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Tuesday, August 30, 2016

यह आतंकवादी केसरिया सुनामी ब्राह्मण धर्म का पुनरुत्थान है और हिंदुत्व का अवसान है।


यह आतंकवादी केसरिया सुनामी ब्राह्मण धर्म का पुनरुत्थान है और हिंदुत्व का अवसान है।

राष्ट्रवादी देश भक्त तमाम ताकतों को एकजुट होकर हिंदुत्व के नाम जारी इस नरसंहारी अश्वमेध के घोड़ों को लगाम पहनाने की जरुरत है।वरना देश का फिर बंटवारा तय है।

यह बेशर्म रंगभेद ब्राह्मणधर्म की मनुस्मृति राज की बहाली का फासिज्म है।हिंदुत्व का पुनरुत्थान किसी भी सूरत में नहीं है।हिंदु बहुसंख्य और भारत के गैर ब्राह्मण तमाम समुदाय इसे अच्छी तरह समझ लें तो देश और हिंदुत्व दोनों का कल्याण है।इस लिहाज से हिंदुत्व के हित में यही है कि ब्राह्मण धर्म के एकाधिकारी कारपोरेट मुक्तबाजारी पुनरुत्थान के मुकाबले हिंदुत्व की बुनियाद तथागत के धम्म की ओर लौटा जाये।


हमलावरों ने सिंधु सभ्यता,उसके इतिहास और भूगोल का जो विनाश किया वह सिलिसिला उस सभ्यता के वंशजों किसानों और मेहनतकशों के नरसंहार का कार्यक्रम है और ये तमाम समुदाय कभी इस हमवलावर नरसंहारी संस्कृति का प्रतिरोध नहीं कर सके सिर्फ इसलिए कि उत्पादक और मेहनकश तमाम समुदाय हजारों जातियों और लाखों उपजातियों में तबसे लेकर अब तक बंटे हुए हैं और सत्तावर्ग के खिलाफ उनका वर्गीयध्रूवीकरण हुआ नहीं है,जिसके लिए जाति उन्मूलन अनिवार्य है।इसलिए तथागत गौतम बुद्ध के धम्म के मार्फत जाति का विनाश और वर्गीय ध्रूवीकरण से ही मुक्ति और मोक्ष दोनों संभव है।


पलाश वि श्वास

कल रात डेढ़ बजे के करीब 1975 से हमारे मित्र लखनऊ के विनय श्रीकर और भडा़सी बाबा यशवंत का फोन आया और उनका आदेश है कि भड़ासी सम्मेलन में नई दिल्ली पहुंचु।इससे पहले हमारे फिल्मकार मित्र राजीव कुमार दिल्ली जाने का न्यौता दे चुके हैं।ब्राह्मणवादी कारपोरेट मीडिया में पीड़ित वंचित पत्रकारों को संगठित करने का ऐतिहासक काम भड़ासी यशवंत ने किया है और आज अगर देशभर के वंचित उत्पीड़ित पत्रकार जन प्रतिबद्धता के मोर्चे पर गोलबंद हो जाये तो बहुत कुछ हो सकता है।


छात्रों,युवाओं और महिलाओं की मोर्चाबंदी से फासिज्म के राजकाज के प्रतिरोध की जो जमीन बनी है,वह पत्रकारिता के मोर्चे से और पकने लगेगी,इसकी पूरी संभावना है।


मुश्किल है कि इतना कम वक्त रह गया है कि टिकट का इंतजाम मुश्किल लग रहा है।हो गया तो नई दिल्ली में पुराने मित्रों के साथ रिटायर हो जाने के बाद पहली बार बैठकी का मौका मिलेगा।फिर मौका मिले न मिले,कह नहीं सकते।यशवंत कितना गंभीर है ,इस पर बहुत कुछ निर्भर करता है हालांकि उसमें नेतृत्व और संगठन की अद्भुत क्षमता है।पत्रकारिता की वानरसेना केसरिया सुनामी के मुकाबले के लिए गोलबंद हो तो इससे बेहतर कुछ हो नहीं सकता।फिलहाल हम सभी अकेले हैं।


सुबह हमारे गुरुजी ताराचंद्र त्रिपाठी जी का फोन आया और उन्होंने सूचित किया कि वे हरस्तक्षेप के लिए पैसा भेज रहे हैं और अमलेंदु से बात करेंगे।गुरुजी ने पैसे भेजने का वायदा बहुत पहले किया है लेकिन अबतक भेजा नहीं है।हमने निवेदन किया कि उनका आशीर्वाद हमारे लिए काफा हैं।वे सिर्फ अपने शिष्यों को अपने इस गुरुभाई की मुहिम में शामिल होने का निर्देश जारी कर दें तो हमारी मुश्किलें आसान हो सकती हैं।


फिर बौद्ध संगठनों की समन्वय समिति के संयोजक आशाराम गौतम से अलग से बात हुई।उनसे होने वाली बातचीत का ब्यौरा हम बाद में देते रहेंगे।


गुरुजी ने आश्वस्त किया कि हम सही दिशा में जा रहे हैंं।

उनका मानना है कि हस्तक्षेप की बड़ी भूमिका बदलाव की जमीन तैयार करने में हैं और वे हमारे साथ हैं।


गुरुजी ने भी माना कि मौजूदा अंध राष्ट्रवाद की आतंकवादी केसरिया सुनामी का हिंदुत्व से कुछ लेना देना नहीं है और दरअसल यह ब्राह्मणधर्म पुनरुत्थान है और हिंदुत्व का अवसान है।


हमारे गुरुजी का मानना है कि राष्ट्रविरोधी राजकाज और राजधर्म को हिंदुत्व कहना आत्मघाती है और हिंदुत्व विरोधी मुहिम धर्मनिरपेक्ष और प्रगतिशील मुहिम से हम ब्राह्मणवादियों के हाथ मजबूत कर रहे हैं।


इससे पहले हमारे आदरणीय मित्र आनंद तेलतुंबड़े से भी हमारी इस सिलसिले में विस्तार से बातें हुई हैं।


गुरुजी और आनंद दोनों मौजूदा मनुस्मृति फासिज्म के खिलाफ तथागत गौतम बुद्ध के धम्म को अधर्म के धतकरम की सुनामी पर अंकुश लगाने का एकमात्र विकल्प मानते हैं।हमारे बाकी साथी इस मुहिम में हमारा साथ देंगे,उम्मीद यही है।


गुरुजी ने हस्तक्षेप मे लगे उनके पुराने आलेख का हवाला देकर बताया कि राष्ट्रवादी देश भक्त तमाम ताकतों को एकजुट होकर हिंदुत्व के नाम जारी इस नरसंहारी अश्वमेध के घोड़ों को लगाम पहनाने की जरुरत है।


उनने फिर कहा कि इतिहास में भारत में एकीकरण बार बार होता है और फिर संक्रमणकाल में देश के बंटवारे के हालात हो जाते हैं।उनके मुताबिक हम उसी संक्रमण काल से गुजर रहे हैं और वक्त रहते अधर्म के इस बंदोबस्त के खिलाफ हम सारे देशवासियों को गोलबंद न कर सकें तो भारत का टुकड़़ा टुकड़ा बंटवारा तय है।


गुरुजी ने भी माना कि तथागत गौतम बुद्ध का समता और न्याय का आंदोलन और सत्य, अहिंसा, करुणा ,बंधुत्त, मैत्री ,सहिष्णुता,पंचशील,अहिंसा की सम्यक दृष्टि और प्रज्ञा से हम मौजूदा चुनौतियों का सामना कर सकते हैं।उन्होंने दो टुक शब्दों में कहा कि गौतम बुद्ध का धम्म धर्म नहीं है,सामाजिक क्रांति है और इसके राजनीतिक इस्तेमाल के खिलाफ भी उन्होंने सचेत करते हुए जाति धर्म नस्ल निर्विशेष भारतरक्षा के लिए मानवबंधन का एकमात्र रास्ता बताया।


राजकाज में केसरिया आतंक के वर्चस्व और अलगाववादी और उग्रवादी गतिविधियों को राजकीय समर्थन को गुरुजी ने बंटवारे का सबसे बड़ी खतरा बताया।


गुरुजी ने कहा कि उत्पादक मेहनतकश शक्तियों को शूद्र और अस्पृश्य बनाने की मनुस्मृति व्यवस्था की बहाली के कार्यक्रम को वे हिंदुत्व का एजंडा मानने को तैयार नहीं हैं।उनके मुताबिक यह हिंदुत्व के सत्यानाश का एजंडा है और इसे नाकाम रने के लिए बहुसंख्य हिदू ही पहल करें तो देश को फिर फिर बंटवारे से बचाया जा सकता है।


हिंदुत्व के नाम अधर्म का यह पूरा कार्यक्रम इतिहास और विरासत के खिलाफ है और इसका अंजाम देश का फिर फिर बंटवारा है और केंद्र में फासिज्म के राजकाज से हम विध्वंस के कगार पर हैं,इसलिए तथागत गौतम बुद्ध की समामाजिक क्रांति के तहत धम्म के अनुशीलन और पंचशील की बहाली से जाति उन्मूलन के जरिये हम इस रंगभेदी नरसंहार का सिलसिला रोक सकते हैं और इसलिए ब्राह्मणवाद विरोधी सभी शक्तियों के एकजुट होने की अनिवार्यता है।


गुरुजी का आदेश शिरोधार्य है और हम अपनी कोशिशों में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।


कश्मीर,दंडकारण्य और पूर्वोत्तर में सैन्यराष्ट्र के रंगभेदी दमन,उग्रवादियों को असम और पूर्वोत्तर के बाद बंगाल में भी सत्ता समर्थित ब्राह्मणी नारायणी सेना को भारतीय सेना में शामिल करने जैसे संघी उपक्रम से बेपर्दा है तो दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों, किसानों,मेहनतकशों और स्त्रियों के खिलाफ अतयाचार,उत्पीड़न के रोजनामचे के मद्देनजर हमें हकीकत की जमीन पर खड़ा होना ही चाहिए।


तमाम सामाजिक उत्पादक शक्तियों की व्यापक एकता के बिना हम इस फासिज्म के मुकाबले की स्थिति में कहीं भी,किसीभी स्तर पर नहीं है और न हो सकते हैं।जबकि उसकी सारी रणनीति मिथ्या हिंदुत्व के नाम पर आम जनता का ध्रूवीकरण की है।हम उलटे वर्गीयध्रूवीकरण का रास्ता छोड़कर जाति युद्ध का विकल्प चुनकर हिंदुतव के इस मिथ्या तिलिस्म में कैद हो रहे हैं और मुक्ति की राह खो रहे हैं।ब्राह्मण धर्म के खिलाफ सभी गैर ब्राह्मणों का वर्गीय ध्रूवीकरण मुक्ति का इकलौता रास्ता है।


इसी सिलसिले में भारतीय इतिहास पर नजर डालें तो हड़प्पा और मोहनजोदाड़ो के अवसान के बाद आज के हिंदुत्व के सफर पर गौर करना जरुरी है।इस पर आप चाहेंगे तो हम सिलसिलेवार ब्यौर भी पेश करते रहेंगे।


वैदिकी सभ्यता में मूर्ति पूजा और धर्मस्थलों का कोई उल्लेख नहीं है।तथागत गौतम बुद्ध के धम्म प्रवर्तन के बाद जो संघीय ढांचा संघम् शरणं गच्छामि से बना,उसके तहत ही मूर्तियों और उपासनास्थलों की रचनाधर्मिता के साथ साथ ब्राह्मणधर्म का जनवादी कायाकल्प ही हिंदुत्व है,जिसके तहत अभिजातों के धर्म अधिकार की तर्ज पर प्रजाजनों की आस्था और उपासना के अधिकार को मान्यता दी गयी और पुरोहितों ने इसके एवज में उन्हें अपना जजमान बना दिया और धार्मिक कर्मकांड के एकाधिकार को उपसना स्थलों,धर्म स्थलों,मंदिरों से लेकर कुंभ मेले तक के आयोजन के तहत कठोर मनुस्मृति अनुशासन के तहत कमोबेश लोकतांत्रिक बना दिया लेकिन शूद्रों, महिलाओं और अछूतों को शिक्षा के अधिकार के साथ ही धर्म के अधिकार से वंचित ही रखा।


मूर्ति पूजा और मंदिरों के दूर से दर्शन के पुरोहित तंत्र के तहत उनका हिंदुत्वकरण कर दिया और इसी क्रम में गौतम बुद्ध की सांस्कृति क्रांति को प्रतिक्रांति में तब्दील कर दिया।इसके साथ ही पितरों को पिंडदान का अनुष्ठान के जरिये एकाधिकारी पितृसत्ता की तरह स्त्री को दासी और शूद्र और फिर क्रय विक्रय योग्य उपभोक्ता सामग्री में तब्दील करके उसकी हैसियत और आजीविका संस्थागत वेश्यावृत्ति में तब्दील कर दी और पितृतंत्र में मिथ्या देवीत्व थोंपकर सत्तावर्ग की महिलाओं को गुलाम बना दिया।तबसे सामाजिक रीति रिवाज,संस्कृति और धर्म के नाम पर स्त्री आखेट जारी है और भारत में जाति धर्म निरपेक्ष स्त्री उत्पीडन का महिमामंडन धर्म है।


हिंदुत्व का यह तामझाम न वैदिकी संस्कृति है और न धर्म और भारतीय दर्शन परंपरा के आध्यात्म के मुताबिक भी यह दासप्रथा,देवदासी प्रथा नहीं है।यह सीधे तौर पर एकाधिकारवादी ब्राह्मणधर्म का विस्तार है,जिसका चरमोत्कर्ष मुक्तबाजार है।


वैदिकी संस्कृति के अवसान के बाद वर्ण व्यवस्था केंद्रित ब्राह्मण धर्म के जरिये सत्तावर्ग ने उत्पादक समुदायों के साथ महिलाओं को जो अछूत और शूद्र बनाकर रंगभेदी राष्ट्र और समाज का निर्माण किया उसके खिलाफ गैरब्राह्मणों की गोलबंदी का आंदोलन ही धम्म प्रवर्तन है और इस आंदोलन में क्षत्रिय राजाओं की बड़ी भूमिका थी।जिन्होंने बुद्धमय भारत बनाने में निर्णायक भूमिका निभाई।गौतम बुद्ध के धम्म को दलित आंदोलन में तब्दील करके हम गैरब्राह्मणों के वर्गीय ध्रूवीकरण के आत्म धवंस में निष्णात हैं और सामाजिक क्रांति में अवरोध बने हुए हैं।


गणराज्य कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ के बुद्धत्व और उनके धम्म को राजधर्म सम्राट अशोक और कनिष्क जैसे राजाओं ने बनाया तो भारत बौद्धमय बना।सामाजिक गोलबंदी के इस इतिहास को हमने नजरअंदाज किया।इसी इतिहास विस्मृति की वजह से न हम वीपी सिंह के मंडल आयोग लागू करते वक्त उनका साथ दे सकें और न अर्जुन सिंह के साथ खड़े हो सकें।गैरब्राह्मणों के वर्गीय ध्रूवीकरण का राकस्ता बंद करके बहुजनों ने ही ब्राह्मणधर्म के इस पुनरूत्थान का मौका बनाया और आखिरकार बहुजन ही इस ब्राह्मणी नरमेधी अश्वमेध की वानरसेना और शिकार दोनों हैं।


फिरभी,इन विसंगतियों के बावजूद सच यह भी है कि गौतम बुद्ध के धर्म प्रवर्तन के बाद उन्हीं के मूल्यों को आत्मसात करके हिंदुतव की सहिष्णु विरासत बनी और धम्म की नींव पर हिंदू धर्म का आधुनिकीकरण और एकीकरण हुआ।रंगभेद और विभाजन की यह नरसंहारी संस्कृति हिंदुत्व की विकास यात्रा और इतिहास के खिलाफ है।मूर्तियां सबसे प्राचीन बौद्ध हैं और उपासना स्थल भी प्राचीनतम बौद्ध बिहार,स्तूप और मठ हैं।


यही नहीं, वैदिकी देवताओं के स्थान पर इंद्र,वरुण,रुद्र,अग्नि जैसे वैदिकी देवताओं के स्थान पर हिंदुत्व का पूरा देवमंडल भारत की विविधता और बहुलता की विरासत है।आदिदेव शिव अनार्य है और इसमें कोई विवाद नहीं है।वैदिकी काल में अदिति को छोड़कर किसी देवी का उल्लेख नहीं मिलता और हिंदुत्व देवमंडल में दुर्गा काली से लेकर तमाम देवियां जनजाति,द्रविड़,अनार्य,खश देवियों का हिंदुत्वकरण चंडी अवतार में हैं। कालीघाट को सतीपीठ में तब्दील करने से लेकर तमाम सतीपीठ बौद्ध बंगाल में होने का मतलब एकीकरण की यह परंपरा तीन सौ चार सौ साल पहले तक चली है।तो पुराण सारे के सारे इसी देवमंडल को प्रतिष्ठित करने के लिहाज से लिखे गये हैं।


गौरतलब है कि विष्णु का अवतार तथागत गौतम बुद्ध नहीं हैं बल्कि इसका उल्टा है कि तथागत गौतम का अवतार विष्णु है।बोधगया में विष्णुपद की प्रतिष्ठा भी बौद्धमय भारत में हिंदुत्व की नींव होने का प्रमाण है।विष्णुपद की गया में प्रतिष्ठा के तहत ही तथागत गौतम बुद्ध की सामाजिक क्रांति पिंडदान में तब्दील है। पुरात्तव पर ब्राह्मणों का एकाधिकार होने के कारण पुराअवशेषों की सारी व्याख्याएं ब्राह्मणवादी है।


इसी तरह साकेत अयोध्या में तब्दील है तो हड़प्पा और सिंदधु घाटी की सभ्यता का हिंदुत्वकरण हुआ है।पुराअवशेषों को ब्राह्मणवादी सांस्कृतिक विरासत बताने के उपक्रम का खंडन अभीतक नहीं हुआ है जैसे बुद्ध काल की प्रतिमाओं को हिंदू देवमंडल में शामिल करने की मिथ्या को हम इतिहास बताते हैं जबकि बौद्धमय भारत से पहले ब्राह्मण धर्म के समय भी उन देव देवियो का कोई अस्तित्व ही नहीं रहा है।


हड़प्पा और मोहनजोदोड़ो के हिंदुत्वकरण का सिलसिला अब भी जारी है।मसलन बंगाल में शैव और कापालिक अनार्य द्रविड़ सभ्यता की विरासत है और अब उन्हें हम हिंदू बता रहे है।एकदम ताजा उदाहरण वैदिकी कर्म कांड,ब्राह्मणवाद और पुरोहित तंत्र के खिलाफ बंगाल में दो सौ साल का पहले शुरु हुआ मतुआ आंदोलन का हिंदुत्वकरण है।हरिचांद ठाकुर भी अब परमब्रह्म हैं।तथागत का अवतार,या बोधिस्तव बताते,तो हमें अपनी विरासत की जमीन से जुड़ने का मौका मिलता।यही हश्र संत रविदास का हिंदुत्व है।बाकी देवत्व विरोधी संत परंपरा का भी इसीतरह ब्राह्मणीकरण हुआ जबकि वे सारे संत ब्राहम्मण दर्म के खिलाफ ही तजिंदगी लड़ते रहे।यही हमारी विरासत है।


बंगाल में 1911 की जनगणणा में भी शूद्र और अटूतों की गिनती हिंदुओं से अलग हुई थी,लेकिन मतुआ आंदोलन के हिंदुत्वकरण से यह पूरी आबादी हिंदू दलित और अछूत में तब्दील हो गयी और उनके रंगभेदी सफाये के तहत ही भारत विभाजन हुआ क्योंकि भारत में बहुजन आंदोलन की कोख की तरह द्रविड़़ अनार्य बंगाल की बौद्धमय विरासत है।भारत के विभाजन के लिए ही बंगाल विभाजन हुआ।बंगाल का हिंदुत्वकरणा हुआ और बंगाल में तबसे लेकर ब्राह्मणवादी एकाधिकार जीवन के हर क्षेत्र में है।मतुआ आंदोलन भी ब्राह्मणधर्म के शिकंजे में कैद वोटबैंक है अब।


अब जैसे भारत विभाजन के लिए बंगाल विभाजन का प्रस्ताव बंगाल के ब्राह्मणवादी जमींदारों का कारनामा है और दो राष्ट्र के सिद्धांत के तहत ब्राह्मणवादियों के साथ सत्ता में भागेदारी के लिए मुसलमानों का बहुजन समाज से अलगाव के तहत भारत विभाजन और बंगाल के द्रविड़वंशज अनार्य असुर शूद्रों और अछूतों के सफाये की निरंतरता है,उसीके आधार पर विश्वव्यापी द्रविड़ नृवंश के इतिहास भूगोल से सफाये के लिए बंगाल विधानसभा में बंटवारे का फिर निर्णायक प्रस्ताव पूर्वी बंगाल की बंगभूमि को इतिहास और भूगोल से मिटाने का उपक्रम बंगाल नामकरण पश्चिम बगाल का पश्चिम बंगाल विधान सभा का प्रस्ताव है।फिर संविधान संशोधन की प्रकिया पूरी होने का इंतजार बिना इतिहास और भगोल का यह बंटवारा है।


यह बेशर्म रंगभेद ब्राह्मणधर्म की मनुस्मृति राज की बहाली का फासिज्म है।हिंदुत्व का पुनरुत्थान किसी भी सूरत में नहीं है।हिंदु बहुसंख्य और भारत के गैर ब्राह्मण तमाम समुदाय इसे अच्छी तरह समझ लें तो देश और हिंदुत्व दोनों का कल्याण है।इस लिहाज से हिंदुत्व के हित में यही है कि ब्राह्मण धर्म के एकाधिकारी कारपोरेट मुक्तबाजारी पुनरुत्थान के मुकाबले हिंदुत्व की बुनियाद धम्म की ओर लौटा जाये।


इसे समझने के लिए इतिहास की यह बुनियादी समझ जरुरी है कि भारतवासियों के धार्मिक विश्वास अनुष्ठानों की विरासत तीसरी दूसरी सहस्राब्दी ईसापूर्व की सिंधु सभ्यता,मोहनजोदाड़ो हड़प्पा की संस्कृति के पुरात्तव अवशेषों से शुरु होती है,जो कुल मिलाकर इस भारत तीर्थ में विभिन्न न्सलों की मनुष्यता की धाराओं के विलय की प्रक्रिया की निरंतरता है,जैसे अछूत बहिस्कृत महाकवि रवींद्र नाथ टैगोर नें भारतीय राष्ट्रीयता की सर्वोत्तम व्याख्या अपनी कविता भारत तीर्थ में की है।


तीसरी दूसरी सहस्राब्दी ईसापूर्व की सिंधु सभ्यता,मोहनजोदाड़ो हड़प्पा की संस्कृति के विभाजन की बात हम बारा बार करते हैं तो इसका आशय यह है कि ब्राह्मण वर्गीय आधार पर एकाधिकारवादी संरचना में संस्थागत तौर पर संगठित है और राष्ट्रीय स्वयं संघ इसी रंगभेदी संरचना का उत्तर आधुनिक संस्थागत स्वरुप है।


इसके विपरीत भारत में बहुसंख्य गैरब्राह्मणों का वर्गीय ध्रूवीकरण हड़प्पा और मोहनजोदाड़ो के अवसान के बाद किसी भी कालखंड में नहीं हुआ है तो ब्राह्मण वर्चस्व और एकाधिकार के सत्तावर्ग के खिलाप बाकी प्रजाजनों का कोई वर्ग कभी बना नहीं है और ऐसा कभी न बने इसके लिए तमाम गैरब्राह्मण हजारों जातियों,लाखों उपजातियों और गोत्रों में बांट दिये गये हैं और प्रजाजन हड़प्पा और मोहनजोदाड़ो के बाद से लगातार जाति युद्ध में एक दूसरे को खत्म करने पर आमादा रहे हैं और सहस्राब्दियों से भारत राष्ट्र का रंगभेदी स्वरुप तथागत गौतम बुद्ध की सामाजिक क्रांति के बावजूद जस का तस है क्योंकि इतिहास में हम कभी जाति के तिलिस्म को तोड़ नहीं पाये हैं।


गौरतलब है कि सिंधु सभ्यता,मोहनजोदाड़ो हड़प्पा की संस्कृतिकृषि आधारित उन्नततर सभ्यता की नींव पर वैश्विक वाणिज्य और विश्वबंधुत्व के रेशम पथ पर उन्नीत सभ्यता रही है.जिसने कांस्य और विविध धातुकर्म और अन्यशिल्पों के विकासके साथ साथ पकी हुई ईंटों के नगरों का निर्माण कर लिया था।


खानाबदोश यूरेशिया से आनेवाले हमलावर असभ्य और बर्बर थे उनकी तुलना में और वे पढ़ना लिखना भी नहीं जानते थे।इसके विपरीत सिंधु सभ्यता में लेखन कला उत्कर्ष पर थी।


हमलावरों ने सिंधु सभ्यता,उसके इतिहास और भूगोल का जो विनाश किया, वह सिलिसिला उस सभ्यता के वंशजों किसानों और मेहनतकशों के नरसंहार का कार्यक्रम है और ये तमाम समुदाय कभी इस हमवलावर नरसंहारी संस्कृति का प्रतिरोध नहीं कर सकी सिर्फ इसलिए कि उत्पादक और मेहनकश तमाम समुदाय हजारों जातियों और लाखों उपजातियों में तबसे लेकर अब तक बंटे हुए हैं और सत्तावर्ग के खिलाफ उनका वर्गीयध्रूवीकरण हुआ नहीं है,जिसके लिए जाति उन्मूलन अनिवार्य है।इसलिए तथागत गौतम बुद्ध के धम्म के मार्फत जाति का विनाश और वर्गीय ध्रूवीकरण से ही मुक्ति और मोक्ष दोनों संभव है।


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Monday, August 29, 2016

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Yet another Partition resolution passed by West Bengal Assembly! Palash Biswas



Yet another Partition resolution passed by West Bengal Assembly!

Palash Biswas

Image result for Partition of Bengal resolution 1947

It is the final partition,excuse me!

Yet another Partition resolution passed by West Bengal Assembly!


As the West Bengal part of United Bengal Assembly passed the partition of Bengal resolution culminating in the partition of India against East Bengal`s majority resolution rejecting partition,the West Bengal Assembly on Monday passed a resolution for renaming the state as 'Bangla' in Bengali and 'Bengal' in English, weeks after a proposal in this regard was put forward by Chief Minister Mamata Banerjee. 


Finally, Bengal is divided and East Bengal is deleted!

 

West Bengal might not be renamed as Bengal as the geography of West Bengal does not represent Bengal at all and historically,East Bengal was known as Banga which is now Bangladesh.


The Bangaj represented the negroid humanity and Banga was a little part of the negroid Dravid demography worldwide whereas West Bengal was mainly ruled from Gaura which gradually became the part of the Aryawart ruled by Aryans as soon as the demise of Buddhist Bengal with the fall of Pal Dynasty when the Sen Dynasty led by King Ballal Sen injected Brahminism in the veins of Non Aryan,dravid negroid Bengal.


Those Bangaj,specifically those from Banga later East Bengal and latest Bangladesh had been discarded by the earlier West Bengal resolution of partition which triggered the infinite holocaust for the negroid dravid Non Aryan demography across the political borders.


Even after partition most of the divided,degenerated Bangaj demography known as refugees have been scattered countrywide as the bleeding consequence of partition of India and they have to sacrifice everything as the price of Indian freedom for which they have been discarded from the history and geography of Bengal.


Despite the partition,both part of Bengal share the same history if not the geography and the tradition of Bengali culture and identity could not be divided even after partition.


Yes,it is the final partition to execute the resolution passed in 1947.

Reference:

Partition of Bengal (1947)

From Wikipedia, the free encyclopedia

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बंगाल,असम और पूर्वोत्तर में उग्रवाद के भरोसे हिंदुत्व के एजंडे को अंजा देने का खतरनाक खेल मीडिया में जनसुनावाई पर रोक के लिए हस्तक्षेप पर अंकुश ममता ने कहा : कल्पना कीजिए कि बीएसएफ ऐसे लोगों को प्रशिक्षण दे रहा है, जो देश और राज्य को तोड़ना चाहते हैं। एक सांसद (भाजपा के) केंद्र को उनके (नारायणी सेना के) पक्ष में पत्र लिख रहे हैं और कह रहे हैं कि उसे भारतीय सेना में शामिल किया जाये। उनक�


बंगाल,असम और पूर्वोत्तर में उग्रवाद के भरोसे हिंदुत्व के एजंडे को अंजा देने का खतरनाक खेल

मीडिया में जनसुनावाई पर रोक के लिए हस्तक्षेप पर अंकुश

ममता ने कहा : कल्पना कीजिए कि बीएसएफ ऐसे लोगों को प्रशिक्षण दे रहा है, जो देश और राज्य को तोड़ना चाहते हैं। एक सांसद (भाजपा के) केंद्र को उनके (नारायणी सेना के) पक्ष में पत्र लिख रहे हैं और कह रहे हैं कि उसे भारतीय सेना में शामिल किया जाये। उनकी पार्टी के कार्यकर्ता हर घर में जाकर गायों की गिनती कर रहे हैं। हम इस तरह की चीजें बर्दाश्त नहीं करेंगे।


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

हस्तक्षेप संवाददाता

बंगाल में चरम  राजनीतिकरण का नतीजा समाज,परिवार और राष्ट्र के विघटन की दिशा में परमगति प्राप्त करने लगा है।बंगाल में मीडिया पर अंकुश रघुकुल रीति की तरह मनुस्मडति शासन है और आम जनता की सुनवाई मीडिया में भी नहीं है।हस्तक्षेप में हम जनसिनवाई को प्राथमिकता देते हैं तो बंगाल में हस्तक्षेप पर बी अंकुश लगने लगा है।


पुलिस प्रशासन और जीआरपी तक के माध्यम से हस्तक्षेप संवाददाता की गतिविधियों पर अंकुश लगाने की कोशिस हो रही है।दूसरी तरफ विपक्ष के हाशिये पर चले जाने की वजह से लोकतांत्रिक माहौल खत्म सा है।


समूचे पूर्वोत्तर और असम में उग्रवादी गतिविधिया राजनीति का अनिवार्य अंग रही है और इसीके तहत केंद्र और राज्य सरकारे वहां उग्रवादी संगठनों का इस्तेमाल करती रही है।मसलन असम जैसे संवेदनसील राज्य में अस्सी के दशक से सत्ता की राजनीति अल्फा के कब्जे में है और असम में अल्फा के हवाले राजकाज है जिससे बार बार असम नानाविध हिंसक घटनाओ का शिकार है।


सबसे खतरनाक बात यह है कि अब अल्फा की राजनीति हिंदुत्व के एजंडे में शामिल है जिसके निशाने पर तमाम आदिवासी,दलित,शरणार्थी और गैर असमी समुदाय हैं और हिंदुत्व के एजंडे तको अमल में लाने के लिए असम को पूर्वोत्तर के दूसरे राज्यों की तरह संवेदनशील बनाये रखने की राजनीति केंद्र और राज्य सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है जो केसरिया आंतकवाद की गुजरात अपसंस्कृति और अपधर्म का विस्तार है।


बंगाल में गोरखा लैंड आंदोलन को बढ़ावा देने की राजनीति पर उत्तर बंगाल का सत्ता विमर्श अस्सी के दशक से असमिया अल्फा राजनीति का विस्तार रहा है।


अब गोरखालैड पर केसरिया सुनामी का रंग चढ़ गया है और बंगाल का सत्ता वर्ग भी उसे नियंत्रित करने में नाकाम है।उत्तर बंगाल के आदिवासियों में अलगाव की राजनीति को भी हिंदुत्व की राजनीति से जोड़ दिया गया है और कामतापुरी आंदोलन को अब सीधे तौर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का समर्थन हासिल है।


दूसरी ओर,त्रिपुरा में वाम मोर्चा का गठ ढहाने में दक्षिण पंथी राजनीति फेल हो जाने से वहां फिर नेल्ली नरसंहार की स्थितियां बनाने के लिए उग्रवादियों को केंद्र की शह पर राजनीति की मुख्यधारा में लाने की कोशिश की जा रही है।


यह कवायद पूरे् असम समेत पूर्वोत्तर में अस्सी के दशक से जारी है और वहां नरसंहार की वारदातों के पीछ सबसे बड़ी वजह यह है।


अब बंगाल में केसरिया एजंडा के लिए वही खतरनाक खेल दोहराया जा रहा है।सीमा सुरक्षा बल कामतापुरी अलगाववादी आंदोलन की नारायणी सेना को अंध राष्ट्रवाद की आड़ में प्रशिक्षण देने लगी है।इसकी बंगाल में तीखी प्रतिक्रिया होने की वजह से फिलहाल प्रशिक्षण स्थगित है लेकिन इस घटना से बंगाल के केसरियाकरण के लिए असम और पूर्वोत्तर की तर्ज पर उग्रवादियों की मदद से केसरिया आतंकवाद के भूगोल में बंगला को शामिल करने के हिंदुत्व एजंडा का खुलासा हो गया है।


मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बीएसएफ के ग्रेटर कूचबिहार पीपुल्स एसोसिएशन की नारायणी सेना को प्रशिक्षण दिये जाने के संदर्भ में केंद्र पर बांटने की राजनीति करने का आरोप लगाया है।


ममता ने कहा : कल्पना कीजिए कि बीएसएफ ऐसे लोगों को प्रशिक्षण दे रहा है, जो देश और राज्य को तोड़ना चाहते हैं। एक सांसद (भाजपा के) केंद्र को उनके (नारायणी सेना के) पक्ष में पत्र लिख रहे हैं और कह रहे हैं कि उसे भारतीय सेना में शामिल किया जाये। उनकी पार्टी के कार्यकर्ता हर घर में जाकर गायों की गिनती कर रहे हैं। हम इस तरह की चीजें बर्दाश्त नहीं करेंगे।


हांलाकि  बीएसएफ ने आरोपों को 'बेबुनियाद' बता कर खारिज कर दिया है.




गौरतलब है कि सीमा सुरक्षा बल के जवानों द्वारा नारायणी सेना को प्रशिक्षण दिये जाने पर तृणमूल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुकुल राय ने कहा कि यह बंगाल की सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ षडयंत्र है।

तृणमूल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पूर्व रेल मंत्री  मुकुल राय का आरोप है कि भाजपा पश्चिम बंगाल में अपनी ताकत बढ़ाने के लिए कामतापुरी आंदोलन का इस्तेमाल करने के नजरिये से नारायणी सेना को सीमा सुरक्षा बल के मार्फत प्रशिक्षित कर रही है।


अब देखना है कि इस खतरनाक खेल का ममता बनर्जी कैसे मुकाबला करती है।क्योंकि यह राज्यसरकार और बंगाल के सत्ता दल के लिए सबसे बड़ी चुनौती है और कानून और व्यवस्था कीजिम्मेदारी भी उसीकी है।


इसी सिलसिले में मीडिया पर अंकुश के लिए पुलिस और जीआरपी का इस्तेमाल करके मीडिया की गतिविधियों में हस्तक्षेप का खेल भी संघी एजंडा का खतरनाक आयाम है।मुख्यमंत्री को तत्काल इसपर कार्रवाी करनी होगी वरना बंगाल में भी हालात असम और पूर्वोत्तर जैसा बना देने में हिंदुत्व राजनीति कोई कसर नहीं छोड़ रही है।


इसी सिलसिले में वामदलों से और सत्ता दल से खारिज नेताओं को भाजपा में खास भूमिका देने से भी परहेज नहीं कर रहा है संग परिवार।


मसलन नंदीग्राम नरसंहार मामले में माकपा से बहिस्कृत पूर्व माकपा सांसद लक्ष्मण सेठ को बाजपा में शामिल करके मेजिनीपुर के संवेदनशील इलाकों के केसरियाकरण की रणनती संघ परिवार की है जहां पिछले विधान सभा चुनाव में कट्टर संघी नेता दिलीपर घोष खड़कपुर से चुनाव जीत चुके हैं और उन्ही दिलीप घोष की पहल पर भारत की आजादी के गांधीवादी आंदोलन के गढ़ शहीद मातंगिनी हाजरा के तमलुक से लोकसभा उपचुनाव में लक्ष्मण सेठ को भाजपा प्रत्याशी बनाया जा रहा है।


पूर्व रेल मंत्री  मुकुल राय का कहना है कि भाजपा बंगाल में विभाजन की राजनीति उकसाने का काम कर रही है। सीमा सुरक्षा बल द्वारा कूचबिहार में ऐसे संगठन के लोगों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जो बंगाल का विभाजन कर अलग राज्य बनाने की मांग कर रहे हैं। यह साबित करता है कि भाजपा अपनी ताकत बढ़ाने के लिए कोई भी कदम उठा सकती है। इसे कतई बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। इसके खिलाफ तृणमूल पूरे राज्य में प्रचार अभियान चला कर लाेगों को जागरूक करेगी।


दूसरी तरफ बंगाल में विपक्ष के सांसदों और विधायकों को तोड़ने और पालिकाओं और जिला परिषदों से विपक्ष को बेदखल करने की सत्तादल की राजनीति की वजह से ममता बनर्जी विपक्ष के निशाने पर हैं और संघ परिवार के इस खतरनाक खेल से निबटने के लिए बंगाल में किसी तरह की राजनीतिक मोर्चाबंदी नहीं है।ममता लोकतांत्रिक वाम विपक्ष को हाशिये पर लाने के लिए हरसंभव जतन कर रही है और बंगाल में विपक्ष के सफाये की वजह से उग्रवादियों की मदद से संघ परिवार का अल्फाई एजंडा बंगाल में तेजी से अमल में आ रहा है।जिस ओर न सत्ता पक्ष का ध्यान है और न वाम लोकतांत्रिक विपक्ष का।


राजनीतिक सत्ता संघर्ष के खेल में संघ परिवार गुपचुप बेहद खतरनाक तरीके से अल्फाई केसरिया आतंकवाद के एजंडे को बंगाल में लागू कर ही है कुलेआम।


इसी बीच मालदा में एक कार्यक्र में वाम नेतृत्व ने ममता बनर्जी की जमकर खिंचाई की है लेकिन वाम नेतृत्व ने उत्र बंगाल में उग्रवाद और संघी एजंडे पर अभी मौन है। बहरहाल, पूरे राज्य  में माकपा के अंदर पार्टी छोड़ने की स्थिति है, उसके लिए माकपा के वरिष्ठ नेता विमान बोस ने तृणमूल को लताड़ा है।


रविवार को मालदा जिला पार्टी कार्यालय में एक पत्रकार सम्मेलन में उन्होंने कहा कि राज्य की सत्ताधारी  तृणमूल कांग्रेस की जो नीति है, उससे यह स्थिति अभी समाप्त नहीं होगीष इसके लिये इंतजार करना होगा।


माकपा के वरिष्ठ नेता विमान बोस का आरोप है कि  तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी पूरे राज्य में एक पार्टी और एक नेता की नीति पर चल रही है।

उनके अनुसार ही सबकुछ होगा। यह नीति पूरे राज्य में सत्ता के केंद्रीकरण को जन्म देगा। विमान बोस के मुताबिक वर्ष 1977 में जब माकपा राज्य की सत्ता में आयी थी तब माकपा सरकार के सत्ता के विकेंद्रीकरण की नीति अपनायी थी।


विमान बोस के मुताबिक माकपा सरकार के समय कइ पंचायत समिति, नगरपालिका, जिला परिषद विरोधी पार्टी के अधीन थे। माकपा सरकार अपने कार्यकाल में कभी भी विरोधी दलों के अधीन नगरपालिका और जिला परिषदों पर कब्जा नहीं किया। उस जिला परिषद या नगरपालिका की कभी भी आर्थिक सहायता नहीं रोकी। वर्तमान में तृणमूल कांग्रेस माकपा सरकार के ठीक विपरीत रास्ते पर चल रही है। विरोधी दलों के अधीन नगरपालिका, जिला परिषद, ग्राम पंचायत, पंचायत समितियों पर तृणमूल कब्जा कर रही ह।. इसके अतिरिक्त आर्थिक भी रोक दी गयी है।

उन्होंने कहा कि तृणमूल जिस नीति पर चल रही वह पूरी तरह से अगणतांत्रिक और अनैतिक है।जबरन दखल की राजनीति कर तृणमूल कांग्रेस विरोधी राजनीतिक पार्टियों की नहीं बल्कि राज्य के आमलोगों का अपमान कर रही है।

पत्रकारों को संबोधित करते हुए विमान बसु ने कहा कि तृणमूल कांग्रेस देश के संविधान को नहीं मान रही है। इन्हें रोकने के लिये राज्य की जनता तैयार हो रही है। गणतंत्र की समाधि बनाने पर नागरिक कभी भी चुप नहीं बैठेंगे। गणतंत्र की रक्षा के लिये नागरिकों को ही सामने आना होगा।


विडंबना यह है कि तृणमूल काग्रेस से निबटने के चक्कर में वामनेतृत्व संघ परिवार के खतरनाक एजंडे को सिरे से नजरअंदाज कर रहा है।


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अस्पतालों में जिंदगी से खिलवाड़ आमरी अग्निकांड के हादसे के बाद भी कोलकाता के तमाम बड़े अस्पतालों के पास फायर लाइसेंस नहीं हैं। देश के बाकी राज्यों और महानगरों के अस्पतालों में तहकीकात की जाये तो पता चल सकता है कि चिकित्सा के नाम पर जुतगृह के इस भारत व्यापी नेटवर्क में मरीजों और डाक्टरों को जिंदा जलाने का महोत्सव है। एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास हस्तक्षेप संवाददाता


अस्पतालों में जिंदगी से खिलवाड़
आमरी अग्निकांड के हादसे के बाद भी कोलकाता के तमाम बड़े अस्पतालों के पास फायर लाइसेंस नहीं हैं।


देश के बाकी राज्यों और महानगरों के अस्पतालों में तहकीकात की जाये तो पता चल सकता है कि चिकित्सा के नाम पर जुतगृह के इस भारत व्यापी नेटवर्क में मरीजों और डाक्टरों को जिंदा जलाने का महोत्सव है।
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
हस्तक्षेप संवाददाता

कोलकाता।अस्पतालों और निजी चिकित्सा संस्थानों के नानाविध गोरखधंधे अक्सर बेपर्दा होते रहते हैं।इस सिलसिले  में पुराने किस्सों को हम दोहरा नहीं रहे हैं लेकिन मुर्शिदाबाद के सरकारी अस्पताल में ताजा अग्निकांड में मरीजों की मौत ने फिर कोलकाता में आमरी अस्पताल की याद ताजा कर दी है।गौरतलब है कि  मुर्शिदाबाद मेडिकल कॉलेज अस्पताल में आज आग लग जाने के बाद मची भगदड़ में दो महिलाओं और एक बच्ची की मौत हो गयी और सात अन्य घायल हो गये। जिससे मरीजों और उनके तीमारदारों के बीच दहशत फैल गयी। मृत दोनों महिलाएं नर्सें हैं।

मुर्शिदाबाद जिले के बहरमपुर स्थित मुर्शिदाबाद मेडिकल कॉलेज अस्पताल में शनिवार को भयावह आग लग जाने से दो नर्सिंग सहायक और एक नवजात शिशु की मौत हो गयी। हालांकि शिशु की मौत आग की वजह से होने के संबंध में संशय बना हुआ है।
गौरतलब है कि खास कोलकाता में आमरी अस्पताल में आग से 92 लोगों की मौत हुई थी।

इस अग्निकांड के बाद तहकीकात से यह खुलासा हो गया है कि निजी अस्पतालों में और हेल्थ हब में कानून ताक पर रखने का जो नेटवर्क है,उससे कहीं ज्यादा हैरतअंगेज कोलकाता और जिला शहरों के अस्पतालों में मरीजों और डाक्टरों की सुरक्षा में लापरवाही का आलम है।

जाहिर है कि केंद्र या राज्य सरकार अस्पतालों की सेहत सुधारने के लिए कोई बड़ा कदम उठाने के बजाये दुर्घटनाओं को सिरे से रफा दफा करने का शार्ट कट ही अपनाती हैं और इसके नतीजे इतने खतरनाक हैं कि आमरी अग्निकांड के हादसे के बाद भी कोलकाता के तमाम बड़े अस्पतालों के पास फायर लाइसेंस नहीं हैं।

गौरतलब है कि है कि वर्ष 2010-11 में मुर्शिदाबाद अस्पताल को तुरत फुरत  मेडिकल कॉलेज का रूप दिया गया था। यहां निर्माण कार्य अभी भी चल रहा है। इसी हफ्ते बर्दवान जिले के कटवा में स्थित सबडिवीजनल अस्पताल के ऑपरेशन थिएटर में आग लग गयी थी। गौरतलब है कि वर्ष 2011 में कोलकाता के ढाकुरिया स्थित आमरी अस्पताल में आग लगने से 92 लोगों की मौत हो गयी थी।

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के निर्देश पर गठित विशेष जांच दल ने मौके का मुयायना किया और इसके बाद जांच टीम की मुखिया चंद्रिमा भट्टाचार्य ने इस अग्निंकांड के पीछे गहरी साजिश होने का आरोप लगाया है।



कोलकाता के सबसे बड़े सरकारी अस्पतालों पीजी अस्पताल से लेकर मेडिकल कालेज तक में अग्निकांड से निपटने की कोई व्यवस्था है ही नहीं है और न इन बड़े सरकारी अस्पतालों के पास कानूनी तौर पर अनिवार्य फायर लाइसेंस हासिल हैं।

देश के बाकी राज्यों और महानगरों के अस्पतालों में तहकीकात की जाये तो पता चल सकता है कि चिकित्सा के नाम पर जुतगृह के इस भारत व्यापी नेटवर्क में मरीजों और डाक्टरों को जिंदा जलाने का महोत्सव है।

गौरतलब है कि भारत में आपदा प्रबंधन की कोई संरचना अभी बनी ही नहीं है और बाढ़, भूस्खलन भुखमरी,सूखा ,भूकंप हर साल आम नागरिकों के रोजमर्रे की जिंदगी को कयामत में तब्दील कर देती है।राहत सहायत की रस्म अदायगी के बाध फिर अगले साल के दुर्गा पूजा और गणेशोत्सव या ईद की तरह हम आपदाओं का इंतजार करते हैं।

भारतभर में शहरीकरण की अंधी दौड़ में महानगरों से लेकर जिला शहरों में बेदखली का सबसे चामत्कारिक फंडा अग्नकांड है।दिल्ली, मुंबई ,कोलकाता,चेननई की बस्तियों में हर साल होने वाले अग्निकांड का सच यही है।

साजिश की थ्योरी के मद्देनजर रफा दपा हो रहे इस मामले में दहशतजदा आम जनता का अस्पताली रोजनामचे पर गौर करें।शनिवार सुबह 11.50 बजे के करीब अस्पताल की दूसरी मंजिल पर स्थित मेडिसिन विभाग में आग लगने से अस्पताल में अफरातफरी फैल गयी। देखते ही देखते आग, नवजात शिशुओं के वार्ड और एमआरआइ विभाग में फैल गयी। दहशत में आये रोगी खिड़की तोड़कर नीचे छलांग लगाने लगे। भारी अफरातफरी में मरीज स्लाइन की बोतल हाथों में लेकर भागने लगे। स्थानीय लोगों ने पहले बचाव कार्य में हाथ बंटाया।

महिलाओं और उनके नवजात बच्चों को उतारा गया। अस्पताल के चीफ मेडिकल ऑफिसर सुभाशीष साहा ने बताया कि अब तक मिली जानकारी के मुताबिक आग से दो महिलाओं की मौत हुई है। दोनों नर्सिंग सहायक थीं। जानकारी के मुताबिक धुएं की वजह से उनकी मौत हुई है। एक नवजात शिशु की भी मौत हुई है। लेकिन उसकी मौत के पीछे आग ही वजह थी, यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। धुएं की वजह से 18 अन्य लोग बीमार हो गये हैं। साहा ने कहा कि दहशत की वजह से स्थिति ज्यादा गंभीर हो गयी।

गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल सरकार ने मुर्शिदाबाद मेडिकल कॉलेज अस्पताल में आग की सीआईडी जांच का आदेश दिया है। राज्य सचिवालय नबान्न से जारी एक विग्यप्ति में आज बताया गया, सीआईडी से घटना में साजिश की संभावना पर गौर करने को कहा गया है।

मुख्य चिकित्सा अधिकारी एस साहा ने कहा, 'अस्पताल में आग लग गयी। जिसमें दो लोगों के मरने की खबर है। आग पर काबू पा लिया गया है। घबड़ाने की कोई जरूरत नहीं है।' उन्होंने कहा कि आग लगने का कारण एसी यूनिट थी। आग लगने के तुरंत बाद मरीजों को अस्पताल में आते देखा गया जबकि कुछ बच्चों को अस्पताल के वार्ड से बाहर लाया गया।



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