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Wednesday, April 17, 2013

सऊदी का बुझता चिराग

सऊदी का बुझता चिराग

Wednesday, 17 April 2013 09:50

अख़लाक़ अहमद उस्मानी 
जनसत्ता 17 अप्रैल, 2013: पचीस मार्च 1975 की सुबह सऊदी अरब के शाह फैसल को कुवैत से आए एक प्रतिनिधिमंडल से मिलना था। यह मुलाकात रियाद में शाही महल की मजलिस में होनी थी। भेंट के लिए इंतजार में कुवैती प्रतिनिधिमंडल के अलावा शाह फैसल का हमनाम भतीजा प्रिंस फैसल भी बैठा था जो अभी-अभी अमेरिका से लौटा था। सुबह नौ बजकर पचास मिनट पर मजलिस में जैसे ही शाह फैसल बिन अब्दुल अजीज दाखिल हुए, अपने सौतेले भाई के बेटे यानी भतीजे प्रिंस फैसल बिन मुसैद को देख कर खुश हुए और चूमने के लिए आगे बढ़े। अगले ही पल प्रिंस ने अपनी पिस्तौल से शाह के चेहरे पर तीन गोलियां दागीं, जिनमें एक शाह की ठोड़ी को पार करती हुई दिमाग में जा धंसी, दूसरी कान पर लगी और तीसरी खाली निकल गई। कोहराम मच गया और आनन-फानन में शाह फैसल के सुरक्षाकर्मी उन्हें लेकरअस्पताल भागे। लेकिन डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। प्रिंस फैसल गिरफ्तार कर लिया गया। पूरा सऊदी अरब शोक में डूब गया। अरब जगत और इस्लामी बिरादरी को एक करने का सपना लेकर आगे चलने वाला शाह अपने ही परिवार के बागी के हाथों मारा गया। 
शाह फैसल सऊदी अरब की तेल राजनीति का पहला शिकार थे। 1973 के अरब-इजराइल युद्ध में उन्होंने यह कहते हुए पश्चिम को तेल देने से मना कर दिया था कि पश्चिम इजराइल का साथ दे रहा है। शाह फैसल राजनीतिक रूप से दोतरफा गलत साबित हो गए। जिस ब्रिटेन के सहयोग से उनके परिवार ने 1922 और 1925 के युद्धों में देश पर कब्जा किया था, फैसल ने उसे ही नाराज कर दिया और रूस और चीन के साथ उन्होंने संबंध बनाए नहीं। 1938 में सऊदी अरब में तेल मिलने के बाद अमेरिका सऊदी का पक्का दोस्त बना था लेकिन फैसल ने अमेरिकी हितों को चोट पहुंचाई थी। कहा जाता है कि फैसल सीआइए और एमआइ-6 की रणनीति का शिकार हुए। 
तीन दिन बाद शाह खालिद ने सऊदी अरब की बागडोर संभाली और फैसल के जाने के बाद 'अल सऊद' परिवार से आज दिन तक किसी ने यह हिम्मत नहीं दिखाई कि वह सऊदी अरब के तेल उत्पादन को कूटनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर सके। रियाद में 18 जून 1975 को हत्यारे प्रिंस फैसल का सरेआम सरकलम कर सजा दी गई। शाह फैसल के पिता और हिजाज और नज्द को मिलाकर उसे सऊदी अरब के नए नाम से देश स्थापित करने वाले अब्दुल अजीज इब्न सऊद की बाईस पत्नियों की पैंतालीस संतानों से आज पंद्रह हजार बच्चे हैं जो किसी न किसी वजह से सत्ता के सबसे करीब बने रहने के लिए मध्यकालीन रणनीतियों पर निर्भर करते हैं। इस्लामी दुनिया में अब्दुल अजीज इब्न सऊद की सत्ता से शायद शाह फैसल एकमात्र सबसे लोकप्रिय नेता के तौर पर उभरे। आज उनकी हत्या के अड़तीस साल बाद सवाल यह है कि क्या सऊदी अरब के दिये में इतना तेल बचा है कि अब्दुल अजीज की दमनकारी और वहाबी रणनीति से स्थापित किया गया नकारवादी देश अपने कथित वैभव को कायम रख पाएगा? 
पूर्वी और दक्षिणी सऊदी अरब के रेगिस्तान रबी-उल-खाली, अबकैक, फजीली, हौता, सनाफिया, बैरी, जुलुफ, खुरैस, कातिफ, अबू सफा, खुरसानिया, अबू हदरिया, न्यूट्रल जोन समेत फारस की खाड़ी में उसके कब्जे के तेल कुओं की क्या स्थिति है? इस संपदा के लिए अब्दुल अजीज बिन सऊद के परिवार ने कुछ नहीं किया, बल्कि यह प्रकृति का उपहार है। इसे बनाए रखने के लिए सऊदी अरब के पास क्या रणनीति है? और अगर तेल संपदा समाप्त होती है तो अपने खर्च और वैभव को चलाए रखने के लिए क्या सऊदी अरब हज को एक स्रोत के तौर पर देखता है? क्या यही वजह है कि मक्का और मदीना को एक धार्मिक पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है और इसके एवज में हर साल हज महंगा होता जा रहा है? 
एक पखवाड़े पहले सऊदी अरब में हुआ एक फैसला क्या आने वाले तूफान की आहट है कि नौकरियों में सऊदी मूल के लोगों को न्यूनतम दस फीसद आरक्षण मिलेगा? सऊदी अरब की खत्म होती तेल संपदा के हालात को समझने से पहले आपको बताते चलें कि वहां के सत्ताधारी अल सऊद परिवार की पृष्ठभूमि क्या है और उसे व्यवस्थित रूप में स्थापित करने वाला अब्दुल अजीज इब्न सऊद कौन था? वहाबियत क्या है और इस्लाम की वहाबी-सलफी व्याख्या से अलसऊद और अलशेख परिवारों ने कैसे राजनीतिक फायदा उठाया?
वहाबी विचारधारा के प्रवर्तक मुहम्मद इब्न अब्दुल वहाब का जन्म 1703 में उयायना, नज्द के बनू तमीम कबीले में हुआ था। इस्लामी शिक्षा की चार व्याख्याओं में से एक हम्बली व्याख्या का उसने बसरा, मक्का और मदीना में अध्ययन किया। इब्न अब्दुल वहाब की राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाएं काफी थीं। 1730 में उयायना लौटने के साथ ही उसने स्थानीय नेता मुहम्मद इब्न सऊद से एक समझौता किया, जिसमें दोनों परिवारों ने मिल कर सऊदी साम्राज्य खड़ा करने की सहमति बनाई। तय हुआ कि सत्ता कायम होने पर सऊद परिवार को राजकाज मिलेगा; हज और धार्मिक मामलों पर इब्न अब्दुल वहाब के परिवार यानी अलशेख का कब्जा रहेगा। यह समझौता आज तक कायम है।
सऊदी अरब का बादशाह अल सऊद-परिवार से होता है; हज और मक्का-मदीने की मस्जिदों की रहनुमाई वहाबी-सलफी विचारधारा वाले अल शेख परिवार के वहाबी इमामों के हाथ होती है। इब्न अब्दुल वहाब की विचारधारा को कई नामों से जाना जाता है। उसके नाम के मुताबिक उसकी कट््टर विचारधारा को वहाबियत यानी वहाबी विचारधारा कहा जाता है और खुद इब्न अब्दुल वहाब ने अपनी विचारधारा को   सलफिया यानी 'बुजुर्गों के आधार पर' कहा था। आज दुनिया में वहाबी और सलफी नाम से अलग-अलग पहचानी जाने वाली विचारधारा दरअसल एक ही चीज है। 

पूर्वी तट से लेकर दक्षिण के खतरनाक तापमान वाले रबी उल खाली के रेगिस्तान और उत्तर के नज्द (वर्तमान राजधानी रियाद का इलाका) और पश्चिमी तट के हिजाज (मक्का और मदीना सहित प्रांत) को वहाबी विचारधारा के एक झंडे के नीचे लाने में सऊद परिवार ने दो सौ साल संघर्ष किया और जहां-जहां वे इलाका जीतते, सलफी उर्फ वहाबी विचारधारा के मदरसे खोलते गए। बद््दुओं यानी ग्रामीण कबीलों में बंटे अरबों को एक नकारवादी विचारधारा के तहत लाकर 1922 और फिर 1925 के संघर्ष में अल सऊद ने वर्तमान सऊदी अरब के लगभग सारे इलाके जीत लिए। अब्दुल अजीज इब्न सऊद को इस संघर्ष में ब्रिटेन ने जोरदार सहयोग किया। ब्रिटेन जानता था कि उस्मानिया खिलाफत को मार भगाने के लिए अब्दुल अजीज इब्न सऊद ही उसकी मदद कर सकता है। 
जब भारत के लोग 1919 में महात्मा गांधी समर्थित और मौलाना महमूद हसन, मौलाना मुहम्मद अली जौहर, मौलाना हसरत मोहानी, मौलाना अबुल कलाम आजाद समेत कई मुसलिम नेताओं की अगुआई में हिजाज यानी मक्का और मदीना के पवित्र स्थल ब्रिटेन के हाथों में जाने के डर से खिलाफत आंदोलन चला रहे थे, अब्दुल अजीज इब्न सऊद ब्रिटेन के साथ मिल कर उस्मानिया खिलाफत और स्थानीय कबीलों को मार भगाने के लिए लड़ रहा था। अंग्रेजों के दिए हथियार और आर्थिक मदद से अब्दुल अजीज इब्न सऊद ने वर्तमान सऊदी अरब की स्थापना की और वर्षों से 'वक्फ' यानी 'धर्मार्थ समर्पित सार्वजनिक स्थल' वाले मक्का और मदीना के संयुक्त नाम 'हिजाज' को भी 'सऊदी अरब' कर दिया गया। 
इस्लाम के पांच फर्जों में अंतिम लेकिन अनिवार्य, हज के लिए श्रद्धालुओं को मक्का और मदीना आना ही होता है। कल तक हिजाज में पूरी इस्लामी बिरादरी की सहमति से कानून चलता था, अब उस पर सऊद और इब्न अब्दुल वहाब के 'अलशेख' परिवार का कब्जा हो चुका था। बाद में 'इख्वान' यानी भाई का झूठा नाम देकर साथ लाए गए बद््दु कबीलों को भी सऊद परिवार ने 1930 के सबीला युद्ध में मार भगाया। 1938 में पेट्रोलियम मिलने के साथ ही सऊदी अरब ऊर्जा क्षेत्र का सरताज बन गया। लेकिन लाख टके का सवाल यही है कि लाल सागर, अरब सागर, अदन और फारस की खाड़ी से घिरे वर्तमान सऊदी अरब की छाती में अब भी क्या दुनिया चलाने जितना तेल बचा है? 
सोकल, कासोक और कालटैक्स के बाद अमेरिका की मर्जर कंपनी अरेबियन अमेरिकन आॅयल कंपनी यानी 'आरामको' ने व्यवस्थित रूप से 1943 में सऊदी अरब में तेल उत्पादन का कार्य शुरू किया। सैकड़ों तेल कुओं वाले सऊदी अरब को तरल सोने की खान के रूप में 'घावर' तेल कुआं मिला, जो दुनिया का सबसे बड़ा तेल उत्पादक कुआं है। सऊदी अरब पिछले साल नवंबर तक रोजाना 95 लाख बैरल कच्चा तेल उत्पादन करता था। पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन 'ओपेक' ने माना है कि सऊदी अरब ने तेल उत्पादन पांच लाख बैरल प्रतिदिन घटा दिया है। 
दो घटनाओं ने सऊदी अरब के वर्तमान तेल उत्पादन के दावे को लेकर दुनिया के कान खड़े कर दिए हैं। 2011 मेंविकीलीक्स ने एक खुलासा किया। सऊदी अरब सरकार के सौ फीसद स्वामित्व वाली सबसे बड़ी तेल कंपनी आरामको के पूर्व उपाध्यक्ष सादाद अल हुसैनी ने अमेरिकी राजदूत को बताया था कि सऊदी अरब जितना तेल रिजर्व का दावा करता है, लगता है वह उससे चालीस फीसद कम है। दूसरी घटना मैट सिमन्स की पुस्तक 'ट्विलाइट इन डेजर्ट' थी। सऊदी पेट्रोलियम इंजीनियर्स के सर्वे के आकलन की व्याख्या सिमन्स ने पेश करते हुए कहा था कि साल 2004 जितना तेल सऊदी अरब कभी उत्पादित नहीं कर पाएगा। पहले से सतर्क और शक्की मिजाज के अलसऊद परिवार ने 1982 में ही किसी भी बाहरी एजेंसी के साथ तेल संसाधन, उत्पादन और रिजर्व के तथ्यों को साझा करने पर प्रतिबंध लगा दिया था।
हर साल करीब पचीस लाख बाहरी लोग हज करने सऊदी अरब में आते हैं। हज, वर्ष में एक निश्चित समय यानी हिजरी कैलेंडर के आखिरी माह 'जिलहिज्ज' में ही होता है। जिलहिज्ज माह के अलावा बाकी ग्यारह महीनों में पवित्र शहर मक्का और मदीना की यात्रा करने पर उसे 'उमरा' कहा जाता है। हज और उमरा मिला कर साल भर में करीब 1 करोड़ 20 लाख लोग आते हैं। सऊदी अरब की शाही सरकार हज के अलावा बाकी ग्यारह महीने होटल और संसाधन विस्तार के लिए निर्माण कार्य चलाती रहती है ताकि हज उद्योग को 2025 तक 1 करोड़ 70 लाख हाजियों के योग्य बनाया जा सके। लेकिन इसकी कीमत बहुत बड़ी है। पहली तो यह कि मक्का और मदीना समेत कई शहरों में इस्लामी पुरातत्त्व को बेरहमी से ढहा दिया गया, और दूसरी, सादगी से किया जाने वाला हज लगातार महंगा होता जा रहा है। 
इस्लाम में पांच प्रमुख फर्ज में होने की वजह से हर आम और खास मुसलमान हज पर जाना चाहता है। लेकिन हज पर्यटन का जो खून सऊदी सरकार के मुंह लगा है वह काफी विकृत है। अमीर हाजियों के लिए मक्का में काबा के पास महंगे और लग्जरी होटल; और गरीब हाजियों को मक्का के बाहर छोटे और अस्तव्यस्त सराय में ठहरना होता है। क्यों सऊदी अरब की सरकार भारत समेत हर देश के हाजियों पर भारी-भरकम टैक्स लगाती है लेकिन अनगिनत सरकारी प्रतिनिधिमंडलों में मुफ्त का हज करने वाले हर देश के स्थापित मुसलिम नेताओं और अफसरों को खुश करने में लगी रहती है?
http://www.jansatta.com/index.php/component/content/article/20-2009-09-11-07-46-16/42602-2013-04-17-04-21-09

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