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Saturday, July 13, 2013

Lekin is ub ke bawjud social networking ke alawa tatkal humein apni baat kahne ka koi madhayam bhi uplabdh nahi hai.Nainital samachar pakshik hai abbhi aur uski pahunch bhi simit hai.Isliye humara nivedan hai ghuspaithiyo ki parvah kiye bina aap net par bane rahe.Kam se kam hum jaise log himalay ki dharkano ko mahsus karne ke liye aap logon ke intzaar mein rahte hain.Humaare paas bhi apnee baat kahne ka koi vikalp nahi hai.

Status Update
By Rajiv Lochan Sah
एक प्रार्थना:-
देहरादून में आन्दोलनों की एक बहुत पुरानी साथी से पूछा कि आजकल फेसबुक पर क्यों नहीं दिखाई देती हो ? उसका जवाब था, ''दा, ऊब होनी लगी है। न जाने कहाँ-कहाँ से नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी के चेले घुस आये हैं।'' बिल्कुल यही बात मुझे भी कहनी है। अपनी नादानी में मैंने किसी भी फ्रेंड रिक्वेस्ट को अस्वीकार नहीं किया। यह लालच भी था कि मेरी बातें ज्यादा से ज्यादा लोग पढ़ रहे हैं। मगर इस बेवकूफी से न जाने कहाँ-कहाँ का कूड़ा-करकट मेरी मित्रमंडली में शामिल हो गया। इधर तो इन कांग्रेसियों और भाजपाइयों ने अति कर दी है। नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी को गद्दी पर बैठाने के लिये आकाश-पाताल एक कर रखा है। या तो ये लोग बहुत बेवकूफ और भोले या हैं या फिर परले दर्जे के धूर्त। जिन्हें आज की सड़ चुकी राजनीति का विकल्प तलाश करने की बेचैनी न हो, जो तानाशाही की ओर बढ़ती इस केन्द्रीकृत राजनीति में भाजपा और कांग्रेस के बीच फुटबाॅल बने रहने की गतानुगतिकता में विश्वास करते हों और इसके लिये नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी की चाकरी करने को तैयार हों वे बराय मेहरबानी मुझे बख्श दें। मुझे अपना उत्तराखंड, अपना हिमालय और अपना भारत प्यारा है। मैं देश को बेच खाने वाले इन पाखंडियों और धार्मिक उन्मादियों को बर्दाश्त नहीं कर सकता।
ऐसे लोग मुझे अपनी फ्रेंड्स लिस्ट से बाहर कर दें तो बड़ा उपकार होगा। मैं उन्हें चुन-चुन कर अलग करने की कोशिश करूँगा तो ढेर सारा समय और श्रम जाया होगा।

एक सूचना:-
प्रारम्भिक बातचीत के आधार पर गिरदा की तीसरी बरसी इस बार अल्मोड़ा में किये जाने पर सहमति बनी है। हालाँकि अभी न तिथि तय हो पायी है, न स्थान और न कार्यक्रम का कोई स्वरूप। अपने सुझाव दें, क्योंकि डेढ़ माह से भी कम समय रह गया है।

और दो किस्से:-
देहरादून में सत्ता के 'हमबिस्तर' हो चुके मीडिया के बीच से कुछ मजेदार किस्से निकल आते हैं। केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश की आपदा को लेकर मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के साथ एक संयुक्त प्रेस कांफ्रेस थी। अब रमेश की छवि मेहनती, ईमानदार और संवेदनशील मंत्री की तो है ही। उड़ीसा में उनके द्वारा खनन बन्द करवाने से नाराज होकर ही वेदान्ता ने उन्हें पर्यावरण मंत्रालय से बाहर करवा दिया था। बहुगुणा की नाकाबिलियत से वाकिफ रमेश ने सोचा होगा कि देहरादून के 'तेजस्वी' पत्रकार बहुगुणा की जम कर खाल खींचें। जिस वक्त बहुगुणा बोल रहे थे, जयराम रमेश ने कागज का एक पुर्जा अपनी दाहिनी ओर बैठे एक टी.वी. पत्रकार की ओर सरका दिया। पुर्जे पर लिखा था, 'हिट हिम।' टी.वी. पत्रकार की घिग्घी बँध गई। वह पुर्जे को अनदेखा कर सिर झुकाये हुए मुख्यमंत्री के एक-एक शब्द को पीते हुए स्टेनोग्राफर की अपनी भूमिका निभाता रहा। रमेश की समझ में आ गया होगा कि इस प्रदेश में सीधी रीढ़ वाले पत्रकार अब नहीं बचे।
पौंटी चड्ढा हत्याकांड से बेदाग निकल आये सर्वशक्तिशाली प्रमुख सचिव राकेश शर्मा को कौन नहीं जानता ? वे कुछ टी.वी. पत्रकारों के साथ 'हा-हा, ही-ही' कर रहे थे। तभी खूब प्याज खाकर नये-नये मुल्ला बने एक पत्रकार ने उन्हें टोक दिया, ''सर राहत तो कहीं पहुँच ही नहीं रही है। मोटर सड़क से चार-पाँच किमी दूर भी कोई नहीं जाना चाहता। मंत्री तो मंत्री, अधिकारी भी अब हेलीकोप्टर का ही मुँह जोहते हैं।'' यह सुनना था कि राकेश शर्मा का पारा चढ़ गया। वे उबल पड़े, ''हेलीकाॅप्टर में बैठना पाप है क्या ? हेलीकाॅप्टर और होते काहे के लिये हैं ?'' शर्मा जी का गुस्सा देख कर टी.वी. पत्रकार घिघियाने लगे, ''अरे सर, आप तो गुस्सा हो गये.....बात ऐसी जो क्या थी......आप तो इतना कर रहे हैं....

Unlike ·  · 
  • Pradeep Mandoliya पुरे देश में आज युवा नेत्तृतव की
  • Palash Biswas Lekin is ub ke bawjud social networking ke alawa tatkal humein apni baat kahne ka koi madhayam bhi uplabdh nahi hai.Nainital samachar pakshik hai abbhi aur uski pahunch bhi simit hai.Isliye humara nivedan hai ghuspaithiyo ki parvah kiye bina aap net par bane rahe.Kam se kam hum jaise log himalay ki dharkano ko mahsus karne ke liye aap logon ke intzaar mein rahte hain.Humaare paas bhi apnee baat kahne ka koi vikalp nahi hai.


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