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Monday, June 6, 2011

Fwd: भाषा,शिक्षा और रोज़गार



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From: भाषा,शिक्षा और रोज़गार <eduployment@gmail.com>
Date: 2011/6/5
Subject: भाषा,शिक्षा और रोज़गार
To: palashbiswaskl@gmail.com


भाषा,शिक्षा और रोज़गार


दिल्लीःराजधानी कॉलेज में तीनों संकायों की होती है पढ़ाई

Posted: 04 Jun 2011 11:29 AM PDT

रिंग रोड के किनारे व मेट्रो नेटवर्क से जुड़े राजा गार्डन स्थित राजधानी कॉलेज में कला, विज्ञान व वाणिज्य तीनों संकायों की पढ़ाई होती है। इसके अलावा यदि आपकी रुचि जिम ट्रेनर बनने की हो तो राजधानी कॉलेज बेहतर विकल्प हो सकता है। कॉलेज की पिं्रसिपल डॉ. विजय लक्ष्मी पंडित बताती हैं कि हमारे यहां बीए प्रोग्राम के तहत एरोबिक्स एंड फिटनेस का कोर्स कराया जाता है, जो विद्यार्थियों के बीच काफी लोकप्रिय है। इसके अलावा बीए प्रोग्राम में ही टूरिज्म, पत्रकारिता, इंश्योरेंस व बैकिंग समेत कई विषयों की पढ़ाई होती है। प्रोग्राम की सुविधा विज्ञान व कॉमर्स में भी उपलब्ध है। इसके अलावा यहां कला संकाय के अंतर्गत हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत में ऑनर्स पाठयक्रम उपलब्ध हैं। विज्ञान संकाय के अंतर्गत रसायन, भौतिकी, गणित, इलेक्ट्रॉनिक्स में ऑनर्स की सुविधा है। इसके अलावा बीकॉम में भी ऑनर्स की पढ़ाई होती है। कॉलेज में अध्यापक-अध्यापिकाओं की कुल संख्या 140 है। इस वर्ष कुल 955 सीटों का नामांकन विभिन्न कोर्स के लिए किया जाएगा। 
और भी कई सुविधाएं : राजधानी कॉलेज अपने क्रिकेट प्रेम के लिए जाना जाता है। यहां के विद्यार्थियों ने राष्ट्रीय टीम में भी अपनी पहचान बनाई है। इनमें आशीष नेहरा, आकाश चोपड़ा शामिल हैं। वहीं कॉलेज के छात्र रहे रामबाबू गुप्ता आइसीसी के अंपायरों के पैनल में थे। इसके अलावा पुस्तकालय में सवा लाख से भी अधिक पुस्तकें उपलब्ध हैं। इसके अलावा कॉलेज में सेमिनार कक्ष, सभागार समेत कई सुविधाएं उपलब्ध हैं(दैनिक जागरण,दिल्ली,4.6.11)।

डीयूःपहले दिन हिट रही दाखिला वेबचैट

Posted: 04 Jun 2011 11:15 AM PDT

डीयू की वेबसाइट पर शुक्रवार को दाखिला वेबचैट शुरू हो गई। पहले दिन दाखिला संबंधी साढे़ तीन हजार से अधिक प्रश्न पूछे गए। डीन स्टूडेंट वेलफेयर प्रो.जेएम खुराना ने चुनिंदा सवालों को वेबचैट पर जवाबों के साथ अपलोड करा दिया है। जिससे एक जैसे प्रश्न पूछने वाले छात्रों को अपना जवाब इन्हें जवाबों को पढ़कर मिल जाएगा। प्रो. खुराना ने बताया कि प्रशासन की नई पहल पहले दिन हिट रही। डीयू में दाखिले को लेकर छात्रों का क्रेज देख वह भी चौंक गए हैं। उन्हें एक घंटे में इतने सारे सवालों की उम्मीद नहीं थी। एक घंटे में छात्रों ने उनसे 3,600 सवाल पूछ डाले। अधिकांश प्रश्न छात्रों ने कॉलेज, कोर्स, अंक प्रतिशत और दाखिले की बदली प्रक्रिया से पूछे। दोपहर साढ़े तीन बजे जैसे ही वेबचैट पर जवाब देने शुरू किए गए, वैसे ही, छात्रों ने सवालों की झड़ी लगा दी। छात्र मनोज ने पूछा कि वह पहली कट ऑफ में दाखिला ले लेता है और दूसरी व तीसरी कट ऑफ में अगर उसे बेहतर विकल्प मिलता है तो क्या वह कॉलेज बदल सकता है? ऐसे में उसे बताया गया कि हां वह कॉलेज बदल सकता है। उसका प्रमाण पत्र कॉलेज 24 घंटे में वापस करेगा और फीस दाखिला प्रक्रिया समाप्त होने के बाद मिल जाएगी। ऐसे ही एक छात्र ने पूछा कि अगर वह स्कूल ऑफ लर्निग में दाखिला लेकर पढ़ाई करे तो क्या उसे रेगुलर कोर्स में इस साल दाखिला मिल सकता है? ऐसे छात्रों को कॉलेज रेगुलर कोर्स में इस साल बिल्कुल दाखिला नहीं मिल सकता। उन्हें इस साल अच्छा अंक प्रतिशत प्राप्त करना होगा, जिसके बाद ही वह रेगुलर कॉलेज में दाखिले के लिए आवेदन कर सकेगा। अब छात्रों को एक्सपर्ट से लाइव वेबचैट का मौका 6, 8 और 10 जून को मिल सकेगा। इस दौरान डीयू के अलग-अलग विशेषज्ञ चैटिंग के द्वारा छात्रों की उलझनों को सुलझाएंगे। ओपन डेज : नॉर्थ कैंपस आर्ट फैकल्टी में जहां एससी/एसटी छात्रों ने दाखिला रजिस्ट्रेशन कराए, वहीं कांफ्रेंस सेंटर में भी काफी संख्या में छात्र पहुंचे। जिन्हें ज्वाइंट डीन डॉ. सुमन वर्मा, डिप्टी डीन डॉ. सुचित्रा गुप्ता, डिप्टी डीन गुरप्रीत सिंह टुटेजा ने दाखिला संबंधी जानकारी दी। यहां 8 जून तक ओपन डेज काउंसिलिंग सुबह 10 बजे से दोपहर 3 बजे तक चलेगी(दैनिक जागरण,दिल्ली,4.6.11)।

नौकरियों में अल्पसंख्यकों की घटती भागीदारी से सरकार चिंतित

Posted: 04 Jun 2011 11:00 AM PDT

सरकारी और अ‌र्द्धसरकारी नौकरियों में अल्पसंख्यकों की भागीदारी फिर घट रही है। जस्टिस सच्चर कमेटी की सिफारिशों पर अमल के बाद हुई नई नियुक्तियों में उनकी हिस्सेदारी बढ़ने का जो सिलसिला शुरू हुआ था, अब फिर से घटने लगा है। बदलाव के इन संकेतों से सरकार हैरत में है। लिहाजा सच्चाई जानने की कोशिशें शुरू हो गई हैं। सूत्रों के मुताबिक केंद्र सरकार के अधीन 2006-07 में हुई कुल नियुक्तियों में अल्पसंख्यकों की भागीदारी 6.90 प्रतिशत थी, जो उसके अगले साल 8.32 प्रतिशत तक पहंुच गई। 2008-09 में तो इसमें तेज इजाफा हुआ और उस साल हुई 15,172 नई नियुक्तियों में अल्पसंख्यकों की हिस्सेदारी बढ़कर 9.24 प्रतिशत तक पहुंच गई। लेकिन वृद्धि की इस रफ्तार पर अब ब्रेक लग गया है। 2009-10 में हुई सभी सरकारी व अ‌र्द्धसरकारी नियुक्तियों में अल्पसंख्यकों की हिस्सेदारी घटकर 7.28 प्रतिशत पर आ गई। सूत्रों की मानें तो नौकरियों में अल्पसंख्यकों की हिस्सेदारी घटने के इस संकेत से सरकार के माथे पर बल पड़ने लगे हैं। लिहाजा कैबिनेट सचिवालय ने इस बाबत कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) को उन वजहों का पता लगाने को कहा है, जिनकेचलते नौकरियों में अल्पसंख्यकों का हिस्सा घटने के संकेत हैं। मुसलमानों की शैक्षिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर जस्टिस सच्चर कमेटी की सिफारिशों पर अमल की रोशनी में सरकार ने केंद्र की सभी सरकारी और अ‌र्द्ध सरकारी नौकरियों में अल्पसंख्यकों को पर्याप्त मौका देने की बात कही थी। डीओपीटी ने 2007 में संबंधित विभागों और मंत्रालयों को इसके लिए जरूरी निर्देश भी दिए थे(दैनिक जागरण,दिल्ली,4.6.11)।

लखनऊ विविःएमएड में ऑनलाइन आवेदन शुरू,पीजी प्रवेश प्रक्रिया 20 जून से

Posted: 04 Jun 2011 10:45 AM PDT

लखनऊ विविद्यालय में एमएड में प्रवेश के लिए ऑनलाइन आवेदन शुरू हो गये हैं। अभ्यर्थी 14 जून तक फार्म जमा कर सकते हैं। यह जानकारी शिक्षा विभाग के अध्यक्ष प्रो. अखिलेश चौबे ने दी।
लखनऊ विविद्यालय में पीजी प्रवेश प्रक्रिया 20 जून से शुरू होगी। इसके लिए सीटों का ब्योरा तैयार कर लिया गया है और मिशन एडमिशन को आगे बढ़ाने के लिए मुख्य प्रवेश समन्वयक को प्रवेश समिति की मंजूरी का इंतजार है। इसके साथ ही स्नातक अंतिम वर्ष के रिजल्ट को लेकर भी विविद्यालय प्रशासन पीजी की प्रवेश प्रक्रिया शुरू करने को लेकर अचकचा रहा है। विविद्यालय में दाखिला के मुख्य समन्वयक प्रो. पद्मकांत ने बताया कि सभी विभागाध्यक्षों से सूचनाएं लेकर सीटों का ब्योरा आरक्षण लगाकर तैयार कर लिया गया है। सभी पाठ्यक्रमों में प्रवेश की अर्हता का निर्धारण भी हो चुका है। प्रवेश समिति की बैठक में ब्योरा रखने के बाद उसकी मंजूरी मिलते ही तिथियों का एलान कर दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि इसमें एक अहम मामला परीक्षाफल भी है। स्नातक के अंतिम वर्षो का रिजल्ट आने के बाद ही इसको आगे बढ़ाया जा सकेगा। इस बार परास्नातक में भी सीटों की कटौती की जा सकती है। विविद्यालय ने पहले ही एक प्रयोगात्मक विषय के लिए 60 और गैर प्रयोगात्मक के लिए 80 सीटों के बैच तय कर दिया है और .

सीटों का ब्योरा तैयार प्रवेश समिति की मंजूरी का इंतजार

अधिकतम पांच बैच ही मिलेंगे। कई विभागाध्यक्षों ने तो पहले ही सीटों का कम करके प्रवेश कमेटी को ब्योरा मुहैया कराया है, इसमें और भी कटौती हो सकती है(राष्ट्रीय सहारा,लखनऊ,4.6.11)।

बिहारःसचिवालय सहायकों की प्रारंभिक परीक्षा सितम्बर तक

Posted: 04 Jun 2011 10:30 AM PDT

बिहार कर्मचारी चयन आयोग द्वारा अगले अगस्त माह के अंतिम सप्ताह या सितम्बर के प्रथम सप्ताह में बिहार सचिवालय सेवा के सहायकों की नियुक्ति के लिए प्रारम्भिक परीक्षा (पीटी) के आयोजन की तैयारी में जुट चुका है। राज्य सरकार सचिवालय स्थित विभिन्न विभागों के लिए करीब 22 सौ सचिवालय सहायकों की नियुक्ति करने का फैसला पहले ही ले चुकी है। आयोग के आधिकारिक सूत्रों के अनुसार सचिवालय सहायकों की नियुक्ति के लिए पटना उच्च न्यायालय द्वारा आवेदन की तिथि 31 मई तक बढ़ाये जाने से आवेदन की अंतिम तिथि तक आयोग के पास 56 हजार से भी अधिक आवेदन प्राप्त हुए हैं। कुल मिलाकर इस प्रतियोगिता परीक्षा के लिए आयोग को करीब चार लाख से भी अधिक प्राप्त हुए हैं। आयोग के सूत्रों ने बताया कि 31 मई तक प्राप्त आवेदनों की छंटाई का काम युद्धस्तर पर चल रहा है। अगले कुछ दिनों में इस काम के पूरा होने बाद आयोग प्रारम्भिक परीक्षा की तैयारी में पूरी तरह जुट जायेगा। बता दें कि सचिवालय में सहायकों की कमी के कारण हाल में सहायक के पद से प्रशाखा पदाधिकारी में प्रोन्नत हुए अधिकतर नवप्रोन्नत प्रशाखा पदाधिकारियों को सहायकों का काम भी करना पड़ रहा है(राष्ट्रीय सहारा,पटना,4.6.11)।

ईडब्ल्यू एस कोटे में ही एससी,एसटी कोटे को चुनौती मामले में केंद्रीय विद्यालय को नोटिस

Posted: 04 Jun 2011 10:15 AM PDT

केंद्रीय विद्यालयों में आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग(ईडब्ल्यूएस) कोटे में ही एससी, एसटी कोटा देने के मामले में हाईकोर्ट ने केंद्रीय विद्यालय व अन्य को नोटिस जारी कर जवाब देने का निर्देश दिया है। इस मामले में केंद्रीय मानव संसांधन मंत्रालय के सचिव व दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय को हाईकोर्ट ने 17 अगस्त तक अपना जवाब देने को कहा है। न्यायमूर्ति कैलाश गंभीर की पीठ के समक्ष याची पित जितेंद्र सिंह की ओर से सोशल ज्यूरिस्ट अशोक अग्रवाल व कुसुम शर्मा की ओर से कहा गया कि याची के बेटे को कक्षा एक में दाखिला लेना था और उन्होंने सात केंद्रीय विद्यालयों में ईडब्ल्यूएस कोटे के तहत दाखिले के लिए फार्म भरे लेकिन किसी भी स्कूल में दाखिला नहीं मिला। याचिका में शिक्षा के अधिकार के तहत दाखिला पाने की दलील देते हुए कहा गया कि केंद्रीय विद्यालय द्वारा ईडब्ल्यूएस कोटे के अंदर ही एससी,एसटी कोटा देने का निर्णय कानून के खिलाफ है और मनमाना है। जिरह में कहा गया कि केंद्रीय विद्यालय द्वारा ईडब्ल्यूएस कोटे के तहत ही एससी,एसटी कोटे को समाहित करना गैर कानूनी निर्णय है और इसे हाईकोर्ट को खारिज कर देना चाहिए क्योंकि यह शिक्षा के अधिकार के कानून व मूलभूत अधिकारों के खिलाफ है। जिरह में कहा गया कि इसके अलावा बच्चों को मुफ्त व आवश्यक शिक्षा कानून 2009 के भी खिलाफ है(राष्ट्रीयसहारा,दिल्ली,4.6.11)।

जमशेदपुरःसमायोजन-आरक्षण पर संग्राम

Posted: 04 Jun 2011 10:00 AM PDT

टाटा वर्कर्स यूनियन के संविधान संशोधन को लेकर सुपरवाइजरों के बढ़ते दबाव के बीच अब एक मुहिम चलायी जा रही है, जिसमें सुपरवाइजरों को ज्यादा पावर किसी भी हाल में नहीं देने को कहा गया है. सुपरवाइजरों के समायोजन या आरक्षण देने पर संग्राम की स्थिति उत्पन्न हो रही है. सुपरवाइजरों ने साफ कर दिया है कि बराबर चंदा देते हैं, तो बराबर हक चाहिए.
सुपरवाइजरी यूनिट के सारे पदाधिकारियों ने एक स्वर से साफ कर दिया है कि वे लोग ऐफलिएशन नहीं मानेंगे और किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं. इस बीच भुवनेश्वर से अध्यक्ष रघुनाथ पांडेय जमशेदपुर शनिवार को लौटेंगे. यह संभावना जतायी जा रही है कि उनके आने पर अपनी रिपोर्ट एसके सिंह पेश करेंगे, जो टय़ूब मेकर्स क्लब की बैठक में तैयार किया गये हैं. इसके बाद ही किसी तरह का कोई फ़ैसला लिया जायेगा. दूसरी ओर, वर्कर्स यूनिट की कमेटी मीटिंग में संविधान संशोधन को पारित कराने के बावजूद अब तक एजीएम नहीं बुलायी जा रही है. बीच का रास्ता निकालने की तैयारी की गयी है.
एजीएम अभी नहीं : डिंडाटाटा वर्कर्स यूनियन के महामंत्री बीके डिंडा ने संविधान संशोधन पर प्रभात खबर से बातचीत में कहा कि एजीएम सुपरवाइजरों से बातचीत करने के बाद ही बुलायी जायेगी. लेकिन यह पूछे जाने पर कि जब कमेटी मीटिंग में संविधान संशोधन को मंजूरी दिला दी गयी, उस वक्त क्यों नहीं सुपरवाइजरों से बातचीत की गयी. इस पर श्री डिंडा ने कहा'नो कॉमेंट्स'.श्री डिंडा से पूछा गया कि वर्कर्स यूनिट से संविधान पारित हो चुका है, अब कोई बाधा तो है नहीं कि एजीएम बुलायी जाये, इस पर श्री डिंडा ने कहा नो कॉमेंट्स(प्रभात खबर,जमशेदपुर,4.6.11).

भागलपुर विविःबीए पार्ट थर्ड एवं पीजी प्रीवीयस की परीक्षा 12 जून को

Posted: 04 Jun 2011 09:45 AM PDT

तिलकामांझी भागलपुर विवि द्वारा 31 मई को स्थगित बीए पार्ट र्थड एवं पीजी प्रीवीयस की परीक्षा की नई तिथि की घोशणा कर दी गई है। अब यह परीक्षा आगामी 12 जून को ली जाएगी। पीजी प्रीवीयस की परीक्षा 15 जून को ली जाएगी। परीक्षा नियंत्रक डा मधुसूदन झा ने नई तिथि की घोषणा करते हुए यह जानकारी दी(राष्ट्रीय सहारा,भागलपुर,4.6.11)।


बिहारःपुस्तकालयाध्यक्षों की भर्ती का रास्ता साफ

Posted: 04 Jun 2011 09:30 AM PDT

सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के आलोक में राज्य के उच्च और उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में पुस्तकालयाध्यक्षों के नियोजन के लिए मानव संसाधन विकास विभाग ने हरी झंडी दे दी है। राज्य में 2597 पदों पर पुस्तकालय अध्यक्षों की नियुक्ति की जानी है। इसमें 937 पदों पर बहाली की जा चुकी है। इसके लिए विभाग ने कार्यक्रम की रूपरेखा भी तय कर दी है। इसके तहत 13 जून से लेकर 18 जून तक मेधा सूची बनायी जायेगी। 20 जून को मेधा सूची का प्रकाशन होगा। मानव संसाधन विकास विभाग ने 22 से 29 जून तक प्रकाशित मेधा सूची पर आपत्ति देने तथा 30 जून से 1 जुलाई तक आपत्ति पर निराकरण करने की तिथि तय की है। 2 जुलाई को मेधा सूची का अंतिम प्रकाशन होगा तथा 4 एवं 5 जुलाई को मेधा सूची के आधार पर अभ्यर्थियों के प्रमाण पत्र का सत्यापन होगा। विभाग ने काउंसिलिंग के उपरांत नियोजन पत्र के वितरण की तिथि भी तय कर दी है। 8 जुलाई को नगर निगम, 9 जुलाई को नगर परिषद, 11 जुलाई को नगर पंचायत तथा 12 जुलाई को जिला परिषद के अभ्यर्थियों को नियोजन पत्र दिया जायेगा। कोर्ट के निर्देश पर अलगप्पा विश्वविद्यालय तथा देवघर हिन्दी विद्यापीठ द्वारा प्रदत्त डिग्रीधारी अभ्यर्थियों का काउंसिलिंग के उपरांत परिणाम को मुहरबंद रखा जायेगा। मालूम हो कि कई अभ्यर्थियों द्वारा कोर्ट में चले जाने के बाद नियोजन प्रक्रिया बाधित हो गयी थी(राष्ट्रीयसहारा,पटना,4.6.11)।

आईआईटी और आईआईएम की गुणवत्ता पर बहस से मूल मुद्दा हाशिए पर

Posted: 04 Jun 2011 09:00 AM PDT

पिछले दिनों आइआइटी और आइआइएम को लेकर दिए गए पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश के बयानों से उठे विवादों ने भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों की गुणवत्ता पर नए सिरे से विचार करने के लिए मौका दे दिया है, लेकिन दुर्भाग्यवश पूरा विवाद और चर्चा बिल्कुल एकांगी हो रही है। बहस सिर्फ इस बात पर सिमट कर रह गई कि हमारे आइआइटी और आइआइएम विश्वस्तरीय हैं या नहीं? विवाद की शुरुआत रमेश की इस टिप्पणी से हुई कि आइआइटी और आइआइएम के विद्यार्थी तो विश्वस्तरीय हैं, लेकिन शिक्षक नहीं और यह कि आइआइटी और आइआइएम के शिक्षकों का शोध और शिक्षण में मौलिक योगदान नगण्य है। इस पूरे शोरगुल में एक ज्यादा बहुत महत्वपूर्ण बात जो जाने-अनजाने लोगों की आंखों से ओझल हो गई और जो इस देश के आम अवाम से जुडी हुई है वह थी इस बात का इशारा कि आहिस्ता-आहिस्ता सरकार उच्च शिक्षा से पांव खींचने वाली है। जयराम रमेश का यह कथन कि हम सरकारी क्षेत्र में एक विश्व स्तरीय अनुसंधान केंद्र की स्थापना नहीं कर सकते हैं, सरकारी सेट-अप युवा लोगों को कभी नहीं आकर्षित कर सकते हैं, बताता है कि हमें इस मसले पर नए सिरे से ध्यान देने की जरूरत है। रमेश ने इसके लिए पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप की वकालत की। इस पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप से कोई असहमति नहीं। देश की विशाल जनसंख्या और जरूरतों के मद्देनजर अब समय आ गया है कि विभिन्न सामाजिक विकास के कार्यक्रमों में निजी क्षेत्र आगे आएं, क्योंकि निजी क्षेत्र की कमाई और मुनाफे में अंतत: इस देश के संसाधनों का भी इस्तेमाल होता है। अत: शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और विकास आदि सोशल सेक्टर से वे मुंह मोड़ नहीं सकते। यहां तक तो बात ठीक है, लेकिन सार्वजनिक या सरकारी क्षेत्र को एक तरह से खारिज करते हुए सीधे-सीधे यह कहना कि सार्वजनिक या सरकारी क्षेत्र के संगठन कभी भी श्रेष्ठ संस्थान या संगठन नहीं बन सकते, न केवल सही नहीं है, बल्कि खतरनाक भी है। दुनिया के अनेक देशों में सार्वजनिक या सरकारी क्षेत्र के संस्थानों ने अपना परचम लहराया है। अमेरिका के निजी क्षेत्र के विश्वविद्यालय हार्वर्ड, स्टेनफोर्ड या यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिल्वेनिया अगर विश्वस्तरीय हैं तो सार्वजनिक क्षेत्र के यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन या यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया आदि विश्वविद्यालय भी उसी टक्कर के हैं। फिर जिस चीन के छह संस्थान टॉप 200 में हैं, उनमें सभी सरकारी क्षेत्र के ही हैं। कुछ ऐसा ही फ्रांस, जर्मनी या स्कैंडिनेवियन देशों में भी है। अपने यहां भी देखें तो इसरो, डीआरडीओ आदि संगठन निश्चित रूप से श्रेष्ठ हैं, जिन्होंने तमाम विपरीत परिस्थितियों भी देश के अंतरिक्ष अनुसंधान या मिसाइल कार्यक्रमों को बहुत कम लागत में और सफलतापूर्वक चलाया है। सार्वजनिक या सरकारी क्षेत्र को सिरे से खारिज कर देना ठीक नहीं। इसका यह कतई मतलब नहीं कि सार्वजनिक या सरकारी क्षेत्र के संस्थानों में सब कुछ ठीक है, बल्कि मेरा स्पष्ट मत है कि इन संस्थानों में काफी कुछ गड़बड़ है। सही हल तो यह होगा कि इन्हें दुरुस्त किया जाए। हमारे देश में जहां 40 प्रतिशत से भी ज्यादा लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं और लगभग इतनी ही बड़ी जनसंख्या निम्न मध्यम वर्ग की है, वहां उनके पास उच्च शिक्षा और उसके द्वारा विभिन्न उच्च सेवाओं में प्रवेश ही उच्च गतिशीलता के लिए सबसे सहज माध्यम है। यह सर्वज्ञात है कि देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों और तकनीकी संस्थानों, जो अधिकांश में अभी तक सार्वजनिक या सरकारी क्षेत्र के हैं, ने इस वर्ग के प्रतिभाशाली लोगों के आगे बढ़ने में मदद की है और जो अंतत: देश की उन्नति में ही सहायक हुए। चाहे मिसाइलमैन अब्दुल कलाम हों या पूर्व राष्ट्रपति केआर नारायणन या वर्तमान के अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह या ऐसे हजारों-लाखों डाक्टरों, इंजीनियरों, वैज्ञानिकों, वकीलों, पत्रकारों और उच्च अधिकारियों के उदाहरण दिए जा सकते हैं जिनकी प्रतिभा लुप्त ही रह जाती अगर सार्वजनिक शिक्षा संस्थान न होते, लेकिन आज इन संस्थानों में आमूल-चूल बदलाव की जरूरत है। इस गड़बड़ी के लिए कोई अन्य नहीं, बल्कि सबसे पहले सरकारी तंत्र ही जिम्मेदार है। कठघरे में सभी राजनेता हैं। जिस तरह से नेताओं का सार्वजनिक संस्थानों में हस्तक्षेप है और सरकारी अधिकारीयों द्वारा विभिन्न अडं़गे लगाए जाते हैं वह सर्वविदित है। एक-दो उदहारण देखें। अपने देश में वाइस चांसलरों या निदेशकों की नियुक्ति में जिस कदर राजनीतिक हस्तक्षेप होता है वह किसी से छिपा नहीं। दूसरी तरफ इन वाइस चांसलरों या निदेशकों को किसी भी महत्वपूर्ण निर्णय लेने में सरकार या उच्च अधिकारियों का जिस तरह से मुंह ताकना पडता है वह कहीं से भी इन संस्थानों के हित में नहीं है। मैं अमेरिकी विश्वविद्यालयों के अपने अनुभव का साझा करना चाहूंगा। वहां वाइस चांसलर को प्रेसिडेंट कहा जाता है। मैंने देखा कि उनकी नियुक्ति में राजनीतिज्ञों का दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं। संस्थान और शिक्षा की गुणवत्ता के प्रति समर्पित। सार्वजनिक संस्थानों की समस्या का एक अन्य, लेकिन बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू आर्थिक अभाव है, जिसका कुपरिणाम है समुचित इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी। ऐसी स्थितियों में विश्वस्तरीय शिक्षकों या संस्थान की उम्मीद करना बेमानी होगा। अमेरिका या यूरोप के देशों की बात करें तो वहां शिक्षा पर जीडीपी का 6 प्रतिशत खर्च किया जाता है। कुछ देशों में तो यह और भी ज्यादा है, जबकि अपने यहां यह अभी भी 4 से 5 प्रतिशत के बीच ही है। उन देशों में उच्च शिक्षा के बिना भी उच्च गतिशीलता के अवसर मौजूद हैं, जबकि अपने यहां बहुसंख्यक जनता के पास इसके सिवा और कोई चारा नहीं और यह वर्ग कम फीस वाले सार्वजनिक संस्थाओं में ही जा सकता है। समय आ गया है कि सार्वजनिक शिक्षा संस्थानों को दुरुस्त किया जाए(निरंजन कुमार,दैनिक जागरण,4.6.11)।

ऑक्सफोर्ड में पहली बार शुरू हुआ पीजी में अंग्रेजी पाठ्यक्रम

Posted: 04 Jun 2011 08:45 AM PDT

ब्रिटेन के प्रतिष्ठित ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पहली बार अंग्रेजी भाषा में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम शुरू हुआ है। इस विश्वविद्यालय में अंग्रेजी की उच्च शिक्षा लेने वालों के लिए आवेदन की प्रक्रि या अक्टूबर, 2011 से मार्च, 2012 तक चलेगी। इस दौरान स्नातक में उत्तीर्ण छात्र प्रवेश के लिए आवेदन कर सकते हैं। इससे पहले ऑक्सफोर्ड में स्नातकोत्तर स्तर पर अंग्रेजी पाठ्यक्रम नहीं था। विश्वविद्यालय ने इस नए पाठ्यक्र म के लिए अपना पूरा सहयोग देने का वादा किया है। मेधावी छात्रों के लिए छात्रवृत्ति की भी व्यवस्था की गई है(राष्ट्रीय सहारा,4.6.11 में लंदन की रिपोर्ट)।

बिहारःअगले माह से मिलेगा शिक्षक पात्रता परीक्षा फार्म

Posted: 04 Jun 2011 08:30 AM PDT

बिहार प्रारंभिक शिक्षक पात्रता परीक्षा के लिए आवेदन पत्र वितरण का कार्य अगले माह से आरंभ होगा। आवेदन पत्र का वितरण अब अनुमंडल स्तर तक किया जायेगा। इसके लिए मानव संसाधन विकास विभाग नये सिरे से कार्यक्रमों की रूपरेखा प्रकाशित करेगा। जनता दरबार के बाद पत्रकारों से बातचीत करते हुए मानव संसाधन विकास विभाग के प्रधान सचिव अंजनी कुमार सिंह ने बताया कि इस बार किसी तरह की चूक न हो, इसकी व्यापक व्यवस्था की जा रही है। उन्होंने बताया कि नये सिरे से कार्यक्रमों की रूपरेखा तय करने तथा अन्य समस्याओं पर विचार करने के लिए राज्य भर के जिला शिक्षा पदाधिकारियों और जिला शिक्षा अधीक्षकों की 8 एवं 9 जुलाई को बैठक आयोजित की गयी है। उन्होंने कहा कि बिहार प्रारंभिक शिक्षक पात्रता परीक्षा के लिए परीक्षा आवेदन पत्र और सूचना बुलेटिन का वितरण कार्य शुरू किया गया था। परंतु जिलों में आवेदन पत्र प्राप्त करने हेतु अनुमान से अधिक संख्या में आवेदकों के आने के कारण आवेदन फार्म वितरण में कठिनाई हुई। इस कारण इस प्रक्रिया को तत्काल स्थगित कर दिया गया। अब नये सिरे से कार्यक्रम को तय किया जाना है। परीक्षा को लेकर सभी जिला पदाधिकारियों को विस्तृत रिपोर्ट लेकर बैठक में आने को कहा गया है। उन्होंने बनने वाले प्रत्येक वितरण केन्द्र की संख्या तथा रखरखाव के लिए तैनात होने वाले पदाधिकारियों की सूची भी लाने का निर्देश दिया है। प्रधान सचिव ने कहा कि आवेदन पत्र के वितरण में यह ध्यान रखा जाना है कि काउन्टर की संख्या इतनी होनी चाहिए कि किसी भी आवेदक को अधिक समय तक पंक्ति में न खड़ा होना पड़े। उन्होंने कहा कि आवेदन पत्रों का वितरण एवं उनकी प्राप्ति साथ-साथ नहीं की जायेगी। पहले निर्धारित अवधि तक आवेदन पत्र वितरित किया जायेगा एवं बाद में निर्धारित अवधि तक भरे हुए आवेदनों को उन्हीं केन्द्रों पर प्राप्त किया जायेगा, जहां से उनका वितरण किया गया था। प्रधान सचिव ने सभी क्षेत्रीय शिक्षा उप निदेशकों को तैयारियों का खुद जायजा लेने का भी निर्देश दिया है(राष्ट्रीय सहारा,पटना,4.6.11)।

परीक्षा परिणाम की खुशी में न भूलें शिक्षकों को

Posted: 04 Jun 2011 07:50 AM PDT

आइसीएसइ, सीबीएसइ का रिजल्ट निकल चुका है. कोई राज्य टॉपर बना, कोई जिला और कोई स्कूल का. सब खुश हैं. होना भी चाहिए. कुछ दिन पहले आइआइटी का रिजल्ट भी निकला. झारखंड से पांच सौ से ज्यादा छात्र आइआइटी के लिए चुने गये. गर्व है इन छात्रों पर. ये सब वे प्रतिभाएं हैं, जिन पर देश का भविष्य टिका है. सवाल है इन छात्रों की सफ़लता के पीछे कौन है?
एक जो खुद छात्र हैं, जो कैरियर के प्रति सजग हैं और रात-दिन मेहनत करते हैं. दूसरे हैं इनके माता-पिता या अभिभावक. ये लोग अपनी सुविधा का ख्याल नहीं कर बच्चों के भविष्य के लिए अपनी कुर्बानी देते हैं. तीसरे हैं स्कूल के शिक्षक. इनकी ही भूमिका सबसे अहम होती है. लेकिन अब उन्हें वह सम्मान नहीं मिल रहा है जो इन्हें मिलना चाहिए. कमी दोनों ओर से हो सकती है, लेकिन आज अगर बच्चे सीबीएसइ, आइसीएसइ या आइआइटी में अच्छा रैंक ला रहे हैं, तो इसमें शिक्षकों की मेहनत को किनारे नहीं किया जा सकता.

समय बदल चुका है. अब तो हो सकता है कि आज की पीढ़ी चार-पांच साल बाद अपने शिक्षकों का नाम भी भूल जाये. ऐसा इसलिए क्योंकि शिक्षक-छात्र संबंध में वह अपनापन नहीं रह गया है, जो पहले था. 25-30 साल पहले छात्रों के रिजल्ट के लिए जितने चिंतित माता-पिता होते थे, उनसे ज्यादा चिंता शिक्षकों को होती थी. ऐसा इसलिए क्योंकि उन दिनों शिक्षक अपने छात्रों को अपना बच्चा समझ कर पढ़ाते थे, उनकी चिंता करते थे. अब भी कई ऐसे शिक्षक हैं लेकिन ये अपवाद ही हैं. 1980 में मैंने हिंदू हाई स्कूल, हजारीबाग से मैट्रिक की परीक्षा पास की थी. क्या समय था? आज भी मैं एक-एक शिक्षक का नाम अंगुली पर गिनवा सकता हूं. 31 साल बीत गये. लेकिन उनके साथ व्यतीत किये गये एक-एक पल मुझे याद हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि इन शिक्षकों ने मुझे बहुत कुछ दिया था.
1976 से 1980 तक उस स्कूल में था. एक शिक्षक थे श्री बलभद्र सहाय. देखने से ही श्रद्धा से सिर झुक जाता था. हमलोग पैर छू कर प्रणाम करते थे. गणित के बहुत बड़े विद्वान थे. एडवांस मैथेमैटिक्स पढ़ाते थे. व्यवहार कुशल थे. बेहद सादा जीवन. साइकिल से कदमा से रोज स्कूल आते थे. दूरी होगी छह-सात किलोमीटर. जिक्र इसलिए कर रहा हूं कि उनकी जगह कोई और होता तो दूसरी जिंदगी जी रहा होता. उनके बेटे अमेरिका में बड़े वैज्ञानिक थे. नाम था श्री अशोक (टाइटिल मुझे याद नहीं हैं, लेकिन 30-35 साल पहले हमलोगों को बताया जाता था कि पढ़ो, पढ़ो और अशोक जैसा बनो, उन पर सब को नाज था). सर (श्री बलभद्र सहाय) के साथ चार-पांच साल रहा. कभी नहीं लगा कि इतने बड़े वैज्ञानिक के पिता हैं. कभी साइकिल नहीं छोड़ी. मेरे पास करने के पहले ही वे रिटायर हो गये थे. बाद में उनसे मिलने घर भी गया था. यानी उन दिनों शिक्षकों से कितना जुड़ाव होता था. ऐसे ही एक शिक्षक थे पं नारायण मिश्र. संस्कृत पढ़ाते थे. हमलोग को काफ़ी मारते भी थे, मानते भी थे. लेकिन वही अपनापन. बुढ़ापे में पानी भरते समय कुआं में गिर गये, हड्डी टूट गयी थी. रिटायर हो चुके थे लेकिन हम छात्रों को जब सर के बारे में मालूम हुआ, तो मिलने पहुंच गये थे उनके घर.
ये सब जुड़ाव के उदाहरण हैं. (नारायण सर अब इस दुनिया में नहीं हैं. माफ़ करेंगे सर, एक दिन आप क्लास में लेट से आये और हमलोग आपका इंतजार करते रहे थे. इससे मैं गुस्से में था. दूसरे या तीसरे दिन जब क्लास लेनेवाले थे (एक विज्ञान भवन हुआ करता था), आपके आने के पहले ही मैं सभी छात्रों को लेकर हॉल के पीछे मैदान में चला गया था, आप इंतजार करते रहे और तंग होकर लौट कर चले गये. मेरी मंशा आपको तंग करने की नहीं थी, मैं ही मॉनिटर था, इसलिए आप भी समय का पालन करें, यही संदेश आपको देना था).एक बेहद सीधे-साधे और अध्यात्म में भरोसा करनेवाले शिक्षक थे श्री भवसागर प्रसाद. हिंदी पढ़ाते थे, श्री कन्हैया प्रसाद अंगरेजी, श्रीमती मंजूला शर्मा हिंदी, श्री लाल मोहन प्रसाद फ़िजिक्स, श्री शंभू प्रसाद केमेस्ट्री, श्री नंद किशोर प्रसाद (एनसीसी टीचर), श्री बद्री प्रसाद (अंगरेजी, वे ही प्रिंसिपल भी थे), श्री कृष्ण मुरारी प्रसाद (समाज अध्ययन), श्री सच्चिदानंद (केमेस्ट्री, लैब) पढ़ाते थे. 31 साल बाद इन नामों और विषयों को गिनाने के पीछे मकसद है. हमने उन्हें याद रखा है. इनमें से सिर्फ़ दो से ही मैं बाद में मिल पाया. इसके विपरीत संत कोलंबा कॉलेज में मुझे पढ़ानेवाले शिक्षकों में से बहुत कम के नाम मुङो याद हैं. प्रो आरएस प्रसाद हेड ऑफ़ डिपार्टमेंट (मैथ) थे. डॉ आरवाइ प्रसाद (आर्गेनिक केमेस्ट्री पर जिन्होंने कई किताबें लिखीं), प्रो केपी कमल, प्रो छेदी राम का नाम ही याद कर पा रहा हूं. यानी स्कूल की तुलना में काफ़ी कम. साफ़ कह सकता हूं कि जितना जुड़ाव स्कूल के टीचरों से था, उतना कॉलेज के शिक्षकों से नहीं हुआ.मानता हूं कि शिक्षकों को किसी हाल में नहीं भुलना चाहिए. समय भले बदलता जाये, लेकिन उनके आदर में कोई कमी नहीं होनी चाहिए. शिक्षकों से अगर छात्रों का जुड़ाव गहरा हो, तो वह छात्र कभी भटक नहीं सकता. बेहतर है आज जो छात्र भटक रहे हैं, वे अच्छे शिक्षकों से दिल से जुड़ जायें. कोई न कोई रास्ता निकल आयेगा(अनुज सिन्हा,प्रभात खबर,28 मई,2011).

गुजरातःअच्छे अंक न आने के डर से की आत्महत्या जबकि वह था टॉपर!

Posted: 04 Jun 2011 07:30 AM PDT

सन्नी को लग रहा था कि इस बार 10वीं की परीक्षा में उसके अच्छे अंक नहीं बन पाएंगे और इसी डर के चलते उसने आत्महत्या जैसा कदम उठा लिया, जबकि वह शहर के टॉपर्स में से एक था।

यह करुण घटना है राजकोट, खत्रीवाड क्षेत्र की, जहां एक कार ड्राईवर निलेशभाई जोशी के 15 वर्षीय पुत्र सन्नी ने यह सोचकर आत्महत्या कर ली कि परीक्षा में उसके अच्छे प्रतिशत नहीं आ पाएंगे। सन्नी 10वीं कक्षा का विद्यार्थी था और बीते गुरुवार को 10वीं बोर्ड का रिजल्ट घोषित होना था। सन्नी ने रिजल्ट आने के एक दिन पहले यानी बुधवार की सुबह रामनाथ मंदिर के पास रामनाथ पुल से नदी में छलांग लगाकर आत्महत्या कर ली।


परिजनों के अनुसार सन्नी मंगलवार की शाम को ही घर से कहीं लापता हो गया था। रात भर उसकी खोज की गई, लेकिन उसका कहीं कोई अता-पता नहीं चला। परिजनों ने उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज कराई और बुधवार की शाम को पुलिस ने सन्नी की लाश नदी से बरामद की।
जानकारी के अनुसार सन्नी हमेशा से स्कूल में टॉपर रहा। लेकिन इस बार उसे यह डर सता रहा था कि 10वीं बोर्ड की परीक्षा में उसके अच्छे माक्र्स नहीं आ पाएंगे और उसने रिजल्ट आने के एक दिन पहले ही आत्महत्या कर ली। लेकिन जब गुरुवार को रिजल्ट आया तो पता चला कि 90 प्रतिशत अंकों के साथ वह टॉपर रहा। इसके साथ ही सन्नी को गणित में 100 में से 100 अंक प्राप्त हुए हैं(दैनिक भास्कर,राजकोट,3.6.11)।

प्रभात खबर जर्नलिज्म प्रोग्राम का प्रवेश-परीक्षाफल

Posted: 04 Jun 2011 07:10 AM PDT

प्रभात खबर जर्नलिज्म प्रोग्राम के लिए 29 मई 2011 को संपन्‍न हुए प्रवेश परीक्षा का रिजल्‍ट आ गया है. बड़ी संख्‍या में प्रतिभागियों ने हिस्‍सा लिया था. लेकिन तय मानदंड को ध्‍यान में रखते हुए निम्नलिखित छात्रों का चयन किया गया हैः
सरदार सीमरनजीत सिंह
राजीव कुमार झा
संतोष कुमार शर्मा
सुरूची कुमारी
सुजीत राज
वैभव कुमार
नितिन कुमार चौधरी
मिथलेश कुमार


उपरोक्‍त सभी को सूचित किया जाता है कि :
नामांकन 6 जून से 11 जून 2011 के बीच करा लें.
समय - सुबह 10.30 से दोपहर 3.30 तक.
नामांकन के लिए अपने शैक्षणिक प्रमाण पत्र की मूल प्रति के साथ तीन फोटो लाना अनिवार्य है.
कक्षाएं 13 जून 2011, सुबह 10.00 बजे से पीकेआइएमएस में होंगी(प्रभात खबर,रांची).

12वीं में भी सीसीई पद्धति!

Posted: 04 Jun 2011 06:50 AM PDT

दसवीं में मिले बेहतर परिणाम के बाद सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन (सीबीएसई) ने बारहवीं में भी कान्टिन्यूअस एंड काम्पि्रहेंसिव इवैल्युएशन (सीसीई) शैक्षिक पद्धति लागू करने की योजना बनाई है। इसके लिए बोर्ड स्तर पर चर्चा चल रही है और जल्द ही इसके लागू होने की उम्मीद है। वर्ष में एक बार सालाना परीक्षा कराने की जगह बोर्ड ने सीसीई पद्धति के तहत निश्चित अंतराल पर विद्यार्थियों के मूल्यांकन की योजना बनाई। इस वर्ष दसवीं में इसे प्रयोग के तौर पर लागू किया गया। प्रयोग की सफलता को देखकर बोर्ड खासा उत्साहित है और बारहवीं में भी इसे लागू करना चाहता है। सीसीई पद्धति के तहत छात्रों का सतत मूल्यांकन किया जाता है। इसके तहत वर्ष में चार मौखिक और दो लिखित परीक्षाओं का प्रावधान है। इन परीक्षाओं में अर्जित अंकों के आधार पर ही विद्यार्थियों का वार्षिक परिणाम तैयार किया जाता है। वर्ष भर मूल्यांकन पद्धति लागू होने से विद्यार्थियों पर भी पढ़ाई का बोझ हावी नहीं होता। हर माह होने वाली परीक्षाओं से बोर्ड परीक्षा के लिए उनकी तैयारी बेहतर हो जाती। साथ ही इस पद्धति में विद्यार्थियों के व्यक्तित्व विकास पर जोर दिया जाता है। सीबीएसई के जिला समन्वयक डॉ.जावेद आलम बताते हैं कि दसवीं में सीसीई पद्धति लागू करने से विद्यार्थियों को बहुत फायदा हुआ है। किसी एक परीक्षा में बेहतर प्रदर्शन न कर पाने पर विद्यार्थी के पास अगली बार अच्छा प्रदर्शन करने का मौका रहता है। यही सब सोचकर बोर्ड इस तरह का फैसला लेने पर विचार कर रहा है(नीरज सिंह,दैनिक जागरण,लखनऊ,4.6.11)।

बिहारःइंटर का रिजल्ट कल

Posted: 04 Jun 2011 06:30 AM PDT

बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के उच्च माध्यमिक प्रभाग की ओर से इंटरमीडिएट साइंस व कॉमर्स परीक्षा का रिजल्ट पांच जून को जारी किया जायेगा। इंटरमीडिएट आर्ट्स (कला संकाय) का रिजल्ट जून के दूसरे सप्ताह में जारी होने की उम्मीद है। समिति के अध्यक्ष राजमणि प्रसाद सिंह ने बताया कि साइंस व कॉमर्स का रिजल्ट तैयार कर लिया गया है लेकिन आर्ट्स के रिजल्ट में अभी कुछ और समय लगेगा। जल्द ही उसकी भी तिथि की घोषणा कर दी जायेगी(राष्ट्रीय सहारा,पटना,4.6.11)।

गुजरात बोर्डःपरीक्षा दी 3.41 लाख ने, पास हुए 3.55 लाख!

Posted: 04 Jun 2011 06:10 AM PDT

एसएससी परीक्षा के प्रकाशित परिणामों में बोर्ड ने न जाने ऐसा क्या जादू कर दिया कि पास होने वाले विद्यार्थियों की संख्या परीक्षा देने वाले छात्रों से बढ़ गई। जी हां, बोर्ड द्वारा प्रकाशित की जाने वाली पुस्तिका में परीक्षा देने वाले विद्यार्थियों की संख्या जहां 3.41 लाख बताई गई, वहीं पास होने वाले विद्यार्थियों की संख्या 3.55 बताई गई है। तो अब गौर करने वाली बात है कि आखिर पास होने वाले विद्यार्थियों की इतनी बड़ी संख्या आखिर बढ़ कैसे गई?

उल्लेखनीय है कि प्रतिवर्ष बोर्ड के परिणामों को लेकर पूरे प्रदेश के पास व फेल होने वाले विद्यार्थियों की जानकारी से संबंधित एक पुस्तिका गुजरात माध्यमिक व उच्चतर माध्यमिक शिक्षण बोर्ड गांधीनगर द्वारा प्रकाशित की जाती है।

इस बार इस पुस्तिका में दर्शाया गया है कि वर्ष 2011 में हुई एसएससी बोर्ड की परीक्षा में कुल 3,47,894 विद्यार्थियों ने उपस्थिति दर्ज कराई थी, जिसमें से 3,41,398 विद्यार्थी परीक्षा में शामिल हुए, जबकि वहीं पास होने वाले विद्यार्थियों की संख्या 3,55,488 बताई गई है(दैनिक भास्कर,अहमदाबाद,4.6.11)।

महाराष्ट्र में नहीं बदलेगा तबादले का कानून

Posted: 04 Jun 2011 05:50 AM PDT

सरकारी अफसरों के तबादले संबंधी कानून और महाराष्ट्र प्रशासकीय प्राधिकरण (मैट) के अधिकारों को कम करने की गृहमंत्री आर. आर. पाटील की कोशिश फिलहाल पूरी नहीं हो सकेगी।

मंत्रिमंडल ने उनकी मांग को मानने से मना कर दिया है। कैबिनेट सदस्यों ने गृहमंत्री से कह दिया कि वे इस बारे में अभी कोई कार्रवाई न करें।

तबादले के कानून के दुरुपयोग के मुद्दे पर बजट सत्र के दौरान विधानसभा में विस्तार से चर्चा हुई थी। विधायकों ने मांग की थी कि इस कानून में फौरन बदलाव किये जाने चाहिए, क्योंकि इसकी आड़ में सरकारी अफसर मनमानी करने पर उतर गए हैं और इसमें उन्हें मैट से सहारा मिलता है।

किसी भी तबादले को मैट में चुनौती देकर उस पर स्थगन लाना अब आम बात हो गई है। गृहमंत्री ने भी स्वीकार किया था कि कुछ पुलिस अफसर इस कानून का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा था कि महकमे ने हेरोइन के साथ रंगेहाथों गिरफ्तार पुलिस उप-अधीक्षक अशोक ढवले को निलंबित कर दिया था।


लेकिन मैट में अपील कर उसने स्थगन हासिल कर लिया और अब मैट ने उसके पक्ष में फैसला सुनाया है। नतीजा, सरकार को मजबूरन उसे नियुक्ति देनी पड़ी। हमने यहां तक सुना है कि कुछ विशेष वकीलों के मार्फत मैट में अपील करने पर स्थगन फौरन हासिल किया जा सकता है। 
विधानसभा अध्यक्ष दिलीप वलसे पाटील के निर्देश पर गृहमंत्री ने सदन को भरोसा दिलाया था कि सरकार इस बारे में आठ दिन में अपनी नीति स्पष्ट करेगी। लेकिन मंत्रिमंडल ने इस फेरबदल में दिलचस्पी नहीं दिखाई। 

सूत्रों के अनुसार विधानसभा में आश्वासन के आधार पर जब गृहमंत्री ने कैबिनेट में इस मुद्दे पर अनौपचारिक चर्चा शुरू की, तो उनके साथी मंत्रियों ने इसका विरोध किया। उन्होंने साफ कह दिया कि मौजूदा कानून में फेरबदल करने की कोई खास जरूरत नहीं लगती। 

कुछ ने कहा कि कानून कितना भी सख्त कर दिया, लोग उसके गलत इस्तेमाल से नहीं चूकते और ऐसा भी नहीं है कि कानून में बदलाव के बाद शिकायतें आनी रुक जाएंगी। ईमानदार अफसरों को निष्पक्ष काम करने की छूट मुहैया कराने के मकसद से सरकार ने तबादले का कानून बनाया था। 

इसके तहत किसी भी अफसर का तबादला तीन साल से पहले करने पर पाबंदी लगाई गई है। वहीं निलंबन की कार्रवाई के खिलाफ अफसर को हाईकोर्ट की दौड़ न लगानी पड़े, इसलिए मैट की स्थापना की गई थी। 

इससे पहले फरवरी महीने में भी गृहमंत्री मैट के निलंबन, सेवा समाप्ति और तबादले संबंधी अधिकारों को कम करने की घोषणा कर चुके हैं(फैसल मलिक,दैनिक भास्कर,मुंबई,4.6.11)।

डीयूःबदला कंप्यूटर एप्लिकेशन में डिप्लोमा

Posted: 04 Jun 2011 05:30 AM PDT

डीयू के पोस्ट ग्रैजुएट डिप्लोमा इन कंप्यूटर एप्लिकेशन (पीजीडीसीए) कोर्स मंे 12 साल बाद बड़े बदलाव होने जा रहे हैं। अभी यह कोर्स डेढ़ साल का है, जिसकी अवधि घटाकर एक साल की जा रही है। कंप्यूटर साइंस डिपार्टमेंट ने इस बाबत प्रपोजल तैयार किया था, जिसे फैकल्टी ऑफ मैथमैटिकल साइंसेज ने भी मंजूरी दे दी। इन बदलावों को ऐकडेमिक काउंसिल (एसी) की मंजूरी मिलनी बाकी है, जिसके बाद कोर्स का नया स्ट्रक्चर भी लागू हो जाएगा।

कोर्स की टाइमिंग में चेंज

1991 में शुरू हुआ यह कोर्स पहले एक साल का ही था लेकिन 1999 में इसे डेढ़ साल का कर दिया गया लेकिन देखने में आ रहा था कि स्टूडेंट्स को इस कोर्स को करते-करते दो साल लग जात



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Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited-banga.blogspot.com/

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