सखुआ के पेड़ मंजरा गए हैं सलवा जुड़ुम के कीड़े मर रहे हैं नवयुवती जंगल में मुस्करा रही है
सखुआ के पेड़ मंजरा गए हैं
सलवा जुड़ुम के कीड़े मर रहे हैं
नवयुवती जंगल में मुस्करा रही है
यह एक मुण्डारी आदिवासी गीत की पुनर्प्रस्तुति है.
भाव और विचार वही हैं. सिर्फ संदर्भ नया जोड़ दिया है.
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