Welcome

Website counter
website hit counter
website hit counters

Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Thursday, July 25, 2013

छत्रपति शाहू जी महाराज:आरक्षण के जनक

छत्रपति शाहू जी महाराज:आरक्षण के जनक

                                   एच एल दुसाध

भारतवर्ष आरक्षण का देश है.कारण,धर्माधारित जिस वर्ण-व्यवस्था  के द्वारा यह देश सदियों से परिचालित होता रहा है,वह वर्ण-व्यवस्था मुख्यतः शक्ति के स्रोतों-आर्थिक ,राजनीतिक और धार्मिक- के बंटवारे की व्यवस्था रही है.इसमें अध्ययन-अध्यापन,पौरोहित्य और राज्य संचालन में मंत्रणादान ब्राह्मणों;भूस्वामित्व,राज्य संचालन और सैन्य वृत्ति क्षत्रियों तथा पशुपालन ,व्यवसाय-वाणिज्यादि का कर्म वैश्यों के लिए निर्दिष्ट रहे .शुद्रातिशुद्रों के हिस्से में आई पारिश्रमिकरहित तीन उच्चतर वर्णों की सेवा.चूँकि इसमें  धर्मादेशों से कर्म-संकरता (प्रोफेशन मोबिलिटी) पूरी तरह निषिद्ध रही इसलिए भिन्न –भिन्न पेशे/कर्म पीढ़ी दर पीढ़ी, भिन्न-भिन्न वर्णों के लिए स्थाई तौर पर निर्दिष्ट होकर रहे गए .ऐसे में वर्ण व्यवस्था ने एक ऐसे आरक्षण-व्यवस्था का रूप ले लिया,जिसमें शक्ति  के स्रोतों में बहुसंख्यक समाज (शुद्रतिशूद्रों) को रत्ती भर भी हिस्सेदारी नहीं मिली और यह समाज चिरकाल के लिए शक्तिहीन होने को अभिशप्त हुआ.ऐसे शक्तिहीन बहुसंख्यक समाज को बौद्धोत्तर काल के सदियों बाद किसी व्यक्ति ने पहली बार शक्ति के स्रोतों में हिस्सेदारी दिलाने का सफल दृष्टान्त  कायम किया तो वह थे कोल्हापुर नरेश छत्रपति शाहू जी महाराज.

26 जुलाई 1874 को कोल्हापुर राजमहल में जन्मे शाहू जी छत्रपति शिवाजी के पौत्र तथा आपासाहब घाटगे कागलकर के पुत्र थे.उनके बचपन का नाम यशवंत राव था.तीन वर्ष की उम्र में अपनी माता को खोने वाले यशवंत राव को 17 मार्च 1884 को कोल्हापुर की रानी आनंदी बाई ने गोंद लिया तथा उन्हें छत्रपति की उपाधि से विभूषित किया गया.बाद में 2 जुलाई 1894 में उन्होंने कोल्हापुर का शासन सूत्र अपने हाथों में लिया और 28 साल तक वहां का शासन किये .19-21अप्रैल 1919 को कानपुर में आयोजित अखिल भारतीय कुर्मी महासभा के 13 वें राष्ट्रीय सम्मलेन में उन्हें राजर्षि के ख़िताब से नवाजा गया.

शाहू जी की शिक्षा विदेश में हुई तथा जून 1902  में उन्हें  कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से एल.एल.डी. की मानद उपाधि प्राप्त हुई जिसे पानेवाले वे पहले भारतीय थे.इसके अतिरिक्त उन्हें जी.सी.एस.आई.,जी.सी.वी.ओ.,एम्.आर.इ.एस. की उपाधियाँ भी मिलीं.एक तेंदुए को पलभर  में ही खाली हाथ मार गिराने वाले शाहू जी असाधारण रूप से मजबूत थे .उन्हें रोजाना दो पहलवानों से लड़े बिना चैन नहीं आता था.

    शाहू जी ने जब कोल्हापुर रियासत की बागडोर अपने हाथों में ली उस समय एक तरफ ब्रिटिश साम्राज्यवाद तो दूसरी तरफ ब्राह्मणशाही जोर शोर से क्रियाशील थी .उस समय भारतीय नवजागरण के नायकों के समाज सुधार कार्य तथा अंग्रेजी कानूनों के बावजूद आम आदमी वर्ण-व्यवस्था सृष्ट विषमता की चक्की में पीस रहा था.इनमें दलितों की  स्थिति जानवरों से भी बदतर थी.शाहू जी ने उनकी दशा में बदलाव लाने के लिए चार स्तरों पर काम करने का मन बनाया .पहला,उनकी शिक्षा की व्यवस्था तथा दूसरा, उनसे सीधा संपर्क करना.तीसरा ,प्रशासनिक पदों पर उन्हें नियुक्त करना एवं चौथा उनके हित में कानून बनाकर उनकी हिफाजत करना.अछूतों की शिक्षा के लिए जहाँ उन्होंने ढेरों  पाठशालाएं खुलवायीं वहीँ अपने प्रचार माध्यमों द्वारा घर-घर जाकर उनको शिक्षा का महत्व समझाया.उन्होंने उनमें  शिक्षा के प्रति लगाव पैदा करने के लिए एक ओर जहाँ उनकी फीस माफ़ कर दी वहीँ दूसरी ओर स्कालरशिप देने की व्यवस्था कराया.उन्होंने राज्यादेश से अस्पृश्यों को सार्वजनिक स्थलों पर आने-जाने की छूट दी तथा इसका विरोध करने वालों को अपराधी घोषित कर डाला.

दलितों की दशा में बदलाव लाने के लिए उन्होंने दो ऐसी  विशेष प्रथाओं का अंत किया जो युगांतरकारी साबित हुईं.पहला,1917 में उन्होंने उस 'बलूतदारी-प्रथा' का अंत किया,जिसके तहत एक अछूत को थोड़ी सी जमीन देकर बदले में उससे और उसके परिवार वालों से पूरे गाँव के लिए मुफ्त सेवाएं ली जाती थीं.इसी तरह 1918 में उन्होंने कानून बनाकर राज्य की एक और पुरानी प्रथा 'वतनदारी' का अंत किया तथा भूमि सुधार लागू कर महारों को भू-स्वामी बनने का हक़ दिलाया.इस आदेश से महारों की आर्थिक गुलामी काफी हद तक दूर हो गई.दलित हितैषी उसी कोल्हापुर नरेश ने 1920 में मनमाड में दलितों की विशाल सभा में सगर्व घोषणा करते हुए कहा था-'मुझे लगता है आंबेडकर के रूप में तुम्हे तुम्हारा मुक्तिदाता मिल गया है .मुझे उम्मीद है वो तुम्हारी गुलामी की बेड़ियाँ काट डालेंगे.'उन्होंने दलितों के मुक्तिदाता की महज जुबानी प्रशंसा नहीं की बल्कि उनकी अधूरी पड़ी विदेशी शिक्षा पूरी  करने तथा दलित-मुक्ति के लिए राजनीति को हथियार बनाने में सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान किया.किन्तु वर्ण-व्यवस्था में शक्ति के स्रोतों से बहिष्कृत तबकों के हित में किये गए ढेरों कार्यों के बावजूद इतिहास में उन्हें जिस बात के लिए खास तौर से याद किया जाता है,वह है उनके द्वारा किया गया आरक्षण का प्रावधान.

हम जानते हैं भारत सिर्फ आरक्षण का ही देश नहीं है,बल्कि दुनिया के अन्य देशों के विपरीत यहाँ के वर्ग संघर्ष का इतिहास भी आरक्षण पर केन्द्रित रहा है.खास तौर से दलित –पिछड़ों को मिलनेवाले आरक्षण पर देश में कैसे गृह-युद्ध की स्थिति पैदा हो जाती है ,यह हमने मंडल के दिनों में देखा .तब मंडल रिपोर्ट के खिलाफ देश के शक्तिसंपन्न तबके के युवाओं ने जहां खुद को आत्म-दाह और राष्ट्र की संपदा-दाह में झोंक दिया ,वहीँ सवर्णवादी संघ परिवार ने राम जन्मभूमि –मुक्ति आन्दोलन के नाम पर स्वाधीन भारत का सबसे बड़ा आन्दोलन खड़ा कर दिया,जिसके फलस्वरूप राष्ट्र की बेसुमार संपदा तथा असंख्य लोगों की प्राण हानि हुई.बाद में मंडल-2 के दिनों (2006 में जब पिछड़ों  के लिए उच्च शिक्षण संस्थाओं के प्रवेश में आरक्षण लागू  हुआ) में पुनः गृह-युद्ध की स्थिति पैदा कर दी गई.आरक्षण पर यहाँ कैसा कोहराम मचता है इसका उज्जवल दृष्टान्त अभी इलाहाबाद में देखा जा सकता है.तो 21वीं सदी में जहाँ सारी  दुनिया जिओ और जीने दो की राह पर चल रही है,वहीँ भारत के परम्परागत सुविधासंपन्न लोग आरक्षण के नाम पर गृह –युद्ध की स्थिति पैदा किये जा रहे हैं,ऐसे हालात में 1902 के उस हालात की सहज कल्पना की जा सकती जब शाहू जी महाराज ने चित्तपावन ब्राह्मणों के प्रबल विरोध के मध्य 26 जुलाई को अपने राज्य कोल्हापुर की शिक्षा तथा सरकारी नौकरियों में दलित-पिछड़ों के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण लागू किया.यह  आधुनिक भारत में जाति के आधार मिला पहला आरक्षण था.इस कारण शाहू जी आधुनिक  आरक्षण के जनक कहलाये.ढेरों लोग मानते हैं कि परवर्तीकाल में बाबासाहेब डॉ.आंबेडकर ने शाहू जी द्वारा लागू किये गए आरक्षण का ही विस्तार भारतीय संविधान में किया.अगर शाहू जी ने 20 वीं सदी की शुरुआत में आधुनिक आरक्षण का प्रारंम्भ नहीं किया होता,आज 21 वीं सदी में क्या सर्वव्यापी आरक्षणवाले  डाइवर्सिटी आन्दोलन का वजूद नज़र आता? सुप्रिद्ध जीवनीकार धनंजय कीर ने यूँ ही नहीं निम्न पंक्तियाँ लिखा .

'छत्रपति की देशभक्ति उनके ह्रदय का विकास है.उनकी उनमें बसी हुई मानवसेवा का विकास है.भारत में कई अच्छे राजा एवं नेता आकर चले गए ,उनके रत्नजड़ित सिंहासन काल के हृदय में समा गए.सम्राटों के राजपाट नक़्शे पर से मिट गए.परन्तु जो राजा राजर्षि बने उनके ही नाम केवल इतिहास में अजरामर बने रहे.जननेता होकर भी जनसागर की लहर पर आरूढ़ होकर राजवैभव में चमकनेवाला शाहू छत्रपति जैसा राजर्षि दुर्लभ है.'

दिनांक:23जुलाई,2013-(लेखक बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं)                            


No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...