लाखों फूंकने पर भी नहीं मिटेगी सड़ांध
राजनीति में जो सड़ांध रच बस चुकी है, वह शौचालयों पर लाखों क्या करोड़ों फूंकने पर भी दूर नहीं होगी.क्या पता कल लाख टके का सरकार कोई 'एअर फ्रेशनर' ले आए, जो इस सड़ांध को आम आदमी तक पहुंचने से भी रोक दे..
मनु मनस्वी
कांग्रेसी चाकर मोंटेक सिंह अहलूवालिया जिस पद पर जमाए गए हैं, उससे जनता देश की अर्थव्यवस्था सुधारने की उम्मीद करती है तो कोई बड़ी बात तो नहीं.आखिर उन्हें मोटी रकम मिलती भी इसी काम के लिए है, लेकिन जनाब हैं कि पेट का गुबार निकालने के लिए सस्ते टॉयलेट बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं.
उनकी बड़े समय से ख्वाहिश थी ऐसा एक टॉयलेट बनाने की, जहां वे सुकून में घंटों बैठकर देश की अर्थ व्यवस्था बदलने की दिशा में कुछ सोच सकें और कांग्रेसी जन उनके मुंह में गरीबी की जो विचित्र परिभाषा ठूंस रहे हैं, उसका 'कलंक' भी किसी विधि बाहर आ सके.
अब जब जनाब ने हजारों गरीबों की जमापूंजी खर्च कर अपने लिए एक अदद टॉयलेट बनवा लिया तो लोग यूं नाक-भौं सिकोड़ रहे हैं मानों उन्होंने अपनी वाहियात सोच का कचरा जनता पर उड़ेल दिया हो.
सवाल यह है कि आखिर पैंतीस लाख के इस टॉयलट में बैठकर किस प्रकार का सोच (शौच?) कार्य होगा? क्या हर दिन देश हित से जुड़ी महत्वपूर्ण मीटिंगों के लिए आने वाले प्रबुद्धजन केवल शौच के लिए ही आएंगे? हां, अहलूवालिया जी के फर्जी आंकड़े जिन्हें हजम न हों, उनके लिए यह सटीक बंदोबस्त किया गया है.
भारतीय इतिहास में शायद ही कोई सरकार इतनी निरीह साबित हुई होगी, जितनी सोनियानीत यूपीए-2 सरकार अब तक नजर आ रही है.कभी चिदंबरम-प्रणव दा शीत युद्ध, कभी प्रधानमंत्री द्वारा खुद को आत्मविश्वासी बताना, कभी गरीबी के हास्यास्पद आंकड़े तो कभी महंगाई के पीछे के बेतुके कारणों पर अपने ही घटक दलों से मतभेद.
देश में लाखों मीट्रिक टन अनाज खुले में सड़ रहा है लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद इस अनाज को रखने के लिए स्थान तक नहीं ढूंढा जा सका है.अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अल्पसंख्यक आरक्षण के मामले में भी सरकार को कड़ी फटकार लगाई है.पहले भी ऐसा हो चुका है.
सुप्रीम कोर्ट से कई बार लताड़ सुनने के बाद लगता है यह सरकार या तो ढीठ हो गई है कि बच्चू कुछ भी कर लो, हम न सुधरने वाले, या फिर इतनी बेबस हो गई है कि बस टाइम काट रही है.अजूबा शौचालय बनाने वाले अहलूवालिया और मनमोहन गुजरे समय में भले ही लोगों के लिए अर्थव्यवस्था और ज्ञान के 'इन्साइक्लोपीडिया' रहे हों, लेकिन फिलहाल तो वे सठियाए ही नजर आ रहे हैं.
बहरहाल यह शौचालय आम आदमी के लिए सुलभ शौचालय की भांति ही सुलभ है.वो वक्त दूर नहीं, जब ट्रेवेलिंग एजेन्ट इस विख्यात स्थान के दर्शन कराने के नाम पर पर्यटकों से मोटी रकम वसूलने लगें.लेकिन अहलूवालिया जी!
आप जैसों के करम से राजनीति में जो सड़ांध रच बस चुकी है, वह ऐसे कई शौचालयों पर लाखों क्या करोड़ों फूंकने पर भी दूर नहीं होगी.पर ये तो कांग्रेस राज है.क्या पता कल लाख टके का कोई ऐसा 'एअर फ्रेशनर' ले आए, जो इस सड़ांध को आम आदमी तक पहुंचने से भी रोक दे.
मनु मनस्वी पत्रकार हैं.
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