गदहा पुराणःहम आपके हैं कौन?
बाबासाहेब की मूरत पर बहती कमंडल जलधारा धुआंधार!
कल्कि अवतार जो हुए नयका बोधिसत्व,बाधाई!
प्यारे अफजल! Chemistry of Love! Physics of Crime!Phenomenon of Mafia Raj across the borders!
https://www.youtube.com/watch?
पलाश विश्वास
भारत में मोहनतकश जनता और शूद्र स्त्रियों के हकहकूक ,नागरिक और मानवाधिकार की लड़ाई लड़ने वाले समता और न्याय के प्रवक्ता बाबासाहेब के जाति उन्मूलन के एजंडे को हमारे कामरेडों को कभी उठाकर देखा नहीं है।इसीलिए यह मंडल बनाम कमंडल महाभारत भारत का सच है।
हमारे यहां हर मसला मुद्दा व्यक्ति संदर्भित हैं।बाकी कोई प्रसंग संदर्भ हम जानते ही नहीं है।
हम सत्ता से नाराज होते हैं तो फटाक से सत्ता का चेहरा बदल देते हैं।
भ्रष्टाचार और अनैतिकता हमारे लिए सबसे बड़े मुद्दे हैं और किसी न किसी को बलि का बकरा बनाकर अंधेर नगरी चौपट राजा का राजकाज हमारा लोकतंत्र है।
हमने गदहा पुराण भी लिखा है पिछले दिनों।
थमके खाडा़ रहियो के हम कोई विश्वमित्र भी नहीं है कि तपस्या भंग करने के लिए स्वर्ग से उतर आयेगी कोई मेनका और नयका भारतवर्ष बन जायेगा फिर किसी कुरुक्षेत्र के महाभारत के लिए,जहां फिर रचा जायेगा भागवत पुराण।
हमउ गधा संसति ह।
जिन्हें बहुतै गुस्सा आया होगा वे माफ कर दें।
अपने को गरियाने का हक भी हमें नहीं है।
वखत खराब बा।बाकीर हम वहींच शंबुक जिसकी हत्या देर सवेर होनी है मनुस्मृति की बहाली के लिए जैसे मारे गये गांधी,कलबर्गी पनसारे दाभोलकर और न जाने कितने मारे जायेंगे।
बहरेहाल उनका नाम कहीं दर्ज नहीं होता जो कत्लेआम और बलात्कार सुनामी के शिकार हैं और जो रोज या तो मारे जा रहे हैं या बलात्कार के शिकार हैं।
कौनो एफआईआर लाज नहीं होता।
चीख कहीं दर्ज नहीं होती।
हर फ्रेम मा हुक्मरान,हम गुलाम कहीं नहीं हैं।
कानून का राज कहीं नहीं है सरहदों के आर पार।
गुंडे माफिया अपराधी की दुनिया को हम स्वर्गवास समझते हैं।
गुंडे माफिया अपराधी की दुनिया को हम इहलोक परलोक परमार्थ और मोक्ष मानते हैं।बदलाव,समता,न्याय क्रंति ना जने का का मानते हैं।गदहा पुराण का सार यहींच।
प्यारे अफजल की करेजा हिलेले प्रेमकथा हमने इसीलिए बांची है कि इसमें भ्रष्टाचार की रट नहीं है और सीधे हुकूमत का चेहरा बेनकाब कर दिया गया है,जो भारत में मनुस्मृति अनुशासन और ईस्ट इंडिया कंपनी के स्थाई बंदोबस्त के तहत वंश वर्चस्व का नस्ली भेदभाव के अलावा कुछ नहीं है।
सारा खेल फर्रुखाबादी युद्ध गृहयुद्ध है और अनंत विभाजन जाति व्यवस्था है जो फिर विश्व व्यवस्था भी है।
जो पाकिस्तमान में हो रहा है,वही हिंदुस्तान में हो रहा और वहींच बांग्लादेश में।अखंड वंश वर्चस्व है।
नेपाल की संप्रभु जनता ने इस वंश वर्चस्व को खारिज कर दिया है निनानब्वे फीसद जन प्रतिनिधित्व के साथ नया संविधान अपनाकर और हमने नेपाल को दुश्मन बनाकर हिमालय के जलस्रोतों से खुद को बेदखल कर लिया है।
शेक्सपीअर के नाटकों में भी वैज्ञानिक दृष्टि है।
समय के संदर्भ और प्रसंग यथोचित है।
इतिहास बोध है और वर्गचेतना भी है और सबसे मजे की बात यह कि शेक्सपीअर के सारे पात्रों का देसीकरण कर दिया जाये तो उनके तमाम नाटक हमारे हैं।
बालीवूड में ओमकारा,हैदर और मकबूल में यह कर भी दिखाया है।
पूरा शेक्सपीअर साहित्य वैज्ञानिक दृष्टि से पढ़ने और परीक्षा में वहीं लिखने के अपराध में एमए प्रथम वर्ष में शेक्सपीअरन ट्रेजेडी में जो मुझे सिर्फ पास मार्क 36 हासिल हुए और हम रिसर्च के लिए बेताब हुए रहे,उसीका कर्मफल हमारी यह दो कौड़ी की पत्रकारिता है।लेकिन हम शेक्सपीअर का पीछा कभी ना छोड़े हैं।न छोड़ब।
अब हम का कहि,कल देर रात कल्कि अवतार संगे बाबासाहेब के विज्ञापन का जलवा बदहजम हो गया तो सबसे पहले बंगाल के कामरेडों को निसाना बांधकर ठेठ बांग्ला में फिर वहींच गदहा पुराण लिख दिहिस तो तृणमूल को भी बख्शा नहीं है।
मुश्किल यह है कि हम शुतूरमुर्ग नहीं है और कबीर की आत्मा हम पर जहां तहां सवार हो जाती है ऐसे कि बीच बाजार खड़े घर फूकने की हांक लगाने से बाज नहीं आया।हालात ये हैं कि इलाके कि महिलाएं अभी से धमकाने लगी हैं कि इलाका छोड़े तो खैर नहीं।और तो और प्रमोटर वगैरह तत्व जो मित्र हैं 25 साल से बाकायदा धमकाने लगे हैं,जो रोजहगते मूतते हो,उसीतरह हगो मूतो,यहां से हिलें तो काटकर रख देबो।बाकीर हम देख लेंगे।
मुहब्बत की इस जुबान में हम कीचड़ पानी गोबर में एकाकार हैं ।
वे ही लोग बिगड़जइहे तो धुन कर प्याज बनाई देब।
फिरभी सच का सामना तो करना ही होगा।
बाबरी प्रतिवाद दिवसे बाबासाहेबसंगे दर्शनधारी कल्कि महाराज।
বাবরি লইয়া প্রতিবাদ দিবসের দিনই বাবসাহেবের সহিত দর্শনধারি কল্কি মহারাজ।
बहुजनवा कैप्चर।
বহুজন ক্যপচার।
बाबा साहेबो कैप्चर।
বাবাসাহেবও ক্যাপচার।
बंगाल में वाम का खड़ा होगा कि नको नको।
বাংলায় বাম দাঁড়াবে কি দাঁড়াবে না?
To be or not to be?
বিপর্যয় এখনো কাটেনি।অশনি সংকেত।দক্ষিণ ভারত মহাসাগরে ভূমিকম্প।বাংলা কি বাঁচিবে কি বাঁচিবে না?
संकट टला नहीं है।अशनि संकेत।दक्षिण हिंद सागर में भूकंप।बंगाल बचेगा के नहीं बचेगा?
हिंदुस्तान बचेगा कि नहीं बचेगा?
पाकिस्तान बतेगा कि नहीं बचेगा?
बांग्लादेश बचेगा कि नहीं बचेगा?
इसीलिए कल उठा लिया प्यारे अफजल की झूठो यह सरहद है और सारी दुश्मनी हुक्मरान की कारस्तानी है तो देख लो हुक्मरान का वह बेपरदा चेहरा भी।
हमारे ब्लाग में बिना विज्ञापन के सैंतीस के सैंतीस एपिसोडवा के लिंक हैं।जिनने टीवी पर देखा नहीं है,देक लें नेटवा पर।
बाकी हमने इस नब्वे मिनट में ही काम के सारे दृश्य और मुहब्बत के कारनामे के साथ निपटा दिया है।
माफिया,दहशतगर्द, गुंडे हुकूमत पैदा करती है। पालती, मारती भी वह ही है।
मुहब्बत की जंग ही असल जंग है जो जीते मुहब्बत की जंग वे ही सिकंदर और नफरत के कारोबार में मालामाल हर सौदागर का आखेर बेड़ा गर्क।
बालीवूड ने पाकिस्तान जीता है।हर मुहब्बत भरे दिल को जीता है।
प्यारे अफजल का सबसे बड़ा सबक यही है।
मेज पर कराची का नक्शा है और पुराना डान नये डान बने प्यारे अफजल को उसका इलाका समझा रहा है।पुराने डान ने अपना और अफजाल का इलाका दिखाया तो नये डान ने बाकी इलाकों के बारे में पूछा तो जवाब मिला कि सारे इलाके बंटे हुए हैं,जहां किसी न किसी दादा,गुंडा और डान का राज है।
पूरा कराची शहर और पूरा पाकिस्तान माफियाऔर गुंडा राज के हवाले हैं।
मतलब समझ लीजिये।
https://www.youtube.com/watch?v=i4b8FVaNytc&feature=youtu.be
साझा नहीं कर सकता सो प्रवचन फिलहाल बंद।
हस्तक्षेप सात से ग्यारह तक यात्रा पर होगा क्योंकि असहिष्मुता पर लखनऊ में जम जाना है।हमार सारे सिपाहसालार वहीं जुटेगें।
आप भी वहींच पधारो।
असल कुकुक्षेत्र वही है जहां हाथी का नाच मीडिया का नया हाइप है।समाजवादी बहुजन जुध में यूपी दखल की तैयारी है।
ससुरा जिसे देखो वहींच प्रधानमंत्री बनता दीख रिया है।
अबहुं हमने भी तय कर लिया कि जिनगी में कभी राजनीति की तो सीधे प्रधानमंत्री बनेंगे ताकि हाजतरफा के लिए फटाक से लंदन वाशिंगटन पेरिस देखने की आजादी मिले।
जनता तो गुलामो है।
उसकी परवाह किसी को नहीं है तो पाद पाद कर हम किसे कब तक जगाते रहेंगे।
सुसर नेपाल भी तराई को छू लेने के करतब के अलावा देखा नहीं है।जहां खुल्ला था सरहद और अब वहां बी होगी कंटीली बाड़।
जनम जात शरणार्थी हूं।अछूत भी हूं।सर्वोच्च शिखर पर पहुंच जाइब,समुंदर की गहराई मा पैठ जाइब,ज्वालामुखी सिरहाने सो जाई तबहुं इस छुआछूत से रिहाई नहीं है।
प्रधानमंत्री किसीतरह बन जाई तो हो सकत ह कि हिंदू ह्रदयसम्माट बनिकै दुनिया का सारा जायका,सारा मजा चख लिब।
किसी के पास हमें प्रधानमंत्री बनाने का कोई विकल्प है तो सीधे संपर्क करें वरना कुरुक्षेत्र बरोबर है।हमउ ना मानब।
बाकीर हमउ परधानम्तीर बन गयो तो यूपी का समूचा देशवा में समाजवाद बरखाबहर।ऴइसन ही जइसन यूपी मा समाजवाद।
कुनबे खातिर कोई ना हारै कोई इलेक्शनवा।बाकी सगरे होवै खेत।सारे जर परतिनिधि कुनबामध्ये पइदा करब।
राजवंश ना होवै तो का कुनबापरस्ती कोई वंश वर्चस्व के राजकाज से का कम होब।बिहार का बदलाव चाख लो।हमका परख लिज्यो।
कुरसी मिलल तो समाजवाद,समता, नियाय सबकुछ बरोबर।
फिन बाबासाहेब का एटीएमो बराबर।
तमाम पर्व उत्सव जयंती पुण्यतिथि कल्ब खातिरे बरोबर खैरात।
रातोदिन परवचन लाइव आउर अनंत भक्त गण।
बाकीर गदहा पुराण।
बहरहाल हस्तक्षेप पर ग्यारह से पहिले शायद यह आखिरी लेखवा हो तनि बांच भी लिज्यो।
लिख उकके फायदा भी नहीं है जियादा,शेयर निषेध है।सेल्फी पोस्टो करने से आपको भी कहां पुरसत है कि हमें लाइक करे या जो शेयर हम ना कर सकै हो,वो करने की मेहरबानी कर दें।
हम आपके हैं कौन?
गोपाल राठी ने लिखा हैः
आज देश रत्न संविधान निर्माता डॉ बाबा साहब आंबेडकर की पुण्यतिथि है और आज नेल्सन मंडेला का जन्मदिन है l
क्या यह सिर्फ संयोग है ???
गौर करिए इन दोनों महान लोगों ने अन्याय,घृणा के विरुद्ध संघर्ष किया था सैकड़ों वर्षों से जिन पर अन्याय हो रहा था सिर्फ रंग के आधार पर,सिर्फ जात के आधार पर इन दोनों महान नेताओ ने उनको आवाज़ दी l
बाबा साहेब आंबेडकर को उचित श्रधांजलि तब होगी जब संविधान का उचित पालन होगा,किसी पर सिर्फ उसके धर्म या जात के आधार पर घृणा नहीं होगी या उसके अन्याय नहीं होगा, समाज में जातिवाद का ज़हर ख़त्म धीरे धीरे ख़त्म हो जायेगा l
दोनों विभूतियों को विनम्र विनम्र श्रधांजलि lllll
कल देर रात हमने गोवा में लेक्चर देने गये हुए अपने प्रोफेसर मित्र को आज के अखबारों में छपने वाले नये बोधिसत्व के साथ बाबासाहेब की तस्वीर वाले विज्ञापन के लिए बधाई दे दी।
हम फिलवक्त प्रतिबंधित है।पहलीबार हम लगातार तमिलनाडु को उनके ही विजुअल के साथ संबोधित कर रहे थे तो हम प्रतिबंधित हैं।हम कुछो किसी समूह को शेयर नहीं कर सकते।
प्यारे अफजल जैसा कोहराम की कुंडली बांच दी लेकिन हम लिंक जारी कर नाही सकै हैं।प्रवचन भी अब प्रतिबंध हटने पर ही देंगे।
तेलतुंबड़े से जियादा बातचीत हो नहीं सकी क्योंकि हम दफ्तर में थे और अपनी औकात के मुताबिक दफ्तर का फोन हम इस्तेमाल कर नहीं सकते।मोबाइल का नेटवर्क बार बार कट रहा था।जैसे हमारा कोई परिचयपत्र नहीं है क्योंकि मजीठिया के दो प्रोमोशन के बावजूद कोलकाता में हम सारे लोग जहां थे,वहीं हैं।
जनसत्ता में संपादक के सिवाय किसी का कोई परिचय है नहीं।
संपादक के अलावा हम सारे लोग पिछले 25 साल से सबएडीटर हैं और यह स्थाई बंदोबस्त माननीय प्रभाष जोशी, श्याम आचार्य और अमित प्रकाश सिंह कर गये हैं।
हम प्रबंधन को इसका दोषी नहीं मानते।क्योंकि मार्केटिंग में नानस्टाफ तक को परिचय पत्र और ईमेल आईडी मिला हुआ है आफिसियल।
सिर्फ जनसत्तावाले अछूत हैं।क्योकि जो भी कुर्सी में होता है संपादकीय में,उसे अपने साथियों का ख्याल होइच ही नहीं।
हमारे अंग्रेजी अखबारों में किसी की ऐसी दुर्गति नहीं है।
हम भी डिजिटल हैं।मीडिया ही नहीं मैनेजमेंट डिजिटल और सेंट्रलाइज है तो सारे फैसले जाहिर हैं कि दिल्ली से होते हैं।प्रभारी को फारम वगैरह भर कर देना होता है और यह मामूली काम करने की फुरसत हिंदी के किसी संपादक की होती नहीं है।
वेतन पीएफ वगैरह आउटसोर्सिंग है तो आईडी अक्सरहां ही लाक हो जाती है।सैलरी स्लिप हमें आउटसोर्स से लेनी होती है।लेकिन हमारी आईडी लाक है।
हम सैलरी स्लिप भी देख नहीं सकते।मैनेजमेंट का कहा हुआ है कि सारे लोगों को आफिसियल आईडी दे दिया जाये।
आईटी कहना है कि संपादक फार्म के लिए मैनेजमेंट को सिंपली एक मेल भेजें तो फारम मिलेगा और उसे भर दें तो आईडी बन जायेगी।यह जरुरी इसलिए है कि लाक खोलने के लिए आफिसियल आईडी पर ही रिकवरी लिंक मिलेगा।
जब हमारे पुराने साथी हमारी समस्या सुलझा नहीं सकते तो हम किससे गिला शिकवा करें।
हमारे दिग्गजों को तो शर्म आती होगी कि कबाब में हड्डी की तरह प्रोफेशनल रैकिंग में तमाम मैनेजरों,संपादकों और रिपोर्टरों और कालमिस्टों के मत्थे पर जनसत्ता का अछूत यह सब एडीटर है।
नौकरी छोड़ने के बाद बहुतै पादै हैं लोग।हम उनमें नहीं है।डिजिटल इंडिया की यह कारस्तानी और हमारे हिंदी जगत की मेहरबानी हम अबहुं शेयर कर रहे हैं।चाहे बुरा मानो या भला।
बाद में आप कहेंगे कि नौकरी पर थे तो भीगी बिल्ली बने हुए थे या बाजार से वसूली ऐसे कर रहे थे कि परिचय दें तो अगला सीधे मुंह पर थूः कर दे या फिर सत्ता के साथ ऐसे नत्थी कि हमें शर्म आती है और हम कहीं जाते नहीं हैं।
वैसे भी हम सेठों के गुलाम तबके मा शामिल नइखै।चिरकुटों से हमार कोई वास्ता नइखै।कोलकाता में सारा सांस्कृतिक परिदृश्य इस वखत चिरकुटई बा।हमसे कोई ना पूछै कि कोलकाताम मा कौन हमार दोस्त ह।कोई दोस्त नइखै।
अपने समूह के तमाम मैनेजरों, संपादकों,रिपोर्टरों में लिंकडइन पर मेरी रैंकिंग लंबे समय से टाप फाइव में हैं जो पिछले छह महीने से कभी दो,कभी तीन है और मेरे पास न परिचय पत्र है और न आफिसियल आईडी है।
मैं दिल्ली में संपादकीय को कोई आलेख वगैरह भी नहीं भेज सकता क्योंकि मेरा आईडी इंडियनएक्सप्रेस डाट काम नहीं है।
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