मुंबई।अमेरिकी राष्ट्रपति बाराक ओबामा की मेजबानी के दौरान केंद्र ने कितने रुपये खर्च किए विदेश मंत्रालय यह बताने को तैयार नहीं है।इस खर्च को जानने के लिए आरटीआई के तहत मांगे गए जवाब को विदेश मंत्रालय ने ठुकरा दिया।मंत्रालय का तर्क है कि ये संवेदनशील सूचनाएं हैं और विदेशों के द्विपक्षीय संबंधों पर इसका असर पड़ सकता है।ओबामा इस साल जनवरी में मिशेल ओबामा के साथ बतौर मुख्य अतिथि गणतंत्र दिवस की परेड देखने भारत आए थे।
मुंबई के आरटीआई ऐक्टिविस्ट अनिल गलगली ने इस साल जनवरी में अमेरिकी राष्ट्रपति और अमेरिकी दस्ते की मेजबानी पर भारत सरकार की तरफ से किए गए खर्चे को लेकर सूचना का अधिकार के तहत आवेदन दिया था।उन्होंने विशिष्ट शख्सियतों और ओबामा के सुरक्षाकर्मियों के ठहरने की व्यवस्था के साथ ही उनके दौरे में तैनात पुलिसकर्मियों की संख्या और सुरक्षा-बंदोबस्त की जानकारी मांगी थी।उनके सवालों के जवाब में विदेश मंत्रालय के उप प्रमुख प्रोटोकॉल अधिकारी रोहित राठीष ने कहा कि हर साल भारत सरकार कई देशों से आई शख्सियतों की मेजबानी करती है।इसमें देखा जाता है कि प्रतिनिधिमंडल किस देश का है उनके दौरे का मकसद क्या है, किस तरह से उनकी मेजबानी की जानी है वे देश के किन-किन शहरों में जाने वाले हैं।इस लिहाज से ही उनपर खर्च किया जाता है और उनकी सुरक्षा का प्रबंध किया जाता है।साथ ही कहा गया कि आरटीआई कानून 2005 की धारा 8 (1) सी के प्रावधानों के तहत संवेदनशील सूचना की गोपनीयता बनाए रखने के लिए इस तरह की जानकारी प्रासंगिक धारा के तहत आती है।इससे दूसरे देश के साथ आपसी संबंध खराब हो सकते हैं।विदेश मंत्रालय के जवाब पर निराशा जाहिर करते हुए गलगली ने कहा कि बीजेपी पारदर्शिता और जवाबदेही के वादे के साथ सत्ता में आई थी इसलिए उसे सत्ता में आने के बाद पारदर्शिता बनाए रखने के लिए इस पर अमल करना चाहिए।
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