लोकतंत्र बचाओ आन्दोलन | 11:09am Jan 12 |
लोबा , दिल्ली 14-1-15 मूलनिवासी-बहुजन समाज का अस्तित्व केवल इसी बात में ही है कि वे गैर-आरक्षित सीटों पर गैर-मूलनिवासी गैर बहुजन-पार्टियों को शिकस्त दें ! मूलनिवासी-बहुजन-दलों द्वारा खड़े किये उम्मीदवारों के रंग, लिंग ,जाति .धर्म और क्षेत्र के पुर्वाग्रहों से परे रहना है ! क्योंकि अच्छे ,चरित्रवान ,निष्ठावान और लोकतांत्रीक लोग तो कंही भी और किसी भी समाज में हो सकते है ! यही इस देश में मनी-मीडिया-माफिया द्वारा किए जा रहे लोकतांत्रीक-तन्त्र के निर्मम- मर्डर और हत्या को रोकने का एक-मात्र-उपाय हो सकता है !
अरब-खरबों खर्च से बने आधार कार्ड/UID से वोटिंग नही होने देना, टेम्पर्ड-EVM प्रयुक्त करना और सभी मतदाताओं को सम्मलित किये बिना चुनाव कराना लोकशाही के साथ घिनौना मजाक नही तो क्या है ! जो लोग आर्थिक सुधार के नाम में चुनाव सुधार का गला घोंट चुके हैं उन्हें नगां करना बहुत ही जरूरी है ! चुनाव-सुधार से ही चौर-प्रतिनिधित्व को रोका जा सकता है ,जो अल्पजन-अमूलनिवासी-अबहुजनो को रास नही आयेगा ! सांप को मारने की बजाय सांप की माँ को मारना जरूरी है ! यानी विकृत चुनावी -तन्त्र चौर-प्रतिनित्व को जन्म देता है ! बहुजन-जनता चौर-प्रतिनिधित्व के महंगाई , भ्रष्टाचार और बेरोजगारी जैसे लक्ष्ण मात्र ही देख सकती है ! उसकी समझ में इनके कारण ,वजह और जरिया नही आता है ! जो लोग चुनाव में धांधलेबाजी और धौखाधडी करते हैं वे गद्दार व देशद्रोही हैं ! जिससे जनता को अवगत कराना जरूरी है ! चुनावी - हेराफेरी करके जीतने वाले मासूम-मूलनिवासी-बहुजनों को पूरे 5 साल धर्म-जाति के जाल में फंसा प्रितिक्रियावादी व नकारात्मक बनाकर गुमराह करते रहते है ! उन्हें राष्ट्र विकास व निर्माण से कोई लेना-देना नही ! माताओं ,बहिनों और बहुजन भाईयों ! यह जरुर याद रखना की चुनाव -जीतने के बाद वे , उन चंद-चुटकी-भर ,बिचोलियों-बामण-बनियों व धन्ना-सेठों- की तेजोरियाँ ही भरेंगे ! जिनके चंदे के पैसे को , जो प्रचार में पानी की तरह बहा रहे हैं उन्हें मलाई और मिठाई क्यों नही बांटेंगे ! यही काला धन पैदा होने की खान और खजाना है ! क्योंकि सहारे के साथ इसारा आ ही जाता है ! जिसका नमक खाया है उसका हलाल भी होना है !
मनी , मीडिया और माफिया की तिकड़ी से मूलनिवासी-मन-मस्तिस्क -पटल से अभिव्यक्ति-स्वतन्त्रता पर कुठाराघात कर उसे समाप्त करना संविधान के मूल अधिकारों के खिलाफ है !जो धर्मांध व कट्टरपंथी भारत निर्वाचन आयोग , नकली-माननीय -न्यायप्रिय और सुप्त-मानवधिकार -संस्थाओं की जागरूता से दूर है ! मिडियाई-माफिया द्वारा किसी पार्टी-पक्ष में बार-2 सार्वजनिक-स्थानों पर जीत के झूठ मूठ के सर्वे व आकंडे दिखा मूलनिवासी-बहुजनों को ठगना , क्या दिन-दहाडे लोकशाही का बलात्कार नही है ! यह उसी तरह सीधे-साधे भिक्षु के धर्म भ्रष्ट करने समान है जैसे कोइ कमसीन- शिक्षित-सुन्दरी अपने थाल में टमाटर ,प्याज ,खीरे ,सलाद ,नमकीन और विस्की के पैग को थाल में सजाकर प्रस्तुत कर उसे पीने के लिय आग्रह करे ! हमे मिडिया के सस्ते-सार्वजनिक विकल्प खोजने होंगे ! चुनाव के दौरान , बहुजन-भाईयों के बीच जाकर सन 1932 में गांधी जी और डॉ आंबेडकर के बीच यरवदा-जेल हुए में पूना-समझौते से लोकतंत्र के खून के खुलासे करने होंगे ! वंहा हुए संविधान-निर्माता के अपमान और मारने की धमकियों का बदला लेने के उपयुक्त लोकतांत्रीक-तरीके व समय के बारे में विस्तार से बताना होगा ! बहुजन-बस्तियों में मूलनिवासी महिलाओं , चिकित्सकों ,प्रवक्ताओं ,लेखकों ,वकीलों , विद्यार्थियों ,कवियों ,ढोल-नगारे,शंख ,अलगोजा, पूंगी व बीन बजाने वाले बहुजन भाईयों को मुफ्त में ही मिशनरी-भक्ति भाव से बहुजन-महापुरुषों की गाथा और योगदान बताने आना होगा ! यह कार्य हमे अपने सभी-पारस्परिक-मनमुटावों को भुलाकर अपने-2 क्षेत्रों में उक्त-उमीदवारों के पक्ष में करना होगा ! डॉ आंबेडकर हमारे राजनैतिक गुरु के साथ धार्मिक गुरु भी हैं लेकिन वे कट्टर नही हैं ! वे मूलनिवासी-बहुजनों-भाईयों और बहिनों को केवल हिन्दुवाद की गन्दगी से बहार निकालने के मार्गदर्शक-मात्र है जिसे सभी धर्म के ठेकेदारों को समझाना होगा !अपनी बस्तियों में डॉ अम्बेद्कर के चित्र उसी तरह चिपकाने होंगे जैसे वे अपने धर्म-गुरुओं के पोस्टर चिपकाते हैं ! अपने घरों ,दफ्तरों, गाड़ियों,साईकिलों ,वाहनों ,वस्तुओं ,वस्त्रों और सम्पतियों पर बहुजन- महापुरुषों के चित्र लगा जबर्दस्त लहर बनाई होगी जिसके आगे विदेशी -मीडिया टिक नही पायेगा ! दोस्तऔर दुश्मन की पहचान करनी होगी ! ध्यान रहे चुनाव के दौरान बहुजन संतों , गुरुओं और महापुरुषों के चित्र और तश्वीर लगाने से हमे भारत निर्वाचन आयोग उसी तरह नही रोक सकता जैसे वह राम ,कृष्ण और गणेश जैसे गैर-मूलनिवासी गैर-बहुजन देवी -देवताओं के चित्र नही हटाता है ! जय मूलनिवासी ! जय बहुजन ! जय भारत ! डॉ आर के चमार बौद्ध !
अरब-खरबों खर्च से बने आधार कार्ड/UID से वोटिंग नही होने देना, टेम्पर्ड-EVM प्रयुक्त करना और सभी मतदाताओं को सम्मलित किये बिना चुनाव कराना लोकशाही के साथ घिनौना मजाक नही तो क्या है ! जो लोग आर्थिक सुधार के नाम में चुनाव सुधार का गला घोंट चुके हैं उन्हें नगां करना बहुत ही जरूरी है ! चुनाव-सुधार से ही चौर-प्रतिनिधित्व को रोका जा सकता है ,जो अल्पजन-अमूलनिवासी-अबहुजनो को रास नही आयेगा ! सांप को मारने की बजाय सांप की माँ को मारना जरूरी है ! यानी विकृत चुनावी -तन्त्र चौर-प्रतिनित्व को जन्म देता है ! बहुजन-जनता चौर-प्रतिनिधित्व के महंगाई , भ्रष्टाचार और बेरोजगारी जैसे लक्ष्ण मात्र ही देख सकती है ! उसकी समझ में इनके कारण ,वजह और जरिया नही आता है ! जो लोग चुनाव में धांधलेबाजी और धौखाधडी करते हैं वे गद्दार व देशद्रोही हैं ! जिससे जनता को अवगत कराना जरूरी है ! चुनावी - हेराफेरी करके जीतने वाले मासूम-मूलनिवासी-बहुजनों को पूरे 5 साल धर्म-जाति के जाल में फंसा प्रितिक्रियावादी व नकारात्मक बनाकर गुमराह करते रहते है ! उन्हें राष्ट्र विकास व निर्माण से कोई लेना-देना नही ! माताओं ,बहिनों और बहुजन भाईयों ! यह जरुर याद रखना की चुनाव -जीतने के बाद वे , उन चंद-चुटकी-भर ,बिचोलियों-बामण-बनियों व धन्ना-सेठों- की तेजोरियाँ ही भरेंगे ! जिनके चंदे के पैसे को , जो प्रचार में पानी की तरह बहा रहे हैं उन्हें मलाई और मिठाई क्यों नही बांटेंगे ! यही काला धन पैदा होने की खान और खजाना है ! क्योंकि सहारे के साथ इसारा आ ही जाता है ! जिसका नमक खाया है उसका हलाल भी होना है !
मनी , मीडिया और माफिया की तिकड़ी से मूलनिवासी-मन-मस्तिस्क -पटल से अभिव्यक्ति-स्वतन्त्रता पर कुठाराघात कर उसे समाप्त करना संविधान के मूल अधिकारों के खिलाफ है !जो धर्मांध व कट्टरपंथी भारत निर्वाचन आयोग , नकली-माननीय -न्यायप्रिय और सुप्त-मानवधिकार -संस्थाओं की जागरूता से दूर है ! मिडियाई-माफिया द्वारा किसी पार्टी-पक्ष में बार-2 सार्वजनिक-स्थानों पर जीत के झूठ मूठ के सर्वे व आकंडे दिखा मूलनिवासी-बहुजनों को ठगना , क्या दिन-दहाडे लोकशाही का बलात्कार नही है ! यह उसी तरह सीधे-साधे भिक्षु के धर्म भ्रष्ट करने समान है जैसे कोइ कमसीन- शिक्षित-सुन्दरी अपने थाल में टमाटर ,प्याज ,खीरे ,सलाद ,नमकीन और विस्की के पैग को थाल में सजाकर प्रस्तुत कर उसे पीने के लिय आग्रह करे ! हमे मिडिया के सस्ते-सार्वजनिक विकल्प खोजने होंगे ! चुनाव के दौरान , बहुजन-भाईयों के बीच जाकर सन 1932 में गांधी जी और डॉ आंबेडकर के बीच यरवदा-जेल हुए में पूना-समझौते से लोकतंत्र के खून के खुलासे करने होंगे ! वंहा हुए संविधान-निर्माता के अपमान और मारने की धमकियों का बदला लेने के उपयुक्त लोकतांत्रीक-तरीके व समय के बारे में विस्तार से बताना होगा ! बहुजन-बस्तियों में मूलनिवासी महिलाओं , चिकित्सकों ,प्रवक्ताओं ,लेखकों ,वकीलों , विद्यार्थियों ,कवियों ,ढोल-नगारे,शंख ,अलगोजा, पूंगी व बीन बजाने वाले बहुजन भाईयों को मुफ्त में ही मिशनरी-भक्ति भाव से बहुजन-महापुरुषों की गाथा और योगदान बताने आना होगा ! यह कार्य हमे अपने सभी-पारस्परिक-मनमुटावों को भुलाकर अपने-2 क्षेत्रों में उक्त-उमीदवारों के पक्ष में करना होगा ! डॉ आंबेडकर हमारे राजनैतिक गुरु के साथ धार्मिक गुरु भी हैं लेकिन वे कट्टर नही हैं ! वे मूलनिवासी-बहुजनों-भाईयों और बहिनों को केवल हिन्दुवाद की गन्दगी से बहार निकालने के मार्गदर्शक-मात्र है जिसे सभी धर्म के ठेकेदारों को समझाना होगा !अपनी बस्तियों में डॉ अम्बेद्कर के चित्र उसी तरह चिपकाने होंगे जैसे वे अपने धर्म-गुरुओं के पोस्टर चिपकाते हैं ! अपने घरों ,दफ्तरों, गाड़ियों,साईकिलों ,वाहनों ,वस्तुओं ,वस्त्रों और सम्पतियों पर बहुजन- महापुरुषों के चित्र लगा जबर्दस्त लहर बनाई होगी जिसके आगे विदेशी -मीडिया टिक नही पायेगा ! दोस्तऔर दुश्मन की पहचान करनी होगी ! ध्यान रहे चुनाव के दौरान बहुजन संतों , गुरुओं और महापुरुषों के चित्र और तश्वीर लगाने से हमे भारत निर्वाचन आयोग उसी तरह नही रोक सकता जैसे वह राम ,कृष्ण और गणेश जैसे गैर-मूलनिवासी गैर-बहुजन देवी -देवताओं के चित्र नही हटाता है ! जय मूलनिवासी ! जय बहुजन ! जय भारत ! डॉ आर के चमार बौद्ध !
No comments:
Post a Comment