हवाओं में, पानियों में रेडियोएक्टिव डालर बहार,वायव्रेंट गुजरात हुआ देश रे !
पलाश विश्वास
हवाओं में, पानियों में रेडियोएक्टिव डालर बहार,वायव्रेंटगुजरात हुआ देश रे !
बंगाल और असम के दिग्विजयी अश्वेमेधी घोड़े अब बिहार का रुख कर चुके हैं।मगध साम्राज्य पर विजय पताका फहराने वास्ते स्वयंसेवकों को प्रथम सिपाह सालर अमित शाह का फरमान जारी हो चुका है।दूरका रुख तस्वीर का यूं है कि इंडिया बिजनेस लीडर अवॉर्ड्स में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि बड़े फैसले सिर्फ बजट में होंगे ऐसा नहीं सोचना चाहिए, देश की तरक्की के लिए सरकार बजट के बाहर भी बड़े फैसले लेती रहेगी। साथ ही उन्होंने इस बात का भी भरोसा दिया कि सरकार रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स का इस्तेमाल नहीं करेगी क्योंकि इससे देश की छवि खराब होती है। वित्त मंत्री ने ये भी उम्मीद जताई कि साल 2015 पिछले साल से बेहतर होगा।
इथे उड़े हो,उथे उड़े हो,डालर छायो जमीन आसमान।टाइटैनिक हुआ हाथ निवेशकों के हाथ में है कि बिजनैस फ्रेडली फिजां है कयामती।
तू बै मुस नाक,घोंघिया आंखि,कथे कथे दौड़बे डालर शिकार को,खुदे शिकार बनबै बे,बाजार का जाल घेरे हुए है,पंख फड़फड़बै जियादा तो मरबे तू चैतू।
इंफ्रास्ट्रक्चर अब देशज अर्थव्यवस्था का बुलेट हीरक आधार और नागरिक सगरे निराधार।हुई इंफ्रास्ट्रक्चरवा खातिर अब अरबिटरेशन इंटरनेशनल है।
न्यूट्रल जमीन मसलन कि सिंगापुर हांगकांग दुबई कि वाशिंगटन मा फैसला होने को है उजाड़,उजाड़,उजाड़ का।
तू का उखाड़ लिबो रे।अनाड़ी हलवाहा,जमीनर फजीहत।
देखतड़ कि कैसन गुजरात मां वायव्रेंट हुआ देश के किसान तमाम धर लियो गयो रे।
नतीजो खखलन बाड़न कि डालरों की बरसात हुई गयो रे गुजरातम मा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्थिर नीति और कर प्रणाली के जरिए भारत को कारोबार करने के लिहाज से 'सबसे आसान' देश बनाने के वादे के बीच वाइब्रेंट गुजरात में निवेश संबंधी तमाम बड़ी घोषणाएं की गई। अंबानी, अडाणी, बिडला, सुजुकी व रियो टिंटो जैसी दिग्गज कंपनियों ने 1.6 लाख करोड़ रुपये से अधिक निवेश तथा लगभग 50,000 नए रोजगार देने की प्रतिबद्धता जताई। मोदी ने सभी क्षेत्रों के 'सचमुच व्यापक' विकास का वादा भी किया जबकि वाइब्रेंट गुजरात समिट के पहले दिन उद्योगपतियों ने भारी निवेश की प्रतिबद्धता जताते हुए विभिन्न क्षेत्रों में निवेश के लिए समझौतों पर हस्ताक्षर किए।
गौरतलबै है कि अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी ने अपने भाषण में कहा कि गुजरात आकर बहुत अच्छा लगा। पीएम मोदी ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में गुजरात को संभावनाओं वाला राज्य बनाया है। उन्होंने कहा कि मोदी का पीएम बनना बड़ी उपलब्धि है। उनके पीएम आवास तक पहुंचने का मतलब है कि भारत बदल रहा है।
गौरतलबे है कि इसी अमेरिका में प्रधानमंत्री बनने से पहले गुजरात नरसंहार कारणे मोदी अवांछित रह हैं।
गौरतलबै है कि गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी ने प्रदेश में इनवेस्टमेंट जुटाने के लिए 2003 में वाइब्रेंट गुजरात का आयोजन शुरू किया था। पीएम बनने के बाद उन्होंने वाइब्रेंट गुजरात को दुनिया के सामने एक आकर्षक इनवेस्टमेंट डेस्टिनेशन के रूप में भारत को पेश करने का प्लेटफॉर्म बना दिया है। इस आयोजन में संयुक्त राष्ट्र के सेक्रेटरी जनरल बान की मून और अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी के अलावा दुनियाभर से बड़े कारोबारी जुटे हैं। पीएम ने रविवार को इंडिया इंक के दिग्गजों की मौजूदगी में इस आयोजन में कहा, 'जब भी आपको हमारी जरूरत होगी, हम आपके साथ होंगे। आपके सफर में हम साथ रहेंगे।
तनिको सोचा करो कि ओबामा माहाराज आइबे करे हैं।ओबामो पधारो म्मारा देश।
अमेरिकी विदेश मंत्री ने कह दियो रे कि भारत में सौदा फायदे का रहबे करै हैं।अमेरिका और भारत के रिश्तों की गर्मजोशी वाइब्रेंट गुजरात के मंच पर भी दिखी। अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी समारोह शुरू होने के करीब आधा घंटे बाद मंच पर पहुंचे। केरी के पहुंचते ही प्रधानमंत्री मोदी ने खड़े होकर उनका स्वागत किया। मोदी के करीब आकर केरी ने उन्हें बाहों में भर लिया और उनकी पीठ थपथपाई। मोदी ने भी केरी की पीठ थपथपाते हुए आभार जताया। इसके अलावा केरी ने मोदी के साथ मुलाकात कर दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र अमेरिका और सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के बीच अन्य मुद्दों के साथ आर्थिक विकास, जलवायु परिवर्तन पर बातचीत की।
अब महेंदर सिंह टिकैत किसानों को भर भर भरकर का हांगकांग,सिंगापुर वाशिंगटन ले जात बै।
टिकैत तो अब नाही रे।भट्टा परसौल,नंदीग्राम सिंगुर को बाट लगाओ खातिर 1884 का जमीन हड़पो कानून लार्ड डलहौसी के सांढ़ों के साथ बहाल हुइब करै है तो कोई अडानी मोर तोर बाप नाही कि उड़ाके ले जाइबो न्यूट्रल कंट्री के तू उहां विरोध धरना प्रदर्शन करबो।
आज को दिन तो गुजराती रंग बिरंग में ठेठ रंग चौपाल ह।का का लग रियो रे नजीर हाट मा,देखन वास्ते पइसा नहीं चाहिए बै।घोंघिया आंखि ,मुस नाक खुलल के चाहि।जो देख सके है,देख मेरी जान।जो सूंघ सकै है सूंग मेरी जान।
निसाल अली भाई ने सुबोसुबह कान उमेठदियो के नाचा गम्मक नाचा गम्मक जो हल्ला मचा रहा मैं,वो दरअसले नाचा गम्मत है।बोलियों में महीन फर्क है।बोलियों की खिचड़ी जो पका रहे हम,उ में मोर बाप बड़ी गडबड़ी हुई गवा री।हमका माफी दे दियो।इससे बड़ी गड़बड़ी यह भी के हम निसार भाई को जहां तहां नासिर बाई लिख रहे हैं।वो नासिर हमारे सत्तर दशक के हीरो रहे।नासिर हुसैन आजाद हिंद फौज वाले और नासिरवा समांतर सिनेमा वाले के जुबान से हटता नहीं वो नासिर बे।इ निसार है,निसार तेरी गली वाला।तनिको बूज लीज्यो।
गनीमत है कि हम मकबूल फिदा हुसैन जैसे बड़का तोप नही,वरना पता नहीं किस मुल्क में बसना पड़ता।कल ही समकालीन तीसरी दुनिया का अंक आया कि पाकिस्तान में वामपंथ के हाल हकीकत की पड़ताल है।अबही पढ़ रिया हूं।आप भी पढ़ लें।और क्या गजब हुआ के कल के रोजनामचे का जवाब यह है।इससे भढ़िया उनकी प्रतिक्रिया है,जो अंग्रेजी में लिख दियो कि हाईली इररीलिवेंट।गैर प्रासंगिक क्या है,गांधी,सेवाग्राम या फिर हमारा लेखन।समझ में नहीं आया।पण किन्हीं बंगभूमि के राजू बाबू के परामर्श मानें तो इस केसरिया कारपोरेट राज में किसी विचार विमर्श की कोई संभावना नहीं है।
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बोल नाही सकत फेसबुकिया ये प्रोफाइल फर्जी है कि असली।फर्जी हुआ तो राम राम शा।असली हुआ तो ताजातरीन बहुजन चेहरा केसरिया है।फिर भी राम राम शा।
हम तो हे राम को याद कर रहे थे।जयश्री राम का हांका लग गयो रे।बाबरी फिर ढहना है। य़रूसलम फिर कब्जाना है।अबहीं तो हम गांधी की बात कर रहे हैं कि सत्याग्रह अब भी जारी है।अंबेडकर पर तो कायदे से बात शुरु ही नाही कर सकत है।
सेवाग्राम में पुणे करार पर दस्तखत पर कोई बोर्ड नहीं दिखा।हिंदू सामाज के विभाजन विरुद्धे बापू के अनशन की तारीख दर्ज है।अंबेडकर संगे गांधी की तस्वीरे संग संग हैं।
हम तो बहस ऐइसन चाहते हैं कि अंध विश्वास निर्मूल समिति का एजंडा ही बदल देबे करै कि गांधी और अंबेडकर को एक दूसरे से बढ़ चढ़कर दिखाने वाले अंध भक्तों,यह बात गांठ बांध लेवके चाहि के हमको हऊ नाही चाहि।जिस हउ के पीछे लाग गो रे अपना साईनाथ भाया आउर आपना जयदीप हार्डीकर।परीकथा अभिषेकवा ने बांच दीहन है। हमरे खातिर साईनाथ और जयदीप रूरल इंडिया और जनपदों के विशेषज्ञ पत्रकार रहे हैं हमेशा।कभी कभार संवाद भी रहा है दोनों के साथ।हम परी के साथ बैठने कूं तैयार बी बैठे थे कि रुरलइंडियाआनलाइन तो हमरी भी महात्वाकांक्षा है।
हमऊ चाहत है नयका मीडिया जहां जनता के आखिर सुनवाई हो।अपने संसाधनों से आनंद स्वरुप वर्मा और पंकज बिष्ट जैसे लोगोन के साथ हमऊ सत्तारधसक से झख मार रहे हैं।सोशल मीडिया से जूझ रहे हैं इसी वास्ते।लेकिन कारपोरेट फंडिंग से कारपोरेट राजनीति की तर्ज पर नयका मीडिया हमऊ ना चाही। बंद दरवाजा बंद खिड़कियों के खिलाप हम भी नाही हो सकै है।साईनाथ और जयदीपका पुराना रिकार्ड जनपद खातिरे जबरदस्त है।परी महात्वाकांक्षा की उड़ानो खातिर ङम उन्हें अबहीं खारिज नाही कर सकत हैं।अभी इंतजार है कि वो काका का कर रियो है,बूझ लें,देख लें।
हम सेवाग्राम के परिप्रेक्ष्य में पुणे करार पर बहस जरुर चाहबे करै हैं।गांधी बाबा और बाबा साहेब मिलकर जो गुल खिला दियो सन 1932 में हिंदू समाज का विभाजन रोकने वास्ते,वहींच से सुरु हो गयो हिंदुत्व का यह ध्रूवीकरण और वहींच हिंदू साम्राज्यवाद की नींव है।देश बेचने वालों की मौलिक जनम कोख फेर वही पुणे करार है।
हिंदू साम्राज्यवाद के नवतम अद्यतन विश्णु अवतार नाथूराम गोडसे के बारे में लिखने के कातिर पाकिस्तान जाने का बहुजन फतवा है तो आखेर गांधी अंबेडकर विमर्श पर नयी विवेचना की हांक लगाने पर हमका वास्ते इस जहां में सर छुपाने लायक कोई जगह बचेगी या नहीं,फेर बड़ी फिक्र का मसल हुआ बै चैतू।
Rajiv Lochan Sah with Shamsher Singh Bisht and Trepan Singh Chauhan
15 hrs ·
हुड़भ्यास्स होने का इलहाम तो उसी दिन हो गया था, जब गुल्ली डंडा खेलते-खेलते न जाने क्यों बाबू के साथ एक दिन गढ़मुक्तेश्वर में नावों से बने पुल से गंगा पार की और लोहे के संकरे, पुराने पुल से यमुना पार कर दिल्ली में पहली बार प्रवेश किया। चाचा नेहरू की किसी 'प्रगति प्रदर्शनी' में पहली बार सीसीटीवी देख कर विज्ञान के इस आविष्कार से रणी गये और एक दफ्तर में लिफ्ट में ऐसे भबोरीणे कि ऊपर-नीचे ही झूलते रह गये....
अब तो दिल्ली हर जगह है....यानी इतनी मेट्रो सिटीज हो गई हैं कि हर जगह हुड़भ्यास्सी जाना पड़ता है। एक खास किस्म की जिन्दगी है, जहाँ खेतोें की जमीन को निगल कर बने हाइराईज अपार्टमेंट्स में रहने वाले एमबीए और एमसीए कर गिरमिटिया बने वाले डैशिंग नौजवान हैं, रिटायरमेंट के बाद नाती-पोतों की बेबी सिटिंग करने को अभिशप्त अधबूढे़ हैं, बिगबाॅस और कानफोड़ू संगीत है, माॅल और मल्टीप्लेक्स हैं, नीमअंधेरे रेस्तोराओं में कढ़ाइयों पर भाप उड़ाते सिजलर्स हैं, एक्सप्रेसवे पर 120 किमी की रफ्तार से भागती गाडि़याँ हैं ......मतलब वह सब कुछ है जो कि हम जैसे भट का जौला खाने वालों की समझ से बाहर है.....
हम लाख कहें कि जिस रोज से हमने खेतों का रास्ता छोड़ कर गाड़ी का स्टियरिंग सर्विस सैक्टर की ओर मोड़ दिया था, उसी रोज दुनिया गलत रास्ते पर चली गई थी, उससे क्या होना है ? आखिर तो हम दिलजले हुड़भ्यास्सी बूढ़े ही ठहरे!
Shabnam Hashmi
Just now ·
Under the Saffron Flag : Long Forgotten Battle Against Hindutva Terror
subhash gatade
(Not some time ago a very brief writeup by Younus SK had shared newsitems where Hindus posing as Muslims were seen to be committing mischiefs to whip up anti-muslim frenzy.
...See More
Terror threats by Hindus pretending as Muslims: random events or an RSS ploy?
increasing instances of Hindu youths masqurading as Muslims and issuing threat are not seen as a conscious effort to malign and criminalise the Muslim...
Modi Transforms Vibrant Gujarat into Vibrant India
Gandhinagar: Our Bureau |
From India to the World PM hardsells India as next big opportunity to US Secretary of State John Kerry, UN Secretary General Ban Ki-Moon and global industry bosses
Prime Minister Narendra Modi said India is getting ready to take a quantum leap, elevating the Vibrant Gujarat summit he founded as chief minister in 2003 into a platform to hardsell India as the next big opportunity to statesmen such as US Secretary of State John Kerry and UN Secretary General Ban KiMoon and industry bosses from across the globe.
"We are planning to take a quantum leap," Modi said at the inaugural on Sunday. "We will be available to hold your hands whenever you need us.You will find us standing with you in your journey," he pledged. The audience included the cream of India Inc such as Mukesh Ambani and broth er Anil, Gautam Adani, Shashi Ruia and other business leaders who have built empires in Gujarat.
Modi assured the huge gathering an enabling and constantly improving poli improving policy framework and spoke of his nine-month-old government's reforms vision. "My government is committed to create a policy environment that is predictable, transparent and fair," adding that it was working to ensure faster and more inclusive growth.
He spoke about a "level playing field" to make India a manufacturing hub, adding that the government has put the focus on building infrastructure through public and private investments. He lingered on the Mars orbiter mission, and compared its frugal cost to that of the recent Hollywood blockbuster `Interstellar.' Vibrant Gujarat, which had been conceived by Modi as a means of drumming up investment in the state, also became the stage on which he recast himself as a progressive, business-friendly leader.
Jan 12 2015 : The Economic Times (Kolkata)
Coming in Feb: . Rs 24kcr Shot for Divestment
Dheeraj Tiwari |
New Delhi: |
Unions on board, stage set for big-ticket CIL share sale
The Narendra Modi government plans to flood the markets with a massive, one-shot divestment to raise about .
`24,000 crore within the next month as it looks to take a record leap to meet its asset-sale target before the fiscal year runs out by selling a 10% stake in Coal India. This will mark a late revenue-raising surge, which includes the auction of telecom spectrum, as the administration strains to stick to its stringent fiscal deficit goal.
A key constituency — the trade unions — have been convinced about the merits of a share sale, said an official aware of the deliberations. It's also looking increasingly likely that the government will make the divestment in a single effort rather than follow suggestions advising two blocks of 5% each. That would make it India's biggest-ever share sale, beating the record set by same company's October 2010 initial public offer, when it raised Rs 15,000 crore from the sale of a 10% stake. sale of a 10% stake.
Finance Minister Arun Jaitley had said last week that the last quarter of the fiscal will see a big disinvestment push. selloff in FY15 The Coal India stocksale plan had been held up because of lack of policy clarity on mine auctions, following the cancellation of blocks by the Supreme Court in September last year, and opposition by the unions.Both issues have been resolved.
Inside story
Shipments by Third Party Logistics Cos to Double: Flipkart
Flipkart expects the share of shipments handled by third-party logistics companies, including FedEx and BlueDart, to double in the coming year as the country's largest online retailer finds it a challenge to conduct police verification of people delivering goods. This change in strategy also underlines the company's long-term vision of deploying its logistics team to focus on valueadded services and deliver a better customer experience when it comes to returning goods.
Companies 5
Govt Plans to Give Green Light to International Arbitration
The government plans to allow resolution of disputes in infrastructure development through arbitration in neutral places like Singapore, London and Malaysia, a step aimed at increasing the confidence of foreign investors in putting money in a sector that is key to economic growth, but is struggling due to shortage of funds. The government will insert a clause allowing arbitration in a neutral city while signing public-private partnerships (PPP) and other infrastructure contracts, people with knowledge of the matter said. India is likely to invite investments over the next two to three years in projects in power, coal, roads, transport and water supply.
Companies & Economy 7
PSU Banks May Pay Higher Rates On Perpetual Bonds
State-owned banks may have to fork out reasonably higher rates on their perpetual bond issues, a riskier instrument compliant to the latest international bank standards — Basel III — as a slew of issuers are flocking back to the debt market in the January-March period, adding to the supply side. Public sector banks may more than double Basel-III complaint issues (both tier-1 and tier-2) to around .
`14,200 crore this quarter.
Dena Bank, Allahabad Bank, Punjab National Bank, Central Bank of India, UCO Bank, Syndicate Bank and some others are expected to soon issue perpetual bonds, or tier-I, for about .
` 500-1,000 crore each.
बाकीर खबर ये के गोआ के चुनांचे कि बलि वाइब्रेंट गुजरात समिट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबकी भलाई को अपना उद्देश्य बताया।हाथ लेकिन बढाया है उनने कारपोरेटहितों के वास्ते।हाथ कंगन को आरसी क्या,पढञे लिखे को फारसी क्या। समिट के दौरान उन्होंने आर्थिक मंदी पर भी चिंता जताई और कहा कि ऐसे बुरे वक्त में दुनिया के लोगों में विश्वास पैदा करने की जरूरत है।पढ़ें,निवेशकों की आस्था जरुरी है।
नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत के पास दुनिया की कई समस्याओं का समाधान है और उनकी सरकार पहले दिन से आर्थिक हालत ठीक करने में लगी है।पड़े अमेरिकी की ग्लोबल आर्डर की अबूझ पहेलियों का समाधान भारत की इमर्जिंग मार्केट हैं। इसके साथ ही प्रधानमंत्री ने सरकार के पिछले 7 महीनों में उठाए गए जरूरी कदम जैसे की लेबर रिफॉर्म, जन धन योजना, एफडीआई, स्किल डेवलपमेंट, डिजिटल इंडिया जैसी योजनाओं से देश को होने वाले फायदे के बारे में भी जानकारी दी। इसके साथ ही मोदी ने अपने विरोधियों पर भी निशाना साधा और कहा कि हां हम लोग चीजों को हाइप करते हैं क्योंकि इससे सरकार सही तरीके से काम करती है।
वहीं रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी ने इस मौके पर अगले 1-1.5 साल में गुजरात में 1 लाख करोड़ रुपये के निवेश का वादा किया। तो वहीं आदित्य बिड़ला ग्रुप के चेयरमैन मंगलम बिड़ला ने भी गुजरात में 20000 करोड़ रुपये के निवेश की घोषणा की। कुमार मंगलम बिड़ला के मुताबिक गुजरात निवेश के लिए सबसे बेहतर राज्य है।
बाकी कॉरपोरेट्स भी वाइब्रेंट गुजरात जैसे भव्य आयोजन से काफी संतुष्ट नजर आए। गोदरेज ग्रुप के चेयरमैन अदि गोदरेज के मुताबिक इस प्लेटफॉर्म से गुजरात ही नहीं बल्कि पूरे देश को काफी फायदा पहुंचेगा।
जिनको हउ चाहि उनके लिए अच्छी खबर है,इन्फोसिस एवं एचसीएल टेक जैसी कंपनियां बेहतर काम करने वाले अपने कर्मचारियों को महंगे उपहार दे रही हैं। मानव संसाधन (एचआर) विशेषज्ञों का मानना है कि जब बेहतर प्रतिभा को कंपनी से जोड़े रहने की बात आती है तो कंपनियां अलग हटकर सोच रही हैं और ऊंचे वेतन पैकेज और बोनस के अलावा इस प्रकार के आकर्षक उपहार दे रही हैं। एचसीएल टेक्नॉलजीज ने बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले अपने शीर्ष कर्मचारियों में से 130 को प्रोत्साहन स्वरूप मर्सिडीज या विदेश में छुट्टी बिताने का पूरा खर्च दिया। वहीं इन्फोसिस ने अपने 3,000 कर्मचारियों को आईफोन 6एस दिया।
जिनको हउ चाहि उनके लिए अच्छी खबर है,अब विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) की नेता साध्वी प्राची ने एक विवादित बयान दिया है। उन्होंने अपने एक बयान में लोगों को चार बच्चे पैदा करने की सलाह दी है। गौर हो कि कुछ दिनों पहले बीजेपी नेता और सांसद साक्षी महाराज ने भी अपने एक विवादित बयान में कहा था कि हर हिंदू चार संतान पैदा करे। एक रिपोर्ट के अनुसार, मध्य प्रदेश के भीलवाड़ा के हिंदू सम्मेलन में साध्वी प्राची ने कहा कि एक बच्चे से देश की रक्षा नहीं हो सकती है, इसलिए चार बच्चे पैदा करो। एक ही क्यों कम से कम चार बच्चे पैदा करें।
सनी लिओन के मैनफोर्स को उतार फेंकें पहले।
लखीमपुर खीरी। आपने अमिताभ बच्चन की फिल्म जादूगर का वो गाना सुना तो जरूर सुना होगा जिसमें बिग बी जयाप्रदा को पड़ोसन तेरी मुर्गी को रखना संभाल मेरा मुर्गा हुआ है दीवाना गाकर तंग करते हैं। हालांकि वह गाना एक युवक और युवती को ध्यान में रखकर लिखा गया था जिसका असल मुर्गा या मुर्गी से कोई मतलब नहीं था लेकिन आज हम आपको मिलायेंगे असली मुर्गे से जिसने मुर्गी को छेड़ा तो मामला पुलिस थान पहुंच गया। दरअसल उत्तर प्रदेश के लखीमपुर में छेड़खानी का ऐसा मामला सामने आया है जिसे आपने पहले कभी नहीं सुना होगा। जी हां छेड़खानी का शिकार कोई युवती नहीं बल्कि मुर्गी है आपको सुनकर ताज्जुब जरूर हो रहा होगा लेकिन इस छेड़खानी की बकायदे पुलिस थाने में तहरीर दी गयी है। थाने में एक दंपत्ति ने एसओ को तहरीर दी है कि पड़ोस का मुर्गा हमारी मुर्गी को छेड़ता है। अपने आप में ऐसी अनोखी तहरीर देखकर तो पहले एस आर के यादव के चकरा गये लेकिन कुछ देर बाद सोचने के बाद उन्होंने दंपत्ति को इस मामले में कार्यवाही का आश्वासन दिया। यही नहीं थानेदार साहब ने बकायदा दारोगा सूर्यमणि यादव को मामले की चांज तक सौंप दी है। मुर्गी पालक ईश्वरदीन और उसकी पत्नी रामगुनी शिकायत लेकर थाने पहुंचे। ईश्वरदीन ने एसओ से कहा, "हमने करीब आधा दर्जन मुर्गियां पाल रखी है। हमारी मुर्गियां जब दरबे से बाहर निकलती हैं तो पड़ोस का मुर्गा उन्हें छेड़ता है। इस बात को लेकर पड़ोसी मारपीट पर अमादा हो जाता है। कई बार झगड़ा भी हो चुका है।" पुलिस के मुताबिक मुर्गी पालक दंपति ने कहा इसी बुधवार को एक बार फिर पड़ोसी का मुर्गा आ गया और मेरी मुर्गियों को छेड़ने लगा। किसी तरह से मुर्गे को भगाने के बाद कड़ाके की ठंड में इतनी दूर चलकर हम थाने पहुंचे हैं। हमारी समस्या हल कीजिए हम किसी से झगड़ा नहीं चाहते। एसओ ने दंपति की समस्या हल करने का आश्वासन दिया और की जांच की जिम्मेदारी हलका के दरोगा सूर्यमणि यादव को सौंप दी।
ख़बरें विस्तार से
वाइब्रेंट गुजरात: देश को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने के लिए पीएम मोदी का 3D फार्मूला
aajtak.in [Edited By: दिगपाल सिंह] | गांधीनगर, 11 जनवरी 2015 | अपडेटेड: 23:53 IST
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नरेंद्र मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'वाइब्रेंट गुजरात सम्मेलन' में देश को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने की बात कही. उन्होंने इसके लिए 3D (डेमोक्रेसी, डेमोग्राफी और डिमांड) का फार्मूला भी सामने रखा, मोदी ने कहा कि दुनिया में किसी भी देश में आपको यह तीनों D एक साथ नहीं मिलेंगे. हमारे पास काम करने के लिए कई करोड़ हाथ हैं और उससे भी बढ़कर करोड़ों सपने हैं, जो सच होने का इंतजार कर रहे हैं. अपने संबोधन में पीएम ने विकास को गांव तक पहुंचाने की बात कही.
गांधीनगर में चल रहे सम्मेलन में बोलते हुए प्रधानमंत्री ने पेरिस आतंकी हमले की निंदा की. उन्होंने कहा, हम एक शांतिपूर्ण विश्व की कामना करते हैं. इससे पहले प्रधानमंत्री ने सम्मेलन में आए सभी मेहमानों का स्वागत किया. उन्होंने कहा, भारत ने हमेशा इस बात पर जोर दिया है कि विश्व एक परिवार की तरह है. हमने 'वसुधैव कुटुम्बकम' पर जोर दिया है.
अपने संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि देश में इनफॉर्मेशन वेज की जरूरत है. हम नीति निर्धारित प्रशासन को बढ़ावा दे रहे हैं. देश में निर्माण का स्तर बढ़ाएंगे. हम देश को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाएंगे. पीएम ने कहा कि सरकार गांवों को ब्रॉडबैंड से जोड़ना चाहती है क्योंकि यही भविष्य है.
मोदी ने दुनियाभर के निवेशकों को भरोसा दिया और बोले, भारत बदल रहा है और सरकार आपकी जरूरतों पर साथ देगी. उन्होंने विपक्ष पर वार करते हुए कहा, 'लोग पूछते हैं हर चीज को हाइप क्यों करते हैं मोदी, मैं कहता हूं हाइप करने से सरकार बेहतर काम करती है.'
प्रधानमंत्री ने कहा, पिछले आम चुनाव ने भारतीय लोकतंत्र की दिशा बदल दी है. इससे हमारे लोगों में नया विश्वास जगा है और उनकी उम्मीदों के बारे में पता चला है. मोदी ने कहा, मेरी सरकार भारत में तेजी से आर्थिक और सामाजिक हालात को बदलने व बेहतर करने की तरफ काम कर रही है. उन्होंने कहा, हम बदलाव के दौर से गुजर रहे हैं. हम वर्क कल्चर को बदलने की तरफ काम कर रहे हैं. हमने अपनी संस्थाओं को मजबूती प्रदान की है.
इसलिए बदला योजना आयोग का नाम
मोदी ने वाइब्रेंट गुजरात सम्मेलन में बताया कि योजना आयोग का नाम बदलकर नीति आयोग क्यों किया गया. उन्होंने कहा, हम देश में को-ऑपरेटिव फेडरलिज्म को बढ़ावा देना चाहते हैं. उन्होंने कहा, हम राज्यों में भी प्रतियोगिता देखना चाहते हैं. मोदी ने कहा, हम सिर्फ घोषणाएं ही नहीं कर रहे बल्कि उसके लिए प्रयास भी कर रहे हैं और पॉलिस भी बना रहे हैं.
मोदी ने कहा, '100 से ज्यादा देश आज यहां एक छत के नीचे इकट्ठा हुए हैं. आप सबका स्वागत है और उम्मीद करता हूं कि आप यहां आराम से तीन दिन बिताएंगे, वैसे भी गुजराती लोग मेहमान नवाजी में अच्छे रहते हैं.' उन्होंने आगे कहा कि सरकार भारत में नए तरह का विश्वास जगाना चाहती है और हमें विश्वास है कि मानसिक बदलाव से ही असली बदलाव की शुरुआत होती है.
मोदी ने कहा, 'आज दुनियाभर के देश भारत के साथ काम करना चाहते हैं. आज भारत की उपस्थिति और इसके इतिहास को पहचान मिल रही है.' उन्होंने योग के लिए एक अंतराष्ट्रीय दिवस घोषित करने पर संयुक्त राष्ट्र को धन्यवाद कहा और कहा कि यह विज्ञान और कला का मिश्रण है, जो मानव जीवन को बेहतर बनाता है.
भारत आने के लिए रोमांचित हैं ओबामा
इससे पहले अमेरिका के विदेश मंत्री जॉन केरी ने भी सम्मेलन को संबोधित किया. उन्होंने बताया कि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भारत के गणतंत्र दिवस 26 जनवरी को भारत आने को लेकर बहुत ज्यादा रोमांचित हैं. ओबामा गणतंत्र दिवस समारोह में शामिल होने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति होंगे. केरी ने पिछले बुधवार को फ्रांस की राजधानी पेरिस में आतंकवादी हमले की निंदा की. उन्होंने कहा, आतंकवाद का कोई कृत्य आजादी का सफर रोक नहीं सकता.
केरी ने कहा, 'हम भारत के साथ व्यापार बढ़ाकर पांच गुना करने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लक्ष्य के साथ हैं.' इस बीच संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने भी मोदी के स्मार्ट सिटी प्लान की जमकर तारीफ की.
अमेरिकी विदेश मंत्री ने पीएम मोदी की तारीफ करते हुए कहा कि मोदी का 7 रेसकोर्स तक पहुंचना बड़ी बात है और सबका साथ, सबका विकास सबको अपनाना चाहिए.
और भी... http://aajtak.intoday.in/story/pm-modis-speech-in-vibrant-gujarat-summit-1-794915.html
आंबेडकर स्मारक पर अब मौन हैं मोदी और शिवराज
Written by जनसत्ता | नई दिल्ली | Posted: January 12, 2015 12:31 pm- See more at: http://www.jansatta.com/national/narendra-modi-and-shivraj-are-silence-on-ambedkar-memorial/13455/#sthash.6U3n94jF.dpuf
दिल्ली में आंबेडकर के निर्वाण स्थल पर भव्य स्मारक बनाने के सवाल पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान अब मौन हैं। केंद्र में जब यूपीए की सरकार थी तो चौहान इस मामले को लेकर कुछ ज्यादा ही मुखर थे। दरअसल आंबेडकर की जन्मस्थली इंदौर के पास महू में है, जो शिवराज चौहान के सूबे में है। दलितों में पैठ बढ़ाने के फेर में दो साल पहले चौहान ने महू जाकर केंद्र की यूपीए सरकार को ललकारा था। उन्होंने धमकी दी थी कि दिल्ली के अलीपुर रोड पर अगर आंबेडकर का राजघाट जैसा भव्य स्मारक नहीं बना तो वे दिल्ली जाकर धरना देंगे। उन्होंने यह स्मारक मध्य प्रदेश सरकार द्वारा बनाने की पेशकश तक कर डाली थी।
आंबेडकर परिनिर्वाण भूमि सम्मान कार्यक्रम समिति के पदाधिकारियों को भाजपा के दलित मंत्रियों के रवैए पर हैरानी है। भाजपा जब विपक्ष में थी तो इसके नेताओं का आंबेडकर प्रेम देखते ही बनता था। लेकिन पिछले साल छह दिसंबर को जब आंबेडकर की पुण्यतिथि पर अलीपुर रोड पर सम्मान सभा हुई तो देशभर के हजारों आंबेडकरवादी जुटे। पर मोदी सरकार का कोई दलित मंत्री इसमें नहीं आया। इस समय राम विलास पासवान, थावरचंद गहलौत, रमाशंकर कठेरिया, निहालचंद मेघवाल और विजय सांपला मोदी सरकार में दलित मंत्री हैं। अलबत्ता सभी दलों के दूसरे दलित नेता जरूर जुटे।
आंबेडकर का निधन दिल्ली के अलीपुर रोड पर स्थित 26 नंबर कोठी में हुआ था। जीवन के अंतिम दिनों में यही उनका ठिकाना था। दलितों की हिमायती होने का दम भरने वाली कांग्रेस ने आंबेडकर की उपेक्षा ही की। उन्हें सम्मान देने का सिलसिला विश्वनाथ प्रताप सिंह ने प्रधानमंत्री बनने के बाद किया। उन्होंने ही 1991 में आंबेडकर की जन्मशती मनाने के लिए एक समिति साल भर पहले ही बना दी थी। उसी वक्त उन्हें भारत रत्न भी दे दिया।
वीपी सिंह के बाद भाजपा ने भी आंबेडकरवादियों के एजंडे से सरोकार जताया। आरएसएस की व्यापक हिंदू एकता की रणनीति के तहत यह हुआ। अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने तो उनकी सरकार ने अलीपुर रोड की कोठी को उद्योगपति जिंदल से 16 करोड़ रुपए में खरीद कर उसे आंबेडकर स्मारक घोषित किया। छह दिसंबर, 2003 को खुद वाजपेयी वहां गए और स्मारक का शिलान्यास किया। आंबेडकर समर्थक चाहते थे कि स्मारक भव्य हो और उसका दर्जा राजघाट जैसा हो। यानी विदेशी मेहमान आएं तो राजघाट की तरह वहां जाकर भी सम्मान जताएं। लेकिन इन मांगों को पूरा कर पाने से पहले ही 2004 में वाजपेयी सरकार चली गई।
स्मारक निर्माण का मुद्दा उसके बाद भी बना रहा। दलित नेता यूपीए सरकार पर भी दबाव बनाते रहे। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आखिरकार 14 जून, 2012 को मान लिया कि अलीपुर रोड पर आंबेडकर का भव्य स्मारक बनेगा। पर उसका स्तर राजघाट जैसा हो, इस मांग को वे टाल गए। मौजूदा कोठी का क्षेत्रफल एक एकड़ से भी कम है। स्मारक निर्माण के आंदोलन से पिछले दो दशक से सक्रिय रूप से जुड़े इंद्रेश गजभिये का कहना है कि भव्य स्मारक के लिए आसपास के बंगलों का भी अधिग्रहण किया जाए।
पिछले साल छह दिसंबर को स्मारक स्थल पर पंजाब विधानसभा के अध्यक्ष चरणजीत सिंह अटवाल, भाजपा सांसद सत्यनारायण जटिया, उदित राज, किरीट सोलंकी, अर्जुन मेघवाल, फग्गन सिंह कुलस्ते के अलावा रामदास अठावले, पीएल पुनिया, संजय पासवान, अशोक तंवर जैसे दलित नेता भी जुटे और प्रधानमंत्री के नाम मांग पत्र पर हस्ताक्षर किए। सभी को यह देख कर हैरानी हुई कि सामाजिक न्याय मंत्री थावर चंद गहलौत क्यों नहीं आए?
फिलहाल आंबेडकरवादी देशभर में राजघाट जैसे स्मारक की अपनी मांग के समर्थन में हस्ताक्षर अभियान चला रहे हैं। इंद्रेश गजभिये के मुताबिक यह अभियान आंबेडकर के जन्मदिन यानी 14 अप्रैल तक चलेगा। उस दिन दिल्ली आकर दलित नेता प्रधानमंत्री से मुलाकात करने की कोशिश करेंगे। उन्हें मोदी से काफी उम्मीदे हैं।
भाजपा के महासचिव रामलाल ने भी दो साल पहले अलीपुर रोड पर हुए समारोह में पुण्य स्थली पर भव्य स्मारक की मांग का समर्थन किया था। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने तो 21 अप्रैल, 2011 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिख यहां तक पेशकश कर डाली थी कि अगर केंद्र सरकार स्मारक नहीं बना सकती तो मध्य प्रदेश सरकार अपने खर्च पर यह काम करने को तैयार है।
इस बीच केंद्रीय मंत्री विजय सांपला ने पंजाब पहुंच कर एलान कर दिया कि आंबेडकर की पुण्यस्थली पर मोदी सरकार भव्य स्मारक बनाएगी। खुद प्रधानमंत्री आंबेडकर की जयंती पर 14 अप्रैल को उसका शिलान्यास करेंगे। इस एलान से आंबेडकर पुण्य भूमि सम्मान कार्यक्रम समिति बेचैन है। उसे लगता है कि मोदी सरकार स्मारक के नाम पर रस्म अदायगी करेगी। पर जिस स्मारक का कोई महत्त्व न हो, वह दलितों को स्वीकार नहीं। स्मारक का राजघाट जैसा दर्जा होगा तभी उसका रख-रखाव भी हो पाएगा और सार्थकता भी हो सकेगी। स्मारक बनाने का फैसला तो मनमोहन सरकार ने पहले ही कर दिया था। मोदी सरकार को तो आसपास के बंगलों के अधिग्रहण और स्मारक के भव्य स्वरूप के बारे में फैसला करना चाहिए।
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बैंकों की दशा सुधारने की कवायद
Written by जनसत्ता | Posted: January 12, 2015 12:36 pm- See more at: http://www.jansatta.com/politics/jansatta-editorial-bank-ki-dasha/13459/#sthash.Dvf7eYVj.dpuf
धर्मेंद्रपाल सिंह
देश की अर्थव्यवस्था से आजकल अजीब इशारे मिले हैं। बीते अक्तूबर में औद्योगिक उत्पादन 4.2 फीसद गिरा। जुलाई से सितंबर की तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की दर 5.3 प्रतिशत दर्ज की गई। सरकार ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए पूरा जोर लगा रखा है, लेकिन देशी-विदेशी पूंजीपति नया निवेश करने से कतरा रहे हैं। कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि हमारा देश 'बैलेंस शीट रिसेशन' के दौर से गुजर रहा है। फिलहाल सरकार और कंपनियों ने बैंकों से भारी कर्ज ले रखा है। उसका मूल और ब्याज चुकाने में उन्हें दिक्कत आ रही है। इसीलिए दोनों अपनी बैलेंस शीट से उधारी कम करने के लिए खर्चों में कटौती कर रहे हैं। इससे निवेश और खपत दोनों उतार पर हैं और अर्थव्यवस्था मंदी की जकड़न से मुक्त नहीं हो पा रही।
फिंच रेटिंग्स की भारतीय सहयोगी इंडिया रेटिंग्स के अनुसार भारतीय बैंकों के पांच सौ बड़े कर्जदारों में से बयासी का कर्ज संकट में है और तिरासी का संकट के कगार पर। कर्ज संकट का अर्थ है बयासी कॉरपोरेट का ऋण बैड लोन की श्रेणी में आ चुका है। उधार लेने वाली कंपनी न मूल और न ही ब्याज चुका रही हैं। अन्य तिरासी को कर्ज की अदायगी में छूट (ब्याज दर कम करना, अवधि बढ़ाना आदि) दी जा रही है। इन कर्जदारों में से अधिकतर ने सार्वजनिक बैंकों से पैसा उठा रखा है। हिसाब लगाने पर पता चलता है कि बड़े उद्योगों द्वारा बैंकों से लिए गए एक तिहाई धन की उगाही के आसार बहुत कम हैं। ऐसे में नए निवेश की आशा कैसे की जा सकती है?
मौजूदा स्थिति का अर्थव्यवस्था पर जो असर पड़ रहा है सो पड़ रहा है, इससे सार्वजनिक बैंक भी लहूलुहान हो चुके हैं। इन बैंकों में आम आदमी की खून-पसीने की कमाई का पैसा जमा है। अगर उद्योगों के कर्ज बैंक राइट आॅफ या रिस्ट्रक्चर किए जाते हैं, तो उसकी कीमत अंतत: जनता को ही चुकानी पड़ती है। हाल ही में सरकार ने खर्च कटौती के नाम पर स्वास्थ्य बजट में बीस हजार करोड़ रुपए कम कर दिए। हमारे देश में स्वास्थ्य बजट पहले ही काफी कम है। इस कटौती की मार भी गरीब आदमी पर पड़ेगी। दूसरी ओर बड़े-बड़े उद्योग हैं, जिन्हें कर्ज न चुकाने पर भी सरकार और बैंक दंडित करने से हिचकते हैं।
'मेक इन इंडिया' नारे को साकार करने के लिए मोदी सरकार ने सार्वजनिक बैंकों की नकेल कसनी शुरू कर दी है। पुणे में इन बैंकों के करीब सौ आला अधिकारियों के दो दिवसीय ज्ञान संगम सम्मेलन के बाद जो सिफारिशें छन कर आर्इं, केंद्र सरकार ने उन पर शीघ्र निर्णय लेने का आश्वासन दिया है। इस सम्मेलन को प्रधानमंत्री ने भी संबोधित किया और बैंक अधिकारियों को भरोसा दिलाया कि सरकार उनके कामकाज में हस्तक्षेप नहीं करेगी। उन्हें पेशेवर तरीके से काम करने की पूरी छूट मिलेगी।
बैंकों के सम्मेलन के बाद जो सिफारिशें सरकार को सौंपी गर्इं, उनमें से अधिकतर पुरानी हैं। सबको पता है कि कर्ज न लौटाने वाले उद्योग कानूनी दांव-पेच का सहारा लेकर अक्सर बच जाते हैं। वे अदालतों से स्थगनादेश ले आते हैं। उन्हें विलफुल डिफाल्टर (जानबूझ कर कर्ज न लौटना) घोषित करने में बैंकों को पसीना आ जाता है। अब मांग की जा रही है कि जानबूझ कर कर्ज न लौटाने वाले उद्योगों के खिलाफ फौजदारी का मामला दर्ज किया जाए और दोषी कंपनियों के मैनेजमेंट में बदलाव की प्रक्रिया को आसान बनाया जाए, ताकि प्रबंधन अपने हाथ में लेकर बैंक अपना कर्ज वसूल कर सकें। साथ ही दोषी कंपनियों की संपत्ति बेचने की प्रक्रिया आसान बनाई जाए। केंद्रीय सतर्कता आयोग के निर्देश के अनुसार फिलहाल ऐसी संपत्ति खुली नीलामी के जरिए बेची जा सकती है। बैंक चाहते हैं कि उन्हें अपने बैड लोन सीधे बेचने की अनुमति दी जाए।
सार्वजनिक बैंकों ने बैंक बोर्ड ब्यूरो और बैंक इन्वेस्टमेंट कंपनी के गठन की अनुमति भी मांगी है। ब्यूरो के जरिए बैंकों के वरिष्ठ पदों पर नियुक्ति के लिए पेशेवरों का डेटाबेस तैयार किया जाएगा। अगर मंजूरी मिल गई तो सरकारी धन सीधे नहीं, इन्वेस्टमेंट कंपनी के माध्यम से लगेगा। धन जुटाने के लिए बैंकों को बाजार से पैसा जुटाने की अनुमति भी मिलेगी। सार्वजनिक बैंकों में सरकार का निवेश इक्यावन फीसद से कम करने का सुझाव भी दिया गया है। कैंपस सेलेक्शन, अधिक वेतन देने की छूट और उत्पादकता बढ़ाने के लिए हायर ऐंड फायर नीति लागू करने का विचार भी ज्ञान सम्मेलन में उभरा है।
पिछले चार दशक के दौरान देश की तरक्की में सत्ताईस सार्वजनिक बैंकों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। उदारीकरण और निजीकरण के मौजूदा दौर में भी उनकी पैठ कायम है। देश में इक्यासी प्रतिशत शाखाएं सार्वजनिक बैंकों की हैं और कुल जमा धन का सतहत्तर प्रतिशत हिस्सा उनके पास है। पिछले कुछ बरस में निजी बैंकों का तेजी से विस्तार हुआ है फिर भी आम आदमी अपना पैसा सार्वजनिक बैंकों में ही सुरक्षित समझता है। लेकिन राजनीतिक हस्तक्षेप, भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन के कारण इन बैंकों की माली हालत तेजी से बिगड़ी है।
आज सार्वजनिक बैंकों द्वारा दिया गया 12.9 प्रतिशत कर्ज फंसा हुआ है, जबकि निजी बैंकों के मामले में यह रकम महज 4.4 फीसद है। भ्रष्टाचार के कारण ही सार्वजनिक बैंकों का तीन गुना अधिक धन डूबने के कगार पर है। उनके नान परफार्मिंग एसेट (एनपीए) भी निजी बैंकों (2 प्रतिशत) के मुकाबले ढाई गुना (5 प्रतिशत) अधिक है। ऐसे में उन्हें पटरी पर लाने के लिए दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है। पेशेवर रवैया अपनाए जाने के साथ-साथ शीर्ष पदों पर बैठे अफसरों की जवाबदेही भी तय करनी पड़ेगी। अच्छे काम पर इनाम और बुरे काम पर दंड देने की स्पष्ट नीति अपनानी पड़ेगी। बैंक और वित्तीय संस्था हर देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ होते हैं। फिलहाल हमारी रीढ़ चोटिल है। उसका शीघ्र इलाज शुरू किया जाना चाहिए।
सन 2012-13 में बैंकों के 1.64 लाख करोड़ रुपए फंसे पड़े थे, जो कोयला और 2-जी घोटाले की रकम को टक्कर देते हैं। फिलहाल बैंकों के पास जनता का कुल अठहत्तर लाख सड़सठ हजार नौ सौ सत्तर करोड़ रुपए जमा हैं, जिनमें से साठ लाख छत्तीस हजार अस्सी करोड़ रुपए उन्होंने बतौर कर्ज दे रखा है। कर्जे का बड़ा भाग कॉरपोरेट घरानों और बड़े उद्योगों के पास है। अनेक बड़े उद्योगों ने बैंकों से अरबों रुपए का ऋण ले रखा है, जिसे वे लौटा नहीं रहे हैं। अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ ने पिछले साल एक सूची जारी की, जिसमें एक करोड़ रुपए से ज्यादा रकम के चार सौ छह बकाएदारों के नाम हैं। इस सूची में अनेक प्रतिष्ठित लोग और संगठन हैं।
पिछले पांच वर्ष में बैंक दो लाख चार हजार पांच सौ उनचास करोड़ रुपए के कर्ज को बट््टेखाते में डाल चुके हैं। इसका अर्थ है कि हर साल बैंकों का चार खरब से ज्यादा पैसा डूब जाता है। गरीबों को दी जा रही सबसिडी पर शोर मचाने वाले लोग बरसों से हो रहे इस महाघोटाले पर मौन क्यों हैं? सार्वजनिक बैंक किसान, मजदूर या अन्य गरीब वर्ग को कर्जा देते समय कड़ी शर्त लगाते हैं और वसूली बेदर्दी से करते हैं। लेकिन जिन बड़े घरानों पर अरबों रुपए की उधारी है उनसे नरमी बरती जाती है। सीबीआइ के पूर्व निदेशक रंजीत सिन्हा ने तो यह बात सार्वजनिक मंच से कही थी। उन्होंने कहा कि बैंक अपने बड़े खाता धारकों की जालसाजी बताने में हिचकिचाते हैं। ऋण पुनर्निर्धारित कर उन्हें बचाने का प्रयास किया जाता है।
दरअसल, बैंक में जालसाजी के बढ़ते मामले इस बात के प्रमाण हैं कि यह धंधा सुनियोजित है। पिछले तीन साल में गलत कर्ज मंजूरी और जालसाजी से बैंकों को बाईस हजार सात सौ तैंतालीस करोड़ रुपए का चूना लग चुका है। मतलब यह कि हर दिन बैंकों का 20.76 करोड़ रुपए डूब जाता है। इस दौरान जालसाजी और पद दुरुपयोग के आरोप में छह हजार कर्मचारियों को निलंबित किया जा चुका है। यानी हर दिन पांच से ज्यादा कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई हुई है। इन कर्मचारियों में बैंक अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक तक शामिल हैं।
बिना राजनीतिक संरक्षण के इतने बड़े पैमाने पर हेराफेरी असंभव है। रिजर्व बैंक के पूर्व डिप्टी गवर्नर केसी चक्रवर्ती ने कुछ समय पहले लिखे अपने शोधपत्र में बताया कि अधिकतर सार्वजनिक बैंक कर्जा वसूल न कर पाने से आज भारी घाटा उठा रहे हैं। एनपीए को कम करने के लिए ऋण पुनर्निर्धारण (लोन रीस्ट्रक्चरिंग) का मार्ग अपनाया जा रहा है, जो बैंकों की सेहत के लिए ठीक नहीं है। स्टेट बैंक आॅफ इंडिया, पंजाब नेशनल बैंक, इलाहाबाद बैंक, बैंक आॅफ इंडिया, सेंट्रल बैंक, बैंक आॅफ बड़ौदा की अनुत्पादक परिसंपत्ति में पिछले तीन साल में तेजी से वृद्धि हुई है।
जानबूझ कर बड़े कर्जदारों को बचाने की बैंकों की कोशिश पर अंकुश लगाने के लिए वित्त मंत्रालय को तुरंत जरूरी कदम उठाने चाहिए। बड़े कर्जदार ऋण लेते वक्त जो परिसंपत्ति रेहन रखते हैं, उसे लोन न चुकाने पर तुरंत जब्त किया जाना चाहिए। ऋण लेने वाले के समर्थन में गारंटी देने वालों के खिलाफ भी कार्रवाई की जानी चाहिए। बड़ी बात यह है कि बैंकों के हर मोटे कर्जे को उनका बोर्ड मंजूरी देता है, इसलिए वसूली न होने पर बोर्ड के सदस्यों की जवाबदेही तय की जानी चाहिए। अपना मुनाफा बढ़ाने की होड़ में अक्सर बैंक किसी प्रोजेक्ट का मूल्यांकन करते वक्त उसकी कई खामियों की अनदेखी कर देते हैं, जिसका परिणाम उन्हें बाद में भुगतना पड़ता है। सोचने की
बात यह भी है कि जब देश में आर्थिक विकास की दर लगभग पांच फीसद हो तब बैंकों के मुनाफे में वृद्धि का लक्ष्य 15-20 प्रतिशत क्यों रखा जाना चाहिए?
इंदिरा गांधी ने जब बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया तब तर्क दिया गया था कि बैंक देश के बड़े औद्योगिक घरानों के हाथ का औजार हैं। उनमें जमा जनता का पैसा कॉरपोरेट जगत के हित में इस्तेमाल होता है। राष्ट्रीयकरण के बाद सार्वजनिक बैंकों ने जनकल्याण से जुड़ी योजनाओं को अमली जामा पहनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। लगता है अब फिर उन्हें निजी हाथों में सौंपने की तैयारी की जा रही है। सार्वजनिक बैंकों में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के बजाय पेशेवर बनाने की आड़ में उनका निजीकरण किया जा रहा है। ऐसे में आम आदमी के कल्याण से जुड़ी योजना उनकी वरीयता सूची से स्वत: बाहर हो जाएगी ।
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भारतीय डाक को बैंक में बदलने को लेकर मोदी सरकार एक कानून पास करने पर गंभीरता से विचार कर रही है. इसके साथ ही केंद्र सरकार आरबीआई से डाक बैंक के आवेदन पर जल्द विचार करने के लिए आग्रह करेगी.
पीएम मोदी से मिला डाक विभाग
संचार मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हुई बैठक में डाक बैंक की स्थापना के मुद्दे पर विचार-विमर्श हुआ. इस मीटिंग में डाक विभाग ने प्रधानमंत्री को बताया कि वह यूनिवर्सल बैंक के रूप में काम करने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं. सूत्रों के अनुसार प्रधानमंत्री को दिए प्रजेंटेशन के मुताबिक डाक विभाग आरबीआई को अपने यूनिवर्सल बैंकिंग के आवेदन पर विचार करने के लिए शीघ्र ही संपर्क करेगा.
कानून लाने को तैयार केंद्र सरकार
संचार मंत्रालय के सूत्र बता रहे हैं कि सरकार इस बीच कानून के जरिये डाक विभाग को बैंक के रूप में तब्दील करने के लिए भी तैयार है. इसकी प्रक्रिया भी साथ-साथ चल रही है. उम्मीद है कि अगले महीने इस संबंध में सरकार कोई कदम उठा सकती है. डाक विभाग पर टास्क फोर्स की रिपोर्ट पर प्रधानमंत्री के साथ मंत्रणा के लिए बुलाई गई बैठक में संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद ने भी हिस्सा लिया. उन्होंने प्रधानमंत्री को टास्क फोर्स की अन्य सिफारिशों के संबंध में उठाए जा रहे कदमों का भी ब्योरा दिया. बीते साल अगस्त में ही आरबीआई ने कहा था कि डाक विभाग के बैंकिंग लाइसेंस के आवेदन पर सरकार को ही अंतिम फैसला लेना है.
बैंकिंग सेवाएं देंगे डाकघर बैंक
माना जा रहा है कि शुरुआत में डाक विभाग पोस्ट ऑफिस सेविंग बैंक (डाकघर बचत बैंक) के प्रस्ताव को आगे बढ़ा रहा है. यह डाक बैंक के समानांतर काम करेगा. डाक बैंक को अनुमति मिलने के बाद यह उसका हिस्सा बन जाएगा. पोस्ट ऑफिस सेविंग बैंक की अवधारणा टास्क फोर्स ने अपनी रिपोर्ट में दी है. देश के सभी डाकघर भारतीय डाक बैंक की शाखा के तौर पर ग्राहकों को सभी तरह की बैंकिंग सेवाएं उपलब्ध कराएंगे. बैंक की अपनी शाखाएं बैक ऑफिस ऑपरेशन संचालित करेंगी. इनमें कर्ज के आवेदन, ग्राहक के कर्ज वहन करने व जोखिम उठाने की क्षमता आकलन और निवेश ऑपरेशन जैसे काम शामिल हैं. सूत्रों के मुताबिक भारतीय डाक बैंक पंचायत, माइक्रो क्रेडिट संस्थाओं समेत अन्य संस्थाओं के संस्थागत खाते खोलने की सुविधा भी देगा. टास्क फोर्स ने बीते साल दिसंबर में ही प्रसाद को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. रिपोर्ट में बताया गया था कि भारतीय डाक के पास छह लाख करोड़ रुपये के डिपॉजिट हैं. इससे अधिक डिपॉजिट देश में केवल भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के पास ही हैं.
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