उत्तराखंड में एक और बड़ी तबाही की दस्तक
हैदराबाद/एजेंसी | अंतिम अपडेट 19 जुलाई 2013
उत्तराखंड समेत हिमालय की पहाड़ियों में बसे कई क्षेत्रों में भूकंप भीषण तबाही मचा सकता है। राष्ट्रीय भूभौतिकी अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआई) की ताजा स्टडी में यह तथ्य सामने आया है।
एनजीआरआई के वैज्ञानिकों की टीम का नेतृत्व कर रहे मुख्य वैज्ञानिक (भूकंपीय टोमोग्राफी) श्याम राय ने कहा, 'उत्तराखंड के कुमाऊं-गढ़वाल क्षेत्र में भूकंपीय इमेजिंग के बाद टीम इस नतीजे पर निकली है।'
अप्रैल, 2005 से जून, 2008 के बीच हुई इस स्टडी में अमेरिका की स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी ने भी अपना योगदान दिया है।
भारत सरकार को इसकी शुरुआती रिपोर्ट 2010 में सौंपी गई थी। हालांकि भूकंपीय इमेजिंग और अध्ययन के अन्य पहलुओं के बारे में पूरी जानकारी के बारे में पता चला।
जब उनसे पूछा गया कि उत्तराखंड में हाल में हुई तबाही के संबंध में इस स्टडी में कोई जिक्र है, तो उन्हें नहीं में जवाब दिया।
राय ने कहा, 'उत्तराखंड को इसलिए चुना गया क्योंकि यहां पर अंतरिक्ष के जरिए मापने की सुविधा उपलब्ध है। इससे साफ पता चला है कि इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा तनावपूर्ण निर्माण हुआ है।
इसलिए यहां पर भूकंप का खतरा सबसे ज्यादा है। कुमाऊं में 1803 में बड़ा भूकंप आ भी चुका है।'
उन्होंने बताया कि अगर इस समय इस क्षेत्र में भूकंप आया, तो बड़ी संख्या, बांधों और निर्माण कार्यों को देखते हुए खतरे की संभावना बेहद ज्यादा है।
इसी वजह से सरकार ने यह फैसला किया था कि हमें इस उचित निगरानी रखनी चाहिए। हिमालय की पहाड़ियों में जम्मू-कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक कई खतरनाक भूकंप पहले भी आ चुके हैं।
भूभौतिकविदों ने अपने अध्ययन में पाया है कि 90 फीसदी भूकंप बद्रीनाथ, केदारनाथ से उत्तर पश्चिम हिमालय की पहाड़ियों में एक लाइन में ऊपर की ओर जा रहे हैं।
एनजीआरआई के वैज्ञानिकों की टीम का नेतृत्व कर रहे मुख्य वैज्ञानिक (भूकंपीय टोमोग्राफी) श्याम राय ने कहा, 'उत्तराखंड के कुमाऊं-गढ़वाल क्षेत्र में भूकंपीय इमेजिंग के बाद टीम इस नतीजे पर निकली है।'
अप्रैल, 2005 से जून, 2008 के बीच हुई इस स्टडी में अमेरिका की स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी ने भी अपना योगदान दिया है।
भारत सरकार को इसकी शुरुआती रिपोर्ट 2010 में सौंपी गई थी। हालांकि भूकंपीय इमेजिंग और अध्ययन के अन्य पहलुओं के बारे में पूरी जानकारी के बारे में पता चला।
जब उनसे पूछा गया कि उत्तराखंड में हाल में हुई तबाही के संबंध में इस स्टडी में कोई जिक्र है, तो उन्हें नहीं में जवाब दिया।
राय ने कहा, 'उत्तराखंड को इसलिए चुना गया क्योंकि यहां पर अंतरिक्ष के जरिए मापने की सुविधा उपलब्ध है। इससे साफ पता चला है कि इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा तनावपूर्ण निर्माण हुआ है।
इसलिए यहां पर भूकंप का खतरा सबसे ज्यादा है। कुमाऊं में 1803 में बड़ा भूकंप आ भी चुका है।'
उन्होंने बताया कि अगर इस समय इस क्षेत्र में भूकंप आया, तो बड़ी संख्या, बांधों और निर्माण कार्यों को देखते हुए खतरे की संभावना बेहद ज्यादा है।
इसी वजह से सरकार ने यह फैसला किया था कि हमें इस उचित निगरानी रखनी चाहिए। हिमालय की पहाड़ियों में जम्मू-कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक कई खतरनाक भूकंप पहले भी आ चुके हैं।
भूभौतिकविदों ने अपने अध्ययन में पाया है कि 90 फीसदी भूकंप बद्रीनाथ, केदारनाथ से उत्तर पश्चिम हिमालय की पहाड़ियों में एक लाइन में ऊपर की ओर जा रहे हैं।
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