हो गया दमदम एअरपोर्ट का निजीकरण!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
कालकाता के नेताजी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के नये टर्मिनल की समस्याएं जस की तस बनी हुई है। कांच गिरते जाने की रोजमर्रे की दुर्घटनाओं के अलावा कांवेयर बेल्ट की अलग समस्या है। सांसद सौगत राय वहां यूनियनों की अगुवाई कर रहे हैं और यूनियनें ेक साथ निजीकरण के खिलाफ आंदोलन पर हैं। लिहाजा यात्री सेवाओ में सुधार के फिलहाल आसार नहीं हैं। हालत इतनी खराब है कि उड़ानों की सूचना देने वाले डिस्प्ले बोर्ड पर भी कुछ नजर नहीं आता। उधर काजी नजरुल से लेकर एअरपोर्ट तक की मेट्रो रेलवे परियोजना भी पर्यावरण संभंधी आपत्तियों के कारण खटाई में है। परिवहन समस्या से जूझते हुए किसी तरह उड़ान पकड़ने ेके लिए इस टर्मिनल पहुंचने पर यात्रियों को तनिक राहत नहीं मिलती। शौचालय साप करने वाला कोई नही ंहै। पेयजल की समस्या है। इस पर तुर्रा यह कि समस्याओं से परेशान हवाई अड्डे के प्रशासन ने यात्री सेवाओं के जंजाल से खुद को रिहा करने का परक्का इरादा कर लिया है। यूनियनों का ऐतराज दरकिनार करके यात्री सेवाओं का निजीकरण तय हो गया है।
वैसे एअरपोर्ट आथोरिटी आफ इंडिया के प्रवक्ता बतौर एअरपोर्ट के अधीक्षक बीपी शरमा ने सफाई दी है कि यात्री सेवाओं के लिए एअरपोर्ट प्रबंधन जिम्मेदरा नहीं ं है।वे लोग सिर्फ उड़ानों के लिए जरुरी ढांचागत सुविधाएं देने के जिम्मेदार हैं। अब यात्री सेवा के लिए जिम्मेदारी संबंधित विमानन कंपनी की है।या फिर छेका कंपनियों की।
इस बंदोबस्त को अमली जामा पहनाने के लिए सर्विस लेवेल एग्रीमेंट की तैयारी है।जिसके तहत कांवेयर बेल्ट या लगेज बेल्ट के संचालन की जिम्मेदारी संबंधित विमानन कंपनी की होगी। टर्मिनल प्रबंधन की नहीं।
इसके अलावा टर्मिनल पर रोशनी, एअरकंडीशनर जैसे मामले छेका कपनियों के जिम्मे हैं। शौचालय और टरिमिनल में आम साफ सफाई के लिए पहले ही दिल्ली की एक एक निजी संस्था को ठेका दे दिया गया है।टैक्सी सेवा पुलिस की निगरानी में है।बसों की जिम्मवारी संयुक्त रुप से राज्य सरकार और एकदूसरी बेसरकारी संस्था की है।
अब रोज रोज के झंझट और यात्रियों के हंगामे से बचने के इरादे से इस बंदोबस्त को लिखत पढ़त में पक्का करने चला है टर्मिनल प्रबंधन।इसलिए संबंधित संस्थों के साथ सर्विस लेवेल एग्रीमेंट परदस्तखत किये जाएंगे।
टर्मिनल पर अब डिस्प्ले बोर्ड पर साफ तौर पर लिखा होगा कि किस समस्या के समाधान के लिए किससे लसंपर्क साधा जाये।
अब निजीकरण में बाकी क्या रह गया, यूनियनें और सांसद सौगत राय इस पर गौर जरुर करें।
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