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Sunday, April 21, 2013

हंगामा न किया तो अपनी जनता को संबोधित कैसे करेंगे जनप्रतिनिधि?

हंगामा न किया तो अपनी जनता को संबोधित कैसे करेंगे जनप्रतिनिधि?


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


सोमनाथ चटर्जी ने लोकसभा की कार्यवाही के सीधे प्रसाऱम का यह तर्क दिया था कि जिस जनता ने वोट देकर निर्वाचित किया, उसके नसमने बेनकाब होने के बजाय संसाद संयम बरतेंगे। लेकिन कैमरे ने तो संयम के सारे बंधन तोड़ दिये। सीधे अपनी जनता को संबोधित करने के चक्कर में हर हथकंडा अपनाया जाने लगा। बिना प्रसारण सदन में हंगामे के ारे रिकार्ड टूटते जा रहे हैं। जनविरोधी नीति नर्धारण में समान हिस्सेदार माननीय जनप्रतिनिधियों को अपनी जनता को यह दिकलाने की गरज ज्यादा होती है कि वे किस जबरद्सत ढंग से उनके हितों की बात कर रहे हैं। जनता के हित कैसे सधे, भारत अमेरिका परमामु संधि पर अनास्था प्रस्ताव के दौरान हुई बहस इसका क्लासिक उदाहरण हैं। बीच संसदीय अधिवेशन पिछले दिसंबर में ेक बलात्कार कांड हुआ तो सारे जरूरी मुद्दे हाशिये पर चले गये। लेकिन जो कानून बनने थे वे निर्विरोध बन गये। जनता अपने नेताओं के तीखे तेवर पर बाग बाग होती रही। अब बजट अधिवेशन के मौके पर दिल्ली में एक और बलात्कारकांड संयोगवश घटित हो गया। पहले से ज्यादा नृशंस। जनांदोलन के बाद जस्टिस वर्मा की सिफारिशों को किनारे परबनाये गये स्त्री उत्पीड़न निरोधक कानून के बाद। कानून का क्या हश्र है कि फांसी के बाद बी बलात्कार थम नहीं रहे। जाहिर है कि फिर संसदीय कार्यवाही हंगामे में निष्णात होनी है कानून बनाने की प्रक्रिया और  जनविरोधी नीति निर्धारण की कारपोरेट प्रक्रिया में व्यवधान डाले बिना। इसकी जिम्मेवारी टालने के लिए कुछ तो करना ही पड़ता है और इसीलिए बजट सेशन के दूसरे दौर में कोई हंगामा न हो और ऐसा करने वालों का खुद-ब-खुद निलंबन हो जाए, इस पर राजनीतिक दलों में एकराय नहीं है। रविवार को इस मसले पर राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी की ओर से इस मसले पर बुलाई गई ऑल पार्टी मीटिंग में कोई नतीजा नहीं निकला। मीटिंग में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सहित कई दलों के सीनियर नेता मौजूद थे।


गौरतलब है कि संसद के बजट सत्र के दूसरे दौर में एक बार फिर यूपीए सरकार के सामने कई तरह की चुनौतियां होगी। इस सेशन के दौरान जहां सरकार को कुछ अहम बिल पास कराने हैं, वहीं उसे कुछ विवादित मुद्दों पर विपक्ष के तीखे तेवर भी झेलने होंगे। एनडीए ने अपनी मंशा जाहिर भी कर दी है। ऐसे में अगले एक महीने मौसम की तरह सियासत के पारे के भी गर्म रहने की संभावना है। तमाम दलों की ओर से अक्टूबर में चुनाव होने की संभावना जाहिर करने के बाद संसद सेशन के दौरान राजनीतिक उठापटक देखने को मिल सकती है।संसद में बजट सत्र के दूसरे चरण का आगाज संप्रग सरकार के लिए काफी मुश्किल भरा होगा क्योंकि मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी संप्रग सरकार को गिराने की रणनीति पर काम करेगी। भाजपा ने यह आक्रामक रुख 2जी घोटाले की जांच के लिए बनी जेपीसी की ड्राफ्ट रिपोर्ट में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का नाम शामिल किए जाने के बाद लिया है। इसके अलावा कोल ब्लॉक आवंटन घोटाला और गुड़िया रेप केस में भी भाजपा सरकार को घेरने की पूरी कोशिश करेगी। करीब एक महीने तक चलने वाले इस सत्र में हालांकि सरकार की पूरी कोशिश होगी कि किसी तरह का विवाद न खड़ा होने पाए और सभी दलों को भरोसे में लेकर चला जाए, लेकिन ऐसा होना मुमकिन नहीं दिख रहा है। भूमि अधिग्रहण विधेयक को लेकर संप्रग को बाहर से समर्थन दे रही समाजवादी पार्टी सरकार को चेतावनी देने में कसर नहीं छोड़ रही है। यहां हम परखने की कोशिश करते हैं कि कौन सा मुद्दा सरकार के लिए कितनी मुश्किल खड़ी कर सकता है।कमजोर हो चुकी इकॉनमी को टॉनिक देने वाले कुछ पेंडिंग बिलों को पास कराने के लिए पूरा जोर लगा रही है। फाइनेंस मिनिस्टर निवेशकों को लुभाने के लिए दुनिया के दौरे पर हैं। वहीं, यहां सरकार इन बिलों को पास कराने के लिए विपक्ष से भी लगातार संपर्क में है। इंश्योरेंस बिल, पेशन बिल और लैंड बिल पर बाजार की नजर रहेगी। अगर ये तीनों पास हो गए तो आर्थिक मोर्चे पर पॉजिटिवअसर देखने को मिल सकते हैं। सरकार को इसी सेशन में फाइनेंस बिल भी पास कराना है।सरकार राज्यसभा में पहले से ही अल्पमत में है वहीं लोकसभा में डीएमके की ओर से सपोर्ट वापस लिए वहां भी मुश्किलें बढ़ी हैं। ऐसे में नंबर गेम फिर अहम होने वाला है और सरकार को मुलायम सिंह और मायावती से एक बार फिर उम्मीद रहेगी। लेकिन हाल में जिस तरह मुलायम सिंह सरकार पर हमलावर रहे हैं ऐसे में उनका संसद के अंदर रुख देखना दिलचस्प। जेडीयू बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग संसद में उठाएगा और सरकार उसे किस तरह से डील करती है उससे भी राजनीतिक संदेश जाएगा।


सरकार के सामने अहम चुनौती

-लैंड बिल को संसद में पास कराना

-फूड सिक्युरिटी को बिल को पास करना जिसे सरकार अगले आम चुनाव में चुनावी हथियार के रूप में इस्तेमाल करने का मंशा रखती है

-इंश्योरेंस बिल को पास कराना।

सरकार को घेरेगा विपक्ष

-जॉइंट पार्लियामेंट कमिटी (जेपीसी) की रिपोर्ट लीक होने और इसमें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री पी. चिदंबरम को क्लीन चिट दिए जाने के मामले पर

-कोलगेट मामले में सीबीआई पर रिपोर्ट बदलवाने के लिए कानून मंत्री के ओर से दबाव दिए जाने की खबरों पर विपक्ष सरकार को घेरेगा

-दिल्ली रेप के बाद उपजी कानून व्यवस्था और दिल्ली पुलिस के कामकाज पर भी सवाल उठाए जाएंगे


हामिद अंसारी के सुझाव : सूत्रों ने बताया कि बजट सेशन के पहले दौर में 23 मार्च को श्रीलंकाई तमिलों के मुद्दे पर एआईएडीएमके सदस्यों के माइक तोड़े जाने और कागज फेंके जाने की घटना का जिक्र करते हुए हामिद अंसारी ने कहा कि मैं बेहद व्यथित और दुखी था। उन्होंने सुझाव दिया कि आसन के समीप आने वाले सदस्यों के नाम राज्यसभा की बुलेटिन में न दिए जाएं और इसका प्रसारण भी न किया जाए। सभापति ने यह भी सुझाव दिया कि बदइंतजामी फैलाने वाले सदस्यों का स्वत: निलंबन हो जाए।


जेटली को ऑब्जेक्शन :बैठक में राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने कहा कि सदन सदस्यों की जिम्मेदारी की भावना के आधार पर चल सकती है। स्वत: निलंबन के मामले पर आपत्ति जताते हुए उन्होंने कहा कि सरकार ऐसी स्थिति का इस्तेमाल विवादित विधेयक पास कराने के लिए कर सकती है। तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि प्रसारण बंद करने का सुझाव व्यावहारिक नहीं है और इससे समस्या का समाधान नहीं होगा। सीपीएम के सीताराम येचुरी ने भी कहा कि प्रसारण बंद करने का सवाल ही नहीं है। उन्होंने कहा कि लोगों को यह जानने का हक है कि सदन में क्या हुआ।


संसद के ऊपरी सदन में प्रश्नकाल के सीधा प्रसारण को निलंबित किए जाने का सुझाव देते हुए राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति एम. हामिद अंसारी ने रविवार को कहा कि सदन की कार्यवाही में बार-बार बाधा के लिए जिम्मेवार 'सामूहिक आचरण' को सुधारने की जरूरत है।


सर्वदलीय बैठक में उपराष्ट्रपति ने कहा कि उन्होंने यह बैठक 'व्यथित और दुखी' होकर बुलाई है, क्योंकि सदस्यों द्वारा सदन में पैदा की जाने वाली बाधाओं से संसद के बारे में लोगों के बीच गलत धारणा बनती जा रही है।


अधिकृत सूत्रों ने उपराष्ट्रपति के शब्दों को उद्धृत किया, "चूंकि बाधा का उद्देश्य कार्यवाही के सीधे प्रसारण के जरिए 'प्रचार पाना' हो सकता है इसलिए हम प्रश्नकाल का लगातार सीधा प्रसार खत्म कर सकते हैं और इसकी जगह दूसरा आधार अपना सकते हैं।"


अंसारी ने यह भी कहा कि सदस्य सभापति की आसंदी की तरफ बढ़कर या अत्यंत अमर्यादित आचरण के जरिए बाधा उत्पन्न करते हैं। ऐसे में उनके नाम रिकार्ड में लिखे जाएं।

उन्होंने सुझाव दिया कि नियमावली में ऐसा प्रावधान जोड़ा जाए जिससे सदन में अव्यवस्था उत्पन्न करने वाला सदस्य एक विशेष अवधि के लिए स्वत: निलंबित हो जाए। इस संदर्भ में परामर्श शुरू किया जाना चाहिए। यह संभव है, क्योंकि ऐसा नियम लोकसभा में पहले से है।


अंसारी ने कहा, "यह दुख और अत्यंत निराशाजनक सत्य है कि बार-बार बाधाओं के कारण कार्यवाही स्थगित करनी पड़ती है। यदि यह परंपरा यूं ही जारी रही तो हमारे लोकतंत्र के सर्वोच्च मंच के रूप में संसद के सार्वजनिक सम्मान पर आघात पहुंचेगा और इसकी प्रासंगिकता पर सवाल खड़ा हो जाएगा।"


विपक्ष ने 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन पर जेपीसी की मसौदा रिपोर्ट तथा कोयला घोटाले से संबंधित सीबीआई की रिपोर्ट में विधि मंत्रालय के कथित हस्तक्षेप पर विरोध का फैसला कर लिया है।सरकार ने भूमि अधिग्रहण विधेयक पर मुख्य विपक्षी दल से संपर्क साधकर संसद सत्र में शांतिपूर्ण कामकाज के लिए जमीन तैयार करने की कोशिश तो की लेकिन खबरों में नए-नए खुलासों से उसके लिए हालात मुश्किल वाले हो सकते हैं। भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने जेपीसी रिपोर्ट पर कड़ी आपत्ति जताई है जिसमें 2जी मामले में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री पी चिदंबरम को क्लीनचिट दे दी गई है।


सोमवार से शुरू होने जा रहे संसद के बजट सत्र के दूसरे चरण की बैठक से पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने यहां पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ बैठक की । विपक्ष द्वारा संसद सत्र के दौरान कोयला घोटाला और टूजी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले को उठाये जाने की संभावना है ।सोनिया की पार्टी नेताओं से हुई इस बैठक में रक्षा मंत्री ए के एंटनी, संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ और गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे उपस्थित थे । शिंदे लोकसभा में सदन के नेता भी हैं ।


बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल और ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने भी हिस्सा लिया


भाजपा रिपोर्ट में लगाए गए इन आरोपों से भी नाराज है कि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार की दूरसंचार नीति के कारण सरकारी खजाने को भारी नुकसान हुआ।

वाम दल भी रिपोर्ट से नाखुश हैं और उन्होंने संसद में अपना असंतोष जाहिर करने का फैसला किया है। कोयला घोटाले में सीबीआई की रिपोर्ट में कानून मंत्रालय के हस्तक्षेप की खबरों को लेकर भी भाजपा तथा वाम दल असंतुष्ट हैं।


विपक्ष का कहना है कि घोटाले के तार प्रधानमंत्री कार्यालय से जुड़े हैं और वह सरकार को घेरने का यह मौका नहीं जाने देगा। मनमोहन सिंह सरकार 10 मई को समाप्त हो रहे बजट सत्र के शेष चरण में कुछ महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित कराना चाहती है। भूमि अधिग्रहण विधेयक पर कांग्रेस और भाजपा में सहमति बन गई है और इस पर चर्चा हो सकती है। लंबे समय से लंबित खाद्य सुरक्षा विधेयक, बीमा और पेंशन विधेयक को भी लाया जा सकता है। सरकार विपक्षी दलों को मनाने और इन विधेयकों को पारित कराने की उम्मीद कर रही है। वाम दल इन विधेयकों का विरोध कर रहे हैं।


माकपा नेता प्रकाश करात ने मांग की है कि भूमि अधिग्रहण विधेयक को स्थाई समिति को या एक संयुक्त प्रवर समिति को भेजा जाना चाहिए। भाजपा बीमा और पेंशन विधेयकों में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) को 26 प्रतिशत से बढ़ाकर 49 प्रतिशत करने के खिलाफ है लेकिन वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने उसका समर्थन हासिल करने का विश्वास जताया है।

दिल्ली में पांच साल की मासूम बच्ची के साथ बलात्कार की वीभत्स घटना को भी जोरशोर से संसद में उठाया जा सकता है। लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने बच्चियों से दुष्कर्म के मामले में अपराधियों को मौत की सजा दिये जाने की मांग की है। सुषमा ने नए दुष्कर्म रोधी कानून को और अधिक सख्त बनाने की वकालत की।


सरकार को सत्र के दौरान सपा और बसपा को भी साधकर चलना होगा जिनका बाहरी समर्थन उसके लिए बहुत महत्व रखता है। वित्त विधेयक और कुछ अनुदान की मांगें अभी पारित होना बाकी हैं इसलिए सरकार कोई जोखिम नहीं लेना चाहेगी। सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव से संप्रग सरकार को संबंध टूटने का खतरा जब तक सामने नजर आता है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सूखे का सामना कर रहे उत्तर प्रदेश के पिछड़े बुंदेलखंड क्षेत्र को 4,400 करोड़ रुपये की मंजूरी दी है। मुलायम प्रदेश के लिए विशेष पैकेज की मांग कर रहे हैं।


जेपीसी की मसौदा रिपोर्ट

2जी केस में संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की मसौदा रिपोर्ट में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पी. चिदंबरम को बरी करने और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पर टिप्पणी के विषय को संसद में उठाने पर जोर देते हुए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के सभी सदस्यों से इस रिपोर्ट को पूरी तरह से खारिज करने की अपील की। जेपीसी की मसौदा रिपोर्ट की टिप्पणियों से क्षुब्ध एनडीए ने सवाल खड़ा किया कि इस मामले में दो अहम मंत्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पी. चिदंबरम को किस आधार पर बरी कर दिया गया? यह कैसे संभव है कि एक काबीना मंत्री प्रधानमंत्री को गुमराह करे? सरकार की सामूहिक जवाबदेही कहां गई? भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने साफ किया है कि कांग्रेस नीत संप्रग सरकार के आचरण को देखकर आने वाले दिनों में भाजपा महत्वपूर्ण विधेयकों पर सरकार को संसद में सहयोग करने के बारे में फिर से सोचने को मजबूर हुई है। दरअसल आडवाणी इस बात को लेकर काफी नाराज हैं कि जेपीसी की मसौदा रिपोर्ट को सदस्यों को दिए जाने से पहले कुछ चुनिंदा पत्रकारों को लीक कर दिया गया और इसमें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ पार्टी के वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह और अरुण शौरी का नाम लेते हुए कहा गया कि इनके कारण देश को नुकसान हुआ। आडवाणी के गुस्से का अंदाजा उनके इस कथन से लगाया जा सकता है, `वास्तव में यह मसौदा रिपोर्ट जेपीसी के अध्यक्ष ने तैयार की या संप्रग के किसी छद्म व्यक्ति ने।' भाजपा नेताओं का कहना है कि इस रिपोर्ट के लीक होने को लेकर 25 अप्रैल को होने वाली जेपीसी की बैठक में आपत्ति जताई जाएगी।


कोल ब्लॉक घोटाला केस

कोयले की कालिख से पहले से ही परेशान संप्रग सरकार बजट सत्र के दूसरे चरण में एक और मुश्किल में घिर गई है। सरकार के कानून मंत्री पर आरोप है उन्होंने सीबीआई द्वारा इस मामले पर तैयार की गई स्टेटस रिपोर्ट ही बदलवा दी है। अभी हाल ही में एक अंग्रेजी अखबार की रिपोर्ट ने यह खुलासा किया कि कोल ब्लॉक आवंटन घोटाले में सीबीआई की स्टेटस रिपोर्ट में प्रधानमंत्री कार्यालय और कानून मंत्री ने संशोधन करवाए हैं। सीबीआई ने घोटाले की जांच की स्टेटस रिपोर्ट शीर्ष अदालत को मार्च में सौंपी थी। इस मामले में कानून मंत्री अश्विनी कुमार पर रिपोर्ट बदलवाने का आरोप है। घोटाले में जांच की स्टेटस रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपने से एक दिन पहले कानून मंत्री अश्विनी कुमार ने समन भेजकर सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा एवं अन्य अधिकारियों को बुलाया था। भाजपा ने सरकार को भ्रष्ट बताते हुए इस मुद्दे पर कानून मंत्री से इस्तीफे की मांग की है। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज ने भी कहा है कि कोल ब्लॉक आवंटन मामले में प्रधानमंत्री को बचाने की कोशिश की जा रही है। इस मुद्दे को लेकर संसद में भाजपा पूरी तैयारी के साथ सरकार को घेरेगी। चूंकि कानून मंत्री की पोल खुल चुकी है इसलिए सदन में भाजपा के आरोपों का जवाब देना सरकार के लिए बड़ी मुश्किल होगी।


गुड़िया बलात्कार प्रकरण

बीते साल 16 दिसंबर को दिल्ली गैंगरेप की आग अभी ठंडी भी नहीं हुई थी कि गुड़िया रेप केस ने संप्रग सरकार के लिए नई मुश्किल खड़ी कर दी है। पांच साल की बच्ची से रेप की पृष्टभूमि में आज से शुरू हो रहे बजट सत्र के दूसरे चरण में कानून व्यवस्था को लेकर सरकार का घिरना तय है। दिल्ली में इस रेप कांड को लेकर जबरदस्त जनाक्रोश है। दिल्ली पुलिस एक बार फिर से कठघरे में खड़ी है। इस प्रकरण को लेकर केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे को सदन में जवाब देना मुश्किल होगा। भाजपा तो दूर, कांग्रेस पार्टी के सांसद और दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित भी सरकार से दिल्ली पुलिस के कमिश्नर नीरज कुमार को हटाने की मांग पर अड़े हैं। मालूम हो कि दिल्ली पुलिस केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन है और कानून व्यवस्था के बिगड़ने की जब बात आती है तो जनता को जवाब दिल्ली सरकार को देना पड़ता है। मुख्यमंत्री शीला दीक्षित पहले भी दिल्ली पुलिस को दिल्ली सरकार के अधीन करने की मांग कर चुकी हैं। दिल्ली में पीएम आवास, 10 जनपथ, दिल्ली पुलिस मुख्यालय पर जबरदस्त प्रदर्शनों के बीच शुरू हो रहे सत्र में विपक्षी हमलों से सरकार का बचना आसान नहीं होगा।


वित्त विधेयकों की मुश्किलें

बजट सत्र के दूसरे हिस्से में वित्त विधेयक पारित कराने में विफल रहने पर सरकार का बहुमत का दावा खंडित हो सकता और देश में समय से पहले सरकार को आम चुनाव कराना पड़ सकता है। संक्षिप्त अवकाश के बाद संसद में बजट सत्र के दूसरे हिस्से में सरकार की प्राथमिकता महत्वपूर्ण वित्त विधेयकों को पारित कराने की होगी। खाद्य सुरक्षा विधेयक, भूमि अधिग्रहण, भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल विधेयक के अलावा पेंशन और बीमा क्षेत्र में सुधारों से संबंधित विधेयक इस कड़ी में शामिल हैं। सरकार ने सर्वदलीय बैठक में हालांकि भूमि अधिग्रहण विधेयक पर राजनीतिक सहमति बना ली है, लेकिन 2जी पर जेपीसी की मसौदा रिपोर्ट से सरकार ने भाजपा से नाराजगी मोल ले ली है। भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने साफ तौर पर कहा है कि कांग्रेस नीत संप्रग सरकार के आचरण को देखकर भाजपा अहम विधेयकों पर सरकार को संसद में सहयोग करने के बारे में पुनर्विचार कर सकती है। संप्रग सरकार को बाहर से समर्थन दे रही समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव का रूख भी भूमि अधिग्रहण विधेयक को लेकर सकारात्मक नहीं दिख रहा। अगर सपा और भाजपा का इस मुद्दे पर गठजोड़ हुआ तो सरकार के लिए भूमि अधिग्रहण विधेयक समेत अन्य कई विधेयकों का भविष्य अधर में लटक सकता है। अगर ऐसा हुआ तो संप्रग सरकार के लिए यह बड़ी मुश्किल होगी क्योंकि इसमें खाद्य सुरक्षा विधेयक जैसे महत्वपूर्ण विधेयक लटक जाएंगे जिसके सहारे कांग्रेस पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव में एक बड़े वोट बैंक को लुभाने की तैयारी में है।


बहरहाल, करीब एक महीने तक चलने वाला संसद सत्र संप्रग सरकार के लिए काफी मुश्किल भरा होगा। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सत्र के दौरान भाजपा और सपा की पूरी कोशिश सरकार को बैकफुट पर लाने की होगी। जिस तरह से मुलायम लगातार इस बात की भविष्यवाणी कर रहे हैं कि लोकसभा चुनाव इसी साल होंगे, उसके आधार पर कहा जा सकता है कि मुलायम ने निश्चित रूप से कोई सियासी चाल सोच रखी होगी जिसे अंजाम देकर सरकार को सदन में मात दे दिया जाए।


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