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Friday, April 4, 2014

इस लाइलाज मरण कारोबार पर अंकुश लगाने के लिए बोलने वाला कोई नहीं शायद इस महाशक्ति पारमाणविक देश में।

इस लाइलाज मरण कारोबार पर अंकुश लगाने के लिए बोलने वाला कोई नहीं शायद इस महाशक्ति पारमाणविक देश में।


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास



अब भी लोग मर रहे है बगैर इलाज के। जबकि बीमारियां अब पहले की तरह लाइलाज भी नहीं हैं,न यातायात के साधन कम हैं और न चिकित्सातंत्र पहुंच से दूर है। जनसंख्या तेजी से बढ़ी है जरुर,पर परिवार फिरभी नियोजित है।कम से कम परिवार नियोजन के बारे में लोग उत्तर आधुनिक हैं।सूचना महाविस्पोट और  विकास के इस दौर में जिस तरह से चेतना का प्रचार हो रहा है,वह देहात को शहरों में तब्दील करने लगा है। फिर भी लोग टोटके के उपर ज्यादा भरोसा करते हैं।फिरभी हम मध्ययुग में वसवास कर रहे हैं।


विज्ञान की प्रगति का हर लाभ लेने वाले हम चकाचौंधी मुक्त बाजार में उपभोक्तावाद के चरमोत्कर्ष पर है और हर आधुनिक सुख सुविधा साधन से अपनी क्रयशक्ति के मुताबिक खुद को लैस करते जाने के अभ्यस्त हैं।लेकिन अंध विश्वासी तौर तरीके आज भी हमारे रोजमर्रे की जिंदगी से चस्पां हैं और कर्मकांडी श्रद्धाभाव से हम ज्योतिष,झाड़ फूंक,तंत्रक्रिया,कवट ताबीच.मंत्रशुद्ध को अत्यधुनिक चिकित्सा का विकल्प मानते हैं।


जो लोग क्रयशक्ति मुताबिक चिकित्सा बाजार से दूर हैं,उनकी सीमा समझी जा सकती हैं। लेकिन अंधभक्ति क्रयशक्ति के साथ साथ घटती बढ़ती भी नहीं है।यह शाश्वत है।सत्य है और सुंदर है।शिव भले हो या न हो।टोटका और टोटम आजमाने में पीछे कोई नहीं है।अरबपति भी नारियल फोड़कर शुभ मुहूर्त रचते हैं और पीएचडी से लेकर वैज्ञानिक दृष्टिभंगी के स्वयंभू ठेकेदार व्यवस्था बदलने को प्रतिबद्ध कामरेड  भी दसों उंगलियों में रत्न धारण करने से शरमाते नहीं हैं।


पहले तो लोग आस पास बीसियों मील तक चिकित्सी का इंतजाम न होने,याता यात का साधन न होने की वजह से कठिन से कठिन अस्वास्थ्य के मामले में जडी बूटी के इलाज के साथ आत्मविश्वास और भरोसा के लिए प्रार्थना के साथ साथ तंत्र मंत्र का सहारा लेने को मजबूर थे।


लेकिन अब कैंसर तक का इलाज,एइड्स तक जब लाइलाज नहीं है,दिल का आपरेशन बिना हुज्जत जहां तहां संभव है,ब्रेन सर्जरी हो जाती है, अंग प्रत्यरोपण भी संभव है,तब बाकायदा उच्च शिक्षित ऊंची हैसियत और साधन संपन्न  लोग भी बात बेबात मंत्रसिद्ध जल,चमत्कारी माला,ताबीज,झाड़ फूंक,मंत्र तंत्र टोटका टोटम के मार्फत रोग मुक्ति का जुगाड़ लगाते हैं।ज्योतिष के कहे मुताबिक ग्रहदोषमुक्ति का जुगाड़ लगाते हैं।


ऐसा राजधानियों ,महानगरों की बहुमंजिली दुनिया में भी उतना ही सच है,जितना गांव देहात में।


उलट इसके जो बेहद गरीब हैं,ज अत्यंत दूर दराज के साधनहीन लोग हैं,उनमें वैज्ञानिक चेतना का तेज विकास हुआ है और चिकित्सा हो या शिक्षा वे आस्था पर सबकुछ टालते नहीं हैं।बड़ी से बड़ी परीक्षा में इस तबके के बच्चे हैरत अंगेज नतीजे निकालते हैं तो अस्पतालों में लंबी कतारें लगाकर ये लोग अपने परिजनों की चिकित्सा का वैज्ञानिक इंतजाम करने में लगे रहते हैं।


राजधानियों,महानगरों के अस्पतालों में ऐसे बेहाल लेकिन हार न मानने वाले लोगों का हुजूम ही साबित करता है कि हम अंधकार जी नहीं रहे हैं।


लेकिन दरअसल जो रोशनी के सौदागर हैं,वे ही पीलिया हो या कैंसर,अस्थिरोग हो या स्त्रीरोग,वे मंत्र तंत्र ज्योतिष के फेर में हैं।इसी मुटियाये चर्बीदार तबके की अकूत क्रयशक्ति के दम पर कामदेवी बाबाओं के दरबार में लाखों का मजमा बहु बेटियों को उनके हवाले करने के लिए लगा रहता है और उनके आशीर्वाद से हर दुःख हर तकलीफ से छूटकारा पाने का शार्टकाट अपनाकर भगवान को भी चकमा देने वाले गाड़ी बाड़ी कंप्यू तबका का ग्लिटरिंग इंडिया है।


टीवी पर समाचारों के बजाय ऐसे बाबाओं के प्रवचन समय अलग है और देश भर में ऐसे बाबाओं के शिविर जब देखो तब।


क्या क्या नहीं बेचते ये लोग?


क्या क्या नहीं खरीदते लोग?


आटा,दंत मंजन से लेकर काला को गोरा कर देने तक का इंतजाम है और गली गली गांव गांव उसका सुव्यवस्थित बाजार।


टेली शापिंग में बेलगाम अंध विश्वास कारोबार है।


चमत्कारी मंत्र यंत्र रत्न सबकुछ क्रेडिट कार्ड पर उपलब्ध हम डेलीवरी।


पैंतीस साल वाम शासन में रहे बंगाल में हर टीवी चैनल पर ज्योतिष दरबार है जिनके पास हर रोग का इलाज है और हर समस्या का समाधान है।


मुख्यमंत्री बेमतलब केंद्र सरकार से पैकेज मांगती है।किसी बाबा से पैकेज लेकर आजमा सकती हैं।नहीं संभव है तो रोक क्यों नहीं लगाती इस आत्मघाती गोरखधंधे पर?


फिर देश का सिंहासन का हिसाब तय करने वाले क्रांति वीरों का कारोबार भी वही बाबा और ज्योतिष है।


इस लाइलाज मरण कारोबार पर अंकुश लगाने के लिए बोलने वाला कोई नहीं शायद इस महाशक्ति पारमाणविक देश में।


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