पत्रकार कमल शुक्ला पर जानलेवा हमला
वन माफियाओं और वन मंत्री बिक्रम उसेंडी की गठजोड़ की चर्चा जोरों है और सरकार को जवाब देते नहीं बन रहा था। इससे बचने के लिए मंत्री के गुर्गों ने कमल शुक्ला पर इन खबरों को पैसा लेकर न छापने का दबाव भी बनाया। सफल नहीं होने पर जानलेवा हमले का सहारा लिया...
जनज्वार. हाल ही में छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ क्षेत्र में सुरक्षा बलों द्वारा आदिवासियों पर किये गये अत्याचार के खिलाफ रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकार कमल शुक्ला पर जानलेवा हमला किया गया। यह हमला 11 अप्रैल की रात अनुपम अवस्थी और दो अन्य लोगों द्वारा किया गया। बताया जा रहा है कि इस हमले के पीछे वन माफिया हैं। हमले में पुलिस अब तक किसी आरोपी की गिरफ्तारी नहीं कर सकी है।
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छत्तीसगढ़ के कालीबेड़ा क्षेत्र के अंतागढ़ में वन माफिया करीब सौ एकड़ वन क्षेत्र की अवैध कटाई कर रहे हैं। कटाई करने में राज्य के वन मंत्री विक्रम उसेण्डी के सगे भाई और कालीबेड़ा क्षेत्र के सरपंच हरीश उसेण्डी शामिल हैं। संदेह है कि अनुपम अवस्थी ने यह हमला हरीश उसेंडी, भानुप्रताप वनमंडल के वन अधिकारी एके वाहने और वन सुरक्षा समिति के अघ्यक्ष अरूण ठाकुर के इशारे पर किया है। खबरों में मंत्री समेत इन सभी की संलिप्तता लगातार उजागहर हो रही थी।
राजस्थान पत्रिका के कांकेर जिला ब्यूरोचीफ कमल शुक्ला ने वन माफियाओं के खिलाफ लगातार खबरें लिखीं। कांकेर से इन खबरों के प्रकाशित होने के बाद राज्य भर में वन माफियाओं और वन मंत्री बिक्रम उसेंडी की गठजोड़ की चर्चा जोरों है और सरकार को जवाब देते नहीं बन रहा था। इससे बचने के लिए मंत्री के गुर्गों ने कमल शुक्ला पर इन खबरों को पैसा लेकर न छापने का दबाव भी बनाया। सफल नहीं होने पर जानलेवा हमला का सहारा लिया।
वन मंत्री माफियाओं के साथ अपनी संलिप्तता उजागर होने के बाद मामले को दबाने के लिए हर रोज राज्यभर के सभी छोटे-बड़े अखबारों को लाखों रुपये के पूरे पेज के विज्ञापन किसी न किसी बहाने लगातार वन मंत्रालय की तरफ से लगातार जारी करवा रहे हैं।
कमल शुक्ला फिलहाल कांकेर के कोमलदेव जिला अस्पताल में भर्ती हैं। कमल ने बताया '11 अप्रैल की रात जब मैं आफिस में खबरें भेज रहा था तभी अनुपम अवस्थी दो अन्य लोगों के साथ वहां पहुंचा और लोहे की राड से उन्होंने मुझ पर हमला कर दिया। मेरे शरीर पर ग्यारह जगह खून के थक्के जमे होने के निशान हैं।' गौरतलब है कि अनुपम अवस्थी पर अपराध के 17 मामले दर्ज हैं और वह एक स्थानीय अखबार में पत्रकार भी है। अखबार ने हमले के बाद उसे निष्कासित कर दिया है।
रायपुर से प्रकाशित प्रमुख सांध्य दैनिक 'छत्तीसगढ़' के कांकेर ब्यूरोचीफ हरीलाल शार्दुल ने बताया, 'अंतागढ़ के जंगलों में वन माफिया अवैध कटाई कर रहे हैं। हम लोगों ने करीब 30 एकड़ जंगलों की अवैध कटाई के बारे में प्रमाण सहित खबरें प्रकाशित कीं। लेकिन यहां प्रशासनिक स्थिति यह है कि इन खबरों से माफियाओं के मन में डर पैदा होने की बजाय दुस्साहस पैदा हो रहा है और वे पत्रकारों पर हमला कर रहे हैं।'
पत्रकार कमल शुक्ला पर हुए इस ताजा हमले से पहले भी 1992 में खनिज माफियाओं के खिलाफ खबर लिखने के मामले में हमला हो चुका है। वन माफियाओं और सरकार के गठजोड़ के खिलाफ खबरें प्रकाशित करने वाले दैनिक भास्कर के पत्रकार मोहन राठौर की तो हत्या ही करा दी गयी, जबकि पत्रकार हरीलाल शार्दुल पर भी वन माफिया जानलेवा हमला कर चुके हैं।
पत्रकारों पर लगातार हो रहे हमलों को लेकर पत्रकार संगठनों की असंवेदनशीलता का आलम यह है कि अभी तक राज्य के किसी भी पत्रकार संगठन ने इस हमले के खिलाफ एक प्रेस विज्ञप्ति जारी नहीं की है। श्रमजीवी पत्रकार संगठन की कांकेर इकाई ने इस हमले के विरोध में कुछ नहीं कहा है। पत्रकार हरीलाल ने बताया कि, 'स्थानीय स्तर पर विज्ञापन का इतना दबाव रहता है कि पत्रकार एकजुट नहीं हो पाते, जिसका फायदा माफिया और नेता उठाते हैं।'
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