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Thursday, May 8, 2014

आंखें बंद करके अच्छे वक्त और बेहतर मौसम के लिए इंतजार से हम अपनी मौत टाल नहीं सकते। बदलाव की शुरुआत के लिए कहीं न कहीं से कुछ शुरुआत तो होनी ही चाहिए। मरे हुओं पर वार करने क्यों सर्वशक्ति लगा दी बिना जनादेश लाभ के कल्कि अवतार ने ,यह पहेली बूझने की दरकार है। हमारे घाव आज भी उतने ही हरे हैं जितने तुम्हारे झूठ अब भी भड़कीले हैं

आंखें बंद करके अच्छे वक्त और बेहतर मौसम के लिए इंतजार से हम अपनी मौत टाल नहीं सकते। बदलाव की शुरुआत के लिए कहीं न कहीं से कुछ शुरुआत तो होनी ही चाहिए।


मरे हुओं पर वार करने क्यों सर्वशक्ति लगा दी बिना जनादेश लाभ के कल्कि अवतार ने ,यह पहेली बूझने की दरकार है।


हमारे घाव आज भी उतने ही हरे हैं

जितने तुम्हारे झूठ अब भी भड़कीले हैं


पलाश विश्वास

रांची से मित्रवर एके पंकज ने जो लिखा है,उसे महसूस किये बिना कोई भी संवाद इस धर्मोन्मादी फासीवादी कारपोरेट सेनसेक्स फ्रीसेक्स समय में निरर्थक है।इंद्रियां अब सिर्फ भोग के लिए सीमाबद्ध और संवेदनाएं मर चुकी हैं। हम अपने अपने संकट से जूझ रहे हैं यकीनन,लेकिन दृष्टिअंध  होकर सत्तावर्णवर्चस्वी नस्ली तंत्र मंत्र यंत्र के सर्वशक्तिमान तिलिस्म के मध्य राह निकालना हर सूरत में निहायत मुश्किल है।

हमारे घाव आज भी उतने ही हरे हैं

जितने तुम्हारे झूठ अब भी भड़कीले हैं


घाव तो लग रहे हैं और वार भी हो रहे हैं अविराम।घाव रिस भी रहे हैं।मवाद भी जमा है।लोग कुरेद भी रहे हैं घाव।अश्वत्थामा की तरह हमारा यह गमगीन सफर अमर है,अनंत भी।लाइलाज।


झूठ अब सत्यमेव जयते है।झूठ हर वक्त मृगमरीचिका की तरह स्वजनों के खून से लथपथ भीड़ बना रही है सबको साफ करके सिर्फ अपने लिए सबकुछ हासिल करने के लिए।हर शख्स अकेला है।


हर शख्स परेशां।सीने में जहरीला जलन है और बोलने की भी हिम्मत है नहीं।बोलें तो कोई सुनने को नहीं है इतना शोर है इस मुक्त बाजार में।



फिर भी राहुल सांकृत्यायन की मानें तो आंखें बंद करके अच्छे वक्त और बेहतर मौसम के लिए इंतजार से हम अपनी मौत टाल नहीं सकते।


बदलाव की शुरुआत के लिए कहीं न कहीं से कुछ शुरुआत तो होनी ही चाहिए।


लीजिये,अब आठवां चरण का वोट जश्न भी मुकम्मल हो गया।

अब बची इकतालीस सीटें फकत।


लेकिन कल्कि अवतार का राज्याभिषेक वैदिकीयज्ञ की पुर्णाहुति अभी हुई नहीं है।


अश्वेमेधी घोड़े सरपट दौड़ ही रहे हैं।टापों के आक्रामक स्वर के सिवाय कुछ भी सुनायी नही पड़ रहा है।


रामधुन जारी है तो अब अंतिम बेला में गंगा आरती की धूम भी है।


जो एक लाख करोड़ सत्ता सट्टा पर लगा है,उसको ध्यान में रखें।


जो घोषित तीस हजार करोड़ चुनाव खर्च में शामिल हैं,उसे भी ध्यान में रखें।


जो लाखों करोड़ घोटालों में न्यारा वारा हुआ,उसका जो कमीशन खपना है,उसे भी ध्यान में रखें।


जो रातोंरात सेनसेक्स की सेहत बुलंद होती जा रही है और निवेशकों का दांव लग रहा है फासिस्ट वैदिकी भारत पर , उसे भी ध्यान में रखें।


हर जनादेश के बाद जो घोड़ों की मंडी लगती है,उसका भी ध्यान रखें।


लाखों करोड़ का वारा न्यारा करके देशभर में धर्मोन्मादी सुनामी के बावजूद कल्कि अवतार का राज्याभिषेक न हो,यह असंभव है।


हमें अपनी पेशेवर पत्रकारिता के रिटायर समय में मजीठियावंचित बेआवाज पत्रकारों की सत्ताकामोत्तेजना को देखते हुए हैरत हो रही है।


अखबार खोलो तो डर लगता है,टीवी देखो तो डर लगता है कब मीडियाकर्मी अब दंगाई भीड़ में तब्दीलहो जायेगी और असहमत साथियों को एक बालिश्त छोटा कर देने का पवित्र कर्म संपन्न करके कर्मफल सिद्धांत के मुताबिक परम मोक्ष के भागीदार होने के हमीं पर झपट पड़ेगी।


अब अंतिम चरण के संपन्न होते ही एक्जिट पोल और विश्लेषण के अलावा केंद्र में नई सरकार बनाने और उनका एजंडा तय करने का कार्यभार अर्थशास्त्रियों और कारपोरेट कंपनियों और घरानों से छीन लेने को बेताब है मीडिया।


पेड न्यूज का सिलसिला बंद होने से पहले अपरबो करोड़ों कमाने के बावजूद तेज तेज होते विज्ञापनी जिंगल के मध्य मीडिया जनादेश कवायद बंद होने का नाम ले ही नहीं रही है।



कल्कि अवतार अपने राज्याभिषेक को लेकर बेहद फिक्रमंद हैं,बनारस में रैली पर रोक को लेकर परेशान हैं तो उत्तर प्रदेश,बिहार और बंगाल में जहां अश्वमेध के घोड़े थक हार से गये दीखते हैं ,एकतरफा छाप्पा वोट का आरोप भी लगा रहे हैं स्वयंभू प्रधानमंत्री।


मां बेटे की सरकार गयी,ऐलान के बावजूद धर्मनिरपेक्ष गोलबंदी हो रही है आक्रामक हिदुत्व के खिलाफ तो तीसरे मोर्चे के प्रधानमंत्रित्व के लिए दावेदारों की नींद हराम है।


हमें आखिर क्या हासिल होना है,इस पर हम लेकिन अब भी सोच नही रहे हैं।


तेइस साल की आर्थिक जनसंहारी नीतियों की अल्पमत रंग बिरंगी सरकारों की निरंतरता और प्रतिबद्धता से बदले हालात को तौल भी नहीं रहे हैं हम।


जो होना है, होकर रहेगा।

होनी अनहोनी न होय।

जो जीवैं लिहाफ ओढ़कर सोवै।


कुल मिलाकर माहौल यही है।


नियतिबद्ध भवितव्य भविष्य को बदलने की कोई कवायद हो ही नहीं रही है।


यह आलेख तनिक विलंबित है,माफ करें।


बंगाल अब नमोमय हुआ जा रहा है और दीदी की एकतरफा जीत के बावजूद कांग्रेस और वामदलों का निर्मायकतौर पर सफाया तय हो गया है।


मिथ्या परिवर्तन जो 2011 के विधानसभा चुनावों में बाजार के पुरकश समर्थन से कर देने का दावा मां माटी मानुष की सरकार ने किया,हैरतअंगेज तरीके से उत्तर प्रदेश,बिहार या गायपट्टी में अन्यत्र कहीं फोकस करनेके बजाय पत्थर से तेल निकालनेकी तर्ज पर कल्कि अवतार बंगाल मे नये सिरे सती पीठों की स्थापना में लगे रहे।


ऐसा क्यों किया और इतनी फुरसत कैसे जुगाड़ ली उन्होंने इस पर गौर करने वाली बात है।


ध्यान रखा जाये, मनमोहन के ईश्वरत्व समय में वामदल तीन तीन राज्यों बंगाल,केरल और त्रिपुरा में सत्ता में ही नहीं थे,उनके सामाजिक संगठनों में सबसे ज्यादा सांगठनिक शक्ति थी।


देश की अर्थव्यवस्था और उत्पादनप्रणाली को वैदिकी कारपोरेट जायनवादी मुक्तबाजार में होम करने के बावजीद तमाम सेक्टरों में सक्रिय एकाधिकारवादी नेतृत्वकारी वाम संगठनों ने कोई प्रतिवाद भी  नहीं किया।


निजीकरण और विनिवेश के खिलाफ,प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के खिलाफ हम वाम प्रतिरोध का इंतार ही करते रहे।


वाम किसान संगठनों में ही सबसे बड़ी संख्या में किसान लामबंद रहे लेकिन भूमि सुधार को, संसाधनों और अवसरों के न्यायपूर्ण बंटवारे को लेकर कोई राष्ट्रव्यापी आंदोलन नहीं हुआ वाम विश्वासघात के कारण।


नागरिक अधिकार,मानवाधिकार और मौलिक संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए वामदलों की किसी भी कवायद की हलचल नहीं रही देशभर में।


संविधान लागू नहीं हुआ,कानून का राज है ही नहीं, लोकतंत्र और लोकगणराज्य की रोज हत्या होती रही,लेकिन कामरेड बिना अपनी कैडरबद्ध संगठन शक्ति का इस्तेमाल किये विचारधारा की जुगाली करते हुए सत्ता शेयर करते रहे और सत्ता के गलियारे में लापता हैं आंदोलन,संगठन और विचारधारा।


आम नागरिक जल जंगल जमीन आजीविका नागरिकता और मानवाधिकार से बेदखल होते रहे तो वामपंथी जनाधार,संघठन, विचारधारा और आंदोलन से बेदखल हो गये।हिंदुत्व फासिस्ट अभ्युत्थान की यह धर्मनिरपेक्ष पटकथा है।


मरे हुओं पर वार करने क्यों सर्वशक्ति लगा दी बिना जनादेश लाभ के कल्कि अवतार ने ,यह पहेली बूझने की दरकार है।


बंगाल पर छापामार हमले का एकमात्र मकसद वामदलों का नामोनिशान मिटाना ही नहीं है,आंदोलन की जमीन और विरासत से भी उन्हें हमेशा के लिए अलग करना है।


राजधानी में जो वामविशेषज्ञ और धर्मनिरपेक्ष तत्व हैं और जो माणिक सरकार तक को प्रोजेक्ट करके तीसरे मोर्चे की अस्मिताधारक पहचानवाहक अति महात्वाकांक्षी क्षत्रपों की सरकार बनाने की जोड़ तोड़ में लगे हैं,उनकी सारी कवायद के बरखिलाफ जमीनी हकीकत यह है कि वामवध का असली मकसद हासिल करके कल्कि अवतार ने अगले दो सौ सालों के लिए होने वाले तमाम आंदोलनों की एक मुश्त भ्रूण हत्या कर दी है।


बंगाल के वामपंथियों ने भी इस खतरे को न पहचानकर केसरिया लहर को अपने हक में वापसी की संभावना समझकर अपने सफाये की जमीन तैयार करने में भरपूर अवदान दिया।


ममता विरोधी कल्कि अभियान से तटस्त रहे वामपंथी और केंद्रीय एजंसियों के जरिये ममता की कांग्रेसी घेराबंदी को भी वे अपने हक में मानते रहे।


बहुत बाद में हिंदू मुसलिम बंगाली गैर बंगाली नागरिक बेनागरिक मतुआ गैरमतुआ हरसंभभ विभाजक रेखाएं खीचने की अभूतपूर्व कल्कि उपलब्धि के उपरांत कहीं वामदलों की नींद टूटी है।


हम लगातार 2003 से नागरिकता संसोधन कानून और कारपोरेट आधार प्रकल्प को देशभर में जल जमीन जंगल और शहरी संपत्ति से बेदखली के औजार बताते हुए जनजागरण करते रहे,निरंतर लिखते रहे।आर्थिक सुधारों और कारपोरेट नीति निर्धारण के साथ जनसंहारी अश्वमेध के खिलाफ लोगों को चेताते रहे खाड़ी युद्ध शुरु होते न होते।


एक मामूली पत्रकार की औकात समझने वाली बात है। हमारा लिखा कहीं छपता नहीं है।ब्लाग अब तो फिरभी लोग पढ़ने लगे हैं। अपने पैसे से नौकरी और गृहस्थी संभालकर हम तो वह भी नहीं कर पाये जो कैंसर रीढ़ में रखकर मेरे दिवंगत पिता खेती और गृहस्थी दोनों को ताक पर रखकर आजीवन करते रहे।


हम आज भी अपने लोगों को समझाने में नाकाम हैं कि नागरिकता संशोधन कानून और आधार प्रकल्प कैसे जुड़वा मृत्युवाण हैं भारत के बहुसंख्य नागरिकों के लिए,जिनका सफाया ही तमाम सरकारों और दलों का कारपोरेट एजंडा है।


लेकिन कल्कि अवतार का धन्यवाद कि बंगाल में अपनी विभाजन राजनीति के कारण उन्होंने नागरिकता संशोधन कानून को मुख्य मुद्दा बना दिया। लेकिन उनके इस दावे पर को समझदारी से चुनौती भी नहीं देने की हालत में है कि नागरिकता संशोधन कानून के मुताबिक 18 मई,1948 से पहले यानी भारत विभाजन और सत्ता हस्तांतरण की एक साल से कम अवधि के भीतर भारत न आने वाले और उसके बाद भारत आये तमाम लोग जो किसी भी कारण अब भी नागरिकता वंचित हैं चाहे वे हिंदू हो या मुसलमान तो कल्कि अवतार बिना उस कानून को तब्दील करके कैसे हिंदू शरणार्थियों या मतुआ समुदाय को नागरिकता दिलायेंगे।


1947 में भारत विभाजन हुआ तो दो राषट्र बने और 1971 में बांग्लादेश का जन्म हुआ लेकिन कोई यह भी नही पूछ रहा कि जब इंदिरा मुजीब समझौते से पहले तक बांग्लादेश के गठन के बाद भी भारत आये तमाम शरणार्थी कैसे बांग्लादेशी शरणार्थी हो गये।


बहरहाल जो कानूनी स्थिति है,उसके मुताबिक 18 मई,1948 के बाद आये तमाम लोगों को देश निकाला कोई कल्कि अवतार के फतवे की वजह से नहीं,बल्कि सर्वदलीय सहमति से संशोधित नागरिकता कानून के असंवैधानिक अमानवीय प्रावधानों के तहत ही संभव है।


अब धर्मनिपेक्षता की गुहार लगायी जा रही है लेकिन ममता बनर्जी राजग मंत्रिमंडल में बाकायदा रेलमंत्री थीं जब यह जनविरोधी कानून पास हुआ।इसीतरह आधार प्रकल्प का उन्होंने कभी विरोध नहीं किया था और 2005 में भी वामदलों के मुसलिम वोट बैंक को वे बांग्लादेशी घुसपैठिया बताती रही हैं। उन्होंने सत्ता में आने के बाद आधार प्रकल्प के खिलाफ विधानसभा में सर्वदलीय प्रस्ताव जरुर पास करवाया, लेकिन न वाम दलों ने और न तृणमूल कांग्रेस ने आधार योजना को खारिज करने की मांग की।


अब बांग्लादेशी होने की वजह से ही कोई नागरिकता से बेदखल नहीं हो सकता,जो इस तमगे से मुक्त है,देश के तमाम आदिवासी और शहरी गंदी बस्तियों में रहनेवाले लोग,खानाबदोश तमाम समुदाय राज्स्व विभाग में यथोचित पंजीकृत न होने के कारण बेदखली के साथ साथ बेनागरिक हो सकते हैं और उनके तमाम मौलिक अधिकार खत्म किये जा सकते हैं।


आधार योजना के तहत जो बायोमेट्रिक डिजिटल नागरिकता है,वह कार्ड धारक को ही नसीब होगा और नागरिक सेवाएं हासिल करने के लिए आधार पहचान जरुरी है। विदेशी घुसपैठिया जिसे मजे में हासिल कर सकते हैं और भारत के नागरिकों के लिए भी उनकी नागरिकता इसी आधार पर खत्म मानी जा सकती है।


यह बहस भी नहीं हो रही है।


बंगाल विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता सूर्यकांत मिश्र ने दावा किया है कि ममता बनर्जी ने नागरिकता संसोधन विधेयक का विरोध नहीं किया।


यह सत्य है,लेकिन अर्ध सत्य।


नागरिकता संशोधन विधेयक जिस संसदीय कमिटी को भेजा गया,उसके अध्यक्ष बनाये गये प्रतिपक्ष कांग्रेस के नेता प्रणव मुखर्जी। हम सबने समिति को अपने पक्ष रखने के लिए आवेदन किया।सारे शरणार्थी संगठनों ने ऐसा किया।लेकिन मुखर्जी ने किसी की सुनवाई नहीं की।उनसे मिलने वालों को उन्होंने कहा कि आडवानी देरी से ऐसा कर रहे हैं,अगर वे भारत के गृहमंत्री होते तो पूर्वी बंगाल से आने वाले हर शरणार्थी को कबका बांग्लादेश भेज देते।

जाहिर है कि मोदी नया कुछ भी नहीं कह रहे हैं।तमाम रंगों की सरकारें कारपोरेट हित में बेदखली के खातिर इस कानून का बेजा इस्तेमाल कर रही है।


मोदी को रक दने से ही यह मसला हल नहीं होता।


जो भी सत्ता में आयेगा ,संशोधित कानूनों से बलि वह जनसंहारी नीतियों को ही अमल में लायेगी।तेइससाल तक हमने कोई अपवाद नहीं देखा।उससे पहले भी नहीं और न आगे देखने की कोई उम्मीद है।


2002 में त्रिपुरा के आगरतला में हमें त्रिपुरा सरकार के अतिथि बतौर एक लोक महोत्सव में शामिल होने का मौका मिला।राजधानी से दूर मेला घर में एक अन्य लोक उत्सव में कवि व मंत्री अनिल सरकार के साथ जानेका मौका मिला।वहीं, माकपाई रणनीतिकार पीतवसन दास नसे हमारी बहस हे गयी और उन्होेेंने सीधे तौर पर ऐलान कर दिया कि माकपा इस कानून को जरुर पास करवायेगी।


कवि मंत्री अनिल सरकार इस प्रकरण के गवाह है।बाद में कांग्रेस, तृणमूल के साथ वामपंथियों ने इस विदेयक को सर्वसहमति से पास कर दिया।


तब आगरतला में ही हमने अनिल सरकार के साथ एक प्रेस कांफ्रेस को संबोधित किया।जहां हमने नागरिकता संशोधन विधेयक के प्रावधानों का खुलासा किया और विदेयक मसविदा प्रेस को बांटा।


जब पत्रकारों ने अनिल सरकार को पूछा तो उन्होंने माना कि उन्हें इस विधेयक के बारे में कुछ भी नहीं मालूम।त्रिपुरा के सारे अखबारों में माकपा के वरिष्टतम मंत्री का यह बयान छपा।


इसके अलावा हमने गुवाहाटी में भी इस मुद्दे पर अनिल सरकार के साथ सभाओं को संबोधित किया।कोलकाता में इस विधेयक के कानून बनने से पहले हमने तब माकपा के शक्तिशाली मंत्री सुभाष चक्रवर्ती के साथ राइटर्स में ही एक साझा प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित कर चुके थे।


जिस दिन यह विधेयक पारित हुआ,हमने खबर मिलते ही लोकसभा कार्यवाही का ब्यौरा तुरंत हासिल करके मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य,वाममोर्चा चेयरमैन विमान बोस, मत्री सुभाष चक्रवर्ती,मंत्री कांति विश्वास, मंत्री उपेन किस्कू समेत तमाम नेताओं से बात की तो वे तब भी दावे करते रहे कि इस विधेयक का उन्होंने पुरजोर विरोध किया है,जैसा कि अब सूर्यकांत मिश्र दावा कर रहे हैं।


उस वक्त तृणमूली मंत्री उपेन विश्वास भी शरणार्थी मोर्चा पर सक्रिय थे तो मतुआ मंत्री  और सांसद प्रत्याशी मंजुल कृष्ण टाकुर और कपिल कृष्ण ठाकुर भी इस विधेयक के खिलाफ मतुआ आंदोलन चला रहे थे।सत्ता गलियारे में अब वे खामोश तमाशबीन हैं।


अभी 2011 के विधानसभा चुनावों से पहले कोलकाता में मतुआ शरणार्थी सम्मेलन में वाम दक्षिण सभी दलों के नेता मतुआ वोटों के लिए एकमंच पर हाजिर थे,तब उन्होंने शरणार्थियों को नागरिकता दिलाने का वादा वैसे ही करते रहे ,जैसे अब कल्कि अवतार कर रहे हैं और जिन्हें सांप्रदायिकता भड़काने वाला बताकर धर्मनिरपेक्ष तमाम दल अलग अलग मोर्चा खोले हुए हैं।


इसी बीच दिल्ली से नैनीताल,मुंबई से गुवाहाटी तक रैलियों में राजीतिक दल ऐसे वादे करते रहे हैं बिना आधार प्रकल्प या नगरिकता संशोधन कानून रद्द करने की मांग उठाये।


कल्कि अवतार को धन्यवाद कि इस वोटबैंक कारोबार का पर्दाफाश और धर्मनिरपेक्ष मोर्चे की कलई खोलने का उन्होंने मोका दिया।हम बांग्ला में निरंतर इस मसले पर लिख रहे हैं।इसी वजह से यह आलेख विलंबित हो गया।माफ करें।


माफ करें मित्रों,यह है धर्मेन्मादी राष्ट्रवाद के मुकाबले धर्मनिरपेक्ष रीजनीति का असली चेहरा,जिसके आसरे हमने तेइस साल तक जनसंहारी कारपोरेट राज में जीने मरने का अभ्यास कर रहे हैं।


कल्कि अवतार  को रोकने के बाद तीसरे विकल्प जो आकार लेने वाला है,उसका चेहरा इससे कुछ भिन्न भी नहीं होगा।


मतलब यह कि जनदेश का नतीजा चाहे कुछ भी हो हमारा हश्र वही होगा जो अबतक होता रहेगा।


अब हम क्या करें?


हम सोच रहे हैं।


आप भी सोचते रहे।


बिना प्रतिरोध जो हम जीने के आदी हो गये हैं और मरने के अभ्यस्त भी,यह सिलसिला टूटना ही चाहिेए।


फिलहाल,फिर भी राहुल सांकृत्यायन की मानें तो आंखें बंद करके अच्छे वक्त और बेहतर मौसम के लिए इंतजार से हम अपनी मौत टाल नहीं सकते। बदलाव की शुरुआत के लिए कहीं न कहीं से कुछ शुरुआत तो होनी ही चाहिए।



माननीय सुरेंद्र ग्रोवर जी ने फिर हमारे जेहन में चस्पां कर दिया "फैज़"ः


-फैज़ अहमद "फैज़"

हम देखेंगे

लाजिम है के हम भी देखेंगे

वो दिन के जिसका वादा है

जो लौह-ए-अजल में लिक्खा है

हम देखेंगे…

जब जुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गराँ

रुई की तरह उड़ जायेंगे

हम महकूमो के पाँव-तले

जब धरती धड धड धड्केगी

और अहल-ए-हिकम के सर ऊपर

जब बिजली कड-कड कड़केगी

हम देखेंगे…

जब अर्ज-ए-खुदा के काबे से

सब बुत उठवाए जायेंगे

हम अहल-ए-सफा, मर्दूद-ए-हरम

मसनद पे बिठाये जायेंगे

सब ताज उछाले जायेंगे

सब तख़्त गिराए जायेंगे

हम देखेंगे…

बस नाम रहेगा अल्लाह का

जो गायब भी है हाजिर भी

जो मंजर भी है, नाज़िर भी

उट्ठेगा 'अनल हक़' का नारा

जो मै भी हू और तुम भी हो

और राज करेगी खल्क-ए-खुदा

जो मै भी हू और तुम भी हो

हम देखेंगे…

http://youtu.be/CMKMOFr7eR0


इसी बीच युवा सामाजिक कार्यकर्ता कविता टायाडे ने यह जरुरी जानकारी शेयर की है,जिसे आपके साथ शेयर करेंगे।

Kavita Tayade

9:29am May 8

भारतीय संविधान ने अनुच्छेद 13 (2) के अनुसार संसद को अनुच्छेद 13 के खण्ड 2 [ Article 13 (2) ] के उल्लंघन में संशोधन (Amendment) और कानून बनाने का अधिकार

नहीं दिया है .


भारत रत्न डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर जी ने संसद और केंद्र सरकार, विधान सभा और राज्य सरकार ( अनुच्छेद12 -राज्य ) को मौलिक अधिकारों के खिलाफ कानून बनाने से रोकने के लिए ही भारतीय संविधान में शक्तिशाली अनुच्छेद 13 (2) को समाविष्ट किया है.


लेकिन पुरोगामी कांग्रेस ने 1971 साल में 24th Amendment (24 वा संशोधन), भारतीय संविधान के विरुद्ध संशोधन कर के अनुच्छेद 13 के खण्ड 2 के उल्लंघन में संशोधन किया, परिणाम

भारत रत्न डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर जी ने शक्तिशाली अनुच्छेद 13 (2) को जिस उद्देश्य के लिए समाविष्ट किया पुरोगामी कांग्रेस ने डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर जी के उस उद्देश्य को विफल कर दिया है.


इस के बावजूद भी 1971 साल में 24th Amendment (24 वा संशोधन), भारतीय संविधान के विरुद्ध संशोधन कर के अनुच्छेद 13 के खण्ड 2 के उल्लंघन में संशोधन किया, क्योंकि भविष्य में संसद भारतीय लोगों के मौलिक अधिकारों ( भाग III - मौलिक अधिकारों के प्रावधान के) खिलाफ संशोधन या कानून पारित कर सके.


भारत रत्न डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर जी ने राज्य ( राज्य का मतलब अनुच्छेद 12 के अनुसार संसद और केंद्र सरकार, विधान सभा और राज्य सरकार और all local or other authorities within the territory of India or under the control of the Government of India यह है ) को मौलिक अधिकारों के खिलाफ कानून बनाने से रोकने के लिए ही भारतीय संविधान में शक्तिशाली अनुच्छेद 13 (2) को समाविष्ट किया ,


लेकिन पुरोगामी कांग्रेस ने 1971 साल में 24th Amendment (24 वा संशोधन), भारतीय संविधान के विरुद्ध संशोधन कर के अनुच्छेद 13 के खण्ड 2 के उल्लंघन में संशोधन किया, परिणाम

भारत रत्न डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर जी ने शक्तिशाली अनुच्छेद 13 (2) को जिस उद्देश्य के लिए समाविष्ट किया पुरोगामी कांग्रेस ने डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर जी के उस उद्देश्य को विफल कर दिया है.


पुरोगामी कांग्रेस ने सबसे पहले संविधान समीक्षा आयोग भारतीय संविधान के विरुद्ध नियुक्त किया था


सनातन भारतीय जनता पार्टी ने बाद में (1999-2004) संविधान समीक्षा आयोग भारतीय संविधान के विरुद्ध नियुक्त किया था


सनातन भाजपा सांपनाथ और पुरोगामी कांग्रेस नागनाथ दोनों भारतीय संविधान विरोधी पार्टिया को लोकसभा के अंतिम शेष चरण में होनेवाले चुनाव में एकसाथ मतदान नहीं कर के दोनों को खत्म करना है.


शक्तिशाली अनुच्छेद 13 (2) :- भारत का संविधान

राज्य कोई भी ऐसा कानून या विधि नहीं बनायेगा जो इस भाग (Part III -Fundamental Rights) में प्रदत्त अधिकारों को छीन लेगा या संक्षिप्ती काट - छाँट करेगा ( takes away or abridges) , इस खण्ड के उल्लंघन में बनाई विधि उल्लंघन की मात्रा तक शून्य होगी.


भारतीय संविधान ने अनुच्छेद 13 (2) के अनुसार संसद को न तो अनुच्छेद 13 के खण्ड 2 [Article 13 (2) ] के उल्लंघन में संशोधन (Amendment) करने का और न ही अनुच्छेद 13 के खण्ड 2 [ Article 13 (2) ] के उल्लंघन में कानून बनाने का अधिकार दिया है


According to Article 13 (2) The Constitution of India neither given authority to the Parliament for Amendment in contravention of Article 13 Clause 2 of Constitution nor given authority to the Parliament to make Law in contravention of Article 13 Clause 2 of Constitution


फिर भी पुरोगामी कांग्रेस ने अनुच्छेद 13 में भारतीय संविधान के विरुद्ध संशोधन (Amendment) कर के अनुच्छेद 13 के खण्ड 2 के उल्लंघन में संशोधन विधि कानून बनाई, जो भारतीय संविधान के विरुद्ध है.


इस के बावजूद भी 1971 साल में , पुरोगामी कांग्रेस सरकार ने भारतीय संविधान में 24th Amendment (24 वें संशोधन), कर के पुरोगामी कांग्रेस सरकार ने अनुच्छेद 13 में भारतीय संविधान के विरुद्ध संशोधन (Amendment) कर के डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर जी ने संविधान में समाविष्ट किया संविधान का शक्तिशाली अनुच्छेद 13 (2) को कमज़ोर किया


In spite of, the Congress Party Government in the Constitution 24th Amendment of 1971, pass the Amendment against the Constitution of India and weaken the Strongest Article 13 clause 2 written by Dr. Babasaheb Ambedkar, the Architect of Constitution of India.


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