Thursday, 02 February 2012 11:09 |
भारत डोगरा इसी तरह पूरे देश में सब तरह की जरूरी सुविधाओं और प्रशिक्षित अध्यापकों की उपस्थिति के इतने स्कूल होने चाहिए कि कोई भी बच्चा अच्छी स्कूली शिक्षा से वंचित न हो। साफ पेयजल की उपलब्धि सभी नागरिकों को, चाहे वे कहीं भी रहते हों, एक बुनियादी हक के रूप में स्वीकृत होनी चाहिए। जीवन की मूलभूत जरूरत से कोई भी वंचित हो तो जवाबदेही संबंधित अधिकारियों की मानी जाए। इस तरह बुनियादी जरूरतों को सब तक पहुंचाने के साथ सरकार को अपनी कर-नीति का उपयोग विषमता को कम करने, आर्थिक केंद्रीकरण को नियंत्रित करने और वित्तीय क्षेत्र में सट््टेबाजी रोकने के लिए करना चाहिए। बैंकिंग और बीमा क्षेत्र में सरकार की महत्त्वपूर्ण उपस्थिति बनी रहनी चाहिए। शेयर बाजार में सट््टे की प्रवृत्तियों पर रोक लगाने और विदेशी धन की तेजी से आवाजाही के नियमन में सरकार को और सावधानी बरतने की जरूरत है। विषमता कम करने का एक बड़ा तकाजा शहरी और ग्रामीण, दोनों क्षेत्रों में भूमि-सुधारों को आगे बढ़ाना भी है। निर्धन परिवारों के लिए कृषिभूमि और आवास-भूमि सुनिश्चित होनी चाहिए। भूमंडलीकरण के दौर में जहां पूंजी को मुक्त आवागमन की छूट मिली है, आयात-निर्यात बढेÞ हैं और विदेशी कंपनियों के साथ वैसा ही बर्ताव करने का दबाव बढ़ा है जैसा किसी देश में अपने यहां की कंपनियों के साथ होता है, तो दूसरी ओर अब वैश्वीकरण का एक दूसरा आयाम भी उभर रहा है- यह है प्रतिरोध का वैश्वीकरण। दुनिया के विभिन्न देशों में हो रहे आंदोलन एक दूसरे से संपर्क और संवाद कायम कर संघर्ष की साझेदारी कायम कर रहे हैं। इसका शायद पहली बार सबसे जोरदार इजहार विश्व व्यापार संगठन के सिएटल सम्मेलन के समय हुआ था। इसकी ताजा मिसाल आक्युपाइ द वॉल स्ट्रीट आंदोलन है, जिसने एक प्रतिशत बनाम निन्यानवे प्रतिशत का सवाल उठा कर अमेरिका और यूरोप में बढ़ती जा रही गैर-बराबरी को एक अहम मुद््दा बना दिया है। मगर अंतरराष्ट्रीय स्तर की यानी देशों के बीच चली आ रही विषमता के खिलाफ भी आवाज उठाना जरूरी है। विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष और विश्व व्यापार संगठन द्वारा चलाई गई नीतियों से गरीब और विकासशील देशों को बहुत हानि हुई है। अब समय आ गया है कि इन नीतियों पर हम पुनर्विचार करें। विभिन्न देश मिल कर तय करें कि इन नीतियों के स्थान पर उचित नीतियां क्या हों? विशेषकर पेटेंट की जो नीति और कानून विश्व व्यापार संगठन और ट्रिप्स समझौते के दबाव में अपनाने पडेÞ, उनके स्थान पर हमें अपने हितों के अनुकूल पेटेंट कानून बनाना चाहिए। ऐसी आयात नीति, जिससे हमारे किसानों और उद्योगों का बाजार या मजदूरों और दस्तकारों का रोजगार छिन रहा हो, उसे अपनाने से हमें इनकार कर देना चाहिए। वैसे भी पूरी अर्थव्यवस्था को निर्यातोन्मुख बनाने का जो लालच अंतरराष्ट्रीय संस्थानों ने दिया था, उससे अर्थव्यवस्था में समस्याएं ही ज्यादा आई हैं और अंतरराष्ट्रीय अस्थिरता से हमारी अर्थव्यवस्था ज्यादा प्रभावित होने लगी है। इसलिए जरूरी है कि निर्यात-वृद्धि को अर्थव्यवस्था की प्रगति का प्रमुख पैमाना मानने के बजाय हम अर्थव्यवस्था में स्थानीय मांग को खास स्थान दें। इसके साथ-साथ विषमता दूर करने के उपाय अपनाए जाएं तो गरीब लोगों की क्रय-क्षमता बढ़ेगी और स्थानीय मांग का आधार व्यापक होगा। यह स्थानीय मांग अर्थव्यवस्था का आधार इस तरह बदल सकती है कि उत्पादन क्षमता और उपभोग में सब लोगों की बुनियादी जरूरतों को प्राथमिकता मिले। यहां गांधीजी के इस सोच को रेखांकित करना जरूरी है कि छोटे और कुटीर स्तर के उत्पादन को विशेषकर प्रोत्साहन दिया जाए। यह सच है कि कुछ तरह का उत्पादन बडेÞ स्तर पर होना चाहिए, पर साथ ही बहुत-से ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें गांवों-कस्बों और छोटे शहरों से कुटीर और लघु उद्योग भी लोगों की जरूरतों को भली-भांति पूरा कर सकते हैं और कुछ मामलों में तो और बेहतर ढंग से करते हैं। इसलिए हर क्षेत्र में बड़ी कंपनियों का अंधाधुंध प्रसार उचित नहीं है, फिर चाहे वे निजी उद्योग हों या सरकारी उद्योग। कुटीर और लघु उद्योग को अधिक महत्त्व देना पर्यावरण-रक्षा की दृष्टि से भी जरूरी है। जैसे-जैसे जलवायु बदलाव का संकट उग्र होता जा रहा है, आर्थिक क्षेत्र की तमाम गतिविधियों के साथ पर्यावरण-रक्षा की नीति को जोड़ना आवश्यक हो गया है। उदाहरण के लिए, जीवाश्म र्इंधन की खपत अंधाधुंध बढ़ाने के स्थान पर अगर गांवों और कस्बों में अक्षय ऊर्जा के विभिन्न स्रोतों का बेहतर से बेहतर उपयोग करने वाले मॉडल विकसित किए जाएं तो यह ऊर्जा के विकास और पर्यावरण दोनों की दृष्टि से उचित होगा। विश्व-स्तर पर देखें तो जलवायु बदलाव के दौर में उत्पादन बढ़ाने को 'कार्बन स्पेस' बहुत सीमित है, इसलिए बुनियादी जरूरतों को प्राथमिकता देना और विलासिताओं पर रोक लगाना पहले से कहीं अधिक जरूरी हो गया है। लिहाजा, समता और सादगी पर आधारित अर्थव्यवस्था का मॉडल ही टिकाऊ विकास सुनिश्चित कर सकता है। |
Thursday, February 2, 2012
विकास की बंद गली
विकास की बंद गली
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