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Sunday, April 21, 2013

डायन प्रथा को बढ़ावा देती ‘एक थी डायन’

डायन प्रथा को बढ़ावा देती 'एक थी डायन'


कोंकणा सेन शर्मा की काली गहरी आंखें, सांवला रंग और लंबी चोटी यद्यपि आर्ट के दृष्टिकोण से उम्दा हो सकते हैं, परंतु 'एक थी डायन' फिल्म में कोंकणा का ये कांबीनेशन समाज के अंधविश्वासी ताने-बाने को और बढ़ावा ही देगा...

राजीव


उन्नीस अप्रैल को रिलीज हुयी एकता कपूर की फिल्म 'एक थी डायन' का झारखंड में विरोध शुरू हो गया है. जमशेदपुर् की फ्री लीगल एड कमेटी के प्रेसीडेंट प्रेमचंद ने देश के राष्द्रपति प्रणव मुखर्जी को आवेदन देकर यह गुजारिश की है कि इस फिल्म को सिनेमा हालों में दिखाये जाने पर तत्काल रोक लगायी जाए, क्योंकि फिल्म 'एक थी डायन' अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाली फिल्म है. इससे न सिर्फ झारखंड में फैली डायनप्रथा के खिलाफ , बल्कि पूरे देश में चलाए जा रहे जागरूकता अभियान पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.

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गौरतलब है कि फ्री लीगल एड कमेटी पिछले दो दशकों से डायन प्रथा के खिलाफ न सिर्फ झारखंड, बल्कि पड़ोसी राज्यों में आंदोलनरत रही है. इसकी ग्रामीण प्रभारी चुटनी महतो को कभी डायन बता कर प्रताडि़त किया जाता रहा था. बाद में उन्होने इसके खिलाफ एक मुहिम चला दी थी. उनके द्वारा डायन प्रथा के खिलाफ किए गए कार्यों को प्रोत्साहित करते हुए हाल में चुटनी महतो को राष्द्रीय महिला आयोग ने पुरूस्कृत भी किया था.

उल्लेखनीय है कि एकता कपूर और विशाल भारद्वाज की फिल्म 'एक थी डायन' का तानाबाना उसी सब बातों के इर्द-गिर्द बुना गया है जिसे आम लोग बचपन से सुनते आए हैं. फिल्म में डायना नाम की डायन को शक्तिशाली और बदले की भावना से पीडि़त दिखाया गया है, जो बदला लेने के लिए बीस साल तक का इंतजार करती है और तरह-तरह के अंधविश्वासों को जीवंत करती दिखायी गयी है.

मसलन डायन के घने बाल होते हैं, उसकी शक्ति उसके चोटी में होती है, उसके पांव उलटे होते है. इन सभी दकियानूसी बातों को फिल्म में क्रिएटिव रूप में दिखलाने से समाज पर क्या प्रभाव पड़ेगा, यह समझना बहुत मुश्किल नहीं है. कोंकणा सेन शर्मा की काली गहरी आंखें, सांवला रंग और लंबी चोटी यद्यपि आर्ट के दृष्टिकोण से उम्दा हो सकते हैं, परंतु 'एक थी डायन' फिल्म में कोंकणा का ये कांबीनेशन समाज के अंधविश्वासी ताने-बाने को और बढ़ावा ही देगा.

डायन प्रथा एक सामाजिक कुरीति है जो आज भी झारखंड जैसे राज्यों में गहराई तक अपनी जड़ जमायी हुयी है। झारखंड राज्य में डायन प्रथा का कहर का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दो दशकों में लगभग 1200 महिलाओं को डायन बताकर मौत के घाट उतार दिया गया। इसके अतिरिक्त महिलाओं को डायन कह कर मलमूत्र पिलाना, पेड़ से बांधकर पीटा जाना, अर्द्धनग्न और कभी नग्न कर गांव के गलियों में घसीटा जाना आदि प्रताडि़त करने के कुछ तरीके हैं, जो राज्य के ग्रामीण इलाकों में रोजमर्रा की घटनाएं हैं.

ग्रामीणों में यह अंधविश्वास होता है कि डायन एक ऐसी महिला होती है जिसे अलौकिक शक्ति भूत-साधना से प्राप्त होती है. वह महिला भिन्न-भिन्न तरीके से लोगों को मार देती है, प्रचलित शब्द है 'खा' जाती है। अंधविश्वास जब किवदंती का रूप लेने लगती है तो समाज से उसे हटाना मुश्किल हो जाता है। एकता कूपर की फिल्म 'एक थी डायन' में डायनप्रथा को अलौकिक रूप में दिखाने का प्रयास किया गया है. फिल्म में डायन को हत्या करते हुए दिखाया गया है. सम्मोहन क्रिया और अलोकिक शक्ति को डायन से जोड़ते हुए डायन के इर्द-गिर्द एक ऐसा तानाबाना बुना गया है जो डायन को महिमामंडित करता हुआ लगता है. निस्संदेह इसका कुप्रभाव वैसे समाज पर पड़ेगा जो पहले से ही डायनप्रथा से ग्रसित रहा है.

इसे बिडम्बना ही कहा जाएगा कि फिल्म जैसे सशक्त माध्यम को अंधविश्वास का उन्मूलन करने के लिए नहीं, बल्कि उसे बढ़ावा देने के लिए किया जा रहा है जो एक निंदनीय कृत्य है. 10 अप्रैल को पश्चिम सिहंभूम जिला के कसूरवान गांव के सोनूआ थाना क्षेत्र में एक 55 वर्षीय महिला रजनीगंधा मुखी ने अंधविश्वास में वशीभूत एक देवी को खुश करने के लिए अपने पांव की नश को काट लिया और अस्पताल ले जाने के पहले ही उसकी जान चली गयी.

6 अप्रैल को झीकपानी थाना अंतर्गत नोवा गांव की डोंगा तामसी नामक महिला के भतीजे ने डायन कह कर उसका सर काट दिया. खबर मिलने पर पुलिस ने सर कटे शव और अलग से सर को जंगल से बरामद किया. 7 अप्रैल को पश्चिम सिंहभूम के मझहारी थाना क्षेत्र में सिनी कुई नामक एक महिला को डायन बताकर उसके रिश्तेदार तब तक पीटते रहे, जब तक कि उसने दम नहीं तोड़ा. 11 अप्रैल को घाटशीला के हालूदबोनी गांव में एक 60 वर्षीय महिला सिंगो मार्डी को डायन बताकर उसके पड़ोसी प्रिथी मार्डी ने छड़ी से पीटते-पीटते जान से मार डाला. पत्नी की हत्या से आहत उसका 70 वर्षीय पति तोरो मुर्मू जो कुछ सप्ताह से बीमार चल रहा था की हालत बिगड़ गयी. हालांकि कुछ लोगों ने तोरो मुर्मू को घटशीला अस्पताल पहुंचा दिया, जबकि उसकी हालत नाजुक बनी हुयी है.

डायन प्रथा की गंभीरता को देखते हुए सरकार ने जुलाई 2001 में ही डायन प्रतिषेध अधिनियम 1999 को अंगीकृत किया, जिसके तहत किसी महिला को डायन करार देकर उसका शारीरिक या मानसिक शोषण करने वाले को छह माह की जेल या 2000 रुपए का जुर्माना देने का प्रावधान है। इसके अलावे डायन प्रथा का दुष्प्रचार करने या इस कार्य के लिए लोगों को प्रेरित करने वाले व्यक्ति को तीन माह का सश्रम कारावास और 1000 रुपए जुर्माने का प्रावधान है। ऐसे में सवाल है कि क्या 'एक थी डायन' फिल्म कानून के खिलाफ बनायी गयी फिल्म नहीं है?

rajiv.jharkhand@janjwar.com

http://www.janjwar.com/2011-06-03-11-27-26/2011-06-03-11-46-05/3930-dayan-pratha-ko-badhava-deti-film-by-rajiv

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