नागरिकता निलंबित नहीं की जा सकती
और न स्थगित की जा सकती है
नागरिक से सेवा अनिवार्य कोई
हम लोग बार बार यह कहते रहे हैं
अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश भी है
Selective stimulus plan in the works to revive growth; some sectors may get direct line of credit
पलाश विश्वास
आपको मिल रही सब्सिडी अब डाइवर्ट हो रही कारपोरेट फंड में
याद करें कि अर्थसंकट पर हमाने खुलासा किया था
असली चाल है विदेशी कंपनियों को फायदा पहुंचाने की
परमाणु उत्तरदायित्व कानून तो पहले से घातक है
एलपीजी ईश्वर उसके दांत तोड़ रहे हैं अब
सबसे खतरनाक बात यह है कि
रिजर्व बैंक का हो रहा गलत इस्तेमाल
अमेरिकी फेडरल बैंक की नीतियों की आड़ में
सारी परियोजनाएं नरसंहार की हो रही हैं चालू
और फिर कारपोरेट स्टीमुलस अबाध
यानी आपका पैसा अब सीधे कारपोरेट जेबों में
दंगों का भी खूब होने लगा है इस्तेमाल
बाजार के लिए सबस जरुरी है धर्मोन्माद
सिंहद्वार पर दस्तक बहुत तेज है
जागसको तो जाग जाओ भइया
बहुत खूब गरीबी उन्मूलन है
मंगल अभियान पर चार सौ पचास करोड़
निनानब्वे फीसद बहुजनों को
अब मंगल में डिपोर्ट करने की तैयारी है
हर नागरिक पहचान देने वाला आधार कार्ड बनवाना अब अनिवार्य नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अपने एक फैसले में कहा है कि आवश्यक सेवाओं जैसे एलपीजी कनेक्शन, टेलिफोन वगैरह के लिए आधार कार्ड अनिवार्य नहीं है। साथ ही यह भी कहा कि आधार कार्ड बनाने का फैसला लोगों की इच्छा पर है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान दिया। पहले कई चीजों के लिए आधार कार्ड का होना जरूरी था, जिससे जिनके पास आधार कार्ड नहीं था उन्हें परेशानी हो रही थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को यह भी निर्देश दिया है कि इस बात का ध्यान रखा जाए कि किसी भी अवैध नागरिक का आधार कार्ड न बने।
दरअसल पहले खबरें थीं कि रसोई गैस पर दी जाने वाली सब्सिडी आधार कार्ड से जुड़े आपके बैंक अकाउंट में आएगी। सब्सिडी की राशि तभी अकाउंट में आएगी, जब आपने आधार कार्ड बनवाकर अपने बैंक अकाउंट से उसे लिंक कराया होगा। यह भी बात सामने आ रही थी कि आधार कार्ड न होने पर मार्केट रेट पर एलपीजी सिलेंडर खरीदना पड़ेगा।
हालांकि, इसके पहले केंद्र सरकार ने भी साफ तौर पर कहा था कि सरकारी सब्सिडी का फायदा लेने के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य नहीं बनाया गया है। चाहे मामला एलपीजी का हो या कुछ और।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अपने एक फैसले में केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिए हैं कि इस बात का ध्यान रखा जाये कि किसी भी अवैध नागरिक का आधार कार्ड न बने । इसके साथ ही अदालत ने ये भी निर्देश दिए हैं कि आवश्यक सेवाओं जैसे एलपीजी कनेक्शन, टेलीफोन वगैरह के लिये आधार कार्ड अनिवार्य नहीं है।
संसदीय कार्य राज्यमंत्री राजीव शुक्ला ने राज्यसभा में कहा था कि सब्सिडी वाली किसी भी सरकारी योजना के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य नहीं बनाया गया है। उन्होंने कहा कि अगर कोई केंद्रीय उद्यम ऐसा कर रहा है तो उसमें सुधार किया जाएगा।
दरअसल पहले खबरें थीं कि रसोई गैस पर दी जाने वाली सब्सिडी आधार कार्ड से जुड़े आपके बैंक अकाउंट में आएगी। सब्सिडी की राशि तभी अकाउंट में आएगी, जब आपने आधार कार्ड बनवाकर अपने बैंक अकाउंट से उसे लिंक कराया होगा। यह भी बात सामने आ रही थी कि आधार कार्ड न होने पर मार्केट रेट पर सिलेंडर खरीदना पड़ेगा। सबसे ज्यादा भ्रम की स्थिति एलपीजी के मसले पर ही थी जो कोर्ट के फैसले के बाद अब दूर हो गई है।
नागरिकता निलंबित नहीं की जा सकती
और न स्थगित की जा सकती है
नागरिक से सेवा अनिवार्य कोई
हम लोग बार बार यह कहते रहे हैं
अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश भी है
इसके बावजूद
आप सोते रहे तो
वही होना है
जिसकी योजना परियोजना है
खनिज उसीका
जिसकी है जमीन
बहुत पहले आ गया
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
नियमागिरि पर वेदांत को रोकते हुए भी
सुप्रीम कोर्ट का आदेश है
कि पर्यावरण हरी झंडी के साथ
स्थानीय पंचायतों की सहमति अनिवार्य है
योजनाबद्ध ढंग से दर्जनों में
से सिर्फ चौदह पंचायतों में हुई जनसुनवाई
चौदह पंचायतो ने ही एक मुश्त लाल झंडी दिखा दी
फिर पांचवी और छठीं अनुसूचियां हैं
संविधान की धारा तीन बी और सी है
संपत्ति के मौलिक अधिकार है
पर्यावरण और वनाधिकार कानून हैं
लेकिन डीएमसीआई के तहत
मुंबई दिल्ली महासत्यानाश गलियारे में
चौबीस मेगा सिटी की योजना
बिना सुनवाई लागू है
बिना सुनवाई सूबों के सिपाहसालार
भूदान यज्ञ में व्यस्त हैं
एक दूसरे के खिलाफ लामबंद है
विदेशी पूंजी के लिए
इसी तरह फिर अर्थ संकट के
बादल छंटते ही
फेडरल फैसला अमेरिका से आते ही
पास है कोलकाता अमृतसर
महासत्यानाश गलियारा
जहां चालीस नये स्टेशन शहर बनेंगे
दोनों गलियारों पर न होगा खेत कोई
न होगा खलिहान कहीं
एक मुश्तमार दिया जायेगा देहात
चारों तरफ सेज नहीं,महासेज होंगे
आम भारतीय हम और आप
जब तक सोते रहेंगे
ऐसा ही होता रहेगा
सुप्रीम कोर्ट की
अवमानना होती रहेगी
न संविधान कहीं लागू होगा
और न कहीं होगा
कानून का राज
ङम अंध भक्त
मसीहा की शादी का जश्न मानाते रहेंगे
आजादी के लिए वोट डालते रहेंगे
करते रहेंगे थैलियां भेंट
प्रवचन पर्बोधन जारी रहेगा
हाथ में कुछ नहीं आयेगा
हाथ में जो कुछ है जाता रहेगा
नौकरियां गयीं
भविष्य गया,भविष्यनिधि भी गयीं
पेंशन गया,पीएफ का बंटाधार
जमापूंजी सबकुछ अब बाजार
फेडरल फैसले के बाद प्रधानमंत्री ने
घोषणा की है बिजली परियोजनाओं के
लिए खास मुहिम की भी
यानी हिमालय से समुद्र तक
हर कहीं होगा ऊर्जा प्रदेश का विस्तार
पूरा देश अब हिमालयी
जलसुनामी है
अब फिर गिरा शेयर बाजार
हर जरुरी नीति निर्धारण के पहले
हर अहम घोषणा के पहले
हर कानून संशोधन के पहले
क्यों गिरता है शेयर बाजार
क्यों बढ़ता है राजस्व घाटा
क्यों डांवाडोल होता है
देश का भुगतानसंतुलन
क्यों विकास दर पर हंगामा बरपाया जाता है
अब नहीं समझे तो
कब समझोगे भइया
सब्सिडी हमारे लिए खत्म है
थाली पर सर्वशिक्षा
और खाद्य सुरक्षा भी है
मलहम के लिए सूचना का अकार भी
मंगल अभियान के लिए एक मुश्त
चार सौ पचास करोड़ का न्यारा वारा
वाह,अभिनव अर्थ संकट है
प्रतिरक्षा के लिए और
आंतरिक सुरक्षा के लिए
बजट बढ़ रहा है निरंतर
कितना सौदा है और कितना कमीशन
परदे के पीछे रहा है निरंतर
बेशर्म कमीशनखोरी अब देशभक्ति है
राष्ट्र की एकता और अखंडता है
कारपारेट इंडिया की सलाह थी निरंतर
इकानामिक क्राइसिस को
वेस्ट मत होने दो
नीतिनिर्धारण विकलांगता को लेकर
फिक्रमंद था वाशिंगटन भी
सुधार पर जोर था जितना
उससे ज्यादा जोर था आधार पर
बहुसंख्य जनघण को
निराधार बनाने पर
अब लीजिये स्टिमुलस प्लान भी तैयार
शेटर गिरा,अर्थ संकट गहराया
आपके हमारे श्राद्ध के लिए अब
सबसे जरुरी है शहरीकरण,
सत्यानाश गलियारा
उद्योगों को प्रोत्साहन
अंधाधुंध भूमि अधिग्रहण
निर्मम नरसंहार
हम मरेंगे तभी होगा भारत उदय
इसलिए हमारी मृत्यु अनिवार्य
हम मारे जाएंगे तभी होगा
तभी होगा भारत निर्माण
इसलिए इस देश के किसानों की तरह
हम सबको जल्द से जल्द आत्महत्या
कर लेना चाहिए
क्योंकि हम देश भक्त हैं
हम हैं धर्मोन्मादी
राष्ट्रवाद की पैदल सेनाएं
स्वजन हत्यारे हम सारे
इसीलिए अब देश बेचने की खुली छूट है
सिंहद्वार पर दस्तक बहुत भारी है
जाग सको तो जाग जाओ भइया
आपको मिल रही सब्सिडी अब
डाइवर्ट हो रही कारपोरेट फंड में
याद करें कि अर्थसंकट पर हमाने खुलासा किया था
असली चाल है विदेशी कंपनियों को फायदा पहुंचाने की
परमाणु उत्तरदायित्व कानून तो पहले से घातक है
एलपीजी ईश्वर उसके दांत तोड़ रहे हैं अब
सबसे खतरनाक बात यह है कि
रिजर्व बैंक का हो रहा गलत इस्तेमाल
अमेरिकी फेडरल बैंक की नीतियों की आड़ में
सारी परियोजनाएं नरसंहार की हो रही हैं चालू
और फिर कारपोरेट स्टीमुलस अबाध
यानी आपका पैसा अब सीधे कारपोरेट जेबों में
दंगों का भी खूब होने लगा है इस्तेमाल
बाजार के लिए सबसे जरुरी है धर्मोन्माद
सिंहद्वार पर दस्तक बहुत तेज है
जाग सको तो जाग जाओ भइया
संसद सत्र में ही पूरी तैयारी थी
हुआ हंगामा खूब दिखावे का
बाकी सर्वदलीय सहमति थी
मनमोहन राज में बाजार निरंकुश
तो मोदीराज में भीऔर होगा निरंकुश
हिटलर के उत्थान से पहले
यूरोप का इतिहास पलट लें
टाइममशीन की सवारी कर लें
और उलटपुलट कर देख लें जर्मनी
विडंबना यही है कि
उसी इतिहास को दुहरा रहे हैं हम
विशुद्धता के चक्रवात में फंसे हैं हम
विशुद्ध आर्यवंशजों के जाल में
पंस गया पूरा महादेश
फर्क यह है कि भारत में अब
समीकरण उससे भी खतरनाक है
यहूदियों के खिलाफ था
हिटलर का जिहाद
इसके उलट भारत में
इजराइली तंत्र है बहुत मजबूत
भारत के धर्मोन्माद के
कारोबारी तमाम जायनवादी है सिरे से
और भारत अब अमेरिका है
कोई संसदीय विवरण है नहीं
और संविधान बदल दिया गया है
कोई संसदीय विवरण नहीं है
सारे कानून बदल दिये गये हैं
हम बार बार बरसों से
लिख रहे हैं.कह रहे हैं
नागरिकता कानून संशोधन
उन्मुक्त बाजार का सिंहद्वार है
हम बार बार कह रहे हैं
लिख भी रहे हैं बारंबार
आधार कार्ड योजना
एकता अखंडता का मामला नहीं कतई
नागरिकों की निगरानी का
नाटो पेटागन प्लान है
जिसे कारपोरेट हित मे लागू
किया जा रहा है भारत में
हम बार बार कह रहे हैं
लिख भी रहे हैं बारंबार
डिजिटल बायोमेट्रिक
नागरिक फंसा है चक्रवूह में
करारोपण का सारा बोझ उसी पर
आर्थिक संकट का वेताल उसी के कंधे सवार
डीटीसी जीएसटी उसीके खिलाफ
जल जंगल जमीन से बेदखली उसीकी
मुंबई का बाबू देखी है
जिसमें बहन बनी सुचित्रासेन
देवानंद की और सबसे रोमांटिक दुगाना है
फिर आंधी तो देखी होगी आपने
जिसमें एकदम इंदिरा लगती है सुचित्रा सेन
इसीलिए कमलेश्वर की उस फिल्म पर
रोक लगी थी उनदिनों
बंगाल में आज भी महानायिका हैं सुचित्रासेन
और कोई भी नहीं
उत्तम कुमार के साथ उनकी जोड़ी
भारतीय सिनेमा की सर्वश्रेष्ठ सर्वकालीन जोड़ी
उसी उत्तम कुमार के निधन के बाद
आखिरी बार देखी गयी सुचित्रा सेन
अस्पताल,मतदान केंद्र या बेलुड़ मठ
जहां भी जाती हैं सुचित्रा सेन
किसी को तस्वीर खींचने की
कोई इजाजत है ही नहीं
हमारे सहकर्मी सुमित गुह ने
पिछले दिनों फेसबुक वाल पर
उनकी दो तस्वीरें लगा दीं
एक तीस साल पहले की
तो दूसरी अद्यतन
फौरन सेन परिवार से हो गया एतराज
फेसबुक पर भी लोग हो गये नाराज
ऐसा उनकी निजता का सम्मान
उसके तुरंत बाद
भारत में सर्वाधिक प्रसारित
एकल संस्करणवाले
बांग्ला लोकप्रिय दैनिक ने
वीकेंड संस्करण में छाप दिये
पूरे चार पन्नों पर
सुचित्रा सेन के
तमाम अंतरंग गैरफिल्मी क्षण
कहीं प्ता भी नहीं खड़का
किसी ने नहीं किया विरोध
हम सारे लोग अपनी अपनी
निजता के ऐसे ही पहरेदार हैं
कोई स्टिंग से परेशान
कोई ताकझांक से परेशान
कोई परेशान फोन टैपिंग से
निजता के लिए आत्महत्या
बहुत आम है इस देश में
निजता के लिए ही आनर किलिंग
लेकिन उस निजता पर
हो रहे सबसे बड़े हमले पर खामोश हैं हम
गैरकानूनी तरीके से रोके जाते वेतन
निलंबित नागरिक सेवाएं
संसद में मंत्री कहते
कोई जरुरी नहीं है आधार कार्ड
इधर हर सेवा के लिए हर कोई
मांग रहा है आधार कार्ड
बिन आधारकार्ड
अपने ही देश में लोग
विदेशी हो गये हैं अब
कारपोरेट आधार कर्णधार
कोई जनप्रतिनिधि नहीं
2012 में सबसे धनी
कारपोरेट आइकन हैं
पूर्व इनफोसिस चेयरमैन
दर्जे से वे लेकिन कबीना मंत्री हैं
बिना किसी जनादेश के
गैरकानूनी असंवैधानिक
नाटो की भारतीय योजना के मसीहा वे ही
जिन्हें हम सौंप रहे हैं
अपनी आंखों की पुतलियां और
उंगलियों की छाप खुशी खुशी
जनता को सब्सिडी खत्म करने का
जनता का पैसा कारपोरेट की जेबों में
डाइवर्ट करने की बाजीगरी है
यह आधार योजना
जनगण की संपत्ति को
कारपोरेट हवाले करने का
महादुश्चक्र है
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en.wikipedia.org/wiki/Foreign_direct_investment
Foreign direct investment (FDI) is a direct investment into production or business in a country by an individual or company in another country, either by buying a ...
Portfolio investment - Foreign Exchange ... - List of countries by received FDI
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economictimes.indiatimes.com › Topics
foreign investors Latest Breaking News, Pictures, Videos, and Special Reports from The Economic Times. foreign investors Blogs, Comments and Archive News ...
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www.investopedia.com/terms/f/foreign-investment.asp
Flows of capital from one nation to another in exchange for significant ownership stakes in domestic companies or other domestic assets. Typically, foreign ...
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www.rbi.org.in › FAQs
I. Foreign Direct Investment (FDI). Q. 1. What are the forms in which business can be conducted by a foreign company in India? Ans. A foreign company planning ...
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www.thehindu.com › Business › Markets
Sep 12, 2013 - Market regulator SEBI will soon notify new rules to make it easier forforeign entities to invest in Indian markets following finalisation of the ...
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businesstoday.intoday.in › MARKETS › Stock Markets
Aug 28, 2013 - Asian economies that had been star performers are now in the dumps and the ebbing investment tide has sparked fears the region will suffer a ...
-
www.fipbindia.com/
The Foreign Investment Promotion Board (FIPB) is a government body that offers a single window clearance for proposals on Foreign Direct Investment (FDI) in ...
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www.investmentmap.org/
Identify foreign investment opportunities. Statistics on foreign direct investment with international trade, tariff and multinational company data for developing and ...
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- Report images
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www.thehindubusinessline.com/...foreign-investors/article5142291.ece
5 days ago - To stem corruption, there is need for political and judicial reform.
-
www.hindustantimes.com › business-news › WorldEconomy
Sep 15, 2013 - Faced with a high current account deficit and declining forex reserves, finance minister P Chidambaram in his forthcoming US visit will meet ...
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2014 लोकसभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी और कांग्रेस के बीच लड़ाई और कड़वी होती जा रही है। वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने खुद नरेंद्र मोदी के उस दावे को खारिज किया जिसमें नरेंद्र मोदी ने ये कहा था कि एनडीए राज में देश की जीडीपी 8.4 फीसदी की दर से बढ़ी थी।
वित्त मंत्री ने एक बयान जारी कर कहा कि नरेंद्र मोदी पता नहीं क्यों तथ्यों का फेक एनकाउंटर करते हैं। पी चिदंबरम के मुताबिक एनडीए के शासनकाल में देश की जीडीपी औसतन 6 फीसदी की दर से बढ़ी थी। 8.4 फीसदी का दावा झूठा है।
इसके अलावा पी चिदंबरम ने दावा किया की यूपीए 1 वन में औसतन जीडीपी दर 8.4 फीसदी थी। यूपीए 2 के 4 सालों में देश ने औसतन 7.3 फीसदी की दर से ग्रोथ हासिल की है। पी चिदंबरम ने कहा कि ग्रोथ का गोल्डन पीरियड तो यूपीए 1 के दौरान था।
अमेरिका में आर्थिक हालात के अब भी उम्मीदों के अनुरूप न रहने के चलते फेडरल रिजर्व ने अपने स्टिमुलस पैकेज को फिलहाल यथावत रखने का निर्णय लिया है। इसका मतलब यही हुआ कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व हर महीने 85 अरब डॉलर मूल्य के बांडों की खरीदारी फिलहाल जारी रखेगा।
जाहिर है, ऐसे में बैंकिंग सिस्टम में नकदी का तेज प्रवाह अभी बना रहेगा। इतना ही नहीं, इस निर्णय के फलस्वरूप अमेरिका में 'कम ब्याज' का दौर भी फिलहाल बरकरार रहेगा।
फेडरल रिजर्व बोर्ड के चेयरमैन बेन बर्नान्के ने बुधवार को यहां संवाददाताओं को बताया कि अमेरिका में खासकर लेबर मार्केट में स्थितियां अब भी पूरी तरह से सुधर नहीं पाई हैं। ऐसे में हमने अपनी मासिक बांड खरीद को फिलहाल 85 अरब डॉलर के स्तर पर बरकरार रखने का निर्णय लिया है।
मालूम हो कि इस कार्यक्रम के तहत खासकर दीर्घकालिक सिक्योरिटीज की खरीदारी की जाती है। फेडरल ओपन मार्केट कमेटी की बैठक की समाप्ति पर बर्नान्के ने कहा कि अमेरिका में आर्थिक विकास की रफ्तार अब भी अपेक्षा
से कम है। मतलब यह कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था अब भी सही ढंग से पटरी पर नहीं आ पाई है।
गौरतलब है, वर्ष 2008 के मध्य में ग्लोबल वित्तीय संकट के गहराने के बाद अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने लोकल इकोनॉमी में नई जान
फूंकने के लिए स्टिमुलस पैकेज की घोषणा की थी। हालांकि, इतना लंबा समय गुजर जाने के बावजूद अमेरिकी अर्थव्यवस्था अभी तक पूरी तरह से पटरी पर नहीं आ पाई है।
फेड के निर्णय से फर्क नहीं : वित्त मंत्रालय
नई दिल्ली - अमेरिका में स्टिमुलस पैकेज का आकार कम न किए जाने के फैसले पर वित्त मंत्रालय ने कुछ संतुलित प्रतिक्रिया व्यक्त की है।
मंत्रालय ने इस फैसले के ठीक एक दिन बाद गुरुवार को यहां कहा कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व के ताजा कदम के बाद भी देश में कामकाज सामान्य ढंग से ही हो रहा है। मंत्रालय ने इसके साथ ही कहा है कि सरकार आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने का सिलसिला जारी रखेगी।
आर्थिक मामलों के सचिव अरविंद मायाराम ने यहां संवाददाताओं को बताया, 'अमेरिकी फेडरल रिजर्व के निर्णयों के असर को हमें सामान्य तरीके से ही पेश करना चाहिए। हमें यह नहीं कहना चाहिए कि इससे इकोनॉमी में तरह-तरह के बदलाव आएंगे। हम इस फैसले के बाद भी सामान्य ढंग से काम कर रहे हैं।'
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बीएसई | एनएसई 23/09/13
एंबिट कैपिटल के सीईओ एंड्र्यू हॉलैंड का कहना है कि फेड ने क्यूई3 में अभी कटौती नहीं करने का फैसला किया है लेकिन इतना तय है कि इसमें कटौती होगी। दिसंबर या इससे आगे के महीनों में कभी भी स्टिमुलस कटौती का ऐलान हो सकता है।
अगर क्यू्ई3 में कटौती नहीं होती है तो इमर्जिंग मार्केट्स में कितनी पूंजी आ सकती है इसकी झलक गुरुवार को बाजार में आई तेजी से मिल जाती है। फेड के फैसले से भारत जैसे उभरते बाजारों को बुनियादी आर्थिक सुधार करने के लिए वक्त मिल गया है। भारतीय बाजारों में तेजी जारी रहने के लिए आर्थिक सुधारों पर कदम उठाए जाने जरूरी हैं।
एंड्र्यू हॉलैंड के मुताबिक क्यूई3 में कटौती ना करने से अमेरिका की अर्थव्यवस्था को लेकर चिंताएं बढ़ी हैं इसलिए अभी भी फेड के कदमों से इमर्जिंग मार्केट्स में बहुत बड़ा निवेश आने की संभावना कम है।
जिस तरह बेन बर्नान्के ने वैश्विक बाजारों को आश्चर्यचकित किया उसी तरह क्रेडिट पॉलिसी में रघुराम राजन से किसी अच्छी खबर की उम्मीद है जैसे रेपो रेट या रिवर्स रेपो रेट में कटौती। हालांकि आरबीआई के साथ-साथ सरकार को भी कुछ कदम उठाने चाहिए जैसे डीजल के दामों में 5 रुपये प्रति लीटर या ज्यादा की बढ़ोतरी करनी चाहिए।
एंड्र्यू हॉलैंड के मुताबिक अभी भी डिफेंसिव शेयरों में निवेश बरकरार रखा जा सकता है और रेट सेंसेटिव शेयरों से दूर रहा जा सकता है। आईटी शेयरों में निवेश बनाए रखा जा सकता है क्योंकि इनके वैल्यूएशन आकर्षक हैं। रुपये की गिरावट का सबसे बड़ा फायदा इन शेयरों को मिला है। आईटी शेयरों में टेक महिंद्रा में निवेश किया जा सकता है। पिछले दिनों एफएमसीजी और फार्मा शेयरों में निवेश कम किया है क्योंकि इनके वैल्यूएशन महंगे हो चुके हैं।
एंड्र्यू हॉलैंड के मुताबिक आरबीआई की पॉलिसी आने के बाद रेट सेंसेटिव, ज्यादा जोखिम और ज्यादा कर्ज वाले शेयरों में निवेश करने पर विचार किया जा सकता है।
रेलिगेयर कैपिटल मार्केट्स के तीर्थांकर पटनायक का कहना है कि बाजार के फंडामेंटल के मुताबिक बाजार में गिरावट आनी चाहिए लेकिन बाजारों में निकट अवधि में तेजी आने की पूरी उम्मीद है। विकसित बाजारों से पूंजी उभरते बाजारों की तरफ आ रही है।
मध्यम अवधि में बाजार के 5300 का स्तर छूने के बाद दोबारा 6300 तक जाने की उम्मीद है। वित्त वर्ष 2014 में कंपनियों की कमाई 4-5 फीसदी के दायरे में रहने की उम्मीद है।
सरकार के सामने वित्तीय घाटे को नियंत्रित करने और ग्रोथ को बरकरार रखने की चुनौती है। बैंकों के सामने ऐसेट क्वालिटी को बनाए रखना एक बड़ी चिंता होगी। आज आने वाली आरबीआई की क्रेडिट पॉलिसी में एमएसएफ रेट घटाए जाने की संभावना है।
जेआरजी सिक्योरिटीज के आनंद टंडन का कहना है कि गुरुवार की जोरदार तेजी के बाद आज बाजार में करेक्शन की उम्मीद थी। फिलहाल बाजार में मौजूदा स्तरों के आसपास ही नजर आएगा। हालांकि नतीजों के बाद बाजार में नरमी का रुख देखने को मिल सकता है।
आनंद टंडन के मुताबिक बैंक शेयरों में कमजोरी आने की आशंका है। आने वाले दिनों में अन्य सेक्टरों के मुकाबले बैंक शेयरों का प्रदर्शन निराशाजनक रह सकता है। एक्सपोर्ट सेक्टर में आईटी, टेक्सटाइल और इंजीनियरिंग शेयरों में दांव लगाने की सलाह है। साथ ही पावर यूटिलिटीज कंपनियों में निवेश करने की सलाह है। लेकिन एफएमसीजी शेयरों से दूरी बनाना बेहतर होगा। वहीं ऑटो एंसिलियरी में ज्यादा तेजी नहीं दिखी है ऐसे में इस सेक्टर में पैसे बनाने का मौका है।
संबंधित खबरें
रेपो रेट में फिर से बढ़ोतरी होने की आशंका और बॉन्ड यील्ड में भारी उछाल आने से बाजार 2 फीसदी टूटे। सेंसेक्स 363 अंक टूटकर 19900 और निफ्टी 122 अंक टूटकर 5890 पर बंद हुए। मिडकैप और स्मॉलकैप शेयर 1.25-0.5 फीसदी गिरे।
स्टैंडर्ड चार्टर्ड और नोमुरा के मुताबिक मौजूदा कारोबारी साल में रेपो रेट में और 0.5 फीसदी बढ़त की संभावना है। वहीं, सरकार वित्त वर्ष 2014 की दूसरी छमाही के उधारी कार्यक्रम का ऐलान करने वाली है, जिसके पहले बॉन्ड यील्ड बढ़ा।
बाजार की चाल
बाजार शुक्रवार की भारी गिरावट से उबर नहीं पाया। कमजोर रुपये और आरबीआई द्वारा रेपो रेट फिर बढ़ाए जाने की आशंका की वजह से बाजार गिरावट पर खुले। हालांकि, सेंसेक्स ने 20000 और निफ्टी ने 5900 के ऊपर शुरुआत की।
बाजारों ने खुलने के साथ ही नीचे का रुख किया। बैंक और रियल्टी शेयरों में आई भारी गिरावट की वजह से बाजार 1.5 फीसदी टूटे। सेंसेक्स करीब 300 अंक गिरा और निफ्टी में भी करीब 100 अंक की गिरावट आई।
10 साल के बॉन्ड पर यील्ड 9 फीसदी के पार जाने से बाजार में गिरावट गहराई। सेंसेक्स करीब 400 अंक टूटा। निफ्टी 5900 के नीचे फिसला। बैंक निफ्टी 4 फीसदी लुढ़का। मिडकैप और स्मॉलकैप शेयर करीब 1-0.5 फीसदी गिरे।
रुपये के 62.83 तक टूटने की वजह से बाजार में घबराहट बढ़ी। दोपहर के कारोबार में सेंसेक्स करीब 450 अंक लुढ़का और निफ्टी में 140 अंक से ज्यादा की गिरावट आई। आखिरी कारोबार में बाजार निचले स्तरों से थोड़ा संभले।
अंतर्राष्ट्रीय संकेत
यूरोपीय बाजारों में मिला-जुला रुझान है। डीएएक्स और सीएसी सुस्त हैं। एफटीएसई में हल्की कमजोरी है। यूरोजोन की सितंबर फ्लैश कंपोजिट पीएमआई जून 2011 के उच्चतम स्तर पर पहुंची है। वहीं, मैन्यूफैक्चरिंग पीएमआई में हल्की गिरावट आई है।
एशियाई बाजारों में चीन की फ्लैश मैन्यूफैक्चरिंग पीएमआई 6 महीने की ऊंचाई पर पहुंचने से शंघाई कंपोजिट 1.3 फीसदी चढ़ा। ताइवान इंडेक्स 1 फीसदी मजबूत हुआ। कॉस्पी हरे निशान में बंद हुआ। स्ट्रेट्स टाइम्स और हैंग सैंग 0.7 फीसदी गिरे।
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में कमजोरी आई है। फिलहाल रुपया 62.73 के स्तर पर कारोबार कर रहा है। शुक्रवार को रुपया 62.25 पर बंद हुआ था। सरकार के उधारी योजना के ऐलान के पहले रुपये पर दबाव आया है।
बाजार की तेजी पर शुक्रवार को आई क्रेडिट पॉलिसी ने विराम लगा दिया। आज भी बाजार सुस्ती के साथ ही कारोबार कर रहे हैं। बाजार के जानकारों का मानना है कि अभी कुछ और समय तक महंगाई पर फोकस के चलते आरबीआई दरों में कटौती नहीं करेगा।
बाजार के जानकार गुल टेकचंदानी का कहना है कि जब तक महंगाई काबू में नहीं आती है तब तक आरबीआई का फोकस ग्रोथ पर आना मुश्किल है। इसके चलते इस बार आरबीआई की आई पॉलिसी से कोई नाराजगी या निराशा नहीं है। आरबीआई गवर्नर आगे क्या करेंगे इसका अंदाजा लगाना काफी मुश्किल है।
सरकार आने वाले चुनावों के डर से तेजी से फैसले ले रही है लेकिन इनमें काफी देरी हो चुकी है। हालांकि इनका फायदा आने वाले समय में देखा जा सकता है लेकिन इन्हें लागू करने में हुई देरी का नुकसान भी होगा।
गुल टेकचंदानी के मुताबिक निवेशकों को मुनाफे में सुधार वाली कंपनियों पर फोकस करना चाहिए। रियल एस्टेट सेक्टर में लिक्विडिटी से ज्यादा कम भरोसे की दिक्कतें हैं।
क्यूई3 में बहुत जल्द बड़ी कमी होने का अनुमान नहीं है। फेड गवर्नर बेन बर्नान्के का कार्यकाल जनवरी तक खत्म हो रहा है और तब तक क्यूई पर कड़े फैसले की उम्मीद कम ही है।
मॉर्गन स्टैनली के मैनेजिंग डायरेक्टर रिधम देसाई का कहना है कि बाजार के 5300 तक लुढ़कने के आसार बन रहे हैं। बाजार में ज्यादा तेजी की उम्मीद नहीं है और तेजी के दौरान बिकवाली करना अच्छी रणनीति होगी। हालांकि फेडरल रिजर्व के क्यूई3 में कटौती ना करने के फैसले से बाजार को सहारा जरूर मिला है।
रिधम देसाई के मुताबिक अगले 3 महीने तक शेयर बाजार में पैसा लगाने वाले निवेशकों के लिए राह आसान नहीं है। बाजार की मौजूदा चाल में आईटी शेयरों में खरीदारी की जा सकती है, लेकिन बैंक शेयरों में बिकवाली की सलाह है। दूसरी तिमाही के नतीजे और अमेरिका की कर्ज सीमा जैसे मुद्दों के चलते बाजार पर दबाव बना रहेगा।
सिटी के मार्केट्स हेड पंकज वैश का कहना है कि बाजार के सीमित दायरे में रहने की उम्मीद है। बाजार के लिए नई ऊंचाई पर जाने के कोई संकेत नहीं मिल रहे हैं। आरबीआई की ओर से बाजार को साफ संकेत मिल गए हैं। रेपो रेट में बढ़ोतरी को लेकर बाजार ज्यादा दबाव में आ गया है।
आईएलएंडएफएस के विभव कपूर का कहना है कि हाल में बाजार में आए उतार-चढ़ाव का दौर आगे भी जारी रह सकता है। लिहाजा उतार-चढ़ाव के इस दौर में निवेशकों को बाजार से दूर रहने की सलाह है। निफ्टी के 5400-6200 के दायरे में रहने के आसार हैं। डॉलर के मुकाबले रुपया 60-64 के दायरे में रह सकता है।
सीआईएमबी के शेन ली का कहना है कि अमेरिकी इकोनॉमी को लेकर ज्यादा आशावान हैं और क्यूई3 में कटौती जल्द ही हो सकती है। भारतीय इकोनॉमी को लेकर चिंता बनी हुई है। फेड के क्यूई3 में कटौती से इमर्जिंग मार्केट्स दबाव में आएंगे। छोटी अवधि में भारतीय बाजारों में तेजी संभव है। रुपये में ज्यादा गिरावट की आशंका नहीं है।
अल्टामाउंट कैपिटल के प्रकाश दीवान का कहना है कि आरबीआई की तरफ से रेपो रेट में और 0.5 फीसदी की बढ़ोतरी करने के अंदाजे से बाजार में गिरावट आ रही है। एक्सपायरी तक बाजार में स्थिरता आ जाएगी।
छोटी अवधि में बाजार में उतार चढ़ाव आने का अंदेशा है लेकिन लंबी अवधि में बाजार अच्छे रिटर्न देगा। बैंक निफ्टी में आई गिरावट से बाजार नीचे जा रहा है। बाजार में 5800 का स्तर छूने की संभावना है। बैंक निफ्टी में आई गिरावट को देखते हुए 5800 का स्तर 2-3 दिनों में छूने की आशंका है।
Selective stimulus plan in the works to revive growth; some sectors may get direct line of credit
http://economictimes.indiatimes.com/news/economy/policy/selective-stimulus-plan-in-the-works-to-revive-growth-some-sectors-may-get-direct-line-of-credit/articleshow/22903969.cms
By Deepshikha Sikarwar, ET Bureau | 23 Sep, 2013, 06.28AM IST
Selective stimulus plan in the works to revive growth Editor's Pick
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Pessimism is overdone & the economy is likely to emerge from a cyclical downturn. Consider investing in cyclicals, mid- and small-caps, and value stocks.
NEW DELHI: India is eyeing its own version of quantitative easing to selectively revive sectors to boost overall growth. The finance ministry and Reserve Bank of India (RBI) are in talks to arrive at a mechanism to provide a direct line of credit to some industrial sectors.
While new RBI Governor Raghuram Rajan opted to tighten monetary policy on Friday, saying the US Federal Reserve will wind up its bond-buying programme sooner or later, the finance ministry is of the view that a precisely directed stimulus programme will help revive flagging growth without undermining the central bank's inflation focus. One of the options under discussion is for the central bank to set up a special window to buy commercial paper from companies in the chosen sectors at preferential rates.
"A number of options are on the table... we are working on a mechanism that will allow credit to reach some sectors at lower interest rate," a senior finance ministry official told ET.
Growth slowed to a decade low of 5% in the year ended March and was at 4.4% in the April-June quarter, belying hopes of a revival. The sectors on the radar, according to the official cited above, are medium and small enterprises, engineering goods and commercial vehicles - areas that, if selectively revived, would encourage more economic activity across the board. The intervention will be focused as a wider spread would run counter to RBI's efforts to check inflation by raising interest rates. Wholesale inflation rose to a six-month high of 6.1% in August while retail inflation is already near double digits.
In the 1970s and 80s, RBI had used selective credit controls to squeeze advances by banks against the hypothecation of certain sensitive commodities such as oilseeds and wheat to contain speculation and inflation.
"A reverse of this mechanism is being looked at to allow flow of credit to select sectors," the official said, adding that the finer details of the mechanism should be ready over the next two weeks.
With growth remaining subdued, there is some stress in the banking segment and paper of such sectors attracts a higher risk premium, pushing up their cost of credit.
The direct intervention by Reserve Bank of India is expected to bring down the risk premium and allow for the flow of funds to these sectors at a reasonable price, seen as having a more beneficial effect than a more diffuse, general interest subvention policy.
Experts said there was a case for such a mechanism but cautioned against so-called evergreening or debt getting rolled over.
"A refinance window like that can provide respite to some sectors, but this should be done cautiously to ensure that it does not encourage structural NPAs (nonperforming assets or bad loans) or evergreening of debt," said Abheek Barua, chief economist, HDFC Bank.
Industry has demanded measures that will lift the country out of the growth crisis. "The realeconomy is going through one of the most difficult phases in recent history and sustained action from the government and RBI is warranted to get growth back," Chandrajit Banerjee, director-general of the Confederation of Indian Industry (CII), said after the monetary policy announcement on Friday.
Rajan unexpectedly increased repo rates by 25 basis points, citing inflation as the key risk. This is expected to drive up interest rates further in the medium to long term. Finance Minister P Chidambaram, who spearheaded the creation of the Cabinet Committee onInvestments as part of efforts aimed at improving sentiment on that front, has already directed banks to ensure the flow of credit to projects that are being fast-tracked through clearances.
The belief in the finance ministry is that all these steps as a whole will help revive growth to upwards of 5.5% in the fiscal.
#MarketsNow: Quick market update @ 12:52 pm, 23rd Sep. On#ETNOW, get the news that moves the market.
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शिक्षा के निजीकरण और चार वर्षीय स्नातक प्रोग्राम पर सेमीनार
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"With an eye to the general election of 2014," the Christian leader said, "Hindutva extremist forces think that fomenting tensions between different communities and inciting society against the Christian minority can help them get votes, even in Rajasthan, a state led by Congress," the country's largest secular party that is in power in the central government.
INDIA Rajasthan: Hindu extremists attack Christian family, tell them to convert or be killed -...
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With their faces disguised, four ultra-nationalists attack the mother of a Pentecostal pastor, beating and seriously injuring her. The group was looking
यक़ीन उस अल्फ़ाज़ का नाम है जहाँ पर आनें के बाद बहुत सारी रुकावटें खत्म हो जाया करती हैं/ठीक उसी तरह जहाँ ये नाम लाख इसरार के बाद भी नहीं पाया जाता! वहां उम्मीदों का कोई अंकुर भी नहीं पनप सकता क्यूंकि आपमें शायद इंतज़ार, इसरार,और यक़ीन नहीं पाया जाता/जिसकी बदौलत लाख क़रीबी रिश्ते अंजाम तक नहीं पहुँच पाते/
मुल्ला शाही नें इसी का फायदा उठाया और आपकी कमजोरियों को हथियार बना लिया/यक़ीन जानिए मज़हब और मुल्लाईयत में ज़मीन आसमान का फ़र्क़ है/आज जब मुल्लाईयत को अपनी नींव हिलती नज़र आरही है, तो वो मिम्बर से निकल कर घर तक दखल देने लगी है/लेकिन हकीक़त है की इनका वजूद अनक़रीब खत्म होने वाला है/क्यूंकि इनकी रोटी आपके जज़्बात पर टिकी हुयी है/.....
आम तौर पर यह माना जाता है कि #युद्ध राजनीतिक कारणों से होते हैं तथा अधिकांशतः आत्मरक्षा/आत्मसम्मान हेतु लड़े जाते हैं। बुर्जुआ संचार माध्यमों के द्वारा व्यापक जनसमुदाय में इस धारणा की स्वीकृति हेतु विभिन्न कार्यक्रमों का प्रसारण किया जाता है। युद्धाभ्यास, युद्धसामग्री की ख़रीद-फ़रोख़्त हथियारों के प्रेक्षण आदि जैसी सैन्य क्रियाओं को राष्ट्रीय अस्मिता के साथ जोड़ते हुए शोषित-उत्पीड़ित जनता को गौरवान्वित करने हेतु प्रोत्साहित करने का कार्य पूँजीवादी भाड़े के भोंपू निरन्तर करते रहते हैं। परन्तु यह तथ्य स्पष्ट है कि पूँजीवाद की उत्तरजीविता को बरकरार रखने तथा अकूत मुनाफ़े की हवस ने दो महायुद्धों व 50 के दशक के बाद विश्व के बड़े भूभाग (लातिन अमेरिका, एशिया, अफ्रीका) पर चलने वाले क्रमिक युद्धों को जन्म दिया। द्वितीय विश्वयोद्धोत्तर काल में लड़े गये अधिकांश युद्ध साम्राज्यवादी आर्थिक हितों के अनुकूल ही रहे हैं। साम्राज्यवादी देशों की #बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा अकूत सम्पदा की लूट के बाद यदि किसी को सर्वाधिक लाभ हुआ तो वे थीं हथियार निर्माता कम्पनियाँ! युद्ध सामग्री के वैश्विक व्यापार की विशेषता निरन्तर लाभ की मौजूदगी है। हथियारों का यह व्यवसाय सर्वाधिक लाभकारी है। किसी भी राष्ट्र द्वारा ख़रीदी गयी युद्ध सामग्री का प्रयोग अनिवार्यतः युद्ध में हो इसकी कोई गारण्टी नहीं है चूँकि युद्ध उपकरण कुछ समय बाद ही पुराने पड़ जाते हैं। अतः नवीन युद्ध उपकरणों की ख़रीद-फ़रोख़्त की प्रक्रिया पुनः प्रारम्भ हो जाती है।
"विश्व शान्ति" के वाहक हथियारों के सौदागर
ahwanmag.com
आम तौर पर यह माना जाता है कि युद्ध राजनीतिक कारणों से होते हैं तथा अधिकांशतः आत्मरक्षा/आत्मसम्मान हेतु लड़े जाते हैं। बुर्जुआ संचार माध्यमों के द्वारा व्यापक जनसमुदाय में इस धारणा की स्वीकृति हेतु विभिन्न कार्यक्रमों का प्रसारण किया जाता है। युद्धाभ्यास, युद्धसामग्री की ख़रीद-फ़रोख़्त हथियारों के प्...
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अपेक्षित जन उत्तेजन न मिल पाने पर मोदी भक्त बौखला और पगला रहे हैं . यह फेस बुक से साफ़ झलक रहा है .इनमें कुछ तो मेरे अभिन्न मित्र हैं . भविष्य में और अधिक निराशाजनक स्थितियां अवश्यम्भावी हैं , ऐसे में ये अपने साथ कोई अपघात कर सकते हैं . अतः इनके परिजनों , मित्रो को सलाह दी जाती है की --
१- घर में कोई प्रज्वलन शील द्रव्य यथा पेट्रोल , मिटटी का तेल यथा संभव न रखें .
२- इन्हें छत या किसी ऊंची जगह पर आकेला न जाने दें
३-- लाइसेंसी हथियार इत्यादि इनकी पंहुंच से दूर रखें
४- कीट नाशक किसी सुरक्षित जगह पर इनकी नज़र से दूर रखें
५- नामोनिया के मरीज़ को यथा संभव अकेला न छोड़ें , कोई विकल्प न हो तो उसे किसी रस्से से कस कर बाँध कर और बाहर से ताला लगा कर जाएँ .
६- इनके नाख़ून हरगिज़ बड़े न रखें
७- यह सूचना अधिकाधिक प्रसारित करें
NIMESH SHAH MANAGING DIRECTOR & CEO, ICICI PRUDENTIAL MUTUAL FUND Foreign Investors See India as Long-Term Structural Story
Foreign institutional investors (FIIs) who sold equities worth $4 billion between June and August have resumed buying from September after Raghuram Rajan took over as the new Reserve Bank of India governor. Until last week, FIIs had bought $1.7 billion worth of shares. ICICI Prudential Mutual Fund, India's third largest fund after HDFC MF and Reliance MF, with . 90,000 crore assets under management, says that many FIIs are keen to invest in India as the rupee and stock values are attractive. ''We do find market valuations cheap in select midcaps, energy and material stocks. However, we face an adverse environment, in the short term, we do not expect significant returns in equity markets and, hence, we are recommending defensive strategies,'' the fund's managing director and chief executive Nimesh Shah said in an interview to Biswajit Baruah. Edited excerpts: The Reserve Bank of India (RBI) surprised the markets by hiking key policy rates. What is your view on the RBI monetary policy? RBI has started the cautious unwinding of exceptionally tight monetary conditions by reducing the marginal standing facility rate by 75 basis points to 9.5% from 10.25%.This has been possible with improvement in the external situation and exchange rate worries taking a backseat. We believe RBI will have to make significant efforts towards monetary easing as growth continues to weaken on industrial activity and services. The consumption in rural India which was holding till now has also started deteriorating and both durables and non-durables have been impacted adversely. We believe, as the situation continues to improve on the currency and external environment fronts, RBI will have to revert swiftly towards a more aggressive easy monetary policy to be able to support growth. The US Federal Reserve has put tapering of asset-buying programme on hold, giving relief to emerging markets including India. Will this help FIIs to invest more in the stock market? The Fed's decision to keep policy loose for the time being definitely helps risk appetite globally and India can attract flows more easily now. However, two things have to be kept in mind. One is that the tapering has been deferred, not cancelled. So unless US growth slows down materially, the issue will come up again. More importantly, a lot depends on how the domestic situation pans out - if India is able to improve the policy framework and build an investor-friendly environment then we can definitely attract flows into equities Foreign investors have bought equities worth over . 11,000 crore in September. Given the current macro-economic situation, are you surprised by the foreign fund flows into India? ICICI Prudential Asset Management runs an international business franchise through its offshore advisory division, which advises India only funds and segregated mandates for clients domiciled in jurisdictions spanning Europe, Japan, Middle East, Taiwan and Singapore. Based on our recent interactions in the US, we find that there are a large number of value investors in US who are interested to invest in India at a time when currency and valuations are attractive. Even today, foreign investors see India as a good long term structural story which is also probably the reason why we see such flows at varying points of time in the market place. We have to also remember that in dollar terms, the market had corrected very sharply and a number of stocks had become attractive considering their price in dollar terms. So we believe that when the rupee depreciated beyond 65, some FIIs took the call that the currency damage was overdone and both the stock prices and currency level offered a good entry point – hence money came in. Few other big issues have shown improvement, primarily the Syria situation and US Treasury yields not rising further. Indian markets have witnessed only a handful of stocks rallying substantially in 2013. Do you think foreign investors are interested only in few stocks? FIIs definitely seem to favour a small set of stocks. This may be due to various reasons like the liquidity they offer, their presence in benchmarks, which is vital for Exchange Traded Funds, strength of the business models, etc. However, we see this trend as beneficial for Indian investors who have invested in funds that follow value philosophy. The Indian economy is in a muddle, whom do you blame for the current situation? There are many factors responsible for this; broadly, they can be classified into internal and external. Internal factors include quality of policy-making, higher than required fiscal and monetary stimulus in 2010-11 which pushed up inflation and CAD, unfriendly tax policies and inability to rationalize subsidies quickly enough. On the external front, the primary issues have been that globally growth has been tepid and oil prices have remained stubbornly high. Do you think there is a risk of sovereign debt crisis in India? We think the risk is minimal in the near term. While our current account deficit is high and our international investment position has deteriorated over the last 2-3 years, our balance sheet variables are quite healthy; these include debt/GDP, amount of foreign reserves, proportion of external debt, etc. However, in the long term, if we mismanage our twin deficits and are unable to increase growth, risks do exist. We have seen smart recovery in banking stocks from August lows after brokerage houses had downgraded the sector on concerns over deteriorating earnings. What is your view on the Indian financial sector? We have been cautious on this sector over the last four years and maintain that stance though we are positive on select stocks. We also adjust our position depending on the valuation. We believe that as the outlook for economic growth improves, banking, being one of the sectors leveraged to growth, will do well. You are overweight on some sectors. What is the rationale behind it? We like export-facing sectors like technology, pharmaceuticals etc as we believe that if India has to reach a sustainable position on current account deficit, it has to encourage exports. We are overweight on telecom because we believe that the industry consolidation story is playing out and we should see industry margins improving. We also like regulated utilities and some PSUs as the valuations are really cheap. What's your market outlook for the forthcoming year? Do you think there is more volatility stored ahead for the markets? If you consider the immediate term, besides the uncertainty of elections, we have the world's most powerful nation proposing to unwind its easy monetary policy which will make the cost of capital expensive. In other words, the situation is a perfect recipe for volatility. We do find market valuations cheap in select midcaps, some energy stocks, some material stocks, etc. While we face an adverse environment, in the short term, we do not expect significant returns in equity and hence, we are recommending defensive strategies. We also believe that the short- to medium-term interest rates space is very interesting. We have a favourable view of these two spaces at this point of time for investors. In the past three years, many equity schemes have not beaten their respective benchmarks. What are your views on this? We do internally monitor our performance very strictly. The benchmark standard set by us is to look at overall equity assets that we manage as a fund house and then compare it with the total percentage that outperforms the benchmark as well as tracking the top quartile performance. Across time periods of 1 year, 3 years, 5 years, 7 years, 8 years or 10 years, more than 96% of the equity assets that we manage have outperformed the respective benchmarks. We have also the highest percentage in top quartile funds on an overall basis as per Value Research.
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स्वस्थ स्वच्छ जयतेः खेती में कीटनाशकों का महत्व
बीएसई | एनएसई
क्रॉप केयर फेडरेशन के सहयोग से सीएनबीसी आवाज़ की खास पेशकश स्वस्थ स्वच्छ जयते में कीटनाशकों के इस्तेमाल से जुड़ी गलतफहमियां दूर करने पर फोकस करेंगे।
भारत आज खाद्य सुरक्षा की ओर तेजी से बढ़ रहा है। ये मुमकिन हो पाया है खेती के तौर तरीकों, टेक्नोलॉजी, संकर बीजों, फर्टिलाइजर और कीटनाशकों की वजह से। आज ग्रोकैमिकल के बिना खेती की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। कीटनाशक किसी दवा की तरह ना सिर्फ पौधौं में लगे रोगों का इलाज करता है बल्कि फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीड़ों को भी खत्म करता है।
हालांकि आम धारणा यही है कि कीटनाशक काफी नुकसानदायक हैं। इनके बारे में ढेर सारी गलतफहमियां हैं। सबसे बड़ी गलतफहमी ये है कि पेस्टीसाइड के इस्तेमाल से कैंसर होता है।
युनाइटेड फॉस्फोरस के चेयरमैन रज्जू श्रॉफ का कहना है कि जिस हिसाब से भारत की जनसंख्या बढ़ रही है उसी हिसाब से देश की खेती भी बढ़नी चाहिए और इस मांग को पूरा करने के लिए पेस्टीसाइड भी काफी जरूरी हैं। ग्रामीण इलाकों में खाद्य पदार्थों की मांग को पूरा करने के लिए इरीगेशन, कीटनाशक, खेती के आधुनिक उपकरण सभी कुछ बहुत जरूरी हैं।
खेती में कीटनाशकों का सही इस्तेमाल करने से जमीन की उर्वरता पर असर नहीं पड़ता है और फसल भी सुरक्षित रहती है।
कंसल्टेंट टॉक्सिकोलॉजिट डॉ दीपक अग्रवाल के मुताबिक पेस्टीसीइड में जहरीला पदार्थ है लेकिन वो कीटों के लिए हैं। कीटनाशकों के सीमा से अधिक इस्तेमाल करने पर वो नुकसान पहुंचा सकते हैं लेकिन ये तो किसी अन्य पदार्थ के साथ भी हो सकता है। ऐसे में कीटनाशकों को गलत ठराना उचित नहीं है।
एग्रीकल्चरल साइंटिस्ट रिक्रूटमेंट बोर्ड के पूर्व चेयरमैन डॉ सी डी मायी का कहना है कि भारत की जलवायु कीटों के लिए अत्याधिक मुफीद है और इसी के चलते बिना कीटनाशककों के भारतच में खेती करना असंभव है। देश की फसल का 30 फीसदी कीटों के चलते खराब हो जाता है।
http://hindi.moneycontrol.com/mccode/news/article.php?id=87353
यूरिया की नई निवेश नीति में फेरबदल!
Chambal Fert
बीएसई | एनएसई 23/09/13
यूरिया सेक्टर में निवेश करने की निजी कंपनियों की योजनाओं पर पानी फिर गया है। क्योंकि सरकार ने यूरिया की नई निवेश नीति में फेरबदल करने का फैसला लिया है। अब सरकार सिर्फ सरकारी कंपनियों को ही रिटर्न की गारंटी देने पर विचार कर रही है।
सरकार ने यूरिया की नई निवेश नीति में फेरबदल का फैसला किया है। नए बदलाव के साथ प्रस्ताव सीसीआई को भेजा गया है। इसके तहत गारंटीड बायबैक यानि रिटर्न की गारंटी सिर्फ सरकारी कंपनियों को दी जाएगी। पहले 12-20 फीसदी रिटर्न की गारंटी सभी को देने का प्रस्ताव था।
ध्यान रहे कि नई निवेश नीति 9 महीने पहले ही लागू हुई थी। 20 कंपनियों ने नई निवेश नीति के तहत प्लांट का आवेदन दिया था। नई निवेश नीति के तहत चंबल फर्टिलाइजर, नागार्जुन फर्टिलाइजरसमेत 4 कंपनियों ने काम शुरू किया था। इसके तहत करीब 20,000 करोड़ रुपये के निवेश की संभावना थी।