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Thursday, July 18, 2013

चर्चा आफत की,पुष्पेश जी हाँकें रावत की !


  • चर्चा आफत की,पुष्पेश जी हाँकें रावत की !

    आपदा के बीच हरक सिंह रावत के उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनने की कामना जोरशोर से की जाए तो कैसे लगेगा?थोड़ा अटपटा है ना !अटपटा नहीं भी हो सकता है,यदि गुटों में बंटी कांग्रेस का कोई नेता ऐसा कहे तो.जैसे हरीश रावत के गुट वालों का सतत प्रयास है कि उनका नेता मुख्यमंत्री बने. पर कमजोर आपदा प्रबंधन पर चर्चा हो रही हो और ऐसी चर्चा के बीच में विद्वान विशेषज्ञ कहें कि हमारा दुर्भाग्य है कि "हरक सिंह रावत जी हमारे मुख्यमंत्री नहीं हैं", तो यह ना केवल अटपटी बात होगी बल्कि अखरेगी भी. पर जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के प्रोफ़ेसर पुष्पेश पन्त की उत्तराखंड के कृषि मंत्री हरक सिंह रावत के प्रति ऐसी अंध श्रद्धा है कि उन्हें कमजोर आपदा प्रबंधन की चर्चा के बीच हरक सिंह रावत की तारीफ़ में कसीदे पढ़ना ज्यादा जरुरी लगा.

    बात 29 जून की है.बी.बी.सी. हिंदी के इण्डिया बोल कार्यक्रम में चर्चा का विषय था-"क्यूँ धरा का धरा रह जाता है आपदा प्रबंधन". चर्चा में उत्तराखंड के कृषि मंत्री हरक सिंह रावत शामिल थे और विशेषज्ञ के तौर पर प्रो.पुष्पेश पन्त. पुष्पेश पन्त की ख्याति जे.एन.यू.के अन्तराष्ट्रीय मामलों के प्रोफ़ेसर के तौर पर सुनी थी. एक साप्ताहिक पत्रिका-"शुक्रवार" में पाक कला पर भी उनका नियमित स्तम्भ देखा है.पर किसी मंत्री के स्तुति गान में भी वे सिद्धहस्त हैं,यह बी.बी.सी. के इस कार्यक्राम को सुनकर ही जाना. हरक सिंह की तारीफ़ पुष्पेश पन्त जी ने कोई एक-आध बार नहीं की. बल्कि लगभग आधे घंटे के कार्यक्रम में जब-जब उन्हें बोलने का मौक़ा मिला,उनके मुंह से हरक सिंह के लिए फूल ही झड़ते रहे.
    कार्यक्रम की शुरुआत में एंकर ने उत्तराखंड के कृषि मंत्री हरक सिंह रावत से पूछा कि लोगों की शिकायत है कि राहत ठीक से नहीं पहुँच रही, तो सरकार आपदा से किस तरह निपट रही है ? इसके जवाब में हरक सिंह रावत ने अपने राजनीतिक करियर के दौरान देखी प्राकृतिक आपदाओं का बखान करते हुए, इस आपदा को सबसे बड़ा बता कर, आपदा से निपटने की लचर तैयारियों से पल्ला झाड़ने का प्रयास किया. आपदा से निपटने की कमजोर तैयारियों के सन्दर्भ में जब पुष्पेश पन्त की टिपण्णी मांगी गयी तो कमजोर तैयारियों से पहले पन्त जी को हरक सिंह रावत की तारीफ में कसीदे पढ़ना जरुरी लगा. दिल्ली में रहते हुए भी उत्तराखंड के जनता के तरफ से वे ऐलानिया तौर पर कहते हैं कि जनता में हरक सिंह की "विश्वसनीयता असंदिग्ध है". फिर वे मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को कोसते हुए कहते हैं कि मुख्यमंत्री विकास का मॉडल बदलने को तैयार नहीं हैं. मुख्यमंत्री की वाजिब आलोचना करते हुए पुष्पेश जी, जिस तरह से हरक सिंह रावत को तमाम आरोपों से मुक्त करते हैं, वह बेहद चौंकाने वाला है. यह सही बात है कि इस समय जो विकास का मॉडल उत्तराखंड में चल रहा है, वो मुनाफा परस्त, लूटेरा और ठेकेदारों के विकास का मॉडल है. पर प्रश्न सिर्फ इतना है कि क्या हरक सिंह को इस मॉडल से कोई नाइत्तेफाकी है ? आज तक ऐसा देखा तो नहीं गया. पिछला विधानसभा का चुनाव हरक सिंह रावत रुद्रप्रयाग से धनबल के दम से जीत कर आये हैं ,इसकी खूब चर्चा रही है. तब कैसे पुष्पेश पन्त जैसे अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के ज्ञाता को आपदा की इस घडी में लग रहा है कि विजय बहुगुणा के विकल्प के तौर पर हरक सिंह एकदम दूध के धुले, निष्पाप, निष्कलंक हैं ! ये विकल्प नहीं एक ही सिक्के के दो पहलू हैं,महोदय. इनके अहंकार, शातिरता और अकड में उन्नीस-बीस का अंतर हो भी सकता है और ऐसा भी संभव है कि कोई अंतर ना हो. 

    मामला इतने पर ही ठहर जाता तो एकबारगी बर्दाश्त किया जा सकता था. पुष्पेश पन्त जी तो जैसे ठान कर आये थे कि बाढ़-बारिश की पृष्ठभूमि में हो रही इस चर्चा में हरक सिंह रावत की तारीफ़ में गंगा, जमुना, अलकनंदा, मंदाकिनी सब एक साथ बहा देनी है. आपदा ग्रस्त रुद्रप्रयाग जिले में आपदा पीड़ितों को राहत पहुंचाने के लिए रात-दिन एक किये हुए शिक्षक और सामाजिक कार्यकर्ता गजेन्द्र रौतेला फोन के जरिये इस कार्यक्रम में शामिल हुए. रौतेला ने हरक सिंह रावत से मुखातिब होते हुए कि मंत्री जी से वे और उनके साथी 17 जून की शाम को देहरादून में मिले थे और मंत्री जी को केदारनाथ की तबाही में सब नष्ट हो जाने की बात, उन्होंने बतायी थी. लेकिन मंत्री जी ने उनकी बात को गंभीरता से नहीं लिया. हरक सिंह रावत ने स्वीकार किया कि ये लोग उनसे मिले थे. इन लोगों की बात को गंभीरता से ना लेने के आरोप से उन्होंने इनकार किया. लेकिन ये मंत्री महोदय नहीं बता पाए कि गंभीरता से उन्होंने किया क्या ? वे मौसम खराब होने और लोगों द्वारा घेरे जाने का बहाना बनाने लगे. गौरतलब है कि गजेन्द्र रौतेला द्वारा मंत्री जी के आपदा पीड़ितों के प्रति उपेक्षा पूर्ण व्यवहार की पोल खोले जाने से पहले, यही हरक सिंह लंबी-लंबी डींगें हांक रहे थे कि उन्होंने आपदा प्रबंधन की व्यवस्था ठीक से हो, इसके लिए उन्होंने नौकरशाही से बड़ा संघर्ष किया. गजेन्द्र रौतेला ने मंत्री जी द्वारा आपदा की विभीषिका बताये जाने के बावजूद उसको अनसुना करने का किस्सा बयान कर मंत्री जी की डींगों की हवा निकाल दी थी. मंत्री जी लडखडाने लगे और केवल वे इतना ही बोल पाए कि गंभीरता कोई रो कर या दिखा कर थोड़े होती है. अन्य कोई व्यक्ति यह कहता तो ये सामन्य बात होती. लेकिन विधान सभा चुनाव जीतने के लिए बुक्का फाड़ कर रोने वाले हरक सिंह, जेनी प्रकरण में फंसने के दौरान भी घडी-घडी आंसू बहाने वाले हरक सिंह जब कहते हैं कि गंभीरता रो कर थोड़े दिखाई जाती है तो इसपर हंसी आती है. ना जी, लोगों के फंसे होने पर क्यूँ रोना, उनके मरने पर क्या अफ़सोस करना. रोना तो चुनाव में ताकि भोली-भाली जनता आंसुओं में बहे और चंट-चालाक ठेकेदार टाईप नोटों में बहें.

    बहरहाल गजेन्द्र रौतेला द्वारा मंत्री जी को आपदा पीड़ितों के प्रति अगंभीर बताये जाने और हरक सिंह द्वारा गंभीर होने के दावे के बीच एंकर ने फिर पुष्पेश जी से इस मसले पर टिपण्णी मांगी. गोया पुष्पेश जी के पास कोई रिक्टर स्केल टाइप गंभीरता मापक स्केल हो कि वे बता सकें कि मंत्री जी गंभीर थे कि नहीं. पुष्पेश जी ने तो ठान रखी थी कि हरक सिंह की तारीफ़ में सब धरती कागद कर देनी है और सात समुद्र की मसि घिस देनी है. सो तपाक अपनी चिर-परिचित एक सौ अस्सी किलोमीटर प्रति घंटे के रफ़्तार से भागती जुबान से उन्होंने ऐलान कर डाला कि "रौतेला साहब की बात जायज है और मुझे लगता है कि रावत साहब की बात भी अपनी जगह पे जायज है". एक आदमी कह रहा है कि हमने मंत्री जी को बताया कि हमारे इलाके में सब तबाह हो गया है, आप कुछ करो. मंत्री जी मान रहे हैं कि हाँ ऐसी गुहार लगायी गयी थी, लेकिन कार्यवाही के नाम पर उनके पास कई बहाने हैं. लेकिन पञ्च परमेश्वर फरमाते हैं कि जिसने कार्यवाही करने को कहा और कार्यवाही नहीं हुई, वो भी सही है तथा जिसके कंधे पर कार्यवाही का जिम्मा था, लेकिन उसके पास सफाई में बहाने ही बहाने हैं-वो भी सही है ! हरक सिंह रावत की तरफदारी में नए किस्म का तर्कशास्त्र अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के विद्वान ने गढा कि कार्यवाही ना करने के बावजूद वे सही हैं. कुतर्क इसके अलावा कोई दूसरे किस्म की चीज होती है क्या ?

    इतने पर ही पुष्पेश जी नहीं ठहरे बल्कि इसके आगे बढ़ कर उन्होंने ऐलान कर डाला कि "रावत साहब हमारे दुर्भाग्य से,हमारे सूबे के मुख्यमंत्री नहीं हैं". ज़रा इस पर भी नजर डाल लें कि जिन हजरत के मुख्यमंत्री ना होने को पुष्पेश जी अपना दुर्भाग्य कह रहे हैं, इन महानुभाव में काबिले तारीफ़ क्या है ?1991 मे उत्तरकाशी भूकंप के समय राहत में धांधली के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह और इन हजरत के खिलाफ मुकदमा हुआ था. (तब ये कमल के फूल वाली पार्टी में थे, अब अप्रैल फूल बनाने वाली में) राज्य बनने के बाद पटवारी भर्ती में घपला भी इन्ही की छत्र-छाया में फला-फूला. वर्तमान सरकार में भी लाभ के पद का मामला, इनके विरुद्ध गर्माया तो इन्होने उस पद से इस्तीफा दिया. इनकी संवेदनशीलता का नमूना तो इस आपदा के दौरान दिखा कि आपदाग्रस्त क्षेत्रों को जाने वाले हेलिकॉप्टर में पत्रकार घूम सकें, इसके लिए इन्होने राहत सामग्री उतरवा दी. पुष्पेश जी क्षमा करें, इसे अगर आप अपना दुर्भाग्य समझते हैं तो आप, अपना एक नया राज्य या देश जो चाहें बसाना चाहते हों, बसाएं. फिर हरक सिंह रावत को उसमें आप मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, महाराजाधिराज और जिस भी पदवी से आप नवाजना चाहें,नवाज लें. खुद आप भी उनके सलाहकार-इन-चीफ,महामात्य आदि-आदि जो होना चाहें, हो लें. उत्तराखंड की जनता को ऐसा कोई अफ़सोस नहीं है. उसे अगर कोई अफ़सोस है तो वो, यह कि अब तक जितने मुख्यमंत्री-मंत्री हुए,क्या इन्ही के लिए, उसने कुर्बानियों से यह राज्य बनाया था. उसका दुर्भाग्य इनका मुख्यमंत्री और मंत्री होना है,इनका मुख्यमंत्री ना होना नहीं.

    एक छोटी जगह का अध्यापक है जो बिना किसी भत्ते,इन्क्रीमेंट की चाह रखे,रात-दिन एक कर आपदा पीड़ितों की मदद में लगा हुआ है.अपनी पीड़ा और संवेदनाओं के चलते,बिना नौकरी की परवाह किये, वह राज्य के शक्तिशाली और दबंग मंत्री को कठघरे में खडा करने से भी नहीं चूक रहा है.एक दूसरा बड़ा भारी नामधारी प्राध्यापक है, जो टी.वी.-रेडियो स्टूडियो में बैठ कर शब्द जाल भी अपने हिडन-एजेंडे के साथ रच रहा है. अब बताए इनमें छोटा कौन और बड़ा कौन ,बड़ा नामधारी या जमीन पर काम करने वाला ?

    पूरा उत्तराखंड आपदा से त्राहि-त्राहि कर रहा है और इस त्रासदी के दर्द को मुख्यमंत्री और उनके मंत्रियों की संवेदनहीनता ने और गहरा दिया.ऐसे में संवेदनशीलता के लिए ख्याति प्राप्त विश्वविद्यालय-जे.एन.यू. के प्रोफेसर पुष्पेश पन्त द्वारा विफल आपदा प्रबंधन की चर्चा में हरक सिंह रावत पर तारीफों की पुष्प वर्षा करना लाशों पर राजनीति या कहें कि लाशों पर अपना उल्लू सीधा करना नहीं तो क्या कहा जाएगा ?

    साभार : Indresh Maikhuri
    3Like ·  · 
    • Sunil Dobriyal koi bhi ho moka, maar de choka.
    • देवसिंह रावत पूरा उत्तराखंड आपदा से त्राहि-त्राहि कर रहा है और इस त्रासदी के दर्द को मुख्यमंत्री और उनके मंत्रियों की संवेदनहीनता ने और गहरा दिया.ऐसे में संवेदनशीलता के लिए ख्याति प्राप्त विश्वविद्यालय-जे.एन.यू. के प्रोफेसर पुष्पेश पन्त द्वारा विफल आपदा प्रबंधन की चर्चा में हरक सिंह रावत पर तारीफों की पुष्प वर्षा करना लाशों पर राजनीति या कहें कि लाशों पर अपना उल्लू सीधा करना नहीं तो क्या कहा जाएगा ?
      6 hours ago · Like · 5
    • Lmohan Kothiyal Ek sujhav- Pushpesh pant G Dilli ke bajaye rudraprayag jayen aur tab debate mein bhag lein.
      5 hours ago · Edited · Like · 3
    • Purushottam Sharma हरकसिंह को मुख्यमंत्री बनाकर कहीं दून विश्वविद्यालय का कुलपति बनकर आने का इरादा तो नहीं है ?
      5 hours ago · Like · 6
    • चन्द्रशेखर करगेती हाँ रे हाँ रे बुद्धिजीवी...
      5 hours ago · Like · 3
    • Mohan Bhandari कई लोगो को ग़लतफ़हमी होती है की उत्तराखंड के एकमात्र बुद्धिजीवी वो ही हैं ...धरातल में काम करें तो ज्यादा बेहतर ...
      4 hours ago · Like · 4
    • Harendra S Madeti Don't worry, Pushpesh Pant has no clout in 10 Jan Path! Moreover, as someone has observed - Harak maane beda garak!
      4 hours ago · Like · 2
    • Girishchandra Pokhriyal shamful for mr pushpesh pant HARAK SINGH IS ONE OF MOST INFAMOUS MINISTER/ PERSON OF UTTRAKHAND
    • गिरीश चौधरी पुष्पेश जी ने शायद इन फोटोखिंचाउ हजरत को आजकल हिन्दी के न्यूज चैनलो में नही देखा होगा, एक पायलट दिन रात हेलिकॉप्टर लेकर इनकी ही सेवा में हैं और आपदा के प्रति संवेदनशील तो ये इतने अधिक हैं कि खुद के घूमने के लिए इन्होने आपदाग्रस्त क्षेत्रों को जाने वाले हेलिकॉप्टर से राहत सामग्री तक उतरवा दी... अगर हमारे दुर्भाग्य से ये मुख्यमंत्री बन जायें, तो हवाई दौरों के सिवा कुछ और नही इनके बस का...............
      2 hours ago · Like · 1
    • Krishan Kumar नारायण दत्त तिवारी जी की सरकार मे माननीय हरक सिंह रावत जी आपदा प्रबन्धन मंत्री थे. तब देवप्रयाग के समीप एक कार गंगा नदी मे गिर गई थी. एक ह्फ़्ते तक कार से सभी शवों को निकाला नहीं जा सका. हरक सिंह रावत जी तब पट्वारी भर्ती के काम मे जी जान से लगे हुये थे....See More

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