#सत्रह सौ कानून# खारिज करने की तैयारी है
#तानाशाह फासीवादी# फरमान से सारे कायदे कानून खत्म करने का यह #केसरिया समय कारपोरेट# हैं।
बाकी #मनुस्मृति शासन# के वैश्विक विस्तार और हिदू साम्राज्यवादी एजंडा को ग्लोबल हिंदुत्व,अमेरिका और इजराइल का साझा एजंडा के तहत #सोने की चिडिया लूटो# #दुनिया को तबाह करो#,एजंडा को लागू करने वाले #कल्कि अवतार #हैं #नरेंद्र मोदी#।
पलाश विश्वास
सत्रह सौ कानून खारिज करने की तैयारी है।गूड फ्राइडे पर एक सुप्रीम कोर्ट के एक ईसाई जज के कड़े ऐतराज को हाशिये पर रखकर जो न्यायाधीशों का सम्मेलन हिंदुत्व के शंखनाद के मध्य हुआ,वहां कल्कि अवतार की यह उदात्त घोषणा है।
बजट सत्र से पहले एकबार थोकभाव से गैरजरूरी कानून गिलोटिन से खत्म कर दिये गये और बिजनेस फ्रेंडली सरकार अब सत्रह सौ कानून खत्म करने का ऐलान कर रही है।
कानून गैर जरूरी हैं तो उन्हें खत्म करने के बारे में बगुलों की सिफारिशों पर सार्वजनिक बहस हो न हों,संसद में बहस तो पहले होनी चाहिेए।संसद में तो बहस करो।
तानाशाह फासीवादी फरमान से सारे कायदे कानून खत्म करने का यह केसरिया समय कारपोरेट हैं।
डिजिटल देश है।एक एक कानून को खत्म होने से पहले सरकार उस कानून का बौरा और बगुला विसेषज्ञों की सिफारिशों पर चाहे तो नागरिकों की सुनवाई कर सकती है,सार्वजनिक जनसुनवाई हो न हो,लेकिन शुरु से केसरिया,शुरु से केसरिया संसद में बिना रिकार्ड के तमाम संदिग्ध कानून खारिज करने,जनविरोधी कानून बिना बहस पास करने या जनपक्षधर कानूनों को जनविरोधी कानूनों में तब्दील करके जनता के संवैधानिक रक्षाकवच को तहस नहस करके सोनो की चिड़िया बेचो का धंधा बेरोकटोक है।
अपने डाक्टर साहेब से आज मैंने कहा कि हमा लोगों के नामकरण में कोई भारी गड़बड़ी हो गयी है लगता है।मांधाता और पलाश नाम का महात्म लोग दरअसल समझते नहीं हैं और हम लोगों के कहे लिखे को लोग कोई तरजीह नहीं देते क्योंकि इस नामकरण मे कोई ईश्वरीय स्पर्श नहीं है अलौकिक।
मांधाता को समझने के लिए जो इतिहास में झांकने की जरुरत है,वह तकलीफदेह हैं और भारत के जंगलों के भूगोल की तरह जंगल की आग की तरह पलाश नाम से लोगों को सिर्फ एलर्जी ही हो सकती है।
संजोग से हमारा जन्म 1956 के शरणार्थी आंदोलनों और 1958 के ढिमरी ब्लाक के किसान विद्रोह के आंदोलनकारियों के गांव में हुआ।गांव इन्हीं आंदोलनों की कोख से जनमा जो जात पांत बिरादरी रक्तसंबंधों से ऊपर रहा है तो गांव बसते ही हमारा जन्म हो गया और तब तक उस गांव बसंतीपुर में फूल कोई और खिले न थे।
हमारी ताई घर की असल मालकिन थीं,चारों तरफ घनघोर जंगलों में दावानल की तरह खिले पलाश के नाम पर मुझे उनने पलाश बना दिया।
आज सविता बाबू अपने धर्म मायके यानी निगार रजिया जैदी के घर पहुंच गयीं।भाई पद्दोलोचन उनके साथ हैं।
डाकू सुल्ताना को पकड़ कर जो जागीर इस परिवार को मिली थी,बिजनौर में अब वह सिमटते सिमटते खत्म सी है।रजिया जैदी लखनऊ में बस गयी तो निगार का ठिकाना भी दुबई होकर फिर वही लखनऊ में।उनका छोटा भाई राजू हाकी भी हाकी खिलाड़ी बनना चाहता था,वह अब रोजगार की तलाश में मध्य पूर्व में तेलकी कुंओं के आसपास कहीं है।
घर में शबनम और हुमा हैं।उनकी अम्मा गजल और ठुमरी अद्भुत गाती थीं।उन्हें गले का कैंसर हो गया था।हम उनके आखिरी वक्त उनसे मिलने गये तो अम्मा ने अपनी बेइंतहा तकलीफ भूलकर हमें गजल और ठुमरी गाकर सुनायी थी और उस मुलाकात के बाद वे ज्यादा दिनों तक जी नहीं पायी।
उनके पिता बाबूजी बिजनौर को दंगों में झुलसते देखने के हादसे कते बाद बाबरी विध्वंस से उपजे धपर्मोन्मादी माहौल में शोक संतप्त जब गुजरे तो उनसे हमारी जो मुलाकातें हुईं ,उसको हमने अपनी कहानी उस शहर का नाम बताओ,जहा दंगे नहीं होंगे,हूबहू दर्ज किया है।
उस घर में सविता बचपन से जाती रही है और हिंदू बेटी है उनकी,इस लिहाज से उनने अपने खानपान में जरुरी सुधार कर लिया था तभी से।पूरे खानदान में।पहलेपहल यूपी में रहते हुए नियमित आना जाना रहा है।बाबूजी और अम्मा के इंतकाल के बाद पिर उस सुराल में मेरा जाना हुआ नहीं।
निगार की चचेरी बहन है रजिया।हमारी शादी के तुरंत बाद भारतीय ओलपिंक महिला हाकी टीम में जो सबसे उजला चेहरा रहा है।अब हमारा उस घर में बिरले ही जाना आना हो पाता है।इस बीच घोड़े पर सवार जो हम बिजनौर पहुंचे तो हम सविता के मुस्लिम मायके जा नहीं सकें।
हमारी दोनों मुसलमान सालियों ने सविता के फोन पर इस सिलसिले में गिला शिकवा करने लगीं तो हमने कह दिया कि हम अपाहिज और विकलांग हो चुके हैं।
कहने को तो कह दिया लेकिन सोचें तो हम कितना सच कह रहे थे शत प्रतिशत हिंदुत्व और ईसाइयों व मुसलमानों समेत तमाम विधपर्मियों के सफाये के हिंदुत्व एजंडे के मद्देनजर।
शबनम अभी कालेज में स्पोर्ट्स कोच है जो खुद हाकी की बेहतरीन खिलाड़ी रही हैं।तो हुमा कालेज में संगीत पढ़ाती है और जब गाती है तो गजब ढाती है।
हमने शबनम से दूल्हा मियां की खबर ली जो वहां थे नहीं।दुआ सलाम हो नहीं सका।
हुमा से वही सवाल किया तो बोली कि दूल्हा अभी मिला ही नहीं।हमने अर्ज किया तो हम तो थे।उनने कहा कि अब फिर देर किस बात की चले आइये,हम लोग साथ रह लेंगे।
हमने कहा कि अब बिजनौर में ही डेरा डालेंगे और बाकी जिंदगी गाना सुनते हुए बिता देंगे।
इस पर हुमा बोली कि दीदी से फोन नंबर ले लिया है ताकि आपको फोन पर गाना सुनाया जा सकें।
हमें मालूम नहीं कि आखिर रिटायर करने के बाद इस बंद अंधेरी सुरंग में तब्दील देश में हमारी जगह कहां होगी या होगी या नहीं।फिर जो धर्मोन्माद के हालात हैं,जो ध्रूवीकरण है और हिंदुत्व का सर्वव्यापी संक्रमण है,हम यह भी नहीं जानते के हम फिर कभी अपने मुसलमान स्वजनों से परिजनों की तरह मिल पायेंगे या नहीं।
जितनी मस्ती से अपनी दोनों मुसलमान सालियों से बातें कीं हमने ,रोजनामचे में वह आतत्मीयता देश के साझे चूल्हे की विरासत को रेखांकित करने की गरज से दर्ज करते हुए मन बेहद कच्चा कच्चा हो रहा है।
हजारों साल से जिस भारतवर्ष को हम जानते हैं जिसकी सरजमीम पर जीकर मरखप गयी हमारी हजारों पीढ़ियां और हमें मालूम भी नहीं है कि हमारी लहू की असल कोख किस पहचान में हैं,कितनी रक्त धाराओं के विलय के बाद हमारे वजूद का यह सिलसिला बना है।
डाक्टर मांधाता सिंह ने कहा कि यह जानना दिलचस्प होगा कि जब नरेंद्र मोदी एकमुश्त सत्रह सौ कानूनों को खत्म करने का बाबुलंद ऐलान कर रहे हैं और संघ परिवार हिंदुत्व के एजंडे के तहत पंचामृत पेश करते हुए संपूर्ण निजीकरण से लेकर डाक विभाग को बैंकिंग और रेलवे समेत दूसरे तमाम महकमों की तरह विदेशी पूंजी के हवाले करने वाला है ,तभी अचानक बालीवूड की चोटी की हीरोइन ऐसा बयान क्यों दे रही हैं कि शादी से पहले सेक्स करूं या न करूं,मेरी मर्जी।
फिर यह भी खोज का मामला है कि विगत यौवना किसी सोप हिरोइन के शिक्षा के भगवेकरण और इतिहास के भगवेकरण के मध्य स्पाईकैम की क्या भूमिका है और देश भर का मीडिया क्यों अचानक शापिंग माल और अन्यत्र स्पाई कैमरा खोजने की मुहिम चला रहा है,जबकि उसी मीडिया में स्त्री देह का कारोबार सबसे बड़ी पूंजी है।
देश के तमाम अहम ज्वलंत मुद्दों से इस मीडिया से कुछ लेना देना नहीं है उन्हें मटियाकरमीडिया अब मुकम्मल स्पाईकैम है।
इस महीने हम लोगों का आयकर बीस फीसद रेट से कटा है,सिर्फ इसलिए कि मजीठिया का अरीअर वेतन की पहली किस्त का भुगतान अलग से हुआ है। लेकिन उसका पीएफ वेतन के हिस्से बतौर काटा नहीं गया है।
24 फीसद पीएफ कटवाने के बाद आयकर दस फीसद हमें भुगतान नहीं करना था जो सोर्स से बीस फीसद जो कटा,सो कटा ,अब वेतन पर भी बीस फीसद दर से इनकाम टैक्स कटा है।
दशक भर के इंतजार के बाद मजीठिया फर्जीवाड़ा का भोगा हुआ यथार्थ यही है कि हम पहले के वेतन से इतना बचा नहीं सकें कि पर्याप्त निवेश करके बाजार में पूंजी के मुनाफे का खुराक बनते हुए आयकर बचाने की सोचें तो दूसरी ओर हैसियत में मजीठिया की दो प्रोन्नतियों के बावजूद कोई तब्दीली न होने के कारण भविष्य के सारे दरवाजे बंद हैं।
जब मीडिया में ऐसा हो रहा है ,जहां सबसे बड़ा सामाजिक सक्रिय बुद्धिजीवी जमात है.जो आर्थिक सुधारों का सबसे बड़ा समर्थक है,बाकी देश,बाकी जनता तो रमाभरोसे बजरंगी हैं।
हालांकि राजनेताओं और अर्थशास्त्रियों की जो बिलियनर मिलियनर हैसियत है,उसके मुकाबले फेंके हुए टुकड़ा टुकड़ा जूठन बटोरते हुए अपनी हड्डियां चबाकर नरभक्षी हो जाने की नौबत है मीडिया कर्मी जमात की।
हाल यह है कि हमारे एक घनघोर मित्र जो आजतक कंप्यू को घृणा की नजरिया से देखते थे,वे उनकी खबरे कंपोज करके देने वाला कोई बचा न होने की वजह से प्रायोजित खबरों को कंपोज करने के लिए रिटायर होने से दो साल पहले चतकरप लिख रहे हैं।
हम यह साफ कर देना चाहते हैं कि भारत में कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता और संघ परिवार का धर्मोन्मादी हिंदुत्व के एजंडे में कोई फर्क नहीं है धर्मनिरपेक्षता के तिलिस्मी वोट बैंक चुनावी सत्ता हित साधो पाखंड के सिवाय।
यह फर्जीवाड़ा भारतीय राजनीति और लोकतंत्र में हिंदुत्व के पुनरुत्थान से पहले 15 अगस्त,1947 से चल रहा है और वर्ण वर्चस्वी मनुस्मृति हिंदू राष्ट्र का एजंडा गांधीवादी धर्मनिरपेक्षता और समाजवादी विकास के माडल के नाम पर तभी से अमल में हैं।
बहुजनों और अल्पसंखयकों के खिलाफ तब बजरंगियों की युद्धघोषणा न थी और आज जैसे तमाम पिछड़े,दलित,आदिवासी और अल्पसंख्यक संघ परिवार से नत्थी हैं,उसीतरह तब सत्तर के दशक के बाद गैर कांग्रेस वाद और मंडल राजनीति बहुजन सत्ता समीकरण बन जाने से पहले तमाम पिछड़े, दलित, बहुजन,आदिवासी और अल्पसंख्यक कांग्रेस के साथ नत्थी थे।
दरअसल संघ परिवार की पार्टी तौर भाजपा का उतथान का श्रेय किसी श्यामाप्रसाद मुखर्जी या दीनदयाल उपाध्याय या अटल बिहारी वाजपेयी का नहीं है।इसका श्रेय अकेले विश्व हिंदू परिषद के बजरंगी ब्रिगेड या बाबरी विध्वंस आंदोलन या रामरथी लालकृष्ण आडवाणी को भी नहीं है।
नरेंद्र भाई मोदी तो सत्ता समीकरण में अश्वमेध का दिग्विजयी अश्व हैं।
इस अश्वमेध और इस अश्व की भूमिका के बारे में जो पौराणिक आख्यान हैं,उस पर चर्चा करेंगे तो वह छापने लायक भी नहीं होगा।
बाकी आप पढ़ लें।
बाकी मनुस्मृति शासन के वैश्विक विस्तार और हिदू साम्राज्यवादी एजंडा को ग्लोबल हिंदुत्व,अमेरिका और इजराइल का साझा एजंडा के तहत #सोने की चिडिया लूटो# #दुनिया को तबाह करो#,एजंडा को लागू करने वाले #कल्कि अवतार #हैं #नरेंद्र मोदी#।
हिंदुत्व के पुनरूत्थान का काम तो दो राष्ट्र के सिद्धांत के तहत भारत विभाजन और बंगाल के अछूतों और पंजाब के सिखों और पंजाबियत के साझे चूल्हे को अपने ही देश में बेनागरिक शरणार्थी बनाने और विकास के नाम पर आदिवासियों की बेइंतहा सिलसिले तके साथ हिंदू राष्ट्र भारत के प्रादानमंत्री बतौर पंडित जवाहरलाल नेहरु के मनोनयन से शुरु हो गया था।
जिस नेहरु को धर्मनिरपेक्ष तबका धर्मनिरपेक्ष,समाजवाद और पंचशील सिद्धातों का धारक वाहक साबित करने में अघाता नहीं है,वर्णवर्चस्वी एकादिकारवादी सत्ता के वे ही जनक हैं और हिंदुत्व के प्रथम अवतार भी वे ही हैं,गुरु गोलवलकर नहीं।गोडसे भी नहीं।
धर्मनिरपेक्षता का वोटबैंक समीकरण के साथ अर्थव्यवस्था से बहुजनों और अलपसंख्यकों के निर्मम बहिस्कार का सिलसिला नेहरु और इंदिरा का हरित हरित समाजवादी गरीबी हटाओ माडल है,जो बदलकर अब मोदी का पीपीपी गुजराती माडल है।
भारतीय लोकगणराज्य अंबेडकर के जाति उन्मूलन के एजंडे को सिरे से नकारने वाले हिंदू साम्राज्यावाद के लिए बाबासाहेब के संविधान से ही लोकतांत्रिक हो गया,इस छलावे के भुलावे में बहुजन अब भी हैं तो मुसलमानों और दूसरे विधर्मी संघ परिवार के हिंदुत्व के मुकाबले कांग्रेस की मुक्तबाजारी मनुस्मृति छतरी में ही अपनी रिहाई की उम्मीद बांधते हैं।
जैसे अकाली और सिख आपरेशन ब्लू स्टार में सत्ता वर्ग के सम्मिलित सफाये अभियान से बेखबर मिथ्या न्याय की उम्मीद में है,जैसे कांग्रेसी राजनीति और समाजवादी हरित क्रांति से सिखों के नरसंहार का अंजाम बना,उसीतरह आज आत्मघाती अकाली राजनीति फिर सिखोें को आपरेशन ब्लू स्टार की दहलीज पर खड़ा कर रही है।
हमारे अग्रज आनंद स्वरुप वर्मा का जो आलेख हिंदू पत्रकारिता पर हस्तक्षेप पर लगा है,उसे ध्यान से पढ़ लें और फिर विवेचन करें कि लोकल का ग्लोबल का मुकाबला कैसे संघ परिवार के स्वदेशी अभियान बन जाता है।
इसी परिदृश्य में समझें कि कैसे धर्मनरपेक्षता के सिपाहसालार तबका साठ के दशक से असम समेत समूचे पूर्वोत्तर को आत्मध्वंंसी नस्ली सांप्रदायिकता और उग्रवाद की आग में झोंकता रहा है।
आपरेशन ब्लू स्टार की तरह बाबरी विध्वंस, गुजरात नरसंहार की तरह समूते पूरब और पूर्वोत्तर को गुजरात बनाने में हिंदू धर्मनिरपेक्ष मीडिया मसीहावृंद की खास भूमिका रही है।हम उन उजले चेहरों की असलियत भी खोलेंगे।इंतजार करें।
राममंदिर आंदोलन से पहले जो दंगे हुए,उसमें संघ परिवार का कितना हाथ है और अल्पसंख्यों को असुरक्षित बनाकर उनका वोटबैंक लूटने का धर्मनिरपेक्ष गांधीवादी कांग्रेसी खेल कितना है,इसका इतिहास की खिड़कियों और हकीकत के आइने में चीरपाड़ होनी चाहिए।
कैसे गांधीवादी मसीहा वृंद संघ परिवार की गोद में खेलता रहा है और कैसे सत्तर के दशक से सारस्वत संघी संप्रदाय मीडिया में सर्वेसर्वा हैं और बाकी लोग अछूत इस किस्से का खुलासा भी हम करेंगे।हम इसका भी आगे चलकर खुलासा करेंगे कि कैसे नानाजी देशमुख खोजी पत्रकारिता के दिग्दर्शक थे,यह जानना भी दिलचस्प होगा।
हम बार बार लिख रहे हैं और बड़ी स्पष्टता से लिख रहे हैं कि अबाध पूंजी का सिलसिला डा.मनमोहन सिंह ने कतई शुरु नहीं किया,वह सिलसिला हरित क्रांति और तकनीकी क्रांति के इंदिरा राजीव जमाने से शुरु हुआ।
इंदिरा और राजीव समय में संघ परिवार का एजंडा लागू करने की हालत में नहीं था जनसंघ और उसकी संतान भाजपा।तब कांग्रेस ही संघ परिवार को एजंडे को लागू कर रही थी।
नरसिंह राव और मनमोहनसिंह की जोड़ी ने भाजपा को सत्ता तक पहुंचाने का जो सिंहद्वार खोला,उसमे बाबरी विध्वंस की जितनी भूमिका रही है,उससे ज्यादा भूमिका है मुक्तबाजारी अर्थसशास्त्र की और जनविरोधी सैन्य राष्ट्र की।
इस जनसंहार संस्कृति को हम राष्ट्रवाद मानने की भूल कर रहे हैं और हिंदुत्व की धर्मनिरपेक्षता का पारायण,जिसका असली चरित्र आपरेशन ब्लू स्टार है,बाबरी विध्वंस और गुजरात नरसंहार भी नहीं करते हुए अपनी ही हड्डियां चबाते हुए हम इस लोकतंत्र में विधर्मियों और बहुजनों के बहिस्कार के विरुद्ध अनिवार्य जाति उन्मूलन के साथ साथ राज्यतंर्त में बदलाव के जरुरी एजंडे पर बहस शुरु ही होने नहीं दे रहे हैं।
और भाषायी कारीगरी से आरक्षण विरोध,आपरेशन ब्लू स्टार और सती प्रथा,संघ परिवार से मसीहावृंद के चोली दामन के साथ का बेशर्म बचाव भाषाई करतब,लफ्फाजी और हिंदुत्व की गांधीवादी धर्मनिरपेक्षता के नाम पर करने जा रहे हैं।
यह हरकत दीपिका पाडुकोण की बहुचर्चित वीडियो में कुवांरियों को देहमुक्त करने की स्वतंत्रता के मुक्तबाजारी कार्निवाल के मुकाबले कम जनविरोधी नहीं है।
मैं सिरे से बेहद बदतमीज हूं और सच को सच कहने में हमारी काई राजनीतिक या समाजिक बाध्यता या बौद्धिक खेमेबंदी या किसी मसीहा की नियामत रहमत आड़े नहीं आती।
इसलिए हमें माफ जरुर करें और बाकी हमें गरियाने या सिरे से खारिज या नजरअंदाज करने का हक तो आपको है ही।
वैसे भी हम लिखे हुए शब्दों की दुनिया में घुसपैठिया हैं,हमरा केई नागरिक या मानवाधिकार तो हैं ही नहीं।
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