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Monday, July 22, 2013

अभूतपूर्व उत्पादन संकट,राष्ट्रपति की डिक्री के बाद चालू 250 खानों में उत्पादन बढ़ाने की जुगत में कोल इंडिया!

अभूतपूर्व उत्पादन संकट,राष्ट्रपति की डिक्री के बाद चालू 250  खानों में उत्पादन बढ़ाने की जुगत में कोल इंडिया!


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


कोल इंडिया राष्ट्रपति की डिक्री के बाद चालू 250  खानों में उत्पादन बढ़ाने की जुगत में है।पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के बाद राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने भी कोल इंडिया के किलाफ बिजली कंपनियों के साथ ईंधन आपूर्ति समझौता एफएसए पर दस्तखत करने के लिए डिक्री जारी कर दी है। अभी कोल इंडिया के समक्ष अभूतपूर्व उत्पादन में कमी का संकटहै।यह संकट फिलहाल दूर होने के कोई उपाय नजर नहीं आ रहे हैं।आशंका है कि कोलइंडिया 12 वीं पंचवर्षीय योजना के लिए नियत उत्पादन लक्ष्य हासिल करने की हालत में ही नहीं है। पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पटेल के पदचिन्हों पर चलते हुए राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने भी कोलइंडिया को बिजली कंपनियों के साथ अनिवार्य कोयला आपूर्ति समझौता करने के लिए दिशा निर्देश जारी कर दिया। संवैधानिक बाध्यता हो गयी है कोलइंडिया के लिए अब इन समझौतों पर दस्तखत करना। एनटीपीसी के साथ लंबे विवाद के मध्य ही कोलइंडिया ने इन समझौतों पर दस्तखत कर दिये। अब नये सिरे से राष्ट्रपति की डिक्री जारी करके भारत सरकार नें उसके लिए कोई विकल्प ही नहीं छोड़ा है।78 हजार मेगावाट बिजली उत्पादवन के लिए कोयला आपूर्ति के लिए कोल इंडिया बाध्य है चाहे जैसे हो। उत्पादन पर्याप्त न हुआ तो उसे यह कोयला आयात करके बिजली कंपनियों को देना होगा। कोल इंडिया की बलि चढ़ाकर भारत सरकार बिजली उत्पादन को सर्वोच्च प्राथमिकता देने की नीति पर चल रही है लेकिन बिजली उत्पादन बढ़ने से आम उपभोक्ताओं को राहत मिलने की कोई उम्मीद नही है क्योंकि उत्पादन लागत बढ़ जाने के बहाने बिजली कंपनियां लगातार बिजली दरों में इजाफा कर रही हैं और भारत सरकार का उनपर कोई अंकुश नहीं है।



जमीन अधिग्रहण और पर्यावरण हरी झंडी लंबित हो जाने, कोयला ब्लाकों के आबंटन घोटाले जैसे विविध कारणों से कोयला कानों का विस्तार असंभव हो जाने से यह संकट है। लिहाजा अब विदेशी विशेषज्ञों की मदद से चालू कोयला खानों का आधुनिकीकरण के जरिये उत्पादन लक्ष्य हासिल करके बिजली कंपनियों को कोयला आपूर्ति करने की संवैधानिक बाध्यता का सामना करने की तैयारी में है कोल इंडिया।


कोल इंडिया को इसी वित्तीय वर्ष में 482 मिलियन टन और 2016 -17 तक 615 मिलियन टन कोयला उत्पादन का लक्ष्य मिला है,जिसे हासिल करना मौजूदा हालात में नामुमकिन समझा जा रहा है।जबकि मुश्किल यह है कि कोल इंडिया के एफएसए करने से सबसे ज्यादा फायदा अदानी पावरअदानी पावर को मिल सकता है। अदानी पावर के अलावा रिलायंस पावर, टाटा पावर, जेएसडब्ल्यू एनर्जी को भी फायदा हो सकता है। लेकिन जेपी पावर और लैंको इंफ्रा को ज्यादा फायदा होने की उम्मीद नहीं है।   


फ्यूल सप्लाई एग्रीमेंट पर कोल इंडिया के लिए सरकार ने राष्ट्रपति का निर्देश जारी किया है। राष्ट्रपति निर्देश के बाद अब कोल इंडिया को एफएसए करना ही होगा।


कंपनी के मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन के क्लॉज 37 के तहत निर्देश जारी किया गया है।कोल इंडिया को पावर कंपनियों के साथ 20 साल के लिए कुल जरूरत का 80 फीसदी कोयले की सप्लाई के लिए करार करना है।



कोलइंडिया को कम से कम सात विस्तार परियोजनाओं के शुरु हो जाने की उम्मीद है जो जमीन और पर्यावरण झंझट में दीर्गकाल से लंबित है और उनके शुरु होने पर अतिरिक्त 18 मिलियन टन का उत्पादन संभव हो सकेगा।


गौरतलब है कि कोल इंडिया लिमिटेड जून-2013 मे अपने उत्पादन लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाया। उपक्रम ने साढे तीन करोड टन लक्ष्य की तुलना मे तीन करोड 25 लाख टन कोयला ही उत्पादित किया। जून मे कोयले का उठाव भी तीन करोड 98 लाख टन लक्ष्य के मुकाबले तीन करोड 70 लाख टन रहा। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में कोल इंडिया का उत्पादन 10 करोड 68 लाख टन की तुलना में 10 करोड 28 लाख टन रहा। देश में उत्पादन में कमी की भरपाई के लिए कोल इंडिया लिमिटेड ऑस्ट्रेलिया में कोयला संपत्ति में हिस्सा खरीदने पर विचार कर रही है। इस वित्त वर्ष में कंपनी विदेशी अधिग्रहण में 6,000 करोड़ रुपये के निवेश की योजना बना रही है।

कोल इंडिया सेंट्रल मइन प्लानिंग एंड डिजाइन इंस्टीच्यूट,सीएमपीडीआई की योजना के तहत अब 250 कोयला खानों में उत्पादन बढ़ाने के लिए दो चीनी कंपनियों बेइजिंग हुयाउ इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड और चाइनीज कोल ओवरसीज डेवलापमेंट कंपनी की सेवाएं लेने के विकल्प पर विचार कर रही है।चीन की भी भारतीय कोयला में दाखिला के लिए खूब दिलचस्पी बतायी जा रही है।वैसे इन कंपनियों के अलावा कोयला खानों के विकास के लिए दस दूसरी विदेशी कंपनियां भी मदद को तैयार हैं और सबने अपने अपने दावे पेश कर दिये हैं।


सीएमपीडीआई  ने इन दावों की पड़ताल के लिए ईस्टर्न कोलफील्डस लिमिटेड और महानंदा कोल फील्ड्स लिमिटेड के अध्यक्षों को लेकर  एक विशेषज्ञ टीम भी बना दी है।


जमीन अधिग्रहण, फॉरेस्ट क्लीयरेंस और रेल प्रोजेक्ट में देरी से कोल इंडिया के उत्पादन बढ़ाने की कोशिशें कामयाब होती नहीं दिखतीं। कंपनी उत्पादन  बढ़ाने के लिए माइन डेवलपर ऑपरेट रूट पर बहुत हद तक निर्भर रहती है। करीब 1.8 करोड़ टन क्षमता वाले सात प्रोजेक्ट पर काम शुरू शुरू करना का प्लान था, लेकिन सीआईएल ऐसा कर पाएगी, इस बात की कम ही उम्मीद है।


इस बीच कोल इंडिया ने हाल में दो प्रोजेक्ट के लिए कोटेशन रिक्वेस्ट मंगाया है। कंपनी इटापाड़ा ओपन कास्ट माइन और मालाछुआ ओपन कास्ट माइन प्रोजेक्ट के लिए सालाना कैपेसिटी 60 लाख टन बढ़ाना चाहती है। कोल इंडिया को वेस्टर्न कोलफील्ड्स, मुरापर अंडरग्राउंड एक्सपैंसन प्रोजेक्ट के लिए भी दो बिड मिले।


इटापाड़ा ओपन कास्ट माइन प्रोजेक्ट पश्चिम बंगाल में ईस्टर्न कोलफील्ड्स के तहत आता है। प्रोजेक्ट के लिए 15 किलोमीटर की रेलवे लाइन बिछानी होगी और अभी जमीन अधिग्रहण किया जाना बाकी है। दूसरे विकल्प के तौर पर चिनछुरिया से पुरानी रेलवे लाइन को दोबारा रिवाइव कर रेलवे कनेक्टिविटी बनाई जा सकती है। इन दोनों ही विकल्पों पर काफी समय लगना है। पश्चिम बंगाल में जमीन अधिग्रहण करना बड़ा मुद्दा हो गया है। ईसीएल को इस माइन के लिए 1,108 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहण करने होंगे। इससे 1,254 परिवार प्रभावित होंगे। यह सरकार के सामने बहुत गंभीर मुद्दा है।


मालाछुआ ओपन कास्ट मध्य प्रदेश में साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स के तहत आता है। इसके लिए 999 भूमि मालिकों को पुनर्वासित करना होगा और प्रोजेक्ट लाइन से कनेक्टिविटी के लिए 7 किलोमीटर लंबी रेल लाइन बिछानी होगी। कोल इंडिया के एक सीनियर अधिकारी ने बताया कि रेलवे कंस्ट्रक्शन में काफी समय लगता है।


वेस्टर्न कोलफील्ड्स के मुरापर अंडरग्राउंड एक्सपैंसन प्रोजेक्ट के लिए कोल इंडिया चीन की कंपनी के साथ गठजोड़ करना चाहती थी, लेकिन इस पर बात नहीं बनी। फ्रेश प्रपोजल मंगाने पर दो बिड मिले, लेकिन प्रोजेक्ट को अभी तक फॉरेस्ट क्लीयरेंस नहीं मिला है। डब्ल्यूसीएल के अधिकारियों ने बताया कि प्रोजेक्ट के लिए अंतिम बिडर को तय करने में कम से कम एक साल लगेंगे। कंपनी को फॉरेस्ट क्लियरेंस सबमिट करना होगा, इसमें 2-3 साल तक का समय लग सकता है।


सीआईएल के कई दूसरे प्रोजेक्ट को इसी तरह की समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। इससे कंपनी को निकटभविष्य में इन प्रोजेक्ट से प्रोडक्शन बढ़ने की उम्मीद कम है।


झारखंड में सेंट्रल कोलफील्ड्स ( सीसीएल ) के डीआरडी ओपन कास्ट माइन प्रोजेक्ट से करीब 40 लाख टनकोयले प्रोडक्शन होने की उम्मीद है। कंपनी को पहले दामोदर रीवर डायवर्जन प्रोजेक्ट के साथ 7.4 किलोमीटरलंबे फुसरो जरंगडीह रेल डायवर्जन प्रोजेक्ट को पूरा कराना होगा। ये दोनों ही डायवर्जन प्रोजेक्ट को 25 सालपहले लिया गया था , लेकिन कई जगहों पर भूमि अधिग्रहण की दिक्कत से अभी तक काम नहीं हो सका है। इसप्रोजेक्ट के लिए 1,097 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहण की जरूरत है। इस रूट में पड़ने वाले जमीन मालिकसीआईएल के नॉर्म्स से बाहर निकलकर एंप्लॉयमेंट और अधिक मुआवजा की डिमांड कर रहे हैं।










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