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Monday, July 13, 2015

मदन जी,क्या जलेबी सिंघाड़ा और बालूसाहीके साथ लिट्टी धनबाद के जाके के साथ दिल्ली में उपलब्ध हैं,मुझे नहीं मालूम।आप को जन्मदिन पर आपकी प्रिय,ये तमाम स्वाद फिर मुबारक।


मदन जी,क्या जलेबी सिंघाड़ा और बालूसाही के साथ लिट्टी धनबाद के जाके के साथ दिल्ली में उपलब्ध हैं,मुझे नहीं मालूम।आप को जन्मदिन पर आपकी प्रिय,ये तमाम स्वाद फिर मुबारक।
वे देवघर के नरम गरम रसगुल्ले भी आपको मुबारक जो यकीनन दिल्ली में मिलते न होंगे।

धनबाद में मदन कश्यप न होते तो उर्मिलेश उनसे मिलने धनबाद न जाते और न हमें वे जबरन वहां भेजकर पत्रकार बना देने का करिश्मा कर पाते।हम तो वीरेनदा या मगलेश की तरह कवि बनना चाहते थे और हो गये पत्रकार।शुक्र है कि पत्रकारिता करते रहने के बावजूद मदनजी अब भी हमारे समय के अगुवा कवि ङैं।

साहित्य के लिए हमने सबकुछ छोड़ा और अब साहित्य से हमारा कोई नाता नहीं है।

मदन कश्यप हमारे सबसे पुरातन मित्र हैं और बेहतरीन कवि हैं,इसका हमें बहुत गर्व रहा है।रहेगा।

दरअसल मदनदी की कविताएं कोयलांचल की भूमिगत आग सेतपी हुई हैं औक उन्हें पढ़ते हुए हमें वही आग,उसकी तपिश और खुशबू महसूस होती है।

हमारा रिश्ता इस तपिश का भी है।

दूरियां भले ही बहुत हो गयी हैं इन दिनों और हम सभी लोग तन्हा त्नहा हैं,लेकिन उस आग की आंच से कमसकम हमारी रिहाई नहीं है।
मदन जी बहुत नफीस किस्म की शख्सियत हैं।तुनक मिजाज भी बहुत हैं।हम सारे लोग उनसे दनबाद में डरे डरे रहते थे कि उनका मिजाज कहीं बिगड़ नहीं जाये।
अब हमें नहीं मालूम कि राजधानी में उनके मिजाज की परवाह करने वाले कितने दोस्त हैं।
मदन जी,निजी जिंदगी में मुंह पर खरा खरा कहते हैं,आपको अच्छा लगे या बुरा कोई फर्क नहीं पड़ता और दोस्तों के खिलाफ जो बी कहना हो सामने कहते हैं,पीछे कभी कोई मंत्वय नहीं करते।

मदन जी की कविताओं में भी ये खूबियां बखूब हैं और उनकी महक भी जंगल की आदिम गंध की तरह है,जिस जंगल से वास्ता उनकी कविताओं का भी रहा है,जैसी मेरी दो कौड़ी की पत्रकारिता की।

हमालांकि साहित्यकी दुनिया से बेदखली के बाद हम यकीनन कविताओं पर कुछ कहने लायक हैसियत नहीं रखते,लेकि बाहैसियत पाठक यह सलाह तो दे सकते हैं कि देश निर्मोही के इस मंतव्य पर गौर भी करें क्योंकि देश भाई अब प्रकाशक भले हैं,लेकिन बुनियादी तौर पर वे साहित्य के बेहतर संपादक हैंः

हिंदी के वरिष्ठ कवि एवं समालोचक मदन कश्यप का आज जन्मदिन है। 

आधार प्रकाशन परिवार की ओर से उन्हें ढ़ेरों शुभकामनायें। हम उनकी 
सफल, स्वस्थ एवं दीर्घायु की कामना करते हैं। उल्लेखनीय है कि आधार 
प्रकाशन द्वारा प्रकाशित उनका पहला कविता संग्रह 'लकिन उदास है पृथ्वी'
बहुचर्चित और पुरस्कृत रहा है। उनका दूसरा कविता संग्रह 'नीम रोशनी में'
भी पाठकों व आलोचकों द्वारा सराहा गया है।


पलाश विश्वास


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