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Saturday, July 19, 2014

विनियंत्रित विनियमित ईंधन और तेल युद्ध के हित ही सुधार एजंडा के बुनियादी तत्व एस्सार ऑयल और रिलायंस इंडस्ट्रीज को 667 करोड़ रुपये का अनुचित लाभ

विनियंत्रित विनियमित ईंधन और तेल युद्ध के हित ही सुधार एजंडा के बुनियादी तत्व

एस्सार ऑयल और रिलायंस इंडस्ट्रीज को 667 करोड़ रुपये का अनुचित लाभ

पलाश विश्वास

बाजार के लिए जैसे वैश्विक इशारे पर निर्भर है सांढ़ संस्कृति,उसी तरह अर्थव्यवस्था भी विश्वबाजार का उपनिवेश है।सुधारों के लिए रिमोट नियंत्रण का कोड समजझने कातिर इन वैश्विक इसारों की समझ अनिवार्य है।भारतीय अर्थव्यवस्था का बुनियादी आधार अब उत्पादन प्रणाली नहीं है,वह मुक्त बाजार है और इसमें भी  विनियंत्रित विनियमित ईंधन और तेल युद्ध के हित ही सुधार एजंडा के बुनियादी तत्व।तेल गैस  कीमतों पर कैग रपट से भारत के मध्य पनप रहे अमेरिकी भूगोल बेनकाब है।ईंधन की कीमतें विनियमित विनियंत्रित कर देने के तंत्र के मध्य मूल्यवृद्धि, मुद्रास्फीति और विकास दर, वित्तीयघाटा के आंकड़ों की नये सिरे से पड़ताल जरुरी है।


पहले बाजार के ये आंकड़ेः


वित्त वर्ष 2015 की पहली तिमाही में रिलायंस इंडस्ट्रीज का मुनाफा 0.5 फीसदी बढ़कर 5379 करोड़ रुपये हो सकता है। वित्त वर्ष 2014 की पहली तिमाही में रिलायंस इंडस्ट्रीज का मुनाफा 5352 करोड़ रुपये रहा था।


वित्त वर्ष 2015 की पहली तिमाही में रिलायंस इंडस्ट्रीज की बिक्री 13.5 फीसदी बढ़कर 99448 करोड़ रुपये हो सकती है। वित्त वर्ष 2014 की पहली तिमाही में रिलायंस इंडस्ट्रीज की बिक्री 87645 करोड़ रुपये रही थी।


वित्त वर्ष 2015 की पहली तिमाही में रिलायंस इंडस्ट्रीज का एबिटडा 7,95 फीसदी हो सकता है। वित्त वर्ष 2014 की पहली तिमाही में रिलायंस इंडस्ट्रीज का एबिटडा 8.07 फीसदी रहा था।


वित्त वर्ष 2015 की पहली तिमाही में रिलायंस इंडस्ट्रीज के जीआरएम 8.5 डॉलर प्रति बैरल रहने का अनुमान है। वित्त वर्ष 2014 की पहली तिमाही में रिलायंस इंडस्ट्रीज के जीआरएम 8.4 डॉलर प्रति बैरल रहे थे। वहीं वित्त वर्ष 2014 की चौथी तिमाही में रिलायंस इंडस्ट्रीज के जीआरएम 9.3 डॉलर प्रति बैरल रहे थे।


वित्त वर्ष 2015 की पहली तिमाही में रिलायंस इंफ्रा का मुनाफा 10.2 फीसदी बढ़कर 457.6 करोड़ रुपये हो गया है। वित्त वर्ष 2014 की पहली तिमाही में रिलायंस इंफ्रा का मुनाफा 415.2 करोड़ रुपये रहा था।


हालांकि वित्त वर्ष 2015 की पहली तिमाही में रिलायंस इंफ्रा की आय 23.9 फीसदी घटकर 4,151 करोड़ रुपये रही। वित्त वर्ष 2014 की पहली तिमाही में रिलायंस इंफ्रा की आय 5,452 करोड़ रुपये रही थी।


रिलायंस इंफ्रा का कहना है कि पहली तिमाही में एमईआरसी की ओर से मंजूर 745 करोड़ रुपये का बकाया हासिल हुआ है।




फिर कैग रपटःनियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग)ने ईंधन खरीद नीति पर सरकार को फटकार लगाते हुए कहा है कि उसकी इस नीति से एस्सार ऑयल और रिलायंस इंडस्ट्रीज को 667 करोड़ रुपये का अनुचित लाभ पहुंचा है। कैग ने सरकार को निजी रिफाइनिंग कंपनियों से डीजल खरीद मूल्य पर नए सिरे से बातचीत करने की जरूरत बताई है।


गौरतलब है कि सत्ता संभालने के तुरंत बाद अंबानी का कर्जा उतारने की कवायद में जुट गयी कारपोरेट केसरिया सरकार।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 23 जून रविवार को पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के साथ बैठक की जिसमें वित्त मंत्री अरुण जेटली भी शामिल थे।


समझा जाता है कि गैस कीमतों की वृद्धि के बारे में कोई स्वीकार्य फार्मूला निकालने को लेकर इसमें चर्चा हुई। तीन दिनों में इस तरह की यह दूसरी बैठक थी। इससे पहले शुक्रवार को ऊर्जा क्षेत्र पर करीब पांच घंटे की मैराथन चर्चा हुई थी। इसके बाद मोदी ने प्रधान को रविवार को एक और बैठक के लिए बुलाया था जिसमें वित्त मंत्री अरुण जटेली भी शामिल थे।


जाहिर है कि यह कवायद जारी है।


इसी के मध्यआज इकनामिक टाइम्स की रपट में लिखा हैः


UNDER LENS National auditor says people paid for imaginary charges while some private firms got undue benefit

The national auditor CAG has observed that state oil firms have overcharged customers and collected additional ` . 26,626 crore in five years by making people pay for imaginary charges such as customs duty on domestic sales, while they gave "undue benefit" to Essar Oil and Reliance Industries by buying their fuel at high rates.

The report is on the pricing mechanism followed by IndianOil, HPCL and BPCL in case of three products -petrol, diesel and LPG.


अब खबर आ गयी है कि सरकारी पेट्रोलियम कंपनियां निजी रिफाइनिंग कंपनियों से डीजल की खरीदारी करती  हैं क्योंकि उनका अपना उत्पादन घरेलू मांग को पूरा नहीं कर पाता। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां व्यापार समान दाम पर डीजल खरीदती हैं जिसमें आयात और निर्यात मूल्य का 80:20 का अनुपात लिया जाता है। कैग ने संसद में शुक्रवार को पेश अपनी रिपोर्ट में कहा है कि निजी रिफाइनिंग कंपनियां अपने बचे पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात करतीं हैं। यह निर्यात जिस दाम पर किया जाता है वह व्यापार समान मूल्य (टीपीपी) और आयात समान मूल्य (आईपीपी) के मुकाबले कम रहता है। निजी कंपनियों से टीपीपी आधार पर डीजल की खरीदारी से इन कंपनियों को अनुचित लाभ पहुंचता है। वर्ष 2011-12 में यह लाभ 667 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है। कैग ने कहा है कि इसी मानदंड के तहत मैंगलूर रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड से भी खरीदारी की जाती है।


सार्वजनिक क्षेत्र की इस रिफाइनरी को 2011-12 में 1,428 करोड़ रुपये का लाभ पहुंचा है। कैग ने अनुचित लाभ के दावे को स्पष्ट करते हुए कहा है कि 2011-12 में जामनगर में स्थित निजी रिफाइनिंग कंपनियों की व्यापार समान मूल्य यानी टीपीपी 40,031 रुपये प्रति एक हजार लीटर रहा जबकि इसी स्थान पर औसत निर्यात समान मूल्य 38,625 रुपये प्रति हजार लीटर रहा। कैग ने कहा कि रिलायंस और एमआरपीएल के मामले में भी दाम में इसी तरह का फर्क रहा है।




भारतीयकृषि समाज की नब्ज हमारे परम आदरणीय मित्र हिंदू के पूर्व रुरल एडीटर पी साई नाथ से ज्यादा कोई समझते हैं, हमें इसकी जानकारी नहीं है।आउटलूक में अपने ताजा आलेख में उन्होंने लिखा हैः


The TV anchor asked eagerly of Arun Jaitley whether he would take hard decisions or, in the case of a bad drought, revert to loan waivers and (obviously wasteful) subsidies. The finance minister replied that it depended on the situation as it unfolded but he hoped he wouldn't have to return to such steps. "We hope so too," said the anchor fervently. Which was cute, coming from someone pushing a wish list of the corporate world as hard-hitting journalism. A corporate world which has on average received Rs 7 crore every hour (or Rs 168 crore every day) in write-offs on just direct corporate income tax alone. And that for nine years running. (Longer, but we only have data for those nine years.)


And that's if we look only at corporate income tax. Cast your gaze across write-offs on customs and excise duties and the amount quadruples. The provisional figure written off for the corporate needy and the and the belly-aching better off is Rs 5,72,923 crore. Or Rs 5.32 lakh-crore if you leave out something like personal income tax, which covers a relatively wider group of people.

साईनाथ का आलेख पढ़ लें तो अरुण जेयली के मुखारविंद पर खिलते कमल का असली चाहरा खुलेगा।


वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आज बजट पर बहस के बाद लोकसभा में अपना जवाब दिया। वित्त मंत्री ने कहा कि पिछले 3-4 साल से देश की इकोनॉमी को लेकर निराशा है और अस्थिर नीतियों के चलते निवेशकों का भरोसा घट गया है। यूपीए कार्यकाल पर भी वित्त मंत्री ने निशाना साधा और कहा कि किसी भी सरकार में प्रधानमंत्री की ही चलनी चाहिए।


वित्त मंत्री ने एक बार फिर से दोहराया कि पिछली तारीख से टैक्स के चलते बिजनेस का माहौल खराब हुआ है। साथ ही उन्होंने जोर दिया कि सब्सिडी सिर्फ जरूरतमंदों को ही मिलनी चाहिए। वित्त मंत्री ने बताया कि महंगाई काबू में करने के लिए बजट के बाहर कदम उठाए जाएंगे। साथ ही उन्होंने ये भी भरोसा दिलाया कि जीएसटी के लिए माहौल बनाने की कोशिश हो रही है।


वित्त मंत्री ने रक्षा उपकरण देश में बनाने पर भी जोर दिया। इसके अलावा इकोनॉमी की मजबूती के लिए पावर और रियल एस्टेट सेक्टर पर फोकस बढ़ाने के भी संकेत दिए। आयकर छूट का दायरा बढ़ाने के मसले पर उन्होंने कहा कि इसके लिए सरकार के पास और पैसा नहीं था।


वित्तमंत्री ने डिफेंस और इंश्योरेंस में एफडीआई को भी सही ठहराया। उन्होंने बताया कि दोनों सेक्टरों में 49 फीसदी एफडीआई और भारतीय नियंत्रण अच्छा होने से सभी तरह की आशंकाएं खत्म हो पाएंगी।


वित्तमंत्री ने बजट पर जवाब देते हुए कांग्रेस पर भी चुटकी ली। उन्होंने कहा कियूपीए सरकार के पूर्व मंत्री कहते हैं कि ये उनके बजट की कॉपी है अगर ऐसा है तो इसका इतना विरोध क्यों।



कुल मिलाकर कारपोरेटजगतको तमाम प्रत्क्ष कर छूट के अलावा राजस्व छूट के मद में सालाना औसतन पांच छह सात लाख तक का जो छोड़ दिया जाता है,मुद्रास्फीति,मूल्यवृद्दि,विकास दर और वित्तायगाटे में उसका उल्लेख भी नहीं होता।इसी तरह प्रत्यक्ष विदेशी  निवेश और विनिवेश के आधार पर रेटिंग दी जाती है और इसे ही सुधार कहा जाता है।


यह मुकम्मल जायनी युद्धक मानवता विरोधी विश्व व्यवस्था का तैल चित्र है।

चार्ल डिकेंस ने टेल आफ टू सिटीज में फ्रांसीसी क्रांति परिदृश्य में जमान पर बह निकली खून की नदियों को साहित्य में चित्रार्पित किया है और आज अगर वैश्विक कुरुक्षेत्र का फिल्मांकन करना हो तो तेल की धार का पीछा करना जरुरी होगा।


गौरतलब है कि अटल शौरी जमाने में जीपी गोयंका,चंद्रशेखर और नुस्ली वाडिया की जिस डिसइनवेस्टमेंट काउंसिल की रपट मुक्तबाजारी विनिवेश विदेशी प्रत्यक्ष निवेश और पीपीपी माडल की भागवत गीता है,उसने अपनी रपट में वित्तीय घाटे के संदर्भ में ईंधन प्रबंधन और प्रतिरक्षा व्यय आंतरिक सुरक्षा व्यय की भूले से चर्चा नहीं की है।टैक्स पेयर्स की जेबों से निकाली गयी रकम का ज्यादातर हिस्सा इन्हीं दो मदों में खर्च होता है। ध्वस्त कर दी गयी उत्पादन प्रणाली का ठीकरा निजी घरानों ने सार्वजनिक उपक्रमों पर फोड़ा और यही विनिवेशतंत्र और निरंकुश विदेशी पूंजी की तेल की धार का प्रस्थानबिंदू है।


बजट भारत सरकार की आर्थिक दिशा दशा बताने वाला संसदीय उत्तरदायित्व नहीं है।

बजट सिर्फ एक रस्मअदायगी है।नवउदारवादी तैईस साल के कालखंड में अ्पमती सरकारों के जनसंहारी बंदोबस्त गैर संसदीय गैर लोकतांत्रिक और गैर संवैधानिक रहे हैं तो गुजरात माडल के नयेबहुमती बंदोबस्त का भूगोल इतिहास बदले नहीं है।जनसंहार का वह सनातन सौंदर्यशास्त्र है।


वित्तमंत्री तमाम मंत्रालयों के मुखपात्र बने हुए हैं संसद में और तमाम मुद्दों को कारपोरेट वकील की तरह संबोधित कर रहे हैं जैसा कि सुधार कार्यक्रम अधूरा छोड़ देने के अमेरिका के अपराधी चिदंबरम भी करते रहे हैं। जेटली बड़े गर्व के साथ अपनी सरकार को बिजनेस फ्रेंडली बता रहे हैं और प्रो पूअर भी।हरित क्रांति का फंडा भी प्रोपूअर कारपोरेट उत्तदायित्व का एनजीओ फंडा जैसा ही रहा है जो बाद में सामाजिक योजनाोओं की आड़ में रियल्टी का कारोबार बन गया है।


गाजा पट्टी पर इजराइली हमला तेज होने के मध्य,भारत सरकार की राजनयिक नपुंसकता के मध्य चीन के खिलाफ मीडिया का छायायुद्ध जारी है लेकिन इजराइल और अमेरिकी हितों पर मीडिया में सन्नाटा है,उसे समझना बेहद जरुरी है।यह विशुद्ध आर्थिक मामला है,राजनयया विदेशनीति का मामला होकर भी नहीं है।


फिर रपट आयी है ब्रिक्स शिखर वार्ता और ब्रिक्स बैंक की खबरों के मध्य कि भारतीय भूमि को ललचाई नजरों से देखने वाला चीन, अभी भी अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आ रहा है।


इसी ब्रिक्स उपाख्यान में चीन,ऱूस,ब्राजील,भारत और दक्षिण अफ्रीका के साथ लातिन अमेरिकी देशों का जो नया समीकरण विश्व बैंक अंतरराष्ट्रीयमुद्रा कोष विश्वव्यापार संघ और संयुक्त राष्ट्र के समांतर  बन रहा है,उसीके मध्य पुतिन को युद्ध अपराधी बनाने के उपक्रम और भारत चीन छायायुद्ध का परिवेश संदिग्ध है तो गाजा संकट पर खामोशी बरतने वाले मोदी से तीसरी दुनिया के देशों को साथ लेकर चलने की कैसे उम्मीद की जाये,यहभी विचारणीय है।


गौर करें कि मलेशियाई विमान एमएच-17 में सवार 283 मुसाफिरों की मौत का जिम्मेदार कौन है इस बात का अभी भी पता नहीं चल पाया है। अब 2 दिन बाद भी ये सवाल कायम है कि आखिर प्लेन पर मिसाइल हमला किया तो किसने कया। इस पूरे मामले की स्वतंत्र जांच के लिए यूक्रेन में रूस समर्थक विद्रोहियों ने अंतरराष्ट्रीय जांचकर्ताओं को घटनास्थल पर जाने की इजाजत तो दी थी, लेकिन जब ये दल वहां पहुंचा तो उन्हें कुछ बंदूकधारियों ने रोक दिया। जांच दल का आरोप है कि 75 मिनट की जांच के बाद उन्हें रोका गया।


वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा है कि जिस इलाके से मिसाइल दागी गई वो इलाका रूस के नियंत्रण में है। ओबामा का कहना है कि ये मानना कठिन है कि विद्रोहियों के जिस इलाके से मिसाइल दागी गई वो रूस की सहायता के बिना संभव हो। ओबामा ने साफ कहा कि उस इलाके में हिंसा को रूस का समर्थन प्राप्त है।


वहीं मिसाइल से मार गिराए गए मलेशियाई विमान के मलबे से अबतक 180 शव बरामद किए जा चुके हैं। इस हादसे में 173 डच और 44 मलेशियाई नागरिकों समेत 298 लोगों की जान गई है। इस हादसे में 80 बच्चों समेत कई बड़े वैज्ञानिकों की भी मौत हुई है। ये वैज्ञानिक मेलबर्न के एड्स कॉन्फ्रेंस में शामिल होने जा रहे थे। इस हादसे से एड्स रिसर्च को बड़ा झटका लगा है। संयुक्त राष्ट्र ने इस दर्दनाक हादसे के स्वतंत्र जांच की बात कही है। इधर रुस ने हादसे के लिए यूक्रेन सरकार को जिम्मेदार ठहराया है।



खास बात तो यह है कि सद्दाम हुसैन भी अमेरिका को उतने ही प्रिय थे जितने कि ओसामा बिन लादेन।अफगानिस्तान को सोवियत दखल मुक्त करके ही तालिबान के जरिये तेलयुद्ध की बुनियाद रखी गयी थी और उसी तेल कारोबार का माध्यम डालर के बदले यूरो बनाने की पेशकश के साथ ही सद्दाम भस्मासुर बन गये।


इराक युद्ध खत्म होते न होते नाइन एलेवेन के बहाने अमेरिका का आंतकविरोधी युद्ध शुरु हो गया।


सोवियत संघ के विखंडन से पहले ही तेल युद्ध के मार्फत भारत अमेरिका से नत्थी हो गया जिसका चरमत्कर्ष भारत अमेरिका परमाणु संधि तेलयुद्ध के मानवता विरोधी युद्धअपराधी अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश के नेतृत्व में संपन्ना हुआ और उन्हीं की अगुवाई में अमेरिका के आतंकविरोधी युद्ध में पार्टनर बन गया भारत इजराइल के साथ।


अपने बेड पार्टनर के खिलाफ बोलने की प्रथा जाहिर है,दुनियाभर में कहीं नहीं है।इसलिए गाजा पर भारतीयसत्तावर्ग का अखंड मौन समझा जा सकता है।


लेकिन एक बडा पेंच यह भी है कि यूरोपीय संगठन और डालर को यूरो की चुनौती के परिप्रेक्ष्य में भारत के साथ साझेदारी अमेरिका की राजनयिक मजबूरी भी है,जो तेलयुद्ध में उसके हितों के लिए और एशिया को मुक्त बाजार में तब्दील करने के उसके आत्मरक्षा के डालर एजंडे के लिए अनिवार्य भी है।


नाइन एलेवेन और मलेशियाी विमानों के रहस्य में कई न कोई तार अवश्य है। अभी सबूत मिले नहीं है कि रूस ने ही यह महमला कराया है लेकिन रूस को युद्ध अपराधी बनाया जा रहा है और अमेरिकी कठपुतली यूक्रेन को संदेह के दायरे से बाहर रखा जा रहा है जो आपराधिक वारदातों के तहकीकात के वसूलों के खिलाफ है कि शक के दायरे से बाहर कोई नहीं होता।


अब मीडिया का यह तर्क कि 1962 के युद्ध ने इस बात को साबित भी किया है कि चीन भारतीय भूमि पर कब्जा जमाना चाहता हैऔर इसीतर्क के तहत निष्कर्ष कि  अपनी इस मंशा को पूरा करने के लिए वह भारत के अरुणाचल प्रदेश अपना हिस्सा बताने से भी बाज नहीं आता है।जीहिर है कि  चीन ने एक बार फिर अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा बताने की हिमाकत की है। चीनी सरकार ने अपनी सेना को लाखों ऐसे नक्शे बांटे हैं जिसमें अरुणाचल को चीन का हिस्सा दिखाया गया है।


हकीकत चाहे जो हो ऱूस और चीन को  एकमुश्त अपराधी बतौर पेश करके ब्रिक्स की चुनौती खत्म करने का कार्यक्रम है यह,इसे भी समझना जरुरी है।


एक जानकारी सरकार के रियल्टी कंपनियों में तब्दील हो जाने के बारे मेंः


मानसून खत्म होते ही राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और पंजाब में बड़े पैमाने पर कंस्ट्रक्शन की गतिविधियां जोर पकड़ने वाली हैं। इन चारों राज्यों ने हाल ही में पेश अपने बजट में ग्रोथ के मॉडल को बदल दिया है। इन चारों राज्यों के बजट सड़क, नए शहर और शहरी यातायात पर निवेश करने जा रहे हैं। इन सभी राज्यों के बजट की गहरी पड़ताल बताती है कि आने वाले समय में राज्यों का बड़ा बजट सड़कों के निर्माण पर खर्च होगा। राजस्थान, मध्यप्रदेश और पंजाब सड़कों के निर्माण पर लगभग 20 हजार करोड़ रुपए खर्च करेंगे, जबकि राजस्थान, पंजाब और मध्यप्रदेश की सरकारें नए शहरों पर भी फोकस करेंगी। इन राज्यों में इस बजट के कारण मानसून खत्म होते ही बड़े पैमाना पर कंस्ट्रक्शन का काम शुरू होगा, जो स्टील और सीमेंंट की मांग को नई ऊंचाई दे सकता है और प्राॉपर्टी बाजार में सक्रियता बढ़ा सकता है।


रिलायंस से तेल के कुएं वापस ले सरकार : आप

Monday, 23 June 2014

नई दिल्ली। गैस के दाम बढ़ाने के फॉर्मूले पर सरकारी जद्दोजहद के बीच आम आदमी पार्टी ने गैस उत्पादक कंपनी रिलायंस इंस्ट्रीज लिमिटेड (आरआइएल) के काम-काज पर भारत के महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट जारी कर संसद में पेश करने की मांग की है। कैग की रिपोर्ट में रिलायंस पर कई अनियमितताएं बरतने का आरोप है। रविवार को प्रेस कांफ्रेंस में आप नेता प्रशांत भूषण और सुप्रीम कोर्ट के वकील कोलिन गोंजाल्विस ने इस रिपोर्ट के तथ्य लीक करते हुए कहा कि रिलायंस की खुली लूट के लिए उससे कुएं वापस लेने के बजाए सरकार गैस के दाम बढ़ाने पर विचार कर रही है। सरकार को कंपनी से गैस निकालने का काम वापस ले लेना चाहिए। वहीं, कंपनी ने आप के आरोपों को बेबुनियाद बताया है।

प्रशांत ने कहा कि कैग ने रिपोर्ट के शुरू में ही कहा है कि रिलायंस ने लेखा जांच में आनाकानी का रवैया रखा। जरूरी तथ्य छिपाने की कोशिश कर गलत जानकारी दी। सरकार के साथ कंपनी के हुए करार के मुताबिक कंपनी की लेखा जांच होनी चाहिए। कैग ने छह अहम बिंदुओं पर अनियमितता बरतने का आरोप लगाया है। इसके मुताबिक, रिलायंस ने न केवल पेट्रोलियम पदार्थों व प्राकृतिक गैस की खुली लूट मचाई है बल्कि इसके बारे में देश को धोखे में रखा है। अपने भंडार को बढ़ा-चढ़ा कर बताया और उत्पादन कम किया। पहले रिलायंस ने गैस भंडारण क्षेत्र अधिक बता कर इसे निकालने के नाम पर भारी खर्चा दिखाया। बाद में उसका क्षेत्र कम बता कर अधिक उत्पादन से बचने की कोशिश की। पहले रिलायंस ने कहा कि गैस 14.16 टीसीएफ है और इस आधार पर दो बिलियन डालर से अधिक का खर्चा दिखाया। इसके बाद वह कहने लगी कि भंडार केवल 3.6 टीसीएफ ही है। उसने करार के मुताबिक, उत्पादन नहीं दिखाया। साथ ही कंपनी ने पेट्रोलियम के पूरे मुनाफे को सरकारी खजाने में नहीं पहुंचाया। इसी तरह कंपनी ने संयंत्र मशीनें मंगवाने में अनियमितता बरती। निविदा के नियमों क ी अनदेखी करके एक ही कंपनी को दस में से आठ ठेका दे दिया। अलग-अलग अनियमितताओं का जिक्र करते हुए प्रशांत भूषण ने मांग की कि इस रपट को संसद में पेश किया जाए और इस पर बहस कराई जाए।

दूसरी ओर, आरआइएल ने कहा कि आप राजनीतिक विलुप्तता का सामना कर रही है। इसलिए मसौदा को लेना और बिना दिमाग लगाए या उत्पादन साझेदारी के संदर्भ को देखे बिना उसे प्रसारित करना कोई अचरज नहीं है।

पिछली यूपीए सरकार के समय में रंगराजन समिति के सुझाए फार्मूले के आधार पर भारत में उत्पादित गैस की कीमत को प्रति इकाई (एमएमबीटीयू) 4.2 डालर से बढ़ाकर 8.4 डालर करने का फैसला किया गया था। तेल व गैस उत्पादकों का कहना है कि मौजूदा 4.2 डालर प्रति यूनिट की दर गहरे समुद्र में गैस के उत्खनन और निकासी के लिए पर्याप्त नहीं है। लेकिन दुविधा यह है कि खनिज गैस की कीमत बढ़ने से गैस आधारित बिजलीघरों, यूरिया कारखानों, सीएनजी व पाइप के जरिए घरों में जाने वाली रसोई गैस की लागत बढ़ जाएगी। इस समय मुद्रास्फीति के दबाव को देखते हुए नई सरकार को यह तय करना है कि वह इस मुद्दे पर क्या फैसला करे कि महंगाई का दबाव और न बढ़े। विशेषज्ञों के मुताबिक, गैस की दर में प्रति डालर की वृद्धि से यूरिया उत्पादन लागत प्रति टन 1,370 रुपए बढ़ जाएगी। इसी तरह बिजली की उत्पादन लागत पर प्रति यूनिट 45 पैसे का असर पड़ेगा और सीएनजी 2.81 रुपए किलो व पाइप वाली रसोई गैस 1.89 रुपए प्रति घन मीटर महंगी हो जाएगी।


नई सरकार रंगराजन फार्मूले में संशोधन या उसके क्रियान्वयन के तरीके में कुछ फेरबदल की संभावनाओं पर विचार कर रही है। इस फार्मूले में घरेलू गैस की कीमतों को अमेरिका और ब्रिटेन के गैस व्यापार केंद्रों में प्रचलित कीमत और जापान में आयातित गैस कीमत की औसत के आधार पर रखने का सुझाव दिया था। जिसे पिछली यूपीए सरकार ने पिछले साल दिसंबर में स्वीकार कर लिया था और उसे पहली अप्रैल से लागू किया जाना था। पिछली सरकार आम चुनावों की अधिसूचना के बीच इस फैसले को लागू नहीं कर सकी थी।


OPINION

How Much Can We Forgo To India Inc?

To the social subsidy whiners, please check corporate write-offs column

P. SAINATH

http://www.outlookindia.com/article/How-Much-Can-We-Forgo-To-India-Inc/291424


The TV anchor asked eagerly of Arun Jaitley whether he would take hard decisions or, in the case of a bad drought, revert to loan waivers and (obviously wasteful) subsidies. The finance minister replied that it depended on the situation as it unfolded but he hoped he wouldn't have to return to such steps. "We hope so too," said the anchor fervently. Which was cute, coming from someone pushing a wish list of the corporate world as hard-hitting journalism. A corporate world which has on average received Rs 7 crore every hour (or Rs 168 crore every day) in write-offs on just direct corporate income tax alone. And that for nine years running. (Longer, but we only have data for those nine years.)

And that's if we look only at corporate income tax. Cast your gaze across write-offs on customs and excise duties and the amount quadruples. The provisional figure written off for the corporate needy and the and the belly-aching better off is Rs 5,72,923 crore. Or Rs 5.32 lakh-crore if you leave out something like personal income tax, which covers a relatively wider group of people.

It's close to three times the amount said to have been lost in the 2G scam.  About four times what the oil marketing companies claim to have lost in so-called "under-recoveries" in 2012-13. Almost five times what this year's budget earmarks for the public distribution system. And over 15 times what's been allocated for the MNREGS. It's the biggest giveaway, an unending free lunch that's renewed every year. Gee, it's legal, too. It is government policy. It's in the Union Budget. And it is the largest conceivable transfer of wealth and resources to the wealthy and the corporate world that the media almost never look at.

It's tucked away at the very rear of the budget document. A seemingly innocuous annexure. It's title, though, is disarmingly honest. 'Statement of Revenue Foregone.' (see:http://indiabudget.nic.in/ub2014-15/statrevfor/annex12.pdf) There are those who point out that this should more correctly read 'forgone' and not 'foregone'. The former actually des­cribes the process of relinquishing or abstaining from something. In this case, from collecting taxes that are legitimately due. The  budget document says 'revenue foregone'. However, the write-offs are anything but semantic.

So it totalled Rs 5.32 lakh-crore in 2013-14. But budgets only started carrying that annexure a few years ago, and we only have the data from 2005-06 to 2013-14. In those nine years, the corporate karza maafi amounted to Rs 36.5 lakh-crore. That, in case you like the sound of the word, is Rs 36.5 trillion. (Okay, so for the record, these were all NDA years. But let's see next year if the NDA proves even slightly different).




the provisional figure written off for the corporate needy and belly-aching better-offs is Rs 5,72,923 crore.




For those stricken by number-crunchitis: that works out, on average, to Rs 1,110 crore every day—for nine years. That's one hell of a free lunch. Sure, there are elements that benefit wider groups. Like personal income tax concessions (which is why they're excluded from the calculations here across those nine years). But do look at some of the big items.

In more than one year since 2005-06, the item hogging the biggest write-offs in customs duty was 'gold, diamonds & jewellery'. Not quite the province of the aam aadmi or aam aurat. In 2013-14, the amount was Rs 48,635 crore. That was more than the amount written-off on machinery. Greater than what was written off on vegetables, fru­­its, cereals and vegetable oils. In  36 months between 2011-14, duty write-offs on gold, dia­­m­onds and jewellery totalled Rs 1.67 lakh crore.

Yet, the concern is over a one-time loan waiver to  millions and millions of farmers (which never touched the most needy of them). Or 'food subsidy' worth less than ten rupees a day per person below the poverty line in the hungriest nation on earth. Not over giveaways to the corporate world and the better off that cross 1,100 crore a day on average in nine years. There is hand-wringing over a rural employment guarantee programme that, at its very best, cannot  give Rs 15,000 in an entire year to a family of five. Not over corporate karza maafi that works out across those nine years to Rs 1.28 lakh per second.

We could have used that Rs 36.5 trillion a bit differently. You see, with that sum, you could:

  • Fund the Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Scheme for some 105 years, at present levels. That is a hell of a lot more than any agricultural labourer would expect to live. You could, in fact, run the MNREGS on that sum, across the working lives of two generations of such labourers. Current allocation for the scheme is around Rs 34,000 crore.

  • Fund PDS for 31 years (current allocation Rs 1,15,000 crore).

By the way, if these revenues had been realised, around 30 per cent of their value would have devolved to the states. So their fiscal health is affected by the Centre's massive corporatekarza maafi. Even just the amount foregone in 2013-14 can fund the rural jobs scheme for three decades. Or the PDS for four-and-a-half years.

Here's a media full of market televangelists who preach every night about the need to trim subsidies. Why not start with those above? Well, because so many media outlets are part of corporations locked in the feeding frenzy at the subsidy trough. But to return briefly to the semantics of loot and grab (versus crumbs off the table). Give the poor and hungry assistance worth less than Rs 10 a day to help them have just a tad more food—that's a subsidy. Give trillions of rupees to the rich—that's an 'incentive' or at best a 'deduction'. Even the otherwise frank 'Statement of Revenue Foregone' titles many giveaways as  'incentive/deduction' or, at best 'concessions'.

It's not as if governments or officialdom are unaware of how regressive all this is. The 2009-10 budget said in so many words: "The amount of revenue foregone continues to inc­r­e­ase year after year. As a percentage of aggregate tax collection, revenue foregone remains high and shows an increasing trend as far as corporate income tax is considered for the fin­ancial year 2008-09. In case of indirect taxes, the trend shows a significant increase for the financial years 2009-10 due to a reduction in customs and excise duties. Therefore, to reverse this trend, an expansion in tax base is called for."

I wrote about this at the time. And the language and tone changed from the next year. No more calls for reversal. I won­der why? Yet, the budget still notes a rising trend in plu­tocrat plunder. Even this year, it notes: "The total revenue foregone from central taxes is showing an upward trend." Now remember, the same class of 'subsidy ben­eficiaries' loot public sector banks of countless thousands of crores. By the time this piece is out, the All-India Bank Employees Ass­o­ciation will have revealed the names of wan­ton defaulters who currently owe the banks tens of tho­u­sands of crores. These are names governments have ref­used to reveal even to Parliament on the plea of the RBI Act and banking secrecy.

Who says industry has been doing badly?  The amounts recorded as written-off in the Statement of Revenue Foregone for 2013-14 are 132 per cent higher than they were in 2005-06. (Even with the budget document gently, sometimes silently, clucking its tongue at the trend). Corporate karza maafi is a growth industry. And an efficient one.


(Magsaysay Award-winner Palagummi Sainath is the country's foremost chronicler of the travails of farmers. A shorter version of this piece appeared on his blog, www.psainath.org)


मोदी सरकार के PPP एयरपोर्ट पर लगे दांव पर भारी पड़ सकती है कैग की रि‍पोर्ट

POLICY TEAM|Jul 19, 2014, 13:49PM IST

http://money.bhaskar.com/article/NR-PAP-cag-report-shows-how-gvk-made-fliers-foot-their-airport-bills-4685399-NOR.html?google_editors_picks=true

नई दि‍ल्‍ली। मोदी सरकार ने सार्वजनि‍क नि‍जी भागीदारी (पीपीपी) के जरि‍ए देश भर एयरपोर्ट बनाने का बड़ा दांव खेला है। लेकि‍न सरकार के इस दांव पर ऑडिटर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रि‍पोर्ट भारी पड़ सकती है। कैग ने मुंबई हवाई अड्डे की परिचालक मायल के प्रदर्शन की समीक्षा करने व इसके वित्तीय कामकाज की निरंतर आधार पर निगरानी को कहा है। कैग ने कहा है कि परियोजना की लागत दोगुनी हो गई है और इस अंतर को यात्रियों से विकास शुल्क वसूलकर पूरा किया जा रहा है। इसी तरह की परेशानी दि‍ल्‍ली और हैदराबाद के एयरपोर्ट साथ देखी गई है। ऐसे में एक बार फि‍र देश में सार्वजनि‍क नि‍जी भागीदारी (पीपीपी) पर सवाल खड़े हो गए हैं।


कैग का आरोप

  • कैग ने मुंबई हवाईअड्डा के लिए पीपीपी मॉडल की यह कहते हुए आलोचना की है कि जोखिम को उचित ढंग से निजी पक्ष को हस्तांतरित नहीं किया।

  • इससे परियोजना की लागत दोगुनी हो गई और इसके अंतर की भरपाई विकास शुल्क के जरिए यात्रियों से की जा रही है।

  • कैग ने कहा है कि परियोजना के वित्तपोषण के लिए संसाधन जुटाने का कोई प्रयास नहीं किया गया।

  • इसमें यह भी कहा गया है कि मायल में निजी क्षेत्र की ढांचागत कंपनी जीवीके की भागीदार सार्वजनिक क्षेत्र के भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (एएआई) का राजस्व हिस्सा घटेगा, क्योंकि कई गतिविधियों की आउटसोर्सिंग की जा रही है।

  • 2006 से 2013 के दौरान एएआई को मायल से सकल राजस्व हिस्से के रूप में 2,857 करोड़ रुपए मिले हैं। कैग ने कहा है कि वहीं दूसरी ओर निजी भागीदारी को इस दौरान 888 करोड़ रुपए के निवेश पर सकल रूप से 4,526 करोड़ रुपए का राजस्व मिला है।

  • परियोजना की लागत 5,826 करोड़ रुपए के दोगुने से भी अधिक बढ़कर 12,380 करोड रुपए पहुंच गई।

निजी कंपनी को नहीं हुआ कोई नुकसान

अनुबंध हासिल करने वाली कंपनी के सामने कोई वित्तीय खतरा उत्पन्न नहीं हुआ क्योंकि पैसे की कमी यात्रियों पर विकास शुल्क बढ़ा कर पूरी कर ली जा रही है जबकि इस परियोजना के परिचालन, प्रबंध एवं विकास समझौते में इसका प्रावधान नहीं था।

पीपीपी की वजह से एयरलाइंस की लागत बड़ी

  • नि‍जी कंपनि‍यों द्वारा बनाए गए एयरपोर्ट्स पर शुल्‍क बढ़ता जा रहा है जो एयरलाइंस के लि‍ए चिंता का सबब बन गई है।

  • कुछ घरेलू एयरलाइंस के औसत टि‍कट कि‍राए में टैक्‍स और फीस की हि‍स्‍सेदारी 17 फीसदी तक रहती है।

  • इसके अलावा, एयरपोर्ट शुल्‍कों से संबंधि‍त चार्ज की हि‍स्‍सेदारी 10 से 12 फीसदी रहती है।

इन एयरपोर्ट्स का क्‍या होगा

  • सि‍डनी स्‍थि‍त है एक एवि‍एशन कंसलटेंसी कंपनी सीएपीए ने अपनी रि‍पोर्ट में कहा गया है कि‍ पहले चार पीपीपी एयरपोर्ट की सफलता के बावजूद कुछ परेशानि‍यों पर नजर डालना जरूरी है। इसमें इकोनॉमि‍क रेगुलेशन, जमीन अधि‍ग्रहण और प्रोजेक्‍ट लागत का प्रबंधन शामि‍ल है।

  • एएआई ने पीपीपी के जरि‍ए चैन्‍न्‍ई, कोलकाता, अहमदाबाद, गुवहाटी, जयपुर और लखनऊ एयरपोर्ट के नि‍र्माण का ठेका दि‍या है।

  • इसके अलावा, नौ अन्‍य एयरपोर्ट का नि‍र्माण कि‍या जाना है।



Jul 19 2014 : The Economic Times (Kolkata)

Govt Gets Ready With Reforms, May Bring Many Bills to House

VIKAS DHOOT

NEW DELHI





With finance minister Arun Jaitley stressing on Friday that things will be done outside the Budget to revive the economy, it is likely to be a winter of reforms this year.

The NDA government is drawing up changes to several laws in critical sectors such as mining, labour, transport and possibly even the contentious land acquisition regime recently put in place by the UPA that has become the biggest plaint deterring new investments and infrastructure development projects.

In line with prime minister Narendra Modi's call to purge all outdated laws that are holding back the country's development, line ministries have initiated consultations and deliberations on such laws in their domains with an eye on introducing them in the Parliament's winter session. "In the current session, our priority is to discuss and get the Budget passed and we could bring a few other Bills for Parliament's nod following that," said parliamentary affairs minister Prakash Javadekar.

The government hopes to amend the Prevention of Corruption Act and the Insurance Act in this session that ends on August 12. Another bill to grant national importance status to the Film and Television Institute in Pune has also been proposed and is likely to be taken up by the Modi Cabi

net soon, Javadekar said.

"We have begun discussions on changing all the nine transport-related laws in the country that have become very outdated. I intend to fast-track these deliberations and introduce the bills in Parliament's winter session," said road transport, rural development and shipping minister Nitin Gadkari.

The transport sector laws, such as Motor Vehicles Act of 1988, are being revisited and will be put on par with international best practices. The 1988 law, for instance, would include a provision that allows monitoring traffic violations by e-governance systems. "If you break a traffic light, whoever you may be, you will be sent a challan on your mobile phone within three hours of the incident through an automated system. If you choose to contest the case in court, the fine levied on you could be three times more," Javadekar said.

On the land acquisition law, he said: "I can't say much… we don't want to change the law. But all state governments, including UPA ministers, have told us it has problems. We are trying to take everyone's views and would firm up the government's position." The labour ministry has put up draft laws to replace the Factories Act of 1947, the Apprenticeship Act of 1961 and the Contract Labour Act of 1971, for which stakeholder comments have come in.



Jul 19 2014 : The Economic Times (Mumbai)

CAG Flays Fuel Pricing Policy, Says Customers Overcharged


NEW DELHI

OUR BUREAU





UNDER LENS National auditor says people paid for imaginary charges while some private firms got undue benefit

The national auditor CAG has observed that state oil firms have overcharged customers and collected additional ` . 26,626 crore in five years by making people pay for imaginary charges such as customs duty on domestic sales, while they gave "undue benefit" to Essar Oil and Reliance Industries by buying their fuel at high rates.

The report is on the pricing mechanism followed by IndianOil, HPCL and BPCL in case of three products -petrol, diesel and LPG.

The auditor questioned various components of the retail price and said inefficiency in marketing resulted in higher than necessary expenditure on several items, because of which consumers were forced to pay a higher price than necessary.

The Comptroller and Auditor General of India observed that the notional charges such as insurance, freight, wharfage and ocean loss amounted to ` . 50,513 crore in five years up to March 2012, but the actual cost that was paid on imported crude was only ` . 23,887 crore.

"This even after deduction of relevant expenses incurred in the import of crude oil during 2007-2012, OMCs ought to have benefited by . 26,626 crore," the CAG said. The no` tional charges are added for the entire quantum of fuel sold although more than 20% of the oil they refine is sourced domestically .

The CAG also said state firms were buying fuel from private refiners at a price equivalent to the landed price of the fuel if it was imported after paying freight charges, insurance and customs duty. If state firms do not make the purchase, the private refiners would export them at a lower rate called the export-parity price. The CAG observed that state firms had made no effort to negotiate and bring down the price.

CAG's report on the mechanism for oil pricing, tabled in parliament on Friday, said oil marketing companies (OMCs) should renegotiate prices with private refiners. The current prices paid by state firms "afford an undue benefit to private refiners (Reliance Industries and Essar Oil), which was estimated at . 667 crore on HDS (diesel) in only ` one year," it said.

Oil marketing companies also pay a similar price to stand-alone refineries, which do not have retail outlets.

The price is also used to calculate the "under-recovery" or revenue loss, which means that the contribution of upstream firms and government's subsidy to compensate the OMCs is also higher than what it should be.

CAG said standalone state-run refiners such as CPCL, NRL and MRPL gained by over ` . 1,400 crore per year because of the pricing system. The report said that the oil ministry sought to justify the pricing system on the ground that state firms needed the additional money to modernise, but the CAG had doubts. " OMCs would be expected to derive a price advantage. However, this advantage does not appear to have been translated adequately in terms of efficiency improvement in refining margins, optimization of costs of production and improvements of yields," it said.

The auditor brushed aside companies' justification that they made huge investments of ` . 38,800 crore in auto fuel upgradation and refinery modernization projects. "While it is acknowledged that OMCs have invested in auto fuel upgradation projects, it may be noted that a higher return is also guaranteed in the price structure for such upgradaded fuels which would address the need for investment in such projects to some extent," it said.

Jul 19 2014 : The Economic Times (Kolkata)

Govt to Clear GST Hurdles This Year


NEW DELHI

OUR BUREAU





FM SPEAK Goods and services tax to be introduced after consultation with states

Government will try to resolve issues hampering the roll out of the goods and services tax (GST) within this year, Finance Minister Arun Jaitley informed the Lok Sabha on Friday.

"The government targets to find a solution in the course of this year and approve the legislative scheme which enables the introduction of GST (Goods and Services Tax)," he said during Question Hour.

Jaitley said government is "willing to take a pragmatic view", but did not want a "token GST, but a substantial GST." The Economic Survey had suggested the government could start with a central GST. "There should be consensus" finance minister said adding that GST will be introduced after consulting

the states.

"Government has also assured states that it will compensate for any revenue loss incurred by them, from the date of introduction of GST, for a period of three years," he said.

"Time has come for pragmatic approach...one or two exceptions the government can consider" Jaitley said adding that GST would spur growth.

"GST is likely to bring about a fundamental change in the tax structure by redistributing the burden of taxation equitably between goods and services," Jaitley said.

loss incurred by them, from the date of introduction of GST, for a period of three years," he said.

"Time has come for pragmatic approach...one or two exceptions the government can consider" Jaitley said adding that GST would spur growth.

"GST is likely to bring about a fundamental change in the tax structure by redistributing the burden of taxation the burden of taxation equitably between goods and services," Jaitley said. However, finance minister cautioned that GST should include most indirect taxes. "If too many taxes are excluded, the objectives of GST will not succeed...It (GST) is a good cause that everybody fall in line," he noted. GST was to be originally rolled out from April 1, 2010 but has been delayed because of concerns of states.

"States' concerns with regard to the GST mainly relate to loss of revenue, fiscal autonomy, compensation, keeping certain items out of GST, subsuming of certain taxes in GST etc," Jaitley said.

He cited the case of Punjab and Gujarat. While the former was worried about purchase tax, the latter has expressed concerns over loss of manufacturing revenues. "Certain states may face problems in initial stages of implementation of goods and services tax...Those will be discussed," he said.




Jul 19 2014 : The Economic Times (Mumbai)

Jaitley Bats for Four Ministries

CL MANOJ

NEW DELHI





FIGHTING FIT FM answered all questions from members regarding four different ministries and then moves on to present the Delhi state budget

FOR all those skeptics who wondered at Arun Jaitley's fitness level during the presentation of Union budget a fortnight ago, the finance minister gave a reply by carrying the bat through Friday, earning a word of praise from Lok Sabha Speaker Sumitra Mahajan.

Sample this: From 11 AM to 12 noon during the Question Hour, he was the only minister who answered all questions from members regarding four different ministries. He then moved on to present the Delhi state budget – the state Assembly is currently under suspended animation. After lunch break, Jaitley returned to give an hour-long reply to the discussion on Union budget. In between, he also laid on table papers regarding the ministries he is handling.

The question hour saw Jaitley replying to queries regarding

the Finance and Defence ministries as well questions meant for Commerce & Industry Ministry plus Corporate & Company Affairs for which he was standing-by since minister Nirmala Seetharaman is abroad. This meant Jaitley answering, one by one, mem bers' questions on a wide range of questions ­ from efforts to track black money , India's efforts with Switzerland regarding the disclosure of illegal bank accounts of Indians to steps being contemplated to phase out overused and crash-prone defence aircrafts to steps being taken to enhance price and export of coffee produced in South India, tea in Assam and natural rubber in Kerala.

At the end of the Question Hour, Speaker Sumitra Mahajan made it a point to place her appreciation on record. "I want to congratulate the Minister who single handedly fielded queries during the entire Question Hour like lifting of the Govardhan hill (by Lord Krishna)".

Many members­ both from ruling and Opposition side thumped the desks to cheer Jaitley. Soon after, Jaitley presented to the House the Delhi state budget, a requirement given there is no government in the state currently with Assembly placed under suspended animation.

Some Opposition members tried to score a brownie point by asking why Jaitley is presenting the state budget at a time when media reports said the state BJP was trying to engineer defections from AAP and Congress to prop up a government in Delhi. The politician in Jaitley chose to deftly ignore the googlies.











Jul 19 2014 : The Economic Times (Mumbai)

We're Pro-Business as well as Pro-Poor, Insists FM Jaitley


NEW DELHI

OUR BUREAU





Slams UPA's tax terror, vows pro-growth steps

Finance Minister Arun Jaitley as serted that the Narendra Modi government was pro-business but also pro-poor and roundly criticised the previous UPA administration for indulging in "tax terrorism" and being beset by "policy paralysis" that discouraged investors, while promising further steps to revive India's economy and get it out of a prolonged slump. Jaitley also said he had kept a lid on taxes in his budget and hoped that a moderation in in flation would bring in terest rates down, be sides pointing to what he said were early signs of recovery.

"Someone said we are pro-business. We are pro-business. There is no contradiction in bess and being pro-poor," he ing pro-business and being pro-poor," he said, replying to the debate on the new government's first budget in the Lok Sabha on Friday . "In fact, if you stop business activity , then you would not have enough resources to service the poor as far as this country is concerned."

The Union Budget was later approved by the House, marking the completion of the first stage of consideration by Parliament. The second stage consideration will involve a discussion on the demands for grants followed by the approval of the Finance Bill. The finance minister said the new government is trying to restore the confidence of domestic and foreign investors by bringing "civility" to the taxation system. He said investors had developed "doubts" over the India Story in the past few years in the backdrop of unpredictable tax regime, thanks to retrospective changes in the law. Any relaxation on tax changes for investors in short-term debt mutual funds is only expected in Jaitley's reply to the discussion on the Finance Bill.

Jaitley said the government would take several measures to revive growth apart from those announced in the Budget, suggesting that the disappointment in some quarters with the latter wasn't justified.

"There are a series of steps that we have to take. The budget was only some of those steps. It was directional. It only shows direction. There will be many steps which will be taken outside the budget. It is not necessary that everything is announced in the Budget," he said.

The minister justified measures unveiled in the Budget to attract private investments, including allowing foreign direct investment up to 49% in defence and insurance, saying this was necessary to boost industry and manufacturing, which in turn would lead to job creation.

"There are those who oppose the idea of FDI in defence at 49%. I cannot understand the contradiction... Today , the situation is that we are buying from foreign companies and foreign governments...

Our `defence' is in their hands. They can stop supplies. We have to build capacities," he said. Similarly , investments are needed in the fund-starved insurance sector, particularly health insurance, he said.

Defending the budget, he said the approach was radically different from that of the previous government in many ways.

"The difference in the approach is that consistently across the board, this is a budget where we have not increased taxes," he said. "If you put higher taxes on products, people will buy products from outside. Lower taxes will increase economic activities," he said.

Jaitley also expressed the hope that interest rates will soften with the moderation in inflation. "Interest rates have gone up because inflation is high. I hope the interest rate comes down," he added. Inflation declined in June, but that may not be enough for the RBI to ease interest rates at its August 5 monetary policy meet .

The finance minister pointed to signs of optimism -a marginal improvement in various economic parameters such as exports, capital inflows and the industrial sector as per recent data. This, he said, could not be termed as a "trend" but early signs of recovery . A modest improvement in the growth rate is likely in the current fiscal, he said, adding that an acceleration in economic expansion to 7-8% and subsequent buoyancy in tax collections would help him allocate more resources for social sector. Growth slowed to sub-5% levels in the past two financial years.

During the course of his reply , Jaitley announced a ` . 2,000 crore special fund under the National Bank for Agriculture and Rural Development for food parks, ` . 50 crore for setting up drug de-addiction centres in Punjab and restoring accelerated depreciation to encourage the wind energy sector. There had been some uncertainty over the latter as it wasn't included in the English version of the budget speech.

He also promised more funds for resettlement of Kashmiri Pandits over and above the `. 500 crore earmarked in the budget.

Referring to the housing sector, the minister said he would endeavour to bring about a situation in which buying a house would be cheaper than renting it.

In the Budget, Jaitley had raised the annual tax exemption on home loan repayments to ` . 2 lakh from ` . 1.5 lakh. Following the initiatives taken by the government, RBI provided incentives to banks to extend loans for affordable housing at cheaper rates.




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