फिर निकला डोमेसाइल का जिन्न
मुख्यमंत्री होने के नाते हेमंत सोरेन से उम्मीद की जाती है कि डोमेसाइल मुद्दे पर वे न सिर्फ गंभीरता से बयान दें, बल्कि इसका राजनीतिकरण होने से भी बचायें. नवनिर्वाचित गठबंधन सरकार के लिए यही उचित भी होगा...
राजीव
राज्य बनने के तेरह सालों के अंदर झारखंड में स्थानीयता की नीति नहीं बनायी गयी है. इसीलिए समय-समय पर इसे राजनीतिक मुद्दा बनाया जाता रहा है. राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने वर्ष 2002 में 1932 के खतियान को डोमेसाइल का आधार बनाने की वकालत की थी, जिसके कारण राज्य के कई क्षेत्रों में भारी उपद्रव हुआ था.
तब मचे उस उपद्रव में पांच लोग मारे गये थे और अंतत बाबूलाल मरांडी की कुर्सी चली गयी थी. अर्जुन मुंडा की सरकार इस मुद्दे से कड़ाई से निपटी थी तो तब से यह मामला ठंडे बस्ते में था. हालांकि अर्जुन मुंडा सरकार ने स्थानीयता तय करने के लिए तीन मंत्रियों यथा सुदेश कुमार महतो, हेमंत सोरेन और वैद्यनाथ राम की कमेटी बनायी थी.
यह कमेटी दो वर्षों तक विभिन्न राज्यों की स्थानीय नीति का अध्ययन करती रही और सरकार रिपोर्ट मांगती रही, परंतु कमेटी की रिपोर्ट आने के पहले ही सरकार गिर गयी.गौरतलब है कि पिछले दिनों मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने विश्वासमत हासिल करने के बाद डोमेसाइल से संबंधित बयान दिया कि डोमेसाइल का आधार खतियान को माना जाना चाहिए. खतियान चाहे 1918 का हो या 1932 का या उससे पहले का, मान्यता उसी को मिलनी चाहिए.
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के इस बयान को उनके सहयोगी दलों ने ही खारिज कर दिया है. विपक्ष ने भी इस मामले में सरकार को आड़े हाथों लिया. विरोध बढ़ता देख मुख्यमंत्री ने अपना बयान वापस ले लिया और कहा कि जितने भी मुद्दे हैं, उनपर आपसी सहमति के बाद निर्णय लिया जाएगा. खतियान मामले को लेकर ऐसी कोई बात नहीं है.
गौरतलब है कि झारखंड के साथ बने छत्तीसगढ़ और उत्तराखण्ड ने स्थानीयता के विवाद को बढ़ने ही नहीं दिया, जबकि झारखंड में यह विवाद का मुद्दा बना हुआ है. इसी के कारण सरकार गिरी भी है. सरकार में शामिल कांग्रेस ने डोमेसाइल पर कोई स्पष्ट राय नहीं दी है.
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत ने कहा है कि इस विषय पर मिल-बैठकर व्यावहारिक निर्णय लिया जायेगा, ताकि राज्य में अमन-चैन बना रहे. गठबंधन सरकार के एक अन्य सहयोगी दल राजद ने स्पष्ट कहा है कि डोमेसाइल लागू करने का सवाल ही नहीं है. प्रदे्रश राजद के प्रवक्ता डाॅ मनोज कुमार पांडेय ने कहा कि झारखंड में रहने वाले सभी झारखंडी हैं. जो लोग वर्षों से यहां रह रहे हैं उनको इस राज्य में रहने का हक है.
विपक्षी दल भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. रवीन्द्र राय ने कहा कि मुख्यमंत्री की घोषणा विवादस्पद है और यह मान्य नहीं हो सकता है. गुरुजी यानी शिबू सोरेन ने भी बतौर मुख्यमंत्री विधानसभा में कहा था कि जो झारखंड में रहता है वह झारखंडी है.
भाकपा माले विधायक विनोद सिंह ने बयान दिया है कि यहां रहने वाले सभी झारखंडी है, परिभाषा से फर्क नहीं पड़ता. अपने हित के लिए इस तरह के विवाद उभारे जाते हैं. आजसू विधायक चंद्रप्रकाश चैधरी ने कहा कि अगर मुख्यमंत्री की ऐसी सोच है, तो डोमेसाइल से भी खतरनाक स्थिति बन जाएगी. झारखंड में रहने वाले सभी झारखंडी हैं. ऐसे विवाद को हवा न दी जाए.
बहरहाल स्थानीयता से संबंधित नीति का पिछले 13 सालों में राज्य में नहीं बन पाना इस बात का संकेत है कि कोई भी सरकार इस मुद्दे का समाधान करना नहीं चाहती. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का एक ही दिन में डोमेसाइल पर दिये गये दो-दो बयान उनके मन में पल रही अनिश्चितता को ही दर्शाते हैं. हालांकि मुख्यमंत्री होने के नाते उनसे उम्मीद की जाती है कि इस विवादस्पद मुद्दे पर वे न सिर्फ गंभीरता से बयान दें, बल्कि इसका राजनीतिकरण होने से भी बचाए. गठबंधन सरकार के लिए यही उचित होगा.
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