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Saturday, December 27, 2014

असम झांकी है।बंगाल अभी बाकी है। इसे कहते हैं,मुंह में राम राम,बगल में छुरी। आधा हकीकत आधा फसाना इस मेले में नहीं है माटी की सोंधी महक! पलाश विश्वास

असम झांकी है।बंगाल अभी बाकी है।

इसे कहते हैं,मुंह में राम राम,बगल में छुरी।

आधा हकीकत आधा फसाना

इस मेले में नहीं है माटी की सोंधी महक!

पलाश विश्वास

कोलकाता में इन दिनों सनसनाती सर्दी है।सविता की नाक से गंगा जमुना निकल रही है।तापमान सामान्य से तीन चार डिग्री सेल्सियस नीचे है और आसमान साफ है।तीर जैसी धारदार हवाएं हैं।पसीने की नौबत नहीं है।


ईअर एंडिंग जश्न चालू आहे।


लोग पार्टी और खरीददारी के मोड में हैं।


मांस मछलियों के दाम आसमान चूम लें ,बंगालियों की रसोई उनके बिना होती नहीं है।बाहरहाल साग सब्जियों के दाम घट गये हैं।मंहगाई शून्य का दावा है।


दावा है अच्छे दिनों के हिंदुत्व शत प्रतिशत का।


हिंदुत्व के अच्छे दिनों का नजारा यह कि कर्मचारियों और मेहनतकश तबके को समझाया जा रहा है कि पीएफ फालतू है।


सरकार अब यह इंतजाम कर रही है कि भले ही आपको आयकर और दूसरे तमाम कर देने पड़े,भले ही आपका वेतन इत्यादि सीधे बाजार में चला जाये लेकिन खरीददारी और हिंदुत्व के जश्न में कोई कोर कसर नहीं रहना है।


श्रम सुधारों के जरिये मेहनतकश तबकेके सारे हक हकूक छीनकर पीएफ आनलाइन है फिलहाल,जब चाहे निकालकर बाजार में झोंककर सांढ़ों के उछलने कूदने दीजिये।


अब चूंकि सरकार चाहती है कि बिना कटौती के गरीब कर्मचारियों और मेहनतकशों को पूरा वेतन मिले तो इसके लिए दस फीसद पीएफ जमा करने की अनिवार्यता खत्म की जा रही है।


गौरतलब है कि यह न केवल सबसे बड़ी अल्प बचत योजना है ,बल्कि मालिकान के लिए भी कर्मचारियों के नाम उनके जमा दस फीसद के बराबर रकम उनके खाते में जमा करने की मजबूरी है।


आखिर किनका भार घटा रही है सरकार ,यह समझने में हमारे लोग नाकाम हैंं।तो उनको हिंदुत्व के जलवे से बचाया कैसे जाये।


यही लोग सुशासन के कायल हैं।यही लोग मुसलमानों और ईसाइयों के सफाये के हिंदुत्व के झंडेवरदार हैं,जो संजोग से सिख ,बौद्ध,जैनी,आदिवासी ,शूद्र,अछूत दलित,वगैरह वगैरह हैं तो बाम्ङण और क्षत्रिय राजपूत और सवर्ण दूसरे तमाम लोग जो हैं,वे भी तो आखिर मेहनतकश तबके में शामिल होंगे जो मिलियनर बिलियनर क्लबों में कहीं घुसने की हिमाकत भी नहीं कर सकते।


तमाम गैर नस्ली लोग हैं हिंदुत्व के निशाने पर जो हिंदू हैं और शायद सवर्ण भी जैसे पूरब,पूर्वोत्तर और हिमालयी देवभूमियों के लोग बाग।


वे तमाम लोग पूर्वी बंगाल के विभाजन पीड़ितों पीढ़ियों की तरह वैदिकी हिंसा के इस मनुस्मृति महोत्सव में वध्य हैं और कल्कि अवतार उनके आराध्य हैं।


किसी भी धर्म जाति भाषा क्षेत्र के बच्चे और औरतें हों,उनके सारे हक हकूक खत्म हैं और इस देश का बचपन अब असम है।


माननीय नोबेल लारिएट कैलाश सत्यार्थी के ध्यानार्थ खासकर यह बयान है शायद वे अब असम में हों जहां हिंसा में बड़ी संख्या में आदिवासी बच्चे जिंदा भुन दिये गये हैं हिंदुत्व महाभोज में।


बचपन बचाओ अभियान के इस हिंदुत्व अभियान का विश्व जनमत पर क्या असर होना है,समझ लीजिये।

ताजा हालातः


असम हिंसा: सेना प्रमुख अधिकारियों के साथ बंद कमरे में करेंगे रणनीतिक बैठक

गुवाहाटी : सेना प्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग असम के हालात की समीक्षा करने के लिए वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के साथ बंद कमरे में रणनीतिक बैठक करेंगे।

असम में एनडीएफबी (एस) उग्रवादियों के हमले में 81 व्यक्ति मारे जा चुके हैं। सेना ने उग्रवाद निरोधक अभियान तेज कर दिया है और प्रभावित इलाकों में स्थिति सामान्य करने की कोशिश की जा रही है। लेकिन अब तक कोई नया अभियान शुरू नहीं किया गया है।

एक रक्षा प्रवक्ता ने बताया कि आज यहां पहुंचे जनरल सुहाग वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के साथ बंद कमरे में रणनीतिक बैठक करेंगे। प्रवक्ता के अनुसार, कमांडर स्थिति पर नजर रखे हुए हैं और हालात से निपटने के लिए समय समय पर समीक्षा की जा रही है।

केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने बृहस्पतिवार को राज्य के दौरे में कहा था कि सरकार आतंकवाद को किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेगी। असम के मुख्यमंत्री तरूण गोगोई ने एकीकृत कमांड को एनडीएफबी (एस) जैसे आतंकी गुटों के सफाये के लिए समयबद्ध खाका तैयार करने तथा तीव्र अभियान शुरू करने के लिए कहा है।

फिर से हिंसा की कोई खबर नहीं है। हालिया हमलों, उनकी प्रतिक्रिया और पुलिस की गोलीबारी में मरने वालों की संख्या 81 हो गई है। असम राज्य आपदा मोचन प्राधिकरण के सीईओ पी के तिवारी ने बताया कि चार प्रभावित जिलों कोकराझार, चिरांग, सोनितपुर और उदालगुरी के करीब 72,675 लोगों ने 61 राहत शिविरों में शरण ले रखी है।

http://zeenews.india.com/hindi/india/assam-violence-army-chief-reviews-security-situation/242892



West Bengal CM to visit relief camps set up for Assam evacuees.http://www.tntmagazine.in/?p=45375

West Bengal CM to visit relief camps set up for Assam evacuees

TNTMAGAZINE.IN




पत्रकार तमाम अटल जी और मालवीय जी को भरत रत्न बनाये जाने से बाग बाग हैं।


अटल जी का किया धरा बाबरी विध्वंस और गुजरात नरसंहार में शाश्वत है ,जिसपर किसी टिप्पणी की आवश्यकता भी नहीं है।


मालवीय जी को हमने देखा नहीं है।


वे बीर सावरकर की तरह हिंदुत्व के श्रेष्ठतम सिपाहसालार रहे हैं और हिंदू महासभा के संस्थापक सदस्य भी हैं। जबकि मेरठ की दंगा जनपद में नाथूराम गोडसे का अवतरण हो चुका है और गांधी को राजघाट में सीमाबद्ध करने के लिए इंद्रप्रस्थ के सिंहासन के भाग्यविधाता बनने को तैयार हैं गांधी का हत्यारा नाथुराम गोडसे।


बहुत संभव है कि राजीव दाज्यु की धारणा के विपरीत मोदी के हिंदुत्व राजकाज में अगला भारत रत्न इन्हीं नाथुराम गोडसे को दिया मरणोपरांत, संयुक्त रुप से जनरल डायर के साथ।सिखों पंजाबियों का कत्लेआम उनने भी किया था आखिरकार।


देश की बागडोर नरेद्र भाई मोदी के हाथों में नहीं है कतई।जिन्हें इस देश की जनता ने प्रधानमंत्री चुना और उनने यह बागडोर अमित शाह के हाथों में थमा दी है।


अब वहींच होना है जो अमित शाह चाहें।


अब हर कातिल को भारत रत्न भरत रत्न घोषित करने की बारी है।


लोगबाग,विशेषकर नवधनाढ्य सांढ़ संप्रदाय और केसरिया हुए मीडिया की ऩवउदारवादी की संताने बेसब्री से इसी के इंतजार में हैं।


जो पहले कहते थे कि आदिवासी विकास में बाधक हैं और उनका सफाया जरुरी है।


जो अब कहते हैं कि भारत हिंदुओं का देश है और तमाम गैरनस्ली लोगों का चाहे वे हिंदू हों या विधर्मी,सिरे से उनका सफाया हों।


जो कहते थे भारत अमेरिका बन रहा है वे अब बढ़ चढ़कर साबित कर रहे हैं कि इस्लाम और मुसलमानों का दुश्मन इजरायल कितना महान है।


जो भारत को अमेरिका का उपनिवेश बनाकर बम बम थे वे भारत को मुकम्मल इजराइल बनाने पर तुले हुए हैं।


हिंदू बंगाल का जलवा है और हमारे मित्र शरदिंदु ने लिख मारा है कि असली टार्गेट तो बंगाल है।


असम झांकी है।


बंगाल अभी बाकी है।

পশ্চিমবঙ্গই ওদের আসল টার্গেট।

শরদিন্দু উদ্দীপন


হায় ভারত ! তোমার স্মৃতি থেকে কি করে গুজরাট মুছে যায়! কীভাবে হারিয়ে যায় বাবরি মসজিদের গুড়িয়ে যাওয়া ছবি! কোথায় চাপা পড়ে যায় ধর্ষিতা সিস্টারের লাশ। কান্ধামালের ছাই! যে জল্লাদেরা যুগের পর যুগ ধরে এই নরক গুলজারে মত্ত হয়ে আছে, ক্রমেই ঘনীভূত হচ্ছে তাদের উল্লাস। কোলের ৫ মাসের শিশুও বাদ জায়নি জল্লাদের ঘাতক বুলেটে। আসামের কোকড়াঝাড় যেন শ্মশান এখন। শকুন শিয়ালেরা ওত পেতে আছে। গোটা আসামকেই ওরা শ্মশান বানাতে চায়। এর পরেই বাংলার পালা। পশ্চিমবঙ্গই ওদের আসল টার্গেট।


इसे कहते हैं,मुंह में राम राम,बगल में छुरी।


यह छुरी है या आस्तीन में सांप है,मुहावरे आप तय कर लें।


इस सर्द मौसम में नैनीताल छोड़े पूरे पैतीस साल बाद भोर तड़के तक असम के अपडेट भयावह तस्वीरों के साथ साझा करके उत्सवी माहौल गुड़ गोबर कर रहा हूं।


गनीमत है कि हर कोई अपने राजीव नयन दाज्यू की तरह मुंहफट नहीं है कि जवाब में ऐसी तैसी कर दें।


कड़वा सच यही है कि यह अब मुकम्मल भारत की तस्वीर है।


जो तस्वीरें हमने अस्सी के दशक में मेरठ में रहते हुए पूरे गायपट्टी में देखी थी,और अपने लघु उपन्यास उनका मिशन में दर्ज की थीं,वे तस्वीरें भारत की तस्वीरें हैं अब।


आपकी आंखों में उंगलियां डालकर वही सच बताने की बदतमीजी कर रहा हूं।चाहे तो फासी पर चढ़ा दें।


सोदपुर में इन दिनों जाम नरक है।वजह है पानीहाटी मेला और उसमें बंगाल के तमाम राजनेताओ,कलाकारों और स्टारों का जमघट।सारे नामी दिरामी लोग रोज रोज मंच पर लाइव हैं तो जाहिर है कि भीड़ का पगलाना लाजिमी है।


वे तमाम आदरणीय लोग भी मंच पर शोभित हैं,जिनकी छवियां शारदा फर्जीवाड़े के खुलासे से गुड़गोबर हैं।


इस घोटाले के अन्यतम गवाह तृणमूली सांसद कुमाल घोष को पागल करार दिये जाने की तैयारी है।


कल ही राज्य सरकार के तीन तीन मनोचिकित्सक जाकर कुणाल की जांच कर चुके हैं।


गोया के चुनांचे  कि साबित यह किया जाना है कि कुणाल जो बक रहा है,वह पागल पन के सिवाय कुछ नहीं है।


जाहिर है कि पैसा सारा का सारा आसमान खा गया या जमीन निगल गयी है। न किसी ने दिया और न किसी ने लिया।


सुदिप्तो सेन और उनकी खासम खास देवयानी औरदूसरे तमाम गवाहों का क्या अंजाम होगा,अंदाजा लगा लीजिये।


जी,यह वहीं सत्ता की राजनीति है जिससे घोटालों का हल्ला तो खूब होता है और अपराधी छुट्टा सांढ़ की तरह डोलते रहते हैं अगले घोटालों की तैयारियों में लगे हुए।


हर साल दिसंबर के क्रिसमस समय में शुरु होने वाले इस दौर में मैं बाहर होता हूं ,देश में कहीं भी।इसबार सोदपुर से निकलुंगा तो दो जनवरी को।


इस बार विदर्भ में जाना है।सफदर हाशमी की याद में वहां छात्रों के आयोजन में शामिल होने और विदर्भ के मित्रों से बतियाने।


सविता भी मेरी वजह से मेले ठेले में जा नहीं पातीं।

जाती हैं तो अपने सांस्कृतिक गिरोह के साथ निकलती हैं।


संजोग से इस मंगलवार को मेरा रेस्टडे खाली निकला और वे मचल पड़ीं कि मेले जरुर जाना है।दरअसल बंगाल में सांस्कृतिक साहित्यिक मेलों के सरकारी पार्टीबद्ध आयोजनों में मै जाता ही नहीं हूं।


खासकर हिंदी समाज के कारोबारी जगत में निष्णात बनकर दोयम दर्जे के मुसाफिर बन जाने और पिछलग्गू जी हुजूरी में लग जाना मेरे लिए मोहभंग है।


कोलकता पुस्तक मेले में नंदीग्राम गोलीकांड के बाद कभी नहीं गया।उससे पहले नागरिकता विधेयक पास हुआ तो कोलकाता आना जाना ही सीमाबद्ध हो गया।


दफ्तर भी शहर से बाहर है ,तीन साल हो गये तो महानगर आना जाना वैसे ही कम है।


तो मंगलवार पानीहाटी मेले गये तो पाया कि मेलले के नाम पर एक बड़ा सा पंडाल है,जहां तमाम सेलिब्रिटी और राजनेता एकाकार हैं और उनके सामने हजारों की भीड़ है।


बाकी ज्यादातर हिस्सा बड़ी बड़ी कंपनियों का शो रूम है या सरकारी विभागों की प्रदर्शनी। बड़े से हिस्से में खाने पीने का फास्टफुड आयोजन।


छोटे से हिस्से में हर सामान एक कीमत वाली दुकानें और बच्चों के झूले, वगैरह।


मेले में सर्कस न हो तो मेला कैसा?


मेले में नौटंकी न हो तो मेला कैसा?


खेल तमाशे और देहात की बेइंतहा लोगों की आवाजाही न हो तो मेला कैसा?


शापिंग माल जैसा मेला देखकर मन उदास हो गया और हम लोग जल्दी जल्दी लौट आये।बैरंग।


रास्ते में पूर्वी बंगाल की जड़ों से जुड़े एक परिवार के यहां पूर्वी बंगाल को महसूसने का मौका जरुर मिला,जो मेला क्षेत्र के पास ही रहते हैं।


वह किस्सा बाद में ।


हम तो ईदगाह के हमीद के साथ पले बढ़े बच्चे हैं अब भी,बस,जड़ों से कटे हुए हैं।


रामबाग के मेले में जो हम होश संभालते ही जाने लगे थे,जहां बुक्सा आदिवासियों की भीड़ लगी रहती है,जहां हमारी सहपाठिनें भी भीड़ लगाती थीं,तो उनको आड़ी तिरछी नजरों से घूरना हमारा सबसे बड़ा रोमांस था,वहां हम करीब चार दशकों से गये नहीं हैं।


रुद्रपुर के अटरिया मेले में पूरी तराई की हिस्सेदारी होती थी।


मेले से सर्कस का सर्च लाइट दसियों मील दूर के गांवों में हमें तलाश निकालता था और नौटंकी के नगाड़े की थापों से हम पगला जाया करते थे।


खेल तमाशे का जादुई जहां अलग।


वह अटारिया मेला क्षेत्र अब सिडकुल है जो तराई के समूचे देहात को निगल रहा है।


वहां कारपोरेट घरानों के लिए टैक्स होली डे हैं और न स्थानीय लोगों,तमाम उत्तराखंडियों और तराईवालों को रोजगार है और न वहां श्रम कानून नाम की कोई चिडिया पर मार सके हैं।


तराई के आदमखोर बाघ दिखते नहीं हैं चूंकि जंगल और गन्ने के खेत दोनों गायब हैं,फिर भी सीमेंट के जंगल में घात लगाये बैठे हैं रंग बिरंगे आदमखोर तमाम,जिनकी शक्लोसूरत इंसानी हैं।


वहां अब भी अटरिया चंडी की आराधना होती है,मेला कैसे लगता होगा,नहीं मालूम।


नहीं मालूम कि काशीपुर के चैती मेले के क्या हाल हवाल हैं।


इसी अटारिया के मेले से जुड़ी है तराई के सात सात बार बसने और उजड़ने की कथा तो उससे जुड़ी हैं हमारे बचपन और हमारे पिता के साथ हमारे दोस्तों की तमाम बेशकीमती स्मृतियां।


मेरठ के नौचंदी मेले की दास्तां तो और दर्दभरी है,जो देश के बदलते फिजां का अफसाना है।


आधा हकीकत और आधा फसाना है,जहां हमने इस देश के मुकम्मल साझा चूल्हे के वजूद को पहलीबार जाना और उसे धर्मोन्मादी जुनून में दम तोड़ते हुए देखा भी है नवउदारवादी बाबरी विध्वंसलीला के अखंड आख्यान के तहत।


मलियाना और हाशिमपुरा नरसंहार में न जाने कहां बिला गयी नौचंदी और साझे चूल्हे का हाल मुजप्परनगर है।


मुजफ्परनगर,मेरे सुसुराल धर्मनगरी के बदल में बहने वाली गंगा के बैराज पार करने के बाद मेरठ जनपद को छूता हुआ अमन चैन का बसेरा मुजफ्परनगर,जो कभी देश का सबसे समृद्ध जनपद है और जहां से हैं गिरराज किशोर और शमशेर बहादुर सिंह जैसे लोग भी।


अब वहां दंगाइयों का बसेरा है।


एक स्थाई मेला लेकिन वर्चुअल है जो कहानी तीसरी कसम है तो राजकपूर की फिल्म तीसरी कसम भी है।वह भी आधा हकीकत आधा फसाना है।


इसी सिलसिले में  लखनऊ के मित्रों से एक विनम्र निवेदन है।


कृपया गौर करें।


हमारे सहकर्मी गौतम नाथ के छोटे भाई प्रबीर नाथ महानगर लखनऊ में एक नाटक का मंचन करने वाले हैं,कुंजपुकुर कांड।अगर बांग्ला ग्रुप थिएटर में आपकी दिलचस्पी हो,तो यह नाटक अवश्देय देखें जो बांग्ला के अत्यंत लोकप्रिय कथाकार शीर्षेंदु बंदोपाध्याय की कथा पर आधारित मौजूदा परिप्रेक्ष्य में समाजिक यथार्थ का दर्पण है।


बंगाली क्लब के नाट्य उत्सव में बंगाली क्लब में सोमवार को शाम सात बजे इस नाटक का मंचन होना है।29 दिसंबर की सर्द शाम को बंगाल के पिछड़े जनपदों में शायद अव्वल नंबर दक्षिण 24 परगना के सोनार पुर के ग्रुप थियेटर सोनारपुर चेना अचेना की तरफ से।


गौरतलब है कि सोनारपुर दक्षिण 24 परगना में सुंदरवन का सिंहद्वार है।


कभी सुंदरवन वहां से गुजरकर कोलकाता में शामिल हुआ करता था और अब शायद सुंदरवन के सुंदर वन में रहने की जगह भी नहीं है।


शीर्षेंदु ऐसे कथाकार हैं भारतभर में अकेले जो शब्दों के मायने परत दर परत परस्परविरोधी मायने में भी बेहद खिलंदड़ी तरीके से उजाकर करते हैं,वहीं वे बच्चों,बूढ़ों और औरतों के बीच अपना अड्डा जमा लेते हैं।


अपने नवारुणदा के फैताड़ु बोम्बाचाक और कांगाल मालसाट जैसे उपन्यासों में भी उड़ने वाले अंत्यज हाशिये के लोगों का गुरिल्ला युद्ध है।


शीर्षेंदु उस तरह किसी गुरिल्ला युद्ध के योद्धा हरगिज नहीं हैं।


सामाजिक यथार्थ के निकष में वे माणिक और महाश्वेती की पांत में भी कभी खड़े नहीं होते।हम इस मामले में बेहद निर्मम हैं।


बचपन में कभी गुलशन नंदा हमारे लोकप्रिय पसंदीदा कथाकार थे और गुरुदत्त को शरणार्थी नजरिये से खूब पढ़ते थे।लेकिन हम उन्हें शरत और प्रेमचंद की पांत में तो रखने से रहे।


अब उत्तर आधुनिकता के मुलम्मे में भारतीय साहित्य और भाषाओं पर इन्ही गुलशन नंदा और गुरुदत्त का दौर चालू है।


इसीलिए हमने शीर्षेंदु की करीब करीब हर रचना को दशकों से पढ़ते रहने की आदत के बावजूद उनपर लिखा कभी नहीं है।


सोनारपुर के इस ग्रुप थियेटर ने शीर्षेंदु पर लिखने के लिए और उनको मंचन के लिहाज से समझने के लिए मुझे मजबूर कर दिया है।उनका आभार कि वे समझा सके कि हमने वक्त बरबाद नहीं किया है।


बंगाल अगर हिंदुत्व की सुनामी से बच निकला तो बंगाल के ग्रुप थिेटर की उसमें सबसे बड़ी भूमिका होगी,मुझे पक्का यकीन है क्योंकि पार्टीबद्ध समाज में धार्मिक ध्रूवीकरण की सामूहिक आत्महत्या के दौर में भी बंगाल के हर जनपद में ग्रुप थियेटर साहित्य,लोक और संस्कृति की जड़ों से बेहद मजबूती से जुड़ा हुआ है और उन जड़ों से उन्हें बेदखल करना संघ परिवार के बस में नहीं है।


प्रतिबद्ध रंगकर्म ही इस भारतवर्ष को और सीमा आरपार इस महादेश में उम्मीद की आखिरी किरण है।


आइये,हम उसकी रोशनी और धारदार बना दें।


अभी दिनेशपुर में हमने वहा के स्थानीय रंगकर्मियों को भाई सुबीर गोस्वामी,शिव सरकार,मनोज रायवगैरह को लंबा प्रवचन जाड़कर आये हैं कि उत्तराखंड के हर इंच पर युगमंच की हरकतें चाहिए और हमें हर इंच पर जहूर आलम चाहिए तो शायद सीमेंट के जंगल में खोते हुए प्रकृति,पर्यावरण,इंसानियत के साथ साथ हम अपने गांव,खेत खलिहान बचाने की कोई जुगत कर सकें।


इस ग्रुप में मेरा भाई पद्दोलोचन भी सक्रिय है।


हमने उनसे कहा था कि कोई साथ न हो तो अकेले भी रंगकर्म संभव है कि बीच बाजार में कबीर की तरह खड़े होकर चीखो,जिसको फूंकना है घर आपना,वे चलें हमारे साथ।


यही रंगकर्म है और यही रंग कर्म की ताकत है जो राजनीति की ताकत से ज्यादा बड़ी ताकत है और हम इस ताकत को जितनी जल्दी आत्मसात करें,भारत के हिंदू जायनी साम्राज्यवाद के शिकंजे से  बच निकलने की उतनी प्रबल संभावना है।


हमने उन्हें मुक्तिबोध के अंधेरे को बीच बाजार में जनता की आंखों में घुसेड़ने की सलाह दी थी,जो सलाह भारत में सक्रियऔर सीमा के आर पार सक्रिय हर रंगकर्मी के लिए है।



हम रंजीत वर्मा और अभिषेक श्रीवास्तव और उनके तमाम साथियों के आभारी है कि वे कविता को अभिजनों की मिल्कियत से बाहर निकाल रहे हैं और उनके साथ कवियों का लंबा चौड़ा गंभीर प्रतिबद्ध प्रतिभाशाली हुजूम है जो कविता सोलह मई को ग्रुप थिएटर का मंचीय शक्ल देने लगा है जिसे कविता को बदलाव का सबसे धारदार हथियार बनाया जा सकें।


हम कविता सोलह मई को हर भारतीय की आवाज में बदलने की गुहार लगा रहे हैं


हम सिनेमा में भी ऐसे प्रयोग के पक्ष में है और हमने इस सिलसिले में लिखा भी है।


प्रतिरोध के सिनेमा आंदोलन में जसम के हमारे भाई ऐसा करिश्मा करने का करिश्मा कर दिखाने का जज्बा रखते हैं,उनका भी आभार।


मुश्किल यह है कि देशभर के बड़े नगरों के प्रेक्षागृहों से बाहर न कविता कहीं पहुंच रही है और न सिनेमा का पर्दा कहीं लग रहा है।


व्यापक जनता की भागेदारी नहीं हो तो जनांदोलन नहीं बनता।सांस्कृतिक सामाजिक आंदोलन तो हरगिज नहीं।


हमें इसका ख्याल करना चाहिए कि कैसे हिंदू साम्राज्यवाद को आतमघाती जनांदोलन बनाकर सारे जनांदोलनों को खत्म करके इस देश को शत प्रतिशत हिंदुओं का देश बनाने का अश्वमेध शुरु किया है।


इसीलिए मैं बार बार विधाओं,माध्यमों और भाषाओं के दायरों को तहस नहस करने की बात कर रहा हूं और बार बार, बार बार नवारुण दा को कोट कर रहा हूं कि हमें मुकम्मल गुरिल्ला युद्ध रचना होगा तभी हम इस अनंत गैस चैंबर,इस अनंत तिलिस्म की दीवारों और किलेबंदियों को तोड़ने का ख्वाब रच सकते हैं।



सामाजिक यथार्थ परशुराम,शिवराम और सुकुमार राय की तरह शीर्षेंदु के रचना संसार में  भयंकर व्यंग्य के रुप में बहुत महीन है,भाषा के शब्द दर शब्द में है,जिसे पकड़ने की दृष्टि होनी चाहिए।


दरअसल वे बगांल में सत्यजीत रे के पिता सुकुमार राय और मशहूर कथाकारों परशुराम और शिवराम चक्रवर्ती की विरासत के धारक वाहक हैं।


उनकी लोकप्रियता का राज भी यही है।


भूत प्रेत पात्रों के साथ जीते जागते पात्रों की असलियत खोलना शीर्षेंदु की खासियत है और जादुई माहौल रचने में वे विज्ञान कथा की तकनीक भी खूब आजमाते हैं।उनकी कथाओं पर बांग्ला में नाटक और फिल्में भी  लोकप्रिय हैं।



कुंजपुकुर कांड

कथा सार

कुंजपुकुर गांव दरअसल वैसा ही गांव है,जैसा कि आम तौर पर गांव हुआ करता है।जहां के लोग हर तरह के हैं।अच्छा बुरा,ईमानदार बेईमान,चोर बदमाश सब मिले जुले हैं।लेकिन जमींदार शशि गांगुली के अखंड प्रताप के कारण वहां न अपराध कर्म हो रहे थे न किसी वजह से शांतिभंग हो रही थी।


शशि गांगुली का एक हाथ मंत्रसिद्ध था।


उस हाथ की महिमा अपरंपार।दुष्टों का दमन और शिष्टों का पोषण ही उस जादू हाथ का असल काम था।लेकिन बूढ़े हो जाने की वजह से बिस्तर पर पड़ जाने की वजह से कुंजपुर के हालात बदल गये।


दुनियाभर के चोर डकैत,गिररहकट,पाकेटमार,गुंडा बदमाश झुंड के झुंड कुंजपुर में दाखिल हो गये और हरकत में आ गये…


बांग्ला में अत्यंत लोकप्रिय कथाकार शीर्षेंदु बंदोपाध्याय की लेखनी से हर वक्त इसी तरह ही भूत प्रेत जादू करिश्मा का माहौल बनता है।


अपनी अजब गजब शैली में कुंजपुकुर की कथा में उन्होंने आधा भौतिक आधी विज्ञान कथाके मार्फत एक अनन्य साधारण जगत सिरजा है,जो उनकी रचना शैली की विशिष्टता और उनकी अपार लोकप्रियता की पृष्ठभूमि भी है।


शीर्षेंदु ने इस कथा में एक से बढकर एक विचित्र किस्म के पात्र खड़े कर दिये हैं।चोर दारोगा किडनैपर धंदाबाज पात्रों के साथ साथ भालो मानुष पात्रों की भी भरमार है इस कथा में।जैसे की उनकी कथा में अमूमन हुआ करता है।


इसी कथा को केंद्रित कुंजपुर नाटक में भी रहस्य रोमांच अलौकिकता एकाकार हैं।


इसीके मध्य बारीकी से इस नाटक में ग्रामीण जीवन की पृष्ठभूमि में आज के समय के भ्रष्ट हो रहे समाज वास्तव को पेश किया गया है।


मूलतः भौतिक विज्ञानकथा के इस अद्भुत सीरिज की कथाओं में सामाजिक संदेश भी गूंजता है।इसी वजह से बांग्ला के नाटकप्रेमी लोगों के लिए इस कथा का मचन किया जा रहा है।

सांप्रदायिकता की आग में नौचंदी मेला भी झुलसा


दस दिन पूर्व मेला समाप्ति की घोषणा किए जाने से मेला दुकानदार अपने को लुटा हुआ महसूस कर रहे हैं। यादव भोजनालय के जानकी प्रसाद तिवारी ने बताया कि अभी दुकानों के किराए की भरपाई नहीं हुई है, लेबर का खर्च अभी बकाया है। उन्होंने कहा कि मुश्किल से एक सप्ताह से मेले में रौनक आई थी कि बवाल के चलते मेला बंद किए जाने के आदेश से दुकानदार बर्बादी की कगार पर आ गए हैं। कई दशकों से सुरमा की दुकान लगा रहे रहीस ने बताया कि मेले में दुकानदार दूर-दूर से आते हैं। नगर निगम ने इस बार किराया बीस प्रतिशत बढ़ा कर पहले ही मोटी रकम दुकानदारों से वसूल ली है। जबकि मेला दस दिन भी ठीक से नहीं चला है। बुलंदशहर के मेले से नौचंदी में खिलौने की दुकान लगाने वाले अशोक कुमार ने बताया कि इस बार मेले में साफ सफाई और अन्य व्यवस्थाओं के नाम पर नगर निगम ने शून्य सुविधाएं दी हैं। एक सप्ताह भी मेले में बिक्री नहीं हुई है। बुलंदशहर से मेला नौचंदी में दुकान लगाने का खर्च अभी नहीं निकला है। बिजली का बिल और अन्य खर्चे अभी देने हैं। उन्होंने कहा कि इस तरह दुकानदार मेले में आना ही बंद कर देंगे। दुकानदारों का कहना था कि उन्होंने एक माह का किराया दिया है या तो पूरी सुरक्षा देते हुए दुकानें लगाने की अनुमति दी जाए या नुकसान की भरपाई की जाए।

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गुलजार होते-होते वीरान हुआ मेला

- शाम को मेला घूमने आए लोगों को पुलिस ने बाहर निकाला

मेरठ : सैकड़ों साल की सांस्कृतिक विरासत संजोए मेला नौचंदी अपने बुरे दौर से गुजर रहा है। शनिवार को हुए बवाल के बाद रविवार को मेले में शाम को भीड़ जुटनी शुरू हुई थी लेकिन प्रशासन ने लोगों को हटाते हुए एक बार फिर मेला बंद करने की घोषणा कर दुकानदारों के अरमानों पर पानी फेर दिया।

रविवार शाम चार बजे तक दुकानदारों को यही सूचना दी गई थी कि मेला लगेगा। आशंकित दुकानदार भी खुशी से माल सजाने में लगे थे। शाम साढ़े पांच बजे तक मेले में काफी लोग आ चुके थे। मेले में लाइटें भी जल चुकी थी। लेकिन तभी मेला मजिस्ट्रेट की ओर से घोषणा की गई कि तीरगरान में हुए बवाल के चलते एहतियात के तौर पर मेला बंद रहेगा। पुलिस ने मेले में आए लोगों को बाहर निकालना शुरू कर दिया। मेला परिसर में पुलिस अधिकारियों ने दौरा करते हुए दुकानदारों को दुकानें बंद करने की हिदायत दी। दुकानदारों ने भी वापस दुकानों को तिरपाल और पॉलीथिन से ढक दिया। थोड़ी देर में मेला क्षेत्र में सन्नाटा छा गया। दुकानों की बिजली काट दी गई। पूरे क्षेत्र में अंधेरा छा गया केवल स्ट्रीट लाइट ही जलती नजर आ रही थी।

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मोहसिन—अच्छा, अबकी जरूर देंगे हामिद, अल्लाह कसम, ले जा।

हामिद—रखे रहो। क्या मेरे पास पैसे नहीं है?

सम्मी—तीन ही पैसे तो हैं। तीन पैसे में क्या-क्या लोगे?

महमूद—हमसे गुलाबजामुन ले जाओ हामिद। मोहसिन बदमाश है।

हामिद—मिठाई कौन बड़ी नेमत है। किताब में इसकी कितनी बुराइयाँ लिखी हैं।

मोहसिन—लेकिन दिन मे कह रहे होगे कि मिले तो खा लें। अपने पैसे क्यों नहीं निकालते?

महमूद—सब समझते हैं, इसकी चालाकी। जब हमारे सारे पैसे खर्च हो जाएँगे, तो हमें ललचा-ललचाकर खाएगा।

मिठाइयों के बाद कुछ दूकानें लोहे की चीजों की, कुछ गिलट और कुछ नकली गहनों की। लड़कों के लिए यहाँ कोई आकर्षण न था। वे सब आगे बढ़ जाते हैं, हामिद लोहे की दुकान पर रुक जात हे। कई चिमटे रखे हुए थे। उसे ख्याल आया, दादी के पास चिमटा नहीं है। तवे से रोटियाँ उतारती हैं, तो हाथ जल जाता है। अगर वह चिमटा ले जाकर दादी को दे दे तो वह कितना प्रसन्न होगी! फिर उनकी ऊँगलियाँ कभी न जलेंगी। घर में एक काम की चीज हो जाएगी। खिलौने से क्या फायदा? व्यर्थ में पैसे खराब होते हैं। जरा देर ही तो खुशी होती है। फिर तो खिलौने को कोई आँख उठाकर नहीं देखता। यह तो घर पहुँचते-पहुँचते टूट-फूट बराबर हो जाएँगे। चिमटा कितने काम की चीज है। रोटियाँ तवे से उतार लो, चूल्हे में सेंक लो। कोई आग माँगने आये तो चटपट चूल्हे से आग निकालकर उसे दे दो। अम्मा बेचारी को कहाँ फुरसत है कि बाजार आएँ और इतने पैसे ही कहाँ मिलते हैं? रोज हाथ जला लेती हैं।


हामिद के साथी आगे बढ़ गए हैं। सबील पर सबके सब शर्बत पी रहे हैं। देखो, सब कितने लालची हैं। इतनी मिठाइयाँ लीं, मुझे किसी ने एक भी न दी। उस पर कहते है, मेरे साथ खेलो। मेरा यह काम करो। अब अगर किसी ने कोई काम करने को कहा, तो पूछूँगा। खाएँ मिठाइयाँ, आप मुँह सड़ेगा, फोड़े-फुन्सियाँ निकलेंगी, आप ही जबान चटोरी हो जाएगी। तब घर से पैसे चुराएँगे और मार खाएँगे। किताब में झूठी बातें थोड़े ही लिखी हैं। मेरी जबान क्यों खराब होगी? अम्माँ चिमटा देखते ही दौड़कर मेरे हाथ से ले लेंगी और कहैंगी—मेरा बच्चा अम्मॉँ के लिए चिमटा लाया है। कितना अच्छा लड़का है। इन लोगों के खिलौने पर कौन इन्हें दुआएँ देगा? बड़ों का दुआएँ सीधे अल्लाह के दरबार में पहुँचती हैं, और तुरंत सुनी जाती हैं। में भी इनसे मिजाज क्यों सहूँ? मैं गरीब सही, किसी से कुछ माँगने तो नहीं जाते। आखिर अब्बाजान कभी न कभी आएँगे। अम्मा भी आएँगी ही। फिर इन लोगों से पूछूँगा, कितने खिलौने लोगे? एक-एक को टोकरियों खिलौने दूँ और दिखा हूँ कि दोस्तों के साथ इस तरह का सलूक किया जात है। यह नहीं कि एक पैसे की रेवड़ियाँ लीं, तो चिढ़ा-चिढ़ाकर खाने लगे। सबके सब हँसेंगे कि हामिद ने चिमटा लिया है। हँसें! मेरी बला से! उसने दुकानदार से पूछा—यह चिमटा कितने का है?

दुकानदार ने उसकी ओर देखा और कोई आदमी साथ न देखकर कहा—तुम्हारे काम का नहीं है जी!


'बिकाऊ है कि नहीं?'

'बिकाऊ क्यों नहीं है? और यहाँ क्यों लाद लाए हैं?'

तो बताते क्यों नहीं, कै पैसे का है?'

'छ: पैसे लगेंगे।'

हामिद का दिल बैठ गया।

'ठीक-ठीक पाँच पैसे लगेंगे, लेना हो लो, नहीं चलते बनो।'

हामिद ने कलेजा मजबूत करके कहा तीन पैसे लोगे?

यह कहता हुआ व आगे बढ़ गया कि दुकानदार की घुड़कियाँ न सुने। लेकिन दुकानदार ने घुड़कियाँ नहीं दी। बुलाकर चिमटा दे दिया। हामिद ने उसे इस तरह कंधे पर रखा, मानों बंदूक है और शान से अकड़ता हुआ संगियों के पास आया। जरा सुनें, सबके सब क्या-क्या आलोचनाएँ करते हैं!


मोहसिन ने हँसकर कहा—यह चिमटा क्यों लाया पगले, इसे क्या करेगा?


हामिद ने चिमटे को जमीन पर पटकर कहा—जरा अपना भिश्ती जमीन पर गिरा दो। सारी पसलियाँ चूर-चूर हो जाएँ बचा की।


महमूद बोला—तो यह चिमटा कोई खिलौना है?


हामिद—खिलौना क्यों नही है! अभी कंधे पर रखा, बंदूक हो गई। हाथ में ले लिया, फकीरों का चिमटा हो गया। चाहूँ तो इससे मजीरे का काम ले सकता हूँ। एक चिमटा जमा दूँ, तो तुम लोगों के सारे खिलौनों की जान निकल जाए। तुम्हारे खिलौने कितना ही जोर लगाएँ, मेरे चिमटे का बाल भी बाँका नही कर सकते मेरा बहादुर शेर है चिमटा।


सम्मी ने खंजरी ली थी। प्रभावित होकर बोला—मेरी खंजरी से बदलोगे? दो आने की है।


हामिद ने खंजरी की ओर उपेक्षा से देखा-मेरा चिमटा चाहे तो तुम्हारी खंजरी का पेट फाड़ डाले। बस, एक चमड़े की झिल्ली लगा दी, ढब-ढब बोलने लगी। जरा-सा पानी लग जाए तो खत्म हो जाए। मेरा बहादुर चिमटा आग में, पानी में, आँधी में, तूफान में बराबर डटा खड़ा रहेगा।


चिमटे ने सभी को मोहित कर लिया, अब पैसे किसके पास धरे हैं? फिर मेले से दूर निकल आए हैं, नौ कब के बज गए, धूप तेज हो रही है। घर पहुंचने की जल्दी हो रही हे। बाप से जिद भी करें, तो चिमटा नहीं मिल सकता। हामिद है बड़ा चालाक। इसीलिए बदमाश ने अपने पैसे बचा रखे थे।


अब बालकों के दो दल हो गए हैं। मोहसिन, महमूद, सम्मी और नूरे एक तरफ हैं, हामिद अकेला दूसरी तरफ। शास्त्रार्थ हो रहा है। सम्मी तो विधर्मी हा गया! दूसरे पक्ष से जा मिला, लेकिन मोहसिन, महमूद और नूरे भी हामिद से एक-एक, दो-दो साल बड़े होने पर भी हामिद के आघातों से आतंकित हो उठे हैं। उसके पास न्याय का बल है और नीति की शक्ति। एक ओर मिट्टी है, दूसरी ओर लोहा, जो इस वक्त अपने को फौलाद कह रहा है। वह अजेय है, घातक है। अगर कोई शेर आ जाए मियाँ भिश्ती के छक्के छूट जाएँ, जो मियाँ सिपाही मिट्टी की बंदूक छोड़कर भागे, वकील साहब की नानी मर जाए, चोगे में मुंह छिपाकर जमीन पर लेट जाएँ। मगर यह चिमटा, यह बहादुर, यह रूस्तमे-हिंद लपककर शेर की गरदन पर सवार हो जाएगा और उसकी आँखें निकाल लेगा।


मोहसिन ने एड़ी—चोटी का जोर लगाकर कहा—अच्छा, पानी तो नहीं भर सकता?


हामिद ने चिमटे को सीधा खड़ा करके कहा—भिश्ती को एक डांट बताएगा, तो दौड़ा हुआ पानी लाकर उसके द्वार पर छिड़कने लगेगा।


मोहसिन परास्त हो गया, पर महमूद ने कुमुक पहुँचाई—अगर बचा पकड़ जाएँ तो अदालत में बँधे-बँधे फिरेंगे। तब तो वकील साहब के पैरों पड़ेंगे।


हामिद इस प्रबल तर्क का जवाब न दे सका। उसने पूछा—हमें पकड़ने कौन आएगा?


नूरे ने अकड़कर कहा—यह सिपाही बंदूकवाला।


हामिद ने मुँह चिढ़ाकर कहा—यह बेचारे हम बहादुर रूस्तमे—हिंद को पकड़ेंगे! अच्छा लाओ, अभी जरा कुश्ती हो जाए। इसकी सूरत देखकर दूर से भागेंगे। पकड़ेंगे क्या बेचारे!


मोहसिन को एक नई चोट सूझ गई—तुम्हारे चिमटे का मुँह रोज आग में जलेगा।


उसने समझा था कि हामिद लाजवाब हो जाएगा, लेकिन यह बात न हुई। हामिद ने तुरंत जवाब दिया—आग में बहादुर ही कूदते हैं जनाब, तुम्हारे यह वकील, सिपाही और भिश्ती लौंडियों की तरह घर में घुस जाएँगे। आग में वह काम है, जो यह रूस्तमे-हिन्द ही कर सकता है।


महमूद ने एक जोर लगाया—वकील साहब कुरसी—मेज़ पर बैठेंगे, तुम्हारा चिमटा तो बाबरचीखाने में जमीन पर पड़ा रहने के सिवा और क्या कर सकता है?


इस तर्क ने सम्मी औरनूरे को भी सजी कर दिया! कितने ठिकाने की बात कही हे पट्ठे ने! चिमटा बावरचीखाने में पड़ा रहने के सिवा और क्या कर सकता है?


हामिद को कोई फड़कता हुआ जवाब न सूझा, तो उसने धांधली शुरू की—मेरा चिमटा बावरचीखाने में नही रहेगा। वकील साहब कुर्सी पर बैठेंगे, तो जाकर उन्हें जमीन पर पटक देगा और उनका कानून उनके पेट में डाल देगा।


बात कुछ बनी नही। खाल गाली-गलौज थी, लेकिन कानून को पेट में डालनेवाली बात छा गई। ऐसी छा गई कि तीनों सूरमा मुँह ताकते रह गए मानो कोई धेलचा कानकौआ किसी गंडेवाले कनकौए को काट गया हो। कानून मुँह से बाहर निकलने वाली चीज हे। उसको पेट के अन्दर डाल दिया जाना बेतुकी-सी बात होने पर भी कुछ नयापन रखती हे। हामिद ने मैदान मार लिया। उसका चिमटा रूस्तमे-हिन्द हे। अब इसमें मोहसिन, महमूद नूरे, सम्मी किसी को भी आपत्ति नहीं हो सकती।


विजेता को हारनेवालों से जो सत्कार मिलना स्वाभाविक है, वह हामिद को भी मिला। औरों ने तीन-तीन, चार-चार आने पैसे खर्च किए, पर कोई काम की चीज न ले सके। हामिद ने तीन पैसे में रंग जमा लिया। सच ही तो है, खिलौनों का क्या भरोसा? टूट-फूट जाएँगी। हामिद का चिमटा तो बना रहेगा बरसों?


संधि की शर्ते तय होने लगीं। मोहसिन ने कहा—जरा अपना चिमटा दो, हम भी देखें। तुम हमार भिश्ती लेकर देखो।


महमूद और नूरे ने भी अपने-अपने खिलौने पेश किए।


हामिद को इन शर्तों को मानने में कोई आपत्ति न थी। चिमटा बारी-बारी से सबके हाथ में गया, और उनके खिलौने बारी-बारी से हामिद के हाथ में आए। कितने खूबसूरत खिलौने हैं।


हामिद ने हारने वालों के आँसू पोंछे—मैं तुम्हें चिढ़ा रहा था, सच! यह चिमटा भला, इन खिलौनों की क्या बराबर करेगा, मालूम होता है, अब बोले, अब बोले।


लेकिन मोहसिन की पार्टी को इस दिलासे से संतोष नहीं होता। चिमटे का सिक्का खूब बैठ गया है। चिपका हुआ टिकट अब पानी से नहीं छूट रहा है।

मोहसिन—लेकिन इन खिलौनों के लिए कोई हमें दुआ तो न देगा?

महमूद—दुआ को लिए फिरते हो। उल्टे मार न पड़े। अम्मां जरूर कहैंगी कि मेले में यही मिट्टी के खिलौने मिले?


हामिद को स्वीकार करना पड़ा कि खिलौनों को देखकर किसी की मां इतनी खुश न होगी, जितनी दादी चिमटे को देखकर होंगी। तीन पैसों ही में तो उसे सब-कुछ करना था ओर उन पैसों के इस रुपयों पर पछतावे की बिल्कुल जरूरत न थी। फिर अब तो चिमटा रूस्तमे—हिन्द हे और सभी खिलौनों का बादशाह।


रास्ते में महमूद को भूख लगी। उसके बाप ने केले खाने को दिए। महमूद ने केवल हामिद को साझी बनाया। उसके अन्य मित्र मुँह ताकते रह गए। यह उस चिमटे का प्रसाद था।


ग्यारह बजे गाँव में हलचल मच गई। मेलेवाले आ गए। मोहसिन की छोटी बहन ने दौड़कर भिश्ती उसके हाथ से छीन लिया और मारे खुशी के जा उछली, तो मियाँ भिश्ती नीचे आ रहे और सुरलोक सिधारे। इस पर भाई-बहन में मार-पीट हुई। दोनों खुब रोए। उसकी अम्माँ यह शोर सुनकर बिगड़ीं और दोनों को ऊपर से दो-दो चाँटे और लगाए।


मियाँ नूरे के वकील का अंत उनके प्रतिष्ठानुकूल इससे ज्यादा गौरवमय हुआ। वकील जमीन पर या ताक पर हो नहीं बैठ सकता। उसकी मर्यादा का विचार तो करना ही होगा। दीवार में खूटियाँ गाड़ी गई। उन पर लकड़ी का एक पटरा रखा गया। पटरे पर कागज का कालीन बिछाया गया। वकील साहब राजा भोज की भाँति सिंहासन पर विराजे। नूरे ने उन्हें पंखा झलना शुरू किया। अदालतों में ख़स की टट्टियाँ और बिजली के पंखे रहते हैं। क्या यहाँ मामूली पंखा भी न हो! कानून की गर्मी दिमाग पर चढ़ जाएगी कि नहीं? बाँस का पंखा आया और नूरे हवा करने लगे मालूम नहीं, पंखे की हवा से या पंखे की चोट से वकील साहब स्वर्गलोक से मृत्युलोक में आ रहे और उनका माटी का चोला माटी में मिल गया! फिर बड़े जोर-शोर से मातम हुआ और वकील साहब की अस्थि घूरे पर डाल दी गई।


अब रहा महमूद का सिपाही। उसे चटपट गाँव का पहरा देने का चार्ज मिल गया, लेकिन पुलिस का सिपाही कोई साधारण व्यक्ति तो नहीं, जो अपने पैरों चले वह पालकी पर चलेगा। एक टोकरी आई, उसमें कुछ लाल रंग के फटे-पुराने चिथड़े बिछाए गए जिसमें सिपाही साहब आराम से लेटे। नूरे ने यह टोकरी उठाई और अपने द्वार का चक्कर लगाने लगे। उनके दोनों छोटे भाई सिपाही की तरह 'छोनेवाले, जागते लहो' पुकारते चलते हैं। मगर रात तो अँधेरी होनी चाहिए, नूरे को ठोकर लग जाती है। टोकरी उसके हाथ से छूटकर गिर पड़ती है और मियाँ सिपाही अपनी बंदूक लिये जमीन पर आ जाते हैं और उनकी एक टाँग में विकार आ जाता है।


महमूद को आज ज्ञात हुआ कि वह अच्छा डाक्टर है। उसको ऐसा मरहम मिला गया है जिससे वह टूटी टाँग को आनन-फानन जोड़ सकता हे। केवल गूलर का दूध चाहिए। गूलर का दूध आता है। टाँग जवाब दे देती है। शल्य-क्रिया असफल हुई, तब उसकी दूसरी टाँग भी तोड़ दी जाती है। अब कम-से-कम एक जगह आराम से बैठ तो सकता है। एक टाँग से तो न चल सकता था, न बैठ सकता था। अब वह सिपाही संन्यासी हो गया है। अपनी जगह पर बैठा-बैठा पहरा देता है। कभी-कभी देवता भी बन जाता है। उसके सिर का झालरदार साफ़ा खुरच दिया गया है। अब उसका जितना रूपांतर चाहो, कर सकते हो। कभी-कभी तो उससे बाट का काम भी लिया जाता है।


अब मियाँ हामिद का हाल सुनिए। अमीना उसकी आवाज सुनते ही दौड़ी और उसे गोद में उठाकर प्यार करने लगी। सहसा उसके हाथ में चिमटा देखकर वह चौंकी।


'यह चिमटा कहाँ था?'

'मैंने मोल लिया है।'

'कै पैसे में?

'तीन पैसे दिये।'


अमीना ने छाती पीट ली। यह कैसा बेसमझ लड़का है कि दोपहर हुआ, कुछ खाया न पिया। लाया क्या, चिमटा! 'सारे मेले में तुझे और कोई चीज न मिली, जो यह लोहे का चिमटा उठा लाया?'


हामिद ने अपराधी-भाव से कहा—तुम्हारी उँगलियाँ तवे से जल जाती थीं, इसलिए मैंने इसे लिया।


बुढ़िया का क्रोध तुरन्त स्नेह में बदल गया, और स्नेह भी वह नहीं, जो प्रगल्भ होता हे और अपनी सारी कसक शब्दों में बिखेर देता है। यह मूक स्नेह था, खूब ठोस, रस और स्वाद से भरा हुआ। बच्चे में कितना त्याग, कितना सद्भाव और कितना विवेक है! दूसरों को खिलौने लेते और मिठाई खाते देखकर इसका मन कितना ललचाया होगा? इतना जब्त इससे हुआ कैसे? वहाँ भी इसे अपनी बुढ़िया दादी की याद बनी रही। अमीना का मन गदगद हो गया।


और अब एक बड़ी विचित्र बात हुई। हामिद के इस चिमटे से भी विचित्र। बच्चे हामिद ने बूढ़े हामिद का पार्ट खेला था। बुढ़िया अमीना बालिका अमीना बन गई। वह रोने लगी। दामन फैलाकर हामिद को दुआएँ देती जाती थी और आँसू की बड़ी-बड़ी बूँदें गिराती जाती थी। हामिद इसका रहस्य क्या समझता!

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http://www.abhivyakti-hindi.org/gauravgatha/2008/eidgaah/eid3.htm



महाराजा रुद्र ने बनाया ऐतिहासिक अटरिया देवी मंदिर

ऐतिहासिक अटरिया देवी मंदिर में श्रद्धालुओं की संख्या हर वर्ष बढ़ती ही जा रही है


(जहांगीर राजू रुद्रपुर)



तराई के लोगों की आस्था का प्रतीक बन चुके ऐतिहासिक अटरिया देवी मंदिर की स्थापना चंद राजाओं के वंशज महाराजा रुद्र ने की थी। जिसके बाद से ही इस मंदिर में नवरात्र पर मेला लगता है, जो 17 दिनों तक चलता है। मंदिर में लगने वाले मेले में हर वर्ष दो लाख से भी अधिक श्रद्धालु पहुंचते हैं।

उल्लेखनीय है कि रुद्रपुर स्थित अटरिया देवी का मंदिर ऐतिहासिक होने के साथ ही मां दुर्गा के मानने वालों के लिए आस्था के द्वार के रुप में जाना जाता है। इतिहासकार शक्ति प्रसाद सकलानी बताते हैं कि अग्रसेन अस्पताल के पास 16वीं सदी में महाराजा रुद्र का किला हुआ करता था। जहां से वह आसपास के क्षेत्रों में शिकार करने जाया करते थे। किंवदंति हैै कि एक दिन महाराजा रुद्र शिकार करने के लिए आसपास के जंगल में निकल गए थे। जंगल में बरगद के पेड़ के पास उनके रथ का पहिया फंस गया था। काफी देर तक रथ वहां से नहीं निकला को महाराजा को पेड़ के नीचे नींद आ गयी।

इस दौरान उन्हें सपना आया कि  बरगद के पेड़ के पास मां दुर्गा की मूर्ति कि वह प्राण प्रतिष्ठा कर मंदिर का निर्माण कराएं। जिसके बाद महाराजा रुद्र ने बरगद के पेड़ के पास दुर्गा की मूर्ति की स्थापना कर मंदिर का निर्माण कवाया। जिसके बाद से ही मंदिर में नवरात्र पर हर वर्ष 17 दिन तक मेला लगता है। वर्तमान में मंदिर में दुर्गा के साथ ही काली, हनुमान व भैरव की मूर्ति की स्थापित है। इस मंदिर में हर वर्ष तराई व उत्तर प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से दो लाख से भी अधिक श्रद्धालु पहुंचते हैं। मंदिर परिसर में 17 दिन तक चलने वाले मेले में विभिन्न क्षेत्रों से आने वाले व्यवसायी हर वर्ष लाखों रुपये का कारोबार करते हैं। अपनी प्रसिद्धि के चलते अटरिया देवी मंदिर में लगने वाले मेले का स्वरुप हर वर्ष भव्य होता जा रहा है। मेला प्रबंधक अरविंद शर्मा व पुजारी महंत पुष्पा देवी ने बताया कि मंदिर में पूजा अर्चना करने वाले हर व्यक्ति की मनोकामना पूरी होती है। उन्होंने बताया कि मंदिर परिसर में मौजूद प्राचीन बरगद के पेड़ पर धागा बांधकर महिलाएं जो भी मनोती मांगती हैं वह अवश्य पूरी होती है।


इस वर्ष मंदिर में जुटे लाखों श्रद्धालु


रुद्रपुर। मां अटरिया देवी मंदिर में नवरात्र पर शुरु हुए इस मेले में इस वर्ष भी दो लाख लाख से अधिक श्रद्धालु पहुंचे। इस वर्ष यह मेला 30 अप्रैल तक चला। मंदिर की पुजारी महंत पुष्पा देवी ने बताया कि नवरात्र पर मंदिर में पूजा अर्चना करने का खास महत्व है। इस दिन मंदिर में पूजा अर्जना कर जो भी मनोकामना मांगी जाती है, वह अवश्य पूरी होती है।

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गौरतलब है कि सोंगबीजीत इंगति काथर की अगुवाई वाले एनडीएफबी के वार्ता-विरोधी धड़े ने पिछले चार दिनों में असम के तीन जिलों में करीब 75 आदिवासियों की हत्या कर दी. एनडीएफबी का उदय 1986 में गठित उग्रवादी संगठन बोडो सिक्यूरिटी फोर्स से हुआ. संगठन ने 1994 में अपना नाम बदलकर एनडीएफबी कर लिया. एनडीएफबी पर पहली बार 23 नवंबर 2002 को प्रतिबंध लगा था. साल 2008 में एनडीएफबी में बड़ी दरार उस वक्त पड़ी, जब संस्थापक अध्यक्ष रंजन दैमरी ने सिलसिलेवार बम धमाके कराए. इसकी वजह से संगठन के सचिव गोविंद बासुमतारी ने एनडीएफबी (प्रोग्रेसिव) नाम का धड़ा बना लिया. सोंगबीजीत ने 2009 में एनडीएफबी ...

परिस्थितियों की समीक्षा करने असम जाएंगे सेना प्रमुख

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असम के हिंसा प्रभावित इलाके में उग्रवादियों के खिलाफ सेना के ऑपरेशन का आज जायजा लेंगे सेना प्रमुख

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नई दिल्ली : सेना प्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग आज असम में स्थिति का जायजा लेंगे जहां एनडीएफबी (एस) उग्रवादियों ने 80 से अधिक आदिवासियों का कत्ले आम किया था। जनरल सुहाग सबसे पहले गुवाहाटी जाएंगे और फिर वे सोनितपुर और कोकराझार जाएंगे जहां नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (सोंगबिजीत गुट) के उग्रवादियों ने मंगलवार को आदिवासियों पर हमला किया था। वहां अधिकारी जनरल सुहाग को जमीनी हालात और उग्रवादियों के खिलाफ सेना द्वारा चलाए गए अभियान की स्थिति से अवगत कराएंगे। एनडीएफबी (एस) के उग्रवादियों के हमले और इस पर आदिवासियों की जवाबी हिंसा तथा पुलिस की ...

असम: क्या ज़मीन है बोडो विवाद की जड़?

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सेना प्रमुख आज करेंगे असम दौरा, उग्रवादियों के खिलाफ सेना के ऑपरेशन का लेंगे जायजा

एनडीटीवी खबर - ‎6 minutes ago‎
नई दिल्ली: असम में आदिवासियों पर हमला करने वाले बोडो उग्रवादियों के खिलाफ सेना अपने ऑपरेशन को तेज करने जा रही है। उग्रवादियों के खिलाफ सेना के ऑपरेशन का जायजा लेने सेना प्रमुख जनरल दलबीर सिंह आज असम जाएंगे। शुक्रवार को इसी सिलसिले में सेना प्रमुख ने गृहमंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात की थी। सूत्रों के मुताबिक, गृहमंत्री ने सेना प्रमुख से साफ कर दिया कि केंद्र बोडो उग्रवादियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई चाहता है। गौरतलब है कि असम की हिंसा में 83 लोगों की मौत हुई है। आतंकी हमलों के बाद से पुलिस ने कोकराझार और उडालगुड़ी में अनिश्चित काल के लिए कर्फ्यू लगा ...

असम: 'महिलाओं, बच्चों को भी नहीं बख़्शा'

बीबीसी हिन्दी - ‎Dec 24, 2014‎
असम में बोडो अलगाववादियों के ग़ैर-बोडो जनजातियों पर हमले, विरोध प्रदर्शन पुलिस की फ़ायरिंग और जनजातियों के बोडो गांव पर जवाबी हमले में 67 लोग मारे गए हैं. असम पुलिस के अनुसार अलग बोडोलैंड की मांग करने वाले एनडीएफ़बी विद्रोहियों ने मंगलवार को चरमपंथियों सोनितपुर और कोकराझार ज़िले में हमले किए और 52 आदिवासियों को मार दिया. आदिवासियों ने बुधवार सुबह इन हमलों के ख़िलाफ़ सोनितपुर में प्रदर्शन किया. भीड़ को काबू करने के लिए पुलिस ने फ़ायरिंग की जिसमें तीन आदिवासी मारे गए. पुलिस ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि आदिवासियों ने भी कुछ बोडो गांव पर जवाबी हमला ...

असम के हिंसा प्रभावित इलाकों का सेना प्रमुख आज करेंगे दौरा

Oneindia Hindi - ‎5 hours ago‎
गुवाहाटी। असम में जारी भीषण हिंसा के बीच मारे गये तकरीबन 80 लोगों के परिजन सहित हजारों लोग अपनी जान बचाने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं। वहीं केंद्र सरकार ने बोडो उग्रवादियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। गृहमंत्री ने सेना से मिशन ऑलआउट शुरु करने को कहा है। इसी बीच हिंसा की स्थिति का जायजा लेने आज सेना प्रमुख दलबीर सिंह असम का दौरा करेंगे। असम के हिंसा प्रभावित इलाकों का सेना प्रमुख आज करेंगे दौरा. उग्रवादियों के आतंक के चलते यहां हजारों लोल पलायन को मजबूर हैं। कोकराझाड़ के पास पाकरीगुड़ी गांव में सात साल के मासूम कालू टूडू को उग्रवादियों ने गोलियों से ...

असम के दौरे पर सेनाध्‍यक्ष दलबीर सुहाग

दैनिक जागरण - ‎2 hours ago‎
सेनाध्यक्ष और गृहमंत्री की मुलाकात के तत्काल बाद सेना की अगुवाई में 11 हजार से ज्यादा जवानों ने सघन कार्रवाई शुरू कर दी। कार्रवाई में सेना के साथ अद्र्धसैनिक बलों, असम राइफल्स और स्थानीय पुलिस के जवान भी शामिल हैं। सुरक्षा बलों के निशाने पर सबसे पहले वे 74 बोडो उग्रवादी हैं, जिन्होंने आदिवासियों की हत्या की थी। इस दौरान उग्रवादियों की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल किया जा रहा है, ताकि वे म्यांमार या बांग्लादेश न भाग सकें। सूचना मिली है कि ये उग्रवादी अरुणाचल प्रदेश की पहाडिय़ों में छिपे हुए हैं। बैठक के बाद सेनाध्यक्ष ने कहा कि असम ...

गृह मंत्री ने कहा-मुझे नतीजे चाहिए, सेना ने असम में ऑपरेशन किया तेज

Patrika - ‎5 hours ago‎
नई दिल्ली। गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने शुक्रवार को आर्मी चीफ जनरल दलबीर सुहाग से असम में बोडो उग्रवादियों के हमले में मारे गए 80 आदीवासियों की घटना को लेकर मुलाकात की। राजनाथ सिंह ने आर्मी चीफ से सुरक्षा स्थिती पर समीक्षा करने को कहा है। जनरल सुहाग ने गृह मंत्री के साथ हुई बैठक के बाद कहा, "हम असम में अपने ऑपरेशन को तेज करने जा रहे हैं। इससे ज्यादा मैं कोई और जानकारी नहीं दे सकता।" इसी दौरान राजनाथ सिंह ने पीडितो के परिवारों से मुलाकात की और उन्हें सख्त कार्रवाई करने का आश्वासन दिया। साथ ही सिंह ने इस घटना को नरसंहार बताते हुए कहा कि आतंक के खिलाफ एक समयबद्ध ...

असम: सेना अध्यक्ष की राजनाथ से मुलाकात

बीबीसी हिन्दी - ‎21 hours ago‎
असम में हुई हिंसा के बाद गृह मंत्री राजनाथ सिंह और सेना अध्यक्ष से मुलाक़ात की है. असम में ग़ैर-बोडो जनजातियों पर हुए हमले और जनजातियों के जवाबी हमले में अब तक 76 लोग मारे जा चुके हैं. गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को प्रभावित इलाक़ों का दौरा किया था. उन्होंने कहा, "सरकार आतंकवादी गुटों से बात नहीं करेगी. सिर्फ़ कदम उठाए जाएँगे. जल्द ही समयबद्ध कार्रवाई होगी." गोहाटी से स्थानीय पत्रकार विनोद रंगानिया ने बताया, "अभी इलाकों में काफी तनाव है. बीती रात कम से कम चार जगहों पर साप्ताहिक बाज़ारों को आग लगा दी गई है. जब तक सुरक्षा बल सभी संवेदनशील इलाकों में नहीं ...

असम में सेना का 'ऑपरेशन ऑल आउट'

आज तक - ‎7 hours ago‎
सेना की अगुवाई में करीब 9 हजार जवान असम के हिंसाग्रस्त सोनितपुर जिले में इस काम के लिए पहुंच चुके हैं. इस ऑपरेशन की शुरुआत फुलबरी से की गई है. सुरक्षा बलों के निशाने पर 74 बोडो उग्रवादी (NDFB) हैं जिन्होंने आदिवासियों की हत्या की थी. इस ऑपरेशन की जानकारी म्यांमार और चीन को भी दी गई है. गौरतलब है कि 23 दिसंबर को बोडो उग्रवादियों ने असम के सुदूर गांवों में बेकसूर आदिवासियों पर हमले करके 75 से ज्यादा लोगों की जान ले ली थी. मरने वालों में महिलाओं और बच्चों की संख्या ज्यादा थी. सेना ने ऑपरेशन में हेलिकॉप्टर भी शामिल किए हैं, ताकि उग्रवादी म्यांमार और बांग्लादेश ...

असम में बोडो उग्रवादियों के खिलाफ ऑपरेशन ऑल आउट शुरू

ABP News - ‎Dec 26, 2014‎
नई दिल्ली/गुवाहाटी: असम में हुए नरसंहार को लेकर केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह की सेनाध्यक्ष दलबीर सिंह सुहाग से मुलाकात हुई. राज्य में बोडो उग्रवादियों ने एक नरसंहार में 70 से ज्यादा लोगों को मौत के घाट उतार दिया. गृह मंत्री से मुलाकात के बाद सेनाध्यक्ष ने कहा, "असम में उग्रवादियों के खिलाफ ऑपरेशन को और तेज किया जाएगा." असम में उग्रवादियों के पूरे सफाए के लिए ऑपरेशन ऑल आउट अभियान शुरू किया गया है. कोकराझार और सोनितपुर में उग्रवादियों ने नरसंहार को अंजाम दिया था. असम के कोकराझार और सोनितपुर में हुए नरसंहार के विरोध में नौगाव और डिब्रूगढ़ बंद रहे. असम में ...

असम हिंसा में मरने वालों की संख्या 83 हुई, एनआईए करेगी जांच, राजनैतिक दलों ने बुलाया बंद

एनडीटीवी खबर - ‎17 hours ago‎
गुवाहाटी: असम में हालात अब भी तनावपूर्ण हैं। यहां हिंसा में मरने वालों की संख्या बढ़कर 83 हो गई है। इसमें से सोनितपुर में 41 लोगों की मौत हुई है, जबकि कोकराझार में 42 की मौत हुई है। यह आंकड़ा पुलिस का है। पुलिस के मुताबिक, हिंसा के बाद से करीब 100 लोग अब भी लापता हैं। आतंकी हमलों के बाद से पुलिस ने कोकराझार और उडालगुड़ी में अनिश्चितकाल के लिए कर्फ्यू लगा दिया है जबकि बक्सा, चिरांग और सोनितपुर में रात के वक्त कर्फ्यू जारी है। इस मामले की जांच एनआईए करेगी। गुरुवार रात कोकराझार के बालिडांगा में आतंकियों ने कई घरों को आग के हवाले कर दिया है। इन घटनाओं के बाद से ...

असम में उग्रवादियों के खिलाफ सैन्य कार्रवाई होगी तेज

Rajasthan Patrika - ‎Dec 26, 2014‎
सेना असम में निर्दोष लोगों को निशाना बनाने वाले उग्रवादियों के खिलाफ अभियान में तेजी लाएगी। थल सेना प्रमुख जनरल दलबीर सुहाग ने शुक्रवार को गृह मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात के बाद यह बात कही। असम के सोनितपुर और कोकराझार जिलों में मंगलवार को नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी) उग्रवादियों के हमले में 70 से भी अधिक लोगों के मारे जाने के बाद मोदी सरकार ने कहा है कि वह इन उग्रवादियों से सख्ती से निपटेगी और इस तरह की हिंसा करने वालों से कोई बातचीत नहीं की जाएगी। उग्रवादी हमले के बाद असम में स्थिति का जायजा लेकर लौटे गृहमंत्री ने यहां जनरल सुहाग के ...

सेना प्रमुख ने असम के हालात की समीक्षा की

देशबन्धु - ‎1 hour ago‎
सेना प्रमुख ने असम के हालात पर शुक्रवार को केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह से नई दिल्ली में मुलाकात की थी। केंद्र सरकार राज्य में हालात पर नियंत्रण करने के लिए अतिरिक्त बलों की 50 कंपनियां पहले ही भेज चुका है, जिसमें सशस्त्र सीमा बल, इंडो-तिब्बत सीमा पुलिस, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल और सीमा सुरक्षा बल शामिल हैं। मंगलवार के नरसंहार के बाद से राज्य में यद्यपि हिंसा की कोई नई घटना नहीं घटी है, लेकिन जिलों से लोगों का पलायन लगातार जारी है। असम पुलिस के सूत्रों ने कहा है कि भूटान सीमा सील कर दी गई है और वहां छिपे पूर्वोत्तर के आतंकवादियों के खिलाफ जल्द ही एक अभियान ...

तस्वीरेंः असम में हिंसा के बाद का मंज़र

बीबीसी हिन्दी - ‎Dec 25, 2014‎
भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम में मंगलवार को बोडो चरमपंथियों के आदिवासियों पर हुए हमलों और जवाबी हिंसा में मरने वालों की कम से कम 76 हो चुकी है. पुलिस ने हमलों के लिए नेशनल डेमोक्रेटिक फ़्रंट ऑफ़ बोडोलैंड(एनडीएफबी) को ज़िम्मेदार ठहराया है. हिंसा के कारण बड़ी संख्या में लोगों का पलायन हुआ है. आम लोगों ने चर्च और स्कूल की इमारतों में पनाह ले रखी है. एनडीएफबी बोडो समुदाय के लिए असम में स्वतंत्र होमलैंड की मांग करता है. मंगलवार को हुए हमलों में ग़ैर-बोडो, खासकर आदिवासियों को निशाना बनाया गया. बताया जा रहा है कि असम के सोनितपुर और कोकराझार ज़िले में हए हमलों ...

सेना प्रमुख हिंसा प्रभावित असम के दौरे पर, लेंगे स्थिति का जायजा

Sahara Samay - ‎6 hours ago‎
सेना प्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग शनिवार को असम में स्थिति का जायजा लेने के लिए रवाना हो गए हैं. वह बोडो उग्रवावादियों के हमले के बाद पैदा हुए हालात का जायजा लेंगे, जहां उग्रवादियों ने 80 से अधिक आदिवासियों का कत्ले आम किया था. जनरल सुहाग सबसे पहले गुवाहाटी जाएंगे और फिर वे सोनितपुर और कोकराझार जाएंगे जहां नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (सोंगबिजीत गुट) के उग्रवादियों ने मंगलवार को आदिवासियों पर हमला किया था. वहां अधिकारी जनरल सुहाग को जमीनी हालात और उग्रवादियों के खिलाफ सेना द्वारा चलाए गए अभियान की स्थिति से अवगत कराएंगे. एनडीएफबी (एस) के ...

असम में हिंसा उग्रवादी नहीं, आतंकवादी कृत्य: राजनाथ

नवभारत टाइम्स - ‎Dec 25, 2014‎
गुवाहाटी केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को कहा कि असम में हुई हिंसा एक आतंकवादी कृत्य है और सरकार इसे कतई बर्दाश्त नहीं करेगी। गृहमंत्री ने कहा, 'असम में हुई हिंसा केवल उग्रवाद नहीं, बल्कि आतंकवाद का मामला है। हम इससे कठोरतापूर्वक निपटने जा रहे हैं।' उल्लेखनीय है कि मंगलवार को बोडो उग्रवादियों ने कोकराझार, सोणितपुर और चिरांग जिले में जनजाति समुदायों के निहत्थे लोगों पर गोलियां बरसाई थीं। राजनाथ ने सोणितपुर जिले के प्रभावित कुछ क्षेत्रों का दौरा किया। इस दौरान वे एक राहत शिविर गए और सुरक्षाकर्मियों के साथ बैठक की। इस बीच, मंगलवार शामअसम में हुई ...

खुफिया अलर्ट के बावजूद असम में आतंकी हमला

आईबीएन-7 - ‎Dec 25, 2014‎
असम। असम में जारी हिंसा में अब तक 75 से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। लेकिन अब इस पूरे मामले में बेहद चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है। सूत्रों के मुताबिक सरकार को पहले से जानकारी थी कि बोडो आतंकी सोनितपुर में किसी बड़ी वारदात को अंजाम दे सकते हैं इसके बावजूद सरकार ने इसकी अनदेखी की और नतीजा सबके सामने है। कौन है असम में हुए नरसंहार का जिम्मेदार, सरकार को पहले से था आतंकी हमले का अलर्ट, फिर भी खुफिया रिपोर्ट पर नहीं की कोई कार्रवाई। ये सवाल जवाब मांग रहे हैं पर असम सरकार खामोश है। उसे कोई जवाब नहीं सूझ रहा है। 70 से ज्यादा बेगुनाहों की मौत का आरोप में ...

असम हिंसा की एनआईए करेगी जांच

बीबीसी हिन्दी - ‎Dec 25, 2014‎
केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने असम में आदिवासियों पर हुए हमलों की जांच एनआईए (नेशनल इनवेस्टिगेशन एजेंसी) से कराने की घोषणा की है. मंगलवार को बोडो चरमपंथियों के आदिवासियों पर हुए हमलों, उसके बाद एक विरोध प्रदर्शन पर पुलिस फ़ायरिंग और आदिवासियों की बोडो लोगों कि ख़िलाफ़ हिंसा में मरने वालों की संख्या 81 हो गई है. गुरुवार को कोकराझार में तीन लोगों की लाशें मिली हैं. इससे पहले हिंसाग्रस्त कोकराझार और सोनितपुर में बोडो चरमपंथियों के हमले हुए थे.

असम: आरोपी उग्रवादियों को खत्म करने का आदेश!

ABP News - ‎Dec 25, 2014‎
नई दिल्ली: असम में 78 लोगों की मौत के बाद उग्रवादियों के खिलाफ सुरक्षा बलों का ऑपरेशन शुरू हो गया है. उग्रवादियों को खत्म करने का आदेश मिला है . गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने अपने असम दौरे के दौरान एक उच्च स्तरीय बैठक में हिस्सा लिया औऱ उग्रवादियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का आदेश दिया. गृह मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक खुफिया एजेंसियों ने असम के कोकराझार औऱ सोनितपुर जिले में हुए नरसंहार के लिए जिम्मेदार उन 75 उग्रवादियों की पहचान कर ली है. सेना और अर्धसैनिक बलों ने उग्रवादी संगठन नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड के खिलाफ ऑपरेशन शुरु कर दिया है. राजनाथ सिंह ...

असम हिंसा में मृतकों की संख्या 78 हुई, एनआईए करेगी जांच

नवभारत टाइम्स - ‎Dec 25, 2014‎
गुवाहाटी-सोनितपुर असम के कोकराझार जिले में उग्रवादी संगठन एनडीएफबी (एस) के हमले में बीते मंगलवार को आदिवासियों की हत्या के बाद गुरुवार सुबह हिंसा की ताजा घटनाओं की खबर है। अब तक की हिंसा में मरने वालों की संख्या 78 हो गई है। सोनितपुर और कोकराझार जिलों का दौरा करने के बाद केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि एनडीएफबी (एस) द्वारा किए गए हमलों की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) करेगी और उन्होंने भरोसा दिलाया कि अगर जरूरत पड़ी तो सेना असम सरकार की मदद करेगी। असम में बोडो उग्रवादियों के हमले और आदिवासियों की जवाबी कार्रवाई में मृतक संख्या 78 पहुंच गई है ...

असम: क्या जमीन है बोडो विवाद की जड़?

Webdunia Hindi - ‎Dec 25, 2014‎
असम में ताजा हिंसा में 70 से ज्यादा लोग मारे गए हैं। इस संख्या के और बढ़ने की आशंका है। बोडो अलगाववादियों ने मंगलवार कोअसम के सोनितपुर और कोकराझार जिले में 52 आदिवासियों को मार डाला था। इसे लेकर विरोध प्रदर्शन भी हुए। इस हिंसा के क्या कारण हैं? पढ़ें विश्लेषण : असम की ताजा हिंसा पुलिस और सुरक्षा बलों द्वारा नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी) के खिलाफ चल रहे अभियान के जवाब में हुई है। अभियान के दौरान हाल ही में इस गुट के कुछ नेता और कार्यकर्ता मारे गए थे। इसके बाद गुट ने धमकी दी थी कि 'ऐसा होता रहा तो हम ऐसा सबक सिखाएंगे कि आप भूल नहीं पाएंगे।'

'ऑपरेशन ऑल आउट' शुरू, आज असम जायेंगे सेना प्रमुख

प्रभात खबर - ‎7 hours ago‎
इससे पहले सेना ने असम राइफल्स, अर्धसैनिक बल और असम पुलिस के साथ मिल कर उग्रवादियों के खिलाफ फुलबारी से 'ऑपरेशन ऑलआउट' की शुरुआत की. सुरक्षा बलों के निशाने पर 74 एनडीएफबी (एस) सदस्य हैं, जिन्होंने नरसंहार को अंजाम दिया. ऑपरेशन की जानकारी म्यांमार, भूटान और चीन को दे दी गयी है. इससे पहले, हिंसा प्रभावित सोनितपुर और कोकराझाड़ जिलों का दौरा करने के बाद गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार कहा था कि उग्रवादियों के खिलाफ वैसी ही नीति अपनायी जायेगी, जैसी आतंकियों के खिलाफ अपनायी जाती है. बोडो उग्रवादियों के पूरी तरह सफाये के लिए विशेष अभियान चलाया जायेगा. इस बीच ...

असम सरकार ने एनडीएफबी (एस) के हमलों को लेकर खुफिया सूचनाओं की अनदेखी की: सूत्र

Zee News हिन्दी - ‎Dec 25, 2014‎
गुवाहाटी/नई दिल्‍ली : असम में एनडीएफबी (एस) के उग्रवादियों की ओर से किए गए जघन्‍य हमलों के बाद माना जा रहा है कि सरकार ने इस उग्रवादी संगठन के खिलाफ कड़ी कार्रवाई किए जाने का आदेश दिया है। गौर हो कि असम में बोडो उग्रवादियों के हमले और आदिवासियों की जवाबी कार्रवाई में मृतक संख्या 78 पहुंच गई है। केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह और किरण रिजिजू हमलों के बाद प्रदेश में कानून-व्यवस्था की स्थिति की समीक्षा करने के लिए असम दौरे पर हैं। उच्‍च पदस्‍थ सूत्रों के अनुसार, गृह मंत्री ने सुरक्षा एजेंसियों को एनडीएफबी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के आदेश दिए हैं। सूत्रों के अनुसार ...

बोडो उग्रवादियों ने असम में 52 लोगों की हत्या की

नवभारत टाइम्स - ‎Dec 23, 2014‎
असम के कोकराझार और सोनितपुर जिलों में मंगलवार शाम को बोडो उग्रवादियों ने कई हमले किए, जिसमें 52 लोग मारे गए हैं। मरने वालों में अधिकतर महिलाएं और बच्चे हैं। मृतकों की संख्या में बढ़ोतरी की आशंका जताई जा रही है। आदिवासी इलाकों में किए गए इन हमलों में हताहत हुए ज्यादातर लोग चाय बागानों में काम करते हैं। इस हमले के चश्मदीदों के मुताबिक बोडो उग्रवादियों ने अंधाधुंध फायरिंग की, जिसमें कई लोग मारे गए। इस हमले के पीछे नैशनल डेमोक्रैटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड के संगबिजीत गुट का हाथ माना जा रहा है। एनडीएफबी (एस) उग्रवादियों के हमलों के बाद मानस राष्ट्रीय उद्यान बंद ...

असम: मरने वालों की संख्या 72 हुई

बीबीसी हिन्दी - ‎Dec 24, 2014‎
असम में बोडो अलगाववादियों के ग़ैर-बोडो जनजातियों पर हमले, पुलिस फ़ायरिंग और जनजातियों के बोडो गांव पर जवाबी हमले में मरनों वालों की संख्या और बढ़ गई है. स्थानीय पत्रकार विनोद रंगानिया के मुताबिक अब तक कुल 72 लोगों की जान जा चुकी है. केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह और असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई हेलिकॉप्टर से हिंसा प्रभावित इलाकों का दौरा करेंगे. स्थानीय पत्रकार विनोद रंगानिया के मुताबिक, "अब प्रशासन के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि इस हिंसा की प्रतिक्रिया में बोडो लोगों पर होने वाली बदले की कार्रवाई को रोके, हालांकि कई जगह हमले हुए भी है. इसे रोकने के ...

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