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Monday, July 22, 2013

दलितलेखकों की भारतीय परंपरा में उपेक्षा नहीं हुई है बल्कि वे सिरमौर रहे हैं। Jagadishwar Chaturvedi आज गुरूपूर्णिमा है-


दलितलेखकों की भारतीय परंपरा में उपेक्षा नहीं हुई है बल्कि वे सिरमौर रहे हैं। 
आज गुरूपूर्णिमा है-

दलितसाहित्य का नया आधार बनाने के लिए भारतीय ज्ञान परंपरा का बेहतरीन ज्ञान होना बेहद जरूरी है। जाति के आधार पर लेखकों को वर्गीकृत करने वालों के लिए यह बेहतर होगा कि भारतीय ज्ञान परंपरा को ठीक से वर्गीकृत करें तो पाएंगे कि दलितलेखकों की भारतीय परंपरा में उपेक्षा नहीं हुई है बल्कि वे सिरमौर रहे हैं। वेदव्यास के बाद उनके बेटे शुकदेव का नाम आता है और वे भी दलित थे।
पौराणिक-महाकाव्य युग की महान विभूति, महाभारत, अट्ठारह पुराण, श्रीमद्भागवत, ब्रह्मसूत्र, मीमांसा जैसे अद्वितीय साहित्य-दर्शन के प्रणेता वेदव्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को लगभग ३००० ई. पूर्व में हुआ था। वेदांत दर्शन, अद्वैतवाद के संस्थापक वेदव्यास ऋषि पराशर के पुत्र थे। पत्नी आरुणी से उत्पन्न इनके पुत्र थे महान बाल योगी शुकदेव।

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