Sunday, 17 February 2013 11:51 |
तवलीन सिंह यह परंपरा 1947 से चलती आ रही है और किसी ने चूंकि विरोध नहीं किया है डट कर इसका, सो अपने वीवीआइपी राजनेताओं ने अपनी सुविधाओं में धीरे-धीरे वृद्धि करनी शुरू कर दी। दिल्ली में स्कूलों की इतनी कमी है कि घूस देकर आम माता-पिता अपने बच्चों का दाखिला दिलाते हैं। इस कमी को पूरा करने के बदले हमारे चतुर सरकारी अधिकारियों ने क्या किया? अपने बच्चों के लिए संस्कृति नाम का इतना खास स्कूल बनाया है कि यहां सिर्फ उन बच्चों को दाखिला मिलता है जिनके माता-पिता वीवीआइपी श्रेणी में गिने जाते हैं। रही स्वास्थ्य सेवाओं की बात, तो जहां इस देश के गरीब लोग मजबूर हैं प्राइवेट अस्पतालों में इलाज कराने को, वहीं सरकारी अस्पतालों में वीवीआइपी लोगों के लिए बेहतरीन स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हैं। यह कैसा लोकतंत्र है? सुरक्षा मामलों में हमारा और वीवीआइपी लोगों में अंतर इतना है कि जहां 761 आम नागरिकों के लिए तैनात है एक पुलिसकर्मी वहां 14,842 लोगों की हिफाजत करते हैं 47,557 पुलिसकर्मी। यानी एक वीवीआइपी के लिए तीन पुलिस वाले। यह कैसा लोकतंत्र है? विनम्रता से मैं अर्ज करती हूं कि यह लोकतंत्र नहीं, लोकतंत्र के भेस में सामंतशाही है। मेरा मानना है कि जितने ताकतवर हमारे वीवीआइपी राजनेता और आला अधिकारी हैं आज, उतने ताकतवर तो राजा-महाराजा भी न हुए होंगे कभी। इस बात को वे हमसे अच्छा जानते हैं सो खैरात बांटने में लगे रहते हैं, ताकि जनता में इनकलाब की भावना पैदा न हो। सो, जहां अपने लिए खरीदे जा रहे हैं वीवीआइपी हेलिकॉप्टर वहां जनता के लिए इंतजाम किया जा रहा है सस्ते अनाज का। अनाज भूखी जनता तक पहुंचेगा तो नहीं, क्योंकि उसे बांटने का प्रबंध किया जाएगा उस टूटी वितरण प्रणाली से जो दशकों से नाकाम है, लेकिन हमारे वीवीआइपी शासकों को खैरात बांटने का चैन मिलेगा। इतने बड़े पैमाने पर अनाज बांटने का प्रबंध है खाद्य सुरक्षा विधेयक के तहत कि संभव है कि कंगाल हो जाएगी देश की अर्थव्यवस्था। अच्छा तो नहीं होगा, लेकिन अगर ऐसी नौबत आती है तो कम से कम वीवीआइपी हेलिकॉप्टरों को खरीदने की गलती करने से तो हम बच जाएंगे। |
Sunday, February 17, 2013
कंगाली में उड़नखटोला
कंगाली में उड़नखटोला
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