उत्तर प्रदेश में नयी संजीवनी की तलाश में बाजार
बाजार को इस दलदल से निकालने के लिए यूपीए सरकार यूपी में फेल होने के बाद क्या कर पायेगी. बाजार के सामने यक्ष प्रश्न यही है।
मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
यूपी चुनाव के परिणाम अब आने ही वाले हैं। राजनीतिक दलों से ज्यादा बाजार और नीति निर्धारकों के लिए ये परिणाम ज्यादा महत्व के हैं। अखबारी समीज्ञा और सटोरिए की नजर से बाजर विशेषज्ञ सोच नहीं रहे हैं, जाहिर है। राजनीतिक होलात से क्या कछ हो सकता है, टाटा समूह और रतन चाचा से बेहतर कौन जानता है, जिन्हें एक ममता बनर्जी के आंदोलन के कारण नैनो परियोजना के चलते भारी घाटा उठाना पड़ा और फिर झारखंड में निवेश की नए सिरे से रणनीति बनानी पड़ा क्योंकि गुजरात और नरेंद्र मोदी के सहयोगी से नैनो मसले का फौरी हल निकलने के बावजूद समूह को घरेलू बाजार में पैठ बढ़ाने के लिए झारखंड में लौटने का विकल्प ही चुनना पड़ा। य़ूपीए दो की सरकार के सामने दूसरी पीढ़ा के सुधार लागू करने का एजंडा सर्वोपरि है। तमामा वित्तीय सुधार लागू होने हैं। कानून संशोधित किये जाने हैं। घटक दलों ने खासकर ममता बनर्जी ने नाक में दम किया हुआ है। ऐसे में उत्तर प्रदेश से उसे नयी संजीवनी की जरुरत है। इस संजीवनी की बाजार को भी तलाश है।
बाजार की पहली मुराद तो यही है कि मुलायम की सरकार बनें ताकि कांग्रेस को नयी लाइफ लाइन मिले और मायावती और ममता से एकसाथ निजात मिल जाये। पर जमीनी हकीकत और यूपी से लगातार मिल रही फीडबैक से बाजार आश्वस्त नहीं है। ओएनजीसी की हिस्सेदारी की नीलामी में सरकार की जो फजीहत हुई और सेबी ने जिसतरह एलआईसी और एसबीआई के सहारे नियम तोड़कर सरकार की नाक बजाया और फिर इस वित्तीय वर्ष में और विनिवेश न होने के फैसले से बाजार का जोश ठंडा पड़ गया है। रीटेल एफडीआई, सब्सिडी, ब्याज दर, तेल संकट और ईरान युद्ध, यूरोजोन फिर राजकोषीय घाटा, बजट पेश होने तक वित्तीय और मौद्रिक नीतियों की सूरत सीरत कैसी होगी, बाजार को जबरदस्त कारपोरेट लाबिइंग के बावजूद यूजी चुनाव परिणाम से पहले कोई अंदाजा तो नहीं लग पा रहा। मुनाफा वसूली के खेल तक सिमट गया है बाजार और अर्थ व्यवस्था में सरकार कोई कारगर हस्तज्ञेप करने की हालत में नहीं है। वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी महज वित्त मंत्रालय के प्रवक्ता की हैसियत में आ गये हैं और बाजार या अर्थ व्यवस्था को दिशा देने में वे बुरीतरह नाकाम है। घोटालों और कालाधन के मसले अलग से बाजार की हालत पतली किये हुए हैं। स्पेकट्रम का मामला अभी अधर में है। बाजार को इस दलदल से निकालने के लिए यूपीए सरकार यूपी में फेल होने के बाद क्या कर पायेगी. बाजार के सामने यक्ष प्रश्न यही है। शायद नीति निर्माताओं के लिए भी। इसलिए बजट में और मौद्रिक नीतियों में भी ाखिरी वक्त हैरतअंगेज फेरबदल की आशंका है बाजार को। शेयर बाजार की डांवाडोल हालत इसी सेंकट की सर्वोत्तम अभिव्यकिति है।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के सातवें और अंतिम चरण का मतदान कड़ी सुरक्षा के बीच शनिवार सुबह से जारी है। सातवें चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश और रूहेलखंड क्षेत्र के 10 जिलों की 60 सीटों पर मतदान हो रहा है। और अब तीन दिन बाद ही पता चलेगा कि वोटरों ने क्या फैसला किया है। इस बीच, सट्टा बाजार के धुरंधरों ने अपने तरीके से पहले ही उत्तर प्रदेश की आगामी विधानसभा की तस्वीर पेश कर दी है। बुकीज जिस हिसाब से दांव खेल रहे हैं, उससे तो यूपी में 5 साल बाद फिर समाजवादी पार्टी कांग्रेस और आरएलडी को साथ लेकर सरकार बनाती दिख रही है। यह वैसे, पंटर संभावना यह भी जता रहे हैं कि सूबे में राष्ट्रपति शासन लग सकता है। राज्य में पिछले सभी चरणों में मतदान का प्रतिशत पिछले चुनावों से काफी अधिक रहा है। उम्मीद की जा रही है कि सातवें चरण में मतदान का प्रतिशत और बढ़ेगा।जीत-हार को लेकर भी सट्टा बाजार में तेजी आ गई है। हर जगह मतगणना को लेकर ही चर्चाएं है।यूपी में 2007 के चुनाव के मुक़ाबले इस बार मतदान प्रतिशत में रिकॉर्ड इज़ाफा हुआ है। 6 चरणों के मतदान का हिसाब ये है कि 2007 के मुक़ाबले औसतन 15 प्रतिशत वोट ज्यादा पड़ चुका है, अंतिम चरण में भी मतदान 60 प्रतिशत के आस-पास होने की उम्मीद है। मतदान प्रतिशत में हो रहे इस इजाफे पर हर पार्टी खम ठोंक रही है। 2009 लोकसभा चुनाव के नतीजे के नजरिए बात करें तो कांग्रेस को यूपी में इस बार न्यूनतम 70 से 80 विधानसभा सीटों पर जीत मिलनी चाहिए, लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 23 सीटें हासिल हुई थीं...करीब 100 विधानसभा सीटों पर उसे बढ़त भी मिली.. बीते तीन सालों में सच्चर कमेटी, रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट, प्रधानमंत्री का अल्पसंख्यकों के लिए विशेष कार्यक्रम, बुनकर पैकेज, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रखने, केरल और बंगाल में उसकी शाखाएं खोलने समेत तमाम मुद्दे है जिन पर कांग्रेस ने मुसलमानों के 'ओपिनियन मेकर' तबके समेत आम मुसलमान को रिझाने की ठोस पहल की है।
चालू वित्त वर्ष या अगले कुछ महीनों में सरकार किसी भी कंपनी का विनिवेश नहीं करेगी। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा है कि आगे किसी भी सरकारी कंपनी का हिस्सा बेचे जाने के पहले सरकार नीलामी की प्रक्रिया की पूरी तरह से जांच करेगी। वैश्विक आर्थिक चुनौतियों के बीच अगले 10 साल तक 8 से 9 फीसदी की नियमित ग्रोथ रेट सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती साबित होने जा रही है। अर्थव्यवस्था से जुड़े ऐसे तमाम महत्वपूर्ण बिंदु 12 मार्च से शुरू हो रहे बजट सेशन में राष्ट्रपति के अभिभाषण का हिस्सा हो सकते हैं। गौरतलब है कि शुक्रवार की शाम प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की अहम बैठक में राष्ट्रपति के भाषण पर मंजूरी की मुहर लगी। सरकार की सबसे बड़ी चुनौती देश के एक बड़े हिस्से को जीवनयापन के निम्नतम और जरूरी साधन उपलब्ध कराना होगा। 2020 तक देश में रोजगार के अवसर और रोजगार करने वालों के बीच लगभग 350 मिलियन का फर्क होगा।
दरअसल, रेलवे की आर्थिक हालत बेहद खराब है। विशेषज्ञों का मानना है कि किराया बढ़ाए बिना रेलवे की हालत सुधार पाना मुश्किल है। वैसे, पिछले आठ साल से रेल किराए में कोई इजाफा नहीं हुआ।रेल मंत्रालय को वोट बैंक मजबूत करने में ही लगे रहे तमाम रेलमंत्री। ममता बनर्जी के रेल मंत्री बनेने के बाद से लेकर तो आय ब्यय परिचालन खर्च में कोई तालमेल ही नही रहा। दिनेश त्रिवेदी शायद भाड़ा बड़ाना चाहेंगे और रेलवे के नक्श में कुछ सुधार भी, पर ममता के निदर्दे श के बिना वे क्या कुछ कर पायेंगे, इसमें सशंकित बाजार को रेलवे बजट से कोई खास उम्मीद तो नहीं है।
और बाजार की डांवाडोल हालत पर तनिक गौर फरमायें तो स्थिति साफ नजर आयेगी ौर अखबारी समीक्षा सटोरिए के दांव के पार हकीकत का अंदाजा लग पायेगा। विशेष कारोबार सत्र में शनिवार को सेंसेक्स 34 अंक मजबूती के साथ खुला।30 शेयरों पर आधारित सेंसेक्स 34.60 अंक या 0.20 प्रतिशत मजबूत होकर 17,671.48 अंक पर खुला. शुक्रवार को सेंसेक्स 53 अंक तेजी के साथ बंद हुआ था।इसी तरह नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी 4.55 अंक अथवा 0.08 प्रतिशत की तेजी के साथ 5,363.90 अंक पर खुला।
देश के शेयर बाजारों में सप्ताह के आखिरी कारोबारी दिन शुक्रवार को गिरावट दर्ज की गई। प्रमुख सूचकांक सेंसेक्स 52.83 अंकों की बढ़त के साथ 17,636.80 जबकि निफ्टी 19.60 अंकों की बढ़त के साथ 5,359.35 पर बंद हुआ।
जाहिर है अब बच्चा बच्चा जानता है कि कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव से ही बाजारों की चाल तय होगी। इस बवाल से तो बेल आउट की रही सही उम्मीद कम हो गयी है। सरकारी खर्च बढ़ाकर सरकार जरूर उपभोक्ताओं को नकदी देकर बाजार में जान फूंक सकती है। फिर नौकरी पेशा लोगों को डैक्स में छूट देकर, पर राजकोषीय घाटे के मद्देनजर और आधे अधूरे सुधारों की वजह से महज नंदन निलेकणि की गैरकानूनी आधार परियोजना से यह कैसे संभव होगा, जबकि सरकारी योजना मनरेगा को लेकर सबसे ज्यादा विवाद है। उलटे सरकार पर सरकारी खर्च घटाने का दबाव है जो न कारपोरेट जगत और न ही बाजार की सेहत के लिए ठीक है।
कच्चे तेल में आया उबाल वैश्विक बाजारों के लिए चिंता का विषय बन गया है। कच्चे तेल महंगा होने से सरकार पर ऑयल सब्सिडी बोझ बढ़ रहा है। इस वजह से सरकार पर पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ाने का दबाव है। पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ना बाजार के लिए बुरी खबर होगी। ईंधन के दाम बढ़ने से महंगाई बढ़ने की आशंका है, जिससे आरबीआई के रेपो रेट घटाने की संभावना कम होगी।
डायरेक्ट टैक्स कोड (डीटीसी) पर संसद की स्टैंडिंग कमेटी ने अंतिम रिपोर्ट सौंप दी है। हफ्ते भर में संसद को स्टैंडिंग कमेटी की रिपोर्ट भेजी जाएगी।
स्टैंडिंग कमेटी की सिफारिश है कि आयकर छूट की सीमा बढ़ाकर 3 लाख रुपये की जाए। साथ ही, 2.5 लाख रुपये तक की बचत पर टैक्स छूट मिले।
पर्सनल इनकम टैक्स के 3 स्लैब - 10 फीसदी, 20 फीसदी और 30 फीसदी की सिफारिश है। कमेटी का मानना है कि कॉरपोरेट टैक्स 30 फीसदी पर बरकार रखा जाए।
जानकारी के मुताबिक तिजोरी भरने के लिए अब सरकार की एसयूयूटीआई पर नजर है।
सूत्रों का कहना है कि अगले हफ्ते कैबिनेट एसयूयूटीआई को बंद करके नई कंपनी बनाने के प्रस्ताव पर विचार करेगा। नई कंपनी मार्च में ही बनाई जाएगी। सरकार को नई कंपनी बनाने का फायदा वित्त वर्ष 2013 में मिलेगा।
नई कंपनी पूंजी जुटाने के लिए एसयूयूटीआई के शेयरों को गिरवी रखेगी। शेयर गिरवी रखकर जमा की गई रकम का इस्तेमाल नई कंपनी सरकारी कंपनियों में सरकार की हिस्सेदारी खरीदने के लिए करेगी।
यूटीआई के रिस्ट्रक्चरिंग के तहत एसयूयूटीआई बनाई गई थी। एसयूयूटीआई के पास आईटीसी का 11.54 फीसदी, एलएंडटी का 8.27 फीसदी, एक्सिस बैंक का 23.58 फीसदी हिस्सा है।
निवेशकों में जोश में कमी और बाजार में ठंडा कारोबार नजर आ रहा है। दोपहर 12:10 बजे, सेंसेक्स 15 अंक चढ़कर 17651 और निफ्टी 4 अंक चढ़कर 5363 के स्तर पर हैं।
सरकारी कंपनियों के शेयर 0.5 फीसदी से ज्यादा चढ़े हैं। बैंक, आईटी, मेटल, तकनीकी शेयर 0.4-0.25 फीसदी की तेजी है।
कैपिटल गुड्स, हेल्थकेयर, ऑयल एंड गैस, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स शेयर सुस्त हैं।
ईआईएच में रिलायंस इंडस्ट्रीज द्वारा हिस्सा बढ़ाए जाने की खबर से ईआईएच, ईआईएच एसो, होटल लीला, ताज जीवीके, एशिएन होटल्स 20-8.5 फीसदी तेज हैं।
जिंदल स्टील, सन फार्मा, आईसीआईसीआई बैंक, इंफोसिस, एसबीआई, हीरो मोटोकॉर्प, टाटा स्टील 1-0.25 फीसदी तेज हैं।
रियल्टी शेयरों में 0.25 फीसदी की गिरावट है। ऑटो, पावर, एफएमसीजी शेयर फिसले हैं।
एनपीपीए से नोटिस मिलने की खबर से सिप्ला 1 फीसदी टूटा है। डीएलएफ संभला है और शेयर में सिर्फ 0.5 फीसदी की कमजोरी है।
स्टरलाइट इंडस्ट्रीज, बजाज ऑटो, एनटीपीसी, मारुति सुजुकी 0.5-0.25 फीसदी गिरे हैं। बीएचईएल, एचयूएल, रिलायंस इंडस्ट्रीज, विप्रो, टाटा पावर, आईटीसी भी लाल निशान में हैं।
यूपी के चुनावों में बड़ा मुद्दा है मुस्लिम आरक्षण। कांग्रेस, एसपी, बीएसपी और बीजेपी चारों बड़ी पार्टियां इस पर खेल रही हैं। देश का बड़ा मुसलमान तबका पिछड़ा हैं।चुनावी वक्त में कांग्रेस ने अल्पसंख्यकों को साढ़े चार फीसदी आरक्षण का तोहफा दिया, जाटों को केंद्रीय ओबीसी कोटे में जगह देने का वादा किया, बुंदेलखंड में पैकेज के ऐलान के बाद बुनकरों के लिए भी बढ़ चढ़कर घोषणाएं कीं तो साफ हो गया कि कांग्रेस सचमुच 'करो' के एजेंडे पर बहुत कुछ कर रही है ताकि चुनाव नतीजे यूपी में राहुल गांधी समेत कांग्रेस के रणनीतिकारों के सामने 'मरो' वाली हालत पैदा न कर दें। मुख्यमंत्री मायावती के समर्थक कहते हैं कि वोट प्रतिशत में बढ़ोतरी सत्ता में बहिनजी के पूरे हनक के साथ लौटने का सीधा संकेत है, ठीक उसी तरह जैसे बिहार में नीतीश कुमार ने 2010 में जीत हासिल की थी। वहीं मुलायम के समर्थकों का दावा है कि मुस्लिम और यादव गठजोड़ के साथ अन्य जातियां भी समाजवादी पार्टी के पक्ष में मतदान कर रही हैं। तो सवाल उठता है कि आखिर इस घमासान का नतीजा किसके पक्ष में होगा।
सट्टा बाजार के मुताबिक, समाजवादी पार्टी 150-153 सीट लेकर सबसे बड़ी पार्टी बनेगी। बीएसपी दूसरे नंबर पर रहेगी, लेकिन उसकी सीटों की संख्या करीब आधी हो जाएगी और वह 97-100 के बीच सिमट जाएगी। जैसा कि मीडिया में कहा जा रहा है बीजेपी और कांग्रेस-आरएलडी गठबंधन तीसरे और चौथे स्थान के लिए संघर्ष कर रहे हैं, सटोरियों की भी यही राय है। उनके मुताबिक, बीजेपी की सीटों में इजाफा होगा और वह 75-78 विधायकों के साथ तीसरे नबंर पर बरकरार रहेगी। पंटरों के मुताबिक, कांग्रेस-आरएलडी गठबंधन के खाते में सिर्फ 60-63 सीटें जाएंगी।
बीएसपी के विरोधियों का तर्क है कि ब्राह्मण और मुस्लिम अब मायावती का साथ नहीं देने वाले, माया के भ्रष्ट मंत्रियों और सर्वजन के नाम पर ख़ास तबके के लिए उमड़े प्रेम से ब्राह्मण और मुस्लिम समेत कई समुदायों में कुछ निराशा की भावना है। लेकिन माया समर्थकों के इस दावे में भी दम है कि बहिन जी ने 88 मुस्लिम और 76 ब्राह्मण उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारकर चुनावी समीकरण दुबारा अपने पक्ष में कर लिया है। यूपी के पुराने चुनाव नतीजे बताते हैं कि करीब 300 सीटों पर कुल मतदान के 20 से 30 प्रतिशत वोट पाने वाला उम्मीदवार की जीतने की गारंटी रही है, इस लिहाज़ से 22 प्रतिशत दलित मतदाताओं में बड़ा तबका अगर मायावती के साथ एकजुट खड़ा रहा और उसने 88 मुस्लिमों और 76 ब्राह्मणों के पक्ष में वोट डाले तो 164 सीटों पर बीएसपी मुक़ाबले में नंबर एक और दो की लड़ाई में सीधे दिख रही है।
लखनऊ के सट्टा बाजार में पंटर सबसे ज्यादा संभावना प्रेजिडेंट रूल की जता रहे हैं। 6 मार्च के बाद सूबे में प्रेजिडेंट रूल पर 100 पर 110 रुपये का भाव चल रहा है। दूसरी सबसे प्रबल संभावना समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह के नेतृत्व में सरकार बनने को लेकर जताई जा रही है। इस पर 100 पर 125 रुपये की बोली चल रही है। यानी मुलायम की सरकार पर 100 रुपये का दांव लगाने से सिर्फ 125 रुपये मिलेंगे। बीएसपी पर 100 पर 250 रुपये का और बीजेपी पर 100 पर 500 रुपये का भाव चल रहा है। आंकड़े से साफ है कि सट्टा बाजार को बीजेपी की सरकार बनने की संभावना सबसे कम दिख रही है। सट्टेबाजों की नजर में मंगलवार को नतीजे आने के बाद बीजेपी और बीसीपी के साथ आने की संभावना काफी कम है। इस संभावना पर 100 पर 190 रुपये की बोली चल रही है।
सात फेज में होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में हर फेज की वोटिंग के बाद पार्टियों को मिलने वाली सीटों के बारे में सटोरियो का आकलन बदलता रहा है। एक पंटर के मुताबिक, एसपी को 135, बीएसपी को 125, कांग्रेस-आरएलडी को 60 और बीजेपी को 50 सीटों के साथ बेट खुला था। अब पंटर एसपी को 150-153, बीएसपी को 97-100, बीजेपी को 75-78 और कांग्रेस-आरएलडी को 60-63 सीट दे रहे हैं।
Palash Biswas
Pl Read:
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