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Sunday, April 29, 2012

सिनेमा में साम्राज्यवाद विरोध का कारपोरेट तात्पर्य!

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[LARGE][LINK=/index.php/dekhsunpadh/1261-2012-04-29-10-49-31]सिनेमा में साम्राज्यवाद विरोध का कारपोरेट तात्पर्य! [/LINK] [/LARGE]
Written by एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास Category: [LINK=/index.php/dekhsunpadh]खेल-सिनेमा-संगीत-साहित्य-रंगमंच-कला-लोक[/LINK] Published on 29 April 2012 [LINK=/index.php/component/mailto/?tmpl=component&template=youmagazine&link=9526f9595b48ea86400503abbc31a0d11ab99341][IMG]/templates/youmagazine/images/system/emailButton.png[/IMG][/LINK] [LINK=/index.php/dekhsunpadh/1261-2012-04-29-10-49-31?tmpl=component&print=1&layout=default&page=][IMG]/templates/youmagazine/images/system/printButton.png[/IMG][/LINK]
महाकाश अभियानों का मकसद जेम्स कैमरुन की फिल्म अवतार में बेहद कायदे से अभिव्यक्त हुआ है, यह सबको मालूम है। इसमें काल्पनिक ग्रह पर वैज्ञानिक बेशकीमती धातुओं की खोज करते हैं। हम लोग कारपोरेट​ ​साम्राज्यवाद के प्रतिरोध के सिलसिले में सिनेमा माध्यम में इसे चामत्कारिक प्रयोग मानते रहे हैं। हम यह भी जानते हैं कि करनी और कथनी में भारी अंतर है। महाकाश में प्राकृतिक संसाधनों की लूट खसोट पर फिल्म अवतार बनाकर दुनियाभर में वाहवाही लूटने वाले जेम्स कैमरून अब वास्तव में​​ महाकाश में मेगा खनन परियोजना शुरू कर चुके हैं। तकनीकी रूप से फिल्म लाजवाब है। फोटोग्राफी, स्पेशल/विज्युअल इफेक्ट, कास्ट्यूम डिजाइन, संपादन बेहतरीन है। लाइट और शेड का प्रयोग फिल्म को खूबसूरत बनाता है। इस फिल्म में सीजीआई (कम्प्यूटर जनरेटेड इमेज) के सबसे अत्याधुनिक वर्जन का प्रयोग किया गया है, जिससे फिल्म के ग्राफिक्स की गुणवत्ता और अच्छी हो गई है।

नासा के मुताबिक ऐसे प्रति खनन अभियान में दो सौ साठ करोड़ डालर का खर्च होना है। २०२० तक यह मेगा परियोजना शुरू हो जायेगी, ऐसी उम्मीद है। और इस तरह अंतरिक्ष भी खुले बाजार में शामिल हो जायेगा, जहां से महाशक्तियों और वैश्विक पूंजी को कच्चा माल बटोरने से कोई रोक नहीं सकता। यह काल्पनिक कथा जल्द ही हकीकत में बदलने जा रही है। विशेषज्ञों का दल अगले 5-10 साल में इन क्षुद्रग्रहों पर बेशकीमती धातुओं की खोजकर उनका खनन भी करेगा। करोड़ों डॉलर की लागत वाली इस परियोजना के लिए रोबोट संचालित अंतरिक्ष-यानों का इस्तेमाल किया जाएगा जो क्षुद्रगहों से दुर्लभ धातुओं के साथ ही ईंधन के रासायनिक घटकों को निचोड़ लेंगे। सबसे पहले निजी टेलिस्कोप छोड़े जाएंगे जो ऐसे उल्का पिंडों की खोज करेंगे जिनमें खनिजों का अकूत भंडार भरा हो। उसके बाद विशेष प्रकार के टाइकून नामक उपग्रह छोड़े जाएंगे जो इन उल्कापिंडों से खनिजों को अपने अंदर निचोड़ लेंगे। नासा का एक आगामी मिशन एक क्षुद्रग्रह से 60 ग्राम प्लेटिनम और सोना लेकर आएगा जिसकी लागत लगभग एक अरब डॉलर आएगी।

रेडियो रूस ने जेम्स कैमरून से पूछा — अब आगे आप क्या करेंगे। विश्व-प्रसिद्ध फ़िल्म-निर्देशक ने हँसते हुए कहा -- आगे तो अब अन्तरिक्ष ही बाक़ी रह गया है, जो आज भी मेरे लिए अछूता और अनजान बना हुआ है। टाइटैनिक जैसी फिल्में बनाने वाले जेम्स कैमरून ने प्रशांत महासागर के सबसे गहरे समुद्र तल की साहसिक यात्रा की। यह समुद्र की सतह से तकरीबन ग्यारह किलोमीटर भीतर है। फिल्म 'अवतार' बनाकर प्रशंसकों और समीक्षकों की वाहवाही लूट चुके प्रख्यात फिल्मकार जेम्स कैमरून ने पुष्टि की है कि वह 2012 में बड़े पर्दे पर 'टाइटैनिक' फिल्म का 3डी संस्करण पेश करेंगे। प्रख्यात हॉलीवुड फिल्मकार जेम्स कैमरुन की विज्ञान-फंतासी फिल्म 'अवतार' का पुन: प्रदर्शन असफल रहा है। कैमरुन ने अपनी 3डी फिल्म 'अवतार' का नया संस्करण जारी किया था। इसमें नौ मिनट अवधि के अतिरिक्त दृश्य थे, लेकिन पिछली बार की सफलताओं के बावजूद इस बार यह असफल रही। फिल्म ने केवल 40 लाख डॉलर का ही व्यवसाय किया। जेम्स कैमरून ने इस कहानी को कहने के लिए जो कल्पना गढ़ी है वो अद्‍भुत है। चमत्कारी पेड़-पौधे, उड़ते हुए भीमकाय ड्रेगन, घना जंगल, पहाड़, अजीबो-गरीब कीड़े-मकोड़े और पक्षी, खतरनाक जंगली कुत्ते, पेंडोरा के शक्तिशाली नीले रंग के निवासी चकित करते हैं। सन् 2154 में मनुष्य के पास किस तरह के हवाई जहाज और हथियार होंगे इसकी झलक भी फिल्म में देखने को मिलती है। फिल्म का क्लाइमैक्स जबरदस्त है जब दोनों पक्षों में लड़ाई होती है। इसे बेहतरीन तरीके से फिल्माया गया है और एक्शन प्रेमी इसे देखकर रोमांचित हो जाते हैं। फिल्म की कहानी युद्ध के खिलाफ है और शांति की बात करती है। आपसी विश्वास और प्यार के जरिये लोगों का दिल जीतने का संदेश भी इस फिल्म के जरिये दिया गया है।

अवतार में महाकाश के अनजान ग्रह में प्राकृतिक संसाधनों की लूट की जो परीकथा पेश की है कैमरून ने, वह साइंस के जरिये स्पेशल इफेक्ट और ग्राफिक्स तक सीमित नहीं रहा अब। इस नायाब लूट खसोट अभियान के प्रतिरोध का गल्प अब वास्तव में दोहराया जाने वाला है। अंतरिक्ष में आवारा भटकते ग्रहाणुओं से शुरूआत होगी। रोबोट के जरिये चलेगा यह मेगा खनन  अभियान। अंतरिक्ष में ही खनिज का भंडारण होगा। हालांकि इसके विपणन के ब्यौरा का खुलासा नहीं हुआ है। यह अंतरिक्ष में कारपोरेट साम्राज्यवाद के विस्तार का नया आयाम होगा। प्लेनेटरी रिर्सोसेज नामक यह कंपनी पृथ्वी के निकट क्षुद्रग्रहों पर अत्याधुनिक तकनीक के जरिए खनन करने का खाका खींच चुकी है। धरती पर बेशकीमती प्राकृतिक संसाधनों की लूट के बाद अब मानव की निगाहें क्षुद्र ग्रह पर हैं। 'प्लेनेटरी रिसोर्सेस' के सह संस्थापक एरिक एंडरसन ने कहा कि सौरमंडल में पृथ्वी से कई गुना बेशकीमती संसाधन मौजूद हैं। प्लेनेटरी रिसोर्सेस का लक्ष्य अभी पृथ्वी के मौजूदा पचास मीटर व्यास वाले क्षुद्र ग्रहों पर खनन करने का है। ऐसे नौ हजार क्षुद्र ग्रह पृथ्वी के सौरमंडल के नजदीक चक्कर लगा रहे हैं। कहा जा रहा है कि इनमें से कुछ क्षुद्र ग्रहों पर तो इतना प्लूटोनियम मौजूद है,जितना पृथ्वी पर एक साल के खनन से हासिल होता है। ये रोबोट क्षुद्र ग्रहों पर प्लूटोनियम, पेलेडियम, ओस्मियम और इरीडियम जैसे खनिजों को तलाशने का काम करेंगे। इन बहुमूल्य खनिजों का इस्तेमाल ऊर्जा उत्पादन से लेकर चिकित्सकीय उपकरणों में किया जाता है। बाजार में प्लूटेनियम की कीमत 23 हजार डॉलर प्रति किलोग्राम है जो लगभग सोने के जितनी ही है।

अमरीका में कुछ अरबपति एक नई कंपनी शुरु कर रहे हैं जो एस्टरॉइड यानी क्षुद्रगहों से सोने और प्लेटिनम जैसी दुर्लभ धातुओं को लाएगी। जो सौरमंडल में सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने वाले एस्टरॉइड यानी क्षुद्रगहों से सोने और प्लेटिनम जैसी दुर्लभ धातुओं का खनन करेगी। इसका मकसद अंतरिक्ष में अन्वेषण के कार्य को निजी उद्योगों के दायरे में लाना है। निजी स्वामित्व वाली "पलैनेटरी रिसोर्सेस" (ग्रह संसाधन) नामक कंपनी ने बाहरी अंतरिक्ष में खनन का काम शुरू करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। यह दुनिया में पहली ऐसी कंपनी होगी जो अगले दस वर्षों में एस्टेरोइडों (क्षुद्रग्रहों) से पानी और कीमती धातुएँ निकालने का काम शुरू करेगी। इस बात की जानकारी इस कंपनी के सह-संस्थापक और "एक्स प्राइज़" कोष के अध्यक्ष पीटर डायमंडिस ने दी है। उन्होंने कहा कि यह कंपनी उन क्षुद्रग्रहों से पानी और कीमती धातुएँ निकालेगी जो हमारी पृथ्वी के बहुत क़रीब आ जाएंगे। ऐसे क्षुद्रग्रहों से प्लैटिनम वर्ग की दुर्लभ धातुओं को निकाला जा सकेगा। प्लैटिनम वर्ग की धातुएँ माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक और चिकित्सा उद्योगों के लिए बहुत मूल्यवान हैं। इसलिए इस काम पर होनेवाला खर्च बहुत जल्द ही बराबर हो जाएगा। "पलैनेटरी रिसोर्सेस" के दूसरे सह-संस्थापक हैं- एरिक एंडरसन। उन्होंने ने ही पहली अंतरिक्ष पर्यटन कंपनी "स्पेस एडवेंचर्स" की स्थापना की है। इस परियोजना के निवेशकों में गूगल कंपनी के दो संचालकों लैरी पेज और एरिक श्मिट के अलावा इस कंपनी के निदेशक के. राम श्रीराम भी शामिल हैं।

पता चला है कि गूगल के मुख्य सचिव लैरी पेज और चेयरमैन एरिक स्मिथ इस मेगा खनन परियोजना में कैमरून के साझेदार है। कोई अचरज नहीं कि कल नियमगिरि में अभूतपूर्व प्रतिरोध का सामना करने वाली वेदांता और दुनियाभर में खनन का कारोबार करनेवाली कंपनियां भी इस मेगा परियोजना शामिल हो जाये। फिल्म में चाहे जो दिखाया गया हो, हकीकत की जमीन पर अंतरिक्ष में ऐसे प्रतिरोध की संभावना न के बराबर है। यह भी हो सकता है कि यह मात्र पायलट प्रोजेक्ट हो। क्योंकि लक्ष्य बतौर फिलहाल ग्रहाणुओं को ही चिन्हित किया गया है या फिर इतनी सी सूचना लीक की गयी है। महाशक्तियां जिस तरह चांद से लेकर मंगल तक के महाकाश अभियानों पर पानी की तरह पैसा खर्च कर रही है, थोड़ी वसूली नहीं करेंगी क्या? दल से जुड़े एरिक एंडरसन का कहना है कि यूं तो खोज कार्यक्रम का विस्तार किया जाएगा, लेकिन पहले चरण में उनकी नजर तीन चीजों पानी, प्लैटीनियम व पैलेडियम धातु पर खासतौर पर है। इन दोनों धातुओं का उपयोग मोबाइल बैटरी के अलावा मेडिकल उपकरण बनाने में व्यापक रूप से किया जाता है। एंडरसन कहते हैं कि यदि हमें अपनी आगे आने वाली पीढियों को संपन्न रखना है तो कहीं न कहीं तो विकल्प तलाशने ही होंगे। अंतरिक्ष विज्ञान में न केवल हेवनली बॉडीज के इतिहास की गर्त में जाकर देखना होता है, बल्कि उनके भविष्य में विकास की संभावनाओं पर भी पैनी नजर रखनी होती है।

इस मेगा परियोजना की सबसे खास बात है कि इसके लिए किसी सरकार के नीति निर्धारण या श्रम कानूनों की परवाह नहीं करनी होगी। नासा ने हरी झंडी दे दी तो यह मेगा कारपोरेट उद्यम विज्ञान के चामत्कारिक महाभियान बतौर बेरोकटोक जारी रह सकेगा। हम जैसे फिल्म देखकर दांतों तले उंगली वाली मुद्रा में आ गये, वैसे ही अंगूठा चूसते हुए इंतजार करेंगे कि भारत कब इस मेगा परियोजना में हिस्सेदार बनने लायक महाशक्ति बन जाये, ताकि बाजाऱ को मेगा क्रोमिन मिल सकें और इंडिया इनकारपोरेशन की बल्ले बल्ले से अपनी अंध देशभक्ति की थीम कास्मिक शक्लोसूरत अखतियार कर लें। इसके अलावा हम पिछलग्गू कर भी क्या सकते हैं? संभव असंभव का विवाद खुद कैमरून और नासा ने खारिज कर दिया है। अब बस परियोजना शुरू हो जाने का इंतजार करें। भारतीय महिलाओं के लिए खास खुश खबरी है यह, महंगे बाजार में अपने हिस्से का सोना हथियाने के लिए उन्हे इस गर्मी और उमस में अक्षय तृतीया पर जो पसीना पसीना हो जाना पड़ा, शायद २०२० तक जीने की मोहलत मिल जाये, तो ऐसी नौबत फिर नहीं आयेगी। अंतरिक्ष से धरती पर सोना बरसेगा। आयातित सोना से हम अपने अपने महल खड़ा करके सोने की लंका रचने के लिए आजाद हो जायेंगे।

कैमरून साहब का लक्ष्य सोने की खदानों पर है। यहीं नहीं, मूल्यवान ​​धातु प्लेटिनम भी इफरात में है। यह तो बस झांकी है, अभी सिनेमा बाकी है। बस, हमारे बाजार में किसी कंपनी के पब्लिक इश्यू जारी होने की देर है। प्रणव बाबू किसी सुबह अमेरिका से लौटकर हरी झंडी दे देंगे सेबी को। तब निवेश करके हम उसीतरह मुनाफा कमायेंगे जैसे जीवन बीमा का​ ​पालिसी धारक बनकर बम बम हैं हम! वैज्ञानिक जगत में हलचल मच गयी है। कोई कोई कह रहा है कि महज आठ साल में अंतरिक्ष में खनिज भंडार बनाना अविश्वसनीय है। इससे क्याय़ कैमरून साहब का काम चालू है। इस मेगा परियोजना के शुरुआती दौर में अगले दो वर्षों में अनेक टेलीस्कोप तैनात किये जायेंगे। अंतरिक्ष में टोही खुफिया उपग्रहों की मौजूदगी के साथ ये टेलीस्कोप, अंतरिक्ष में कहीं भी छुपा हो सोना या प्लेटिनम या बहुमूल्य धातु, उसे खोज निकालेंगे। फिर धरती के रोबोट​ ​अंतरिक्ष पर धावा बोल देंगे। नाक भौं सिकुड़ने से बेहतर है कि हम भी अपनी अग्निपुत्री को इस बेमिसाल मिशन में शामिल कर दें तो हो सकता है कि खजाने का कोई बड़ा हिस्सा इंडिया इनकारपोरेशन के हाथ लग जाये! समझा जाता है कि इस परियोजना से विश्व के सामने इस वक्त मुंह बाए खड़ा ईंधन संकट से निजात पाने का राजमार्ग ही खुल जाये। फिर न सब्सिडी खत्म करने के लिए अनिद्रा का मरीज बनेगा कोई वित्तमंत्री और न अमेरिका को फिर तेल युद्ध शुरू करने की जरुरत होगी।

योजना है कि अंतरिक्ष से कच्चा खनिज जैसे कि प्लेटिनम धरती पर लाकर उसका परिष्करण कर ईंधन तैयार कर लिया जाये। आधुनिक अंतरिक्ष अभियानों में जो बड़ा बजट होता है, उसकी राजस्व भरपाई भी इस परियोजना का एजंडा है। बजट घाटा पूरा करने के लिए फिर अप्रत्यक्ष करारोपण के बहाने नहीं खोजने होंगे। अब देखें कि कैमरून से कब मिलते हैं प्रणव मुखर्जी! 'अवतार' की कहानी जेम्स कैमरून ने वर्षों पहले सोची थी, लेकिन वे इसको स्क्रीन पर लंबे समय तक इसलिए नहीं पेश कर सके क्योंकि तकनीक उन्नत नहीं हुई थी। वर्षों उन्होंने इंतजार किया और जब तकनीक ने उनका साथ दिया तब उन्होंने 'अवतार' फिल्म बनाई। जेम्स फ्रांसिस कैमरून (जन्म 16 अगस्त 1954), कनाडा के एक फिल्म निर्देशक, निर्माता, स्क्रीनराइटर, एडिटर (संपादक) और आविष्कारक हैं। उनके लेखन तथा निर्देशन के कामों में शामिल हैं। Piranha II: The Spawning (1981), दी टर्मिनेटर (1984), एलियंस (1986), दी एबिस (1989), Terminator 2: Judgment Day (1991), ट्रू लाइज़ (1994), टाइटैनिक (1997), और अवतार (2009)। टाइटेनिक के निर्माण और अवतार के साथ फिल्मों की दुनिया में वापसी बीच के कुछ वर्षों को कैमरून ने डोक्युमेंटरी (वृत्तचित्र) फिल्मों के निर्माण तथा डिजिटल 3-डी फ्यूज़न कैमरा सिस्टम के सह-विकास में व्यतीत किया। एक बायोग्राफर ने उन्हें 'आंशिक रूप से वैज्ञानिक तथा आंशिक रूप से कलाकार' के रूप में वर्णित किया है। कैमरून ने पानी के अंदर फिल्माने तथा रिमोट वेहिकल टेक्नोलोजी के क्षेत्रों में भी अपना योगदान दिया है। कुल मिलाकर कैमरून के निर्देशन संबंधी कार्यों ने उत्तरी अमेरिका में $1.9 बिलियन (अरब) तथा पूरे विश्व में $5.75 बिलियन कमाए हैं जिसकी वजह से वे विश्व के सर्वकालीन सर्वाधिक कमाई करने वाले निर्देशकों में से एक बन गए हैं। यदि मुद्रास्फीति को गणना में शामिल न किया जाये तो कैमरून की टाइटैनिक और अवतार अब तक की दो सर्वाधिक कमाई करने वाली फ़िल्में हैं। 12 साल तक 'टाइटैनिक' फ़िल्म दुनिया के इतिहास में सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली फ़िल्म बनी रही। और इस फ़िल्म की सफलता के रिकार्ड सिर्फ़ 'अवतार' फ़िल्म से ही टूटे।

जेम्स कैमरून को विश्वास है कि दर्शकों को 'टाइटैनिक' फ़िल्म की यह नई प्रस्तुति यानी थ्री-डायमेंशन फ़िल्म प्रस्तुति बहुत पसन्द आएगी क्योंकि वे अब इस फ़िल्म को एक दूसरे ही ढंग से महसूस कर सकेंगे। अभी कुछ ही दिन पहले उन्होंने एकदम अकेले हमारी पृथ्वी के सबसे निचले स्तर यानी के पृथ्वी के अवतल 'मरीआना गह्वर' को छुआ था और इन दिनों वे मास्को आए हुए हैं ताकि अपने 'टाइटैनिक'  पोत को एक बार फिर तैरने के लिए रवाना कर सकें। 'अवतार' की कहानी बेहद सरल है और आगे क्या होने वाला है इसका अंदाजा भी आप लगा सकते हैं। लेकिन यह कैसे होगा और फिल्म के विज्युअल इफेक्ट इस फिल्म को खास बनाते हैं। एक ऐसी दुनिया दिखाई गई है, जिसकी कल्पना रोमांचित कर देती है। ये कहानी सन् 2154 की है। पृथ्वी से कुछ प्रकाश वर्ष दूर पेंडोरा नामक ग्रह है। पृथ्वीवासियों के इरादे नेक नहीं है। वे पेंडोरा से कुछ जानकारी जुटाने, उस पर कॉलोनी बनाने के साथ-साथ वहाँ की बहुमूल्य संपदा को ले जाना चाहते हैं, लेकिन उनके रास्ते में वहाँ के स्थानीय निवासी बाधा हैं, जिन्हें वे 'ब्लू मंकी' कहते हैं। वैसे उन्हें नावी कहा जाता है और इंसान उन्हें अपने से पिछड़ा हुआ मानते हैं।

अवतार प्रोग्राम का जैक सुली (सैम वर्थिंगटन) भी हिस्सा है। इस प्रोग्राम में जैक अपने जुड़वाँ भाई की जगह आया है क्योंकि उसके भाई की मौत हो गई है। मनुष्य और नावी के डीएनए को मिलाकर एक ऐसा शरीर बनाया जाता है, जिसे अवतार कहते हैं। इसे गहरी नींद में जाकर दूर से नियंत्रित किया जा सकता है। जैक सुली का अवतार पेंडोरा के निवासियों के बीच फँस जाता है, लेकिन वह उनसे दोस्ती कर जानकारी जुटाता है। वहाँ उसे प्यार भी हो जाता है और उनकी दुनिया को वह उनकी निगाहों से देखता है। लेकिन जब उसे इंसानों के खतरनाक इरादों का पता चलता है तो वह उनकी तरफ से लड़ता है और पेंडोरा को बचाता है। रेडियो रूस से बात करते हुए जेम्स कैमरून ने कहा — मैं तो सपने में भी यह नहीं सोच सकता था कि इस फ़िल्म का जीवन इतना लम्बा होगा। दुनिया के टेलीविजन चैनल बार-बार उसे दिखाएँगे। उनका मानना है कि चूँकि यह फ़िल्म सचमुच दुर्घटनाग्रस्त हुए 'टाइटैनिक' जलपोत के ऊपर केन्द्रित है, इसीलिए यह फ़िल्म एक क्लासिक-फ़िल्म का दर्ज़ा पा गई। कैमरून ने कहा — जब मैं यह समझ गया कि इस फ़िल्म में लोगों की दिलचस्पी बनी हुई है और आगे भी बनी रहेगी तो मैंने उसे एक नई ज़िन्दगी देने का निश्चय किया। मैंने तय किया कि मैं उसे वैसी ही फ़िल्म बना दूँगा, जैसी फ़िल्म मैं तब बनाना चाहता था। लेकिन तब थ्री-डी टैक्नोलौजी ही उपलब्ध नहीं थी। मेरा मानना है कि यह फ़िल्म ऐसी होनी चाहिए कि दर्शक भावनाओं के बहाव में तैरते रहें। मेरा ख़याल है कि रूसी दर्शक मेरी इस नई उपलब्धि का उचित ढंग से मूल्यांकन करेंगे क्योंकि दुनिया में वे ही उसका सही-सही मूल्यांकन कर सकते हैं। और रूस एक ऐसा देश है, जहाँ के दर्शक पहले ही थ्री-डायमेंशन फ़िल्में देखने के आदी हो चुके हैं और उन्हें यह नई टेक्नोलौजी  बहुत पसन्द आई है।

सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली फ़िल्में बनाने वाले फ़िल्म-निर्देशक और रूसी दर्शकों के बीच दर‍असल एक ख़ास रिश्ता बन गया है। तभी तो वे 11 हज़ार मीटर नीचे समुद्र में 'मरीआना गह्वर' की गहराई में अकेले डुबकी लगाने और विश्व-रिकार्ड बनाने के तुरन्त बाद रूस पहुँचे। इससे पता लगता है कि वे रूस को लेकर कितने भावुक और सेंटीमेंटल हैं और रूस के प्रति उनका ख़ास रवैया है। ख़ुद जेम्स कैमरून ने भी हमारी इस बात की पुष्टि की। उन्होंने कहा : आपको शायद मालूम होगा कि जब मैं 'टाइटैनिक' फ़िल्म बना रहा था तो दुनिया में सिर्फ़ तीन-चार पनडुब्बियाँ ही ऐसी थीं, जो मुझे उस गहराई तक ले जा सकती थीं, जहाँ वास्तव में डूबे टाइटैनिक जलपोत के अवशेष पड़े हुए हैं। रूस के पास भी ऐसी सुविधाएँ थीं कि वह मुझे वहाँ ले जा सकता था। जब मैंने रूसी अधिकारियो से इसकी चर्चा की तो उन्होंने मुझे यह सुविधा उपलब्ध करा दी और हम उन वैज्ञानिकों के साथ उस गहराई में उतरे जो गहरे जल में कोई वैज्ञानिक-अभियान पूरा कर रहे थे। वे सभी रूसी लोग जिन्होंने उस समय मेरे साथ काम किया था, बाद में मेरे गहरे मेरे दोस्त बन गए। तब मैंने नौ महीने रूसी वैज्ञानिक अनुसंधान पोत 'अकादमीशियन मस्तीस्लाव केलदिश' पर बिताए थे। इसी जहाज़ पर 'मीर' नामक वह डुबकी-यंत्र भी था। तब हम चार-पाँच हज़ार मीटर गहरे जल में डुबकी लगाया करते थे। सच-सच कहूँ तो अभी 'मरीआना गह्वर' में मैंने जो डुबकी लगाई है, वह उन दिनों रूसी जलपोत पर शुरू किए गए मेरे काम का ही आगे विस्तार है। उन नौ महीनों में मैंने जो अनुभव प्राप्त किया था, 'टाइटैनिक' फ़िल्म भी मेरे उस अनुभव का ही परिणाम थी। मैं भली-भाँति यह समझता हूँ कि रूस की तकनीकी उपलब्धियों ने मेरे जीवन को पूरी तरह से बदल दिया। मेरी उपलब्धियों पर भी उनका गहरा प्रभाव पड़ा और मैं इस दिशा में आगे अनुसंधान करने के लिए प्रेरित हुआ।

तब सन् 1995 में रूस के 'मीर' डुबकी यंत्र में सवार होकर जेम्स कैमरून ने बारह बार 'टाइटैनिक' जहाज़ के अवशेषों तक डुबकी लगाई थी। उसके बाद सन् 2010 में उन्होंने दुनिया की सबसे गहरी झील बायकाल के तट में डुबकी लगाई। और जिस दिन उन्होंने बायकाल में डुबकी लगाई, उस दिन उनका जन्मदिन भी था। कहना चाहिए कि उन्होंने ख़ुद को इस जन्मदिन के अवसर पर साढ़े चार घंटे तक जल के भीतर गहराई में डूबे रहने का उपहार दिया। कैमरून ने बताया कि वह डुबकी अनूठी थी। इससे पहले जल के भीतर की वैसी दुनिया से उनका कभी परिचय नहीं हुआ था। और अब उन्होंने एक और ऊँचाई को छुआ है या कहना चाहिए कि दुनिया की सबसे निम्नतम गहराई को छुआ है। एकदम संकरे डुबकी-यंत्र में बैठकर इस बार उन्होंने अपने थ्री-डायमेंशन कैमरे के साथ जल के भीतर ग्यारह हज़ार मीटर की गहराई में जाकर अकेले शूटिंग की। जेम्स कैमरून ने बताया : मेरी उत्सुकता मुझे आगे बढ़ाती है। अपने उद्देश्य की तरफ़ आगे बढ़ते हुए मैं हमेशा आने वाली बाधाओं को पार करने की कोशिश करता हूँ। मुझे ऐसी परियोजनाओं में भाग लेने में मज़ा आता है, जहाँ मुझसे पहले कोई नहीं पहुँचा है। यह शायद वैज्ञानिक दिलचस्पी ही है। जब कॉलेज में था तो मुझे विज्ञान या कला में से किसी एक विषय को चुनना था। मैंने पहले एक साल तक भौतिकी और गणित पढ़ा और उसके बाद मैं कला की तरफ़ झुक गया। लेकिन फिर बाद में मैं यह समझा कि मेरे भीतर तो नई-नई जानकारियाँ पाने की भूख भरी हुई है। बस, तभी से मैं पानी की गहराइयों में डुबकियाँ लगाने लगा। मेरे लिए बार-बार पानी में इतनी गहराई में जाना कोई आसान नहीं होता। लेकिन मैं थ्री-डी कैमरे से उस गहराई की तस्वीरें लेता हूँ। अपनी पिछली डुबकी में तो मैंने कुछ ऐसे जलजीवों को भी खोज निकाला है, जिनसे हमारे वैज्ञानिक अभी तक अपरिचित थे। वैज्ञानिकों ने मेरी बात की पुष्टि कर दी है कि वे इन जीवों के बारे में कुछ नहीं जानते हैं।

डुबकी-यंत्र 'चैलेंजर' से अथाह गहराई में जाकर कैमरून ने जो दृश्य देखा, उन्होंने उसकी तुलना चन्द्रमा की सतह से की है। उन्होंने बताया कि इससे पहले कहीं भी, कभी भी उन्होंने ख़ुद को इतना अच्छा महसूस नहीं किया, जैसा मानवजाति से दूर सागर की गहराइयों में महसूस किया। लेकिन मानवजाति को भी वे भूले नहीं। उनके इस डुबकी-अभियान का लक्ष्य ही मानव को उस नवीनता से परिचित कराना था, जिससे मानव इस इक्कीसवीं शताब्दी में भी पूरी तरह अनभिज्ञ है। जेम्स कैमरून ने कहा — मैं सिर्फ़ ख़तरा उठाने का रोमांचक मज़ा लेने के लिए ही ख़तरे नहीं उठाता। मेरे आख़िर पाँच बच्चे हैं। मुझे अभी उन सबको अपने पैरों पर खड़ा करना है। मैं सिर्फ़ वही ख़तरे उठाता हूँ जिनका मेरे लिए कुछ महत्त्व है और जो मेरे दीर्घकालीन उद्देश्यों की पूर्त्ति कर सकते हैं। अपने दीर्घकालीन उद्देश्यों में मैं समझता हूँ कि हमें सागर की प्रकृति का अध्ययन आगे जारी रखना चाहिए ताकि वह प्रकृति हमसे कहीं नष्ट न हो जाए। हम अभी तक सागर को अपने खाद्य-पदार्थों का एक स्रोत ही समझते रहे हैं या एक ऐसी अनुपयोगी जगह, जहाँ रद्दी सामान फ़ेंका जा सकता है। जबकि समुद्रों, सागरों और महासागरों की अपनी एक ऐसी अनूठी और अद्भुत्त दुनिया है, जिसके बारे में हम बहुत कम जानते हैं।

[B]मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास की रिपोर्ट.[/B]

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