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Friday, February 8, 2013

भीख मांगता बच्चा किसका है!

भीख मांगता बच्चा किसका है!



हम जवानी में कितना ही जलवा कायम क्यों न कर लें, पर एक बात जुंबा पर रहती है कि बचपन जैसी बात अब कहाँ. क्या ये बच्चे भी अपनी जवानी के दौर मे अपने बचपन को इतनी ही चाहत के साथ याद कर पायेगें. हमें तो अपने बचपन पर बड़ा नाज होता है, पर इनका क्या जिनका बचपन दुःस्वपन जैसा है...

विशाल शर्मा

पिछले दो तीन की बारिश ने मौसम का मिजाज बिगाड रखा है. बचपन में तो बारिश में धमाचौकड़ी खूब हुआ करती थी, मगर जिंदगी की रफ्तार इतनी तेजी से बढ़ती है कि वो बचपन और बारिश को बस यादों में ही समेट देती है. अभी कल ही की बात है इलाहाबाद जाते समय ट्रेन में खिड़की से बारिश का आनन्द लेने में मशगूल था. मेरे डिब्बे मे बैठे अन्य यात्री भी बारिश का मजा ले रहे थे.

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तभी यकायक कोई 10-12 साल का लडका भीख माँगता हुआ डिब्बे में सवार हुआ. कपड़े फटे, आँखों मे थकान और चेहरे से भूख टपकती हुई हालत थी उसकी. उसकी दयनीय स्थिति उसके पेट का हाल बताने के लिए काफी थी. उस बालक के ट्रेन में चढ़ते ही पूरे डिब्बे में उसे दुत्कारने की होड़ सी मच गयी. अपनी सीट पर बैठा अखबार में छपी उस खबर को पढ़ रहा था जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने लाखों बच्चों की गुमशुदगी के बारे में तीन राज्यों के गृह सचिवों को फटकार लगायी है.

इतने मे वह बच्चा मेरे सामने आकर हाथ फैलाने लगा और मैंने भी उसे औरों की तरह अनदेखा कर दिया. उसके जाने के बाद मेरे एक सहयात्री ने मुझसे कहा बड़े ही बदमाश किस्म के होते हैं ये लडके. तरह-तरह का नशा करते हैं और भीख माँगने का बडा धंधा करते हैं. आगे चलकर यही क्राइम को बढ़ावा देते हैं. मैंने उनकी बातों को सुना और अपने आप से सवाल किया कि आखिर ये बच्चे हैं कौन, और जो भी हैं उन्हें इस काम के लिए कौन कहता है.

मैंने सुबह ही पढ़ा था कि लाखों बच्चे गुम हैं और किसी को उनके बारे में कुछ पता नहीं है. कोर्ट से लेकर तमाम सरकारी एवं गैर सरकारी संगठन उनके नाम पर बड़ी जाँच पडताल कर रहे हैं. आँखों के सामने वो आंकडे जो बच्चों की गुम होने की दास्तां बंया कर रहे थे और उधर वह बच्चा जो शायद इनमें से कोई एक हो. सवाल यह कि इस तरह के बच्चों को, जो स्टेशन से लेकर बड़े-बड़े मॉल और बाजार की तंग गलियों से लेकर चौड़ी सड़कों पर हाथ फैलाये आपके सामने आ जाते है हैं और हम हमेशा इनसे बचने की ही तो कोशिश करते हैं.

इनमें से ज्यादातर की उम्र तो 3-4 साल से भी कम होती होगी और कुछ ऐसे भी होते हैं जो अभी चलने के लायक भी नही हैं, लेकिन इन सबका बचपन सिर्फ हमारे सामने हाथ फैलाने के अलावा पता नहीं और कहीं भी गुजरता होगा या नहीं. इतने सारे सवालों मे एक सवाल मेरे लिए सबसे बडा यह था कि हम हमेशा अपना बचपन दुबारा जीना चाहते हैं और उन सब बातों को जीने की तमन्ना ताउम्र रहती है जो हमने अपने बचपन में जी थी.

हम हमेशा वही समय, वही बेफिक्री फिर से चाहते हैं जहाँ बारिश के पानी में हमारे भी जहाज चला करते थे. हम जवानी में कितना ही जलवा कायम क्यों न कर लें, पर एक बात जुंबा पर रहती है कि बचपन जैसी बात अब कहाँ. क्या ये बच्चे भी अपनी जवानी के दौर मे अपने बचपन को इतनी ही चाहत के साथ याद कर पायेगें. हमें तो अपने बचपन पर बड़ा नाज होता है, पर इनका क्या जिनका बचपन एक दुःस्वपन जैसा है.

इसी सब मानसिक उठापठक मे ट्रेन प्लेटफार्म पर आ गई थी. मैं ट्रेन से उतरकर बारिश होने के कारण एक कोने मे खड़ा था कि तभी सामने वाले प्लेटफार्म पर खड़ी एक ट्रेन से कुछ बच्चे उतरे जो हुलिये से बिल्कुल उस बच्चे के जैसे थे जो मुझे अभी मेरे डिब्बे में मिला था. वो सर्दी की बारिश खिड़की से देखने के बजाए भीगते हुए पटरी पार कर मेरे वाले ही प्लेटफार्म पर आ रहे थे. मैने चाय वाले से अपने लिए चाय माँगी उसने चाय देते हुए मुझसे कहा 'बारिश नहीं साहब,वरदान है इस समय यह. इस बार गेहूं अच्छा होगा.'

मै चाय का गिलास लेकर ज्यों ही पलटा, मेरे पीछे एक छोटी सी बच्ची हाथ फैलाये हुए थी और खाना खिलाने की मिन्नत कर रही थी. मैंने अपने चाय की गिलास उसे थमा दी और दुकानदार से उसे और भी कुछ खिलाने के लिए कहा. बारिश जोर से पड़ रही थी. मैंने उस बच्ची की ओर देखा और फिर आसमान की ओर देखते हुए कहा आखिर इनकी उम्मीदों को पूरा करने वाली बारिश कब होगी. मेरे पास तो इसका जवाब नहीं था, पर क्या पता आपके पास हो.

vishal-sharmaविशाल शर्मा भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय में पत्रकारिता के छात्र हैं.

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