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Saturday, January 4, 2014

अपना वजूद बचाने खातिर ही कामरेडों की चिकनी चुपड़ी आप के लिए और विचारधारा को भी तिलांजलि बंगाल में खोये जनाधार की वापसी के लिए। लेकिन आप से समझौता करके दीदी यह खेल बिगाड़ सकती हैं

अपना वजूद बचाने खातिर ही कामरेडों की चिकनी चुपड़ी आप के लिए और विचारधारा को भी तिलांजलि बंगाल में खोये जनाधार की वापसी के लिए।


लेकिन आप से समझौता करके दीदी यह खेल बिगाड़ सकती हैं


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास



कोलकाता समेत पूरे बंगाल में आहिस्ते आहिस्ते आप का असर होने लगा है।कामरेड प्रकाश कारत एक सोची समझी रणनीति के साथ आप को वामपंथी विरासत के उभार बतौर चिन्हित कर रहे हैं,जिसका कम से कम मार्क्सवाद से कोई संबंध है ही नहीं है। तीसरे मोर्चे का मामला भी यह नहीं है। जैसा कि कामरेड कारत के आप प्रशंसा के साथ एक ही सांस में तीसरे मोर्चे के संकल्प को दोहराने से लगता है या मीडिया में मोदी को रोकने कि लिहाज से आप पर जारी नयी बहस से प्रतीत होता है। कामरेड मोहम्मद सलीम ने भी टीवी के परदे पर अपने पार्टी महासचिव के साथ एक खास रणनीति के तहतसुर में सुर मिलाया है।


भारतीय राजनीति में माकपा को अपनी प्रासंगिकता बनाये रखनी है तो वाममोर्चे को लोकसभा चुनाव से पहले बंगाल में अपना कोया जनाधार वापस करना है। सुदीप्त हत्याकांड,शारदा फर्जीवाड़ा,कामदुनि बलात्कार कांड जैसे विवादास्पद प्रकरणों में वामदल अपने समर्थकों को सड़क पर उतारने में नाकाम रहे हैं। एक दम ताजा मसला मध्यमग्राम में हिंदी भाषी टैक्सी ड्राइवर की बेटी के साथ दो दो बार बलात्कार के बाद उसे जिदा जला देने का है। इसके खिलाफ वामदल राज्यभर में आंदोलन चलाने की जुगत में थे, लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री और दूसरे राजनीतिक दलों ने वाम दलों का किया गुड़गोबर कर दिया। बिहार सरकार और बिहार के राजनीतिक दलों के बंगाल के अंदरुनी मामले में हस्तक्षेप का आरोप लगाकर मुख्यमंत्री,पुलिस मंत्री और स्वास्थ मंत्री बतौर बुरी तरह घिरी ममता दीदी और उनकी सरकार को बचाव का मौका मिला है और यह अमानवीय घटना अब बिहार बंगाल विवाद की शक्ल अख्तियार कर चुका है।अब इस मामले को बिहार की राजनीति की तरह ज्यादा तुल देने पर बंगाल की आम जनता पर असर उल्टा भी हो सकता है।


वामदलों ने बहुप्रचारित सांगठनिक कवायद के बावजूद नेतृत्व में वही पुराने बूढ़े चेहरो ं को बहाल रखा है और जनपदों में लगातार उनके जनाधार का क्षरण हो रहा है।वाम मोर्चे के विस्तार के लिए अति वामपंथी दलों से भी बातचीत नाकाम हो गयी है।अब बंगाल में भाजपा की कीमत पर गहरी होती आप की पैठ से वाम मोर्चा को एक बड़ी लाइफलाइन मिल गयी है। बंगाल में छात्र युवा महिला किसान मजूर नौकरी पेशा पेशेवर बुद्धिजीवी  जैसे मजबूत सामाजिक शक्तियों में वाम दलों का असर निरंतर खत्म होता जा रहा है।अलग अलग समुदायों के वोट बैंक भी तेजी से टूट रहे हैं।इन सभी शक्तियों औरसमुदायों से वाम दलों का अब कोई संवाद नहीं है और न इन्हें ममता दीदी की तरह सीधे खुल्ला मैदान में जंगलमहल से लेकर पहाड़ तक पहुंचकर संबोधित करने वाला कोई नेतृत्व वादलों के पास है।


नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी दोनों को बार बार चुनौती दे रहे हैं कामरेड ,जबिक उनके पांवों तले जमीन लगातार खिसकती जा रही है।इकलौती त्रिपुरा के दम पर वाद दलों को अपनी प्रासंगिकता बनाये रखना मुश्किल हो रहा है तो तीसरे मोर्चे के हवाई किले की क्या कहे। इसके विपरीत बंगाल में तमाम विवादों के बावजूद ममता बनर्जी लगातार मजबूत बनती जा रही हैं और दूसरे राज्यों में भी उनका संगठन बढ़ रहा है। तीसरे मोर्चे के गठन के लिए क्षेत्रीय दलों का जो गठबंधन दीदी बनाने की तैयारी में हैं,उसमें वाम दलों के लिए कोई जगह है नहीं।बाकी वामदलों से दीदी समझौता कर भी लेंगी, लेकिन माकपा से किसी कीमत पर नहीं। बंगाल और केरल में ही सीटें जीतकर माकपा अपनी प्रासंगिकता नये सिरे से स्थापित कर सकती है ,लेकिन वह सिरे से असंभव लग रहा है।


ऐसे में सर्वहारा और वर्गसंघर्ष जैसे बुनियादी सिद्धांतो की बलि देकर ऐन तेन प्रकारेण आप की अगुवाई में तीसरे मोर्चे की पहल दरअसल माकपा की मजबूरी है।जिस तेजी से आप का असर पूरे देश में हो रहा है, उससे बिना ममता बनर्जी के भी वाम समेत तीसरे मोर्चे की अच्छी संभावना है। लेकिन इसमें मुश्किल है कि अल्पसंख्यक वोट बैंक के खातिर दीदी अगर संघ परिवार के साथ खड़ी नहीं हो सकती तो दो तीन सीटें बंगाल में देकर आप के साथ ज्यादा विश्वसनीय गठबंधन बनाकर दीदी खुद माकपाई रणनीति के गीले कार्तूज में तब्दील कर सकती है। वैसे आप ने भी कह दिया है कि माकपा के साथ तीसरा मोर्चा बनाने में उसकी कोई दिलचलस्पी नहीं है। हो भी तो कैसे, खुद अपनी सीटें निकालने के लाले पड़ रहे हैं वाम दलों को। मायावती के नेतृत्व में पिछले लोकसभा में मायावती को भावी प्रधानमंत्री बतौर पेश करके वामदलों केतीसरे मोर्चे का जो फ्लाप शो हुआ और चालाक मायावती ने जो वामदलों से हमेशा के लिए किनारा करके कांग्रेस के साथ गठबंधन कर लिया,यूपीए सरकार को प्रतिद्वंद्वी सपा के समर्थन के बावजूद,इस इतिहास को आप के प्रबंधकीय दक्ष थिंक टैंक तवज्जो न दे.ऐसा हो ही नही सकता।इसके उलट अगर आप देशभर में अपने उम्मीदवार खड़े करके कांग्रेस और भाजपा को शिकस्त देने के विकल्प पर गंभीरता से विचार कर रही है  तो उसे बंगाल में भी दो चार सीटें निकालनी होंगी और यह चमत्कार दीदी के सहयोग के बिना नीं हो सकता।


फिरभी कामरेडों को उम्मीद है कि आप को वे पटा लेंगे और इसी लिए उनकी यह चिकनी चुपड़ी।


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