रोता है रातों में पाकिस्तां क्या वैसे ही जैसे हिंदोस्तां?
♦ अविनाश
अनुराग कश्यप कहते हैं कि पीयूष मिश्रा हमारे समय के आखिरी रॉक स्टार हें। मैंने उन्हें जब भी देखा है, एक धुन में देखा है। हमारी पहली मुलाकात 1997 की गर्मियों में हुई थी, जब मैं निखिल भैया के साथ नोएडा, सेक्टर 11 के धवलगिरि अपार्टमेंट में रहता था। ग्राउंड फ्लोर का घर था। घर के सामने पीयूष भाई ने अपना स्कूटर खड़ा किया और सीधे घुस आये। गालियां बुदबुदाते हुए। मुझे पता था कि शाम में पीयूष भाई आने वाले हैं, पर ये नहीं पता था कि उनके आने का अंदाज इतना बेलौस होगा। फिर उन्होंने आधी रात तक महफिल जमायी।
हमारे शहर दरभंगा से एक एनएसडीयन थे, कुमार अमृत श्रीकांत। पीयूष भाई ने उनका किस्सा सुनाया कि कैसे वे नाटकीय अंदाज में घर से आयी चिट्ठियां सबको सुनाते थे। उन्हीं दिनों मुझे एक्ट वन से एनके शर्मा ने निकाला था और मेरे इस दुख को पीयूष भाई ने जरा सा भी इंटरटेन नहीं किया था।
फिर हम यूं ही कभी कभी राह चलते मिलते थे। एक बार एनएसडी कैंपस मिले, तो उनके साथ उनका बेटा था। उस वक्त उसकी उम्र कोई चार-पांच साल होगी। पीयूष भाई के कहने पर उसने तीन तरह से सलाम ठोंका… नमस्कार, सलाम वालेकुम और बुद्धं शरणं गच्छामि।
उनकी एकल प्रस्तुतियों में वे बिल्कुल हवा की तरह बहते हुए नजर आते थे। देह की उनकी लय के साथ जबान से निकलने वाले उनके शब्द ऐसे घुले-मिले रहते थे कि दोनों को अलग करके देखना-सुनना-समझना-महसूसना संभव नहीं होता था। एक बार मैंने उनसे कहा कि आपका इंटरव्यू करना है, तो बोले – तुम मुझे जानते कितना हो। यह भी सन 97 की ही बात है।
पीयूष भाई जब भी मिले, एक रौ, एक ट्रांस में डूबे हुए मिले। उन्हें हमने हमारी तरह से मामूली बातें करते हुए कभी देखा ही नहीं। जलप्रपात की तरह शब्द गिराते थे, मगर तमाम शब्दों के अर्थ बड़े साफ और मानीखेज होते थे। अभी जनवरी में हमें वे अनुराग कश्यप के दफ्तर में मिले। उन्होंने अपना वजन कम किया था और सबको बता रहे थे कि उम्र कम कर रहा हूं, तभी तो अनुराग उन्हें हीरो का रोल देगा।
पीयूष भाई ने मुझसे कहा कि पटना यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर फूलगेंदा सिन्हा की योगा पर एक किताब है। उसे कहीं से खोजो, पढ़ो, अमल करो, दो महीने में चर्बी घट जाएगी। अभी जब वे चंडीगढ़ लिटरेचर फेस्टिवल में मिले और मैंने उनसे कहा कि फूलगेंदा सिन्हा की किताब नहीं मिली, तो वे अनमने ढंग से बोले, कोई भी योगा की किताब खरीद के शुरू हो जाओ यार… भैणचो… लगन होनी चाहिए किसी चीज को करने की।
पीयूष भाई जैसी शख्सीयतें मैंने बहुत कम देखी हैं। उनकी प्रतिभा तो हमेशा से असाधारण रही ही है, उनकी उपस्थिति भी हमेशा से असाधारण लगती रही है। चंडीगढ़ लिटरेचर फेस्टिवल के आखिरी दिन वो सबेरे आ गये और पूरे दिन के सत्र को उन्होंने तबीयत से सुना। गौरव सोलंकी की कहानी पर तालियां बजायी और शाम के अपने सत्र के लिए नीलममान सिंह चौधरी के साथ वे मंच पर आये, तो ऑडिएंस के अंधेरे में आंखें गड़ा गड़ा कर गौरव सोलंकी को ढ़ूंढने की कोशिश की और उसकी कहानी को एक बार फिर सैल्यूट किया।
मेरी शाम की ट्रेन थी, इसलिए चंडीगढ़ में उनको पूरा सुन तो नहीं पाया, लेकिन पत्रकार मित्र शायदा ने उनके कार्यक्रम की एक वीडियो-टुकड़ी भेज कर मेरी अनुपस्थिति को इरेज करने की एक कृतज्ञ कोशिश की है। मैंने उनसे गुजारिश की है कि धीरे-धीरे सारे वीडियो शेयर कर दें। शायदा की भेजी जो वीडियो टुकड़ी मैं यहां सार्वजनिक कर रहा हूं, वह पाकिस्तान में रह गयी एक प्रेमिका के नाम हिंदुस्तान के आदमी की चिट्ठी है। रुलाने वाली लाइनें हैं, जरूर सुनिए..
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