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Saturday, April 20, 2013

मुझे कम्युनिस्ट पार्टी से नफरत है :जगदेव प्रसाद एच एल दुसाध

गैर-मार्क्सवादियों से संवाद-10

       मुझे कम्युनिस्ट पार्टी से नफरत है :जगदेव प्रसाद  

                                            एच एल दुसाध

आज का हिन्दुस्तानी समाज साफ़ तौर से दो भागों में बंटा हुआ है-दस प्रतिशत शोषक बनाम नब्बे प्रतिशत शोषित .दस प्रतिशत शोषक बनाम नब्बे प्रतिशत शोषित की इज्ज़त और रोटी की लड़ाई हिन्दुस्तान में समाजवाद या कम्युनिज्म की असली लड़ाई है.हिन्दुस्तान जैसे द्विज शोषित देश में असली वर्ग-संघर्ष यही है.इस नग्न सत्य को जो नहीं मानता वह द्विजवादी समाज का पोषक,शोषित विरोधी और अव्वल दर्जे का जाल फरेबी है.

यदि मार्क्स-लेनिन हिन्दुस्तान में पैदा होते तो दस प्रतिशत ऊँची जात (शोषक) बनाम नब्बे प्रतिशत शोषित (सर्वहारा) की मुक्ति को वर्ग-संघर्ष की संज्ञा देते.डॉ.लोहिया ने अपने ढंग से यही बात कही है.

गांधीजी भी हमारी ही व्याख्या स्वीकार करते-

महात्मा गाँधी के सामने  इस मुल्क को अंग्रेजी साम्राज्यशाही से मुक्त करने की समस्या नहीं रहती तो सामाजिक क्रांन्ति के लिए हमारे ही विश्लेषण को गांधीजी भी वर्ग संघर्ष मानते और शोषकों के खिलाफ शोषितों की लड़ाई की रहनुमाई करते .

तमाम हरिजन ,आदिवासी,मुसलमान और पिछड़ी कहे जानेवाली जातियां शोषित हैं.सभी ऊँची जातियां शोषक हैं.ऊँची जात का बच्चा –बच्चा अमीर हो या गरीब शोषण की कला और  विज्ञान में माहिर है.शराफत या इंसानियत का वह दुश्मन है,सचाई से इसको कोई वास्ता नहीं है.

ईश्वर ,धर्म,वेद ,पुराण,शास्त्र और जाल फरेब शोषक के हाथ शोषण की तलवार हैं.द्विज बुद्धि और ज्ञान कभी दुश्मन हैं.इसी पृष्ठभूमि में शोषित दल की असलियत और अहमियत को समझना है.

हिदुस्तान की सभी राजनीतिक दलों पर ऊँची जात का कब्ज़ा है.सिर्फ मद्रास के डी.एम.के. वहां के शोषितों का दल है.

चौथा आम चुनाव आते-आते इस मुल्क में एक आम ख्याल जग गया कि कांग्रेस तमाम बीमारियों की जड़ है.कांग्रेस को हरा दिया जाय तो हिन्दुस्तान तमाम बीमारी और समस्यायों से मुक्त मुल्क बन जायेगा.इसी ऊँचे ख्याल से चौथे आम चुनाव में आधे राज्यों में कांग्रेस का बहुमत खत्म हो गया. कांग्रेस और गैर-कांग्रेस पार्टियों और उनकी सरकारों की सच्चाई को समझने और परखने का लोगों को मौका मिला.जितनी  निराशा कांग्रेस से आम जनता  को 20-21 वर्षों में हुई थी उससे ज्यादा निराशा कम्युनिस्ट,जनसंघ,संसोपा,प्रसोपा आदि पार्टियों से 90 प्रतिशत शोषितों को चंद महीनों में हुई.मुल्क भर में आम लोगों के मुंह से इन तमाम पार्टियों के बारे में एक ही आवाज़ निकलने लगी.गैर-कांग्रेस पार्टियों से निराश जनता ने कई राज्यों में मध्यावधि चुनाव में कांग्रेस का फिर से बहुमत बना दिया.

इसमे कोई शक नहीं कि कांग्रेस बड़े लोगों की पार्टी है.लेकिन कम्युनिस्ट संसोपा,जनसंघ क्या हैं?

रूस कम्युनिस्ट पार्टी और कम्युनिस्ट आन्दोलन की मां है.रूस में शोषक को कुलांक कहते हैं.उसकी हुकूमत को जारशाही हुकूमत कहते हैं.रूस के कुलांक का नेता जार था.कुलांक और जारशाही के जुल्मों से रूस के शोषितों(सर्वहारा) को मुक्त करने के महान उद्देश्य से शोषित समाज के क्रांतिकारियों ने कम्युनिस्ट पार्टी बनाया .इसके लाल झंडे के नीचे तमाम सर्वहारा वर्ग को संगठित किया और जारशाही पर हमला बोल दिया .लड़ते-लड़ते अन्ततोगत्वा सर्वहारा की विजय हुई.चीन में कम्युनिस्ट पार्टी की भी यही प्रक्रिया रही.   

भारत में कम्युनिज्म के दुश्मन ही कम्युनिस्ट हैं-लेकिन हिंदुस्तान में जो कम्युनिज्म के दुश्मन हैं वही कम्युनिस्ट पार्टी के नेता हैं.हिन्दुस्तानी जार और कुलांक कम्युनिस्ट पार्टी  के महंत हैं.डांगे,नम्बुदरीपाद,ज्योति बासु और अन्य चोटी के कम्युनिस्ट नेता हिन्दुस्तानी जार और कुलांक हैं.ये लोग न सिर्फ द्विज हैं बल्कि इनमें तो कुछ लखपति और करोड़पति हैं.ये कभी सर्वहारा (शोषितों) के दोस्त नहीं हो सकते.मार्क्स-लेनिन आज हिन्दुस्तान में होते तो तमाम कम्युनिस्ट नेताओं को सर्वहारा या शोषित का दुश्मन करार देते.

कम्युनिस्ट पार्टी (दक्षिण पंथी और वामपंथी) का नेतृत्व निछ्क्का द्विजों का नेतृत्व है.रूस वाले अमेरिका को साम्राज्यवादी मानते हैं,लेकिन हिन्दुस्तान में साम्राज्यवादी तो यहाँ के द्विज हैं,जिसने नब्बे प्रतिशत शोषितों को अपना गुलाम बना रखा है.दुर्नितिवश हिन्दुस्तान में कम्युनिस्ट पार्टी इन्ही साम्राज्यवादियों की काठपुतली है.इनसे सर्वहारा क्रांति की उम्मीद अव्वल दर्जे की बेवकूफी होगी.कहीं कुत्ते मांस की रखवाली करते हैं?

कम्युनिस्ट पार्टी का मौजूदा नेतृत्व कम्युनिज्म विरोधी है.मेरे लिए कम्युनिज्म को पसंद करना लाजिमी है लेकिन उतना  ही लाजिमी कम्युनिस्ट पार्टी के मौजूदा नेतृत्व से नफरत करना भी.अगर माओत्से तुंग के हाथ हिंदुस्तान की कम्युनिस्ट पार्टी का नेतृत्व सौंप दिया जाय तो कम्युनिस्ट पार्टी के तमाम नेताओं को 'मोरार जी भाई'का शागिर्द करार दें और प्रतिबंध लगा दें कि भविष्य में द्विजों को कम्युनिस्ट पार्टी की मेम्बरी नहीं दी जाय.

नेतृत्व के मामले में कम्युनिस्ट पार्टी और जनसंघ में कोई फर्क नहीं है.कम्युनिस्ट नेतृत्व की तरह जनसंघ नेतृत्व भी जिले से सूबे तक और सूबे से केन्द्र तक निछक्का द्विजों का नेतृत्व है.मुझे कम्युनिस्ट डांगे और नम्बुदरीपाद तथा जनसंघी अटल बिहारी वाजपेयी और बलराज मधोक में कोई फर्क नज़र नहीं आता .अलबत्ता बाहरी तौर पर दोनों के नारे में जरुर फर्क है.नारे का फर्क तो धोखे की टट्टी है.अगर कम्युनिस्ट पार्टी का नेतृत्व अद्विजों का होता और जनसंघ का नेतृत्व द्विजों का ,तब हम कम्युनिस्ट पार्टी को क्रन्तिकारी और शोषितों का दोस्त व रहबर मान लेते .तब शोषित दल बनाने की जरुरत नहीं पड़ती.शायद मेरे जैसे करोड़ों सर्वहारा उसमें शामिल हो जाते.कम्युनिस्ट पार्टी के लखपति,करोड़पति द्विज नेता ही हिन्दुस्तान में कम्युनिस्ट के सबसे बड़े रोड़े हैं.

डॉ.लोहिया की मौत के बाद संसोपा का नेतृत्व भी द्विज पाखंडियों के हाथ में चला गया.पिछडों के लिए 60 सैकड़ा सुरक्षित करने का सिद्धांत भी कागज में दीमकों की खुराक बन चुका है.नेतृत्व और निर्णायक स्थानों पर इसमें भी द्विज छाये हुए हैं.यह साफ़ है कि इन पार्टियों के हाथ में शासन के सूत्र रहते हिन्दुस्तान में सामाजिक एवं आर्थिक क्रांति नहीं हो सकती.

उपर जो कुछ भी हो मद्रास के डीएमके से ज्यादा कट्टर एक शोषित के एक दल की जरुरत  रष्ट्रीय पैमाने पर है,जो सामाजिक क्रांति को मूल क्रांति समझे.हिन्दुस्तान की विशेष परिस्थिति का यही तकाज़ा है.दूसरे शब्दों में ,हिन्दुस्तान में एक ऐसे राजनीतिक दल बनाने की जरुरत है जो शोषितों का राज ,शोषितों के द्वारा और शोषितों के लिए ,कारगर बनाने का हथियार बन सके.

राष्ट्र के इस महान क्रांतिकारी लक्ष्य को सामने रखकर 25 अगस्त,1967 को बिहार में शोषित दल की स्थापना की गई.इसको राष्ट्रीय स्तर पर संगठित करने की ऐतिहासिक आवश्यकता है.

आर्थिक क्रांति आसान है ,सामाजिक क्रांति कठिन.सामाजिक क्रांति का मतलब है द्विजों के हाथ से शासन की बागडोर शोषितों के हाथ में आना.इस राष्ट्रीय  समस्या को हल करने के लिए ही शोषित दल बनाया गया है.

शोषित दल का सिद्धांत है 90 प्रतिशत शोषितों का राज ,सत्ता पर कब्ज़ा और इस्तेमाल ,सामाजिक-आर्थिक क्रांति द्वारा बराबरी का राज कायम करना.इसलिए शोषित दल  की नीतियां वर्ग संघर्ष में विश्वास करनेवाले वामपंथी दल की नीतियां होंगी.ऐसी नीतियों को बनाने और उन्हें अमल में लाने के लिए भी जरुरी है कि शोषित समाज के गरीब नेतृत्व में आगे बढ़ें.गरीबों के लिए गरीब ही लड़ सकता है.'अमीर का बच्चा,कभी न सच्चा'इस बुनियाद पर गांव से लेकर दिल्ली तक शोषित इन्कलाब कायम करना होगा,हम इसके लिए अपनी जान की बाज़ी लग देंगे.

25 अगस्त,1967                                                 जगदेव प्रसाद

मित्रों बिहार के लेनिन का नाम से मशहूर जगदेव प्रसद ने उपरोक्त लेख 25 अगस्त,1967 को अपनि पार्टी 'शोषित समाज दल' की स्थापना के अवसर पर लिखा था.उसी महामानव ने 25 फरवरी,1969 की सुबह दिल्ली से पटना आने के  दरम्यान विमान में मास्को के 'रुसी और पूर्वी अध्ययन संस्थान' के प्राध्यापक पाल गार्ड लेबिन को एक साक्षात्कार दिया था.भारत में कम्युनिस्ट आन्दोलन का चाल चरित्र समझने में उसका ऐतिहासिक महत्त्व है.प्रस्तुत है उस साक्षात्कार का कुछ महत्वपूर्ण अंश.

लेबिन-आप कम्युनिस्ट क्यों नहीं?

जगदेव-क्योंकि डांगे,नम्बूदरीपाद,ज्योति बसु,पी.सी.जोशी,चंद्रशेखर सिंह और इंद्रदीप सिंह जैसे कुलांक पार्टी में भरे पड़े हैं और ऐसे लोग कम्युनिस्ट पार्टी के सर्वेसर्वा हैं.इसलिए मेरे जैसा आदमी कमुनिस्ट पार्टी में नहीं है.

लेबिन-ये और इन लोगों के जैसा आदमी कम्युनिस्ट पार्टी में सर्वेसर्वा हैं,इसलिए आप कम्युनिस्ट पार्टी में क्यों नहीं हैं?

जगदेव-(क)ये सभी ऊँची जाति के हैं.(ख)और करोड़पति हैं.ये लोग शोषण के विज्ञान और कला में प्रवीण हैं.रूस में कुलांक जारशाही के खिलाफ सर्वहारा ने कम्युनिस्ट आन्दोलन शुरू किया,लेकिन हिन्दुस्तान में कुलांक कम्युनिस्ट आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे हैं.वही उनके नेता बने हैं.एक तो करैला,दूसरे नीम चढा.एक तो ऊँची जाति,दूसरे लखपति.

लेबिन-क्या ऊँची जाति के लोग कम्युनिस्ट नहीं हो सकते ?

जगदेव-जिस तरह अमेरका का शासक वर्ग कम्युनिस्ट नहीं हो सकता उसी तरह हिन्दुस्तान का शासक वर्ग जो ऊँची जाति का है,वह कम्युनिस्ट नहीं हो सकता है न इन्कलाबी.हिन्दुस्तान के कम्युनिस्ट ऊँची जाति के अमीर हैं,इसलिए ऊँची जात प्रधान कम्युनिस्ट पार्टी से सर्वहारा क्रांति  की उम्मीद करना उतना ही गलत होगा,जितना अमेरिका के साम्राज्यवादियों से कम्युनिस्ट इन्कलाब की उम्मीद करना.जो हिंदुस्तान में शासक वर्ग रहा है,उसी के हाथ में कम्युनिस्ट पार्टी का नेतृत्व है.जो नब्बे प्रतिशत शोषितों का दुश्मन है,वही कम्युनिस्ट पार्टी का सर्वेसर्वा है.जो वर्ग  संघर्ष के विरोधी हैं,वही उपरी तौर पर कम्युनिज्म का चोंगा पहनकर वर्ग-संघर्ष के हिमायती बने हैं.आज हिन्दुस्तान में हम ऊँची जात का काला साम्राज्यवाद मानते हैं.आपके लिए जैसे अमेरिका साम्राज्यवादी है,हमारे लिए तो ऊँची जातिवाले  साम्राज्यवादी हैं.ऊँची जाति के दस प्रतिशत शोषकों ने नब्बे प्रतिशत शोषितों को  आज तक गुलाम बना रखा है.सभी राजनीतिक दलों पर इन्ही का कब्ज़ा है.

लेबिन-रूस के सर्वहारा और हिन्दुस्तान के सर्वहारा में क्या फर्क है?

जगदेव-रूस में आर्थिक असमानता थी इस लिए वहां सिर्फ आर्थिक शोषण से मुक्ति की समस्या थी.हिन्दुस्तान में आर्थिक असमानता के साथ –साथ सामाजिक गैर-बराबरी भी है.जीवन के सभी सार्वजानिक क्षेत्रों पर दस प्रतिशत ऊँची जाति का एकाधिकार जैसा है.नब्बे  प्रतिशत शोषित ऊँची जाति की मेहरबानी और भीख के सहारे जिंदगी गुजारने को मजबूर हैं.रूस या अन्य देशो में जाति नाम की कोई चीज नहीं है.इसलिए जो वर्ग-संघर्ष का स्वरूप दुनिया के अन्य देशो में रहा,ठीक हिन्दुस्तान के लिए नहीं रह सकता .हिन्दुस्तान में कुछ ऊँची जातियां हैं जिनकी संख्या दस प्रतिशत से ज्यादा नहीं है.बाकी  छोटी जातियां हैं दलित,आदिवासी,मुसलमान और पिछड़ी जातियां.ये ऊँची जातियों के शोषण का शिकार है और ये इनके साम्राज्यवाद के खुनी चंगुल से मुक्ति चाहती हैं.अमेरिका के नीग्रो यहाँ के दलित जातियों से ज्यादा अच्छी हालत में हैं.अगर मार्क्स लेनिन हिन्दुस्तान में पैदा होते तो यहाँ की ऊँची जातियों को शोषक वर्ग और साम्राज्यवादी करार देते .इसलिए जो रूस में मार्क्स का सर्वहारा है ठीक वही हिन्दुस्तान में शोषित नहीं हो सकता.रूस का सर्वहारा सिर्फ आर्थिक सर्वहारा है लेकिन हिन्दुस्तान का सर्वहारा (शोषित)आर्थिक और सामाजिक दोनों ख्याल से सर्वहारा है.हिन्दुस्तान का सर्वहारा सांस्कृतिक दृष्टि से भी गुलाम है.

लेबिन-हिन्दुस्तान के लिए मार्क्सवादी संघर्ष या वर्ग-संघर्ष क्या हो सकता है?

जगदेव-हिन्दुस्तान में एक वर्ग दस प्रतिशत ऊँची जाति के साम्राज्यवादियों का है और दुसररा  वर्ग नब्बे प्रतिशत शोषितों का है.इसी नब्बे प्रतिशत सर्वहारा की इज्ज़त और रोटी की लड़ाई हिन्दुस्तान के लिए मार्क्सवाद या वैज्ञानिक वर्ग-संघर्ष है.यही सत्य है.बाकी हिन्दुस्तान के लिए वर्ग-संघर्ष की दूसरी परिभाषाएं और व्याख्याएं गलत हैं.व्यवहारिक वर्ग-संघर्ष यही है.

लेबिन-क्या हिन्दुस्तानी कम्युनिस्ट वर्ग-संघर्ष के हिमायती नहीं हैं?

जगदेव-नहीं!बाघ,बकरी की हिमायत कर ही नहीं सकता.जो लोग बाघ और  बकरी को एक साथ लाना चाहते हैं,वे या तो मुर्ख हैं या फरेबी हैं.हिन्दुस्तानी कम्युनिस्ट न तो सही मायने में मार्क्सवादी हैं न वर्ग –संघर्ष या वैज्ञानिक समाजवाद के हिमायती.वास्तव में कम्युनिस्ट पार्टी हिन्दुस्तानी साम्राज्यवादियों की जमात है.जबतक कम्युनिस्ट नेतृत्व दलित,पिछड़ी जाति ,आदिवासी और मुसलमानों(जो नब्बे प्रतिशत हैं और जिन्हें हम शोषित कहते हैं ) के हाथ में नहीं आ जाता ,तब तक कम्युनिस्ट पार्टी को सर्वहारा का दोस्त समझाना अव्वल दर्जे की बेवकूफी होगी.वास्तव में कम्युनिस्ट नेतृत्व से अन्य  सभी दलों का नेतृत्व ज्यादा इन्कलाबी और जनतांत्रिक है.

लेबिन –सामाजिक क्रांति से आपका क्या तात्पर्य है?

जगदेव-हिंदुस्तान के सार्वजनिक क्षेत्रों पर ऊँची जातीय शोषक वर्ग का एकाधिकार जैसा है.नब्बे प्रतिशत शोषित प्रशासनिक सेवाओं में कारगर स्थानों पर नहीं के बराबर हैं .शोषित समाज के जो कुछ लोग हैं दाल में नमक के बराबर हैं,उनको भी ऊँची जात वाले दबोचे हुए हैं.सभी राजनीतिक दलों पर दस प्रतिशत शोषक वर्ग का कब्ज़ा है.इस पृष्ठभूमि में सामाजिक क्रांति को सफल बनाने के लिए राजनीति में विशेष अवसर के सिद्धांत को लागू करना होगा.डॉ..लोहिया ने सबसे पहले इस मुल्क में  विशेष अवसर के सिद्धान्य को गढा.इसमें कोई शक नहीं कि लोहिया के द्वारा विशेष अवसर के सिद्धांत के गढे जाने  में मेरे जैसे व्यक्तियों का बहुत बड़ा हाथ रहा है.डॉ.लोहिया ने विशेष अवसर के सिद्धांत को मूर्तिमान करने के लिए कहा कि राजनीति,व्यापार,पलटन और ऊँची सरकी नौकरियों में नब्बे प्रतिशत शोषितों के लिए कमसे कम ६० प्रतिशत स्थान सुरक्षित करना सामाजिक क्रांति को सफल बनाने के लिए अनिवार्य है.

लेबिन-जब सामाजिक क्रांति मूल क्रांन्ति है और इसको सफल बनाने के लिए विशेष अवसर के सिद्धांत को अमली जामा पहनाना जरुरी है तब कम्युनिस्ट पार्टी इसको क्यों नहीं मानती?

जगदेव-यह सब आपको कम्युनिस्ट पार्टी से पूछना चाहिए.लेकिन जब आपने पूछा है तो मैं बताना चाहूँगा कि इसका एक ही कारण है कि कम्युनिस्ट पार्टी का नेतृत्व सामंतों और साम्राज्यवादियों के हाथ में है जो कभी सामाजिक क्रान्ति के बारे में सोच नहीं सकते .मुझे जनसंघ के नेतृत्व और कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व की बनावट में कोई फर्क दिखलाई नहीं पड़ता.दोनों पार्टियों के नारे एक-दूसरे से भिन्न जरुर हैं लेकिन नेतृत्व का खानदान एक ही है.दोनों के नेतृत्व का खानदान शोषक वर्ग है.

लेबिन-आप विशेष अवसर के सिद्धांत को अमल में लाने के लिए क्या करेंगे?

जगदेव-अभी तो जनतांत्रिक तरीके से हम ऊँची जाति को संभलने के लिए कह रहे हैं और अपने सिद्धांत के पीछे नब्बे प्रतिशत जनता को संगठित करने का प्रयास कर रहे हैं.जब नब्बे प्रतिशत जनता शोषित दल के नीचे सामाजिक क्रांति के लिय तैयार हो जायेगी तो शोषक वर्ग या तो आत्मसमर्पण कर देगा या उसे नब्बे प्रतिशत शोषितों की संगठित महँ शक्ति नेस्तनाबूद कर देगी.

मित्रों,कम्युनिस्टों के विषय में बिहार के लेनिन का उपरोक्त लेख और साक्षात्कार डॉ.राजेन्द्र प्रसाद-शशिकला द्वारा सम्पादित एवं सम्यक प्रकाशन,दिल्ली द्वारा प्रकाशित पुस्तक 'जगदेव प्रसाद वांग्मय'के कमशः पृष्ठ-17 और 59 आर प्रकशित हैं.यह पुस्तक मार्क्सवादियों और हिन्दुस्तानी साम्राज्यवाद के विषय में और भी बहुत सी उपयोगी सूचनाएं सुलभ कराती है.बहरहाल जगदेव प्रसाद के उपरोक्त निबंध और साक्षात्कार के आधार पर आपके समक्ष निम्न शंकाएं रख रहा हूँ-

1-'तमाम हरिजन ,आदिवासी,मुसलमान और पिछड़ी कहे जानेवाली जातियां शोषित.सभी ऊँची जातियां शोषक हैं.ऊँची जात का बच्चा-बच्चा अमीर हो या गरीब शोषण की कला और विज्ञानं में माहिर है .शराफत और इंसानियत का वह दुश्मन है,सच्चाई से इसको कोई वास्ता नहीं है'.जगदेव प्रसाद की इस टिपण्णी से क्या आप सहमत हैं?

2-नब्बे प्रतिशत शोषित की दस प्रतिशत शोषकों के बीच इज्ज़त और रोटी की लड़ाई ही हिन्दुस्तान में समाजवाद या कम्युनिस्म की असली लड़ाई है;वैज्ञानिक वर्ग संघर्ष है.क्या आपको भी ऐसा लगता है?

3-'भारत में कम्युनिज्म के दुश्मन ही कम्युनिस्ट हैं.लेकिन जो हिन्दुस्तान में कम्युनिस्म के दुश्मन हैं वे ही कम्युनिस्ट पार्टी के नेता हैं.हिन्दुस्तानी जार और कुलांक कम्युनिस्ट पार्टी के महंत हैं.डांगे,नम्बूदरीपाद,ज्योति बासु और अन्य चोटी के कम्युनिस्ट नेता हिन्दुस्तानी जार और कुलांक  हैं.ये लोग न सिर्फ द्विज हैं बल्कि इनमें से कुछ लखपति और करोड़पति भी हैं.ये कभी सर्वहारा के दोस्त नहीं हो सकते.'वर्षों पहले जगदेव प्रसाद ने मार्क्सवादी नेतृत्व को जैसा पाया था आज भी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है.आज भी कम्युनिस्ट पार्टियों का नेतृत्व नए ज़माने के डांगे,नम्बूदरीपादों ,ज्योति बसुओं के ही हाथ में है.क्या ये सब असल सर्वहारा के दोस्त हो सकते हैं?

4-जगदेव प्रसाद का कहना था कि मार्क्स –लेनिन-माओ भारत में होते तो तमाम कम्युनिस्ट नेताओं को सर्वहारा या शोषितों का दुश्मन तथा 'मोरारजी का शागिर्द' करार देते हुए पार्टी में उनकी सदस्यता पर रोक लगा देते.क्या आज के भारतीय साम्यवादी नेतृत्व के साथ भी वे वही सलूक करते?

5-जगदेव प्रसाद कहा करते थे, 'भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी हिंदुस्तानियों साम्राज्यवादियों की जमात है',इस पर आपका क्या कहना है ?

6-मैंने पिछली बार आपके समक्ष अपनी शंका रखते हुए कहा था कि हिंदू साम्राज्यवाद को अक्षत रखने के लिए ही भारतीय मार्क्सवादी गुलाम भारत में ब्रितानी साम्राज्वाद की तो  आजाद भारत में अमेरिकी साम्राज्यवाद का हौवा खड़ा करते रहे हैं ,क्या जगदेव प्रसाद की 'हिन्दुस्तानी साम्राज्यवाद'सम्बन्धी अवधारणा का  अवलोकन करने के बाद ऐसा नहीं लगता कि मेरी आशंका सही है?

7-जगदेव प्रसाद दृढ़ता पूर्वक कहा करते थे,'कम्युनिस्ट पार्टी और जनसंघ में कोई फर्क नहीं है.मुझे कम्युनिस्ट डांगे औए नम्बूदरीपाद तथा जनसंघी अटल बिहारी वाजपेयी और बलराज मधोक में अन्दरुनी तौर पर कोई फर्क नज़र नहीं आता.कम्युनिस्ट नेतृत्व की तरह जनसंघ नेतृत्व भी जिले से सूबे तक निछक्का द्विजो का नेतृत्व है'.किन्तु आज थोडा सा फर्क है. जनसंघ के नए संस्करण भाजपा में आज गैर-ब्राह्मणों की प्रधानता है,जबकि मार्क्सवादी दलों व संगठनों में ब्राह्मणों की प्रभुत्व पूर्ववत है.ऐसे में हिन्दुत्ववादी और मार्क्सवादियों में आपकी नज़रों में क्या पार्थक्य नज़र आता है?

8-रूस और  भारत के सर्वहारा का फर्क बताते हुए जगदेव प्रसाद ने कहा था –'रूस का सर्वहारा सिर्फ आर्थिक सर्वहारा है लेकिन हिन्दुस्तान का सर्वहारा आर्थिक और सामजिक दोनों तरह से सर्वहारा है.वह सांस्कृतिक दृष्टि से भी शासकों का गुलाम है.कुछ दिन पूर्व मैंने आपके समक्ष इसी किस्म की अपनी शंका रखते हुए कहा था की अन्य देशों में सर्वहारा हैं जबकि में भारत उनकी उपस्थित सर्वस्वहारा के रूप में है.ऐसे में क्या यह नहीं लगता कि भारत के सर्वहारा भिन्न किस्म के शोषित प्राणी हैं जिनके लिए भिन्न किस्म का संघर्ष चलाना पड़ेगा?

9-एक विदेशी पत्रकार के यह पूछने पर कि आप हिन्दुस्तानी साम्राज्यवादी किसको कहते हैं, का जवाब देते हुए जगदेव प्रसाद ने कहा था-'ऊँची जात वाले साम्राज्यवादी हैं.ब्राह्मण,राजपूत और भूमिहार साम्राज्यवादी हैं-उनके गरीब भी-भिखमंगे भी.इनका दूसरा नाम द्विज है.तीसरा नाम शोषक है.चौथा नाम सामंत है.ये ही हिन्दुस्तानी जार और कुलांक हैं.'क्या जगदेव प्रसाद का यह कथन आज भी प्रसंगिक नहीं है?

10-भारतीय कम्युनिस्ट वर्ग संघर्ष के हिमायती हैं,इस धारणा का खंडन करते हुए बिहार के लेनिन ने कहा था-'बाघ बकरी की हिमायत कर ही नहीं सकता.जो लोग बाघ और बकरी को एक साथ लाना चाहते हैं,वे या तो मुर्ख हैं या फरेबी.हिन्दुस्तानी कम्युनिस्ट न तो सही माने में मार्क्सवादी हैं न वर्ग संघर्ष के हिमायती.'क्या यह तथ्य आज की तारीख में अप्रासंगिक हो गया है?

11-लेबिन के यह पूछने पर कि क्या आप कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो सकते हैं,जगदेव प्रसाद ने कहा था-'नहीं! कम्युनिस्ट पार्टी या सामंती नेतृत्व मेरे जैसे सर्वहारा को निगल जायेगा;मेरा अस्तित्व खत्म का देगा.शोषित समाज के जो लोग कम्युनिस्ट पार्टी में चले गये हैं,उनको आज या कल कम्युनिस्ट पार्टी से हटना ही पडेगा.मुझे कम्युनिस्ट पार्टी से नफरत है,उनके ऊँची जातीय पाखंडपूर्ण नेतृत्व के कारण.इस नेतृत्व के रहते कोई शोषित ग़लतफ़हमी में ही कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल होगा.जो होशहवास में हैं,नहीं जा जा सकते .जहाँ तक कम्युनिस्ट पार्टी का सवाल है,वह चरित्र में कांग्रेस से भी गई बीती है.कांग्रेस ने जगजीवन राम जैसे चमार को भी अखिल भारतीय नेता बनने का मौका दिया और इन्हें केन्द्रीय मंत्रिमंडल में प्रमुख स्थान पर रखा है,लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी ने तो किसी दलित,आदिवासी या पिछड़ी जाति को राष्ट्रीय नेतृत्व में आने  ही नहीं दिया.' अगर उपरोक्त कारणों से बिहार के लेनिन ने कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ने से तौबा कर लिया तो वर्तमान समय के दलित-बहुजन ,अगर  मार्क्सवादियों से सौ-सौ हाथ की दूरी बनाये हुए हैं तो क्या गलत कर रहे हैं ?इस सचाई के आईने में क्या मार्क्सवादियों को यह आशा पोषण करने का हक है कि दलित-बहुजन उसके साथ जुड़े?

12-'हिन्दुस्तान में साम्राज्यवादी तो यहाँ के दस प्रतिशत द्विज हैं,जिसने नब्बे प्रतिशत शोषितों को अपना गुलाम बना रखा है .दुर्नितिवश हिन्दुस्तान में कम्युनिस्ट पार्टी इन्ही साम्राज्यवादियों की कठपुतली है.इनसे सर्वहारा क्रांति की उम्मीद करना अव्वल दर्जे की बेवकुफी होगी.कहीं कुत्ते मांस की रखवाली करते हैं.'आप बताएं आज की तारीख में कम्युनिस्ट बहुजन नज़रिए से कुत्तों से बेहतर स्थिति में आ गए हैं?

13-हिन्दुस्तान की ऊँची जातियों को आप शोषक कहते हैं,क्यों?एक विदेशी पत्रकार डॉ.एफ टॉमसन के इस सवाल का जवाब देते हुए बहुजन नायक जगदेव प्रसाद ने कहा था-'क्योंकि सिर्फ दस प्रतिशत होते हुए भी वे सरकारी,गैर-सरकारी और अर्द्ध-सरकारी नौकरियों में नब्बे सैकड़ा जगहों पर अपना एकाधिकार जमाए बैठे हैं.90 प्रतिशत भूमि और उत्पादन के अन्य साधनों पर भी इन्ही का आधिपत्य है.सामाजिक प्रतिष्ठा भी इन्ही को उपलब्ध है.दलित, आदिवासी,मुसलमान और पिछड़ी जातियों को इन्होंने गुलाम और अर्द्ध-गुलाम जैसी स्थिति में रहने को मजबूर कर दिया है.दूसर शब्दों में सारा हिन्दुस्तान अब (मद्रास को छोड़कर) दस प्रतिशत ऊँची जात के साम्राज्यवादियों का एक विशाल उपनिवेश है.राजनीति पर भी दस प्रतिशत ऊँची जात का कब्ज़ा है.दोनों कम्युनिस्ट पार्टी ,संसोपा-  प्रसोपा का नेतृत्व ऊँची जात के साम्राज्यवादियों के हाथों में ही है.आज के जनतांत्रिक हिन्दुस्तान में ऊँची जात वालों ने  राजनीति के माध्यम से नौकरशाही की मदद  के जरिये अपना काला साम्राज्य एक तरह से सारे देश पर कायम कर रखा है.'जगदेव प्रसाद के इस उदगार के आईने में यदि मुझ जैसे तुच्छ व निहायत ही कम पढ़े लिखे लोग चीख-चीख भारत में सदियों से हिंदू साम्राज्यवाद की क्रियाशीलता का शोर मचाते हैं तो क्या गलत करते?क्या आपको नहीं लगता कि शक्ति के सभी स्रोतों पर द्विजों का 80-85  प्रतिशत प्रभुत्व वास्तव में हिंदू साम्राज्यवाद का संकेतक है?

14-अमेरिका के टेक्सास विश्व विद्यालय के प्रोफ़ेसर डॉ.एफ.टॉमसन ने ही जगदेव प्रसाद से एक और और सवाल पूछते हुए कहा था-'वह कौन एक समस्या है जिसका समाधान होने पर हिन्दुस्तान में आर्थिक क्रांति सफल हो सकती है और आर्थिक क्षेत्र में हिन्दुस्तान आत्मनिर्भर हो सकता है?जगदेव प्रसाद का उत्तर था,'राजनीति और नौकरशाही पर से 10 प्रतिशत शोषक वर्ग के एकाधिकार का खात्मा.'अगर जगदेव प्रसाद द्वारा दिया गया समाधान सही है तो आर्थिक गैर-बराबरी के खात्मे का दुदुंभी बजानेवाले मार्क्सवादियों ने कभी जगदेव प्रसद की भाषा में क्यों नहीं शोषक वर्ग के एकाधिकार को खुल कर चुनौती दिया.यहाँ आप बताएं अगर डॉ.टॉमसन के सवाल का जवाब देने में जगदेव प्रसाद के तरफ से कमी थी, मार्क्सवादिय  नज़रिए से उसका सही उत्तर क्या हो सकता है?

15-'भारत की दोनों कम्युनिस्ट पार्टियां आर्थिक क्रांति पर जोर देती हैं,पर अव्वल दर्जे की फरेबी हैं.हिन्दुस्तान में मूल क्रांति सामाजिक क्रांति है.सामाजिक क्रांति के बगैर आर्थिक क्रांति नहीं हो सकती'-ऐसा मानना था जगदेव प्रसाद का .उनके द्वारा सामाजिक क्रांति पर इस कदर जोर देने पर लेबिन  ने पूछा था –सामाजिक क्रांति से आपका तात्पर्य?'.जवाब में जगदेवजी ने शासन –प्रशासन में 90 प्रतिशत भागीदारी को चिन्हित करते तथा डॉ. लोहिया को उद्धृत करते हुए इसे मूर्त रूप देने के लिए राजनीति,व्यापार,पलटन,और ऊँची सरकारी नौकरियों में 90 प्रतिशत शोषितों के लिए कमसे कम 60प्रतिशत स्थान सुरक्षित करने का सुझाव दिया था.ऐसे में सवाल पैदा होता है कि वर्तमान में दलित बुद्धिजीवियों द्वारा चलाया जा रहा डाइवर्सिटी आन्दोलन क्या सामाजिक क्रांति का सबसे प्रभावी हथियार साबित नहीं हो सकता, जिसके तहत  भारत के चार प्रमुख सामाजिक समूहों-सवर्ण,ओबीसी,एससी/एसटी और धार्मिक अल्पसंख्यकों- के संख्यानुपात में शक्ति के प्रमुख स्रोतों-आर्थिक ,राजनितिकऔर धार्मिक- में बंटवारे की मांग उठाई जा रही है?यही नहीं अगर  डाइवर्सिटी भारत में सामाजिक क्रांति घटित करने में सर्वाधिक सक्षम है तो क्या मार्क्सवादियों को इसे लागु करवाने के लिए सामने नहीं आना चाहिए ?

तो मित्रों आज इतना ही.मिलते हैं आपसे फिर कुछ दिनों बाद,कुछ नई शंकाओं के साथ.

दिनांक:19अप्रैल,2013  

                         जय भीम-जय भारत     

        



                       


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