कनहर में दफन होती समाजवाद की थीसिस
सोनभद्र में बन रहा कनहर बांध विवादों के केंद्र में है. आंबेडकर जयंती पर इसके विरोध में प्रदर्शन कर रहे ग्रामीणों पर गोलीबारी कई तरह के सवाल उठा रही है
May 4, 2015
http://tehelkahindi.com/protest-against-kanhar-dam/
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को शायद नहीं पता कि हेम्बोल्ट विश्वविद्यालय के अभिलेखागार से राममनोहर लोहिया की जिस गायब थीसिस पर वे अप्रैल के तीसरे सप्ताह में ट्वीट कर के चिंता जता रहे थे, उसे उत्तर प्रदेश की पुलिस ने कनहर नदी की तलहटी में हफ्ताभर पहले ही दफना दिया था. पिछले पांच महीने से सोनभद्र जिले को 'विकास' नाम का रोग लगा हुआ है. इसके पीछे पांगन नदी पर प्रस्तावित कनहर नाम का एक बांध है जिसे कोई चालीस साल पहले सिंचाई परियोजना के तहत मंजूरी दी गई थी. झारखंड (तत्कालीन बिहार), छत्तीसगढ़ (तत्कालीन मध्य प्रदेश) और उत्तर प्रदेश के बीच आपसी मतभेदों के चलते लंबे समय तक इस पर काम रुका रहा. बीच में दो बार इसका लोकार्पण भी हुआ. पिछले साल जिस वक्त अखिलेश यादव की सरकार ने नई-नई विकास परियोजनाओं का एेलान करना शुरू किया, ठीक तभी उनकी सरकार को इस भूले हुए बांध की भी याद हो आई. कहते हैं कि उनके चाचा सिंचाई मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने इसमें खास दिलचस्पी दिखाई और सोनभद्र को हरा-भरा बनाने के नाम पर इसका काम शुरू करवा दिया. दिसंबर में काम शुरू हुआ तो ग्रामीणों ने विरोध करना शुरू किया. प्रशासन से उनकी पहली झड़प 23 दिसंबर 2014 को हुई. इसके बाद 14 अप्रैल, 2015 को आंबेडकर जयंती के दिन पुलिस ने धरना दे रहे ग्रामीणों पर लाठियां बरसाईं और गोली भी चलाई. एक आदिवासी अकलू चेरो को छाती के पास गोली लगकर आर-पार हो गई. वह बनारस के सर सुंदरलाल चिकित्सालय में भर्ती है. उसे अस्पताल लानेवाले दो साथी लक्ष्मण और अशर्फी मिर्जापुर की जेल में बंद हैं. इस घटना के बाद भी ग्रामीण नहीं हारे. तब ठीक चार दिन बाद 18 अप्रैल की सुबह सोते हुए ग्रामीणों को मारकर खदेड़ दिया गया, उनके धरनास्थल को साफ कर दिया गया और पूरे जिले में धारा 144 लगा दी गई. यह धारा 19 मई तक पूरे जिले में लागू है. अब तक दो दर्जन से ज्यादा गिरफ्तारियां हो चुकी हैं. आंदोलनकारियों को चुन-चुनकर पकड़ा जा रहा है.
फौजदार, शनीचर और देवकलिया उन 15 घायलों में शामिल सिर्फ तीन नाम हैं जिन्हें 20 अप्रैल तक दुद्धी के ब्लॉक चिकित्सालय में बिना पानी, दातुन और खून से लथपथ कपड़ों में अंधेरे वार्डों में कैद रखा गया था. प्रशासन की सूची के मुताबिक 14 अप्रैल की घटना में 12 पुलिस अधिकारी/कर्मचारी घायल हुए थे जबकि सिर्फ चार प्रदर्शनकारी घायल थे. इसके चार दिन बाद 18 अप्रैल की सुबह पांच बजे जो हमला हुआ, उसमें चार पुलिसकर्मियों को घायल बताया गया है जबकि 19 प्रदर्शनकारी घायल हैं. दोनों दिनों की संख्या की तुलना करने पर ऐसा लगता है कि 18 अप्रैल की कार्रवाई हिसाब चुकाने के लिए की गई थी. इस सूची में कुछ गड़बडि़यां भी हैं. मसलन, दुद्धी ब्लॉक के सरकारी चिकित्सालय में भर्ती सत्तर पार के जोगी साव और तकरीबन इतनी ही उम्र की रुकसार का नाम सरकारी सूची में नहीं है.
हम वास्तव में नहीं जान सकते कि कनहर बांध की डूब से सीधे प्रभावित होनेवाले गांवों सुंदरी, भीसुर और कोरची के कितने बसे-बसाए घर उजड़ जाएंगे
हम वास्तव में नहीं जान सकते कि कनहर बांध की डूब से सीधे प्रभावित होनेवाले गांवों सुंदरी, भीसुर और कोरची के कितने घरों में इस लगन में बारात आने वाली थी, कितने घरों में वाकई आई और कितनों में शादियां टल गईं. कितने घर बसने से पहले उजड़ गए और कितने बसे-बसाये घर बांध के कारण उजड़ेंगे, दोनों की संख्या जानने का कोई भी तरीका हमारे पास नहीं है. दरअसल, यहां कुछ भी जानने का कोई तरीका नहीं है सिवाय इसके कि आप सरकारी बयानों पर जस का तस भरोसा कर लें. वजह इतनी-सी है कि यहां एक बांध बन रहा है और बांध का मतलब विकास है. इसका विरोध करनेवाला कोई भी व्यक्ति विकास-विरोधी और राष्ट्र-विरोधी है. भरोसा न हो तो विंध्य मंडल के मुख्य अभियंता कुलभूषण द्विवेदी के इस बयान पर गौर करें, 'पहली बार देश को मर्द प्रधानमंत्री मिला है. पूरी दुनिया में उसने भारत का सिर ऊंचा किया है वरना हम कुत्ते की तरह पीछे दुम दबाए घूमते थे.' इनका कहना है कि मुख्य सचिव, मुख्यमंत्री और आला अधिकारी 14 अप्रैल की गोलीबारी के बाद कनहर बांध पर रोज बैठकें कर रहे हैं और पूरे इलाके को छावनी में तब्दील करने का आदेश ऊपर से आया है. फिलहाल कनहर में मौजूद पुलिस चौकी को थाने में तब्दील किया जा रहा है.
सोनभद्र के पुलिस अधीक्षक शिवशंकर यादव कहते हैं, 'पूरी जनता साथ में है कि बांध बनना चाहिए. सरकार साथ में है. तीनों राज्य सरकारों का एग्रीमेंट हुआ है बांध बनाने के लिए… हम लोगों ने जितना एहतियात बरता है, उसकी जनता तारीफ कर रही है.' यादव का यह बयान एक मान्यता है. इस मान्यता के पीछे काम कर रही सोच को आप सोनभद्र के युवा जिलाधिकारी संजय कुमार के इस बयान से समझ सकते हैं, 'हमने जो भी बल प्रयोग किया, वह इसलिए ताकि लोगों को संदेश दिया जा सके कि लॉ ऑफ द लैंड इज देयर… आप समझ रहे हैं? ऐसे तो लोगों में प्रशासन और पुलिस का डर ही खत्म हो जाएगा. कल को लोग कट्टा लेकर गोली मार देंगे… आखिर हमारे दो गजेटेड अफसर घायल हुए हैं..!'
सुंदरी में 18 अप्रैल की सुबह साठ-सत्तर साल के बूढ़ों के सिर पर डंडा मारा गया है. औरतों के कूल्हों में डंडा मारा गया है. जहूर के हाथ पर पुलिस ने इतना जाेर से मारा कि उसकी तीन उंगलियां फट गई हैं. पुलिस अधीक्षक यादव कहते हैं, 'सिर पर इरादतन नहीं मारा गया, ये 'इंसिडेंटल' (संयोगवश) है.' 'क्या तीनों बुजुर्गों के सिर पर किया गया वार 'इंसिडेंटल' है?' इस सवाल के जवाब में वे बोले, 'बल प्रयोग किया गया था, 'इंसिडेंटल' हो सकता है. हम कोई दुश्मन नहीं हैं, इसकी मंशा नहीं थी.' 'और 14 अप्रैल को अकलू के सीने को पार कर गई गोली?' यादव विस्तार से बताते हैं, 'पुलिस ने अपने बचाव में गोली चलाई. थानेदार (कपिलदेव यादव) को लगा कि मौत सामने है.' इस घटना के बारे में बीएचयू में भर्ती अकलू का कहना है, 'हमको मारकर के थानेदार (कपिलदेव यादव) अपने हाथ में गोली मार लिए हैं और कह दिए कि ये मारे हैं… बताइए…'
जिलाधिकारी संजय कुमार को इस बात का विशेष दुख है कि अफवाह फैलाकर उनके प्रशासन को बदनाम किया जा रहा है. वे कहते हैं, 'हजारों मैसेज सर्कुलेट किए गए हैं कि छह लोगों को मारकर दफनाया गया है. इंटरनेशनल मीडिया भी फोन कर रहा है. एमनेस्टी वाले यही कह रहे हैं. हम लोग पागल हो गए हैं जवाब देते-देते. इतनी ज्यादा अफवाह फैलाई गई है. चार दिन तक हम लोग सोये नहीं.' आखिर कौन फैला रहा है यह अफवाह? जवाब में जिलाधिकारी हमें एक एसएमएस दिखाते हैं जिसमें 18 तारीख के हमले में पुलिस द्वारा छह लोगों को मारकर दफनाए जाने की बात कही गई है. भेजनेवाले का नाम रोमा है. रोमा सोनभद्र के इलाके में लंबे समय से आदिवासियों के लिए काम करती रही हैं. 14 अप्रैल की घटना के बाद जिन लोगों पर नामजद एफआईआर की गई उनमें रोमा भी हैं. पुलिस को उनकी तलाश है. डीएम कहते हैं कि कनहर बांध विरोधी आंदोलन को रोमाजी ने अपना निजी एजेंडा बना लिया है. 'तो क्या सारे बवाल के केंद्र में अकेले रोमा हैं?' यह सवाल पूछने पर वे मुस्कराकर कहते हैं, 'लीजिए, सारी रामायण खत्म हो गई. आप पूछ रहे हैं सीता कौन है.' डीएम और एसपी दोनों अबकी हंस देते हैं.
स्थानीय लोगों की मानें तो कनहर बचाओ आंदोलन गांधीवादी कार्यकर्ता महेशानंद ने बरसों पहले शुरू किया था लेकिन आज की तारीख में लोग रोमा को ही अपना नेता मानते हैं. नेतृत्व के बारे में सवाल पूछने पर पुलिस अधीक्षक शिवशंकर यादव कहते हैं, 'महेशानंद आंदोलन छोड़कर भाग गए हैं. उन्होंने मान लिया है कि उनके हाथ में अब कुछ भी नहीं है. उनका कहना है कि बस उनके खिलाफ मुकदमा नहीं होना चाहिए. उनके जाने के बाद रोमाजी ने कब्जा कर लिया है.' प्रशासन को रोमा से दिक्कत दूसरी वजहों से है. यादव कहते हैं, 'महेशानंद बांध क्षेत्र से बाहर के इलाके में शांतिपूर्ण आंदोलन चलाते थे. इससे हमें कोई दिक्कत नहीं थी.' डीएम कहते हैं, 'रोमा बहुत अडि़यल मिजाज की हैं.'
बांध विरोधी आंदोलन में सक्रिय भीसुर के एक नौजवान शिक्षक दुखी मन से कहते हैं, 'आंदोलन की दिशा टूटने के कगार पर पहुंच चुकी है. जनता बहुत चोटिल हो चुकी है. आधे लोग धरने से उठकर चले गए थे. उन्हें किसी तरह वापस लाया गया है. महेशानंद भाग ही गए, गम्भीराजी पर लोगों को भरोसा नहीं रहा और रोमाजी तो यहां हैं ही नहीं, हालांकि गोली और लाठी यहां उन्हीं के लोग खा रहे हैं.' बांध विरोधी आंदोलन के नेता गम्भीरा प्रसाद को 20 अप्रैल की शाम इलाहाबाद से गिरफ्तार कर जेल भेजा जा चुका है. सबसे ताजा गिरफ्तारी भीसुर के पंचायत मित्र पंकज गौतम की है.
इस दौरान राष्ट्रीय हरित पंचाट (एनजीटी) द्वारा लगाई गई रोक का उल्लंघन करके कनहर बांध पर काम लगातार जारी है. डीएम और एसपी इस रोक को 'व्याख्या' का मामला मानते हैं. इलाके में पुलिस बल बढ़ा दिया गया है. दिल्ली से एक जांच दल और गोलीकांड के बाद मेधा पाटकर के यहां आने से जो खबरें और तस्वीरें बाहर निकलकर राष्ट्रीय मीडिया में आ पाई हैं, उनसे सरकार बहुत चिंतित है क्योंकि यह मामला सिर्फ एक अवैधानिक बांध बनाने का नहीं बल्कि पैसों की भारी लूट और बंटवारे का भी है.
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