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Thursday, February 19, 2015

जब तक रोटी के प्रश्नों पर रखा रहेगा पत्थर कोई मत ख्वाब सजाना तुम मेरी गली में खुशी खोजते अगर कभी जो आना आज फिर एकमुश्त हिमपात, भूस्खलन,भूकंप और जलप्रलय के बीचोंबीच फंसा हूं और मेरे देश में दिशाएं गायब हैं। रिजर्व बैंक के मान्यवर गवर्नर राजन साहेब नयी

जब तक रोटी के प्रश्नों पर रखा रहेगा पत्थर

कोई मत ख्वाब सजाना तुम

मेरी गली में खुशी खोजते

अगर कभी जो आना


आज फिर एकमुश्त हिमपात, भूस्खलन,भूकंप और जलप्रलय के बीचोंबीच फंसा हूं और मेरे देश में दिशाएं गायब हैं।



रिजर्व बैंक के मान्यवर गवर्नर राजन साहेब नयी परिभाषाओं और आंकड़ों के हवाले विकास के अर्थशास्त्र का पाठ ले रहे हैं मोदी पाठशाला में।हमारे अधकचरे अर्थशास्त्र की गति समझ लीजिये और आगे भयानक मोड़ है कि डाउ कैमिकल्स का बजट है और चारों तरह मनसैंटो है।


पलाश विश्वास

कुळवाडी भुषण, बहुजन प्रतिपालक छत्रपति शिवाजी महाराज के ३८०वे जयंती के अवसर पर

33 कोटी जेव्हा षंड झाले,

तेव्हा एकटया शिवरायांनी स्वराज्य

स्थापनेसाठी बंड पुकारले.

- प्रबोधनकार ठाकरे


आप कभी भारी हिमपात में फंसे हो पहाड़ों में और दसों दिशाएं बंद हों,तो मेरी हालत शायद समझ लें।


कभी मुूसलाधार बरसात और भूस्खलन में शिखरों के आसपास झूले हों, तो मेरा दिलोदिमाग आपके हवाले।


कभी जलप्रलय के मधय डूब में शामिल घाटी से बच निकले हों तो मेरी तमाम सांसें आपके नाम।


अजब गजब फिजां हैं।


रिजर्व बैंक के मान्यवर गवर्नर राजन साहेब नयी परिभाषाओं और आंकड़ों के हवाले विकास के अर्थशास्त्र का पाठ ले रहे हैं मोदी पाठशाला में।

सांख्यिकी मंत्रालय में उनकी क्लास लग रही है कि विकास के विजयरथ को बजट के आर पार कैसे ले जा सकें वे ताकि शेयर बाजार का हाल ठीक रहे।


अभी अभी कर्नल साहेब का फोन आया रांची से कि विदेशी फंडिंग के बारे में केंद्र सरकार ने आप को क्लीन चिट दे दी है और कोयला ब्लाक की सौगात भी मिलेगी ताकि दिल्ली में निजी बिजली घर बन जाये कोई बड़ा सा और दिल्लीवालों को स्ता बिजली  मिल जाये।


हमारे अधकचरे अर्थशास्त्र की गति समझ लीजिये और आगे भयानक मोड़ है कि डाउ कैमिकल्स का बजट है और चारों तरह मनसैंटो है।


कयामती जश्न लेकिन यूं हैः

मोदी के सूट और बुत से बातें करना चाहते हैं, सूट की 1.21 करोड़ की बोली लगाने वाले राजेश जुनेजा. http://bbc.in/1A5oY42

'मोदी के सूट और बुत से बातें करना चाहते हैं, सूट की 1.21 करोड़ की बोली लगाने वाले राजेश जुनेजा. http://bbc.in/1A5oY42'



कल ही जिनेवा से खबर आयी कि एचएसबीसी के यहां धकाधक छापे पड़े।इंडियन एक्सप्रेस में खुलासा हुआ था भारतीय खातों का।स्विस खातों के बारे में मीडिया में हुए खुलासे के बाद ये छापे डाले गये और एचएशभीसी के खिलाफ मनी लौंड्रिग का मुकदमा भी दर्ज हुआ है।


भारतीय खाता धारकों में तमाम नाम हमारे बिलियनियर मिलियनर राजनेताओं के भी हैं।


मोदी ने लोकसभा चुनाव से पहले वायदा किया था कि सारा काला धन वापस लायेंगे।हर भारतीय के खाते में पंद्रह लाख जमा कर देंगे।


चुनाव जीत लेने के बाद दिल्ली में जेब में होने की खुशफहमी में ओबामा मिलन मौके के पंद्रहलाख टकिया सूट जो अब नीलाम हो रहा है, उसके साथ अमित शाह ने कहा कि यह तो मजाकिया जुमला है।


देश के प्रधानमंत्री लेकिन वायदे से अभीतलक मुकरे नहीं है।


हमारे लोग अब आधार कार्ड वाले हो गये हैं।जिनके खाते नहीं थे,उन्हें जनधन योजना के तहत भारतीयअर्थ व्यवस्था में इनक्लुड भी कर लिया गया है।अब पंद्रह लाख जमा होने का इंतजार है।


इस बीच खुलासा यह भी हो गया कि राजनीतिक दलों को मिलने वाले फंड में से नब्वे फीसद का सूत्र अज्ञात है।उन अज्ञात सूत्रों पर दसों दिशाओं में सन्नाटा है और उसी सन्नाटे को तोड़ने के लिए दिल्ली में फिर होगा अन्ना का स्त्याग्रह, जिसमें शायद पहलीबार उनके साथ होंगे एक अदद मुख्यमंत्री। कालाधन जरुर वापस होगा।


जैसे निजीकरण से बिजली पानी सस्ता मुफ्त,एक के साथ एक फ्री  होने से इंद्रप्रस्थ खुशहाल है,वैसे ही बाकीर महाभारत।


संपूर्ण निजीकरण,एकमुश्त जैविक मनसैंटो फसल और डाउ कैमिकल्स के बजट से ट्रिकलिंग ट्रिकलिंग विकास होइहें और धीेेरे धीरे समाजवाद आ जाई।


यही है समरसता,समता और सामाजिक न्याय का कुल जमा किस्सा।

कि बहारों फूल बरसायो कि मेरा महबूब आयो।पिया घर आयो।


जब तक रोटी के प्रश्नों पर रखा रहेगा पत्थर

कोई मत ख्वाब सजाना तुम

मेरी गली में खुशी खोजते

अगर कभी जो आना



जिंदगी भर कामयाबी से मुंह चुराता रहा मैं।


मेरे एमए करने के तुरंत बाद 1979 में डीएसबी परिसर समेत कुमायूं विश्वविद्यालय के तमाम नये पुराने कालेजों में अंगे्रेजी के प्रवक्ता खोजे नहीं मिल रहे थे।


हमारे घर संदेशा आ रहे थे डीएसबी से बार बार और मैं दिल्ली और इलाहाबाद का धूल फांकते हुए सीधे झारखंड के कोयलाखदानों में घुस गया कि हिंदी में पत्रकारिता करने।


अपनी डिग्री का मैंने इस्तेमाल ही नहीं किया और न कभी किसी सरकारी चाकरी के लिए कभी अर्जी लगायी।


नारायणदत्त तिवारी तब देश के वित्तमंत्री थे और उनने पिताजी से कहला भेजा कि पलाश को मुझसे मिलने को कहो कि दिल्ली में अध्यापकी करें।


हमने कहा कि हम तिवारी से मदद कैसे ले सकते हैं।


केसी पंत कहते रहे कि मिला भी करो कि रिश्ता बना रहे और हम उनसे मिले नहीं।

हम दरअसल कामयाबी से बेहद डरते हैं।


हमारी नाकामी हमारे लिए नियामत है।

बरकत है।रहमत है।

कि मेरा दिल अब भी धड़कता है मेरे गोबर माटी के देश के लिए।


आज फिर एकमुश्त हिमपात,भूस्खलन,भूकंप और जलप्रलय के बीचोंबीच फंसा हूं और मेरे देश में दिशाएं गायब हैं।


वर्धा में जो गीत परफर्म करके निसार मियां हमारे दिल का हिस्सा बन गये हमेशा के लिए,आज सुबह उनको फोन लगाकर वह गीत मंगा लिया और छत्तीसगढ़ के जनकवि जीवन यदु के उसी गीत से आज का मेरे रोजनामचे की शुरुआत है।

जब तक रोटी के प्रश्नों पर रखा रहेगा पत्थर

कोई मत ख्वाब सजाना तुम

मेरी गली में खुशी खोजते

अगर कभी जो आना


मेरी ताई मेरी मां से बढ़कर थीं।मेरी ताई ने जंगल में खिलते पलाश पर नाम रखकर मुझे आग के हवाले कर दिया।


ताई बचपन  में रोग शोक मृत्यु के संकेत पाते ही मेरे खेतों की हरियाली के बीच,विलाप से हजारों मील भागने की मेरी आदत पर सफाई देती रही कि मन उसका बेहद कच्चा है।


वह कच्चा मन अभी पका नहीं है।


मैं कोई आम्रपाली नहीं हूं।नहीं हूं मैं चित्रलेखा।न मैं सम्राट अशोक हूं कि तबाही के इस कयामती मजर में कह सकूं बुद्धं शरणं गच्छामि।


कि अमन चैन के लिए धम्म नहीं है मेरे लिए।


गौतम बुद्ध का धम्म रोग शोक ताप विलाप से निजात पाने के लिए पलायन नहीं है जीवन से ,यथार्थ से।वह कठोर पंचशील अनुशासन है समाज और देश बदलने के लिए।


मन अब इतना कच्चा ठैरा कि लंद फंद के लिए मशहूर हमारे पुरातन सहकर्मी और खैनी गुरु पुरातन मित्र कृपवा को फोन लगाया और आभार जताया कि वह अनिल सरकार,अद्वैत मल्लवर्मन,चर्यापद साहित्य,बांग्ला दलित साहित्य,रवींद्र के दलित विमर्श, बांग्ला दलित साहित्य और दलित आंदोलन पर सिलसिलेवार लिख रहा है,जैसा बांग्ला में हो नहीं रहा है।


कमसकम मुझे फिलहाल इन मुद्दों को छूने की जरुरत नहीं है।आभार।


मैं दरअसल यही चाह रहा था अपने मोर्चे को तमाम साथियों से कि जब हम मुट्ठीभर लोग है तो क्यों न अपना कार्यभार आपस में बांट ले।ऐसा हो नही पा रहा है।


लगातार अकेला होता जा रहा हूं।

अभी हस्तक्षेप जारी है कि मेरी दबी कुचली आवाज कुछ लोगों तक पहुंच रही है।मैं नहीं जानता बेरोजगार सादनविहीन अमलेंदु कब तक इसे जारी रख पायेंगे और कब तक हस्तक्षेप संभव है।रोजाना मदद की गुहार लगाते हुए हम थक गये हैं।


प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया से हम बाहर हैं।बेदखल हैं।


सोशल मीडिया भी केसरिया हुआ जा रहा है।


हमारे जो लोग हमारा पोस्ट लाइक भी करते हैं,वे थोड़ी सी जहमत और उठाकर तनिको शेयर भी करें तो कुछ और लोगों तक हमारी बात पहुंच सकती है।


एक बात मैं साफ कर दूं सिरे से कि जैसे शत प्रतिशत  हिंदुत्वकरण से इस देश के निनानब्वे फीसद जनता के बुनियादी मसले हल नहीं होगे और जनसंहार का सिलसिला जारी रहना है,उसीतरह बौद्धमय देश बनाकर भी हम इन मसलों को हल नहीं कर सकते।


बौद्धमय देश बनाने की मुहिम जो लोग चला रहे हैं,हिंदुत्वकरण का विरोध करके हम उनका समर्थन कतई नहीं कर रहे हैं।


आप कभी भारी हिमपात में फंसे हो पहाड़ों में और दसों दिशाएं बंद हों,तो मेरी हालत शायद समझ लें।


कभी मुूसलाधार बरसात और भूस्खलन में शिखरों के आसपास झूले हों, तो मेरा दिलोदिमाग आपके हवाले।


कभी जलप्रलय के मधयडूब में शामिल घाटी से बच निकले हों तो मेरी तमाम सांसे आपके नाम।


अजब गजब फिजां हैं।


रिजर्व बैंक के मान्यवर गवर्नर राजन साहेब नयी परिभाषाओं और आंकड़ों के हवाले विकास के अर्थशास्त्र का पाठ ले रहे हैं मोदी पाठशाला में।


धर्म और अस्मिताओं के बवंडर से बाहर निकलकर ही गौतम बुद्ध ने मनुष्यता के इतिहास में पहली रक्तहीन क्रांति की थी और समता और सामाजिक न्याय आधारित समाज की स्थापना की थी।


वह लक्ष्य दरअसल हमारा धम्म है।


राजनीतिक सवालों से जूझे बिना,राजनीतिक मुद्दों से टकराये बिना,राजसत्ता के खिलाफ जनमोर्चा बनाये बिना महज मस्तक मुंडन से हमारी समस्याएं सारी हल हो जायेंगी।ऐसा मैं मानता नहीं हूं।


क्योंकि राज्यतंत्र को बदले बिना न जाति उन्मूलन संभव है और न मनुस्मृति शासन का अंत है और न मुक्तबाजार में तब्दील देश की गुलाम जनता की मुक्ति संभव है।


संघ परिवार और उसकी सरकार हमारे लिखे पर प्रतिक्रिया नहीं करें,य़ही दस्तूर है।खामखां वे तवज्जो क्यों दें हमें।ताकि बात निकलती जाये।


वे जो कर सकते हैं,कर रहे हैं।हुकूमत उनकी है।तंत्र मंत्र यंत्र उनका है।जब चाहे तब सर कलम कर सकते हैं वे।ऐसा करके वे हरगिज किसी दो कौड़ी के इंसान को शहीद नहीं बनायेंगे।जाहिर है।


तकनीकी तौर पर हर अवरोध खड़ा करने की दक्षता उनकी है।

हम कहीं लिख नहीं सकते।

किसी चैनल पर भौंक नहीं सकते।

हजारो लोगों के बैठाकर मन की बातें कर नहीं सकते।


न हमारा कोई राष्ट्रव्यापी संगठन है कि देशके कोने कोने तक हम अपनी बात पहुंचा सकें।जबकि देश जोड़ने का मिशन है हमारा।मानवबंधन हमारा मिशन है।भाषा बंधन हमारा मिशन है।


यह मिशन आज के हालात में दिवास्वप्न के सिवाय कुछ भी नहीं हैं।


हम जनता की मोर्चाबंदी की बात कर रहे हैं।हम अस्मिताओं को तोड़ने की बात कर रहे हैं।हम जाति उन्मूलन की बात कर रहे हैं।


हम न नमो बुद्धाय कह रहे हैं और न जयश्रीराम हम कह सकते हैं।हम जय भीम और जयमूलनिवासी भी नहीं कह रहे हैं।


न हम सेल्फी पोस्ट कर रहे हैं और न हमारा कोई एलबम है।

हम विचारों की बात कर रहे हैं विचारधाराओं के आरपार।

हम आरक्षण की बात नहीं कर रहे हैं।

हम धर्मोन्माद फैला नहीं रहे हैं। न हम हिंसा और अराजकता के कारोबारी हैं।


हम मुक्त बाजार और जनसंहारी संस्कृति के प्रतिरोध की बात कर रहे हैं।हम पहाड़ों,जल जंगल जमीन,भूमि सुधार,आम जनता के हक हकूक और उनकी सुनवाई,नागरिक और मानवाधिकार,प्रकृति और पर्यावरण की बात कर रहे हैं।हम भाषा, साहित्य,रंगकर्म और जनांदोलन की बात कर रहे हैं।


हम लाल में नील और नीले में लाल की बात कर रहे हैं।


सत्ता समीकरण से हमारा कोई लेना देना नहीं है कि सत्ता की चाबी हम तलाश नहीं रहे हैं।


बंगाल में सत्ता हेजेमनी के प्रचंड लगातार विरोध के बावजूद हम ममता बनर्जी का अंध विरोध नहीं कर रहे हैं क्योंकि हम जानते हैं कि वाम वापसी असंभव है और शून्य स्थान भरने के लिए केसरिया सुनामी है।


हमारे लिखे पर कायदे से सबसे ज्यादा तकलीफ संघ परिवार और मुक्त बाजार की ताकतों को होना चाहिए।


विडंबना है कि सबसे ज्यादा गड़बड़ा रहे हैं,सबसे ज्यादा तिलमिला रहे हैं वे लोग जो सामाजिक राजनीतिक बदलाव के झंडेवरदार हैं।


विडंबना है कि वे लोग भी मुझे ब्लाक और डिलीट कर रहे हैं,जिन्हें हम अपना हमसफर समझ रहे थे।


विडंबना  है कि आपस में मारामारी से लहूलुहान और अपने वध आयोजन से बेखबर इस अनंत वधस्थल पर कतारबद्ध लोग अपनी नियति के बारे में हमारी भविष्यवाणी और हमारे सामाजिक यथार्थ के बयान से सबसे ज्यादा नाराज हैं।


हमें धर्मोन्मादी मुक्तबाजारी तंत्र मंत्र यंत्र और तिलिस्म की कोई परवाह नहीं है।


हम लहुलूहान हो रहे हैं अपने लोगों के अंधत्व से।


कि लाल भी नाराज दीखे है और नीला भी गुस्से में लाल दीक्खे है।


हम अकेले हैं कि हम सचमुच नहीं जानते कि कौन हमारे साथ है और कौन साथ नहीं हैं।


दिनेशपुर ,उत्तराखंड से भाई सुबीर गोस्वामी का पोस्ट हालाते सूरत पर बेबाक टिप्पणी है और मेरे लिए दर्द का सबब भी कि सुबीर ने लिखा हैः


बंगाली समाज के जागरूक लीडर्स अभी बंगाली कल्याण समिति के अध्यक्ष, सचिव और दूसरे पदों में काबिज़ होने में बिज़ी है। सोच यही है कि उस पद का आम बंगाली को लाभ हो न हो, मगर ये पद अ ब स पार्टी से टिकट मांगने का मजबूत आधार बन सके। सभी चूतिया बनाते आ रहे या बनाते आने वाले प्रतिनिधियों को शुभकामनायें !!! उच्च, माध्यम और निम्न माध्यम वर्गीय बंगाली जन पैसा खर्च कर डेलीगेट्स बनने का गौरव पाने वाले डेलीगेट्स को शुभकामनायें !!! इस मृतप्राय संगठन के ये महत्वकांशी प्रतिनिधि दिल्ली जाते रहे, देहरादून जाते रहे दुर्गा पूजा की तरह पिछले ६० वर्षो की परंपरा निभाते रहे !!! फिर से शुभ कामनाएं।

'बंगाली समाज के जागरूक लीडर्स अभी बंगाली कल्याण समिति के अध्यक्ष, सचिव और दूसरे पदों में काबिज़ होने में बिज़ी है। सोच यही है कि उस पद का आम बंगाली को लाभ हो न हो, मगर ये पद अ ब स  पार्टी से टिकट मांगने का मजबूत आधार बन सके।  सभी चूतिया बनाते आ रहे या बनाते आने वाले प्रतिनिधियों को शुभकामनायें !!! उच्च, माध्यम और निम्न माध्यम वर्गीय बंगाली जन पैसा खर्च कर डेलीगेट्स बनने का गौरव पाने वाले डेलीगेट्स को शुभकामनायें  !!! इस मृतप्राय संगठन के ये महत्वकांशी प्रतिनिधि  दिल्ली जाते रहे, देहरादून जाते रहे दुर्गा पूजा की तरह पिछले  ६० वर्षो की परंपरा निभाते रहे !!! फिर से शुभ कामनाएं।'



जब तक रोटी के प्रश्नों पर रखा रहेगा पत्थर

कोई मत ख्वाब सजाना तुम

मेरी गली में खुशी खोजते

अगर कभी जो आना


आज फिर एकमुश्त हिमपात, भूस्खलन,भूकंप और जलप्रलय के बीचोंबीच फंसा हूं और मेरे देश में दिशाएं गायब हैं।



रिजर्व बैंक के मान्यवर गवर्नर राजन साहेब नयी परिभाषाओं और आंकड़ों के हवाले विकास के अर्थशास्त्र का पाठ ले रहे हैं मोदी पाठशाला में।हमारे अधकचरे अर्थशास्त्र की गति समझ लीजिये और आगे भयानक मोड़ है कि डाउ कैमिकल्स का बजट है और चारों तरह मनसैंटो है।


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