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Friday, November 21, 2014

हमें संविधान दिवस तक मनाने की इजाजत नहीं है,ऐसी है हमारी भारतीय नागरिकता और ऐसा है बाबासाहेब नामक हमारा एटीएम! समझ लीजिये कि भोपाल गैस त्रासदी, बाबरी विध्वंस,सिख संहार,गुजरात नरसंहार में अगर अमेरिका नागरिक मारे गये होते तो क्या होता! हम भारतीय नागरिक कीड़ों मकोडो़ं की तरह नर्क जीते हुए कीड़ों मकोड़ों की तरह देश विदेश में रोज रोज मरते हैं,मारे जाते हैं,यह सिर्फ इसलिए कि हमें अपने लोकतंत्र की ताकत का अहसास नहीं है। इसीलिए 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाना उस अनिवार्य अहसास के लिए अनिवार्य समझें। पलाश विश्वास

हमें संविधान दिवस तक मनाने की इजाजत नहीं है,ऐसी है हमारी भारतीय नागरिकता और ऐसा है बाबासाहेब नामक हमारा एटीएम!


समझ लीजिये कि भोपाल गैस त्रासदी, बाबरी विध्वंस,सिख संहार,गुजरात नरसंहार में अगर अमेरिका नागरिक मारे गये होते तो क्या होता!


हम भारतीय नागरिक कीड़ों मकोडो़ं की तरह नर्क जीते हुए कीड़ों मकोड़ों की तरह देश विदेश में रोज रोज मरते हैं,मारे जाते हैं,यह सिर्फ इसलिए कि हमें अपने लोकतंत्र की ताकत का अहसास नहीं है।


इसीलिए 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाना उस अनिवार्य अहसास के लिए अनिवार्य समझें।



पलाश विश्वास

हमें 26 नवंबर को संविधान दिवस तक मनाने की इजाजत नहीं है,ऐसी है हमारी भाकतीय नागरिकता और ऐसा है बाबासाहेब नामक हमारा एटीएम!


हर राज्य में लाखों दुकाने अंबेडकर के एटीएम में बसी हैं और हजारों राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय संगठन हैं अंबेडकर के नाम।


अंबेडकर की नामावली ओढ़कर मंत्री,सांसद,विदायक से लेकर गांव प्रधानों की फौजें भी अब लाख पार हैं तो तरह तरह के आरक्षण कोटा के तहत बाबा अंबेडकर के नाम सरकारी कर्मचारी करोड़ोंकी तादाद में हैं।


स्कूलों से लेकर विश्वविद्यालयों में पढ़ाई भी अंबेडकर के नाम।


इतने सारे लोगो को बेहद गर्व है कि अंबेडकर ने भारत का संविधान रचा और वे अंध विश्वासी इतने की बाबा साहेब की विचारधारा और उनके आंदोलन के बारे में कोई रचनात्मक आलोचना भी बर्दाश्त नहीं करते।


लेकिन वे तमाम लोग उस बाबासाहेब के संविधान और उस संविधाने के तहत बने भारत लोक गणराज्य की धज्जियां उधेड़ते शासक तबके के रंगभेदी मनुस्मृति राज के गुलाम ऐसे कि उन्हें याद भी नहीं है कि 26 नवंबर,1947 को भारत राष्ट्र के निर्माण के तहत भारतीय संविधान को भारतीय जनता ने एक राष्ट्र की हैसियत से अंगीकार किया था और तब से हमारे तमाम जनप्रतिनिधि उसी संविधान के तहत राजकाज चलाते हैं।


हम उस संविधान का महिमामंडन नहीं करते लेकिन जो सुधारों के नाम पर मुक्तबादारी अबाध विदेशी पूंजी का एकाधिकारवादी जनसंहारी आक्रमण है,उसके मध्य नागरिक मानवाधिकारों,प्रकृति और पर्यावरण और मनुष्यता के हक हकूक के लिए उस संविधान एक तहत नागरिकों के मौलिक अधिकारों को आगामी 26 नवंबर पर खुल्ले राजमार्ग पर सेलिब्रेट करने की इजाजत चाहते हैं।


कोलकाता महानगर में कोलकाता मेट्रो चैनल,जहां रोजाना राजनीति को जमावड़ा करने की इजाजत मिलती है,वहां से लेकर महज एक किमी दूर अंबेडकर प्रतिमा तक पदयात्रा की अनुमति भी हमें कोलकाता पुलिस से नहीं मिल सकी है,जबिक बैंकिंग वेलफेयर एसोसिएशन की ओर से बारकायदा तमाम अंबेडकरी गैरअंबेडकरी संगठनों ने कोलकाता के पुलिस कमिश्नर से लेकर हेयर स्ट्रीट ताने तक इसकी गुजारिश की।


वे राजनीतिक दलों के कार्यक्रम का पहले से तय कार्यक्रमों का हवाला दे रहे हैं।


मतलब यह कि राजनीति अहम है।


न लोकतंत्र चाहििए और न संविधान।


हम देश भर के देशभक्त भारतीय नागरिकों से सभी भारतीय भाषाओं में अपील कर चुके हैं कि 26 नवंबर को भारतीय संविदान दिवस मनाते हुए अपने नागरिक मानवाधिकारों, प्रकृति पर्यावरण के हक हकूक और भारतीय लोकतंत्र का उत्सव मनाते हुए देश बेचो राष्ट्रद्रोही धर्मोन्मादी ब्रिगेड को भारतीय नागरिकों की ताकत का इजहार करें।


किसी दल या संगठन का बैनर लेकर नहीं,किसी अस्मिता या पहचान के तहत नहीं,विशुद्ध भारतीय नागरिक के तौर पर अपने अधिकारों का उत्सव मनायें संविधान दिवस 26 नवंबर को।


कोलकाता पुलिस ने भले इजाजत न दी हो,लेकिन कोलकाता में यह संविधान का नागरिकता उत्सव जरुर मनाया जायेगा और बाकी देश में भी।


अब यह आप पर है कि आप इसे कैसे मनायेंगे या नहीं मनायेंगे।


जो जल जंगल जमीन समुंदर पहाड़ों से बेदखल खदेड़े जा रहे हैं रोज रोज,मैं उनकी बात नहीं करता।


मैं उनकी बात भी नहीं करता जो आंतकवादी,उग्रवादी, राष्ट्रद्रोही साबित कर दिये जाने के बाद देश भर में आये दिन मारे जा रहे हैं।


मैं उनकी बात भी नहीं कर रहा जिन्हें इस भारतीय लोक गणराज्य के कानून के राज,उसके संविधान और लोकतंत्र का स्पर्श भी नसीब नहीं होता।


मैं उनकी बात नहीं कर रहा जिन्हें उनकी बेशकीमती जमीन से बेदखल करने के लिए बार बार भारत की केसरिया कारपोरेट सरकार एक सौ पांच कानूनों को बदलने की कसरत कर रही है।


मैं उनकी बात नहीं कर रहा, जिनके देश निकाले के लिए नागरिकता कानून, भूअधिग्रहण कानून, पर्यावरण कानून, वनाधिकार कानून.श्रम कानून,बैंकिंग कानून,बीमा अधिनियम,खनन अधिनियम,हिंदू पैनल कोड,मुस्लिम पर्सनल ला वगैरह वगैरह बार बार बदल दिये जाने के कारपोरेट केसरिया उपक्रम मूसलाधार हिमपात है और जिसके तहत हम मध्य एशिया के तेलकुंओं की आग में झुलसते हुए अमेरिकी शीतप्रलय में वातानुकूलित डिजिटल बायोमेट्रिक नागरिक भी हैं।


हम पूर्वोत्तर या कश्मीर की बात नहीं कर रहे हैं,जो सशस्त्र सैन्यबल विशेषाधिकार कानून के उपनिवेश हैं और जहां मानवाधिकार और नागरिक अधिकार निषिद्ध हैं,जिसके विरुद्ध मणिपुर की माताएं नग्न प्रदर्शन करने के बावजूद भारत मां की अंतरात्मा में कोई हलचल पैदा नहीं कर सकतीं और जहां एक लौह मानवी आफसा वापस लेने के लिए पिछले पंद्रह साल से आमरण अनशन पर हैं।


हम उस आदिवासी भूगोल की बात नहीं कर रहे हैं जो सलवाजुड़ुम के तहत भारतीय सैन्य राष्ट्र के निशाने पर है और जहां स्त्री योनि पर भी नई दिल्ली की सत्ता की छाप अनिवार्य है।


हम इस देश की आधी आबादी यानी पुरुषतांत्रिक वर्चस्व के मातहत छटफटाती शूद्र गुलाम सेक्सस्लेव औरतों की बात भी नहीं कर रहे हैं और न हम कैद बचपन की आजादी की बात कर रहे हैं।


हम मुक्त बाजार के कार्निवाल में सेनसेक्स उछाल की तरह दिनचर्या के अभ्यस्त क्रयशक्ति संपन्न सत्ता समर्थक धनाढ्य नव धनाढ्य और खाते पीते सुविधा संपन्न नागरिकों से पूछते हैं कि बाहैसियत भारतीय नागरिक वोट डालने और एक के बाद एक भ्रष्ट जनविरोधी मुनाफाखोर सरकार चुनने के बावजूद आपकी भारतीय नागरिकता क्या खाने की चीज है या पहनने की या सर पर लगाकर जवानी बरकरार रखने की चीज है,जरा सोच लीजिये।


अब भी वक्त है,सबकुछ खत्म होने से पहले बूझ लें।


आपकी भारतीय नागरिकता क्या खाने की चीज है या पहनने की या सर पर लगाकर जवानी बरकरार रखने की चीज है,जरा सोच लीजिये।



हम किस देश में रह रहे हैं जहां हमारी नागरिकता,हमारी दिनचर्या,हमारी राजनीति, हमारी भाषा,हमारी संस्कृति अस्मिताओं की आंच में रोज रोज जल जलकर खाक हुई जाती है और हम दो परस्पर विरोधी पाखंड धर्म और धर्मनिरपेक्ष खेमे में कैद लोकतंत्र की गुहार लगाते रहते हैं।


हम किस देश में रह रहे हैं,जहां मीडिया में प्रकाशित प्रसारित झूठ और देशद्रोही,प्रकृति विरोदी मनुष्ता के विरुद्ध युद्ध अपराधियों के प्रवचनों से आमोदित गदगदायमान अपने महान लोकतंत्र के महान करतबों और उपलब्धियों की खुशफहमी में बूंद बूंद टपकती विकास रसधारा में निष्णात अपनी क्रयशक्ति के कुंओं में अनंत छलांग में निष्णात,उसके बारे में हम कितना जानते हैं।


हम किस देश में रह रहे हैं, राजकाज जो कारपोरेट लाबिइंग है ,जो प्रत्यक्ष विनिवेश है जो वैश्विक पूंजी के हित हैं और अर्थव्यवस्था जो इस लोकतंत्र की बुनियाद है,उसकी हर सूचना से वंचित टैब,स्मार्टपोन,पीसी और इंटरनेटमध्ये सूचना महाविस्पोट में अपनी ही मौत का सामान जुटा रहे हैं और हत्या कर रहे हैं अपनी कृषि,अपनी आजीविका,अपने मौलिक अधिकारों,अपने तमाम हक हकूक,अपनी निजता,संप्रभुता और अपनी आजादी की।


हम कितने भारतीय नागरिक हैं और हमारे क्या अधिकार हैं,थोड़ा बूझ लें।


मसलन गौर करें कि जिस अमेरिकी कायाक्लप से हम सुपरसोनिक हुए जाते हैं अपनी ही जड़ों से उखड़कर.उस अमेरिका ने नाइन इलेविन में न्यूयार्क के ट्विन टावर के विध्वंस पर जो बाकी दुनिया के खिलाफ आतंक के विरुद्ध अभियान छेड़ा है,उसके इतिहास पर गौर करें।


और बतायें कि अगर भोपाल गैस त्रासदी  न्यूयार्क या वाशिंगगटन या किसी दूसरे अमेरिकी नगर में हुई रहती और यूनियन कार्बाइड कोई अमेरिकी कंपनी न होती और अंडरसन अमेरिका नागरिक न होते,तो क्या होता।


समझ लीजिये कि भोपाल गैस त्रासदी, बाबरी विध्वंस,सिख संहार,गुजरात नरसंहार में अगर अमेरिका नागरिक मारे गये होते तो क्या होता।


हम भारतीय नागरिक कीड़ों मकोडो़ं की तरह नर्क जीते हुए कीड़ों मकोड़ों की तरह देश विदेश में रोज रोज मरते हैं,मारे जाते हैं,यह सिर्फ इसलिए कि हमें अपने लोकतंत्र की ताकत का अहसास नहीं है।


इसीलिए 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाना उस अनिवार्यअहसास के लिए अनिवार्य समझें।


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