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Wednesday, April 18, 2012

बिल्डरों-प्रमोटरों की दुनिया में फेसबुक का बवंडर!

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[LARGE][LINK=/index.php/yeduniya/1178-2012-04-18-09-31-09]बिल्डरों-प्रमोटरों की दुनिया में फेसबुक का बवंडर! [/LINK] [/LARGE]
Written by पलाश विश्वास Category: [LINK=/index.php/yeduniya]सियासत-ताकत-राजकाज-देश-प्रदेश-दुनिया-समाज-सरोकार[/LINK] Published on 18 April 2012 [LINK=/index.php/component/mailto/?tmpl=component&template=youmagazine&link=557f8c018783e85d04b8ba1127dead9afca1e6f0][IMG]/templates/youmagazine/images/system/emailButton.png[/IMG][/LINK] [LINK=/index.php/yeduniya/1178-2012-04-18-09-31-09?tmpl=component&print=1&layout=default&page=][IMG]/templates/youmagazine/images/system/printButton.png[/IMG][/LINK]
हिंदी के एक प्रिय कवि ने लिखा हैः  दुनिया रोज बदलती है। १९९१ से सचमुच हम दुनिया को बदलते हुए देख रहे हैं रोज। सीमेंट का जंगल अब महानगरों का एकाधिकार नहीं है। आहिस्ता आहिस्ता यह जंगल हमारे भूगोल और इतिहास से हम सबको बेदखल करने लगा है। हम सुनते रहे हैं कि बदलाव हमेशा बेहतरी के लिए होता है। लीजिये, यह मुहावरा भी खोटा सिक्का निकला। परिवर्तन किसे कहते हैं, बंगाल में सांसें ले रहा हर जीव को अच्छी तरह महसूस हो रहा होगा! कार्टून प्रकरण को लेकर एक प्रोफेसर की गिरफ्तारी के बाद चौतरफा आलोचना झेल रही पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के आलोचकों में एक और नाम शामिल हो गया है। सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के ही सांसद व गायक कबीर सुमन ने एक गाने को संगीतबद्ध किया है, जिसमें राज्य सरकार का माखौल उड़ाया गया है। ममता बनर्जी और तृणमूल के कुछ अन्य नेताओं का कार्टून वितरित करने के आरोप में जादवपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अम्बिकेश महापात्र को पिछले दिनों गिरफ्तार किया गया। इस कार्टून के जरिये ममता पर कटाक्ष अवश्य किया गया था, लेकिन उसे अनुचित-आपत्तिजनक अथवा अपमानजनक ठहराना किसी के लिए भी मुश्किल होगा। बाद में उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया।

प्रोफेसर महापात्रा के साथ मारपीट करने वाले चार लोगों को शनिवार को गिरफ्तार कर लिया गया और चंद घंटे बाद ही वे जमानत पर रिहा हो गए। इस घटना की पूरे प्रदेश के अलावा देशभर में निंदा हुई थी। तमाम राजनीतिक दलों ने इस प्रकार की शासन प्रणाली की कठोर निंदा की थी। समाज के सभी तबके के बुद्धिजीवियों ने इसकी अलोचना की और कहा कि वे राज्य सरकार के कदम से 'डरे' हुए हैं। महापात्र का हालांकि दावा है कि उन्होंने मजाक के तौर पर यह कार्टून अपने दोस्तों को भेजा था। उधर, पश्चिम बंगाल की सीआईडी ने फेसबुक अथॉरिटी को पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि ममता बनर्जी के विवादास्पद कार्टून को हटा दे। उस पर आए हुए गंदे और आपत्तिजनक टिप्पणियों को मिटा दे। कार्टून जहां से डाला गया है, उस सिस्टम की आईपी एड्रेस भी बताने की गुजारिश की गई। ताकि पुलिस इस काम को करने वाले शख्स को ट्रेस कर सके। ममता बनर्जी का कार्टून सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर पोस्ट होने के बाद तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ता में काफी रोष हैं।

पश्चिम बंगाल के आपराधिक जांच विभाग (सीआईडी) ने अमेरिका में फेसबुक के अधिकारी को लिखा कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और केंद्रीय रेल मंत्री मुकुल रॉय के खिलाफ दु्र्भावनापूर्ण सामग्री हटाएं। बंगाल की सीआईडी ने फेसबुक से कहा है कि वो अपनी साइट से वो चारों कार्टून हटाए जिसमें सीएम ममता बनर्जी का मजाक उड़ाया गया है। सीआईडी ने फेसबुक से उस कंप्यूटर का आईपी पता भी पूछा है जिसके जरिए फेसबुक पर ये आपत्तिजनक तस्वीरें अपलोड की गई हैं। मजे की बात तो यह है कि इन तस्वीरों में वह कार्टून नहीं है जिन्हें जादवपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अम्बिकेश महापात्रा ने शेयर किया था। हर छोटी-बड़ी बात पर केंद्र सरकार को झुकाने में सफल रहने वाली ममता बनर्जी यह मान चुकी हैं कि किसी को भी उनके खिलाफ कुछ कहने-बोलने की इजाजत नहीं है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सियासी गलियारों में अपनी तुनक मिजाजी के लिए जानी जाती है, लेकिन उनकी के एक मंत्री के अजीब-व-गरीब फरमान ने राजनीति की परिभाषा ही बदल डाली है। टीएमसी नेता और राज्य के खाद्य मंत्री ज्योतिर्प्रिय मलिक ने पार्टी कार्यकर्ताओं से अपील की है कि वह सीपीएम कार्यकर्ताओं से नहीं मिले जुले। अपने बेतुके फरमान में ज्योतिर्प्रिय मलिक ने यहां तक कहा है कि टीएमसी कार्यकर्ताओं, सीपीएम का बहिष्कार करें. न उनसे दोस्ताना रिश्ते रखें और न ही किसी सीपीएम कार्यकर्ता से शादी करें।

कबीर सुमन जादवपुर संसदीय क्षेत्र से ही सांसद हैं। कबीर सुमन का टकराव भी बिल्डरों प्रोमोटरों से हो चुका है और पार्टी में उन्हें हाशिये पर डाल दिया गया। उन्होंने लगातार ममता सरकार की आलोचना की है। इससे पहले ब्लॉग और गानों के जरिए लोगों के बीच अपनी बात रखते रहे हैं। सुमन पहले भी राज्य सरकार के कई कदमों पर गानों के जरिये और अपने ब्लॉग पर कलम चला चुके हैं। तृणमूल से सुमन के रिश्ते पार्टी नेताओं के एक धड़े के बीच कथित भ्रष्टाचार को लेकर उनके आवाज उठाने के बाद तनावपूर्ण हो गए। सुमन इस गाने में कहते हैं, ''हंसी के साथ जियो। हंसते हुए जियो। दर्द में भी रहो तो बंगाल के लोग हंसते रहो। जब बच्चा पहली बार अपनी मां का दूध पीता है तो खुश होता है। हंसता है। वह उस हंसी का अर्थ समझता है। तुम्हें हंसने के लिए धम खर्च करने की जरूरत नहीं है। सभी आसानी से हंस सकते हैं।'' इस मामले में पूर्व रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी ने कहा है कि व्यंग्य लोकतंत्र का अभिन्न हिस्सा है। सभी को अपनी अभिव्यक्ति का हक है। उन्होंने कहा कि कोई भी व्यंग्य का कार्टून आपकी छवि को नष्ट नहीं कर सकता है। लोगों की सोच किसी की छवि को बनाती या बिगाड़ती है। उल्लेखनीय है कि त्रिवेदी को रेलमंत्री पद से हटाने की प्रक्रिया उक्त कोलाज में दर्शायी गई है और पूर्व रेलमंत्री उक्त व्यंग्यात्मक अभिव्यक्ति का एक हिस्सा हैं। तृणमूल नेता त्रिवेदी इन दिनों गुजरात के दौरे पर हैं।

बंगाल में इन दिनों बिल्डरों और प्रोमोटरों की इस दुनिया में फेसबुक ने बवंडर खड़ा कर दिया है। जादवपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अंबिकेश महापात्र द्वारा एक कार्टून प्रसारित करने पर ममता द्वारा की गई कार्रवाई की चौतरफा आलोचना हो रही है। बुद्धिजीवियों के एक बड़े वर्ग और आम आदमी में भी इस कदम के बाद अभिव्यक्ति को लेकर भय व्याप्त है। महापात्र ने यह साफ कर दिया था कि उन्होंने मजाक में इस कार्टून को अपने मित्रों के बीच साझा किया था। यह तो जगजाहिऱ है कि सत्ता का संरक्षण न​ हो तो अच्छा या बुऱा कोई धंधा नहीं चल सकता। इसलिए सत्ता बदलते प्रोमोटर बिल्डर तुरंत दल बदल कर लेते हैं। दस्तूऱ है। बंगाल में परिवर्तन के बाद ऐसा ही होना था, हुआ। जादवपुर विश्वविद्यालय के जिन दो प्राध्यापकों को कार्टून शेयर कऱने के अफराध में गिरफ्तार कर लिया गय़ा, वे न्यू गड़िया हाउसिंग सोसाइटी​​ के सचिव और सहसचिव हैं। गड़िया मेट्रो स्टेशन के पास इस सोसाइटी के हाथ में १०८ प्लाट अभी खाली है, जो करीब ५० करोड़ की बतायी ​​जाती है। दोनों प्राध्यापक ये प्लाट दलालों के माध्यम से बेचने को तैयार नहीं हुए तो उनपर मुसीबतों का यह पहाड़ टूट पड़ा। कार्टून कांड के ​​नेपथ्य में जमीन सिंडिकेट का हाथ है। गौरतलब है कि राज्य में सत्तारुढ़ तृणामूल कांग्रेस के एक कार्यकर्ता ने 12 अप्रैल को पुलिस में एक शिकायत दर्ज की थी जिसमें उन्होंने कहा था कि कुछ लोग फेसबुक और ट्विटर का प्रयोग ममता बनर्जी को बदनाम करने के लिए कर रहे हैं। बंगाल भर में राजनीतिक दलों में ऐसे ही सिंडिकेट का वर्चस्व कायम हो गया है और हर राजनीतिक संघर्ष के पीछे वैसे ही सिंडिकेट हैं। जो बंगाल को ही लवासा बना देने के फिराक में हैं।

हम कोलकाता के जिस उपनगरीय हिस्से में पिछले करीब २१ साल से रहते आये हैं, वहां अब इक्का दुक्का ही निजी मकान बचा है। सारे घर तोड़े जा रहे हैं या बेदखल हो रहे हैं। बेदखली का यह सिलसिला स्थानीय नहीं, राष्ट्रीय है। हम जो नागरिकता कानून और आधार कार्ड योजना पर बारम्बार हल्ला मचाते रहते हैं, वह अकारण नहीं है। हिसाब लगाया जाये तो भारत विभाजन के कारण जितने शरणार्थी बने, उससे कई गुणा ज्यादा शरणार्थी हमारी विकास योजनाओं की वजह से बनाये गये। विडंबना यह है कि इनका कोई पुनर्वास नहीं होता। इस्पात कारखाना हो या परमाणु संयंत्र, बड़े बांध हो या सेज, जो लोग बेदखल कर दिये जाते हैं, दशकों से उनका पुनर्वास नहीं होता। १९७१ से देश में पुनर्वास को तिलांजलि दे दी गयी। चुनाव घोषणापत्रों और सरकारी वायदे में ही पुनर्वास शब्द का प्रचलन है, वास्तव में उसका कोई वजूद नहीं है। महानगरों और दूसरे बड़े शहरों की गंदी बस्तियां इन्हीं शरणार्थियों की आबादी है, जो रोज बढ़ती जाती है।

देश पर प्रोमोटरों बिल्डरों का राज कायम हो गया है। चारों तरफ बेदखली अभियान। और इस बेदखली में राजनीति का कितना हाथ होता है, वह हम बचपन से देखते आये हैं। साठ के दशक में वसंत का जो वज्रनिर्घोष दार्जिलिंग की तराई में नक्सलबाड़ी में हुआ, उसकी गूंज नैनीताल की तराई तक में ​​पहुंची थी। दिनेशपुर हाईस्कूल में छठीं सातवीं में पढ़ते हुए साम्यवाद का पाठ हमने प्रेम प्रकाश बुदलाकोटी से सीखा और आठवीं तक आते आते हमारे हाथों में लाल किताब आ गयी। हमारे पिता स्वर्गीय पुलिन बाबू स्कूल कालेज में पढ़े-लिखे नहीं थे। पर इतने उदार जरूर थे कि हमारे विचारों पर नियंत्रण करने की उन्होंने कभी कोशिश नहीं की। बहरहाल दिनेशपुर और समूची तराई में जब नक्सली गतिविधियां तेज होती गयीं। महाजनों के खिलाफ विद्रोह होने लगा हर गांव में। हर दिशा में जमीन को लेकर फसाद शुरू हो गया। और कई कई दिनों तक हम घर से गायब रहने लगे, तो बाहैसियत पिता वे चिंतित हो गये। दिनेशपुर हाई स्कूल से उठाकर हमें शक्तिफार्म राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में दाखिल करा दिया गया। ताकि क्रांतिकारियों से जंगल में​ ​घिरे उस इलाके में रहते हुए मेरा संपर्क कट जाये।

इससे पहले तराईभर में किसान सभा का जोर था। १९५८ में ढिमरी ब्लाक त्रासदी के बावजूद कम्युनिस्ट पार्टी का आधार उत्तर प्रदेश में बना हुआ था। बंगाली इलाके में दिनेशपुर के तीन गांवों में खासकर नेताजीनगर, विजय नगर औऱ पिपुलिया नंबर वन में कम्युनिस्टों और नक्सलियों का गढ़ था। मजेदाऱ बात तो यह है कि बेदखली के खिलाफ लड़ रहे इन तीनों गांवों के लोग बेदखल हो गये। नेताजीनगर में तो एक भी परिवार बेदखली से नहीं बचा। हमने कामरेडों को १९७०- ७१ में ही जमीन बचाओ आंदोलन से जमीन बेचो अभियान में निष्णात होते देखा। ​​अभी सिडकुल बन जाने से तराई में जमीन सोने के भाव से बिक रही है। जो कल के नेता थे, वे अब जमीन के नामी दलाल हैं और इस दरम्यान उनकी राजनीतिक पैठ भी गहराती गयी। दरअसल यह दलाली सर्वोच्च स्तर तक समान है। ​​कोयला ब्लाकों की नीलामी हो या सार्वजनिक उपक्रमों और उनकी संपत्ति की बिक्री, सेज हो या निजी कारखाने, विदेशी पूंजी निवेश हो या ​​पीपीपी माडल या फिर पंटायती राज, जमीन का धंधा सबसे बड़ा राजनीतिक खेल होता है। उसीमें वारा न्यारा। हमने झारखंड आंदोलन के दिग्गजों को भी इस धंधे में हाथ आजमाकर भारी कामयाबी हासिल करते देखा है १९८० से ८४ के दरम्यान। सरकारें अब सीधे तौर पर जमीन की दलाली कर​ रही है। इसी दलाली के खिलाफ हम लोगों ने नंदीग्राम और सिंगुर जनविद्रोह का समर्थन किया था।

बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का व्यंग्यात्मक कोलाज बनाने और उसे इंटरनेट पर डालने के मामले में फंसे जादवपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अंबिकेश महापात्र ने अपने साथ हुई मारपीट मामले में शुक्रवार रात पूर्व यादवपुर थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई। प्रोफेसर की शिकायत पर पुलिस ने तृणमूल कांग्रेस के चार कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करके शनिवार को अदालत में पेश किया, जहां उन्हें पांच-पांच सौ रूपये के निजी मुचलके पर रिहा कर दिया गया। मारपीट करने वालों पर जमानती धाराएं लगाने के चलते पुलिस की भूमिका पर फिर सवाल खड़े हो गए हैं। कुछ ही दिनों पहले ममता बनर्जी ने सरकारी सहायता प्राप्त पुस्तकालयों में अपनी पसंद के चुनिंदा समाचार पत्रों को ही रखने का फरमान जारी किया था। चिंताजनक केवल यह नहीं है कि एक सामान्य सा कार्टून बनाने पर प्रोफेसर और उनके पड़ोसी को गिरफ्तार कर लिया गया, बल्कि यह भी है कि पुलिस के इस कृत्य का खुद ममता बनर्जी ने यह कहकर बचाव किया कि गलत काम करने वाला गिरफ्तार होगा ही। आश्चर्य नहीं कि ममता बनर्जी अपने उन उत्पाती समर्थकों का भी पक्ष लें जिन्होंने पुलिस की कार्रवाई के पहले प्रोफेसर के घर जाकर उनसे मारपीट की थी।

प्रोफेसर अंबिकेश के बनाए कोलाज में ममता के साथ रेलमंत्री मुकुल रॉय और पूर्व रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी भी थे। इसी के बाद गुरुवार रात तृणमूल कार्यकर्ताओं ने प्रोफेसर के घर पहुंचकर उनकी पिटाई की और पकड़कर थाने ले गए। पुलिस ने थाने में प्रोफेसर को रात भर बैठाए रखा और शुक्रवार सुबह मुकदमा दर्ज कर उन्हें अदालत में पेश किया। प्रोफेसर की मदद के आरोप में उनके पड़ोसी को भी पुलिस ने गिरफ्तार किया था। अदालत ने दोनों को निजी मुचलके पर रिहा कर दिया था। घर पर पिटाई करने वालों के खिलाफ प्रोफेसर ने प्राथमिकी दर्ज कराई। गिरफ्तार किए गए तृणमूल कार्यकर्ताओं के नाम अरूप मुखर्जी, अमित सरदार, शेख मुस्तफा और निशिकांत घरूई हैं। प्रोफेसर अंबिकेश ने जान का खतरा बताते हुए पुलिस से अपनी सुरक्षा की गुहार लगाई है। लेकिन पुलिस ने अभी तक कोई इंतजाम नहीं किया है। इस बीच मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से सम्बंधित कार्टून जारी करने पर जादवपुर विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर की गिरफ्तारी के कुछ ही दिनों बाद राज्य के खाद्य आपूर्ति मंत्री ज्योतिप्रियो मलिक ने तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं से मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) का सामाजिक बहिष्कार करने के लिए कहा है। ज्योतिप्रियो ने तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं से कहा है कि वह माकपा से नफरत करना सीखें। ममता बनर्जी को पश्चिम बंगाल की सत्ता संभाले हुए अभी एक वर्ष भी नहीं हुआ है, लेकिन इतने कम समय में ही वह एक ऐसे शासक के रूप में उभर आई हैं जिसे अपनी जिद के आगे किसी की और शायद खुद की छवि की भी परवाह नहीं।

ज्योतिप्रियो ने सोमवार को एक कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कहा, आपको सामाजिक रूप से माकपा का बहिष्कार करना चाहिए। आप-उनसे मेलजोल न बढ़ाएं। माकपा का कोई कार्यकर्ता यदि आपको किसी विवाह समारोह अथवा कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आमंत्रित करता है तो आप वहां न जाएं। उन्होंने कहा, आप यदि उनका सामाजिक रूप से बहिष्कार नहीं करेंगे तो सत्ता में रहते हुए उन्होंने जो बुरे काम और अन्याय किए, उनका बदला आप नहीं ले सकेंगे।  ज्योतिप्रियो के इस बयान ने अपनी सांस्कृतिक एवं राजनीतिक विरासत के लिए मशहूर राज्य में एक नए विवाद को जन्म दे दिया है। उन्होंने कहा, माकपा कार्यकर्ताओं के साथ आप भोजन न करें और उनके साथ न बैठें। आप सभी को उनसे नफरत करना सीखना चाहिए। जबतक आप उनसे नफरत करना नहीं सीखेंगे, तबतक आप बदला नहीं ले सकेंगे। ज्ञात हो कि बनर्जी सहित तृणमूल कांग्रेस के कुछ नेताओं का कार्टून जारी करने पर पिछले सप्ताह जादवपुर विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर को गिरफ्तार किया गया, जिसका समाज के सभी वर्गो ने आलोचना की। वहीं, माकपा के नेतृत्व वाले वाम-मोर्चे ने तृणमूल कांग्रेस पर आरोप लगाया कि वह राज्य में सामाजिक सद्भाव बिगाड़ने की कोशिश कर रही है।

माकपा के केंद्रीय समिति के सदस्य मोहम्मद सलीम ने कहा कि वे राज्य के सामाजिक ताने-बाने को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन वे ऐसा नहीं कर पाएंगे। ऐसे बयान इस बात के प्रमाण हैं कि तृणमूल कांग्रेस की व्यक्तित्व उपासना के सिवाय और कोई विचारधारा नहीं है। कांग्रेस ने भी कहा कि ऐसे विचित्र बयानों से सामाज के ताने-बाने पर कोई असर नहीं पड़ेगा। पश्चिम बंगाल में अलग अलग मामलों में एक प्रोफेसर और एक वैज्ञानिक की गिरफ्तारी के विरोध में प्रधानमंत्री को पत्र लिखा गया है। देश-विदेश के वैज्ञानिकों ने डॉ. मनमोहन सिंह ने इस मामले में हस्तक्षेप की मांग की है। जादवपुर विश्वविद्यालय के कैमिस्ट्री के प्रोफेसर अंबिकेश महापात्रा व मोहनपुर के आणविक जीवविज्ञानी पार्थसारथी को हाल ही में पुलिस ने गिरफ्तार किया है। महापात्रा को ममता बनर्जी से संबंधित एक कार्टून मेल के जरिए लोगों को फॉरवर्ड करने के चलते पकड़ा गया। जबकि पार्थसारथी को झुग्गी विस्थापन के खिलाफ आवाज उठाने पर गिरफ्तार किया गया है।

वैज्ञानिकों ने डॉ. सिंह को लिखे पत्र में महापात्रा और पार्थसारथी पर की गई कार्रवाई की निंदा की। उन्होंने लिखा कि मानवाधिकार और नागरिकों से जुड़े मुद्दे उठाने वालों पर इस तरह की कार्रवाई चिंताजनक है। प्रधानमंत्री को इस संबंध में तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए। इस सिलसिले में तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने कहा उनकी पार्टी की सोशल मीडिया पर नजर रखने की कोई मंशा नहीं है। जबकि राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने प्रोफेसर की गिरफ्तारी की निंदा की है। उन्होंने कहा कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है। पश्चिम बंगाल में पुस्तकालयों को विशेष समाचार पत्र ही खरीदने के राज्य सरकार के निर्देश तथा मुख्यमंत्री ममता बनर्जी व तृणमूल कांग्रेस के नेताओं का कार्टून इंटरनेट पर डाले जाने के कारण जादवपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर की गिरफ्तारी जैसे राज्य सरकार के कई फैसलों को अतार्किक करार देते हुए 50 से अधिक बुद्धिजीवियों ने इसके प्रति विरोध जताया। एक लिखित व हस्ताक्षर युक्त बयान में सफदर हाशमी मेमोरियल ट्रस्ट के सदस्यों ने कहा, "हम समझते हैं कि प्रशासन का अतार्किक व्यवहार शीर्ष स्तर से प्रेरित है। महिलाओं के खिलाफ अपराध, चिकित्सा सुविधाओं की खराब स्थिति और लोक सेवाओं की गिरती गुणवत्ता सहित विभिन्न मुद्दों पर मुख्यमंत्री के अविवेकपूर्ण बयानों और कार्रवाइयों से सभी की नजर उन पर है।" पश्चिम बंगाल सरकार के खिलाफ विरोध जताने वालों में इरफान हबीब, तीस्ता सीतलवाड़, मृदुला मुखर्जी, अस्ताद देबू, सईद मिर्जा तथा एम. के. रैना आदि शामिल थे।

[B]लेखक पलाश विश्वास पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता और आंदोलनकर्मी हैं. अमर उजाला समेत कई अखबारों में काम करने के बाद इन दिनों जनसत्ता, कोलकाता में कार्यरत हैं. अंग्रेजी के ब्लॉगर भी हैं. उन्होंने 'अमेरिका से सावधान' उपन्यास लिखा है.[/B]

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