गरीबों के हाथों में न्याय की तलवार हो, भोला जी यह चाहते थे: रवींद्रनाथ राय
जनकवि भोला जी स्मृति आयोजन संपन्न
शंकर बिगहा जनसंहार के अभियुक्तों की रिहाई पर क्षोभ और विरोध जाहिर किया गया,
न्याय के संहार पर साहित्यकार-संस्कृतिकर्मियों ने गहरा शोक जाहिर किया
तमिल उपन्यासकार पेरुमल मुरुगन की हिंदूवादी संगठनों द्वारा किये जा रहे विरोध और किताब जलाये जाने की निंदा
15 जनवरी को जनकवि भोला जी का स्मृति दिवस था। हमने आरा शहर के नवादा थाने के सामने उसी जगह पर उनकी स्मृति में आयोजन किया, जहां हर साल गोरख पांडेय की स्मृति में काव्य गोष्ठी आयोजित होती रही है और जिसके आयोजन में भोला जी की प्रमुख भूमिका रहती थी। भोला जी को चाहने वाले रचनाकार, कलाकार, संस्कृतिकर्मी और उनके राजनीतिक साथी बड़ी संख्या में इस आयोजन में शामिल हुए। यह आयोजन जन संस्कृति मंच और भाकपा-माले की नवादा ब्रांच कमेटी ने किया था। भोला जी नवादा मुहल्ले में रहते थे और भाकपा-माले और जन संस्कृति मंच दोनों के सदस्य थे। सबसे पहले नवादा ब्रांच के सचिव का. प्रमोद रजक ने बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों और पत्रकारों का स्वागत किया और कहा कि भोला जी ने अपनी कविता के जरिए गरीबों और दलितों को जगाने का काम किया।
आयोजन की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि जगदीश नलिन, वरिष्ठ कवि-आलोचक रामनिहाल गुंजन, आलोचक प्रो. रवींद्रनाथ राय और जनकवि कृष्ण कुमार निर्मोही ने की। पहले उनकी तस्वीर पर माल्यार्पण किया गया। आयोजन की शुरुआत जनकवि कृष्ण कुमार निर्मोही ने उनके मशहूर गीत 'कवन हउवे देवी देवता, कवन ह मलिकवा, बतावे केहू हो, आज पूछता गरीबवा' सुनाकर की। उन्होंने उस गीत की रचना प्रक्रिया के बारे में बताया कि उनकी बहन ने अपने बेटे के लिए मन्नत मांगी थी, जिसे पूरा करने जाते वक्त वे हमें भी जबरन ले गए थे। भोला जी पूरे रास्ते देवी-देवताओं को गरियाते रहे। संयोगवश भांजे को चोट आ गई तो बहन ने डांटा की, इनकी वजह से ही ऐसा हुआ। इस पर भोला जी ने जवाब दिया कि नहीं, कोई बड़ी दुघर्टना होने वाली होगी, मेरे द्वारा देवी-देवता को गरियाने की वजह से ही यह हुआ, कि कम चोट ही आई। निर्मोही ने बताया कि जिस मरछही कुंड में वे लोग गए थे, उसमें योजना बनाकर वे कूदे कि पता चलें कि अंदर पानी में क्या है।
कवि बनवारी राम ने भी भोला जी की नास्तिकता के बारे में जिक्र किया कि जब उन्हें उनकी बेटी का शादी का कार्ड मिला तो देखा कि उस पर गणेश जी की तस्वीर को लाल रंग से पोत दिया गया था। जाहिर है गणेश जी वाला कार्ड ही बाजार में मिलता है, वही छपकर आया होगा। उसके बाद भोला जी को वह तस्वीर नागवार गुजरी होगी।
आयोजन जनकवि की स्मृति का था, तो जनविरोधी राजनीति पर निशाना सधना ही था। कवि सुनील चौधरी ने मोदी के शासनकाल में सांप्रदायिक उन्माद को बढ़ावा दिए जाने की राजनीति के पीछे मौजूद असली मंशा की ओर लोगों का ध्यान खींचा और कहा कि चाय बेचने की बात करने वाला आज देश को बेच रहा है। आज देशी-विदेशी कंपनियों को देश के प्राकृतिक संसाधनों की लूट की खुली छूट दे दी गई है। इस देश का न्यायतंत्र बिका हुआ है। आजादी और लोकतंत्र दोनों खतरे में है। भोला जी आज होते तो आज इसके खिलाफ लिख रहे होते।
आयोजन में शंकरबिगहा जनसंहार समेत बिहार में अन्य जनसंहारों के मामलों में अभियुक्तों की रिहाई पर विरोध और क्षोभ जताते हुए साहित्यकार-संस्कृतिकर्मियों ने एक मिनट का मौन रखकर न्याय के संहार पर गहरा शोक जाहिर किया। इसके साथ ही हिंदूवादी जातिवादी संगठनों द्वारा अपने उपन्यास 'माथोरुभगन' को जलाये जाने और उनके विरोध प्रदर्शनों के कारण तमिल उपन्यासकार पेरुमल मुरुगन द्वारा अपनी सारी किताबों को वापस ले लेने को विवश हो जाने को लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए घातक बताया गया तथा इसकी निंदा की गई। ज्ञात हो कि जिस उपन्यास को जलाया गया है वह चार वर्ष पहले तमिल में प्रकाशित हुआ था, लेकिन पिछले साल जब इसका अंगरेजी अनुवाद आया तब इसका विरोध शुरू हो गया।
कवि सुमन कुमार सिंह ने कहा कि कई मायने में भोला जी पढ़े-लिखे लोगों से ज्यादा अपने समय और समाज को समझते थे। उनकी कविता को किसी काव्यशास्त्रीय कसौटी के जरिए नहीं, बल्कि जनता की वेदना से समझा जा सकता है। सुमन कुमार सिंह ने कवि बलभद्र द्वारा भेजे गए भोला जी से संबंधित संस्मरण का भी पाठ किया।
कवयित्री किरण कुमारी ने कहा कि भोला जी ने समाज की विद्रूपताओं पर प्रहार किया। वे सूत्रों में संदेश देते थे और वे संदेश बड़े होते थे। डाॅ. रणविजय ने कहा कि भोला जी कबीर की तरह थे। चित्रकार राकेश दिवाकर जिन्होंने कभी भोला जी का एक बेहतरीन पोट्रेट बनाया था, उन्होंने आशुकविता की उनकी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए अपनी आशुकविता सुनाई, जो शंकरबिगहा जनसंहार के अभियुक्तों की रिहाई से आहत होकर लिखी गई थी। राकेश दिवाकर की कविता की पंक्तियां कुछ इस तरह थीं- औरतें थीं, अबोध थे/ बूढ़े थे, निहत्थे थे/ सोए थे/ वे मार दिए गए/ निःशस्त्र थे, बेवश थे, लाचार थे/ वे मार दिए गए/ हत्यारे बरी हो गए/ क्योंकि सरकारें उनकी थीं....
भोला जी के पुत्र पेंटर मंगल माही ने कहा कि अपने पिता पर उन्हें गर्व है। वे समाज की बुराइयों के खिलाफ लिखते थे। कठिनाइयों में रहते हुए उन्होंने कविताएं लिखीं। गीतकार राजाराम प्रियदर्शी ने भोला जी का गीत 'तोहरा नियर दुनिया मेें केहू ना हमार बा' को गाकर सुनाया। रामदास राही ने भोला जी की कविताओं का संकलन प्रकाशित करने का सुझाव दिया।
आशुतोष कुमार पांडेय ने कहा कि कविता भोला जी की जुबान पर रहती थी। वे सतही कवि नहीं थे, बल्कि उनकी कविताएं देश-समाज की गंभीर चिंताओं से जुड़ी हुई हैं।
भाकपा-माले के आरा नगर सचिव का. दिलराज प्रीतम ने कहा कि आज देश के सामने गंभीर संकट है, मोदी शासन में अब तक 8 जनविरोधी अध्यादेश पारित हो चुके हैं। देश तानाशाही की ओर बढ़ रहा है। भोला जी की स्मृति हमें यह संकल्प लेने को प्रेरित करती है कि हम इस तानाशाही का प्रतिरोध करें, इसके खिलाफ रचनाएं लिखें। इस मौके पर युवानीति के अमित मेहता और सूर्य प्रकाश ने रमता जी के गीत 'हमनी देशवा के नया रचवइया हईं जा' का गाकर सुनाया।
प्रो. अयोध्या प्रसाद उपाध्याय ने बताया कि जब प्रशासन द्वारा चलाए जा रहे अतिक्रमण हटाओ अभियान के दौरान भोला जी की दूकान हटाने का फरमान आया था, उन्हीं दिनों उनसे पहली मुलाकात हुई थी और वे उसका विरोध करने की योजना बना रहे थे। उन्होंने जनता को अपनी कविताओं के जरिए बताया कि ये जो वर्दीधारी हैं, जो सफेदपोश हैं, इनसे बचने की जरूरत है। प्रो. उपाध्याय ने कहा कि विपन्नावस्था में उनकी जिंदगी गुजरी पर उनके चेहरे पर हंसी हमेशा बनी रही। वे बहुत बड़े थे। वे हमारी स्मृतियों में हमेशा रहेंगे।
कवि जितेंद्र कुमार ने कहा कि इस आयोजन में लोगों की उपस्थिति ही उनकी लोकप्रियता का पता देती है। वे उनमें से नहीं थे जो अपने परिवार को आगे बढ़ाने के लिए सिर्फ धन बटोरते रहते हैं, जो न्याय के नाम पर अन्याय करते हैं, जो सत्ता के बगैर नहीं रह सकते। मेहनतकश अवाम के प्रति उनमें सच्ची संवेदना थी। अपने आदर्शों को उन्होंने कभी नहीं छोड़ा। उन्होंने बताया कि वे और सुमन कुमार सिंह उनकी बीमारी के दौरान आरा सदर अस्पताल में भी मौजूद थे, जहां उन लोगों ने अस्पताल की कुव्यवस्था का विरोध भी किया था। लेकिन अंततः भोला जी को बचाया नहीं जा सका। जितेंद्र कुमार ने कहा कि कविता को व्यापक जनता से जोड़ना ही भोला जी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
वरिष्ठ आलोचक रामनिहाल गुंजन जी ने कहा कि अरबों लोग उन्हीं स्थितियों में रहते हैं, जिनमें भोला जी थे, लेकिन उनसे वे इसी मायने में अलग थे कि वे बदहाली के कारणों के बारे में सोचते थे और उस सोच को अपनी कविताओं के जरिए जनता तक पहुंचाते थे। भोला जी क्रांतिकारी जनकवि थे। वे दूजा कबीर थे।
वरिष्ठ कवि जगदीश नलिन ने कहा कि जब वे भोला जी के पान दूकान के करीब मौजूद एक हाई स्कूल में शिक्षक थे, तो रोजाना उनकी मुलाकात उनसे होती थी। उन दिनों उन्होंने उनकी चालीस-पैंतालीस कविताएं देखी थीं। उन्होंने कहा कि भोला जी कविता की शास्त्रीयता पर ध्यान नहीं देते थे। सीधे-साधे लहजे में अपनी बात कहते थे। उन्होंने उन पर लिखी गई अपनी कविता का भी पाठ किया।
आलोचक रवींद्रनाथ राय ने कहा कि भोला जी में निरर्थक संस्कारों को तोड़ देने का हौसला था। जनता का सवाल ही भोला जी की कविता का सवाल है। उनकी कविताओं में प्रश्नाकुलता है। वे सामाजिक-राजनीति संघर्षों के कवि थे। न्याय की तलवार जनता के हाथ में हो, यह भोला जी चाहते थे।
अध्यक्षमंडल के वक्तव्य के दौरान ही भोला जी के अजीज दोस्त गीतकार सुरेंद्र शर्मा विशाल भी आयोजन में पहुंच गए। उन्होंने उन्हें एक अक्खड़ कवि के बतौर याद किया और कहा कि उनका जीवन अपने लिए नहीं था, बल्कि लोगों के लिए था। वे जिस राजनीतिक पार्टी से जुड़े हुए थे, जीवन भर उसके आंदोलनों के साथ रहे। सुरेंद्र शर्मा विशाल ने हिंदूवादी संगठनों के 'घरवापसी' अभियान की आलोचना करते हुए यह सवाल उठाया कि घर वापसी के बाद किस श्रेणी में जगह मिलेगी? रखा तो शूद्रों की श्रेणी में ही जाएगा! उन्होंने वर्गीय विषमता से ग्रस्त शिक्षा पद्धति पर भी सवाल उठाया। उन्होंने एक गीत भी सुनाया- का जाने कहिया ले चली इ चलाना/ धर्म के नावे प आदमी लड़ाना।
संचालन करते हुए मैंने भोला जी की कविता, कवि व्यक्तित्व और विचारधारा पर केंद्रित अपने लेख के जरिए कहा कि जनांदोलन और उसके नेताओं के प्रति भोला जी के गीतों पर जबर्दस्त अनुराग दिखाई पड़ता है। जनता की जिंदगी में बदलाव के लिए जो लंबा संघर्ष चल रहा है, जो उसकी आजादी, बराबरी और खुदमुख्तारी का संघर्ष है, उसी के प्रति उम्मीद और भावनात्मक लगाव का इजहार हैं उनकी कविताएं।
इस मौके पर भोला जी की जनवाद के आवाज, जनसंगीत, जान जाई त जाई, फरमान, लहू किसका, आओ बात करें, आदमी, आखिर कौन है दोषी?, हम लड़ रहे हैं, आज पूछता गरीबवा आदि कविताओं का पाठ भी किया गया। इस आयोजन में यह भी तय किया गया कि भविष्य में भोला जी की स्मृति में होने वाले आयोजनों में आशुकविताओं का भी पाठ होगा, जिसके लिए विषय उसी वक्त निश्चित किया जाएगा।
इस मौके पर भोला जी की जनवाद के आवाज, जनसंगीत, जान जाई त जाई, फरमान, लहू किसका, आओ बात करें, आदमी, आखिर कौन है दोषी?, हम लड़ रहे हैं, आज पूछता गरीबवा आदि कविताओं का पाठ भी किया गया। इस आयोजन में यह भी तय किया गया कि भविष्य में भोला जी की स्मृति में होने वाले आयोजनों में आशुकविताओं का भी पाठ होगा, जिसके लिए विषय उसी वक्त निश्चित किया जाएगा।
Posted by सुधीर सुमन at 1:42 PM
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