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Monday, June 25, 2012

विदा होते वित्तमंत्री प्रणव का देश को अबाध विदेशी पूंजी प्रवाह का उपहार!

विदा होते वित्तमंत्री प्रणव का देश को अबाध विदेशी पूंजी प्रवाह का उपहार!

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

थैली से निकला अंकल सैम।रिजर्व बैंक के ऐलान के बाद सेंसेक्स गिरा, रूपया भी गिर गया है।आरबीआई द्वारा कोई बड़े ऐलान न किए जाने से रुपये ने शुरुआती तेजी गंवा दी और 57 के स्तर पर पहुंच गया। अर्थ व्यवस्था सुधारने के वायदे के मुताबिक कड़े उपायों के तहत रिजर्व बैंक से न रुपया सधा और न बाजार,​​ पर जाते वित्तमंत्री, सत्तावर्ग के सर्वाधिनायक विशवपुत्र प्रणव मुखर्जी ने देश को अबाध विदेशी पूंजी प्रवाह का उपहार दे गया। ढांचागत मुद्दों​ ​ को संबोधित करने के लिए कारगर वित्तीय नीति की दिशा खोलने के बजाय हमेशा की तरह रिजर्व बैंक के भरोसे रहे प्रणव दादा। इमर्जिंग मार्केट भारत को वैश्विक पूंजी के शिकंजे में और मजबूती से कसते हुए विश्वपुत्र ने फिर साबित कर दिया की उनकी रायसिना रेस का आखिर मतलब ​​क्या है और राष्ट्रपति भवन के लान में आराम से टहलने के अलावा वे किस किसका हित साधते रहेंगे।खस्ताहाल अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए आरबीआइ द्वारा की गई घोषणाओं से आम आदमी को बढ़ती महंगाई से फिलहाल कोई राहत नहीं मिलने वाली। ब्याज दरों में कटौती की आस लगाए बैठे लोगों को इन घोषणाओं से निराशा के अलावा कुछ भी हाथ नहीं लगा है। आरबीआइ की घोषणाओं से बड़े पूंजीपतियों को जरूर कुछ राहत मिल सकती है। भारतीय कंपनियों के लिए विदेश से कर्ज लेने के नियमों को उदार किया जाएगा। रिजर्व बैंक ने विदेशी निवेश से जुड़े नियमों में ढील देते हुए विदेशी बैंकों के निवेश की सीमा बढ़ा दी है। इसके साथ ही ईसीबी की सीमा 500 करोड़ से दोगुनी करते हुए 1 हजार करोड़ कर दी गई है। लेकिन बैंक ने सीआरआर को लेकर कोई ऐलान नहीं किया।रिजर्व बैंक ने बाजार के हालात सुधारने के लिए सरकारी बांड में निवेश की सीमा बढा दी है। इसके साथ ही बुनियादी ढांचे के विकास में निवेश पर छूट दी गई है। नए प्रोजेक्टों में कर्ज की सीमा बढ़ाकर 10 अरब डालर तक कर दी गई। विदेशी निवेश के नियमों में भी ढील दी है। सरकारी बौंड में निवेश की सीमा 15 अरब डालर से बढ़ाकर 20 अरब डालर कर दी गई है। विदेशी बैंक सरकारी बांड में 20 अरब डालर तक निवेश कर सकेंगे। इंफ्रा फंड में निवेश आसान कर दिया गया है। विदेश से उधार लेने की सीमा बढ़ा दी गई है इससे संस्थाएं अब विदेश से 40 अरब डालर तक उधार ले सकेंगी।मालूम हो कि शुक्रवार को डॉलर के मुकाबले रूपए की कीमत में भारी गिरावट आई थी। एक डॉलर की कीमत रिकॉर्ड 57.37 रूपए तक पहुंच गई थी। इससे औद्योगिक उत्पादन को करारा झटका लगा था। नई रियायतों से औद्योगिक व बैंकिंग क्षेत्र को राहत की उम्मीद है। आरबीआई की घोषणाओं से आम जन को ऐसा लग रहा था कि होम लोन और पर्सनल लोन में कुछ सुधार होगा, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।

गौरतलब है कि वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने दो दिन पहले कोलकाता में रूपए में लगातार हो रही गिरावट को लेकर चिंता जाहिर की थी और कहा था कि रिजर्व बैंक हालात को दुरूस्त करने के लिए कुछ उपाय कर रहा है जिसके बाद हालात संभलने की उम्मीद है। वहीं, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी आर्थिक हालात में सुधार और रूपए में मजबूती की उम्मीद जताई है।

प्रणब मुखर्जी मंगलवार को संगठन व सरकार के सभी पदों से इस्तीफा देकर 28 जून को राष्ट्रपति चुनाव के लिए नामांकन कराएंगे। संकेत हैं कि प्रणब की सरकार से विदाई के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह वित्त मंत्रालय अपने पास ही रखेंगे। तात्कालिक तौर पर वित्त मंत्रालय में निचले स्तर पर कुछ परिवर्तन किए जा सकते हैं। संगठन व सरकार के बड़े फेरबदल के दौरान ही देश को नया वित्त मंत्री मिलने की उम्मीद है। लोकसभा में सदन के नेता का चयन भी मानसून सत्र से थोड़ा पहले ही होगा।कांग्रेस कार्यसमिति की सोमवार को बुलाई गई एक विशेष बैठक में पार्टी के नेताओं ने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार 'दादा' यानी प्रणब मुखर्जी को विदाई दी। इस विदाई समारोह में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी उपस्थित हुए और सभी ने 'दादा' के योगदानों की जमकर सराहना की। प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए नामांकन पत्र भरे जाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। एनडीटीवी के सूत्रों ने बताया है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह मंगलवार को उनके नामांकन पत्र पर दस्तखत करेंगे। मीडिया को आम तौर पर कम निराश करने वाले वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने सोमवार को कहा कि वह राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए संभवत: मंगलवार को अपने पद से इस्तीफा देने के बाद अपना संदेश देंगे।

प्रणव मुखर्जी को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनवाने में कॉरपोरेट जगत की भी भूमिका है। क्योंकि कई कॉरपोरेट्स उनके खुश नहीं थे। कॉरपोरेट्स भी चाहते हैं कि नया वित्त मंत्री ऐसा हो जो उनके हितों का ख्याल रखे। ऐसे में नए वित्त मंत्री का ताज कांटों भरा माना जा रहा है। जिस पर मल्टीब्रैंड रिटेल और घरेलू एयरलाइंस में एफडीआई पर फैसला लेने, जीएसटी और डीटीसी को लागू कराने, पेंशन रिफॉर्म और डीजल डीकंट्रोल जैसी बड़ी जिम्मेदारी रहेगी।फिलहाल वित्त मंत्री की रेस में करीब 5 लोग आगे माने जा रहे हैं। इनमें सबसे पहला नंबर है गृह मंत्री पी चिदंबरम का। वित्त मंत्रालय का कामकाज संभालने के साथ उन्हें आर्थिक मामलों की अच्छी समझ है। हाल ही में चिदंबरम कई बार प्रणव दा के साथ मुलाकात करते दिखे। लेकिन चिदंबरम 2जी समेत कई गंभीर आरोपों से घिरे हैं। साथ ही उनकी जगह नया गृह मंत्री खोजना भी बड़ी चुनौती होगी।

दूसरा नाम जोरों पर वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा का है। आनंद शर्मा 10 जनपथ और सोनिया गांधी के चहेते भी माने जाते हैं। लेकिन अनुभव की कमी और जमीनी पकड़ का अभाव इनकी कमजोरी है। तीसरा नाम आ रहा है ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश का। पहले पर्यावरण और अब ग्रामीण विकास मंत्रालय में इनके काम को काफी सराहा जा रहा है। साल 1991 में तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह के साथ वित्त मंत्रालय का भी अनुभव है लेकिन राजनीति में नए हैं। इनके कामकाज के तरीके को देखते हुए इनके नाम पर आम सहमति बनना मुश्किल है।हालांकि योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलुवालिया का नाम भी चर्चा में है। आर्थिक सुधारों के हिमायती हैं। लंबे अनुभव के साथ आर्थिक मामलों की अच्छी समझ है। लेकिन वित्त मंत्री जैसा पद एक गैर राजनीतिक शख्स को सौंपना मुश्किल है। इसी तरह प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष सी रंगराजन को भी एक विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है। लेकिन गहरी आर्थिक समझ के बावजूद इनकी कोई राजनैतिक पृष्ठभूमि नहीं है। हालांकि किसी कैबिनेट मंत्री के वित्त मंत्री बनने पर राष्ट्रपति चुनाव के बाद कैबिनेट में फेरबदल तय है। जिनमें कई नए चेहरों को मौका मिल सकता है।

रिजर्व बैंक ने मैन्यूफैक्चरिंग और ढांचागत क्षेत्र की कंपनियों के लिए विदेशी वाणिज्यिक ऋण [ईसीबी] की सीमा बढ़ाकर 10 अरब डॉलर कर दी है। साथ ही भारतीय प्रतिभूतियों में विदेशी संस्थागत निवेशकों [एफआइआइ] को 20 अरब डॉलर तक निवेश करने की छूट दे दी है। अभी तक यह सीमा 15 अरब डॉलर की थी। विदेशी बीमा फंडों, पेंशन फंडों, विदेशी केंद्रीय बैंकों सहित कुछ अन्य निवेशकों को सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश की अनुमति दी गई है।इन कदमों का मकसद अधिक से अधिक विदेशी निवेश हासिल करना है, ताकि डॉलर के मुकाबले 57.33 का रिकार्ड निचला स्तर छू चुकी भारतीय मुद्रा रुपया में मजबूती आए। देश में स्थापित होने वाले ढांचागत विकास फंड में एफआइआइ के लिए निवेश करने के नियमों को और आसान कर दिया गया है। उनके इस कदम पर बाजार और कारपोरेट इंडिया टकटकी लगाये हुए थे।इस कदम से उत्पादन सेक्टर को काफी राहत मिलने की संभावना जताई जा रही है, क्योंकि रुपये में लिए गए ऋण महंगे हैं, जबकि विदेशी मुद्राओं में लिए गए ऋण सस्ते पड़ते हैं।

रिजर्व बैंक की ओर से जारी अधिसूचना में कहा गया है, ''दीर्घावधि के निवेशकों मसलन सावरेन वेल्थ फंड :एसडब्ल्यूएफ:, बहुपक्षीय एजेंसियों, एंडॉवमेंट फंड, बीमा कोष, पेंशन कोष और विदेशी केंद्रीय बैंकों को सरकारी रिण में 20 अरब डालर तक के निवेश की अनुमति होगी।''

रिजर्व बैंक ने कहा है कि ये फैसले सरकार के साथ सलाह के बाद लिए गए हैं। इससे सरकारी प्रतिभूतियों :जी-सेक: में विदेशी निवेशकों का आधार बढ़ सकेगा।

केंद्रीय बैंक ने कहा है कि विनिर्माण तथा ढांचागत क्षेत्र की ऐसी कंपनियां जिन्हें विदेशी मुद्रा आमदनी होती है, वे रुपये के बकाया कर्ज के भुगतान या फिर मंजूरी मार्ग से ताजा पूंजीगत खर्च के लिए 10 अरब डालर तक की बाह्य वाणिज्यिक उधारी :ईसीबी: जुटा सकेंगी।इसमें कहा गया है कि विदेशी संस्थागत निवेशकों के लिए जी-सेक में निवेश की सीमा को 5 अरब डालर बढ़ाया गया है। इससे जी-सेक में एफआईआई की निवेश सीमा 15 से बढ़कर 20 अरब डालर हो जाएगी। ''10 अरब डालर की उप सीमा की बची हुई परिपक्वता अवधि तीन साल की होगी।''

आरबीआइ की घोषणाएं न तो महंगाई से जूझते आम आदमी को कुछ राहत देंगी और न ही मंदी से परेशान उद्योग जगत को। यही कारण है कि इसे विशेषज्ञों, उद्योग जगत व बाजार ने एक साथ नापसंद किया है। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष सी रंगराजन ने कहा कि यह अर्थव्यवस्था के समक्ष उत्पन्न कई चुनौतियों में से सिर्फ एक चुनौती [निवेश प्रवाह] से निपटने के लिए उठाया गया कदम है। फिक्की के अध्यक्ष आरवी कनोरिया ने इसे बेहद निराशाजनक बताया है। सरकार की घोषणा की उम्मीद में सुबह से तेजी दिखा रहा बंबई शेयर बाजार का सेंसेक्स 90 अंक की गिरावट के साथ बंद हुआ, जबकि रुपये में भी भारी गिरावट देखी गई। बाजार शुरुआती दौर पर उम्मीदो के पंख पर 160 अंक तक उछल गया। जाहिर है कि  घरेलू शेयर बाजारों में कारोबारियों के लिए सोमवार का दिन कुछ खास हो सकता था। बंबई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का संवेदी सूचकांक सेंसेक्स मजबूती के साथ खुला था जिसे देखते हुए कारोबारियों के मंसूबे भी उतने ही मजबूत थे।  वजह भी साफ थी, शनिवार को वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा था कि सोमवार को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की ओर से कुछ बड़े कदम उठाए जाएंगे। लेकिन बाजार में यह उत्साह क्षणिक था और आरबीआई की घोषणाओं के बाद कारोबारियों के चेहरे की रंगत उड़ गई।सेंसेक्स 0.53 फीसदी या 90 अंक फिसलकर 16,882 पर बंद हुआ। एसऐंडपी सीएनएक्स निफ्टी भी 0.61 फीसदी लुढ़क कर 5,144 पर बंद हुआ।  भारतीय स्टेट बैंक  और ब्लू चिप कंपनियों के शेयर सबसे अधिक नुकसान उठाने वालों में रहे। रिजर्व बैंक की घोषणा में निकट अवधि में बाजार के लिए राहत की कोई खास बात शामिल नहीं थी।आर्थिक विकास की दर में गिरावट के बावजूद ग्लोबल रेटिंग एजेंसी मूडीज ने भारत का क्रेडिट आउटलुक स्थिर बनाए रखा। इस खबर से शुरुआती कारोबार में तेजी आई। लेकिन यह बरकरार नहीं रह सकी। रिजर्व बैंक  ने सरकारी बॉन्ड में विदेशी निवेश की सीमा 5 अरब डॉलर से बढ़कार 20 अरब डॉलर करने की घोषणा की और इसके साथ ही कुछ अन्य छोटे उपायों की भी बात कही जो निवेशकों की और अधिक संरचनात्मक सुधार की अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं रहे।केंद्रीय बैंक ने जो अन्य घोषणाएं की उनमें विदेशी निवेशकों के लिए कुछ सरकारी बॉन्ड में लॉक-इन पाबंदियों में छूट और विदेशी निवेशकों की कुछ अन्य श्रेणियों के लिए ऋण प्रतिभूतियों में निवेश की अनुमति देना शामिल हैं। ईसीबी और सरकारी प्रतिभूतियों में बाह्य वाणिज्यिक उधारी की सीमा में बढ़ोतरी लंबी अवधि में रुपये के लिए सकारात्मक हो सकती है लेकिन शेयर बाजारों पर तत्काल इसका कोई असर नहीं होने जा रहा है।निवेशक उम्मीद कर रहे थे कि आरबीआई कैश रिजर्व रेश्यो(सीआरआर) और रीपो रेट जैसी प्रमुख ब्याज दरों में कोई कटौती करेगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।

पिछले हफ्ते सरकार की ओर से अर्थव्यवस्था में नई जान डालने के लिए प्रोत्साहन को लेकर शोर शराबा तो खूब हुआ लेकिन सरकार अपने वादे पर खरी नहीं उतर पाई। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने गिरते रुपये को थामने के लिए कुछ उपायों का ऐलान तो किया। लेकिन इससे उन निवेशकों को निराशा ही हुई जो सरकार की ओर से किसी साहसिक कदम की उम्मीद कर रहे थे, जिससे लगातार कमजोर होती मुद्रा में गिरावट थम सके। आर्थिक सुस्ती दूर करने के लिए निर्णायक फैसला करने का संकेत दे रही सरकार ने सोमवार को ऐसा कुछ नहीं किया जिससे आम जनता को राहत मिले। जबकि पिछले दो दिनों से सरकार ने ऐसा माहौल बनाया था जैसे दूसरा बजट पेश किया जाने वाला है और बड़े आर्थिक फैसले लेने की तैयारी कर ली गई है।रिजर्व बैंक के ऐलान में पूरी अर्थव्यवस्था के लिए कोई पैकेज नहीं दिखाई दिया, महज रुपए में मजबूती आने के आसार हैं। रुपए की गिरावट पर अंकुश लगाने के लिए रिजर्व बैंक ने ईसीबी(एक्टर्नल कमर्शल बॉरोइंग) की सीमा को 10 अरब डॉलर बढ़ाकर 40 अब डॉलर कर दिया। है। इसके अलावा, सरकारी बॉन्डों में विदेशी निवेश की सीमा को भी बढ़ाने का ऐलान किया गया है। इसे 15 अरब डॉलर से बढ़ाकर 20 अरब डॉलर कर दिया गया है। फिलहाल, भारतीय कॉर्पोरेट बॉन्डों में विदेशी संस्थागत निवेशक( FIIs) 20 अरब डॉलर तक की रकम इन्वेस्ट सकते हैं। वहीं, सरकारी बॉन्डों में निवेश की सीमा 15 अरब डॉलर है। इसके अलावा, संस्थागत निवेशक 25 अरब डॉलर तक के इंफ्रास्ट्रक्चर बॉन्डों में निवेश नहीं कर सकते। जाहिर है कि अर्थव्यवस्था को मंदी के झंझावात से निकालने के लिए सरकार कोई नई सूझ नहीं दिखा सकी।जबकि पिछले दो दिनों से सरकार ने ऐसा माहौल बनाया था जैसे दूसरा बजट पेश किया जाने वाला है और बड़े आर्थिक फैसले लेने की तैयारी कर ली गई है।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी, दोनों ने सोमवार को 'कठोर फैसले' का एलान होने की बात कही थी। सोमवार को सुबह वित्त मंत्री ने मीडिया को बताया कि जल्द ही घोषणाएं की जाएंगी। दोपहर बाद बताया गया कि अब घोषणा आरबीआइ की तरफ से होगी। आरबीआइ की घोषणाएं मामूली साबित हुईं। योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोटेंक सिंह अहलूवालिया ने इन्हें बस एक शुरुआत भर बताया और कहा कि इस तरह के कदम आगे भी उठाए जाएंगे।

कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने आज वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी से उनके दफ्तर में जाकर मुलाकात की। राहुल गांधी हालांकि कांग्रेस कार्यसमिति की उस बैठक में भी मौजूद थे जिसमें प्रणब को विदाई दी गई, लेकिन इस बैठक के बाद राहुल गांधी नॉर्थ ब्लॉक में प्रणब के दफ्तर गए। राहुल गांधी ने कहा है कि प्रणब मुखर्जी से उन्होंने बहुत कुछ सीखा है। कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ सदस्य और सरकार के संकटमोचक कहे जाने वाले प्रणब मुखर्जी को कांग्रेस कार्यसमिति ने यादगार विदाई दी। राष्ट्रपति चुनाव से पहले संगठन से औपचारिक विदाई के लिए सोमवार को बुलाई गई सीडब्ल्यूसी की बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री दोनों ने माना कि दादा की कमी संगठन-सरकार दोनों जगह अखरेगी। कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने कहा कि उन्होंने व्यक्तिगत रूप से दादा से बहुत कुछ सीखा।

खुद को पार्टी की तरफ से मिले सम्मान से अभिभूत प्रणब ने भी कांग्रेस से अपने 50 साल के रिश्ते को दिल खोलकर याद किया। साथ ही भावुक होते माहौल के बीच उन्होंने चुटकी ली कि अब पहले की तरह किसी भी समय आपके साथ बैठना नहीं हो पाएगा। संप्रग सरकार और संगठन की हर अहम बैठक का हिस्सा रहे दादा की इस बात पर सोनिया-मनमोहन से लेकर सभी सदस्य मुस्करा दिए। प्रणब ने इंदिरा, राजीव को याद करते हुए कहा, 'मैंने जितना पार्टी के लिए किया, उससे कहीं ज्यादा मुझे यहां मिला।'

दादा की विदाई के लिए 10 जनपथ पर बुलाई गई इस बैठक की शुरुआत सोनिया ने की। उन्होंने कहा, 'दादा न सिर्फ सीडब्ल्यूसी के सबसे वरिष्ठ सदस्य हैं बल्कि राष्ट्रपति पद के लिए सबसे उपयुक्त उम्मीदवार भी।' सोनिया ने संप्रग में शामिल दलों के साथ प्रणब को समर्थन देने वाले अन्य राजनीतिक दलों का भी आभार जताया। सरकार और संगठन में प्रणब की उपयोगिता व अहमियत पर मनमोहन ने कहा कि प्रणब की कमी हमें शिद्दत से महसूस होगी, क्योंकि वे कई अहम जिम्मेदारियां निभा रहे थे।

सीडब्ल्यूसी बैठक में एके एंटनी, मोती लाल वोरा, आरके धवन, एससी जमीर और मोहसिना किदवई ने भी प्रणब की शान में कसीदे काढ़े। दिग्विजय सिंह और गुलाम नबी आजाद समेत तीन सीडब्ल्यूसी सदस्य बैठक में शामिल नहीं हो सके। दिग्विजय की अनुपस्थिति को उनकी नाराजगी से जोड़े जाने के कयास लगे, लेकिन कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने इससे इन्कार किया। उन्होंने कहा कि तीन सीडब्ल्यूसी सदस्य और तीन स्थायी सदस्य बैठक में शामिल नहीं हो सके, सबके न आने की पूर्व सूचना थी।

मालूम हो कि विपक्षी पार्टियां और अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियां के बाद देश के दिग्गज उद्योगपतियों ने भी यूपीए सरकार को आर्थिक कुप्रबंधन के लिए खुलेआम कोसना शुरू कर दिया है। भारतीय सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री की शानदार कामयाबी से करीबी रूप से जुड़े दो लोगों ने यूपीए सरकार पर जमकर निशाना साधा। अजीम प्रेमजी और एन. आर. नारायणमूर्ति ने सरकार पर कुप्रबंधन का आरोप लगाते हुए कहा कि देश की आर्थिक संभावना को लेकर खतरा पैदा हो गया है।

मनमोहन सिंह सरकार पर की तल्ख टिप्पणी से कॉरपोरेट इंडिया के बीच सरकार की छवि का पता चलता है। आम तौर पर इस तरह की टिप्पणी सार्वजनिक रूप से देखने को नहीं मिलती है। देश की दूसरी सबसे बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी इन्फोसिस के सह-संस्थापक मूर्ति ने केंद्र की सरकार खासकर मनमोहन सिंह की तीखी आलोचना की है। उन्होंने मॉर्गन स्टैनली रिसर्च से कहा है कि 2004 से 2011 के दौरान भारत ने ज्यादा सुधार नहीं किए हैं।

11 जून की रिपोर्ट में मूर्ति के हवाले से कहा गया है, 'जब यह सरकार बनी थी तो काफी विश्वास था कि जो भी जरूरी होगा, भारत उसे करेगा क्योंकि जो व्यक्ति 1991 के आर्थिक सुधार का चेहरा था वह अभी हमारा प्रधानमंत्री है। इसलिए भारत से बाहर भी काफी उम्मीदे थीं। ऐसा लगता है कि पिछले 3-4 महीने में भारत की इमेज को जबर्दस्त धक्का पहुंचा है। एक भारतीय के रूप में मैं इस बात से बहुत दुखी हूं कि हम इस हालात में पहुंच गए हैं।'

पिछले कुछ महीनों से यूपीए सरकार पर यह आरोप लगते रहे हैं कि वह बड़े फैसले लेने में बहुत ज्यादा डरती है। इस दौरान ग्रोथ और इनवेस्टमेंट की रफ्तार सुस्त हुई है, इनफ्लेशन और डेफिसिट बढ़ा है और रुपया कमजोर हुआ है। सरकार यह राग अलापती रही है कि जो भी उसके हाथ में है, वह कर रही है। सरकार ने मौजूदा स्थिति की वजह गठबंधन सरकार की मजबूरियों, क्रूड ऑयल की ऊंची कीमतों और यूरोपीय क्राइसिस जैसे कारकों को बताया है, जिस पर उसका नियंत्रण नहीं है।

उधर विप्रो के संस्थापक और चेयरमैन प्रेमजी ने सोमवार को मुंबई में कंपनी के एनालिस्ट मीट में कहा, 'बतौर देश हम लीडर के बगैर काम रहे हैं।' उन्होंने यह बात उस दिन कही, जिस दिन स्टैंडर्ड ऐंड पुअर्स ने कहा कि भारत इनवेस्टमेंट ग्रेड गंवाने वाला पहला ब्रिक्स देश बन सकता है। बैठक में शामिल होने वाले कम से कम 5 एनालिस्ट ने ईटी से उनके इस बयान की पुष्टि की। उन्होंने कहा कि प्रेमजी ने यह भी कहा कि नीतिगत मामलों में सुस्ती किस तरह से इनवेस्टर सेंटीमेंट को खराब कर रही है। पिछले साल अजीम प्रेमजी और एचडीएफसी के दीपक पारेख जैसे 14 प्रमुख लोगों के समूह ने दो बार सरकार को पत्र लिखकर राजकाज के स्तर में सुधार करने की अपील की थी।

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