" सीटी बजाने वाले " क्या अब सरस्वती-वंदना गाएंगे?
अभिरंजन कुमार
टीम अन्ना कहती है कि नेताओं ने भारत के लोकतंत्र को जोकतंत्र बना दिया है। जोकतंत्र- यानी ऐसा तंत्र जो अपने आप में मज़ाक बन गया हो। नेताओं को इस बयान में भले समस्या हो, लेकिन हमें कोई समस्या नहीं है। बल्कि इस बयान को हम थोड़ा और संशोधित करके कहना चाहते हैं कि मामला सिर्फ़ जोकतंत्र तक ही नहीं रहा है, जोंकतंत्र तक पहुंच गया है। जोंकतंत्र- यानी ऐसा तंत्र जिसमें, हर जगह जनता का लहू चूसने वाले चिपकू टाइप जोंक घुस आए हों।
हम जो कह रहे हैं, उसकी एक सिंपल-सी तस्वीर हैं- डिंपल यादव। डिंपल यादव मुलायम सिंह की बहू हैं और उनके परिवार की छठी सदस्य हैं, जो देश की मौजूदा राजनीति में ऊंचे ओहदे को धारण करने जा रही हैं। ख़ुद मुलायम सिंह मैनपुरी से लोकसभा सदस्य हैं। उनके चचेरे भाई रामगोपाल यादव राज्यसभा सांसद हैं। उनके भतीजे धर्मेंद्र यादव बदायूं से लोकसभा सदस्य हैं। उनके बेटे अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। उनके सगे भाई शिवपाल यादव अखिलेश के मंत्रिमंडल में लोकनिर्माण, सिंचाई, बाढ़ नियंत्रण और सहकारिता मंत्री हैं। अब उनकी बहू यानी मुख्यमंत्री अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव कन्नौज से निर्विरोध सांसद बनने जा रही हैं। जिस लोकतंत्र में कोई एक नेता अपने परिवार के हर सदस्य को सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री बनवा दे, उस लोकतंत्र को चिपकू नेताओं का जोंकतंत्र नहीं कहें तो क्या कहें?
ध्यान रखें कि ये वही मुलायम सिंह हैं, जिन्होंने 24 मार्च 2010 को लोकसभा में कहा था कि अगर महिला आरक्षण विधेयक पास हो गया, तो संसद में उद्योगपतियों और अधिकारियों की ऐसी-ऐसी लड़कियां आ जाएंगी, जिन्हें देखकर लड़के यानी सांसद पीछे से सीटी बजाएंगे। अब जबकि मुलायम सिंह ख़ुद अपनी ख़ूबसूरत बहू को संसद में भेज रहे हैं, तो यह पूछा जाना चाहिए कि उनके ख्याल अचानक बदल क्यों गए? जो सांसद दूसरे परिवारों की महिलाओं को संसद में देखकर सीटी बजाएंगे, वो उनके परिवार की महिला को देखकर क्या सरस्वती-वंदना गाएंगे?
साफ़ है कि मुलायम सिंह जैसे नेताओं को न तो संसद की गरिमा से कोई मतलब है, न महिलाओं की गरिमा से। और देश-हित, राज्य-हित तो जाए भाड़ में। उनके लिए समाजवादी और लोहियावादी होने का असली मतलब है- परिवारवादी और वंशवादी होना। और ज़रा यह भी देखिए कि इस जोंकतंत्र के चिपकू वंशवादियों में कितनी ज़बर्दस्त एकता होती है। जो राजनीतिक दल राष्ट्रहित के मुद्दों पर कभी दलगत राजनीति से ऊपर नहीं उठ पाते हैं, डिंपल यादव को सांसद बनाने के लिए उन सबने दलगत राजनीति से ऊपर उठकर उनके ख़िलाफ़ अपने उम्मीदवार नहीं उतारने का फ़ैसला किया। डिंपल के ख़िलाफ़ न तो वंशवादियों की सरगना कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार उतारा, न ही राष्ट्रवाद के नाम पर धृतराष्ट्रवाद का पोषण करने वाली भाजपा ने, न ही माया की छाया सुश्री मायावती की पार्टी बीएसपी ने। दो निर्दलीयों ने पर्चा भरा, उन्होंने भी अपने नाम वापस ले लिए।
तो मित्रो, लोकतंत्र की जगह जोंकतंत्र, समाजवाद की जगह परिवारवाद और राष्ट्रवाद की जगह धृतराष्ट्रवाद को फलते-फूलते देख आप तालियां बजाइए। हम चलते हैं।


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