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Friday, December 23, 2016

पीएम के खिलाफ छापा कौन मारेगा?

पीएम के खिलाफ छापा कौन मारेगा?

सारे आयकर सीबीआई छापे पीएमओ दफ्तर से

अब किसी दिन पता चलेगा कि सुप्रीम कोर्ट और तमाम अदालतों के फैसले भी पीएमओ से हो रहे हैं।

कानून और व्यवस्था पूरीतरह कारपोरेट मजहबी सियासत के शिकंजे में

पलाश विश्वास

घोटाले के राजकाज राजकरण में खुद पीएम के खिलाफ घोटाले का आरोप है।सारे छापे पीएमओ से मारे जा रहे हैं।पीएम के खिलाफ छापा कौन मारेगा?

छापे मारने वाले खूब चाहें तो ममता के नवान्न में छापे मारकर कालाधन निकाल लें या मायावती की मूर्ति फोड़कर कालाधन निकाल लें।अफसरान तो बलि के बकरे हमेशा हर कहीं मौजूद हैं।

मंत्री संत्री सांसद विधायक किसी के यहां छापे मार लें।जैसे अदानी, अंबानी,टाटा, बिड़ला,जिंदल मित्तल,भारती के यहां छापे नहीं पड़ सकते भले सहारा श्री जेल में सड़ते रहें,इस देश में पीएम के यहां छापे पड़ने की कोई गुंजाइश नहीं है।

पीएम बनते ही वे गंगाजल हो गये।

अब गंगाजल पर तलवार का वार करोगे?

फिर इन पीएम के खिलाफ?इन पीएम के खिलाफ छापा कौन मारेगा?कहां कहां छापे मारेगा?उनका न घर है न घर बार परिवार।उनका एक ही परिवार है,संघ परिवार। इस हिंदू राष्ट्र में संघ परिवार के मुख्यालय पर कौन छापा मारेगा?

फिर वे सिर्फ पीएम नहीं हैं, एनआईआर पीएम है।हर देश की हुकूमत का सर्वेसर्वा उनके खास दोस्त हैं।चाहे तो वे अपना धन देश विदेश में कहीं भी छुपा सकते हैं।स्विस बैंक क्या जरुरी है? मारीशस दुबई हांगकांग में माथा फोड़ना है उन्हें?

चाहे तो वाशिंगटन में या फिर तेल अबीब में जमा पूंजी बचत रक्खे।

कोई आम जनता है भारत की कि बैंक में नकदी डाल दी तो मिलबे ही ना करै?खाड़ी देशों में भी उनके दोस्त कम नहीं हैं।

राहुल गांधी बड़ा नादान हैं।आरोप तो लगा दियो भाई बड़जोर,छापे कौन मारेगा,कहां मारेगा,सोचा है?बोलना सीख लो भइया।

इस देश की सियासत में भूकंप नहीं आता।आता तो सारा तंत्र मंत्र यंत्र बदल जाता।कोई बदलाव का ख्वाब नहीं देखता। ख्वाबों पर चाकचौबंद पहरा है।

क्योंकि हमारा भूगोल कयामत प्रूफ है।कयामत में भी हमारी खाल इतनी मोटी है कि कयामत ससुरी शर्मिंदा हो जाये।

राजनेताओं का कौन क्या बिगाड़ सकै हैं?वोट भले कम हो जाये लेकिन इतना कमा लियो भइये कि लगातार हारते भी रहें नोट कम नहीं पड़ने वाले।

क्या कोई उखाड़ लेगा?अदालत में सात खून माफ है।कत्लेआम सरेआम रफा दफा है।बावली जनता की याददाश्त भी पतली है।

घूमा फिराकर हंसते गददियाते गुदगुदाते नागनाथ के बदले सांपनाथ और सांप नाथ के बदले नागनाथ को सत्ता सौंप देती है।फिर महतारी बाप को कोसती है कि किस लिए इस देश में क्यों जनम दिया है।

रोने धोने सर पीटने के अलावा इस देश की जनता करेगी क्या?

गुजरात नरसंहार मामले में उनके खिलाफ संगीन आरोप थे।साबित हुआ कुछ भी?जिस अमेरिका ने पाबंदी लगा दी थी,उसी अमेरिका ने झख मारकर  उनके लिए व्हाइट हाउस के पलक पांवड़े बिछा दिये।जिन मुसलमानों के कत्लेआम का आरोप उनके खिलाफ था,उन्हीं मुसलमानों के तमाम नुमाइंदे उनके आगे पीछे चक्कर लगावै हैं।रोहित वेमुला की हत्या के बाद क्या किसी बहुजन ने उनके केसरिया राजकाज के खिलाफ इस्तीफा दिया है?

यही जनादेश का करिश्मा है।अब भुगतते रहिये।

यूपी पंजाब उत्तराखंड में भी वोट उन्हीं को देना है।यही हिंदुत्व है।

हिंदू बहुमत में हैं।हिंदू राष्ट्र है।हिंदू हैं तो हिंदुत्व के लिए मारे जाने पर इतना रोना गाना किसलिए?यह राष्ट्रद्रोह है।हिंदू हितों के साथ विश्वासघात है।

इस वक्त कारपोरेट मीडिया में लगातार ब्रेकिंग न्यूज यह है कि पीएमओ दफ्तर से मिल रही खुफिया सूचनाओं के आधार पर देशभर में आयकर छापे पड़े रहे हैं।

जाहिर है कि सीबीआई भी पीएमओ दफ्तर के रिमोट कंट्रोल से देशभर में पीएम की पसंदगी नापसंदगी के मुताबिक छापेमारी कर रही है।

रिजर्व बैंक का कामकाज भी पीएमओ के मार्फत चल रहा है।

संसदीय कमिटी को रिजर्व बैंक ने अभीतक इसका कोई जबाव दिया नहीं है कि नोटबंदी की तैयारी उसने किस हद तक और कितनी की है।

यह सारी कवायद रिजर्व बैंक को अंधेरे में रखकर झोलाछाप बगुला भगतों के साथ मिलकर पीओमओ दप्तर ने पूरी की है।यहां तक कि संघ परिवार को भी बगुला भगतों का यह महंगा करतब नागवर लगने लगा है।पर चूहा निगलना ही पड़ा है। लौहमानव खिसियानी बिल्ली की तरह खंभा नोंचकर किनारे बैठ गयो कि तिरंगे में लिपटकर मरना चाहे तो आप किस खेत की मूली हैं?

गुस्से में प्रेसर बढ़ गया तो देख लो भइये कि कार्ड वार्ड आधार डिजिटल कैशलैस वगरैह है कि नाही।जिंदा रहने खातिर पेटीएम जानते हो कि नाही?भौते जरुररी बा।

भौते जरुररी बा कि मोबाइल में नेट है कि नाही?जिओ है?हर फ्रेंड जरुरी बा।

सही बटन चांपने का शउर भी है कि नाही?सिरफ लाइक से काम नहीं चलने वाला।बेमौत मारे जाओगे।कौन मुआवजा भरेगा?

बच्चों के रोजगार का जुगाड़ है कि नाही?

घर में राशन पानी वगैरह हैं कि नाही?

खेत खलिहान सही सलामत हैं?

खुद पालतू कारपोरेट मीडिया ने बार बार ढोल नगाड़े पीट पीटकर दावे के साथ साबित करने की कोशिश की है कि कैसे पीएम ने अपने चुनिंदा वफादार साथियों के साथ मिलकर नोटबंदी को अंजाम दिया है।इस परिदृश्य में एफएम तक गायब रहे।रिजर्व बैंक के गवर्नर के का बिसात बा?

अर्थव्यवस्था शेयर बाजार है।

असहिष्णुता विरोधी आंदोलन के तुरंत बाद रोहित वेमुला की संस्थागत हत्या के बाद तमाम घटनाओं पर सिलसिलेवार तनिक गौर कीजिये।

रोहित वेमुला की हत्या का मामला रफा दफा करने के लिए अंध राष्ट्रवाद की सुनामी के तहत सर्जिकल स्ट्राइक का शगूफा और वह शगूफा बेपर्दा हो गया तो फिर कालाधन निकालने के बहाने दूसरा सर्जिकल स्ट्राइक भारतीय जनता के खिलाफ यह नोटबंदी है।सरहद के भीतर अपनी ही जनता के खिलाफ हुकूमत का यह युद्ध है।

सरहद पार के दुश्मन नहीं,हुकूमत के निशाने पर आम जनता है।मकसद नस्ली सफाया,जो हिंदत्व का कारपोरेट एजंडा है।हिंदू इसे समझेंगे नहीं,सर धुनेंगे।धुन रहे हैं। मुसलमान,आदिवासी और बहुजन भी कहां समझ रहे हैं?,सर धुनेंगे।धुन रहे हैं।

नोटबंदी हो गयी तो न नया नोट आम जनता को मिल रहा है और न काला धन कहीं मिला है।फिर ध्यान भटकाने के लिए डिजिटल कैशलैस मुहिम चला है कि असल मकसद पेटीएम अर्थव्यवस्था है,जनता इसका फैसला करें,यह मोहलत देने के बदले दनादन देश भर में पीएमओ दफ्तर से केंद्रीय एजंसियों के जरिये यह छापेमारी है।

बड़ी मछलियां कहीं फंस ही नहीं रही हैं।

बड़ी मछलियों के लिए खुल्ला समुंदर है।

बड़ी मछलियों के लिए समुंदर की गहराई है,जहां न कांटे कोई डाल सके हैं और न जाल।लाखों करोड़ का घोटाला हो गया और आम जनता को कदम कदम पर पाई पाई का हिसाब दाखिल करना पड़ रहा है।

सियासती घोटालों का रफा दफा होना रघुकुल रीति है।रक्षा सौदों पर दशकों से खूब हो हल्ला होता रहा है।सबसे ज्यादा घोटाले रक्षा सुरक्षा,प्रतिरक्षा और आंतरिक सुरक्षा के नाम पर हुए।विदेशी बैंकों में जमा कालाधन सारा का सारा इन्हीं सौदों का कमीशन है।जो राजनीतिक दलों को कारपोरेट चंदे की तरह देशभक्तों की सरकार ने अब जायज बना दिया है नया कानून बनाकर।उस कालेधन का एक पाई कभी नहीं लौटा है।हेलीकाप्टर घोटाले पर हल्ला अब हो रहा है।यह तो घोटालों का शोरबा है।

घोटालो पर हल्ला सबसे बड़ी सियासत है संसद में और संसद के बाहर।सरकारें भी बदलती रही हैं।कभी कुछ भी साबित नहीं होता।आज तक सजा किसी को नहीं हुई है।कोई दूध का धुला होकर सियासत में जनप्रतिनिधि चुने जाने के बाद फटेहाल से करोड़पति,अरबपति,खरबपति यूं ही नहीं हो जाता।चुनावों में नोट हवा में यूं ही नहीं उड़ाये जाते।सारा खेल खुला खुला है।

पीएमओ दफ्तर की छापेमारी से भी यह खेल बदलने वाला नहीं है।

खिलाडियों का पाला बदलने का यह खेल हैं।जबर्दस्त खेल है।

आम लोगों को कतारबद्ध होकर पुराने नोट जमा करने के बाद थोक भाव से आयकर दफ्तर के नोटिस जारी हो रहे हैं।जबकि छापेमारी में अब नये नोट ही भारी मात्रा में बरामद हो रहे हैं।

नये नोटों में कालाधन सारा है तो पुराने नोट रद्द करके आम जनता के कत्लेआम का यह इंतजाम क्यों?

छापे पहले क्यों नहीं पड़े जो अब पड़ रहे हैं?

तो सवाल यह उठता है कि कालाधन का तंत्र मंत्र यंत्र सही सलामत रखकर आम जनता को, ईमानदार करदाताओं को, किसानों, मेहनतकशों, व्यवसायियों और भारतीय अर्थव्यवस्था के सत्यानाश की असल वजह कहीं मजहबी सियासत का कारपोरेट एकाधिकार का एजंडा तो नहीं है,जिसके तहत सियासत की सुविधा के मुताबिक केंद्र सरकार अपनी तमाम एजंसियों का मनचाहा इस्तेमाल कर रही है।

ये छापे तो नोटबंदी के बिना भी हो सकते थे और बहुत पहले हो सकते थे।अभी क्यों ये सियासती छापे पड़ रहे हैं?

अब नोटबंदी के सिरे से फेल हो जाने का ठीकरा रिजर्व बैंक और बैंकिंग प्रणाली पर फोड़ा जा रहा है।वैसे ही सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक मुश्किल हालत में हैं।

सियासी समीकरण,फैसलों और हस्तक्षेप से इन बैंकों से पूंजीपतियों और कारपोरेट कंपनियों को सबसे ज्यादा चूना लगा है।

नोटबंदी उनके कफन पर आखिरी कीलें हैं।

यह काम भी पीएमओ की दखलंदाजी से हो रहा है।

अब किसी दिन पता चलेगा कि सुप्रीम कोर्ट और तमाम अदालतों के फैसले भी पीएमओ से हो रहे हैं।शायद इसकी नौबत बहुत जल्द आने वाली है।बल्कि कहा जाये कि इसकी शुरुआत भी हो चुकी है।

कम से कम न्यायपालिका में न्यायाधीशों की राजनीतिक नियुक्तियों को रोक पाना सुप्रीम कोर्ट के बस में नहीं है।

अभी नोटबंदी के बाद कैशलैस डिजिटल इडिया का आधार पहचान के जरिये तेजी से लागू करने की मुहिम हर स्तर पर चल रही है जबकि सुप्रीम कोर्ट ने आधार को किसी भी बुनियादी सेवा और जरुरत के लिए अनिवार्य नहीं माना है।लेन देन भी बुनियादी जरुरत और सेवा दोनों है।

सीधे पीएमओ से सुप्रीम कोर्ट की देशव्यापी अवमानना हो रही है।

आयकर विभाग के अफसर और कर्मचारी इतने दिनों से मक्खियां मार रहे थे कि उन्हें पीएमओ दफ्तर से मिल रही सूचनाओं का इंतजार था?

केंद्रीय एजंसियों और स्वायत्त संस्थाओं का पीएमओ के रिमोट कंट्रोल से चलना जम्हूरियत के लिए कयामत है क्योंकि कानून और व्यवस्था पूरीतरह कारपोरेट मजहबी सियासत के शिकंजे में है,जिससे नागरिक और मानवाधिकारों के लिए यह बेहद मुश्किल समय है।

तमिलनाडु के मुख्य सचिव के यहां आयकर छापे के लिए क्या नोटबंदी जरुरी थी?

बंगाल में चिटफंड के सारे सबूत सीबीआई और तमाम केंद्रीय एजंसियों के हाथों में थे।लोकसभा चुनाव में चिटफंड मुद्दा बंगाल में सबसे बड़ा मुद्दा था।मंत्री और सांसद तक गिरफ्तार हो रहे थे।इसके बावजूद यह मामला रफा दफा हो गया और विधानसभा चुनावों में चिटपंड का कोई मुद्दा ही नहीं था।

क्योंकि तब दीदी मोदी युगलबंदी का संगीत घनघोर था।

अब नोटबंदी के आलम में जब ममता बनर्जी इसकी कड़ी आलोचना कर रही हैं,उनके सांसदों को सीबीआई का नोटिस थमाया जा रहा है।

सीबीआई क्या इसी राजनीतिक मौके का इंतजार कर रही थी?

अभी चिटपंड कंपनी रोजवैली की करीब दो हजार करोड़ की संपत्ति देशभर में जब्त की गयी।जबकि इसके मालिक गौतम कुंडु लंबे समय से जेल में हैं।उनके सियासती ताल्लुकात जगजाहिर हैं।उनकी संपत्ति की जब्ती का मौका लेकिन केंद्रीय एजंसियों को अब मिला है।

शारदा समेत दूसरी चिटपंड कंपनियों के भी सियासती ताल्लुकात छिपे नहीं हैं।पता नही उनपर कब कार्रवाई होंगी।



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