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Monday, June 6, 2016

दुनिया बदलने की जिद न हो तो नहीं बदलेगी दुनिया! जाति उन्मूलन के लिए भी कोई मुहम्मद अली चाहिए जो राष्ट्र, राष्ट्रवाद, धर्म, सत्ता, कैरियर, साम्राज्यवाद,युद्ध और रंगभेद के खिलाफ मैदान दिखा दें! भद्रलोक कोलकाता के दिल में सामाजिक क्रांति की दस्तक, बाबासाहेब के मिशन को लेकर छात्रों युवाओं ने रचा जाति उन्मूलन पब्लिक कांवेंशन! पलाश विश्वास


दुनिया बदलने की जिद न हो तो नहीं बदलेगी दुनिया!

जाति उन्मूलन के लिए भी कोई मुहम्मद अली चाहिए जो राष्ट्र, राष्ट्रवाद, धर्म, सत्ता, कैरियर, साम्राज्यवाद,युद्ध और रंगभेद के खिलाफ मैदान दिखा दें!

भद्रलोक कोलकाता के दिल में सामाजिक क्रांति की दस्तक, बाबासाहेब के मिशन को लेकर छात्रों युवाओं ने रचा जाति उन्मूलन पब्लिक कांवेंशन!

पलाश विश्वास

इस महादेश में जनमने वाले हर मनुष्य स्त्री या पुरुष या ट्रांस जेेंडर की जैविकी संरचना बाकी पृथ्वी और बाकी ब्रह्मांड के सत्य,विज्ञान और धर्म के विपरीत है क्योंकि हमारी कुल इद्रियां पांच नहीं छह हैं और सिक्स्थ सेंस हमारा जाति है और बाकी सबकुछ नानसेंस हैं।


पांच जैविकी इंद्रियां भले काम न करें,लेकिन जन्मजात जो सिक्स्थ सेंस का मजबूत शिकंजा हमारे वजूद का हिस्सा होता है,धर्म भाषा क्षेत्र देश काल निरपेक्ष,वह अदृश्य इंद्रिय पितृसत्ता  में गूंथी हुई हमारी जाति है।


जाति सिर्फ मनुस्मृति नहीं है।

जाति पितृसत्ता है और वंशवर्चस्व रंगभेद भी है तो निर्मम निरंकुश उत्पादन प्रणाली और अर्थव्यवस्था भी है जिससे हमारा इतिहास भूगोल देश परदेश भूत भविष्य वर्तमान विज्ञान तकनीक सभ्यता संस्कृति कुछ भी मुक्त नहीं है और मुक्तबाजार के फर्जी हिंदुत्व एजंडा के तहत विकास हुआ हो या न हुआ हो,जाति सबसे ज्यादा मजबूत हुई है।


यही जाति फासिज्म की राजनीति है और फासिज्म का राजकाज मुक्तबाजार है


हमारे लिए शाश्वत सत्य जाति है।


हम जो भी कुछ हासिल करते हैं,वह हमारी जाति की वजह से है तो हम जो भी कुछ खो रहे होते हैं,उसकी वजह भी जाति है।


जाति हमारा धर्म है।

जाति हमारा कर्म है।

जाति हमारा ईश्वर है।


जाति राजनीति है।

जाति सत्ता है।

जाति क्रयशक्ति है।

जाति मान सम्मान है।

जाति जान है ।

जाति माल है।


हमारा कर्मफल हजार जन्मों से हमारा पीछा नहीं छोड़ता,यही हमारा हिंदुत्व है और हिंदुत्व ही क्यों, इस महादेश के हर देश में हर मजहब में इंसानियत का वजूद कुल मिलाकर यही जाति है।कर्मफल है।जाने अनजाने हम हजार जन्मों के पापों का प्रायश्चित्त अपनी अपनी जाति में बंधकर करते रहने को संस्कारबद्ध हैं और परलोक सिधारने से पहले इहलोक का वास्तव समझ ही नहीं सकते।


पीढ़ियों पहले हुए धर्मान्तरण के बावजूद अगवाड़े पिछवाड़े लगे जाति के ठप्पे से हमारी मुक्ति नहीं है।


मेधा और अवसर गैरप्रासंगिक हैं,जाति सबसे ज्यादा प्रासंगिक है और वही लोक परलोक का आधार है और बाकी आधार निराधार है।


हम रिटायर होने के बाद हैसियत से शून्य है और एकदम अकेले मृत्यु की प्रतीक्षा के सिवाय इस समाज की दृष्टि से हमारी कोई दूसरी भूमिका नहीं है क्योंकि हमारे वजूद से नत्थी है हमारी जाति और नौकरी मिली तो हैसियत मिली,नौकरी गयी तो हैसियत गयी और हम फिर वही नंगे आदमजाद और हमारी पहचान जाति।


सत्ता वर्ग के हुए तो अखंड स्वर्गवास वरना कुंभीपाक नर्कयंत्रणा उपलब्धि।अस्पृश्य दुनिया के मलाई दारों की औकात यही।


जाति हमारी जैविकी संरचना बन गयी है।


जाति राष्ट्र है तो जाति राष्ट्रवाद भी।

जाति देशभक्ति है तो जाति संप्रभुता।


नागरिक और मानवाधिकार,कानून का राज, संविधान, आजीविका,वजूद,प्रकृति और पर्यावरण,प्राकृतिक संसाधन, संस्कृति,भाषा,साहित्य,माध्यम विधा जीवन के हर क्षेत्र में असमता और अन्याय का आधार है वहीं जाति।


फिरभी जाति कोई तोड़ना नहीं चाहता।


जो स्वर्गवासी हैं,वे देव और देवियां न तोड़ें तो बात समझ में आती है,लेकिन रोजमर्रे की जिंदगी जिनकी इस जाति की वजह से कुंभीपाक नर्क है,वे भी जाति से चिपके हुए जीते हैं,मरते हैं।


यही वजह है कि जाति इस महादेश में हर संस्था की जननी है।


जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरियसी से बड़ा मिथ्या कुछ नहीं है जैसे सत्यमेव जयते भी सफेद झूठ है।


यथास्थिति बनाये रखने के अकाट्य सांस्कृतिक मुहावरे और मिथ दोनों।


हमें से कोई राष्ट्रवादी हो ही नहीं सकता क्योंकि हम जन्मजात जातिवादी हैं।


हममें से कोई सत्यवादी सत्यकाम हो ही नहीं सकता क्योंकि हम जनम से जातिवादी हैं।


हममें से कोई बौद्ध हो ही नहीं सकता क्यंकि बुद्धमं शरणं गच्छामि कहने से कोई बौद्ध नहीं हो जाता।


हमारा धर्म क्योंकि जाति है जो अभूतपूर्व हिंसा का मुक्त बाजार उतना ही है जितना हिंदुत्व का फर्जी ग्लोबल एजंडा और श्वेत पवित्र रक्तधारा का असत्य उससे बड़ा,क्योंकि विज्ञान और जीवविज्ञान एक नियमों के मुताबिक विशुद्धता सापेक्षिक है तो सत्य भी सापेक्षिक है और अणु परमाणु परिवर्तनशील है,यह विज्ञान का नियम है तो प्रकृति का नियम है।


फिरभी हम प्राणहीन संवेदन हीन जड़ हैं और अमावस्या की काली अंधेरी रात हमारी पहचान है और कीड़े मकोड़े की तरह अंधकार के जीव हैं,इसका हमें अहसास भी नहीं है।


दुनिया बदलने की जिद न हो तो नहीं बदलेगी दुनिया।


फिरभी हम प्राणहीन संवेदन हीन जड़ हैं और अमावस्या की काली अंधेरी रात हमारी पहचान है और कीड़े मकोड़े की तरह अंधकार के जीव हैं,इसका हमें अहसास भी नहीं है।


क्योंकि जाति के आर पार हम किसी सीमा को तोड़ नहीं सकते।

क्योंकि जाति के आर पार हमारे कोई नागरिक मानवीय संवेदना हो ही नहीं सकते।


क्योंकि जाति के आर पार हम किसी से दिल खोलकर कह ही नहीं सकते,आई लव यू,आमि तोमाके भालोबासि।


हमारे सारे संस्कार और हमारे सारे मुल्यबोध,हमारा आचरण और हमारा चरित्र जाति के तिलिस्म में कैद है और उसीके महिमामंडन के अखंड कीर्तन में निष्णात हम निहायत बर्बर और असभ्य लोग हैं जो रोजमर्रे की जिदगी में अपने ही स्वजनों के वध के लिए पल प्रतिपल कुरुक्षेत्र रचते हैं और महाभारत धर्मग्रंथ है।


हम धम्म के पथ पर चल नहीं सकते जाति की वजह से।

हम कानून के राज के पक्ष में हो नहीं सकते जाति की वजह से।

हम समता और न्याय की बात नहीं कर सकते ,जाति की वजह से।


हमारे लिए संविधान आईन कानून लोकतंत्र ज्ञान विज्ञान इतिहास भूगोल अर्थशास्त्र दर्शन और नैतिकता कुल मिलाकर जाति है।


हम जनादेश में अपनी ही जाति का वर्चस्व तय करते हैं। हम जीते तो महाभारत और हम हारे भी तो महाभारत और देश कुरुक्षेत्र।


बाबासाहेब अंबेडकर के जाति तोड़ो मिशन का समर्थन वर्चस्ववादी ब्राह्मणवादी नहीं कर सकते तो इससे भी बड़ा सच यह है कि जो लोग इस जाति व्यवस्था की वीभत्सता के,इसकी निर्मम पितृसत्ता के सबसे ज्यादा शिकार स्त्री पुरुष हैं,बिना कुछ करे जाति के आधार पर उनकी श्रेष्ठता और उनकी हीनता की अभिव्यक्ति ही उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है मनुष्यता के विरुद्ध तो बाबासाहेब के अनुयायी ही उनके इस मिशन के खिलाफ है।


अंबेडकरी दलित शोध छात्र रोहित वेमुला इसी जाति उन्मूलन की परिकल्पना की बात करते रहे हैं और उनका मानना था व्यक्ति और समूह के तौर पर हर स्तर पर हर पक्ष की ओर से जाति तोड़ने की पहल नहो तो एकतरफा कोई विधि नहीं है जिससे जाति टूटे।


इस महादेश में वैज्ञानिक ब्राह्मणवादी वर्चस्व की अखंड प्रयोगशाला बंगाल की भद्रलोक राजधानी में शिक्षा और संस्कृति के केंद्र स्थल में रविवार को पर्यावरण दिवस पर जाति उन्मूलन पर गण सम्मेलन का आयोजन उन्हीं रोहित वेमुला की याद में हुआ और सबसे खास बात है कि इसमें बारी संख्या में जाति धर्म भाषा के आर पार छात्र और युवाजनों ने भाग लिया।


आदरणीय मित्र आंनद तेलतुंबड़े के मुताबिक जाति के इस, स्थाई बंदोबस्त के टूटने की उम्मीद इन्हीं नई पीढ़ी की निरंतर सक्रियताओं से बन रही है।


रोहित वेमुला के मित्र अंकगणित के प्रोफेसर तथागत सेनगुप्त ने सम्मलन में साफ साफ कहा कि जाति उन्मूलन के बिना कोई क्रांति नहीं हो सकती तो क्रांति के बिना जाति उन्मूलन भी असंभव है।


इसी मौके पर  बाबासाहेब की विचारधारा और भारतीय संविधान से सिलसिलेवार उद्धरण देते हुए रोहित के मित्र प्रशांत ने इस सम्मेलन के जरिये चेतावनी जारी कि हिंदू राष्ट्र सबसे बड़ा खतरा है और हम कीमत पर इसका मुकाबला करना होगा और अंबेडकर  की बात करने वाले रोहित वेमुला की तरह मार दिये जायेंगे।


इसी मौके पर  बाबासाहेब की विचारधारा और भारतीय संविधान से सिलसिलेवार उद्धरण देते हुए रोहित के मित्र प्रशांत ने इस सम्मेलन के जरिये चेतावनी जारी कि  मनुस्मृति अनुशासन के लिए शिक्षा दीक्षा का हिंदूकरण किया जा रहा है तो इसका प्रतिरोध भी छात्रों और युवाओं को करना होगा।


जाहिर है कि पेड़ कहीं गिरता है तो गूंज हिमालय के जख्मी दिल के हर कोने में दर्ज हो जाती है।


हर बदलाव के लिए एक बेहद मामूली पहल की हिम्मत जरुरी होती है।


कोलकाता में ठहरे हुए तालाब के पानी में पत्थर पहलीबार पड़ा है तो इसके असरात के बारे में अभी कोई अंदाजा भी नहीं है।


बहरहाल जाति व्यवस्था के शिकंजे में भयंकर पाखंडी प्रगति के तिलिस्म में फंसे बंगाल में आखिरकार बिना अंबेडकरी आंदोलन या बिना प्रगतिशील भूमिका के होक कलरव की पृष्ठभूमि में रोहित वेमुला की संस्थागत हत्या के खिलाफ केसरिया सुनामी से बार बार लहूलुहान छात्र युवा समाज की पहल से डंके की चोट पर जाति उन्मूलन के मिशन का ऐतिहासिक प्रस्ताव पब्लिक कांवेंशन में पास हो गया।फाइन प्रिंट मिल जाने पर उसे हम साझा भी करेंगे।


इस मौके पर घोषणा के मुताबिक रोहित की मां राधिका वेमुला और उनके भाई राजा वेमुला अदालत में पेशी हो जाने की वजह से पहुंचे नहीं तो पता नहीं था कि कोलकाता के अखबारों में क्या खबर कैसे छपेगी क्योंकि मौके पर पहुंचे फोटोकार लगातार तस्वीरें खिंचते रहे लेकिन संपादकों की नजर में बिना राधिका वेमुला और राजा वेमुला की मौजूदगी के जाति उन्मूलन के बाबासाहेब के मिशन लागू करने के लिए जातियों और अस्मिताओं के आर पार देश जोड़ने की इस मुहिम खबर है या नहीं,कल तक मीडिया में रहे हमारे लिए भी कहना मुश्किल था।


कोलकाता के बांग्ला मीडिया,हिंदी मीडिया ने इस घटना को सिरे से नजर्ंदाज किया तो अंग्रेजी अखबारों ने जाति उन्मूलन पर गण सम्मेलन के बजाय रोहित के मित्रों का यादवपुर विश्वविद्यालय के छात्रों को समर्थन की खबर छापी।यह है सूचना विस्फोट का रंगभेद।


राधिका वेमुला ने इस मौके पर मृत पुत्र की जाति जैविकी पिता के आधार पर तय करने की मुहिम के जरिये उसकी संस्थागत हत्या के सत्ता पहरुए अपराधियों को बचाने की मुहिम का पत दर परत खुलासा करते हुए इस जाति उन्मूलन के सम्मेलन के लिए भेजे अपने संदेश में स्त्री और दलित दोनों वजूद पर होते पितृसत्ता और मनुस्मृति के सिलसिलेवार हमलों और उत्पीड़ना का जो ब्यौरा लिखकर भेजा है,यह भी तय नहीं था कि कारपोरेट मीडिया में सत्ता और मुक्तबाजार को बेनकाब करने वाले उस संदेश की भी कोई खबर होगी या नहीं।मैंने आज सुबह ऐसी कोई खबर नहीं देखी।


नई दिल्ली के केंद्रीय शिक्षा मंत्रायल से अंबेडकरी छात्रों के सामाजिक बहिस्कार के फतवे के तहत जारी जो पांच पत्र हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के उपकुलपति को लिखे गये,जिसके अंजाम के बतौर रोहित वेमुला को खुदकशी अपने जन्म परिचय के अपराध में,जनमजात दलित होने की वजह से करनी पड़ी,उसी सामाजिक बहिस्कार के शिकार अनशन और आंदोलन में उनके साथी प्रशांत ने जाति उन्मूलन के बाबासाहेब के एजंडा और उसे लागू करने के लिए बहुपक्षीय परिकल्पना पर रोहित के वैज्ञानिक शोध को सिलसिलेवार पेश किया।


उसी विश्वविद्यालय के मैथ्स के प्रोफेसर डा. तथागत सेनगुप्त ने उच्चशिक्षा के पवित्र मंदिर में अनेपक्षित अस्पृश्य बहुजन छात्रों के साथ होने वाले वैज्ञानिक भेदभाव के पूरे फेनोमेनान का खुलासा किया और कोलकाता के अपने नये पुराने अनुभवों के उदाहरण से छात्रों युवाओं की आंखें खोल दी तो हैदराबाद फैकल्टी के ही शिक्षक कुणाल दुग्गल ने फैज अहमद फैज के तख्तोताज पलटने वाली वह नज्म गाकर सुनाया जिसे गाने के अपराध में उन्हें विश्वविद्यालयविरोधी कहा गया।


प्रशांत ने बाकायदा बाबासाहेब के विचारों,संविधान सभा में उनकी दलीलों,संवैधानिक प्रावधानों के हवाले से देश भर के विश्वविद्यालयों के हिंदू राष्ट्र के एजंडे के तहत केसरियाकरण अभियान का खुलासा करते हुए अंध धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद के तहत जनपक्षधर तमाम नागरिकों को,खासतौर पर बहुजनों,आदिवासियों और अल्पसंख्यकों को राष्ट्रद्रोही करार दिये जाने के संघी तर्कों का सिलसिलेवार खंडन किया और बाबासाहेब का ही उद्धरण देकर मुक्तबाजार के हिंदू राष्ट्र को मनुष्यता और सभ्यता के लिए सबसे बड़ा खतरा बताते हुए हर कीमत पर इसे रोकने का संकल्प दोहराया और इस संकल्प को दोहराने वाले बंगाल के छात्र युवा भी हैं।


जाति व्यवस्था और हिंदुत्व,नागरिकता और अर्थव्यवस्था के साथ साथ सामाजिक यथार्थ का विश्लेषण करते हुए डा.आनंद तेलतुंबड़े ने कहा कि शिक्षा का बाजारीकरण हो रहा है और शिक्षा सरकार या समाज का उत्तरदायित्व नहीं है,क्रयशक्ति के आधार पर शिक्षा सेल्फ फाइंनेस में बदलने का यह हिंदुत्व उपक्रम है जिससे सत्तावर्ग के सिवाय किसी के लिए भी मनुस्मृति बंदोबस्त के तहत शिक्षा निषिद्ध होगी और इसे छात्र युवा समझ रहे होगे तो यह आंदोलन किसी एक विश्वविद्यालय एक संस्थान में सीमाबद्ध नहीं रहेगा।लेकिन हर हाल में आंदोलन का प्रसथ्नबिंदू जाति उन्मूलन का एजंडा होना चाहिए क्योंकि जाति हमारी एकता में सबसे बड़ा अवरोध है,जाति के रहते न  हम एक हो सकते हैं और न किसी भी तरह का परिवर्तन संभव है।


कोलकाता में जाति उन्मलन का यह गण सम्मेलन कोई खबर नहीं है क्योंकि प्रगतिशील बंगाल में पार्टीबद्धता के दायरे से बाहर दलितों पिछड़ों,आदिवासियों,शारणार्थियों और स्त्रियों की खबर सिर्फ आपराधिक मामले में ही बनने की रीत रही है और वर्ण वर्चस्व के रंगभेदी तिलिस्म में किसी हलचल की खबर संघ परिवार के गुप्त एजंडे के मुताबिक कायदे कानून के तहत आरक्षण कोटा में प्रतिनिधित्व दिखाने के लिए जरुरी आंकड़ों के आगे किसी को किसी भी तरह का कोई मौका सत्तावर्ग के हितों के खिलाफ न देने की रघुकुल रीति चली आ रही है।


बंगाल में बहुजनों के आंदोलन का नेतृत्व भी सत्तावर्ग के पास है और वोटबैंक सत्ता से नत्थी हो जाने के बावजूद जनसंख्या के लोकतंत्र में एक अदद संख्या के अलावा किसी की कोई नागरिक और मानवीय पहचान नहीं है।


बंगाल में जाति व्यवस्था मिस्टर इंडिया की तरह अदृश्य और सर्वव्यापी है और बिना जाति पूछे रंगभेदी जातिवाद का वर्चस्व इतना प्रबल है कि बंगाल के कामरेड तक सत्ता उपहार की थाली में दक्षिणपंथी ब्राह्मणवाद के हवाले कर देना बेहतर मानते हैं बजाय इसके कि पार्टी के नेतृत्व में जाति वर्ग वर्चस्व खत्म करके सभी समुदायों को बराबर प्रतिनिधित्व दिया जाये।

 

इस लिहाज से कोलकाता में रविवार को जो हुआ वह निःशब्द रक्तहीन विप्लव का एक दृश्यमात्र है जिसे देशभर के दृश्यों को जोड़कर हम नई फिजां रच सकते हैं।



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