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Monday, July 28, 2014

निजी क्षेत्र में वसंत बहार,सरकारी उपक्रमों में हाहाकार शेयरों के भावों के मुताबिक बिक्री पेशकश,सभी सरकारी उपक्रमों में सरकारी हिस्सेदारी 25 फीसद तक घटाने की कवायद

निजी क्षेत्र में वसंत बहार,सरकारी उपक्रमों में हाहाकार

शेयरों के भावों के मुताबिक बिक्री पेशकश,सभी सरकारी उपक्रमों में सरकारी हिस्सेदारी 25 फीसद तक घटाने की कवायद

पलाश विश्वास

अस्सी के दशक के हालात पैदा करके दूसरे चरण के सुधारो का नरसंहार की योजना अमल में लायी जा रही है।इसीके मध्य राष्ट्रीय संसाधनों और उपक्रमों को बेचने की दिनदहाड़े डकैती जारी है।बैंकिंग सेक्टर में तो फिरभी आम कर्मचारी अफसरान हालत से वाकिफ हैं और उनकी यूनियनें भी लामबंद के खिलाफ लामबंद की तैयारी में हैं।बाकी सेक्टरों में सन्नाटा है।जबकि निजी सेक्टरों में वसंत बहार है भरे मानसून में।सार्सन और टर्बो का मुनाफा दोगुणा हो गया है।टीएलसी सबसे बड़ी आईटी कंपनी हो गयी है विप्रो और इंफोसिस से आगे निकलकर।भारती एअरटेल दुनिया की चौथी सबसे बड़ी कंपनी बन गयी है।अदाणी गुजरात विजय के रास्ते अब विश्वविजय की राह प है,उसे आस्ट्रलिया में निवेश के मौके दिये जा रहे हैं।


गौरतलब है कि वित्त मंत्री ने चालू वित्त वर्ष में विनिवेश से 58,425 करोड़ रुपये प्राप्ति का लक्ष्य रखा है। यह आंकड़ा अंतरिम बजट में पेश 51,925 करोड़ रुपये के मुकाबले 12.5 प्रतिशत अधिक है। सरकार बड़े पैमाने पर विनिवेश की भी तैयारी कर रही है। कोल इंडिया में 10 फीसदी हिस्सेदारी बेचने और ओएनजीसी में 5 फीसदी विनिवेश के लिए ड्राफ्ट नोट तैयार कर लिया गया है।


पूरी विनिवेश प्रक्रिया अटल शौरी जमाने से यूपीए के दसासाला कारपोरेट राज में जस की तस जारी रही और अप चिदंबरम के फेल हो जाने के बाद जेटली की कामयाबी पर बाजार का दांव लगा है।जेटली के बजट में भी चिदंबरम के बजट की तरह अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों का ज़िक्र है जो 2008 के साल से चली आ रही है। जाहिर है कि महामंदी पुराण का सिलसिला जारी रहना है।


बजट पेश करते हुए जेटली के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि सरकारी खजाने की हालत को फिर से कैसे दुरुस्त करें। उन्होंने कहा है कि इससे पूर्व पी. चिदंबरम द्वारा पेश किए गए अंतरिम बजट में राजकोषीय घाटे की जिस 4.1 प्रतिशत की दर का लक्ष्य रखा गया था, उसे वे अपने लिए एक चुनौती मानते हुए बरकरार रखेंगे। लेकिन ऐसा करके दिखा पाना उनके लिए टेढ़ी खीर साबित होगा।

सरकार ने अपने सामने 5.4 से 5.9 प्रतिशत की आर्थिक विकास दर का लक्ष्य रखा है। क्या ऐसी स्थिति में कर राजस्व में 16 फीसद की बढ़ोतरी हो सकती है? बजट में औद्योगिक वर्ग के हित में अनेक कदम उठाए जाने के बावजूद ऐसा होना संभव तो नहीं लगता।


ऐसा लगता है कि विनिवेश पर जरूरत से ज्यादा भरोसा जताया गया है और उम्मीद की जा रही है कि उसकी मदद से 63,425 करोड़ की राशि जुटाई जा सकेगी। लेकिन यदि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक शेयरों को खुदरा निवेशकों को बेचने की बात छोड़ दें तो जेटली ने अपने बजट में एक आक्रामक विनिवेश कार्यक्रम के बारे में कुछ भी नहीं कहा है। सवाल उठता है फिर वे इतनी बड़ी राशि कैसे जुटा सकेंगे?

इसका खुलासा होना जरुरी भी नहीं है।चिदंबरम विनिवेश लक्ष्य हासिल करने में फेल रहे हैं तो पूत के पाव अब पालने में ही खिलने लगे हैं।पद्म प्रलय के मध्य विनिवेश लक्ष्य हासिल करना सभी सेक्टरों को विदेशी कंपनियों के हवाले कर देने के हिंदुत्व एजंडे की तरह जेटली का पहला बड़ा सर्वोच्च कार्यभार है जिसे वे बखूब अंजाम दे रहे हैं।बैंकिग सेक्टर में जो हलचल मची है,बाकी सेक्टरों में उसकी कोई गूंज नहीं है।



टीेएलसी की बढ़त के मध्य टाटा मोटर्स ने फैसला लिया है कि अब गुजरात के साणंद प्लांट में नैनो के अलावा दूसरी कारों का प्रोडक्शन भी होगा। नैनो के कम उत्पादन के कारण साणंद प्लांट की क्षमता का पूरा इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है। गौरतलब है कि साणंद प्लांट में नैनो का प्रोडक्शन पहले ही काफी कम कर दिया गया है। फिलहाल टाटा मोटर्स के साणंद प्लांट में 20,000 की क्षमता वाले प्लांट में केवल 2000 नैनो ही बन रही हैं।दरअसल नैनो की डिमांड में कमी से प्लांट की पूरी क्षमता का इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है। अब टाटा मोटर्स की ओर से नैनो की एसेंबली लाइन में नई कारों के हिसाब से बदलाव करने की योजना है। वहीं टाटा मोटर्स की अक्टूबर या नवंबर में 2 नई कारें लॉन्च करने की योजना है। माना जा रहा है कि टाटा मोटर्स की दोनों नई कारों का प्रोडक्शन साणंद प्लांट में होगा।



बैंकिंग सेक्टर में यूनियनं की तेज हलचल के मध्य दूसरी ओर, बेच डालो कार्यक्रम के तहत बैंकों की शामत भी आनेवाली है।जाहिर है कि इसी सिलसिले में वित्त मंत्री अरुण जेटली 31 जुलाई को पहली बार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक प्रमुखों से मुलाकात करेंगे। सरकारी तौर पर प्रचार लेकिन यह है कि वित्तमंत्री  उनसे ब्याज दर कम करने के लिए कहेंगे ताकि वृद्धि को प्रोत्साहित किया जा सके। सूत्रों ने बताया ''वित्त मंत्री 31 जुलाई को बैंकों के प्रमुखों से मुलाकात करेंगे ताकि बजट में घोषित वित्तीय समावेश के एजेंडे को आगे बढ़ाया जा सके।'' सूत्रों ने कहा कि हालांकि, वित्तीय समावेश बैठक का मुख्य एजेंडा है लेकिन इसके अलावा ब्याज दर कम करने, वसूली न किए जा सकने वाले ऋण, कृषि ऋण और वित्तीय प्रदर्शन के मामले पर बैठक में बात हो सकती है।सरकारी सूत्रों के पीआर के विपरीत यह मामला दरअसल बैंकों के विनिवेश और पुनर्गठन का मामला है।


इसीके मध्य सरकारी क्षेत्र के आईडीबीआई बैंक ने सोमवार को कहा कि वह कोलकाता स्थित यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया के उसके साथ विलय के किसी प्रस्ताव पर विचार नहीं कर रहा है। बैंक ने एक विज्ञप्ति में कहा, हम इस बात की पुष्टि करते हैं कि अब तक आईडीबीआई बैंक के साथ यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया के विलय के बारे में आईडीबीआई बोर्ड की बैठक में किसी प्रस्ताव पर विचार नहीं हुआ है। भारत सरकार से भी इस संबंध में कोई बातचीत अथवा प्रस्ताव नहीं मिला है। इसके अलावा यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया ने भी एक अलग विज्ञप्ति में बताया कि बैंक के विलय प्रस्ताव पर कोई भी बातचीत नहीं चल रही है।



अटल शौरी रोडमैप के मुताबिक बिक्री के लिए मुनाफा वाली कपनियों की तश्तरी पेश की जाने वाली है।इसी सिलसिले में गौरतलब है कि विनिवेश की संभावना वाली कंपनियों मसलन स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल), महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड (एमटीएनएल), नालको और कंटेनर कॉरपोरेशन के शेयरों का प्रदर्शन पिछले एक साल में बाजार के मुकाबले बेहतर रहा है।


बिजनेस स्टैंडर्ड के मुताबिक पीएसयू बास्केट के ज्यादातर शेयरों को या तो बीमार इकाइयों के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिसे बेचा जा सकता है या जहां सरकार अपनी हिस्सेदारी का विनिवेश कर सकती है। लेकिन इनके शेयरों में पिछले एक साल में 300 फीसदी तक की उछाल आई है। बीईएमएल में 295 फीसदी, एमटीएनएल में 150 फीसदी, सेल में 110 फीसदी, नाल्को में 107 फीसदी और फैक्ट में 85 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।इसके उलट एसऐंडपी बीएसई सेंसेक्स और सीएनएक्स निफ्टी में पिछले एक साल के दौरान करीब 31-31 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। एसऐंडपी बीएसई पीएसयू इंडेक्स में इस दौरान 39 फीसदी की उछाल आई है।


रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार सेल की 5 फीसदी हिस्सेदारी दीवाली के आसपास करने की योजना बना रही है। इसके बाद कोल इंडिया की हिस्सेदारी बेची जाएगी।


पीपीपी माडल की विकास परियोजनाओं की जमानत के लिए संघ सिपाही जावड़ेकर पार्टी प्रवक्ता बनाे गये हैं तो कारपोरेट वकील रक्षा खरीददारी समिति के चेयरमैन है जिससे रक्षा उद्योग में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश से उफान आने वाला है।सरकारी रक्षा उपक्रमों को भी देर सवेर निजी क्षेत्र के फायदे के लिए चूना लगने वाला है। मायारम की विशेषज्ञ सेवाें ली जा रही हैं पर्यावरण विध्वंस के लिए पीपीपी परियोजनाओं के खातिर।


अब अंदाजा कीजिये कि गुजरात पीपीपी माडल के जरिये अकेले गुजरात में अगर अदाणी,रिलायं,एस्सार जैसी कंपनियों के खातिर पच्चीस हजार करोड़ की वित्तीय अनिमतिताएं संभव है तो बाकी देशमें गुजरात माडल की पीपीपी सुनामी से क्या क्या नजारे होंगे।


कैग रपट के अलावा नमो वरदान अभयदान के मध्य अदाणी ग्रुप के लिए मुश्किलें बढ़ गई हैं। सीबीआई ने अहमदाबाद में स्थित अदाणी ग्रुप के खिलाफ प्रारंभिक जांच शुरू कर दी है। डायरेक्टर ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस (डीआरआई) के जरिए सौंपी गई एक रिपोर्ट के आधार पर ये जांच की जा रही है। इस रिपोर्ट में अदानी ग्रुप पर कस्टम ड्यूटी नहीं चुकाने और उसे बढ़ाचढ़ाकर दिखाने का आरोप लगाया गया है।


डीआरआई 2010 से लगातार अदानी ग्रुप की 3 कंपनियों की जांच कर रहा है। इनमें अदाणी पावर महाराष्ट्र, अदाणी पावर राजस्थान और महाराष्ट्र इस्टर्न ग्रिड पावर ट्रांसमिशन कंपनी शामिल हैं। इन कंपनियों पर आरोप है कि इन्होंने चीन और दक्षिण कोरिया से 3580 करोड़ रुपये के सामान इंपोर्ट किए थे। हालांकि अपने अकाउंट में इंपोर्ट को बढ़ाचढ़ा कर 9000 करोड़ रुपये के पास दिखाया था। जिसके बाद डीआरआई ने अदाणी ग्रुप को 5500 करोड़ रुपये का कारण बताओ नोटिस भेजा था।



गौरतलब है कि इंफ्रास्ट्रक्चर और पीपीपी धूमधड़ाके के मध्य वित्त वर्ष 2015 की पहली तिमाही में लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) का मुनाफा 2 गुना से ज्यादा बढ़कर 967 करोड़ रुपये हो गया है। वित्त वर्ष 2014 की पहली तिमाही में एलएंडटी का मुनाफा 458.6 करोड़ रुपये रहा था।




वित्त मंत्रालय ने 43,000 करोड़ रुपये के विनिवेश लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बेचने के संबंध में 'बिक्री पेशकश' प्रक्रिया को ही अपनाने का फैसला किया है। इसकी शुरुआत सितंबर में सेल के विनिवेश से हो सकती है। सूत्रों ने बताया कि बिक्री पेशकश हिस्सेदारी बेचने के मामले में सबसे पसंदीदा जरिया माना गया है और यही वजह है कि सरकार ने इसी प्रक्रिया के जरिए विनिवशि करने का फैसला किया है।विश्लेषकों इन कंपनियों के शेयरों की तेजी देखने के बाद इसका आकलन करना होगा कि किस कीमत पर सरकार इसे बेचने की पेशकश कर सकती है। सामान्य तौर पर जब सरकार अपनी हिस्सेदारी का विनिवेश करती है तो यह उस समय के बाजार भाव के मुकाबले छूट पर दिया जाता है।


सेबी ने पिछले महीने कहा था कि सभी सार्वजनिक उपक्रमों में सार्वजनिक भागीदारी 25 प्रतिशत होनी चाहिए। उपक्रमों में यह काम 3 साल के भीतर होना चाहिए। चालू वित्त वर्ष के दौरान जिन बड़ी कंपनियों का विनिवेश होना है उनमें सेल के अलावा ओएनजीसी, कोल इंडिया और बिजली कंपनियां - एनएचपीसी, आरईसी और पीएफसी शामिल हैं। बजट में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में विनिवेश से 43,425 करोड़ रुपये जुटाने का अनुमान लगाया गया है।




हालांकि सरकारी उपक्रमों को एकमुश्त बेच डालने के झटके के बजाय गला रेंतने की नीति के तहत बिक्री पेसकश जरिये सरकारी उपक्रमों में खुदरा भागीदारी को मौजूदा 10 प्रतिशत से बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं।


विनिवेश विभाग और वित्त मंत्रालय का पूंजी बाजार विभाग इस संबंध में बाजार नियामक सेबी से बातचीत कर रहा है। अनुवर्ती सार्वजनिक पेशकश (एफपीओ) के जरिए आने वाली हर पेशकश में हालांकि खुदरा निवेशकों के लिए 35 प्रतिशत कोटा तय है।


सूत्रों ने बताया कि वित्त मंत्रालय का मानना है कि अनुवर्ती पेशकश के जरिए नियामकीय मंजूरियां मिलने में करीब 3-4 महीने का समय लग जाता है, इसलिए बिक्री पेशकश ही बेहतर जरिया होगा। इसमें शेयरों की बिक्री पेशकश करने में 15 दिन से। महीने का वक्त लगता है। सेल पहला सार्वजनिक उपक्रम होगा जो इस साल सिंतबर में बाजार में आएगा और इसमें 5 प्रतिशत हिस्सेदारी की बिक्री की पेशकश की जा सकती है।


वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा  'जरूरत इस बात की है कि आरंभिक सार्वजनिक पेशकश और अनुवर्ती पेशकश की प्रक्रिया तेज हो। सेबी निदेशकमंडल को ऐसी पहलों पर चर्चा करनी है जो विनिवेश की इन प्रक्रियाओं को तेज करने के लिए जरूरी हो। जरूरत है कि इसमें समय कम लगे और यह सस्ती हो।'  बिक्री पेशकश को आम तौर पर नीलामी प्रक्रिया के तौर पर जाना जाता है और इसका प्रयोग प्रवर्तक की कंपनी में हिस्सेदारी घटाकर 75 प्रतिशत करने के लिए किया जाता है।


इसका करीब 30 प्रतिशत हिस्सा ओएनजीसी की हिस्सेदारी की बिक्री से आने की उम्मीद है जिससे सरकारी खजाने में 18,000 करोड़ रुपये आ सकते हैं। कोल इंडिया की 10 प्रतिशत हिस्सेदारी बेची जानी है जिससे केंद्रीय खजाने में 23,000 करोड़ रूपए आएंगे। सेल की 5 प्रतिशत हिस्सेदारी बिक्री से 1,800 करोड़ रुपये मिलने की उम्मीद है।


भारती एयरटेल ने एक नये आकड़े को पार कर लिया है। देश की सबसे बड़ी दूरसंचार कंपनी ने नया कीर्तिमान स्थापित किया है। भारती एयरटेल के ग्राहकों की संख्या 30 करोड के पार पहुंच गयी है। एयरटेल ने यह आकड़ा  मोबाइल फोन, फिक्स्ड लाइन, डीएसएल और डीटीएच सेवाओं के लिए है।कंपनी दुनिया की चौथी सबसे बडी और चीन के बाहर दूसरी सबसे बडी दूरसंचार सेवा प्रदाता कंपनी बन गयी है।''  गौर करने वाली बात है कि  कंपनी एशिया और अफ्रीका के 20 देशों में अपनी सेवाएं दे रही है। भारती एयरटेल के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी (भारत और दक्षिण एशिया) गोपाल विट्टल ने कहा, ''यह आंकडा कंपनी के मजबूत परिचालन को प्रदर्शित करता है। वैश्विक पैमाने पर यह सबसे बडी दूरसंचार सेवा प्रदाता कंपनी है।''  


दूसरी ओर बीएसएनएल की संपत्तियां बेचने की तरकीब खोजी जा रही है।


इसीतरह जेपी पावर बेंचर्स लिमिटेड (जेवीपीएल) की पनबिजली परिसंपत्तियों को हाल में अधिग्रहण करने के बाद रिलायंस पावर उसकी मदद के लिए चीन के बैंकों से करीब 9,500 करोड़ रुपये कर्ज लेने की संभावनाएं तलाश रही है। हालांकि कुछ बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि कर्ज की रकम इससे कहीं अधिक हो सकती है। रिलायंस पावर ने इस बाबत कोई भी जानकारी देने से इनकार किया। इस मामले की जानकारी रखने वाले एक कार्यकारी ने कहा, 'इससे पहले कंपनी चीन के बैंकों से कर्ज ले चुकी है और उसने कोयला आधारित अपनी सासन ताप बिजली परियोजना के लिए चीनी बैंकों से कम ब्याज दर पर कर्ज लिया था।


रिलायंस पावर ने जेपी पावर की 1800 मेगावॉट की 3 हाइड्रो यूनिट खरीदने के लिए करार किया है। इस करार के बाद रिलायंस पावर और जेपी पावर दोनों कंपनियों में तेजी दिख रही है।


माना जा रहा है कि ये सौदा 12000-12300 करोड़ रुपये में होगा। इसके बाद रिलायंस पावर देश की सबसे बड़ी निजी हाइड्रो पावर कंपनी बन गई है। अदानी ग्रुप, जेएसडब्ल्यू ग्रुप भी जेपी पावर की हाइड्रो यूनिट खरीदने की दौड़ में थे। सौदे से मिली पूंजी का इस्तेमाल जेपी पावर कर्ज चुकाने में करेगी।




ऐंजल ब्रोकिंग के उपाध्यक्ष (संस्थागत) मयूरेश जोशी ने कहा, कई सार्वजनिक कंपनियों में सरकार दक्षता लाने की कोशिश कर रही है। यह सरकार का स्पष्ट एजेंडा है कि वह पीएसयू के लिए और ज्यादा स्वायत्तता का इंतजाम करे और उन्हें उसी स्तर की निजी कंपनियों के बराबर खड़ा करें। हमें हर कंपनी का आकलन करने की दरकार है क्योंकि हर कंपनी के अनुकूल व प्रतिकूल अलग-अलग कारक हैं।


रिपोर्ट में कहा गया है, इसके अलावा इसने एक दर्जन अन्य कंपनियों की पहचान की है, जिसके शेयर सरकार इस वित्त वर्ष में बेच सकती है। पावर फाइनैंस कॉरपोरेशन, आरईसी, टीएचडीसी, एसजेवीएन, एनएचपीसी, कॉन्कोर, एमएमटीसी, एनएलसी और मॉयल ऐसी कंपनियां हैं, जहां सरकार ऑफर फॉर सेल के जरिए हिस्सेदारी बेच सकती है।


इंडिया इन्फोलाइन के शोध प्रमुख अमर अंबानी ने कहा, मेरा मानना है कि विनिवेश प्रक्रिया में थोड़ी दिलचस्पी नजर आएगी क्योंकि बाजार पहुंच रहे निवेशक या जिन्हें लगता है कि तेजी का फायदा उठाने में वह पीछे रह गए हैं, इसमें उतरना चाहेंगे। उन्होंने कहा, मुझे नहीं लगता कि सरकार तत्काल विनिवेश की जल्दी में होगी। वह दूसरी छमाही तक या मौजूदा वित्त वर्ष के आखिरी चार महीने तक इस उम्मीद में इंतजार कर सकती है कि उस वक्त तक शेयर की कीमतों में और तेजी आएगी।


विनिवेश

सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्‍ठानों में सरकारी शेयरों के पूंजी विनिवेश की प्रक्रिया 1991-92 में शुरू की गयी थी। 1999-2000 की अवधि में विनिवेश मुख्‍य रूप से छोटे-छोटे लॉट्स में अल्‍प मात्रा में बिक्री के जरिए किया गया। 1999-2000 से 2003-04 की अवधि में महत्‍वपूर्ण बिक्री के तहत विनिवेश पर बल दिया गया। इसका अर्थ था बहुसंख्‍य शेयरों की बिक्री के साथ रणनीतिक भागीदार को प्रबंधन नियंत्रण हस्‍तांतरित करना। भागीदार का चयन प्रतिस्‍पर्धात्‍मक बोली की प्रक्रिया के जरिए किया गया। 2004-05 के बाद विनिवेश को इक्‍विटी की अल्‍प भागीदारी की बिक्री के जरिए अंजाम दिया गया। 1991-92 और 31 मई, 2008 के बीच विनिवेश से कुल 53,423.03 करोड़ रुपये जुटाए गए। तत्‍संबंधी ब्‍योरा नीचे दिया गया है :

मद

राशि (करोड़ रुपये में)

प्रतिशत

केंद्रीय सार्वजनिक प्रतिष्‍ठानों में अल्‍प शेयरों की बिक्री के जरिए प्राप्‍ति

35,358.01

66.18

केंद्रीय सार्वजनिक प्रतिष्‍ठानों के बहुसंख्‍य शेयरों की बिक्री से प्राप्‍त राशि

1317.23

2.47

महत्‍वपूर्ण बिक्री के जरिए प्राप्‍तियां

6,344.35

11.88

अन्‍य संबद्ध लेनदेन से प्राप्‍त राशियां

4,005.17

7.50

विनिवेश केंद्रीय प्रतिष्‍ठानों/कंपनियों में बकाया शेयरों की बिक्री से प्राप्‍त राशि

6,398.27

11.98

कुल

53,423.03

100

नीति संरचना

सरकार द्वारा स्‍वीकृत राष्‍ट्रीय साझा न्‍यूनतम कार्यक्रम में केंद्रीय सार्वजनिक प्रतिष्‍ठानों में सरकारी भागीदारी के विनिवेश सहित सार्वजनिक क्षेत्र संबंधी सरकार की नीति स्‍पष्‍ट की गयी है। राष्‍ट्रीय साझा न्‍यूनतम कार्यक्रम की तत्‍संबंधी विशेषताएं इस प्रकार हैं :

  • सरकार एक ऐसे सुदृढ़ और प्रभावी सार्वजनिक क्षेत्र के लिए वचनबद्ध है, जिसकी कार्यप्रणाली से उसके वाणिज्‍यिक उद्देश्‍य पूरे हों। लेकिन इसके लिए चयनशीलता और रणनीतिक महत्‍व को ध्‍यान में रखा जाएगा। सरकार सफल, लाभ-अर्जक और प्रतिस्‍पर्धात्‍मक रूप से काम करने वाली कंपनियों को प्रबंधकीय और वाणिज्‍यिक स्‍वायत्तता देने के प्रति वचनबद्ध है। सामान्‍यत: लाभ-अर्जक कंपनियों का निजीकरण नहीं किया जाएगा।

  • सभी निजीकरण प्रत्‍येक कंपनी के लिए अलग-अलग आधार पर पारदर्शी और विचार-विमर्श के बाद ही तय किए जाएंगे। सरकार मौजूदा 'नवरत्‍न' कंपनियों को सार्वजनिक क्षेत्र में ही रखेगी जबकि इन कंपनियों को पूंजी बाजार से संसाधन जुटाने की छूट होगी। सार्वजनिक क्षेत्र की बीमार कंपनियों को पुनर्जीवित किया जाएगा, लेकिन लंबे समय से घाटे में चल रही कंपनियो को या तो बेच दिया जाएगा या बंद कर दिया जाएगा। ऐसा करने से पहले सभी श्रमिकों को उनके वैधानिक बकाया और उचित मुआवजे का भुगतान किया जाएगा। जिन कंपनियों को फिर से चालू करने की संभावना होगी, उन्‍हें कमाऊ बनाने के लिए निजी क्षेत्र की मदद ली जाएगी।

  • सरकार का मानना है कि निजीकरण से प्रतिस्‍पर्धा बढ़नी चाहिए, घटनी नहीं चाहिए। सरकार किसी ऐसे एकाधिकार के उभरने का समर्थन नहीं करेगी, जो प्रतिस्‍पर्धा पर अंकुश लगाता हो सरकार का ये भी मानना है कि निजीकरण और सामाजिक जरूरतों के बीच सीधा संबंध होना चाहिए। उदाहरण के लिए सामाजिक क्षेत्र की निर्दिष्‍ट योजनाओं के लिए निजीकरण से प्राप्‍त राशि का इस्‍तेमाल किया जा सकता है। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों और राष्‍ट्रीयकृत बैंकों को पूंजी बाजार में प्रवेश के नए अवसर उपलब्‍ध करा सकें।

वर्तमान में सरकार ने सिद्धांत रूप में यह निर्णय कर लिया है कि मुनाफा कमाने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के बड़े उद्यमों को घरेलू शेयर बाजार में सूचीबद्ध किया जाएगा, और केवल चुने हुए सूचीबद्ध, मुनाफा कमाने वाले गैर-नवरत्‍न सार्वजनिक प्रतिष्‍ठानों में ही शेयरों की लघु हिस्‍सेदारी बेची जाएगी।

स्रोत: राष्‍ट्रीय पोर्टल विषयवस्‍तु प्रबंधन दल, द्वारा समीक्षित: 27-01-2011



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