दिल्ली दरबार की राजनीति गरमाई , एक तीर से कई निशाने लग रहे हैं !
कोलकाता में यह खबर पहले से थी कि मनमोहन को राष्ट्रपति बनाकर सोनिया गांधी प्रणव मुखर्जी को तदर्थ प्रधानमंत्री बनाकर राहुल गांधी का रास्ता साफ करना चाहती हैं, इसे महज अटकलबाजी मानकर खारिज कर दिया गया था। पर आज दिल्ली में क्षत्रपों की सबसे तगड़ी जोड़ी मुलायम ममता ने मनमोहन का नाम राष्ट्रपति पद के लिए प्रस्तावित करके न सिर्फ राजधानी का तापमान बढ़ा दिया, बल्कि मनमोहनी तुरूप की इस चाल से बाजार के होश भी फाख्ता कर दिये। अब चाहे जो हो, बाजार के प्रत्याशी बतौर प्रणव के राष्ट्रपति बनने की संभावना लगभग खत्म है बशर्ते कि वामपंथियों को पटाकर मुलायम ममता को हाशिये पर डालने की जोखिम उठाये सोनिया गांधी।लेकिन राजनीतिक खेल अभी खत्म नहीं हुआ है क्योंकि अंतिम फैसला सोनिया गाधी को ही करना है।ऐसा नहीं हो सकता कि ममता और मुलायम के बीच पक रही खिचड़ी की जानकारी उन्हें न हो। कोलकाता में अगर पहले से मनमोहन सिंह को राष्ट्रपति बनाने की अटकलें जोर पर थीं और कोलकाता की नेता ने ही औपचारिक तौर पर यह प्रस्ताव कर दिया तो इसे महज संयोग नहीं माना जा सकता। फिर अर्थ व्यवस्था की बदहाली के बहाने बाजार के नुमांदों से बी प्रणव दादा अलग बात कर रहे हैं। आहलूवालिया और पित्रोदा क्या कर रहे हैं, इसकी बल्कि मीडिया की खबर नहीं है। जबकि हकीकत यह है कि असल में यह खेल ममता मुलायम जोड़ी का कम, ममता, आहलूवालिया और पित्रोदा तिकड़ी की ज्यादा है!
जाहिर है कि यूपीए सरकार राष्ट्रपति चुनाव के मुद्दे पर गंभीर संकट से घिर गई है। कल तक नए राष्ट्रपति पद के लिए प्रणब मुखर्जी के नाम पर सहमति के आसार बन रहे थे, लेकिन आज सोनिया के बुलावे पर दिल्ली आई तृणमुल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी ने सारा खेल बिगाड़ दिया। उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की पसंद प्रणब मुखर्जी का नाम खारिज करते हुए अपनी ओर से एपीजे अब्दुल कलाम, मौजूदा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पूर्व लोकसभा स्पीकर सोमनाथ चटर्जी के नाम पेश कर दिए। ममता के इस खेल में समाजवादी पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव भी शामिल थे। जाहिर है कांग्रेस का राष्ट्रपति पद का अंकगणित बुरी तरह गड़बड़ा गया, उसपर सोनिया गांधी को भी ममता के इस खेल से अपमान का घूंट पीना पड़ा है।
ममता बनर्जी और मुलायम सिंह यादव ने भले ही मनमोहन सिंह, एपीजे अब्दुल कलाम और सोमनाथ चटर्जी का नाम राष्ट्रपति पद के लिए प्रस्तावित कर बड़ा ट्रेलर दिखा दिया हो, लेकिन पिक्चर अभी बाकी है। अंतिम फैसला लेंगी पर्दे के पीछे बैठीं सोनिया गांधी और वो इनमें से किसी को भी राष्ट्रपति नहीं बनाना चाहेंगी। उनकी पहली पसंद प्रणब मुखर्जी ही हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि प्रणब के राष्ट्रपति बनने से राहुल गांधी का रास्ता साफ हो सकता है। वो रास्ता जो पीएम की कुर्सी तक जाता है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी यह अच्छी तरह जानती हैं कि 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपीए की वापसी बहुत मुश्किल है। दूसरी ओर टीम अन्ना, भाजपा समेत तमाम समाजसेवी व नेता मनमोहन सिंह को कमजोर प्रधानमंत्री करार देते आ रहे हैं। ऐसे में 2014 में लोकसभा चुनाव से पहले ही कांग्रेस को अपना पीएम कैंडिडेट घोषित करना होगा।यूपीए में प्रणब मुखर्जी पीएम पद के सबसे बड़े दावेदार हैं और सोनिया गांधी हमेशा चाहेंगी कि राहुल गांधी पीएम की कुर्सी पर बैठें। यही कारण है कि सोनिया गांधी प्रणब दा को राष्ट्रपति बनाना चाहती हैं, ताकि राहुल का रास्ता क्लियर हो जाये।
मुलायम-ममता जुगलबंदी ने आगामी राष्ट्रपति चुनाव के लिए कांग्रेस के सारे समीकरण गड़बड़ा दिये हैं।सोनिया की पसंद : प्रणब मुखर्जी या हामिद अंसारी। मुलायम और ममता की पसंद : अब्दुल कलाम, सोमनाथ चटर्जी या मनमोहन सिंह! कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में सुझाए गए केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी और हामिद अंसारी के नामों को तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी और समाजवादी पार्टी (सपा) के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने खारिज कर दिया है! राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के संयोजक शरद यादव ने बुधवार को कहा कि कांग्रेस नेता प्रणब मुखर्जी से उनके बेहतर संबध हैं लेकिन वह केंद्रीय वित्त मंत्री को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाए जाने के पक्ष में नहीं हैं।गौरतलब है कि सोमनाथ चटर्जी सीपीएम के शीर्ष नेता रहे हैं। वे लोकसभा के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। वहीं सूत्रों का यह भी कहना है कि उपराष्ट्रपति पद के लिए सुभाषचंद्र बोस के परिवार की कृष्णा बोस का नाम भी चर्चा में है।
सबसे अहम सवाल यह है कि जो ममता विश्वपुत्र प्रणव को राष्ट्रपति बनाने को तैयार नहीं हैं, क्या वे उन्हें प्रधानमंत्री बनाने पर राजी हो जायंगी?फिर प्रधानमंत्री कौन होगा फिर सोनिया गांधी और मनमोहन इस प्रस्ताव पर क्यों राजी होंगे बशर्ते सोनिया मनमोहन को किनारे करने का मन न बना चुकी हों। फिर कलाम और सोमनाथ चटर्जी के नाम पर सहमति होने की गुंजाइश कम है। ममता मुलायम ने तो प्रणव और हमीद अंसारी को खारिज कर ही दिया है। संगमा के नाम पर सहमति के भी आसार नहीं है। तो क्या इन पांच नामों के अलावा कोई छठां व्यक्ति है,जिसके नाम पर सहमति की गुंजाइश हो और बाजार को भी ऐतराज न हो। इसीलिए परदे की आड़ में ममता के करीबी सैम पित्रोदा और और मंटेक सिंह आहलूवालिया की भूमिका अहम हो जाती है। वैसे सोमनाथ भी कारपोरेट इंडिया और बाजार के प्रय उम्मीदवार है। उनको प्रत्याषी बनाये जाने पर बांग्ला राष्ट्रीयता को मलहम लगाने का काम पूरा हो जायेगा। फिर भारत अमेरिकी परमाणु संधि के पास कराने में बाहैसियत लोकसभाध्यक्ष सोमनाथ की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, जिससे अमेरिकी युद्धक अर्थव्यवस्था को न सिर्फ मंदी से उबारने में मदद मिली, बल्कि भारत को खुला बाजार बनाने का एजंडा भी पूरा हो गया। बाजार को उनके नाम पर खास आपत्ति नहीं होनी चाहिए। वे हिंदू महासभा के दिग्गज नेता एन सी चटर्जी के सुपुत्र है, यह परिचयसंघ परिवार को पटाने में भी शायद सहायक हो। पर क्या सचमुच सत्तावर्ग सोमनाथ को राष्ट्पति बनाने को तैयार होगा या फिर खेल कुछ और है।ममता और मुलायम की ओर से पेश किए गए नाम तीनों नाम चौंकाने वाले हैं। एपीजे अब्दुल कलाम को एनडीए की पसंद माना जाता है जिन्हें ममता-मुलायम की जोड़ी ने पहले नंबर पर रखा है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का नाम दूसरे नंबर पर रखने का एक मतलब ये भी है कि दोनों को यूपीए की मौजूदा सरकार के रंग-ढंग पसंद नहीं आ रहे हैं। वे प्रधानमंत्री पद से मनमोहन सिंह की छुट्टी चाहते हैं। पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी उनकी लिस्ट में तीसरे नंबर पर हैं। लेकिन मार्क्सवादी नेता को कांग्रेस का समर्थन मिलेगा, इसकी उम्मीद बेहद कम है।ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सोनिया की पसंद को ममता ने किसी रणनीति के तहत सार्वजनिक किया? क्या सोनिया की पसंद को सार्वजनिक तौर पर खारिज करके उन्होंने यूपीए अध्यक्ष की किरकिरी नहीं की है?कांग्रेस की पूरी कोशिश है कि उसका उम्मीदवार सर्वसम्मत हो। इसके लिए उपराष्ट्रपति पद विपक्ष को देने की जरूरत हुई तो उससे भी इन्कार नहीं होगा। कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि अकाली दल के नेता इसके लिए उत्सुक हैं। लिहाजा राजग को मनाने में ज्यादा परेशानी नहीं होनी चाहिए। अब तक कांग्रेस ने अंसारी के नाम पर राकांपा और द्रमुक से बातचीत की है। द्रमुक मुखिया करुणानिधि ने चेन्नई में पत्रकारों से कहा, 'हम अच्छे राष्ट्रपति की उम्मीद करते हैं। एंटनी ने कुछ नामों का प्रस्ताव दिया और मैंने भी ऐसा किया।' करुणानिधि ने प्रणब के नाम पर सहमति के संकेत दिए हैं। द्रमुक मुखिया रविवार को ही स्पष्ट कर चुके हैं कि उनकी पार्टी कलाम का समर्थन नहीं करेगी।
इस बीच देश की खराब अर्थव्यवस्था और औद्योगिक उत्पादन में गिरावट के बीच खबर है कि वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी 26 जून को बड़े उद्योगपतियों से मुलाकात करेंगे।प्रणब मुखर्जी ने ये बैठक विकास दर और औद्योगिक उत्पादन में नई जान फूंकने के लिए बुलाई है. इस बैठक में देश के जाने-माने उद्योगपति शामिल होंगे। इनमें मुकेश अंबानी, अनिल अंबानी, रतन टाटा और सुनील मित्तल भारती जैसे दिग्गज शामिल होंगे।देश की विकास दर गिरने और औद्योगिक उत्पादन घटने से सरकार के कामकाज करने के तरीके पर सवाल उठ रहे हैं। कई बड़े उद्योगपतियों ने तो नेतृत्व पर ही सवाल खड़े किए हैं।मंगलवार को सरकारी बैंकों व वित्तीय संस्थाओं के प्रमुखों के साथ बैठक के बाद बुधवार को वित्त मंत्री ने सरकारी बीमा कंपनियों के प्रमुखों के साथ विचार-विमर्श किया। बैठक में बीमा कंपनियों की सेहत की समीक्षा के अलावा वित्त मंत्री ने कंपनियों को पॉलिसीधारकों के हितों पर जोर देने के निर्देश दिए। वित्त मंत्री ने कंपनियों से देश के टियर-4 श्रेणी के शहरों तक में अपनी सेवाएं पहुंचाने को भी कहा। बीमा कंपनियों से घाटे वाली शाखाओं के पुनर्गठन पर भी विचार करने को कहा गया है।वित्त मंत्री ने औद्योगिक उत्पादन खास तौर पर मैन्यूफैक्चरिंग की रफ्तार बढ़ाने के उपाय तलाशने को शीर्ष उद्योगपतियों से मुलाकात करने का फैसला किया है।अप्रैल में औद्योगिक उत्पादन की विकास दर 0.1 प्रतिशत रहने के बाद उद्योग और सरकार दोनों स्तर पर स्थिति से निपटने की कोशिश की जा रही है। सरकार में लगातार बैठकों का सिलसिला जारी है।प्रणब ने पिछले साल अगस्त में भी उद्योगपतियों के साथ विचार-विमर्श की प्रक्रिया शुरू की थी। बैठक में उद्योगपतियों ने अर्थव्यवस्था की रफ्तार तेज करने के उपाय भी सुझाए थे। लेकिन सरकार की नीतिगत सुस्ती उन सुझावों पर भारी पड़ गई। उधर, अजीम प्रेमजी और नारायणमूर्ति जैसे देश के शीर्ष उद्योगपति अब सरकार की आलोचना में खुल कर सामने आ गए हैं।
मुलायम और ममता की पहल पर अगर कलाम राष्ट्रपति बना दिये गये, तो यह मुलायम की भारी जीत होगी क्योंकि वे शुरू से कलाम की रट लगाये हुए हैं। मायावती की झोली में अटके मुसलमान वोट बैंक के बाकी हिस्से निकालने की जुगत में हैं मुलायम। इसमें उन्हें कामयाबी मिल गयी तो मायावती तो फिर भी दलित वोट बैंक के सहारे राजनीति चलाती रहेंगी पर भाजपा का यूपी में खेल खत्म हो जायेगा। इसीलिए कलाम के नाम पर भाजपाइयों के सामने चुप्पी साध लेने और अपना उम्मीदवार हाईजैक कर लेने की इस मुलायम कार्रवाई पर उफ भी न करने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है। बहरहाल भाजपा ने बुधवार को कहा कि उसने सपा और तृणमूल कांग्रेस की ओर से राष्ट्रपति के उम्मीदवार के तौर पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम और पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी के सुझाए गए नामों पर चर्चा की है लेकिन कांग्रेस की ओर से इस पद के उम्मीदवार की घोषणा किए जाने पर वह अपनी प्रतिक्रिया देगी।पार्टी के कोर ग्रुप की आज शाम हुई बैठक के बाद भाजपा के वरिष्ठ नेता अनंत कुमार ने कहा कि बैठक में सपा और तृणमूल द्वारा सुझाए गए तीन नामों पर चर्चा हुई लेकिन भाजपा चाहती है कि पहले कांग्रेस इस बारे में कुछ कहे और उसके बाद ही हम राजग की बैठक बुला कर उसमें इस संबंध में चर्चा करेंगे।राष्ट्रपति पद के चुनाव के बारे में रणनीति तैयार करने के लिए आज हुई भाजपा कोर ग्रुप की बैठक में नितिन गडकरी, लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज और अरुण जेटली सहित कई वरिष्ठ नेताओं ने हिस्सा लिया। जाहिर है कि भाजपा गैर कांग्रेस-गैर राजग खेमे के पीछे खड़े होकर सरकार को पटखनी देगी। यह कोशिश भी होगी कि तीसरे खेमे से कोई नाम आगे आए जिसमें भाजपा समेत दूसरे दलों की सहमति हो और कांग्रेस अलग-थलग पड़ जाए। राष्ट्रपति चुनाव के बहाने भाजपा 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए गोटियां फिट करने में जुट गई है। अभी से सहयोग और साथियों का दायरा बढ़ाने की कोशिश भी शुरू हो गई है। भाजपा के बड़े नेताओं के विचार-विमर्श में यह तक तय हो गया है कि राष्ट्रपति पद के लिए समर्थन के बदले उपराष्ट्रपति पद का लेन-देन स्वीकार नहीं होगा। पार्टी को डर है कि इस तरह का कोई राजनीतिक सौदा हुआ तो 2014 में उसका परिणाम भुगतना पड़ सकता है। लिहाजा कोशिश होगी कि राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ बड़ी संख्या में राजनीतिक दल एकजुट हों।
कांग्रेस के लिए राह मुश्किल है। मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने न सिर्फ इन दोनों नामों को खारिज कर दिया है, बल्कि कांग्रेस से जुड़े हर प्रत्याशी का विरोध करने का संकेत दे दिया है। राकांपा सांसद व केंद्रीय मंत्री अगाथा संगमा ने भी प्रणब का विरोध करने के साथ अपने पिता व पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पीए संगमा का नाम आगे कर दिया है। अगाथा का कहना है कि मुखर्जी को वित्ता मंत्रालय में बने रहना चाहिए। वह बेहद अहम भूमिका में हैं और उनके जैसा वित्ता मंत्री मिलना मुश्किल है। उनके पिता पीए संगमा राष्ट्रपति पद के योग्य प्रत्याशी हैं, साथ ही आज तक कोई भी ईसाई या आदिवासी देश का राष्ट्रपति नहीं बना है। ऐसे में उन्हें मौका मिलना चाहिए।
वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी के राष्ट्रपति की रेस में सबसे आगे होने की चर्चाओं के बीच ममता बनर्जी ने बुधवार को सोनिया गांधी से मुलाकात की। इस मुलाकात के बाद उन्होंने अपनी कोई राय तो जाहिर नहीं की, लेकिन ये बात सार्वजनिक कर दी कि सोनिया गांधी की पहली पसंद प्रणव मुखर्जी हैं और दूसरी उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी।ममता जब मुलायम से बात करने गई तो किसी को उम्मीद नहीं थी कि नए राष्ट्रपति की गुत्थी और उलझ जाएगी। इस बात के संकेत थे कि प्रणब के नाम पर मुलायम को एतराज नहीं है। किसी राजनीतिक शख्सियत को ही राष्ट्रपति बनाने के उनके बयान का यही मतलब था कि वे हामिद अंसारी का नाम बढ़ाने के पक्ष में नहीं हैं। लेकिन करीब 45 मिनट तक हुई बैठक के बाद मुलायम और ममता जब बाहर आए तो कहानी बदल गई। उन्होंने साझा प्रेस कांफ्रेंस के जरिए ऐसा बम फोड़ा जिसमें कांग्रेसी रणनीति की परखच्चे उड़ते दिख रहे थे।मुलायम सिंह यादव और ममता बनर्जी ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि राष्ट्रपति चुनाव के लिए हमने तीन नामों पर विचार किया। जिनमें एपीजे अब्दुल कलाम, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सोमनाथ चटर्जी का नाम शामिल है। दोनों नेताओं ने सभी दलों से अपील की कि वे इनमें किसी एक नाम पर आम सहमति बनाए।हालत इतनी हैरतअंगेज है कि दिल्ली में बुधवार की शाम जब ममता बनर्जी और मुलायम सिंह यादव अपने पसंदीदा तीन उम्मीदवारों का नाम ले रहे थे तो उधर इन पसंदीदा तीन उम्मीदवारों में से एक को पता भी नहीं था कि दूर दिल्ली में उनका नाम देश के सर्वोच्च प्रशासक और भारत के प्रथम नागरिक के लिए लिया जा रहा है. वे हैं सोमनाथ चटर्जी. कुछ टीवी चैनलवाले उनसे जानने पहुंचे तो उन्होंने कहा कि उनसे तो किसी ने संपर्क ही नहीं किया. फिर उनका नाम कैसे आया?दरअसल, दोनों ही कांग्रेस व उसकी सरकार से आजिज आ चुके हैं। अब कांग्रेस पर है कि वह राष्ट्रपति पद के लिए ममता, मुलायम के सुझाए नामों में किसी एक पर 'हां' करे, नहीं तो चुनाव होगा। राजनीतिक गणित यह है कि तब कांग्रेस प्रत्याशी हारा तो फिर सरकार को भी जाना पड़ सकता है। बहाना भले ही राष्ट्रपति चुनाव हो, लेकिन समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव और तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी ने संप्रग सरकार को समर्थन के बावजूद कांग्रेस से निपटने का मोटे तौर पर ब्ल्यूप्रिंट तैयार कर लिया है। दोनों इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि केंद्र में कई बार सरकार बचाने के बावजूद जरूरत के किसी मौके पर कांग्रेस ने उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया। सपा को तो वह बात अब तक नहीं भूली है, जब 2008 में अमेरिका से परमाणु करार के लिए उसने मनमोहन सिंह की सरकार बचाने को दो दशक पुराने अपने वामपंथी साथियों से रिश्ते खराब कर लिए। जबकि, ममता बनर्जी तो महज तीन साल में ही इस कांग्रेस व उसकी सरकार के 'इस्तेमाल करो और फेंक दो' के रवैये से ऊब चुकी हैं। दोनों की यह समझ बनी है कि कांग्रेस उन्हें एक-दूसरे की कीमत पर इस्तेमाल करती है। लिहाजा उसे सबक सिखाना जरूरी हो गया है।
राष्ट्रपति उम्मीदवार को लेकर ममता बनर्जी का आज का बयान बेहद दिचलस्प था। ममता बोलीं कि वो ऐसे इंसान को राष्ट्रपति बनवाना चाहेंगे जो ईमानदार हो, जिसकी इज्जत हो, जिसे संविधान की समझ हो और जो अच्छे काम कर सके। गौर किया जाए तो ममता की इस कसौटी पर प्रणब मुखर्जी खरे उतरते हैं, फिर भी ममता को प्रणब का नाम बर्दाश्त नहीं। आखिर क्यों ममता की नजरों में प्रणब का सम्मान नहीं है?जब प्रणब मुखर्जी के नाम पर ज्यादातर दलों को ऐतराज नहीं है, बीजेपी को भी उनके नाम पर दिक्कत नहीं है तो फिर आखिर बंगाल की शेरनी उनकी राह में कांटे बोने पर क्यों आमादा हैं? जाहिर है इसके पीछे कई वजहें हैं। ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही राज्य की कमजोर माली हालत का रोना रोते हुए केंद्र से बड़े आर्थिक पैकेज की मांग करती रही हैं। उनका रोना ये भी है कि वित्त मंत्री रहते हुए प्रणब ने कभी उनकी मांग को गंभीरता से नहीं लिया। ममता का सोचना है कि प्रणब 19 हजार करोड़ के बड़े पैकेज के हक में नहीं हैं और प्रणब के ऐतराज के चलते ही ये पैकेज इतने महीनों से लटका हुआ है।प्रणब और ममता दोनों ही पश्चिम बंगाल की गैर वामपंथी धारा का प्रतिनिधित्व करते हैं। ममता खुद को लगातार बंगाली अस्मिता की झंडाबरदार करार देने की कोशिश कर रही हैं। हाल ही में कोलकाता में ममता ने बाकायदा बंगाली चेहरों को बंग विभूषण पुरस्कार देकर ये साबित करने की कोशिश की। जाहिर है ममता और प्रणब के बीच अहम की ये लड़ाई नई नहीं पुरानी है।
राष्ट्रपति चुनाव को लेकर चल रही अटकलें बुधवार को नाटकीय दौर में पहुंच गईं जब कांग्रेस ने प्रणव मुखर्जी को अपनी पसंद बताया लेकिन सहयोगी दलों तृणमूल कांग्रेस तथा सपा ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का नाम इस बाबत सुझाकर सभी को चौंका दिया।राष्ट्रपति पद की दौड़ में इस नाटकीय घटनाक्रम ने कांग्रेस को उलझन में डाल दिया है। पार्टी को अपने उम्मीदवार को राष्ट्रपति बनाने के लिए तणमूल और सपा का समर्थन चाहिए ही होगा।इससे पहले द्रमुक, राकांपा, रालोद और नेशनल कांफ्रेंस जैसे सहयोगी दल पहले ही प्रणव मुखर्जी के नाम पर अपना समर्थन जता चुके हैं। प्रधानमंत्री का नाम लेकर जहां ममता और मुलायम ने कांग्रेस को पशोपेश में डाल दिया है वहीं उनका नाम इस मामले में लाए जाने को कुछ राजनीतिक विश्लेषक इस तौर पर देख रहे हैं कि सिंह पर भरोसे में कमी आई है।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने तृणमूल कांग्रेस की नेता और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को बताया कि राष्ट्रपति के उम्मीदवार के लिए उनकी पार्टी की पहली पसंद वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी हैं। जब ममता ने सोनिया से इस बाबत उनकी पसंद वाला दूसरा नाम पूछा तो उन्होंने उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी का नाम लिया।
सोनिया के बुलावे पर राजधानी आईं ममता ने कांग्रेस के पसंदीदा नामों के बारे में मीडिया के सामने खुलासा किया, जिसके बाद पिछले कुछ दिनों से चल रही अटकलों का दौर समाप्त हो गया। मामले में बड़ा मोड़ तब आया जब ममता ने सोनिया से मुलाकात के तत्काल बाद सपा नेता मुलायम सिंह यादव के साथ अपने पसंदीदा उम्मीदवारों के रूप में प्रधानमंत्री सिंह, पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम और पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी के नाम लिए। उन्होंने कहा कि इनमें से किसी के नाम पर भी आम सहमति होने पर उन्हें वह नाम मंजूर होगा।
राकांपा अध्यक्ष शरद पवार ने आज कहा कि तृणमूल और सपा द्वारा राष्ट्रपति पद के लिए प्रधानमंत्री सिंह को अपनी पसंद बताए जाने के बाद इस पद के उम्मीदवार के नाम पर आम सहमति बनाने के लिए संप्रग के सभी दलों को बातचीत करनी चाहिए। उन्होंने संवाददाताओं से कहा कि नए घटनाक्रम के मद्देनजर हमें तृणमूल कांग्रेस-सपा के फैसले के मद्देनजर सभी संबंधित दलों से बात करनी होगी और राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार के नाम पर आम सहमति बनाने का प्रयास करना होगा।
उधर, राष्ट्रपति पद के लिए प्रणव के नाम पर तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी का समर्थन नहीं मिलने पर पश्चिम बंगाल प्रदेश कांग्रेस ने निराशा प्रकट की। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रदीप भट्टाचार्य ने ममता और मुलायम द्वारा पूर्व राष्ट्रपति कलाम, प्रधानमंत्री सिंह तथा पूर्व लोकसभा अध्यक्ष चटर्जी का नाम उम्मीदवार के तौर पर लिए जाने के संबंध में कहा कि हम उनकी पसंद से सहमत नहीं हैं। हम राष्ट्रपति पद के लिए प्रणव मुखर्जी के नाम को तरजीह देते हैं। एक और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता तथा ममता बनर्जी सरकार में मंत्री मानस भुइंया ने कहा कि यह उनका (मुलायम तथा ममता का) फैसला है।
लगता है कि मुलायम ने एक बार 1999 वाला धोबीपाट दांव चलकर कांग्रेस को चित करने की कोशिश की है। 1998 में बनी एनडीए सरकार जब 13 महीने बाद गिरी तो 21 अप्रैल 1999 को सोनिया गांधी ने राष्ट्रपति के.आर.नारायण से मुलाकात करके सरकार बनाने का औपचारिक दावा पेश किया था। उन्होंने कहा था कि उन्हें 271 सांसदों का समर्थन है और ये अभी और बढ़ेगा। उनकी गिनती में मुलायम की समाजवादी पार्टी भी शामिल थी। लेकिन ऐन मौके पर मुलायम सिंह यादव समर्थन देने से मुकर गए। तब से मुलायम और कांग्रेस के रिश्तों में उतार-चढ़ाव आता रहा।
साल 2004 की जीत के बाद कांग्रेस ने मुलायम से दूरी बनाए रखी। 2009 में दोबारा जीत के बाद भी मुलायम को बहुत भाव नहीं दिया गया। लेकिन यूपी चुनाव में मुलायम को मिले जबरदस्त समर्थन के बाद हालात बदले। यूपीए सरकार ने तीन साल पूरे होने पर रिपोर्ट कार्ड जारी हुआ तो मंच पर मुलायम भी थे। लेकिन मुलायम ने साबित कर दिया कि रिश्तों का ये सिलसिला अभी कई और मोड़ लेगा। उधर, ममता ने मुलायम से दोस्ती साधकर कांग्रेस की रणनीति की हवा निकाल दी है। राष्ट्रपति चुनाव की गुत्थी सुलझाने में जुटी कांग्रेस खुद उलझ गई है। और इस उलझन के जिम्मेदार दुश्मन नहीं, ममता और मुलायम जैसे दोस्त ही हैं।
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