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Friday, October 18, 2013

भारत में विश्व में सबसे अधिक एक करोड़ 40 लाख लोग गुलामों जैसा जीवन बिना बिता रहे हैं, ये दावा किया गया है ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स में अनिवार्य है मित्रों, मौजूदा वध संस्कृति के मुकाबले इतिहास को फिर से लिखने की कोशिश महिषासुर के बहाने

भारत में विश्व में सबसे अधिक एक करोड़ 40 लाख लोग गुलामों जैसा जीवन बिना बिता रहे हैं, ये दावा किया गया है ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स में

अनिवार्य है मित्रों, मौजूदा

वध संस्कृति के मुकाबले

इतिहास को फिर से लिखने की कोशिश महिषासुर के बहाने

पलाश विश्वास


जिस देश में साधूबाबा के

सपने पर पुरातत्व विभाग

करता हो तलाश

एक हजार टन सोने की

जहां से मीडिया का हो

सीधा आंखों देखा हाल प्रसारण


उस देश के इतिहासबोध

की दिशा का क्या कहिये

कारपोरेट सरकार और

राजनीति के एकमुश्त

धर्मोन्माद का क्या कहिये


बंगाल में परिवर्तन

का बहुत हुआ दावा

लेकिन अब भी जारी

महिषासुर वध

आस्था धर्म नहीं

मनोरंजन है निरंकुश

अश्लीलतम क्रयशक्ति का

निर्मम प्रदर्शन

और राजकाज है धर्म

राजकाज है असुर वध


वे उच्चारण की शुद्धता की

बात करते हैं

वे रक्त की विशुद्धता की बात भी करते हैं

वे देहशुद्धि पर सबसे ज्यादा देते हैं जोर

और कहते हैं

धर्म के लिए

कर्मकांड के लिए

वधस्थल और वध

दोनों बेहद जरुरी हैं

इसीलिए यह देश

अब अनन्त वधस्थल

इसीलिए देश की

एक तिहाई आबादी

जल जंगल जमीन से अबाध

बेदखली से अपने ही

देश में शरणार्थी हैं

आंकड़े आधिकारिक हैं


इस देश में पुरातत्व विभाग

इतिहासकारों और विश्वविद्यालयों का

एकमात्र काम है सत्तावर्ग के

हित सधे,ऐसे इतिहास का निर्माण

हड़प्पा और मोहंजोदोड़ो की

सभ्यता की विरासत को विभाजित करना भी

भारत विभाजन का

बहुत बड़ा मकसद रहा है

फिर खुदाई हो रही है

कुछ और ई के लिए

इतिहास को दबाने

सारे सबूत मिटाने के

काम में लगी हैं

इतिहास की सेनाएं

अस्पृश्य बहिस्कृत वध्य भूगोल

को निहत्था हलाक करने में लगा है

सत्ता वर्चस्व का एकाधिकारी इतिहास

पिपली लाइव टू इसीका पक्का सबूत है




Abhishek Srivastava
''एक हाथ में पेप्सी कोला दूजे में कंडोम/तीजे में रमपुरिया चाकू चौथे में हरिओम/कितना ललित ललाम यार है/भारत घोड़े पर सवार है''... टक बक टक बक

भारत में हैं सबसे ज़्यादा गुलाम....
भारत में विश्व में सबसे अधिक एक करोड़ 40 लाख लोग गुलामों जैसा जीवन बिना बिता रहे हैं, ये दावा किया गया है ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स में.....
http://www.bbc.co.uk/hindi/international/2013/10/131017_modern_slavery_vt.shtml

Like ·  · Follow Post · Share · 5 hours ago


झारखंडी भाषा संस्कृति अखड़ा

5 hours ago

झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा आदि धर्म का समर्थक है. लेकिन जो लोग आरएसएस के इशारे पर सरना और ईसाई को लड़ाना चाहते हैं उनसे पूछना चाहेंगे कि ये जो नोवामुंडी में पूजा के दौरान हिंदू देवी दुर्गा और अन्य को आदिवासी साड़ी पहनाया गया है उस पर आपलोगों की क्या राय है? क्या 25 दिसंबर से पहले 3 नवंबर को दिवाली है उस दिन आरएसएस के इशारे पर काम करनेवाले सरना लोग हिंदू धर्म के खिलाफ जुलूस निकालेंगे? क्या यह सरना धर्म का अपमान नहीं है?


Thanks to Ghanshyam Biruly

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" Ashoka Vijya Dashmi" near about 15 lakh people gathered to celebrate this great occassion, but our electronic and print media is deaf and dumb, isko prime time t.v. par nahi dikhaya jata, in future esa scene har state me hoga." — with Bsp Bahujan Samaj and 45 others.

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Abhishek Srivastava and Girijesh Tiwari shared Bhadas4media'sstatus update.

Bhadas4media

पीपली लाइव पार्ट (दो) पर पत्रकार नदीम एस. अख्तर का महाविश्लेषण और भड़ास का महाकवरेज... अगर आप चाहते हैं कि न्यूज चैनल कतई तमाशा चैनल न बनें और पूरा देश बुनियादी मुद्दों-मसलों को छोड़कर खोदने-तलाशने की कहानी में ही न डूबता-उतराता रहे तो नीचे दिए गए लिंक्स को एक-एक कर क्लिक करें, फिर पढ़ें-पढ़ाएं और शेयर करके आगे बढ़ाएं... याद रखिए, कई बार तमाशे हम-सबका ध्यान भटकाने के लिए क्रिएट किए जाते हैं और मीडिया को भड़काने-उकसाने के काम में लगा दिया जाता है... याद रखिए, जहां इस कदर भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी, आर्थिक संकट आदि हो वहां जनता के गुस्से को गोलबंद होने से रोकने के लिए ऐसे तमाशे सजा दिए जाते हैं और मीडिया को हांक कर खेल दिखाने को कह दिया जाता है... याद रखिए, कोई काम धैर्य रखकर और तार्किक तरीके से भी किया जा सकता है और इस प्रक्रिया में सही-गलत का पता लगाया जा सकता है पर मीडिया और सरकार ने पूरे प्रकरण को ट्वेंटी-ट्वेंटी मैच के अंदाज में बताना, दिखाना, खेलना शुरू किया है... यह हम हिंदी पट्टी वालों की कम चेतना और समझ को कुंद करने की साजिश है... और, ऐसा करके अंततः हम सभी पढ़े लिखों को बेवकूफ साबित करने की कोशिश है... कृपया पढ़ें और शेयर करें.. धर्मांधता, पाखंड, अंधविश्वास से लबरेज हिंदी न्यूज चैनलों के पीपलीयाए संपादकों को थू-थू, शेम-शेम कहें...

-यशवंत, एडिटर, भड़ास4मीडिया डॉट कॉम

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बाबा और सोना (एक) : पत्रकारिता को अंधविश्वास की फैक्ट्री बनाने पर तुल गए ये हिंदी न्यूज चैनल

http://bhadas4media.com/print/15217-2013-10-17-07-32-23.html

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बाबा और सोना (दो) : शोभन सरकार के बहाने नामी-गिरामी पत्रकारों की कलई खुल रही है

http://bhadas4media.com/print/15218-2013-10-17-07-35-58.html

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ताल ठोंककर न्यूज चैनल को एंटरटेनमेंट चैनल यानि तमाशा चैनल बना दिया लेकिन शर्म उनको नहीं आ रही

http://bhadas4media.com/print/15249-peepli-live-part-2.html

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लीजिए, पीपली लाइव, पार्ट-2 की चपेट में सुप्रीम कोर्ट भी आ गया

http://bhadas4media.com/print/15250-peepli-live-part-2-and-sc.html

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इस पूरे ड्रामे में पीएम-मनमोहन-राहुल की सहमति है यानि भारत सरकार की सहमति है

http://bhadas4media.com/print/15251-2013-10-18-09-27-10.html

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पीपली लाइव-2 का असर... एक चैनल के कर्ता-धर्ता खुद ही एंकरिंग करने बैठे हुए हैं सुबह से

http://bhadas4media.com/print/15252-peepli-live-part-2-and-journalists.html

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सारे चैनलों ने जोर लगा लिया लेकिन कमबख्त बाबा ने एक भी बाइट नहीं दी

http://bhadas4media.com/print/15253-2013-10-18-09-35-09.html

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ये नहीं चलेगा कि आप ऊलजलूल भी दिखाएं और फिर नैतिकता भी बघारें

http://bhadas4media.com/print/15254-2013-10-18-09-35-58.html

साधु, सोना और सपना, क्या निकलेगा सच में?

तुषार बनर्जी

बीबीसी संवाददाता

शुक्रवार, 18 अक्तूबर, 2013 को 07:50 IST तक के समाचार

राजाराव रामबक्श के किले में खजाना है या नहीं इस पर विरोधाभासी रिपोर्ट जारी हुए है. (फाइल फोटो)

उत्तर प्रदेश के उन्नाव ज़िले में अब से कुछ ही घंटों बाद भारतीय पुरातत्व विभाग का दल उस छुपे हुए 'खज़ाने' को ढूंढने के लिए खुदाई शुरू करेगा, जिसके अस्तित्व पर खुद विभाग को भी शक है.

दर्जनों पुरातत्वविद और उनके सहायकों समेत स्थानीय सरकारी अमला एक साधु को आए सपने के आधार पर सैकड़ों साल पुराने राजाराव रामबक्श के किले के खंडहर पर खुदाई शुरू करेंगे, जो एक पुरातन टीले में तब्दील हो चुका है.

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शायद ये पहली बार है जब किसी साधु के सपने के आधार पर भारत में सरकारी अमला खज़ाना ढूंढने की कार्रवाई कर रहा है.

हालांकि भारतीय पुरातत्व विभाग के निदेशक (खोज) सैयद जमाल हसन ने बीबीसी से कहा कि देश की सांस्कृतिक विरासतों को पहचानना और उन्हें सहेजने की दिशा में कदम उठाना भारतीय पुरातत्व विभाग का प्रमुख काम है, न कि खज़ाने की खोज करना.

इस पूरे मामले में केंद्रीय कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण राज्य मंत्री चरण दास महंत की भूमिका की सबसे ज़्यादा चर्चा है.

क्या ये महज़ इत्तेफ़ाक है कि शोभन सरकार को खज़ाने का सपना आने के बाद 22 सितंबर को चरण दास महंत और उनकी पत्नी उन्नाव के उस इलाके में गए और शोभन सरकार से मुलाकात की.

क्या ये भी एक इत्तेफ़ाक है कि चरण दास महंत की शोभन सरकार से मुलाकात के बाद भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण ने उस इलाके का सर्वेक्षण किया और 29 सितंबर को अपनी रिपोर्ट दी?

विरोधाभासी रिपोर्टें

पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट

"प्रारंभिक जांच में यहां इतनी भारी मात्रा में सोना होने के संकेत नहीं मिले. इतिहास भी इस इस बात की पुष्टि नहीं करता है कि राजाराव रामबक्श के पास कभी इतनी भारी मात्रा में सोना था..."

बीबीसी हिन्दी सेवा ने उन सरकारी ईमेलों के आदान-प्रदान को देखा है जिनसे ये बात स्पष्ट हो जाती है कि चरणदास महंत की उन्नाव यात्रा के बाद उनके निजी सचिव और उन्नाव के डीएम ने इलाके की खुदाई का प्रस्ताव सरकार के पास भेजा.

भारतीय पुरातत्विक विभाग के सूत्रों के मुताबिक 29 सितंबर को भूगर्भ सर्वेक्षण की रिपोर्ट उनको मिली जिसमें कहा गया, "संबंधित इलाके में सोना, चांदी और अन्य अलौह धातु होने की संभावना के संकेत मिले हैं."

इस रिपोर्ट के बाद मौके पर गई भारतीय पुरातत्व विभाग की टीम ने वहां भारी मात्रा में सोना होने की संभावना से इनकार कर दिया.

बीबीसी को दिखाई गई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि, "प्रारंभिक जांच में यहां भारी मात्रा में सोना होने के संकेत नहीं मिले. इतिहास भी इस इस बात की पुष्टि नहीं करता है कि राजाराव रामबक्श के पास कभी इतनी भारी मात्रा में सोना था. यहा इतना सोने होने का दावा भारत के दूसरे इलाको के खुदाई के इतिहास से भी मेल नहीं खाता. हालांकि इस इलाके में पुरातन महत्व की चीज़ों या 'आम खज़ाने' के बारे में सटीक जानकारी नहीं मिली."

खुदाई का फैसला

"यह खुदाई केंद्र सरकार ही करवा रही है. हमने अपनी तरफ से कुछ नहीं किया जब भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने सरकार को अपनी रिपोर्ट दी जिसमें बताया गया कि नीचे भारी कंटेंट हैं, उसके बाद ही यह फैसला लिया गया."

प्रवक्ता, पुरातत्व विभाग

खज़ाने के अस्तित्व पर विरोधाभासी रिपोर्टों होने के बावजूद भारतीय पुरातत्व विभाग ने राजाराव रामबक्श के किले पर खुदाई करवाने का फैसला किया है.

उन्नाव में खुदाई के लिए संभावित राजनीतिक दबाव के बारे में भारतीय पुरातत्व विभाग के प्रवक्ता बी.आर. मणि ने कहा, "यह खुदाई केंद्र सरकार ही करवा रही है. हमने अपनी तरफ से कुछ नहीं किया जब भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने सरकार को, मंत्री को अपनी रिपोर्ट दी जिसमें बताया गया कि नीचे भारी कंटेंट हैं, उसके बाद ही यह फैसला लिया गया."

वहां खज़ाना मिलेगा या नहीं ये तो खुदाई के बाद ही पता चलेगा, फिलहाल सवाल इस बात पर उठ रहे हैं कि क्या भारतीय पुरातत्व विभाग किसी के सपने को आधार मानकर कार्रवाई कर रही है?

भारतीय पुरातत्व विभाग योजनाबद्ध तरीके से हर साल 100 से 150 साइटों पर खुदाई करवाती है, जिसका उद्देश्य सांस्कृतिक विरासतों को ढूंढ़ना और सहेजना होता है.

विभाग के अधिकारियों का कहना है कि शोभन सरकार के मामले के बाद देश के अलग-अलग हिस्सों से उन्हें हर रोज़ सैकड़ों फोन आ रहे हैं, जिनमें लोग संभावित खज़ाने की खोज के लिए टीम भेजने का आग्रह कर रहे हैं.

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए क्लिक करेंयहां क्लिक करें. आप हमें क्लिक करेंफ़ेसबुक और क्लिक करेंट्विटर पर भी फ़ॉलो कर सकते हैं.)

http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2013/10/131017_treasure_dream_tb.shtml

चन्द्रशेखर करगेती
कितना बड़ा ये कारोबार ?

क्या आप जानते हैं, कि हल्द्वानी, जिला-नैनीताल में अप्रेल-2013 से अप्रेल-2013 के बीच जमीन खरीदे-बेचे जाने की वर्गवार कुल कितनी रजिस्ट्री हुई है ?

क्या आप जानते हैं, कि हल्द्वानी, जिला-नैनीताल में अप्रेल-2012 से अप्रेल-2013 के बीच जमीन खरीदे-बेचे जाने से राज्य सरकार को कुल कितना स्टाम्प शुल्क प्राप्त हुआ हैं ?

क्या आप जानते हैं, कि हल्द्वानी, जिला-नैनीताल में अप्रेल-2012 से अप्रेल-2013 के बीच जमीन खरीदे-बेचे जाने से राज्य सरकार को कुल कितना रजिस्ट्री शुल्क प्राप्त हुआ हैं ?

क्या आप जानते हैं, कि हल्द्वानी, जिला-नैनीताल में अप्रेल-2012 से अप्रेल-2013 के बीच जमीन खरीदे-बेचे जाने की रजिस्ट्री की हुई जमीन/भवन का औसतन सर्किल मूल्य क्या था ?

क्या आप जानते हैं कि हल्द्वानी, जिला-नैनीताल में अप्रेल-2012 से अप्रेल-2013 के बीच जमीन खरीदे-बेचे जाने की रजिस्ट्री की हुई जमीन/भवन का लगभग में प्रचलित बाजार मूल्य क्या था ?

क्या आप जानते हैं कि हल्द्वानी, जिला-नैनीताल में अप्रेल-2012 से अप्रेल-2013 के बीच जमीन खरीदे-बेचे जाने को लेकर की गयी रजिस्ट्री को रजिस्ट्री कराने वाले को देने के एवज में रजिस्ट्री कार्यालय के गुर्गों द्वारा सुविधा शुल्क के रूप में ली जाने वाली रजिस्ट्री मूल्य का 2% धनराशि का कुल योग कितना है ?

क्या आप जानते हैं कि हल्द्वानी, जिला-नैनीताल में अप्रेल-2012 से अप्रेल-2013 के बीच जमीन खरीदे-बेचे जाने की रजिस्ट्री देने के एवज में रजिस्ट्री कार्यालय द्वारा सुविधा शुल्क के रूप में ली जाने वाली रजिस्ट्री मूल्य का 2% किसकी जेब में जाता है ?

लेकिन ये जवाब रजिस्ट्रार कार्यालय के लोकसूचना अधिकारी महोदय नें आसानी से नही दिया बल्कि इसके लिए गिरी गौरव नैथानी जी को विभागीय अपीलीय अधिकारी के पास अपील कर सुचना दिलाने की गुहार लगानी पड़ी, तब कहीं जाकर हल्द्वानी रजिस्ट्रार कार्यालय से सम्बन्धित चौंधियाने वाले आंकडें निकल कर सामने आये l

जो तथ्य सामने निकल आये हैं वे इतने भयावह है कि भूमि की इस खरीद फरोख्त के बाजार में संलिप्त काले धन से एक साल में ही पूरी हल्द्वानी को नए तरीके से संवारा जा सकता है ! इतनी बड़ी धनराशी का काला करोबार है, लेकिन अपने सतर्कता अधिष्ठान (विजिलेंस) वाले एसपी साहब है कि आँख-कान-नाक सब बंद किये बैठे है ! पता नहीं कैसे मुखबिर पाले हैं साहब इन्होने ?

होगा खुलासा, करें कल का इंतजार......

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'भारत में हैं सबसे ज़्यादा गुलाम'

गुरुवार, 17 अक्तूबर, 2013 को 13:50 IST तक के समाचार

भारत में विश्व में सबसे अधिक एक करोड़ 40 लाख लोग गुलामों जैसा जीवन बिना बिता रहे हैं, ये दावा किया गया है ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स में.

इस सूची के अनुसार दुनिया भर में करीब तीन करोड़ लोग गुलामों की ज़िंदगी जी रहे हैं. हालांकि जनसंख्या प्रतिशत के अनुसार सर्वाधिक, करीब चार प्रतिशत, आधुनिक गुलाम अफ्रीकी देश मॉरीतानिया में हैं.

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162 देशों की स्थिति बताने वाले क्लिक करेंग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स-2013 की नई वैश्विक सूची में यह बात सामने आई है.

लेकिन इस सूची में यह भी कहा गया है कि कुल जनसंख्या के अनुपात के हिसाब से यह आंकड़ा मॉरीतानिया में सबसे ज़्यादा है. यहाँ की चार प्रतिशत आबादी गुलामों जैसी ज़िंदगी जी रही है.

इस सूची में बंधुआ मज़दूरी और मानव तस्करी भी शामिल हैं.

रिपोर्ट तैयार करने वालों का कहना है कि इससे संबंधित देशों की सरकारों को गुलामी की 'छिपी हुई समस्या' से निपटने में सहायता मिलेगी.

गुलामी की आधुनिक परिभाषा

गुलामी की आधुनिक परिभाषा के अनुसार यह सूची ऑस्ट्रेलिया की अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था क्लिक करें'वॉक फ्री फाउंडेशन' ने तैयार की है.

इसमें कर से संबंधित क्लिक करेंबंधुआ मज़दूरी, जबरन शादी और मानव तस्करी शामिल हैं.

डब्लूएफएफ के प्रमुख कार्यकारी अधिकारी निक ग्रोनो ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "हमारी बात बहुत सी सरकारें सुनना नहीं चाहेंगी."

इस संस्था द्वारा दुनिया भर में दो करोड़ 90 लाख आठ हज़ार गुलाम होने का अनुमान आधुनिक गुलामी के बारे में किए गए अन्य आकलन से काफी ज़्यादा है.

विभिन्न देशों में गुलामों की संख्या

  1. भारत - 1,39,56,010

  2. चीन - 29,49,243

  3. पाकिस्तान - 21,27,132

  4. नाइजीरिया - 701,032

  5. इथोपिया - 6,51,110

  6. रूस - 5,16,217

  7. थाईलैंड - 4,72,811

  8. डीआर कांगो- 4,62,327

  9. म्यांमार - 3,84,037

  10. बांग्लादेश - 3,43,192

क्लिक करेंइंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइज़ेशन के अनुसार दुनिया में 2 करोड़ 10 लाख लोग जबरन मज़दूरी के शिकार हैं.

'भारत में सबसे अधिक गुलाम'

इस कल्याणकारी संस्था का कहना है कि भारत, चीन, पकिस्तान और नाइजीरिया में सबसे ज़्यादा गुलाम हैं.

यदि इन देशों में पाँच अन्य देशों के आधुनिक गुलामों की संख्या जोड़ दी जाए तो विश्व में आधुनिक गुलामी के कुल अनुमान का तीन चौथाई आंकड़ा हो जाता है.

रिपोर्ट में बताया गया है कि क्लिक करेंभारत को लोगों की संख्या के आधार पर मिला गुलामी में पहला स्थान देश के भीतर ही लोगों का शोषण होने के कारण हो सकता है.

'गुलामी मिली पुरखों से'

सबसे अधिक अनुपात के हिसाब से मॉरीतानिया को पहला स्थान इसलिए मिला क्योंकि वहाँ बहुत से लोगों को गुलामी अपने पुरखों से विरासत में मिलती है.

सूची में मॉरीतानिया के बाद हैती को दूसरा और पकिस्तान को तीसरा स्थान दिया गया है.

इस सर्वेक्षण को अमरीका की पूर्व विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन और पूर्व ब्रितानी प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर का समर्थन हासिल है.

समाचार एजेंसी एपी के अनुसार हिलेरी क्लिंटन ने कहा, "हालांकि यह सूची पूरी तरह से ठीक नहीं है लेकिन यह एक शुरुआत का मौका देती है."

उन्होंने कहा, "मैं विश्व के नेताओं से अपील करती हूँ कि वे इस सूची को देखें और इस अपराध से निपटने के लिए अपना ध्यान केंद्रित रखें."

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए क्लिक करेंयहां क्लिक करें. आप हमेंक्लिक करेंफ़ेसबुक और क्लिक करेंट्विटर पर भी फ़ॉलो कर सकते हैं.)

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http://www.bbc.co.uk/hindi/international/2013/10/131017_modern_slavery_vt.shtml


इतिहास को फिर से लिखने की कोशिश महिषासुर के बहाने

Yesterday · 
एआईबीएसएफ की ओर से जेएनयू में लगातार तीसरे साल आयोजित किए गए महिषासुर शहादत दिवस में देश भर से लोग शामिल हुए. समारोह शाम 3 बजे से स्कूल ऑफ सोशल साइंस के ऑडोटोरियम में शुरू होकर देर रात तक चलता रहा. धार्मिक परंपराओं से इतर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में ऑल इंडिया बैकवर्ड स्टूडेंट फोरम के बैनर तले छात्रों ने असुर राजा महिषासुर का शहादत दिवस मनाया, जिसमें कई साहित्यकारों, समाज सेवकों व पत्रकारों ने हिस्सा लिया. कार्यक्रम में पटना से शिरकत करने पहुंचे लेखक प्रेम कुमार मणि ने कहा कि पिछड़े वर्ग के लोग इतिहास और मिथकों में अपना नायक ढूंढ रहे हैं. महिषासुर पशु पालक जातियों के राजा थे. बैल पर सवारी करने वाले शिव की तरह ही महिषासुर अनार्यो के प्रतापी राजा थे. वहीं इंडियन जस्टिस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष उदित राज ने कहा कि धर्म का पूंजीवाद से गठजोड़ समाज को विषाक्त कर रहा है; वक्ता तुलसी राम ने कहा कि हिंदुत्ववादी ताकतें समय. समय पर अपना खोया हुआ वर्चस्व कायम करने के लिए जोर आजमाइश करती हैं; वरिष्ठ पत्रकार अनिल चमड़िया ने कहा कि पिछड़े वर्गो को सांस्कृतिक वर्चस्व के जरिए अपना गुलाम बनाया जा रहा है. इसमें सबसे बड़ी भूमिका भाषा की है. कार्यक्रम को संबोधित करने वालों में लखनउ से आए चंद्रजीत यादव, दलित लेखिका अनिता भारती, साहित्यगकार रमणिका गुप्ता, सोशल ब्रेनवाश पत्रिका की संपादिका पल्लेवी यादव, बामसेफ के राष्ट्री य अध्याक्ष वामन मेश्राम, शोषित समाज दल के राष्ट्री य अध्यनक्ष अखिलेश कटियार , साहित्य कार हरि लाल दुसाध, हेमलता माहेश्व्र, रजनी दिदोसिया के साथ समाजसेवी सुनिल सरदार आदि प्रमुख थे. कार्यक्रम में अतिथियों द्वारा फारवर्ड प्रेस के संपादक प्रमोद रंजन द्वारा संपादित महिषासुर: एक पुर्नपाठ नामक पुस्तिका का लोकापर्ण किया गया. बहरहाल, विरोध और स्वीकार से गुजरते हुए इस वर्ष देश में उतर प्रदेश के उन्नामव, कौशाम्बीय, आजमगढ, देवरिया, सितापुर, लखनउ, बस्ति, डारखंड में गिरीडिह .गोंडा रांची, बिहार में मुजफ्फरपुर, पटना के साथ पश्चित बंगाल के पुरूलिया के अलावे केरल, बंगलुरू, ओडिसा, चेन्न ई, मुम्बिई, मैसुर के साथ 60 जगहों पर महिषासुर शहादत दिवस मनाया जाना अप्रत्याषित ही है. दरअसल, महिषासुर का प्रश्न देश के 85 फीसदी पिछड़ों.दलितों और आदिवासियों के पहचान से जुड़ा हुआ है. अपनी जड़ों की तरफ लौट रहे हैं, अपने नायकों को इतिहास में तलाश रहे हैं क्योंकि इतिहास का बहुजन पाठ अभी बाकी है.महिषासुर.दुर्गा विवाद
2011 के दशहरा के मौके पर ऑल इंडिया बैकवर्ड स्टूडेंट्स फोरम ने 'फारवर्ड प्रेस' में प्रकाशित प्रेमकुमार मणि का लेख 'किसकी पूजा कर रहे हैं बहुजन' के माध्यम से जेएनयू छात्र समुदाय के बीच विमर्श के लिए महिषासुर के सच को सामाने लाया. दुर्गा ने जिस महिशासुर की हत्या की, वह पिछड़ा वर्ग का न्यायप्रिय और प्रतापी राजा था, आर्यों ने छलपूर्वक इस महाप्रतापी राजा की हत्या दुर्गा नामक कन्या के हाथों करवाई, जेएनयू में जारी इस पोस्टर को लेकर संघी.सवर्ण छात्रों ने बैकवर्ड स्टूडेंट्स फोरम के छात्रों के साथ मारपीट की. इस प्रकरण में जेएनयू प्रशासन ने ऑल इंडिया बैकवर्ड स्टूडेंट्स फोरम के अध्यक्ष जितेंद्र यादव को धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आरोप में नोटिस जारी किया. लगभग 1 महीने तक चले इस विवाद में अंततः पिछड़े वर्ग के छात्रों की जीत हुई. देश के बुद्धिजीवियोंए पत्रकारों और राजनेताओं के दबाव में जेएनयू प्रशासन ने एआईबीएसएफ से लिखित रूप में मांफी मांगते हुए कहा कि जितेंद्र यादव के खिलाफ कोई प्रॉक्टोरियल जांच नहीं चल रही है. इस जीत से उत्साहित पिछड़े वर्ग के छात्रों द्वारा 25 अक्टूबर 2011 को जेएनयू परिसर में पहली बार महिषासुर शहादत दिवस मनाया गया.

महिषासुरः पिछड़ों के नायक
देश के विभिन्न हिस्सों में कई जातियां महिषासुर को अपना नायक मानती हैं. बंगाल के पुरूलिया जिले में महिषासुर की पूजा होती है और मेला लगता है. वहां के लोग महिषासुर को अपना पूर्वज मानते हैं. झारखंड में असुर जनजाति के लोग अपने को महिषासुर का वंशज मानते हैं. कवयित्री सुषमा असुर ने 'फारवर्ड प्रेस' के साथ साक्षात्कार में कहा था. 'देखो मैं महिषासुर की वंशज हूं. झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन भी महिषासुर को अपना पूर्वज मानते हैं. शिबू सोरेन ने रावण को अपना पूर्वज बताते हुए पुतला दहन से इनकार कर दिया था. मध्यप्रदेश में रहने वाली कुछ जनजातियां महिषासुर को अपना पूर्वज मानती है. 2008 में 'यादव शक्ति' पत्रिका ने दावा किया था कि महिषासुर पशुपालक जातियों के नायक थे. पत्रिका का आवरण कथा ही था 'यदुवंश शिरोमणि महिषासुर'. जेएनयू से पीएचडी कर रहे एआईबीएसफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष जितेंद्र यादव कहते हैं, नाजी तानाशाह एडोल्फ हिटलर का इतिहास हजारों बेगुनाह यहूदियों के खून से भरा पड़ा है. फिर भी दुनिया के किसी कोने में हिटलर की मौत का जश्न नहीं मनाया जाता है, फिर महिषासुर की हत्या पर हमारे देश में उत्सव क्यों होता है, जेएनयू में महिषासुर की शहादत तीन साल से मनाई जा रही है. महिषासुर की शहादत क्यों मनाते हैं. इस सवाल के जवाब में जितेंद्र कहते हैं महिषासुर हमारे पूर्वज थे, लेकिन माइथॉल्जी में उनकी तस्वीर गलत तरीके से पेश की गई है. बंग प्रदेश के राजा महिषासुर दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के लिए नायक थे, लेकिन इतिहास लिखने वालों ने उन्हें खलनायक के तौर पर पेश किया है, हम इस प्रोग्राम के जरिए बहुजनों को उनका असली इतिहास बताने की कोशिश कर रहे हैं.

इतिहास बदलने के लिए महिषासुर शहादत दिवस
व्हाई आई एम नॉट ए हिंदू, बुद्धा चैलेंज टू ब्राह्मनिज्म और बफैलो नेशनलिज्म जैसी किताबों के लेखक कांचा इलैया को जेएनयू के महिषासुर शहादस दिवस समारोह में बतौर मुख्य वक्ता बुलाया गया था, लेकिन वे स्वास्थ्य ठीक नहीं होने के कारण शामिल नहीं हो पाएं. एआईबीएसएफ को भेजे संदेश में बताया कि महिषासुर , रावण, बलि चंद्रा जैसे लोग राक्षस नहीं थे. दलित चिंतक और लेखक कांचा इलैया ने कहा है कि इतिहास को एक बार फिर से लिखने की कोशिश है महिषासुर का शहादत मनाना. उन्होंने कहा कि हम लोगों को यह बताना चाहते हैं कि हमारे देश में राक्षस जैसा कोई नहीं था. हिंदू ब्राहम्ण लेखकों ने अपनी कल्पनाओं से उनको राक्षस के रूप में पेश किया है. क्योंकि वे दलित, पिछड़ों और आदिवासियों के नायक थे.

मनुस्मृति जलाकर हुई महिषासुर शहादत दिवस की शुरुआत
हिन्दी-अंग्रेजी की मासिक पत्रिका फॉरवर्ड प्रेस ने महिषासुर के संदर्भ को नयी व्याख्या की थी और इस पर एक वैचारिक बहस की शुरुआत की थी. फॉरवर्ड प्रेस की पहल पर ऑल इंडिया बैकवर्ड स्टू्डेंट फोरम पटना ईकाई,यादव सेना, दलित संघर्ष समिति, जनजाति विकास संघ, अति-पिछडा समन्वेय संघ के साथ अपना बिहार के तत्व धान में संयुक्त रूप से आयोजित समारोह की शुरुआत मनुस्मृति की कॉपी जलाकर हुई. इस मौके पर समाजशास्त्री ईश्वरी प्रसाद, पूर्व मंत्री बसावन भगत, विधायक रामानुज प्रसाद व एसएस भास्कर, प्रो रामाशीष सिंह, बुद्धशरण हंस, डॉ राजीव समेत सौकडों लोग इस समारोह में शामिल हुए. इसका आयोजन पटना के दारोगा प्रसाद राय पथ स्थित दारोगा राय ट्रस्ट के सभागार में किया गया था. 

महिषासुर शहादत दिवस मना 
झारखंड के सिहोडीह स्थित बुद्ध ज्ञान मंदिर में अशोक विजयादशमी सह महिषासुर शहादत दिवस का आयोजन किया गया. अखिल भारतीय प्रबुद्ध यादव संगम के सहयोग से आयोजित इस समारोह में वक्ताओं ने भारत की सभ्यता.संस्कृति पर विस्तार से प्रकाश डाला. इस दौरान दामोदर गोप, निर्मल बौद्ध, रूपलाल दास, श्याम सुंदर वर्मा, शिवशंकर गोप, रीतलाल प्रसाद, गौतम कुमार रवि आदि ने विचार व्यक्त किए; अध्यक्षता विक्रमा मांझी ने की.


(लेखक अमरेन्द्र यादव सम-सामयिक सामाजिक मूद़दों पर लिखने वाले युवा पत्रकार है. ये फारवर्ड प्रेस में प्रमुख संवाददाता के पद पर कार्यरत है. इनसे press.amarendra@gmail.com या 09278883468 पर सम्पर्क किया जा सकता है) .
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