Wednesday, 06 February 2013 10:44 |
कश्मीर उप्पल मार्क्स और एंगेल्स ने अपने लेखन से सिद्ध किया कि स्त्रियों और बच्चों की सस्ती श्रमशक्तिकी लूट पंूजीवाद की एक महत्त्वपूर्ण आधारशिला है। उनके अनुसार स्त्रियों की सच्ची मुक्तिकी दिशा में पहला कदम पूंजीवादी व्यवस्था का खात्मा है। मार्क्सवाद की दृष्टि से बेवल की लिखी पहली पुस्तक 'नारी और समाजवाद' (1879) थी। इस तरह साम्यवाद के संघर्ष में अन्य अधिकारों के साथ-साथ स्त्री मुक्तिका सवाल भी जुड़ गया था। ब्रिटेन में महिला संगठनों के आंदोलनों के दबाव से ही 1847 में महिलाओं के लिए दस घंटे का कार्यदिवस कानून बना। इसके बाद 1860 में महिलाओं को शिक्षण के अतिरिक्तअन्य पेशों में काम करने का अधिकार मिला था। इसी प्रकार महिलाओं को तलाक लेने का अधिकार 1858 में मिला। ब्रिटेन में 1918 के पहले तक केवल पुरुषों को पार्लियामेंट चुनाव में वोट देने का अधिकार था। जॉन स्टुअर्ट मिल ने तो 1867 में ही संसद में महिला-मताधिकार विधेयक रखा था जो पारित नहीं हो सका। इसके बाद मताधिकार के लिए महिलाओं के दो प्रकार के आंदोलन चले। एक संगठन लॉबिंग करके और दूसरा संगठन उग्र प्रदर्शनों के जरिए मताधिकार की लड़ाई लड़ता था। इन आंदोलनों के फलस्वरूप ही वहां महिलाओं को वोट देने का अधिकार मिला। यूरोप के कई और देशों में भी नारी स्वतंत्रता, समता और मताधिकार के आंदोलन चले। फ्रांसीसी क्रांति के दौरान महिलाओं ने सभी राजनीतिक गतिविधियों में खुलकर हिस्सा लिया था। उस समय कई महिला क्रांतिकारी क्लब बने। यह माना जाता है कि आधुनिक विश्व के इतिहास में ये प्रथम महिला संगठन थे। ओलिम्पी दि गूजे ने (1748-93) में 'महिला और महिला नागरिक' के अधिकारों की घोषणा की थी और उसे 1791 में राष्ट्रीय असेंबली के समक्ष पेश किया था। अमेरिका और यूरोप में प्रबोधकालीन आदर्शों से प्रभावित होकर महिलाओं के प्राकृतिक अधिकार और स्वतंत्रता-समानता की मांग कई लेखकों और महिला संगठनों ने उठाई थी। इसके फलस्वरूप ही 1871 के पेरिस-कम्यून में स्त्रियों की भागीदारी संभव हुई। इसने पूरे यूरोप को प्रभावित किया। संयुक्तराष्ट्र ने 8 मार्च 1975 से अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की शुरुआत की। यह दिवस महिला सशक्तीकरण के उद््देश्य से जाता है, जिसकी पहल 1985 में नैरोबी में आयोजित अंतरराष्ट्रीय महिला सम्मेलन में हुई थी। भारत में सर्वप्रथम 1926 में विधानसभा में एक महिला को मनोनयन द्वारा सदस्य बनाया गया था, पर उसे मत देने का अधिकार नहीं था। 1937 में महिलाओं के लिए सीट आरक्षित कर दी गई थी, जिसके फलस्वरूप 41 महिला उम्मीदवार चुनाव में उतरी थीं। 1938 में श्रीमती आर सुब्बाराव राज्य परिषद में चुनी गर्इं। इसके बाद 1953 में रेणुका राय केंद्रीय व्यवस्थापिका में प्रथम सदस्य के रूप में चुनी गई थीं। भारत में संविधान के 73वें और 74वें संशोधन के जरिए महिलाओं के लिए पंचायतों और नगर निकायों में एक तिहाई आरक्षण की व्यवस्था की गई। अब संसद और विधानसभा में आरक्षण की लड़ाई शेष है। महिलाओं के ज्यादा प्रतिनिधित्व का आशय देश और प्रदेश में मंत्रिमंडल में महिलाओं की संख्या में वृद्धि होना है। जब जातियों और वर्गों का मंत्रिमंडल में ध्यान रखा जाता है तो महिलाओं के प्रतिनिधित्व का ध्यान क्यों नहीं आता है। संयुक्तराष्ट्र की सहस्राब्दी रिपोर्ट महिलाओं के पक्ष में कुछ नए तथ्य प्रकाश में लाती है। इसके अनुसार विश्व के कुल कार्य-घंटों में दो तिहाई महिलाओं द्वारा संपन्न किए जाते हैं। महिलाओं को अनाज पैदा करने, भोजन बनाने, बच्चों की देखभाल, घर के बुर्जुगों की देखरेख, र्इंधन और पानी की व्यवस्था आदि कामों के लिए कोई वेतन नहीं दिया जाता। महिलाएं कुल विश्व की आय का केवल दस प्रतिशत कमाती हैं। इनका पद और वेतन भी नीचे का होता है। विश्व की कुल संपत्ति का केवल एक प्रतिशत महिलाओं के नाम है। उनके नाम संपत्ति न होने से उन्हें कर्ज भी नहीं मिल पाता है। पुरुषों के अधीन होने और निशक्तरहने का सबसे प्रमुख कारण भी यही है कि महिलाओं के नाम भौतिक संपदा नहीं होती। भारतीय महिलाओं के कई मुद््दे हैं जिन्हें लेकर एक बड़ा सुगठित राष्ट्रीय आंदोलन खड़ा होना चाहिए। स्त्री-अस्मिता का प्रश्न सरकार द्वारा दो-चार मांगें मान लेने का ही प्रश्न नहीं है। यह मसला एक-दो हफ्ते या महीने तक प्रदर्शन करने से ही हल नहीं होगा। विश्व के अन्य देशों का इतिहास बताता है कि महिलाओं के पक्ष में अनवरत कई दशकों और पूरी शताब्दी तक संघर्ष चलाए रखने के बाद ही सफलता प्राप्त हुई है। इसके लिए समाज के सभी वर्गों द्वारा एक साथ मिलकर काम करने की तैयारी होनी चाहिए। विश्व समाज आर्थिक, सामाजिक, टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में नए-नए क्षितिज छू रहा है। हमें देखना होगा कि हमारे जीवन का आधा भाग पीछे न छूट जाए। जीवन के एक पक्ष के पीछे छूट जाने से हम भी पीछे छूट जाते हैं। |
Friday, February 8, 2013
यह प्रजातंत्र किसका है
यह प्रजातंत्र किसका है
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment