक्षित बाजारों में लगाएंगे। इससे भारत को भी कुछ समय के लिए झटका लग सकता है।' वैसे असर अभी से दिख रहा है क्योंकि रुपया आज डॉलर के मुकाबले 17 पैसे गिरकर 67.49 पर बंद हुआ। बॉन्ड पर प्राप्ति कल जितनी ही बनी रही।



इन्हें भारतीय अर्थव्यवस्था,उत्पादन प्रणाली ,भारत लोक गणराज्य या भारतीय जन गण की कोई चिंता नहीं है और तमाम बुद्धि भ्रष्ट रघुपति राजन की विदाई से घड़ा घड़ा आंसू बहा रहे हैं।


यह वैसा ही है कि कल्कि महाराज की नरसंहार संस्कृति से अघाकर हम मनमोहनी स्वर्गवास के लिए इतरा जाये।

जहर पीने के बजाये फांसी लगा लें।

नतीजा वही अमोघ मृत्यु है।


राजन ने पूंजी के हितों के मुताबिक ब्याज दरों में फेर बदल के अलावा भारतीय अर्थव्यवस्था को मुक्तबाजार के हिसाब से आटोमेशन में डालने के अलावा कृषि संकट,मुद्रास्फीति या उत्पादन की बुनियादी समस्याओं को सुलझाने के लिए कुछ किया हो तो समझा दें।राजन भी मनमोहन के तरण चिन्ह पर चल रहे थे।


इसी बीच संघ परिवार के बाहुबलि राजन के महिमामंडन का कैरम खेल जारी रखे हुए हैं जो बहुत बड़ाफर्जीवाड़ा है।मसलनरघुराम राजन के रेक्सिट के बाद सुब्रमणियन स्वामी के निशाने पर एक और वरिष्ठ सरकारी अफसर और प्रसिद्ध इकॉनोमिक एक्सपर्ट हैं।


डॉ स्वामी की नाराजगी अब मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियम से है और स्वामी ने इनके इस्तीफे की भी मांग कर डाली है। रघुराम राजन की ही तरह अरविंद सुब्रमणियम का सबसे बड़ा गुनाह, स्वामी के मुताबिक यही है कि वो अमेरिका के फायनेंशियल सिस्टम में काम कर चुके हैं। लेकिन इस अटैक के बाद अब सवाल पूछा जा रहा है कि स्वामी का असली निशाना कौन है।जाहिर है कि संघ परिवार जाहिर है कि वित्तीय प्रबंधन भी मुंबई और नई दिल्ल से सीधे नागपुर स्थानांतरित करना चाहता है जहां से राजकाज रिमोट कंट्रोल से चलता है।


रघुराम राजन के बाद सुब्रमणियन स्वामी के एके-27 के पहले शिकार बने हैं मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियन। ठीक राजन की तरह स्वामी ने अरविंद सुब्रमणियन की निष्ठा पर सवाल उठाए हैं। अरविंद सुब्रमणियन पर बयानबाजी के बाद विपक्षी दलों और जानकारों ने स्वामी पर सवाल उठाए हैं। उधर सरकार ने इस बार स्वामी के बयान से किनारा करने में थोड़ी भी देर नहीं की। लगे हाथ वित्त मंत्री ने ये सफाई भी दे दी कि वो राजन पर स्वामी की बयानबाजी से इत्तेफाक नहीं रखते थे। सवाल उठ रहा है कि क्या स्वामी के निशाने पर खुद वित्त मंत्री अरुण जेटली हैं।



बहरहाल इस स्वदेशी  नौटंकी की देशभक्ति की भावभूमि में सट यह है कि भारत में वित्तीय प्रबंधन का मतलब है येन तेन प्रकारेण कालेधन को सफेद बनाकर बेलगाम मुनाफावसूली,आम जनता पर कर्ज और करों का सारा बोझ,रियायतें और योजनाएं,सुविधाएं और प्रोत्साहन सबकुछ अबाध पूंजी के वास्ते और सारा घाटा आम जनता के मत्थे।मुक्तबाजार में नकदी का प्रवाह बनाये रखना ही सर्वोच्च प्राथमिकता है तो इसका एकमात्र तरीका जल जंगल जमीन से भारतीय नागरिकों की अनंत बेदखली है।जो सलवा जुड़ुम है


आज ब्रिटेन के 4.65 करोड़ लोग वोटिंग के जरिए अपनी राय रखेंगे। यूरोपीय संघ के पक्ष और विपक्ष में वोटिंग हो रही है।


जाहिर है कि भारत समेत दुनियाभर के देशों की निगाहें इस जनमत संग्रह के फैसले पर टिकी हैं, जिसके नतीजे शुक्रवार को घोषित किए जाएंगे। यूरोपियन यूनियन को लेकर पूरा ब्रिटेन दो पक्षों में बंटा हुआ है। इस मुद्दे को लेकर वैश्विक स्तर पर चर्चा जारी है क्योंकि इसका अंतरराष्ट्रीय वित्तीय बाजारों और विनिमय दरों पर गहरा और दूरगामी असर होना है।


गौरतलब है कि करीब दो सौ साल तक हम इसी महान बरतानिया के खिलाफ आजादी का जंग लड़ते रहे हैं और हमारे पुरखों ने वह जंग जीत ली तो हमने बरतानिया का दामन छोड़कर फटाक से रूस,अमेरिका और इजराइल के गुलाम बनते चले गये तो अब मुक्तबाजार का विकल्प चुनकर हम मुकम्मल अमेरिकी उपनिवेश हैं।


अब भी भारतीय संसदीय प्रणाली,जनप्रतिनिधित्व,कानून का राज,न्यायपालिका से लेकर मीडिया तक ब्रिटिस हुकूमत की विरासत के अलावा कुछ नहीं है और हमने अपनी आजादी सिर्फ नरमेधी राजसूय की रस्म अदायगी तक सीमाबद्ध रखी है और आजाद जमींदारों,राजा रजवाड़ों के मातहत हम अब भी वही गुलाम प्रजाजन हैं।


दरअसल जो फिक्र है,वह भारत के हित के बारे में नहीं और न ही भारताय उद्योग और कारोबार के हित हैं ये।


यह सीधे तौर पर अमेरिकी हितों की चिंता है क्योंकि ब्रिटेन के यूरोपीय संग से अलग होने पर सबसे ज्यादा नुकसान अमेरिका को है और भारतीय सत्ता वर्ग हाय तौबा इसलिए मचाये हुए हैं कि अमेरिकी और इजरायली हितों से उनके नाभि नाल  के संबंध बन गये हैं और भारत माता की जय जयकार करते हुए हिंदुत्व की दुहाई देकर यह राष्ट्रद्रोही सत्तावर्ग भारत,भारत के प्राकृतिक संसाधन,भारतीय  उत्पादन प्रणाली,भारतीय श्रम,भारतीय बाजार,तमाम सेवाएं और बुनियादी जरुरतें,शिक्षा,चकित्सा.ऊर्जा परमाणु ऊर्जा,बैंकिंग से लेकर रेलवे और उड़ान,बीमा से लेकर हवा पानी,नागरिकता,नागरिक अधिकार,मानव अधिकार सबकुछ अबाध विदेशी पूंजी के हवाले करता जा रहा है और उसी अबाध पूंजी पर मंडराते संकट के गहराते बादल से इन सबकी नींद हराम है।   


संसाधनों और सेवाओं की नालामी है राजकाज है ।मसलन केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आज बड़े पैमाने पर स्पेक्ट्रम नीलामी योजना को मंजूरी दे दी है।टेलिकॉम सेक्रेटरी जे एस दीपक की अध्यक्षता वाले इंटर-मिनिस्टीरियल पैनल द्वारा मंजूर नियम के मुताबिक 700 मेगाहट्र्ज बैंड में स्पेक्ट्रम खरीदने की इच्छुक कंपनी को मिनिमम 57,425 करोड़ रुपए कीमत पर पैन इंडिया बेसिस पर 5 मेगाहट्र्ज का एक ब्लॉक लेने की जरूरत होगी। इस बैंड में ही अकेले 4 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की बिड मिलने के आसार हैं।माना जा रहा है कि स्पेक्ट्रम नीलामी प्लान को मंजूरी मिलने से मोबाइल कंपनियों के पास स्पेक्ट्रम की कमी नहीं रहेग। इससे वे मोबाइल पर बिना किसी रुकावट के अच्छी स्पीड के साथ इंटरनेट सर्विस दे सकेंगी। ऐसे में मोदी सरकार के डिजिटल इंडिया प्रोग्राम को भी बढ़ावा मिलेगा।

एकीकरण के जरिये 4-5 बड़े सरकारी बैंक बनाने का इरादा

इसी बीचखबर है कि सरकार का इरादा सार्वजनिक क्षेत्र के 27 बैंकों के बीच एकीकरण के जरिये 4-5 बड़े सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक बनाने का है। इस प्रक्रिया की शुरुआत चालू वित्त वर्ष में एसबीआई में उसके सहयोगी बैंकों के विलय से होगी।


वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि सरकार आईडीबीआई बैंक में भी अपनी हिस्सेदारी 80 से घटाकर 60 प्रतिशत पर लाना चाहती है। यदि हिस्सेदारी बिक्री क्यूआईपी के जरिये होती है, तो सरकार की हिस्सेदारी कम होगी। अधिकारी ने कहा, 'वित्त मंत्रालय का मानना है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के एकीकरण के बाद कुल 4-5 बड़े बैंक होंगे। शुरुआत में एसबीआई और उसके सहयोगी बैंकों का विलय होगा। अन्य बैंकों पर फैसला समय के साथ किया जाएगा।' अधिकारी ने कहा कि एसबीआई का उसके सहयोगी बैंकों के साथ विलय इस वित्त वर्ष के अंत तक होगा। पिछले सप्ताह केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एसबीआई और सहयोगी बैंकों के विलय को मंजूरी दी है।


अधिकारी ने कहा कि एकीकरण की प्रक्रिया से पहले ट्रेड यूनियनों के साथ सहमति बनाई जाएगी। देश के बड़े सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में भारतीय स्टेट बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, केनरा बैंक और बैंक आफ इंडिया शामिल हैं। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने बजट भाषण में कहा था कि सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के एकीकरण की रूपरेखा जारी करेगी। इन बैंकों को चालू वित्त वर्ष में 25,000 करोड़ रुपये का निवेश मिलने की उम्मीद है।


सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पुनर्गठन के लिए 'इंद्रधनुष' योजना की घोषणा की है जिसके तहत चार साल में इन बैंकों में 70,000 करोड़ रुपये की पूंजी डाली जाएगी। वहीं इन बैंकों को वैश्विक जोखिम नियम बासेल तीन के लिए पूंजी की जरूरत को पूरा करने को बाजारों से 1.1 लाख करोड़ रुपये जुटाने पड़ेंगे। रूपरेखा के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को पिछले वित्त वर्ष में 25,000 करोड़ रुपये की पूंजी मिली है। इस वित्त वर्ष में भी इतनी की राशि डाली जाएगी। योजना के तहत 2017-18 और 2018-19 में इन बैंकों को 10,000-10,000 करोड़ रुपये का निवेश मिलेगा। सरकार ने यह भी कहा है कि जरूरत होने पर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को और पूंजी दी जा सकती है।




माना जा रहा है कि यह स्पेक्ट्रम नीलामी सितंबर में होगी। मेगा स्पेक्ट्रम ऑक्शन प्लान को मंजूरी मिलने से सरकारी खजाने को 5.66 लाख करोड़ रुपये मिलने की उम्मीद है, जो टेलीकॉम इंडस्ट्री को होने वाले राजस्व की तुलना में दोगुना है।


गौरतलब है कि इसमें 11,485 करोड़ रुपये के प्राइस पर सबसे ज्यादा महंगे 700 मेगाहर्ट्ज बैंड को बेचा जाएगा। इस बैंड में मोबाइल सर्विसेज डिलिवरी की लागत 2100 मेगाहर्ट्ज बैंड की तुलना में 70 फीसदी कम है, जिसे 3जी सर्विसेज देने में इस्तेमाल किया जाता है।

बहरहाल सरकार को इस नीलामी से 5.66 लाख करोड़ रुपये मिलने की उम्मीद है। यह टेलिकॉम इंडस्ट्री के 2014-15 के कुल रेवेन्यु 2.54 लाख करोड़ के मुकाबले दोगुने से भी ज्यादा है।


कैबिनेट मीटिंग के बाद अरुण जेटली और रविशंकर प्रसाद ने एक प्रेस कॉन्फ्रैंस में इस मामले की जानकारी दी।

एक आधिकारिक सूत्र ने बताया कि स्पेक्ट्रम नीलामी प्रस्ताव को मंजूर कर लिया गया है. सरकार को 2300 मेगाहर्टज स्पेक्ट्रम नीलामी से कम से कम 64,000 करोड़ रुपये मिलने की उम्मीद है।

इसके अलावा दूरसंचार क्षेत्र में विभिन्न शुल्कों तथा सेवाओं से 98,995 करोड़ रुपये प्राप्त होंगे।

नीलामी के लिए मुख्य दस्तावेज, आवेदन आमंत्रित करने का नोटिस संभवत: एक जुलाई को जारी किया जाएगा।इसके बाद 6 जुलाई को बोली पूर्व सम्मेलन होगा। बोलियां एक सितंबर से लगनी शुरू होने की उम्मीद है। हालांकि, योजना की आधिकारिक तौर पर पुष्टि नहीं हुई है।


टेलीकॉम सेक्रेटरी जे एस दीपक की अध्यक्षता वाली इंटर मिनिस्ट्रियल कमेटी द्वारा मंजूर नियमों के तहत नीलामी में 700 मेगाहर्टज का प्रीमियम बैंड भी शामिल रहेगा। इस बैंड के लिए आरक्षित मूल्य 11,485 करोड़ रुपये प्रति मेगाहर्टज रखा गया है। इस बैंड में सेवा प्रदान करने की लागत अनुमानत: 2100 मेगाहर्टज बैंड की तुलना में 70 प्रतिशत कम है, जिसका इस्तेमाल 3जी सेवाएं प्रदान करने के लिए किया जाता है। यदि कोई कंपनी 700 मेगाहर्टज बैंड में स्पेक्ट्रम खरीदने की इच्छुक है, तो उसे अखिल भारतीय स्तर पर पांच मेगाहर्टज के ब्‍लॉक के लिए कम से कम 57,425 करोड़ रुपये खर्च करने होंगे। इस बैंड में अकेले 4 लाख करोड़ रुपये की बोलियां आकर्षित करने की क्षमता है।

पैनल द्वारा मंजूर रूल्स के मुताबिक 700 मेगाहर्ट्ज बैंड में स्पेक्ट्रम खरीदने की इच्छुक कंपनी को मिनिमम 57,425 करोड़ रुपये कीमत पर पूरे देश के लिए 5 मेगाहर्ट्ज का एक ब्लॉक लेने की जरूरत होगी। इस बैंड में ही अकेले 4 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की बिड मिलने के आसार हैं।


दावा  है कि स्पेक्ट्रम ऑक्शन प्लान को मंजूरी मिलने से मोबाइल कंपनियों के पास स्पेक्ट्रम की कमी नहीं रहेगी और वो मोबाइल पर बिना किसी रुकावट के अच्छी स्पीड वाली इंटरनेट सर्विस दे पाएंगी।

अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव: विश्व बैंक

खबरों के मुताबिक ब्रिटेन यूरोपीय संघ में रहेगा या नहीं रहेगा, इस मुद्दे पर होने वाले जनमत संग्रह से दो दिन पूर्व ब्रिटेन में अनिश्चितता, मतभेद और तनाव का माहौल है। यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के बाहर होने से संबंधित अटकलबाजी के कारण पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है और इससे संबंधित घटनाक्रमों पर लोगों की नजर टिकी हुई है। यह बात विश्व बैंक के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कही।


विश्व बैंक के डेवलपमेंट प्रोस्पेक्ट्स ग्रुप के निदेशक ऐहान कोस ने कहा, "यह स्पष्ट है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता पैदा करने वाले कई कारकों में ब्रेक्सिट की चर्चा भी एक है।"


भारत के बारे में नहीं कहा

कोस ने हालांकि ब्रेक्सिट के भारत पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में कुछ नहीं कहा। उन्होंने कहा कि इस घटना पर विश्व बैंक नजर बनाए हुए है, लेकिन इसके परिणाम के बारे में कुछ भी नहीं कहना चाहता है। ब्रेक्सिट जनमत संग्रह 23 जून को है।


विश्व बैंक ने इस महीने के शुरू में अर्धवार्षिक वैश्विक आर्थिक संभावना (जीईपी) की रिपोर्ट में जनमत संग्रह को वैश्विक आर्थिक परिदृश्य के लिए प्रमुख जोखिमों में से एक बताया गया है।


ब्रिटेन का यूरोपीय संघ के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 15 फीसदी से अधिक योगदान है, वित्तीय सेवा गतिविधियों में 25 फीसदी और शेयर बाजार पूंजीकरण में 30 फीसदी योगदान है।



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Wednesday, June 22, 2016

Latest status of Taslima Nasrin.Taslima supports ZERO TOLERANCE agains religious Terrorists in Bangladesh!It is very important in referance to the incidents of minority persecution in Bangladesh! Taslima Nasreen ক্রসফায়ারে জঙ্গি মরলে বাংলাদেশের মানুষ কান্দে ক্যানো? জঙ্গি মরসে মরুক। ক্রসফায়ারে ওমর মতিন মরসে, তার জন্য কেউ ত কান্তাসি না। প্যারিসের জঙ্গিগুলাও ক্রসফায়ারে মরসে , কেউ কান্দে নাই। বাংলাদেশের সুশীলদের দেখি জঙ্গি অনুভূতি প্রবল।

Latest status of Taslima Nasrin.Taslima supports ZERO TOLERANCE agains religious Terrorists in Bangladesh!It is very important in referance to the incidents of minority persecution in Bangladesh!
Taslima Nasreen

ক্রসফায়ারে জঙ্গি মরলে বাংলাদেশের মানুষ কান্দে ক্যানো? জঙ্গি মরসে মরুক। ক্রসফায়ারে ওমর মতিন মরসে, তার জন্য কেউ ত কান্তাসি না। প্যারিসের জঙ্গিগুলাও ক্রসফায়ারে মরসে , কেউ কান্দে নাই। বাংলাদেশের সুশীলদের দেখি জঙ্গি অনুভূতি প্রবল।

Taslima also blasts patriarchal hegemony in creativity where women have to starve for recognition!She wrote:

আমি পুরুষ হলে বেশ হতো। মরে গেলে বছর বছর আমার প্রয়াণ দিবস পালন হতো । এতকাল খেটেখুটে যে ৪৩টা বই লিখেছি তা না লিখলেও চলত। কিছু কবিতা লিখতাম রাজনীতি নিয়ে, কিছু দেশ নিয়ে, কিছু কবিতা ধনী আর পুঁজিবাদীদের গালাগালি করে, কিছু কবিতা প্রেম প্রীতি নিয়ে। একখানা গান লিখতাম। ব্যস। ব্যক্তি হিসেবে যেমনই হই না কেন, যত মিথ্যুকই হই না কেন,যত চরিত্রহীনই হই না কেন , স্ত্রীকে যত এক্সপ্লয়েটই করি না কেন,যত অত্যাচারই করি না কেন, কেউ এসব নিয়ে কথা বলত না, লোকে বরং ভালবাসত আমাকে, মাথায় তুলে রাখত। আমার নামে মেলা করত বছর বছর। স্রেফ আমি পুরুষ বলে। পুরুষ হলে যৎসামান্য ট্যালেন্ট থাকলেই সেলেব্রিটি হওয়া যায়। মেয়ে হলে পাহাড় সমান ট্যালেন্ট দেখাতে হয় জাস্ট একটু রিকগনিশন পাওয়ার জন্য।

Reading Taslima once again!


Palash Biswas


মেয়ে বলে, শুধু মেয়ে বলেই তুমি যখন গুরুত্বপূর্ণ কোনও কথা বলবে, কেউ তোমার চোখের দিকে বা মুখের দিকে তাকিয়ে মন দিয়ে শুনবে না তোমার কথা। বিশেষ করে পুরুষেরা। আমি আজ

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महाबली की घबराहट =============== ये क्या हो रहा है ! Laxman Singh Bisht Batrohi

महाबली की घबराहट
===============
ये क्या हो रहा है !

Laxman Singh Bisht Batrohi

मैं कांग्रेसी नहीं हूँ, न भाजपाई. मगर मैं हरीश रावत का प्रशंसक रहा हूँ. इसके पीछे कई कारण हैं. मुझे लगता था, वही उत्तराखंड के एकमात्र ऐसे नेता हैं जिनमें अपनी धरती के जमीनी संस्कार हैं और तमाम विरोधी परिस्थितियों के बीच, विषम से विषम परिस्थितियों से उनका उबरते चले जाना अपने प्रदेश के लोगों की शुभकामनाओं और उनके प्रति अटूट विश्वास के कारण ही हुआ है. मेरी यह धारणा अनायास नहीं है. मैं ही नहीं, मेरे जैसे उन अनेक लोगों का, जो हर बात को तर्क और परंपरा की कसौटी में परख कर अपनाते हैं, हरीश रावत को लेकर यही धारणा निर्मित हुई थी.
अचानक संजीवनी बूटी को लेकर उनकी घोषणा एक साथ अनेक सवाल खड़े करती है. यह मुद्दा उत्तराखंड भाजपा के सबसे अवसरपरस्त नेता निशंक का उठाया हुआ हास्यास्पद मुद्दा है जिसकी आरम्भ से ही आलोचना हुई थी. हरीश रावत का उसे हथिया कर अपने लिए इस्तेमाल करना अजीब हैरत में डालता है. यह बात तो कांग्रेस के अपने एजेंडा में भी कहीं फिट नहीं बैठती है.
हाल में लोक देवताओं को लेकर भी उनकी पक्षधरता सामने आई थी. मुझ जैसे पूजा और कर्मकांड के विरोधी के लिए यह बात भी अजूबा थी, मगर उसमें मुझे यह बात पसंद आई थी कि पहाड़ के लोक-देवताओं की पहचान और उनके स्वरूप को लेकर पहली बार किसी राजनेता ने बात की थी. पहाड़ के देवता मुख्यधारा के मैदानी देवताओं से एकदम भिन्न हैं. पहाड़ के देवता उस रूप में अतिमानवीय शक्तियों के प्रतीक नहीं हैं, जैसे कि मुख्यधारा के देवता. पहाड़ों के सभी देवता सामान्य लोगों के बीच से उभरे हुए, स्थानीय अंतर्विरोधों का अपने सीमित साधनों से मुकाबला करने वाले मामूली लोग हैं. प्रकृति की नियामतों से भरे-पूरे ये लोग शारीरिक और भावनात्मक शक्ति के एक तरह से मानवीय रूपक हैं. इसीलिए ये मनुष्य ही नहीं, जीव-जंतु और घास-फूस, लकड़ी-पत्थर भी हैं. चूंकि ये प्रकृति की सीधी निर्मिति हैं, इसलिए इनमे अतिमानवीय शक्तियां अपने सहज रूप में हैं.

मेरा शुरू से मानना रहा है कि ग्वल्ल-हरू-सैम-गंगनाथ-महासू और राम-कृष्ण-शिव-हनुमान के मंदिरों को एक श्रेणी में नहीं रखा जा सकता. मुझे लगता है पृथक् पहाड़ी राज्य का एक काम यह भी होना चाहिए कि वह उन सांस्कृतिक भिन्नताओं की भी बात करे जिसकी ओर मुख्यधारा की संस्कृति के आतंक की वजह से कभी ध्यान नहीं जा पाया. मगर हो एकदम उल्टा रहा है. उत्तर-पूर्व के राज्यों को छोड़ दें, पहाड़ी राज्य के रूप में निर्मित दोनों प्रान्त - हिमांचल और उत्तराखंड - दोनों ही जगह स्थानीयता पर मुख्यधारा की संस्कृति का आतंक बढ़ता चला गया है. सारी पूजा-पद्धतियों और विश्वासों में स्थानीयता हीनता की प्रतीक बन गयी हैं और मुख्यधारा की बाहरी पद्धतियों ने उनमें कब्ज़ा करके उन्हें अनावश्यक करार दिया है, पहाड़ों का अपना स्थापत्य और पूजा-पद्धतियां अतीत की चीजें बनती चली जा रही हैं. और तो और, जो देह और शरीर से परे प्राकृतिक बिम्बों के प्रतीक देवता थे, उन्हें भी धोती, कुरता, तिलक और खड़ाऊं जैसे ब्राह्मणवादी प्रतीक पहना दिए गए हैं. यह बात समझ से परे है कि पहाड़ की ऊंची-नीची पथरीली पगडंडियों पर ये वीर नायक ऐसी पोशाकों से युद्ध करते होंगे.
हरीश रावत जी का उत्तराखंडी राजनीति में प्रवेश मुझे इसीलिए ऐतिहासिक लगा था. मुझे लगा था कि हमारा वास्तविक नायक उभर आया है... हमारे राजनीतिक जीवन का प्रथम नायक... मेरा मजाक उड़ाया गया, मुझे संकीर्णतावादी, जातिवादी भी समझा गया, मगर मेरे विश्वासों में इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ा.
और अब निशंक की संजीवनी बूटी के एजेंट के रूप में उनका नया अवतार!... भाजपा के लिए उन्होंने उनका रास्ता कितना आसान बना दिया है... हालाँकि इससे नुकसान अंततः उत्तराखंड की जनता का ही होगा, क्योंकि हमारे नायक का एकमात्र विकल्प भी खो गया लगता है.
फिलहाल दूसरा कोई विकल्प है नहीं. 
अब किसके सहारे खड़ा होगा नया उत्तराखंड ?


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Shesh Nath Vernwal क्या मेरी माँ और पिताजी सोच से संकीर्ण और पिछड़ेे हैं या उस भारत के बहुसंख्यक निवासियों की सोच के प्रतिनिधि हैं, जिनके ऐसे ही विचार जाति, धर्म, दहेज़ आदि को लेकर है और जिनमें हम-आप सब शामिल हैं?

Shesh Nath Vernwal


करीब 8 महीने पहले मेरी माँ से मेरा बहस हुआ था। मैंने तर्क में कह दिया था कि दहेज़ मांगने में व्यक्ति को शर्म आना चाहिए। मेरा आशय मेरी माँ से ही था।

दूसरी बात यह भी हुई थी कि मैंने उनसे कहा था कि अगर बकरा और मुर्गा खाना गलत नहीं है, तो गाय खाना क्यों गलत है। मैं यह जानता था कि गाय खाने की बात करना एक हिन्दू के लिए घृणित और अक्षम्य समझी जाती है। फिर भी कहा था।

मेरी माँ से बातचीत बंद थी। इस दौरान मेरे रांची स्थित आवास (किराया का कमरा) में वह 8 महीने तक नहीं आई। पर आज मेरा सर्टिफिकेट पहुँचाने के बहाने आई। उसकी शर्त थी कि वह रेलवे स्टेशन से ही लौट जाएगी। पर मेरी लाईफ पार्टनर ने उसे किसी तरह अपने कमरे ले आई। मैं माँ से मिल न सका, क्योंकि मेरी भी ट्रेन थी और मुझे रांची स्टेशन से ही कोलकाता जाना था। मेरी ट्रेन मेरी माँ की ट्रेन के पहुँचने के 10 मिनट पहले ही था।

बहुत याद आ रही है मेरी माँ.. ऑंखें नम होने की हद तक। और खुद पर बहुत शर्म भी आ रही है। सोच रहा हूँ कैसी संतान हूँ मैं जो अपनी माँ को शर्म आने की बात कह दी।

मेरे पिताजी भी हमारे आवास पर नहीं आते थे। कहते थे कि जबतक हम अपना कमरा नहीं बदल लेते, वो नहीं आएंगे, ऐसा ही गौरी (मेरी लाईफ पार्टनर) को उन्होंने कहा था। दरअसल हमलोग एक मुसलमान परिवार के घर किरायेदार थे।

सोचता हूँ, क्या मेरी माँ और पिताजी सोच से संकीर्ण और पिछड़ेे हैं या उस भारत के बहुसंख्यक निवासियों की सोच के प्रतिनिधि हैं, जिनके ऐसे ही विचार जाति, धर्म, दहेज़ आदि को लेकर है और जिनमें हम-आप सब शामिल हैं।

वैसे मेरी माँ, मेरे पिताजी से अधिक खुले विचारों एवं दूसरों की आज़ादी का ख्याल रखने वाली है। तभी तो उसने मेरा बिना दहेज़ और अंतरजातीय विवाह को स्वीकार किया था। वैसे उसे मेरी लाईफ पार्टनर का गोरी रंगत नहीं होने का दुःख था, क्योंकि गौरी रंग में सांवली थी। पर कहती थी, गोरी रंगत नहीं है तो क्या हुआ गुण में तो अच्छी है।

यह सब लिख रहा हूँ कि शायद आप भी इन सब बातों से दो-चार होते होंगे, अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में। और शायद सोच पाएंगे कि आप अकेले नहीं हैं, बहुत सारे लोग हैं। जो एक नई दुनिया बनाना चाहते हैं या ऐसा दावा करते हैं, जिसमें जाति, धर्म, लिंग आदि को लेकर कोई भेदभाव नहीं हो। आर्थिक भेद नहीं हो। भले ही यह सोच उनके दिमाग और चर्चा तक ही सीमित रह जाता है या बहुत थोड़ा जमीन पर लग पाता है।


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Tuesday, June 21, 2016

महत्वपूर्ण खबरें और आलेख अखिलेश को पता है भाजपा ने सांप्रदायिक हिंसा करवाई, तो कार्रवाई क्यों नहीं की?


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